बिम्बिसार | Bimbisara | 546 – 494 ईसा पूर्व

बिम्बिसार ने 52 साल तक 544 ईसा पूर्व से 492 ईसा पूर्व तक शासन किया। इसको इसी के ही पुत्र अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व ) ने बंदी बना लिया और हत्या कर दी। बिंबिसार मगध का शासक था। वह हर्यंक राजवंश से था।

वैवाहिक गठबंधन के माध्यम से इसने अपनी स्थिति और समृद्धि को मजबूत किया। इसका पहला विवाह कोशल देवी नामक महिला से कोशल परिवार में हुआ। बिंबिसार को दहेज में काशी प्रांत दिया गया।

बिम्बिसार का संक्षिप्त परिचय

बिम्बिसार
शासनकाल543-491 ईसा पूर्व
जन्म558 ईसा पूर्व
मृत्यु491 ईसा पूर्व
पिताभाट्टिया
उत्तराधिकारीअजातशत्रु, कोसला देवी का पुत्र
पत्नीकोसला देवी, चेल्लना, खेमा, आम्रपाली आदि
पुत्रअजातशत्रु
धार्मिक विश्वासबौद्ध धर्म
Bimbisara

बिम्बिसार (Bimbisara) ने वैशाली के लिच्छवि परिवार की चेल्लाना नामक राजकुमारी से विवाह किया। अब इस वैवाहिक गठबंधन ने इसे उत्तरी सीमा में सुरक्षित कर दिया। बिंबिसार ने दुबारा एक और विवाह मध्य पंजाब के मद्रा के शाही परिवार की खेमा से किया। इसने अंग के ब्रहमदत्ता को पराजित कर उसके साम्राज्य पर कब्जा कर लिया। बिंबिसार के अवन्ती राज्य के साथ अच्छे तालुक थे।

बिंबिसार (Bimbisara) की विजय ने मगध की उस विजय तथा विस्तार का दौर प्रारम्भ किया जो अशोक द्वारा कलिंग विजय के बाद तलवार रख देने के साथ समाप्त हुआ। अंग के मगध में मिल जाने पर मगध की सीमा अत्यधिक विस्तृत हो गई और अब वह पूर्वी भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य बन गया।

मगध का लगभग सम्पूर्ण बिहार पर अधिकार हो गया। बुद्धघोष के अनुसार बिम्बिसार के साम्राज्य में 80 हजार गाँव थे तथा उसका विस्तार 300 लीग (लगभग 900 मील) था । बिंबिसार एक कुशल शासक भी था। उसने अपने साम्राज्य में एक संगठित एवं सुदृढ़ शासन व्यवस्था की नींव डाली।

बिम्बिसार (Bimbisara) का जीवन परिचय

डी.आर. भण्डारकर के अनुसार बिम्बिसार प्रारम्भ में लिच्छिवियों का सेनापति था। सुतनिपात में लिच्छिवियों के नगर, वैशाली को मगधमपुरम कहा गया है। जैन साहित्य में बिम्बिसार का नाम ‘श्रेणिक’ मिलता है। महावंश के अनुसार बिंबिसार को उसके पिता ने 15 वर्ष की आयु में राज्य दिया। अतः भण्डारकर महोदय का कथन सही प्रतीत नहीं होता। मत्स्य पुराण में बिंबिसार के पिता का नाम ‘क्षेत्तौजस’ दिया गया है। टार्नर महोदय के अनुसार बिंबिसार के पिता का नाम ‘भट्टिय’ था जिसे अंग नरेश ब्रह्मदत्त ने हराया था। दीपवंश में पिता का नाम ‘बोधिस’ व तिब्बती अनुश्रुति में ‘महापद्म’ मिलता है।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार मगध का प्रथम शासक बिंबिसार था। यह मत सबसे अधिक तर्कसंगत है। इसने मगध में हर्यक वंश की स्थापना के बाद मगध साम्राज्य के विस्तार के लिए कई वैवाहिक संबंध स्थापित किये। अतः इसने साम्राज्य विस्तार के लिए वैवाहिक संबंध की नीति अपनाई।

