गोवा का इतिहास | History of Goa

गोवा का नाम आते ही दिल को छु जाने वाला समुद्र तट और आसमान को छुते हुए नारियल के पेड़ हमारे आँखों के सामने आ जाता हैं। गोवा भारत के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। पर्यटकों की यह पसंदीदा जगह है और दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं।

गोवा का इतिहास | History of Goa

भारत के कोंकण क्षेत्र में स्थित गोवा, देश के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। गोवा, तटीय राज्यों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा और जनसंख्या की दृष्टि से चौथा सबसे छोटा राज्य है। गोवा राज्य में भारतीय और पुर्तगाली संस्कृति का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है और यहाँ की वास्तुकला यात्रियों को आकर्षित करती है। विविध संस्कृति और समुदाय के लोग यहाँ घुमने के लिए आते है।

गोवा राज्य – इतिहास और जानकारी

राज्य का नाम (Name of The State)गोवा(Goa)
गोवा की राजधानी (Capital of Goa)पणजी(Panaji)
राज्य निर्मिति का साल (State Formation Year)30 मई 1987
राज्य की प्रमुख भाषाएँकोंकणी, अँग्रेजी, हिंदी, मराठी
क्षेत्रफल अनुसार राज्य का देशभर में स्थानअठ्ठाईसवाँ (28th)
जनसँख्या अनुसार राज्य का देश में स्थानछब्बीसवाँ (26th)
राज्य का प्रमुख जानवरगौर (भारतीय भैस)
राज्य का प्रमुख पक्षी (State Bird of Goa)भगवे रंग के कंठ का बुलबुल पक्षी
राज्य का प्रमुख पेड़ (State Tree of Goa)नारियल पेड़
प्रमुख फूल (State Flower of Goa)जास्मिन पुष्प
प्रमुख फल (State Fruit of Goa)काजू
राज्य का प्रमुख खेल (State Game of Goa)फुटबॉल
राज्य अंतर्गत कुल जिलों की सँख्या (District in Goa)दो (2)
राज्य अंतर्गत कुल तालुका (तहसील) की सँख्याबारह (12)
राज्य अंतर्गत कुल ग्रामीण विभाग411
गोवा राज्य अंतर्गत कुल शहरों की सँख्या14
राज्य की कुल जनसँख्या (Population of Goa)14, 58, 545 (साल 2011 के जनगणना अनुसार)
राज्य का साक्षरता दर91.71 प्रतिशत (%)
वित्तीय तथा राज्यों के अनुसार गोवा राज्य की कोड सँख्या (State Code of Goa)30
गोवा

गोवा का प्राचीन इतिहास

गोवा का प्राचीन इतिहास तीसरी शताब्दी ई. पू. का है। यह पश्चिमी घाट के पैर में एक छोटा सा द्वीप है जिसे पहले गोवा के नाम से जाना जाता था परन्तु आर्यों ने इसे गोमती कहा था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने गोवा में अपना साम्राज्य स्थापित किया था, जिसको उनके पुत्र अशोक ने आगे बढ़ाया। 232 ईसा पूर्व में अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य में कोई योग्य शासक नहीं होने के कारण मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होता चला गया। बाद में कदंब वंश और चालुक्य वंश के शासकों ने भी इस राज्य पर शासन किया।

गोवा का मध्यकालीन इतिहास

14 वीं शताब्दी में गोवा धीरे-धीरे एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित हो गया। इस समय के दौरान ज्यादातर कारोबारी मध्य पूर्व से कारोबार करते थे। इस समय तक विजयनगर साम्राज्य की तरह प्रख्यात साम्राज्य, कदंब साम्राज्य ने गोवा को अपने शासन में ले लिया था। हालाँकि, कदम्ब साम्राज्य ज्यादा समय तक गोवा पर शासन नहीं कर सका और जल्द ही बहमनी सुल्तानों के हाथों से पराजित हो गए और गोवा का नियंत्रण बहमनी सुल्तानों ने अपने हाथ में ले लिया। लेकिन 1510 ई. में जब गोवा में पुर्तगालियों का आगमन हुआ तो चीजें बदलनी शुरू हो गईं। गोवा पर बीजापुर के यूसुफ आदिल शाह ने भी शासन किया था।

