उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 : धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक संतुलन पर गहन विमर्श

भारत एक बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक और लोकतांत्रिक देश है। यहाँ हर नागरिक को अपनी इच्छा से धर्म चुनने, पालन करने और उसका प्रचार–प्रसार करने की स्वतंत्रता दी गई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित की गई है। इसके बावजूद, स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रश्न हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। जबरन, धोखाधड़ी या प्रलोभन देकर किए गए धार्मिक परिवर्तन को लेकर समय–समय पर बहस होती रही है और विभिन्न राज्यों ने इस पर नियंत्रण हेतु अपने–अपने कानून बनाए हैं।

इसी कड़ी में उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने “उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025” को मंजूरी दी है। इस विधेयक ने न केवल धार्मिक परिवर्तन के प्रश्न को दोबारा राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला खड़ा किया है, बल्कि धर्म, संविधान और सामाजिक सद्भाव के बीच संतुलन को लेकर भी व्यापक बहस छेड़ दी है।

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विधेयक की पृष्ठभूमि

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहाँ विविध धार्मिक परंपराएँ और मान्यताएँ प्रचलित हैं। यहाँ हरिद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री–यमुनोत्री जैसे धार्मिक केंद्र विश्वभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। इसी कारण यह राज्य धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील भी माना जाता है।

भारत में धर्मांतरण का मुद्दा नया नहीं है। स्वतंत्रता के बाद से ही इस पर राजनीतिक और सामाजिक बहस चलती रही है। कई राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और ओडिशा ने पहले ही “धर्म स्वतंत्रता अधिनियम” लागू किया है। उत्तराखंड ने 2018 में पहला धर्म स्वतंत्रता कानून बनाया था, जिसे अब 2025 में और कठोर रूप दिया गया है।

सरकार का तर्क है कि समाज में जबरन या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने वाले नेटवर्क सक्रिय हैं, जिन्हें रोकना ज़रूरी है। यही इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य है।

उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 के मुख्य प्रावधान

1. डिजिटल प्रचार पर प्रतिबंध

आज के दौर में सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म धार्मिक प्रचार–प्रसार का सबसे प्रभावी माध्यम बन गए हैं। विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति या संगठन ऑनलाइन माध्यम से किसी को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करता है, तो यह अपराध माना जाएगा।

  • फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, यूट्यूब या किसी भी ऑनलाइन चैनल के माध्यम से धर्मांतरण के लिए उकसाना दंडनीय होगा।
  • यह पहली बार है कि किसी राज्य ने डिजिटल प्लेटफॉर्म को सीधे तौर पर धर्मांतरण कानून के दायरे में लाया है।

2. प्रलोभन की विस्तारित परिभाषा

अब तक “प्रलोभन” मुख्यतः आर्थिक सहायता या रोजगार तक सीमित था। लेकिन नए संशोधन में इसे और व्यापक किया गया है।

  • उपहार देना
  • नकद या वस्तु लाभ प्रदान करना
  • रोजगार या शिक्षा का वादा करना
  • विवाह का आश्वासन देना
  • धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाना
  • अन्य धर्म की महिमा गान करना

इन सभी कार्यों को प्रलोभन की श्रेणी में शामिल किया गया है और इन्हें अपराध माना जाएगा।

3. कड़ी सज़ाएं

संशोधन में अलग–अलग परिस्थितियों के आधार पर सज़ाओं की श्रेणी तय की गई है।

  • सामान्य उल्लंघन: 3 से 10 वर्ष कारावास
  • संवेदनशील वर्ग (जैसे महिलाएँ, अनुसूचित जाति/जनजाति): 5 से 14 वर्ष कारावास
  • गंभीर अपराध: 20 वर्ष से आजीवन कारावास + भारी जुर्माना

4. विवाह संबंधी प्रावधान

यदि कोई व्यक्ति झूठी पहचान अपनाकर या धर्म छिपाकर विवाह करता है तो यह अपराध होगा। इसका उद्देश्य विवाह के बहाने होने वाले धोखाधड़ीपूर्ण धर्मांतरण को रोकना है।

5. पीड़ित सहायता

धर्म परिवर्तन का शिकार हुए व्यक्ति को केवल न्यायिक सुरक्षा ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक सहायता भी प्रदान की जाएगी।

  • चिकित्सा सुविधा
  • यात्रा खर्च
  • पुनर्वास सहायता
  • भरण–पोषण की व्यवस्था

सरकार का दृष्टिकोण

उत्तराखंड सरकार का कहना है कि इस कानून का उद्देश्य किसी की धार्मिक स्वतंत्रता छीनना नहीं है, बल्कि धोखाधड़ी और जबरदस्ती से किए गए धर्म परिवर्तन को रोकना है।

मुख्य तर्क:

  1. धार्मिक अधिकारों की रक्षा – हर व्यक्ति को अपनी आस्था चुनने का अधिकार है, लेकिन यदि किसी पर दबाव या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो यह मौलिक अधिकार का हनन है।
  2. सामाजिक सद्भाव बनाए रखना – अवैध धर्मांतरण अक्सर सामाजिक तनाव और अविश्वास को जन्म देता है।
  3. संगठित गिरोहों पर रोक – धर्म परिवर्तन के नाम पर सक्रिय नेटवर्क और संगठनों को हतोत्साहित करना।
  4. कमज़ोर वर्ग की सुरक्षा – महिलाएँ, गरीब और पिछड़े वर्ग अक्सर सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। यह कानून उन्हें सुरक्षा प्रदान करेगा।