बिम्बिसार (Bimbisara) का जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था। राजा बिम्बिसार की राजधानी राजगीर थी। वे पन्द्रह वर्ष  की आयु में ही राजा बने। बिम्बिसार ने करीब 52 वर्षों तक शासन किया। बौद्ध और जैन ग्रन्थानुसार उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था जहाँ उसका 492 ई. पू. में निधन हो गया।

बिम्बिसार की पत्नी

कोसल की राजकुमारी और प्रसेनजित की बहन ‘महाकोशला’ इनकी पत्नी और अजातशत्रु की माँ थी। इनकी अन्य पत्नियाँ भी थीं जिनका नाम चेल्लना (लिच्छवी राजकुमारी), खेमा अथवा क्षेमा, सिलव और जयसेना आदि था। विख्यात वीरांगना आम्रपाली से इन्होने प्रेम विवाह किया था। आम्रपाली का एक नाम ‘अम्बपाली’ अथवा ‘अम्बपालिका’ भी है। आम्रपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहा जाता है जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था। आम्रपाली से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था।

बिम्बिसार भगवान बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। इनकी पत्नी आम्रपाली भी इनसे प्रभावित होकर भिक्षुणी बन गई थीं। बिंबिसार ने अंग और चम्पा को जीत कर वहाँ पर अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्त कर दिया था। बिम्बिसार ने राज्य विस्तार के लिए विवाह निति अपने थी, जिस कारण से उसकी अनेकों पत्नियाँ थी। महावग्ग में बिंबिसार की 500 रानियां होने का जिक्र किया गया है।

बिम्बिसार द्वारा साम्राज्य विस्तार के लिए किये गए कार्य

बिम्बिसार द्वारा साम्राज्य विस्तार के लिए बहुत से कार्य किये गए जो निम्नलिखित है –

विवाह निति

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार मगध का प्रथम शासक बिंबिसार था। यह मत सबसे अधिक तर्कसंगत है। इसने मगध में हर्यक वंश की स्थापना के बाद मगध साम्राज्य के विस्तार के लिए कई वैवाहिक संबंध स्थापित किये। अतः इसने साम्राज्य विस्तार के लिए वैवाहिक संबंध की नीति अपनाई। बिम्बिसार द्वारा साम्राज्य विस्तार के लिए किये गए कुछ प्रमुख विवाह :-

  1. प्रसेनजित की बहन महाकोशला : बिम्बिसार ने सबसे पहले कोशल नरेश प्रसेनजीत की बहन ‘महाकोशला’ से विवाह किया। इससे कोशल का राज्य उसका मित्र बन गया तथा दहेज में एक लाख की वार्षिक आय का काशी ग्राम (काशी के कुछ गांव) भी प्राप्त हुआ। इससे मगध की सुरक्षा भी मिली, क्योंकि उसके और वत्स के मध्य में मित्र राज्य कौशल था।
  2. चेटक की बहन चेलना : बिम्बिसार ने लिच्छवी गणराज्य के चेटक की पुत्री चेलना (छलना) से विवाह कर मगध की उत्तरी सीमा को सुरक्षित किया क्योंकि लिच्छवी मगध की प्रारम्भिक राजधानी गिरिवज्र पर रात्रि आक्रमण करते थे। एक बार नगर में आग भी लगा दी थी। वैदेही वासवी की पहचान चेल्लना से ही की जाती है जो अजातशत्रु द्वारा बिम्बिसार को कारागार में डालने पर प्रतिदिन भोजन देने जाती थी।
  3. मद्र देश की राजकुमारी क्षेमा से विवाह : मद्रदेश (कुरू के समीप) की राजकुमारी ‘क्षेमा’ से विवाह किया तथा मद्रों का सहयोग प्राप्त किया। क्षेमा ने ही कौशल नरेश प्रसेनजीत को बौद्ध धर्म की शिक्षा दी।

