मगध साम्राज्य | Magadha Empire | 1700-322 BC

बिहार के पटना तथा गया जनपदों की भूमि में स्थित मगध प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य रहा है। युद्धकाल में मगध एक शक्तिशाली तथा संगठित राजतन्त्र के रूप में दिखता है। कालान्तर में मगध का उत्तरोत्तर विकास हुआ और एक प्रकार से मगध का इतिहास सम्पूर्ण भारत का इतिहास बन गया। मगध साम्राज्य ने 1700 ईसा पूर्व – 322 ईसा पूर्व तक शासन किया। मगध साम्राज्य का उल्लेख दो महान काव्य रामायण और महाभारत में किया गया है।

मगध साम्राज्य पर शासन करने वाले राजवंश | Dynasties that ruled the Magadha Empire

मगध साम्राज्य पर 1700 ईसा पूर्व – 322 ईसा पूर्व तक शासन करने वाले पांच राजवंश थे :-

  • बृहद्रथ वंश (1700 – 683 ईसा पूर्व)
  • प्रद्योत वंश (683 – 544 ईसा पूर्व)
  • हर्यक वंश (बिम्बिसार वंश), (544 – 413 ईसा पूर्व)
  • शिशुनाग वंश (413 – 345 ईसा पूर्व)
  • नन्द वंश (345 – 322 ईसा पूर्व)

मगध साम्राज्य का बृहद्रथ वंश | Brihadratha Dynasty |1700 – 683 ईसा पूर्व

यह मगध साम्राज्य (Magadha Empire) का सबसे बड़ा वंश है और भारत के प्राचीन वंशो में से एक है। महाभारत तथा पुराणों के अनुसार जरासंध के पिता तथा चेदिराज वसु के पुत्र बृहद्रथ ने बृहद्रथ वंश की स्थापना की थी। इस वंश में दस राजा है। जिसमें बृहद्रथ का पुत्र जरासंध एक बहुत ही बलशाली एवं प्रतापी सम्राट था। जरासंध ने काशी, कौशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, कश्मीर और गांधार राजाओं को पराजित किया। मथुरा शासक कंस से अपनी बहन की शादी जरासंध ने की थी। ब्रहद्रथ वंश की राजधानी वशुमति थी, जिसको गिरिव्रज एवं राजगृह नाम से भी जाना जाता था।

भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से पाण्डव पुत्र भीम ने जरासंध को द्वन्द युद्ध में मार दिया। उसके बाद उसके पुत्र सहदेव को शासक बनाया गया। इस वंश का अन्तिम राजा रिपुन्जय था। रिपुन्जय को उसके दरबारी मंत्री सुनक ने मारकर अपने पुत्र प्रद्योत को राजा बना दिया। इस प्रकार 683 ईसा पूर्व में बृहद्रथ वंश को समाप्त कर एक नये राजवंश की स्थापना हुई। इस वंश को प्रद्योत वंश के नाम से जाना गया। पुराणों के अनुसार मनु के पुत्र सुद्युम्न के पुत्र का नाम गया था। आज चंद्रवंशी क्षत्रिय रवानी राजपूत को ही जरासंध के वंशज के रूप में जाना जाता है।

मगध साम्राज्य का प्रद्योत वंश | Pradyota Dynasty | 683 – 544 ईसा पूर्व

प्रद्योत वंश मगध साम्राज्य  में राज्य करने वाला दूसरा वंश था। 6वीं सदी ई. पू. ‘वीतिहोत्र’ नामक वंश ने हैहय राजवंश  को हटाकर अवंती में अपनी राजनीतिक सत्ता की स्थापना की। परंतु इसके तुरंत बाद ही प्रद्योत राजवंश के शासकों ने वीतिहोत्रों के राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। प्रद्योत वंश के अभ्युदय के साथ यहाँ के इतिहास के बारे में साक्ष्य मिलने शुरू हो जाते हैं।