विजयनगर

गोवा पर कई सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया और शासन किया। 1312 ई. में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ, परन्तु विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम ने दिल्ली संतालत के शासकों को वहाँ से खदेड़ दिया और गोवा को अपने अधीन कर लिया। अगले सौ सालों तक विजयनगर के शासकों ने गोवा पर शासन किया। 1469 ई. में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से गोवा पर कब्ज़ा करके गोवा को दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया। बहामी शासकों के पतन के बाद बीजापुर के आदिल शाह का गोवा कब्जा हो गया जिसने गोअ-वेल्हा हो अपनी दूसरी राजधानी बनाई।

गोवा का आधुनिक इतिहास

गोवा अपने प्राकृतिक बंदरगाह के कारण, मध्य पूर्व से मसाला व्यापार पर नियंत्रण रखने के लिए पुर्तगालियों के लिए एक आदर्श आधार के रूप में कार्य किया। पुर्तगाली वर्ष 1510 ई. में गोवा आए थे और उनका प्रवास लगभग 450 वर्षों तक चला था। पुर्तगाली शासन के दौरान, ईसाई धर्म रूपांतरण शुरू हो चुका था। मसाला व्यापार के समय के बाद, गोवा अपने स्वर्णिम युग में पहुंच गया और इस समय तक, ओल्ड गोवा पूर्व में सबसे बड़ा शहर बन चुका था।

1560 ई. में गोवा का पवित्र कार्यालय आ गया। वाइसराय ने उन्हें यूसुफ आदिल शाह का पुराना महल इसके लिए दे दिया और उन्होंने खुद ही अपने आवास को किले में स्थानांतरित कर दिया। पवित्र कार्यालय ने गोवा को अगले दो सौ वर्षों तक हठधर्मिता की स्थिति में रखने के लिए पर्याप्त रूप से नियंत्रित किया। अंत में इसे 1774 ई. में समाप्त कर दिया गया।

1605 ई. की शुरुआत में गोवा में डच आक्रमण शुरू हुआ। डचों ने पहले राज्य पर हमला किया और अवरुद्ध किया। परन्तु उस समय वे पुर्तगाली सेनाओं से हार गए, लेकिन 1639 ई. में उन्होंने फिर से गोवा पर हमला कर दिया। 1605 ई. में डचों ने ईस्ट इंडीज में प्रमुख स्पाइस आइलैंड्स को एनाउंस किया और पुर्तगालियों को इस तरह से दक्षिणी (साउथ) स्लैब्स में शिफ्ट होने के लिए मजबूर किया। धीरे-धीरे डचों ने पुर्तगाली साम्राज्य की तटीय बस्तियों को जीत लिया।

इस अवधि के दौरान 1737 ई. की शुरुआत में लुसो-मराठा युद्ध भी हुआ जो मई 1739 ई. तक लगभग दो वर्षों तक जारी रहा। युद्ध ने पुर्तगाली रक्षकों की योग्यता का प्रदर्शन किया। हालाँकि 1739 ई. में मराठों ने गोवा के खिलाफ एक बड़ी ताकत भेजी, जिसने राजधानी से बसीन की सीमाओं को सफलतापूर्वक अवरुद्ध कर दिया।इस प्रकार मर्मगाओ और राचोल किले पर भी कब्जा कर लिया गया था और नन और पुजारियों को गोवा से मर्मगाओ के किले को खाली करने के लिए मजबूर कर दिया गया था।

19 वीं शताब्दी में गोवा मराठा शक्ति के अंत का गवाह बना। 1818 ई. के दौरान और तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के अंत तक भारत का आधा हिस्सा ब्रिटिश पेंशनरों के लिए कम हो गया था। उस समय के दौरान अंग्रेजों ने एक उच्च पद संभाला और धीरे-धीरे देश के अधिकांश हिस्सों पर अपना अधिकार कर लिया। दूसरी ओर पुर्तगाली के हाथों से बाकि के प्रदेश धीरे-धीरे निकलने लगे और गोवा तक ही पुर्तगाली सीमितरह गए।