महावग्ग में बिंबिसार की 500 रानियां होने का उल्लेख मिलता है। जिसका सीधा सा अर्थ निकलता है कि इसी प्रकार उसने अन्य राजवंशों से भी वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये होंगे।

मैत्री संबंध

अवन्ति के शासक चण्डप्रद्योत से बिंबिसार ने मैत्री सम्बन्ध स्थापित किये। उसने अपने प्रसिद्ध राजवैद्य जीवक को पाण्डुरोग (पीलिया) से पीड़ित प्रद्योत की चिकित्सा के लिए भेजा।
रोरूक (सिन्ध) शासक रूद्रायन व गांधार के पुष्करसारिन (पुक्कुसाति) भी उसके मित्र शासक थे। गांधार नरेश पुक्कुसाति ने बिम्बिसार के दरबार में अपना दूत भेजा था। कूटनीतिक व वैवाहिक सम्बन्धों से उसकी आक्रमण नीति का श्रीगणेश हुआ।

इसी प्रकार अन्य बहुत से राज्यों से बिंबिसार ने मैत्री सम्बन्ध स्थापित कर रखे थे जिससे उसका राज्य विस्तार काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था।

अंग पर विजय

विधुर पण्डित जातक के अनुसार अंग का मगध की राजधानी पर अधिकार था। संभवत: अंग शासक ब्रह्मदत्त ने बिम्बिसार के पिता भट्टिय को परास्त कर अधिकार किया होगा। बिंबिसार ने अंग पर आक्रमण किया, जिसमें ब्रह्मदत्त मारा गया। बिंबिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को अंग की राजधानी चम्पा का वायसराय (उपराजा) नियुक्त किया। डॉ. राय चौधरी के अनुसार ‘बिंबिसार की अंग विजय ने मगध की उस विजय के दौर को प्रारम्भ किया जो अशोक द्वारा कलिंग विजय के बाद तलवार रख देने के साथ समाप्त हुआ।’

बुद्धघोष व महावग्ग के अनुसार ‘बिंबिसार की अधीनता में 80,000 ग्राम थे। बुद्धचर्या के अनुसार बिंबिसार के राज्य का विस्तार 300 योजन था जिसे अजातशत्रु ने बढ़ाकर 500 योजन कर दिया।

गिरिव्रज से राजधानी का स्थानांतरण

मगध की प्रारम्भिक राजधानी कुशाग्रपुर (गिरिवज्र ) थी, किन्तु यह नगर उत्तर में स्थित वज्जि संघ के आक्रमणों से सुरक्षित न था। परम्परा के अनुसार बिंबिसार ने 5 पहाड़ियों से गिरे नवीन वृषभ, ऋषिक गिरि, चैत्यक, वैभार, एवं राजगृह की स्थापना की तथा उसे अपनी दूसरी राजधानी बनाया। ह्वेनसांग के विवरण से इसकी पुष्टि होती है। राजगृह के भवनों का निर्माण प्रसिद्ध वास्तुकार महागोविन्द से करवाया गया। बुद्धघोष ने इस नई राजधानी को बिम्बिसारपुरी कहा गया है। उत्तराध्ययन सूत्र में बिंबिसार को ‘राजाओं का सिंह’ कहा गया है।