जबकि पुराणों से प्रमाण मिलता है कि महात्मा गौतम बुद्ध के समय ‘अमात्य पुलिक’ ने समस्त क्षत्रियो के सामने ही अपने स्वामी की हत्या करके अपने पुत्र ‘प्रद्योत’ को अवन्ति के सिंहासन पर बैठाया था। हर्षचरित के अनुसार इस अमात्य का नाम ‘पुणक’ या ‘पुणिक’ था। इस प्रकार वीतिहोत्र कुल के शासन की समाप्ति हो गई तथा 546 ई. पू. यहाँ प्रद्योत राजवंश का शासन स्थापित हो गया।

राजा प्रद्योत अपने समकालीन समस्त राजाओं में प्रमुख था, इसलिए उसे “चण्ड” कहा जाता था। प्रद्योत के समय अवंति राज्य की उन्नति चरमोत्कर्ष पर थी। चंड प्रद्योत का वत्स नरेश ‘उद्मन’ के साथ दीर्घकालीन संघर्ष हुआ, किंतु बाद में उसने अपनी पुत्री वासवदत्ता का विवाह उद्मन से कर मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किया।बौध  ग्रंथ “विनयपिटक” के अनुसार चण्ड प्रद्योत के मगध के शासक बिम्बिसार  के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे। जब चण्ड प्रद्योत पीलिया रोग से ग्रसित था, तब बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य ‘जीवक’ को उज्जयिनी भेजकर उसका उपचार कराया था, परंतु उसके पुत्र अजातशत्रु के साथ अवन्ति नरेश से संबंध अच्छे नहीं थे।

प्रद्योत वंश एक दरबारी ‘महीय’ ने सुनक और उसके पुत्र राजा प्रद्योत की हत्या कर अपने पुत्र बिम्बिसार को गद्दी पर बैठाया। इस प्रकार 683 ईसा पूर्व में बृहद्रथ वंश को समाप्त कर एक नये राजवंश की स्थापना हुई। जो हर्यक वंश के नाम से जाना गया।

मगध साम्राज्य का हर्यंक वंश | Haryanka Dynasty | 544 – 412 ईसा पूर्व

मगध साम्राज्य (Magadh Empire) का तीसरा वंश हर्यक वंश (544 ई. पू. से 412 ई. पू. तक) था। जिसकी स्थापना बिंबिसार ने की थी। इसके साथ ही राजनीतिक शक्ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ था। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य  का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। राजा बिम्बिसार को ही हर्यक वंश का भी संस्थापक माना जाता हैं।

बिम्बिसार हर्यक वंश के प्रथम राजा माने जाते हैं, उसने गिरिव्रज (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया था। नागदशक ‘हर्यक वंश’ का अंतिम शासक था। उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ई. पू. में नागदशक की निर्बलता से लाभ उठाकर गद्दी पर अधिकार कर लिया और शिशुनाग राजवंश की स्थापना की।

हर्यक वंश में जिन शासकों ने शासन किया उनके नाम है :-

  1. बिम्बिसार(544 ई. पू. से 493 ई. पू.)
  2. अजातशत्रु (493 ई.पू. से 461 ई.पू.)
  3. उदयीन (460 ई.पू. से 444 ई.पू.)
  4. अनिरुद्ध
  5. मंडक
  6. नागदशक

इनमे से बिंबिसारअजातशत्रु और उदयीन इस वंश के काफी महत्वपूर्ण राजा थे। इन्होने अपने राज्य का बहुत विस्तार किया।

हर्यक वंश को भारत के सबसे प्राचीन राजवंश में गिना जाता है। हर्यक वंश का इतिहास बहुत प्राचीन है, इसका उद्भव 544 ईसा पूर्व हुआ था। नागवंश की एक शाखा के रुप में इस वंश को माना जाता हैं। बिम्बिसार जिसे श्रेणिक नाम से भी जाना जाता हैं, बहुत ही चतुर और शौर्यशाली शासक थे।

