जैन साहित्य: स्वरूप, विकास, प्रमुख कवि, कृतियाँ और साहित्यिक विशेषताएँ

जैन साहित्य: स्वरूप, विकास, प्रमुख कवि, कृतियाँ और साहित्यिक विशेषताएँ

भारतवर्ष की धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा में जैन धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जैन धर्म न केवल एक आध्यात्मिक मार्ग है, अपितु एक विशिष्ट साहित्यिक परंपरा का वाहक भी रहा है। जैन साहित्य, जो विविध भाषाओं और शैलियों में रचा गया, धर्म, दर्शन, नैतिकता और इतिहास की अनमोल धरोहर बन चुका है। इस … Read more

सिद्ध साहित्य: हिन्दी साहित्य का आदिरूप और सामाजिक चेतना का संवाहक

सिद्ध साहित्य: हिन्दी साहित्य का आदिरूप और सामाजिक चेतना का संवाहक

सिद्ध साहित्य हिन्दी साहित्य की आदिम कड़ी है, जो न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना की दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है। यह साहित्य भारत में बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से संबद्ध सिद्ध साधकों द्वारा रचित है, जो विशेषतः भारत के पूर्वी भाग—बिहार, बंगाल और असम—में सक्रिय … Read more

नाथ संप्रदाय (साहित्य): योग, तंत्र और साधना की भारतीय परंपरा का अनूठा अध्याय

नाथ संप्रदाय (साहित्य)

भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में योग, तंत्र और साधना के अनेक मार्ग विकसित हुए हैं। इन्हीं में एक प्रमुख पंथ है – नाथ संप्रदाय। नाथ संप्रदाय का उद्भव सिद्धों की भोगवादी प्रवृत्ति और उनके द्वारा प्रचारित महासुखवाद के विरोध स्वरूप हुआ। नाथ साहित्य न केवल आध्यात्मिक चेतना को उजागर करता है, बल्कि यह समाज … Read more

चम्पू साहित्य | गद्य और पद्य का अद्वितीय संगम

चम्पू साहित्य | गद्य और पद्य का अद्वितीय संगम

भारतीय काव्य परंपरा में विविध काव्य रूपों का विकास हुआ है, जिनमें से एक विशेष और विशिष्ट काव्य विधा है – चम्पू काव्य। यह काव्य विधा न केवल अपनी रचना-शैली में अद्वितीय है, बल्कि यह गद्य और पद्य के कलात्मक समन्वय का एक अद्भुत उदाहरण भी प्रस्तुत करती है। “गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते” – यह परिभाषा … Read more

अष्टछाप के कवि: परिचय, रचनाएँ और ऐतिहासिक महत्व

अष्टछाप के कवि: परिचय, रचनाएँ और ऐतिहासिक महत्व

यह लेख भक्ति काल की प्रमुख धारा पुष्टिमार्ग से जुड़े आठ विशिष्ट भक्त कवियों के समूह अष्टछाप पर केंद्रित है, जो न केवल श्रीकृष्ण भक्ति के महान साधक थे, बल्कि अत्यंत उत्कृष्ट रचनाकार, संगीतज्ञ और कीर्तनकार भी थे। इस लेख में प्रमुख कवि सूरदास और कुंभनदास के जीवन, काव्य और भक्ति दृष्टिकोण का विस्तारपूर्वक वर्णन … Read more

भक्ति काल के कवि और उनके काव्य (रचनाएँ)

भक्ति काल के कवि और उनके काव्य (रचनाएँ)

यह लेख हिंदी साहित्य के भक्ति काल (1350 ई. – 1650 ई.) से संबंधित कवियों और उनकी रचनाओं का सुव्यवस्थित विवरण प्रस्तुत करता है। भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है, जिसमें धार्मिक भावना, सामाजिक सुधार और काव्यात्मक उत्कृष्टता का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। इस लेख में भक्ति काल … Read more

सगुण भक्ति काव्य धारा: अवधारणा, प्रवृत्तियाँ, प्रमुख कवि और साहित्यिक विशेषताएँ

सगुण भक्ति काव्य धारा

हिंदी साहित्य का इतिहास अनेक कालखंडों में विभाजित है। इन कालखण्डों में भक्तिकाल जिसकी समयावधि लगभग 1350 ई. से 1700 ई. के मध्य मानी जाती है, भक्तिमार्ग पर आधारित साहित्यिक सृजन का युग था। इस काल को हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा गया है। धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से यह युग अत्यंत समृद्ध और … Read more

निर्गुण भक्ति काव्य धारा: अवधारणा, प्रवृत्तियाँ, प्रमुख कवि और साहित्यिक विशेषताएँ

निर्गुण भक्ति काव्य धारा

हिंदी साहित्य का इतिहास अपने भीतर धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आंदोलनों की अनेक परतें समेटे हुए है। मध्यकालीन हिंदी साहित्य, जिसे ‘भक्ति काल’ के नाम से जाना जाता है, को हिंदी साहित्य का “स्वर्ण युग” कहा गया है। यह काल 1350 ई. से 1650 ई. के मध्य का है, जब हिंदी साहित्य में धार्मिकता … Read more

सूफी काव्य धारा: निर्गुण भक्ति की प्रेमाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली

सूफी काव्य धारा - निर्गुण भक्ति की प्रेमाश्रयी शाखा

सूफी काव्य धारा, जिसे प्रेमाश्रयी शाखा, प्रेममार्गी या प्रेमाख्यान काव्य भी कहा जाता है, हिन्दी साहित्य की एक समृद्ध, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा भारतीय और फारसी परंपराओं का संगम है, जिसमें लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम (इश्क-ए-हकीकी) की प्राप्ति को प्रमुख उद्देश्य माना गया है। इस … Read more

संत काव्य धारा: निर्गुण भक्ति की ज्ञानाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली

संत काव्य धारा - निर्गुण भक्ति की ज्ञानाश्रयी शाखा

यह लेख हिंदी साहित्य के भक्ति काल की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली धारा – संत काव्य या ज्ञानाश्रयी निर्गुण भक्ति काव्य – पर एक समग्र और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसमें संत काव्य की धार्मिक, सामाजिक एवं भाषिक विशेषताओं का गहन अध्ययन किया गया है। लेख में बताया गया है कि कैसे संत … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.