बिम्बिसार की प्रशासनिक व्यवस्था

महाबग्ग’ में सम्राट बिम्बिसार की 500 पत्नियों का उल्लेख है। कुशल प्रशासन की आवश्यकता पर सर्वप्रथम बिम्बिसार ने ही ज़ोर दिया था। बौद्ध साहित्य में बिंबिसार के कुछ पदाधिकारियों के नाम मिलते हैं। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. सब्बन्थक महामात्त (सर्वमहापात्र) – यह सामान्य प्रशासन का प्रमुख पदाधिकारी होता था।
  2. बोहारिक महामात्त (व्यावहारिक महामात्र) – यह प्रधान न्यायिक अधिकारी अथवा न्यायाधीश होता था।
  3. सेनानायक महामात्त – यह सेना का प्रधान अधिकारी होता था।
  4. उत्पादन महामात्त – यह उत्पादन कर इकट्ठा करते थे।

इसके अलावा बिम्बिसार स्वयं शासन की समस्याओं में रुचि लेता था। ‘महाबग्ग जातक’ में कहा गया है कि उसकी राजसभा में 80 हज़ार ग्रामों के प्रतिनिधि भाग लेते थे।

बिम्बिसार (Bimbisara) के व्यक्तिगत अधिकारियों में ‘सोना कोलीविश’ का नाम मिलता है। उसके अलावा ‘सुमन’ नाम का मालाकार प्रतिदिन बिंबिसार (Bimbisara) को वेली के फूल दिया करता था। उसके कोलिय नामक मंत्री, कुंभाघोषक नामक कोषाधिकारी व जीवक नामक राजवैद्य का उल्लेख भी मिलता है। बिम्बिसार को ‘सेनिय’ उपनाम भी दिया जाता है जो सिद्ध करता है कि वह प्रथम शासक था जिसने सर्वप्रथम स्थायी सेना का गठन किया।

प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्य को मण्डल (प्रांत) तथा मंडल को ग्राम इकाई में बांटा गया। प्रांतों में राजकुमार उपराजा के रूप में नियुक्त किये जाते थे। मण्डलीक राजाओं का भी उल्लेख मिलता है। बिम्बिसार ने प्रशासन में अपने पुत्रों का पर्याप्त सहयोग लिया। राजकुमार अभय ने राजा प्रद्योत के षड़यंत्र को असफल किया। ग्राम प्रधान ग्रामिक या ग्राम भोजक कहलाता था। महाबरंग के अनुसार इसने 80,000 ग्रामिकों की विशाल सभा बुलाई थी। बिंबिसार की न्याय व्यवस्था कठोर थी। मृत्युदंड का प्रावधान था। गलत सलाह देने के अपराध में बड़े से बड़ा पदाधिकारी भी पदच्युत किया जा सकता था।

बिम्बिसार (Bimbisara) ने विद्या कला को प्रोत्साहन दिया। जीवक राजवैद्य था. जिसे शिक्षा प्रदान करने के लिए तक्षशिला भेजा। गया। यह आयुर्वेद की कौमार भृत्य शाखा का विशेषज्ञ था।

बिम्बिसार (Bimbisara) की धार्मिक व्यवस्था

बिम्बिसार जैन धर्म  तथा ब्राह्मण धर्म के प्रति भी सहिष्णु था। जैन ग्रन्थ उसे अपने मत का पोषक मानते हैं। ‘दीर्धनिकाय’ से पता चलता है कि बिंबिसार ने चम्पा के प्रसिद्ध के एक प्रसिद्ध ब्राह्मण  सोनदण्ड को वहाँ की पूरी आमदनी दान में दे दी थी। बिम्बिसार ने राजगृह नमक एक नवीन नगर की स्थापना भी करवाई थी। उसका अवंती राज्य से अच्छा सम्बन्ध था, क्योंकि जब अवन्ति के राजा प्रद्योत बीमार थे, तो बिंबिसार ने अपने वैद्य जीवक को उसके पास भेजा था।