544 ईसा पूर्व में इसकी स्थापना से लेकर 412 ईसा पूर्व तक इस वंश ने शासन किया था। लगभग 132 वर्षों तक शासन करने वाले इस वंश के साम्राज्य में एक से बढ़कर एक राजाओं ने जन्म लिया। गिरिव्रज अर्थात् राजगृह (बिहार) को अपनी राजधानी बनाकर इन्होंने राज किया था।

नागदशक को हर्यक वंश के अंतिम शासक के रूप में जाना जाता है। 412 ईसा पूर्व में हर्यक वंश (Haryak Vansh) का अंत हो गया। नागदशक हर्यक वंश का अंतिम शासक होने के साथ-साथ बहुत निर्बल भी था, जिसका फायदा शिशुनाग ने उठाया और नागदशक को मौत के घाट उतार कर 412 ईसा पूर्व में शिशुनाग वंश की स्थापना की।

हर्यक वंश का साम्राज्य विस्तार

544 ईसा पूर्व नागवंश की उपशाखा के रूप में जाने जाना वाला इस क्षत्रिय हर्यक वंश का उदय हुआ था। बिंबिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

हर्यक वंश साम्राज्य के विस्तार के लिए राजा बिंबिसार ने वैवाहिक संबंधों को आधार बनाया। इन्होने क्रमशः पंजाब की राजकुमारी या फिर ऐसा कहें कि भद्र देश की राजकुमारी क्षेमा, प्रसेनजीत जो कि कौशल के राजा थे उनकी बहिन महाकोशला से विवाह किया और अंत में वैशाली के चेटक की पुत्री जिसका नाम चेल्लना था से विवाह कर लिया और मगध साम्राज्य को विस्तारित किया।

एक कुशल कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक होने की वजह से राजा बिंबिसार ने उस समय के प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक संबंध स्थापित किए और हर्यक वंश के साम्राज्य का विस्तार किया। महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार ने लगभग 500 राजकुमारियों से विवाह किया था।

हर्यक वंश का पतन

विश्व इतिहास उठाकर देखा जाए तो चाहे कितना भी बड़ा राजवंश रहा हो या कोई भी साम्राज्य चाहे कितना भी विस्तारित क्यों ना हो, निश्चित रूप से उसका पतन हुआ है। पतन कमजोरियों की वजह से होता है। कमजोर शासन व्यवस्था, कमजोर शासक और राज्य में फैली अनियमितताओं के चलते बड़े-बड़े राजवंशों का अंत हुआ था। हर्यक वंश का पतन भी इसी तरह हुआ था।

412 ईसा पूर्व हर्यक वंश के अंतिम शासक के रूप में जाने जाने वाला राजा नाग दशक बहुत ही निर्बल था। इनके सिहासन पर बैठने के बाद राज्य में अनियमितताओं का दौर चल पड़ा। जनता इनसे खुश नहीं थी और यही वजह रही कि इनके दुश्मनों ने मौका पाकर इन्हें मौत के घाट उतार दिया।

इतिहासकारों के अनुसार 412 ईसा पूर्व में शिशुनाग ने नाग दशक को मार डाला और शिशुनाग वंश की स्थापना की। इसके साथ ही भारत के इतिहास में 132 वर्षों तक राज करने वाले हर्यक वंश का अंत हो गया।

हर्यक वंश से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • हर्यक वंश का स्थापना वर्ष– 544 ईसा पूर्व
  • हर्यक वंश ने कितने वर्षों तक शासन किया- 132 वर्ष
  • हर्यक वंश का कार्यकाल- 544 ईसा पूर्व से लेकर 412 ईसा पूर्व तक
  • हर्यक वंश के संस्थापक का नाम- बिम्बिसार
  • हर्यक वंश के अंतिम शासक– नागदशक
  • हर्यक वंश की राजधानी– गिरिव्रज (राजगृह)
  • हर्यक वंश के बाद कौन सा वंश अस्तित्व में आया- शिशुनाग वंश
  • हर्यक वंश के मुख्य राजा- बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयीन, अनिरुद्ध, मंडक और नागदशक