विधेयक के खिलाफ तर्क

हालाँकि इस विधेयक को लेकर कई गंभीर चिंताएँ भी उठाई जा रही हैं।

1. संवैधानिक चिंताएँ

भारत का संविधान हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता और निजी जीवन की गोपनीयता का अधिकार देता है। आलोचकों का कहना है कि यह विधेयक सीधे–सीधे इन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

2. परिभाषाओं में अस्पष्टता

“प्रलोभन” शब्द की परिभाषा बहुत व्यापक और अस्पष्ट है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति गरीब को शिक्षा या स्वास्थ्य सहायता प्रदान करता है और वह अपनी इच्छा से धर्म बदल लेता है, तो क्या यह अपराध माना जाएगा? इस तरह की अस्पष्टता कानून के दुरुपयोग की संभावना बढ़ाती है।

3. अंतरधार्मिक विवाहों पर प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून अंतरधार्मिक विवाहों को और कठिन बना देगा। अक्सर हिंदू–मुस्लिम जोड़ों के खिलाफ ऐसे कानूनों का दुरुपयोग होता है, जहाँ एक पक्ष पर धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगा दिया जाता है।

4. सामाजिक ध्रुवीकरण

ऐसे कानूनों से समाज में अविश्वास और धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। आलोचक मानते हैं कि इससे साम्प्रदायिक तनाव और गहराएगा।

विधेयक के पक्ष में तर्क

1. जबरन धर्म परिवर्तन की रोकथाम

समर्थकों का कहना है कि यह कानून उन असामाजिक तत्वों को रोकने का प्रयास है, जो विशेष रूप से महिलाओं और वंचित वर्गों को निशाना बनाकर उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं।

2. सामाजिक सद्भाव

धार्मिक परिवर्तन को नियंत्रित करना विभिन्न समुदायों के बीच आपसी तनाव को रोकने में मदद करता है।

3. गिरोहों पर रोक

कई बार धर्मांतरण के पीछे संगठित गिरोह सक्रिय पाए जाते हैं। यह कानून ऐसे नेटवर्क पर रोक लगाने का माध्यम बनेगा।

4. जिम्मेदारी के साथ धार्मिक स्वतंत्रता

कानून यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक स्वतंत्रता बनी रहे, लेकिन उसका दुरुपयोग न हो।

संवैधानिक और कानूनी पहलू

  • अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन इसमें “सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य” का अपवाद भी है।
  • अनुच्छेद 21 गोपनीयता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
  • प्रश्न यह है कि क्या जबरन धर्म परिवर्तन रोकने का उद्देश्य संविधान के अनुरूप है या यह व्यक्तिगत अधिकारों में हस्तक्षेप है?

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि स्वेच्छा से धर्म बदलना अधिकार है, लेकिन धोखाधड़ी या दबाव से कराया गया धर्मांतरण अवैध है। यह कानून इन्हीं सीमाओं को परिभाषित करने की कोशिश है।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

  1. राजनीतिक बहस – यह विधेयक राजनीतिक दलों के बीच एक बड़ा मुद्दा बन गया है। एक पक्ष इसे सामाजिक सुरक्षा मानता है, तो दूसरा इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताता है।
  2. युवाओं और अंतरधार्मिक जोड़ों पर असर – यह वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो सकता है।
  3. सामाजिक रिश्तों पर प्रभाव – यदि कानून का दुरुपयोग हुआ, तो समाज में अविश्वास बढ़ सकता है।
  4. महिलाओं की सुरक्षा – सकारात्मक पक्ष यह है कि यह कानून महिलाओं को सुरक्षा प्रदान कर सकता है, जो अक्सर जबरन धर्म परिवर्तन का निशाना बनती हैं।

आलोचनात्मक विश्लेषण

इस विधेयक में कई प्रगतिशील पहलू हैं, जैसे डिजिटल माध्यमों से धर्मांतरण पर रोक, पीड़ितों की सहायता और संगठित गिरोहों पर नियंत्रण। लेकिन अस्पष्ट परिभाषाएँ और कठोर दंड इसे विवादास्पद बना रहे हैं।

  • यदि सरकार सचमुच धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहती है, तो उसे स्पष्ट दिशानिर्देश देने होंगे कि कौन–सी गतिविधि अपराध है और कौन–सी नहीं।
  • कानून का उद्देश्य समाज को विभाजित करने के बजाय जोड़ने का होना चाहिए।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता का हनन न हो।

निष्कर्ष

उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 भारतीय लोकतंत्र और संविधान के लिए एक गहन बहस का विषय है। यह एक तरफ़ नागरिकों को जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने का प्रयास है, तो दूसरी ओर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता पर प्रश्न भी खड़े करता है।

भविष्य में इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे लागू करने वाले अधिकारी कितनी निष्पक्षता से काम करते हैं। यदि यह विधेयक संतुलित ढंग से लागू हुआ, तो यह सामाजिक सद्भाव और सुरक्षा को बढ़ावा दे सकता है। लेकिन यदि इसका दुरुपयोग हुआ, तो यह सामाजिक ध्रुवीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला भी बन सकता है।

इसलिए ज़रूरी है कि इस कानून के साथ स्पष्ट परिभाषाएँ, सख़्त निगरानी तंत्र और दुरुपयोग रोकने के लिए सुरक्षा प्रावधान भी जोड़े जाएँ। तभी यह विधेयक वास्तव में नागरिकों के अधिकारों और सामाजिक एकता की रक्षा कर सकेगा।


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