इस प्रकार आने वाले वर्षों में भारत पर अंग्रेजों का शासन था। अंतत: 1947 ई. में प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानियों की मदद से भारत ने अंग्रेजों से अपनी स्वतंत्रता हासिल की लेकिन गोवा इस समय तक भी एक पुर्तगाली उपनिवेश बना रहा। वर्ष 1961 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने सशस्त्र बलों को भेजा और `ऑपरेशन विजय` के नाम से, भारतीय सेना ने केवल दो दिनों में गोवा पर अधिकार कर लिया। तब से गोवा भारत के केंद्र शासित प्रदेशों में से एक बन गया।

पुर्तगाली आगमन

1498 ई. में वास्को डी गामा गोवा आने वाला पहला युरोपीय यात्री बना जो समुद्र के रास्ते यहाँ आया था। उसके इस सफल अभियान ने युरोप की अन्य शक्तियों को भारत पहुँचने के लिये दूसरे समुद्री रास्तों की तलाश के लिये प्रेरित किया क्योंकि तुर्कों द्वारा पारंपरिक स्थल मार्गों को बंद कर दिया गया था। 1510 ई. में पुर्तगाली नौसेना द्वारा तत्कालीन स्थानीय मुगल राजा को पराजित कर पुर्तगालियों ने यहाँ के कुछ क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। यहाँ वे अपना एक आधार बनाना चाहते थे जहाँ से वे मसालों का व्यापार सुगमता पूर्वक कर सकें। सोलहवीं सदी के मध्य तक पुर्तगालियों ने गोवा क्षेत्र में पूरी तरह अपनी स्थिती सुदृढ कर ली थी।

सन् 1510 ई. में पुर्तगालियो ने स्थानिक मित्र, तिमय्या की सहायता से सत्तारुढ़ बीजापुर के सुल्तान यूसुफ़ आदिल शाह को पराजित किया। इसके बाद प्राचीन गोवा में उन्होंने स्थायी राज्य की नीव रखी। गोवा में यही से पुर्तगाली शासन की शुरुवात हुई और यह सन् 1961 ई. के राज्य-हरण तक तक़रीबन 4.5 शताब्दी तक चला।

1843 में पुर्तगाली प्राचीन गोवा से निकलकर पणजी चले गये। 18वी शताब्दी के बीच में पुर्तगाली गोवा वर्तमान राज्य की सीमा तक विकसित हो चुका था। साथ ही भारत में जब तक उनकी सीमा स्थिर होती तब तक वे भारत के दूसरे स्थानों से अपने अधिकारों को खो चुके थे इस कारण से पुर्तगालियों ने एक अलग भारतीय राज्य की स्थापना की , जिसमे से गोवा विशालतम प्रान्त था।

आर्थिक इतिहास

17वी. शताब्दी से सन् 1958 ई. तक गोवा की मुद्रा रुपया थी। सन् 1971 ई. के बाद गोवा में प्रयोग होने वाले सिक्के कलकत्ता में बनाये गए। यह सिक्के वज़न और चांदी के माप में ब्रिटिश इंडिया के सिक्कों जैसे ही थे। इससे गोवा और बाकी भारत में व्यापार में सरलता हुई। सन् 1958 ई. में पुर्तगाल सरकार ने गोवा की मुद्रा रूपये से बदल कर एस्कुडो कर दी, 1 पुराना रुपया 6 एस्कुडो के बराबर था। 

सन् 1947 के बाद का गोवा

गोवा को भारत का हिस्सा बनने में 16 साल लग गए। हमारे अनेकों स्वतंत्रता सेनानी के बलिदान और अनवरत प्रयास से 15 अगस्त सन् 1947 ई. को अंग्रेज तो भारत से चले गए, परन्तु अब भी गोवा पुर्तगालियों के कब्जे में ही था। और स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद भी गोवा पर पूर्तगलियों का शासन बना रहा।