शिशुनाग वंश | Shishunaga Dynasty | 413 – 345 ईसा पूर्व

“शिशुनाग वंश” भारत के अत्यंत प्राचीन राजवंशों में से एक हैं। शिशुनाग वंश के शासकों ने भारत में 413 ईसा पूर्व से 345 ईसा पूर्व तक शासन किया। हर्यक वंश के पतन के साथ ही शिशुनाग वंश अस्तित्व में आया। पुराणों का अध्ययन करने से पता चलता है कि शिशुनाग क्षत्रीय थे। 

शिशुनाग के बारे में कहा जाता हैं कि वह लिच्छवी अर्थात् ईसा पूर्व 6वीं सदी में वैशाली में निवास करने वाली एक जाति में इनका जन्म हुआ था। महावंश टीका में उसे एक लिच्छवि राजा की वेश्या पत्नी से उत्पन्न कहा गया है । पुराण उसे ‘क्षत्रिय’ कहते हैं पुराणों का कथन अधिक सही लगता है क्योंकि यदि वह वेश्या की सन्तान होता तो रूढ़िवादी ब्राह्मण उसे कभी भी राजा स्वीकार न करते तथा उसकी निन्दा भी करते।

पुराणों के विवरण से ज्ञात होता है कि ‘पाँच प्रद्योत पुत्र 138 वर्षों तक शासन करेंगे । उन सब को मारकर शिशुनाग राजा होगा। अपने पुत्र को वाराणसी का राजा बनाकर वह गिरिव्रज को प्रस्थान करेगा। इससे स्पष्ट है कि शिशुनाग ने अवन्ति राज्य को जीतकर मगध साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था।

सुधाकर चट्टोपाध्याय की धारणा है कि शिशुनाग अन्तिम हर्यक शासक नागदशक का प्रधान सेनापति था। इसलिए उसका सेना के ऊपर पूर्ण नियंत्रण था। उसने अवन्ति के ऊपर आक्रमण नागदशक के शासन काल में ही किया होगा, जिसके के तत्काल बाद नागदशाक को पदच्युत कर जनता ने उसे मगध का राजसिंहासन सौंप दिया होगा।

अवन्ति राज्य की विजय एक महान् सफलता थी। इससे मगध साम्राज्य की पश्चिमी सीमा मालवा तक जा पहुँची। इस विजय से शिशुनाग का वत्स के ऊपर भी अधिकार हो गया क्योंकि यह अवन्ति के अधीन था। अर्थिक दृष्टि से भी अवन्ति की विजय लाभदायक सिद्ध हुई। पाटलिपुत्र से एक व्यापारिक मार्ग वत्स तथा अवन्ति होते हुए भडौंच तक जाता था

वत्स तथा अवन्ति पर अधिकार हो जाने से पाटलिपुत्र को पश्चिमी विश्व के साथ व्यापार-वाणिज्य के लिए एक नया मार्ग प्राप्त हो गया। इस प्रकार शिशुनाग की विजयों के फलस्वरूप मगध का राज्य एक विशाल साम्राज्य में बदल गया तथा उसके अन्तर्गत बंगाल की सीमा से लेकर मालवा तक का विस्तृत भू-भाग सम्मिलित हो गया।

उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भाग भी उसके अधीन था। भण्डारकर का अनुमान हैं कि इस समय कोशल भी मगध की अधीनता में आ गया था। इस प्रकार अब मगध का उत्तर भारत में कोई भी प्रवल प्रतिद्वन्द्वी नहीं बचा। मगध साम्राज्य में उत्तर भारत के वे सभी प्रमुख राजतन्त्र सम्मिलित हो गये जो बुद्ध के समय विद्यमान थे।