बिम्बिसार और बौद्ध धर्म

बिंबिसार (Bimbisara) महात्मा बुद्ध का समकालीन था। सुतनिपात के अनुसार बिम्बिसार महात्मा बुद्ध का मित्र व संरक्षक था। बुद्ध से प्रथम भेंट ज्ञान प्राप्ति के 7 साल पहले हुई तथा बिंबिसार ने बुद्ध को सेनापति बनाने की कोशिश की व बहुत सारा धन भी दिया। दूसरी भेंट ज्ञान प्राप्ति के बाद राजगृह में हुई। विनयपिटक के अनुसार उसने बौद्ध धर्म ग्रहण किया तथा बुद्ध व संघ के निमित्त ‘वेलुवन उद्यान दान में दिया। राजवैद्य जीवक को बुद्ध व उसके अनुयायियों का वैद्य नियुक्त किया। बुद्ध के प्रति अपने श्रद्धाभाव के कारण समस्त भिक्षुओं के लिए ‘तरपण्य’ (गंगा नदी पार करने का शुल्क) निशुल्क किया।

जैन स्रोतों के अनुसार बिंबिसार ने संन्यासी भिक्षुओं के प्रमुख महावीर से ‘मण्डीकुक्षी चैत्य’ में अपनी रानियों, कर्मचारियों व सम्बन्धियों सहित भेंट की व उसके धर्म का अनुयायी बन गया।

दीघनिकाय से ज्ञात होता है कि बिंबिसार ने चम्पा के प्रसिद्ध ब्राह्मण ‘सोनदण्ड’ को वहां की सम्पूर्ण आमदनी दान में दे दी थी। इस प्रकार बिम्बिसार बौद्ध धर्म के साथ-साथ जैन व ब्राह्मण धर्मों के प्रति भी सहिष्णु बना रहा।

बिम्बिसार (Bimbisara) की मृत्यु

बिम्बिसार ने लगभग 52 वर्षों तक शासन किया । उसका अन्त दुखद हुआ । बौद्ध तथा जैन गुणों से ज्ञात होता है कि उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया। वहां चेल्लना (वासवी) ने कारागार में अपने पति की सेवा की। परन्तु वहां पर बिंबिसार को उसके पुत्र अजातशत्रु द्वारा भीषण यातनाएं दी गई। अंत में बिम्बिसार ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। बिंबिसार की मृत्यु 492 ईसा पूर्व के लगभग हुई ।

जैन स्रोतों के अनुसार अजातशत्रु (कुणिक), हल्ल, बेहल्ल, अभय, नंदीसेन व मेघकुल बिम्बिसार के पुत्र थे। प्रथम तीन चेल्लना के तथा चौथा (अभय) लिच्छवी गणिका आम्रपाली का पुत्र था।

बौद्ध ग्रंथ विनयपिटक  के अनुसार बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त ने अजातशत्रु को अपने पिता का वध करने के लिए उकसाया था। देवदत्त षड्यंत्रकारी, अत्यंत दुष्ट व फूट डालने वाला व्यक्ति था। महावंश में भी कहा गया है कि बुद्ध की मृत्यु के आठ वर्ष पूर्व अजातशत्रु ने बिंबिसार की हत्या कर शासन प्राप्त किया। बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया।

बिम्बिसार का खजाना

बिम्बिसार | Bimbisara | 546 - 494 ईसा पूर्व

बिम्बिसार का खजाना भारत के बिहार राज्य के राजगिर (Rajgir) शहर में स्थित है। राजगिर, जो गया जिले में स्थित है, बुद्ध धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। बिम्बिसार का खजाना उसके राजगर्ह (राजमहल) में स्थित था, जिसे विश्रामपुर (Vishrampur) के नाम से भी जाना जाता है। यह खजाना बिंबिसार मौर्य साम्राज्य के समय में संग्रहीत धन, आभूषण और सम्पत्तियों को आवश्यक सुरक्षा के लिए रखा गया था। इसमें मूल्यवान सोने, चांदी, गहने, सिक्के और अन्य प्राचीन आभूषण शामिल थे। आजकल यह खजाना भारतीय ऐतिहासिक संग्रहालय (Indian Historical Museum) के रूप में संरक्षित है और पर्यटन स्थल के रूप में खुला है।