अंग्रेजों के जाने के बाद भी पूर्तगलियों ने गोवा को अपना उपनिवेश बनाये रखा वे गोवा को खाली करने के पक्ष में नहीं थे। इसीलिए भारत सरकार की बार-बार बातचीत की मांग को पुर्तगाली द्वारा ठुकराया जा रहा था।

भारतीय अधिकरण

सन् 1961 ई. में कुछ निहत्थे गोवावासी सत्याग्रहियों ने पुर्तगाली औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया। इनमें से कम से कम 22 सत्याग्रहियों को पुर्तगालियों ने गोली से मार दिया था। इस कारण से आन्दोलन और उग्र हो गया और भारत सरकार ने इसको अपने संज्ञान में लेते हुए पुर्तगालियों से बात-चीत करने का प्रयास किया, परन्तु पुर्तगालियों ने इसको ठुकरा दिया। भारत ने गोवा को भारत में शामिल करने के लिए कई बार बात करना चाहा परन्तु पुर्तगाल ने भारत के इस प्रस्ताव को गंभीरता से नहीं लिया।

गोवा का इतिहास | History of Goa

19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने यहाँ आक्रमण कर इस क्षेत्र को मुक्त करवाया और गोवा भारत में शामिल हुआ। गोवा तथा इसके उपक्षेत्र दमन एवं दीव को भारत में संविधान के एक संघीय क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया। लेकिन 30 मई 1987 को गोवा 56 वां संविधान संशोधन के तहत इसे अलग राज्य का दर्जा दिया गया तथा गोवा भारत का 25 वाँ राज्य बना।

1947 ई. को भारत जब ब्रिटिशो की गुलामी से आज़ाद हुआ तो भारत ने पुर्तगाली प्रांतो से भारतीय उपमहाद्वीप को भारत को सौपने की मांग की। परन्तु पुर्तगाल ने भी अपने भारतीय परिक्षेत्रो की संप्रभुता पर बातचीत करने से इंकार कर दिया। 19 दिसंबर 1961 ई. को आपरेशन विजय के तहत भारतीय सेना ने आक्रमण कर दिया और गोवा और दमन एवं द्वीप को भारतीय संघ में शामिल कर दिया।

दमन एवं द्वीप के साथ गोवा को भारतीय संघ के केंद्रशासित प्रदेश में शामिल कर लिया गया। 30 मई 1987 को केंद्र शासित प्रदेश को विभाजित कर दिया और गोवा को भारत का 25 वा राज्य बनाया गया। जबकि दमन एवं द्वीप आप भी भारत के केंद्रशासित प्रदेश में शामिल है।

1987 में बनने वाला एक स्‍वतंत्र राज्‍य गोवा

1947 ई. में जब देश को अंग्रेजोंं से आजादी म‍िली तो भारत ने पुर्तगाल‍ियों से भी भारतीय उपमहाद्वीप को सौंपने को कहा, लेक‍िन पुर्तगाल ने बातचीत से मना कर द‍िया। इसके बाद 19 दिसंबर 1961 ई. को भारतीय सेना ने ऑपरेशन व‍िजय का संचालन क‍िया। इसके परिणाम स्वरूप गोवा, दमन और दीव भारत का एक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना और गोवा पुर्तगाल‍ी से 450 साल बाद आजाद हुआ। इसके बाद 30 मई 1987 ई. में गोवा को एक राज्य के तौर पर मान्‍यता दी गई।

बेल्हा आदिलशाह की दूसरी राजधानी थी गोवा

गोवा का इतिहास तीसरी सदी ईसा पूर्व शुरू होता है। यहां पर मौर्य वंश शासन की स्थापना, जिसके बाद कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ। फिर 580 ई. से 750 ई. तक बहामी शासकों ने राज किया। 1312 ई. में पहली बार गोवा दिल्ली सल्‍तनत के अधीन आ गया। परन्तु कुछ समय के बाद ही विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम ने इस पर अधिकार कर लिया और 100 सालों तक शासन किया। बहामी  शासकों के पतन के बाद बीजापुर के आदिलशाह का यहां पर कब्जा हुआ, जिसने गोवा वेल्हा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।


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