इस प्रकार शिशुनाग एक शक्तिशाली राजा था। गिरिव्रज के अतिरिक्त वैशाली नगर को उसने अपनी दूसरी राजधानी बनाई थी जो वाद में उसकी प्रधान राजधानी बन गई। ऐसा उसने सम्भवत: वज्जियों के ऊपर कठोर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से किया होगा।

शिशुनाग वंश का साम्राज्य विस्तार

शिशुनाग वंश भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता हैं। इस वंश के संस्थापक शिशुनाग ने कार्यभाल संभालते ही सबसे पहले साम्राज्य विस्तार और आसपास के क्षेत्र पर विजय हासिल करना प्रारंभ किया। इस समय “अवंती” नामक राज्य मगध का चिरप्रतिद्वंदी था, शिशुनाग ने अवंती के सम्राट अवंतिवर्धन को युद्ध में पराजीत कर दिया। इस विजय के साथ ही अवंती राज्य अब सम्राट शिशुनाग के राज्य का हिस्सा बन गया।

इस तरह धीरे धीरे मगध साम्राज्य की सीमा बढ़ते हुए पश्चिम मालवा तक हो गई। लेकीन राजा शिशुनाग यहीं रुक नहीं और अपने राज्य विस्तार पर निरंतर कार्य करते रहे। अवंती राज्य जीतने के बाद शिशुनाग ने वत्स को भी मगध का हिस्सा बना दिया। वत्स और अवंती राज्य जीतने से मगध साम्राज्य को व्यापारिक रूप से बहुत बड़ा फ़ायदा हुआ।

शिशुनाग ने बंगाल से लेकर मालवा तक अपने साम्राज्य को फैला दिया। गिरिव्रज के साथ साथ वैशाली भी मगध की राजधानी बना। शिशुनाग वंश के संस्थापक राजा से सुना की मृत्यु के पश्चात उनके वंशजों ने मगध की प्राचीन राजधानी को पुनः अपनी राजधानी बनाया।

शिशुनाग वंश के संस्थापक राजा शिशुनाग की 394 ईसा पूर्व में मृत्यु हो गई। राजा शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात इनका पुत्र कालाशोक शिशुनाग वंश के अगले राजा बने। पौराणिक इतिहास उठाकर देखा जाए तो शिशुनाग के पुत्र कालाशोक का नाम का नाम काकवर्ण मिलता हैं।काकवर्ण (कालाशोक) ने शिशुनाग वंश के राजा के रूप में 28 वर्षों तक राज किया।

शिशुनाग वंश के लिए राजा काकवर्ण (कालाशोक) के 2 मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं -. राजा काकवर्ण अर्थात कालाशोक ने अपने कार्यकाल में वैशाली नगर में द्वितीय बौद्ध संगति का आयोजन करवाया था, वर्तमान में यह पटना शहर में स्थित है।. काकवर्ण अर्थात कालाशोक के कार्यकाल का दूसरा मुख्य कार्य मगध की राजधानी को बदलना रहा। इन्होंने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित की।

शिशुनाग वंश का पतन

366 ईसा पूर्व की बात है महापद्मनंद नामक एक व्यक्ति ने शिशुनाग वंश के राजा कालाशोक की उस समय हत्या कर दी जब वो प्रशासनिक कार्यों की देखरेख के लिए पाटलिपुत्र का दौरा कर रहे थे। बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्र में इस घटना का उल्लेख मिलता है। शिशुनाग वंश के राजा कालाशोक की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्रों ने लगभग 22 वर्षों तक मगध पर राज किया था।

शिशुनाग वंश में राजा शिशुनाग परमवीर थे, उनके पश्चात भी उनके पुत्रों और वंशजों ने कई वर्षों तक मगध पर राज किया लेकिन धीरे-धीरे इनकी शक्ति क्षीण होती गई और 345 ईसा पूर्व में शिशुनाग वंश का अंत हो गया।