बिम्बिसार के खजाने का इतिहास

बिम्बिसार के खजाने की गुफा

बिम्बिसार जो कि हर्यक राजवंश से था और मगध का सम्राट था। ऐसा कहा जाता है कि उसका प्रशासन बहुत ही उत्तम था। उसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी एवम सम्पन्न थी। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट बिम्बिसार ने बहुत बड़ा खजाना इक्कट्ठा कर रख था। और इस खजाने को उसने किसी रहस्यमयी जगह पर छुपा रखा था। अपने अकूत खजाने का रहस्य उसने किसी को भी नहीं बताया था। और यह रहस्य उसकी मृत्यु के साथ ही दफ़न हो गया।

ऐसा कहा जाता है कि जहाँ पर उसने खजाना छुपा रखा था, वह जगह आज भारत के बिहार राज्य के गया जिले के राजगिर (Rajgir) शहर में स्थित है। इसी शहर में दूर कही सोन भंडार नाम की एक गुफा है, जिसमे उसने अपने सारे बेशकीमती खजाने को छुपा रखा है। परन्तु आज तक कोई भी इस रहस्यमयी गुफा के दरवाजे को खोल नहीं सका है। और खजाना आज भी उस गुफा के बंद दरवाजों के पीछे पड़ा हुआ है।

पुराने समय में राजगीर मगध की राजधानी था और यही पर भगवान बुद्ध ने बिंबिसार को धर्मोपदेश भी दिया था। यह शहर भगवान बुद्ध से जुड़े स्मारकों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्द है। कुछ लोग इस खजाने को पूर्व मगध सम्राट जरासंघ का भी बताते हैं, लेकिन वहां इस बात के प्रमाण अधिक हैं कि यह खजाना बिंबिसार का ही है। इसके सबसे बड़े प्रमाण के रूप में इस गुफा से कुछ दूरी पर उस जेल के अवशेष भी मिलते हैं, जहां अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को बंदी बना रखा था।

सोन भंडार गुफा में प्रवेश करते ही पहले 10.4 मीटर लंबा,  5.2 मीटर चौड़ा और 1.5 मीटर ऊंचा एक कमरा आता है। कहा जाता है कि यह कमरा खजाने की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए बनाया था और इसी कमरे की पिछली दीवार से खजाने तक पहुंचने का रास्ता है, जिसका द्वार एक पत्थर के दरवाजे से बंद है। परन्तु इस दरवाजे को आज तक कोई भी खोल नहीं पाया है।

बिम्बिसार (Bimbisara) से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • बिंबिसार (Bimbisara) ने अपने बड़े पुत्र “दर्शक” को उत्तराधिकारी घोषित किया था।
  • पुराणों के अनुसार बिंबिसार को ‘श्रेणिक’ कहा गया है।
  • बिंबिसार के राज्य में 80000 गाँव थे। कही कही 70000 गाँव भी कहा गया है।
  • भारतीय इतिहास में बिंबिसार प्रथम शासक था जिसने स्थायी सेना रखी।
  • बिम्बिसार ने राजवैद्य जीवक को भगवान बुद्ध की सेवा में नियुक्‍त किया था।
  • बौद्ध भिक्षुओं को निःशुल्क जल यात्रा की अनुमति दी थी।
  • बिंबिसार की हत्या महात्मा बुद्ध के विरोधी देवव्रत के उकसाने पर अजातशत्रु ने की थी।
  • बिम्बिसार के उच्चाधिकारी ‘राजभट्ट’ कहा जाता था और उन्हें चार क्ष्रेणियों में रखा गया था – ‘सम्बन्थक’ सामान्य कार्यों को देखते थे, ‘सेनानायक’ सेना का कार्य देखते थे, ‘वोहारिक’न्यायिक कार्य व ‘उत्पादन महामात्त’ उत्पादन कर इकट्ठा करते थे।

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