नंदीवर्धन को शिशुनाग वंश का अंतिम राजा माना जाता है। शिशुनाग वंश के राजा के रूप में नंदीवर्धन ने लगभग 22 वर्षों तक राज किया था इनका कार्यकाल 367 ईसा पूर्व से 345 ईसा पूर्व तक माना जाता है।

इस तरह शिशुनाग वंश के अंतिम राजा नंदीवर्धन की मृत्यु के साथ ही शिशुनाग वंश का अंत हो गया। शिशुनाग वंश के अंतिम राजा नंदीवर्धन को मौत के घाट उतार कर महापद्मनंद ने नंद साम्राज्य की स्थापना की।

शिशुनाग वंश के शासकों की सूची

क्रम-संख्याशासकशासन अवधि (ई.पू)शासन वर्षटिप्पणी
1.महाराजा शिशुनाग413–39518महाराजा नागदशक की हत्या करने के बाद राजवंश की स्थापना की।
2.महाराजा काकवर्ण395–37718महाराजा शिशुनाग का पुत्र
3.महाराजा क्षेमधर्मन377–36512महाराजा काकवर्ण का पुत्र
4.महाराजा क्षत्रौजस365–35510महाराजा क्षेमधर्मन का पुत्र
5.महाराजा नंदिवर्धन355–3496महाराजा क्षत्रौजस का पुत्र
6.महाराजा महानन्दि349–3454वंश का अंतिम शासक, उसका साम्राज्य उसके नाजायज बेटे महापद्म नन्द को कब्जा लिया।

मगध साम्राज्य का नन्द वंश | Nanda Dynasty | 345 – 322 ईसा पूर्व

नंद वंश मगध, बिहार का लगभग 344 ई.पू. से 322 ई.पू. के बीच का शासक वंश था। नंद वंश को पुराणों में महापदम नंद कहा गया है। नंद वंश प्राचीन भारत का एक राजवंश था। इनके पास भयानक एवं उग्र सेना भी थी। नंद वंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी। यह नाई जाति का था। उसे महापद्म एकारट, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो कुलीन नहीं था तथा जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांघ गई।

नंद वंश के शासन समय के दैरान मगध राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धशाली साम्राज्य बन गया था। वर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन जैसे विद्वान नन्द शासन में हुए। वहीं वह व्याकरण के आचार्य पाणिनी महापद्मनन्द के अच्छे मित्र भी थे। शाकटाय तथा स्थूल भद्र धनानन्द के जैन मतावलम्बी अमात्य थे।

नन्द वंश का साम्राज्य

कहा जाता है कि नंद शासक मौर्य साम्राज्य के पूर्ववर्ती राजा थे। इस वंश के संस्थापक महापद्म, जिन्हें महापद्मपति या उग्रसेन भी कहा जाता है। पुराणों में उन्हें सभी क्षत्रियों का संहारक बताया है। जिन्होने उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत स्थित इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कौरव, मैथिल, शूरसेन और वितिहोत्र जैसे शासकों को हराया।

वहीं नन्द वंश के द्वारा गोदावरी घाटी- आंध्र प्रदेश, कलिंग- उड़ीसा तथा कर्नाटक के कुछ भाग पर कब्ज़ा करने की ओर भी संकेत मिलते हैं। महापद्म के बाद पुराणों में नंद वंश का उल्लेख मिलना मुश्किल है। इसमें सिर्फ सुकल्प का ज़िक्र है। जबकि बौद्ध महाबोधिवंश में आठ नामों का उल्लेख है।

चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पूर्व में नंद वंश को समाप्त करके मौर्य वंश की नींव डाली। इस वंश में कुल नौ शासक हुए – महापद्मनंद और बारी-बारी से राज्य करने वाले उसके आठ पुत्र थे। सिकंदर के काल में नंद की सेना में लगभग 20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2000 रथ और 3000 हाथी थे।

नन्द वंश के शासक

महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, घनानंदघनानंद के शासन काल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था।

1.पंडुक- नंदराज महापद्मनंद के जेष्ट पुत्र पंडुक जिन्हें पुराणों में सहल्य अथवा सहलिन कहा गया है. उनकी मृत्यु के बाद उनके वंशज मगध साम्राज्य के रुप में शासक करते रहे।

2.पंडू गति- आनंद राज के द्वितीय पुत्र को महाबोधि वंश में पंडुगति तथा पुराणों में संकल्प कहा गया है। कथा सरित्सागर के अनुसार अयोध्या में नंद राज्य का सैन्य शिविर था जहां संकल्प एक कुशल प्रशासक एवं सेनानायक के रूप में रहकर उसकी व्यवस्था देखते थे।

3.भूत पाल – चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के तृतीय पुत्र भूत पाल विदिशा के कुमार अथवा प्रकाशक थे। नंदराज के शासनकाल में उनकी पश्चिम दक्षिण के राज्यों के शासन प्रबंध को देखते थे।

4.राष्ट्रपाल- महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज के चौथे पुत्र राष्ट्रपाल थे। राष्ट्रपाल के कुशल प्रशासक एवं प्रतापी होने से इस राज्य का नाम राष्ट्रपाल के नाम पर महाराष्ट्र कहा जाने लगा। यह गोदावरी नदी के उत्तर तट पर पैठन अथवा प्रतिष्ठान नामक नगर को अपनी राजधानी बनाई थी।

5.गोविशाणक- महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज महापद्मनंद के पांचवे पुत्र गोविशाणक थे। नंदराज ने उत्तरापथ में विजय अर्जित किया था. महापद्मनंद द्वारा गोविशाणक को प्रशासक बनाते समय एक नए नगर को बसाया गया था। वहां उसके लिए किला भी बनवाया गया। इसका नामकरण गोविशाणक नगर रखा गया।

6. दस सिद्धक- चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के छठवें पुत्र दस सिद्धक थे. नंद राज्य की एक राजधानी मध्य क्षेत्र के लिए वाकाटक मे थी जहां दस सिद्धक ने अपनी राजधानी बनाया। बाद में इन्होने सुंदर नगर नंदिवर्धन नगर को भी अपनी राजधानी के रूप में प्रयुक्त किया जो आज नागपुर के नाम से जाना जाता है।

7. कैवर्त- नंदराज महापद्मनंद के सातवें पुत्र थे जिनका वर्णन महाबोधि वंश में किया गया है। यह एक महान सेनानायक एवं कुशल प्रशासक थे। ये बाकी पुत्रों की तरह कैवर्त किसी राजधानी के प्रशासक नहीं थे। बल्कि अपने पिता के केंद्रीय प्रशासन के मुख्य संचालक थे। कैवर्त की मृत्यु सम्राट महापद्मनंद के साथ ही जहरीले भोजन करने से हुई थी। जिससे उनका कोई राजवंश आगे नहीं चल सका।

8. सम्राट घनानंद -सम्राट महापद्मनंद की पत्नी महानंदिनी से उत्पन्न अंतिम पुत्र था। घनानंद कई शक्तिशाली राज्यों को मगध साम्राज्य के अधीन कर लिया। नंदराज महापद्मनंद की मृत्यु के बाद 326 ईसवी पूर्व में घनानंद मगध का सम्राट बना। स्थानीय और जैन परम्परावादियों से पता चलता है कि इस वंश के संस्थापक महापद्म, जिन्हें महापद्मपति भी कहा जाता है।

नन्द वंश का पतन

जब सिकन्दर भारत से गया तो सिकन्दर के जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली गई.वहीं धनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था। जिसे असीम शक्‍ति और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता का विश्‍वास नहीं जीत सका। उसने ही एक महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था। जिसके बाद चाणक्य ने अपनी कूटनीति से धनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाया, और एक नए साम्राज्य की स्थापना किया, जिसका नाम मौर्य साम्राज्य रखा गया।


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