अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC): वैश्विक न्याय प्रणाली में यूक्रेन की नई भागीदारी और भारत की दूरी

मानव सभ्यता के इतिहास में युद्ध, जनसंहार और अत्याचार जैसी घटनाएँ समय-समय पर घटती रही हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह आवश्यकता महसूस हुई कि ऐसे गंभीर अपराधों के लिए एक स्थायी और निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय मंच हो, जो व्यक्तियों को उत्तरदायी ठहरा सके। इसी आवश्यकता से प्रेरित होकर अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court – ICC) की स्थापना हुई, जो अब वैश्विक न्याय प्रणाली का एक केंद्रीय स्तंभ बन चुका है। हाल ही में यूक्रेन को ICC के रोम संविधि का 125वां राज्य पक्षकार (State Party) के रूप में स्वीकार किया गया है, जिससे यह चर्चा और भी प्रासंगिक हो जाती है।

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) का परिचय

ICC विश्व की पहली स्थायी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत है, जो चार प्रमुख अपराधों के लिए व्यक्तियों पर अभियोजन चलाती है:

  1. जनसंहार (Genocide)
  2. मानवता के खिलाफ अपराध (Crimes against humanity)
  3. युद्ध अपराध (War crimes)
  4. आक्रामकता का अपराध (Crime of aggression)

इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों के दोषियों को सज़ा मिले और कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर न रहे। यह अदालत केवल व्यक्तिगत जवाबदेही तय करती है, न कि राष्ट्रों की।

स्थापना और कानूनी आधार

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना रोम संविधि (Rome Statute) के तहत की गई थी, जो 17 जुलाई 1998 को अपनाई गई और 1 जुलाई 2002 को प्रभाव में आई। रोम संविधि एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो ICC के अधिकार क्षेत्र, कार्यप्रणाली, ढांचे और उद्देश्यों को परिभाषित करती है।

संविधि को अपनाने के पीछे प्रमुख प्रेरणा रवांडा और पूर्व यूगोस्लाविया में हुए नरसंहार थे, जिनके लिए विशेष ट्राइब्यूनल बनाए गए थे। इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया कि स्थायी न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता है।

सदस्यता स्थिति

जुलाई 2025 तक ICC में 125 राज्य पक्षकार (State Parties) हो चुके हैं। इसकी सदस्यता लगातार बढ़ रही है:

  • 123वां सदस्य: फिलिस्तीन (2015)
  • 124वां सदस्य: मलेशिया (2019)
  • 125वां सदस्य: यूक्रेन (2025)

हालाँकि, कुछ प्रभावशाली देश जैसे भारत, अमेरिका, रूस, चीन और इज़राइल अब भी इस न्यायालय के सदस्य नहीं हैं, जिससे इसकी सार्वभौमिकता पर समय-समय पर प्रश्न उठते रहे हैं।

यूक्रेन की सदस्यता का महत्व

2022 से रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक राजनीति और मानवाधिकारों के संरक्षण के प्रश्नों को फिर से केंद्र में ला दिया है। यूक्रेन ने वर्ष 2014 में ICC के अधिकार क्षेत्र को आंशिक रूप से मान्यता दी थी, जब उसने Euromaidan प्रदर्शनकारियों पर हुए हमलों की जांच की अनुमति दी। 2023 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद ICC का महत्व यूक्रेन के लिए और बढ़ गया।

2025 में यूक्रेन का औपचारिक रूप से 125वाँ सदस्य बनना, वैश्विक न्याय के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का संकेत है। यह न केवल रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानूनी दबाव को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक न्याय प्रणाली को भी नई ऊर्जा प्रदान करता है।

ICC की संरचना

ICC एक बहु-स्तरीय संस्थान है, जिसकी संरचना निम्नलिखित भागों में विभाजित है:

  1. राष्ट्रपति मंडल (Presidency): प्रशासनिक नेतृत्व प्रदान करता है।
  2. न्यायपीठ (Judicial Divisions): तीन स्तरों पर कार्य करती है — पूर्व-परीक्षण (Pre-Trial), परीक्षण (Trial), और अपील (Appeals)।
  3. अभियोजक कार्यालय (Office of the Prosecutor): सबूत जुटाता है, मामलों की जांच करता है और अभियोजन करता है।
  4. रजिस्ट्री (Registry): न्यायालय की प्रशासनिक आवश्यकताओं को संभालता है।
  5. पीड़ितों के लिए न्यास कोष (Trust Fund for Victims): पीड़ितों को मुआवजा और पुनर्वास सहायता देता है।
  6. नजरबंदी केंद्र (Detention Centre): अभियुक्तों की हिरासत का स्थान।
  7. सदस्य देशों की अधिवेशन सभा (Assembly of States Parties – ASP): नीति निर्धारण, बजट स्वीकृति और न्यायाधीशों की नियुक्ति का कार्य करती है।

कार्य भाषा और प्रक्रियाएँ

ICC की प्रमुख कार्य भाषाएँ अंग्रेज़ी और फ्रेंच हैं। हालाँकि, न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त को उसकी मातृभाषा में अनुवादित सामग्री उपलब्ध कराई जाए ताकि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित की जा सके।

ICC का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction)

ICC का अधिकार क्षेत्र बहुत सीमित और परिभाषित है:

  1. केवल गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों की सुनवाई (जैसे: जनसंहार, युद्ध अपराध)
  2. सदस्य देशों की सीमा में किए गए अपराध, या उनके नागरिकों द्वारा किए गए अपराध
  3. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा संदर्भित मामले, भले ही देश सदस्य न हो
  4. पूरक सिद्धांत (Complementarity Principle): ICC तभी हस्तक्षेप करता है जब यह स्पष्ट हो कि संबंधित देश की न्याय व्यवस्था असमर्थ, अनिच्छुक या पक्षपातपूर्ण है

यह सिद्धांत इस बात को सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय न्याय प्रणाली प्राथमिक हो, और ICC केवल अंतिम उपाय के रूप में काम करे।

भारत का ICC से बाहर रहना: एक विश्लेषण

भारत ने रोम संविधि पर हस्ताक्षर तो किया था (2000 में), लेकिन इसे अब तक अनुमोदित (ratify) नहीं किया। इसके पीछे कई कारण हैं:

  1. संप्रभुता की चिंता: भारत मानता है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत के पास अपने नागरिकों पर अधिकार क्षेत्र नहीं होना चाहिए।
  2. जम्मू-कश्मीर और नक्सल मुद्दों पर संभावित हस्तक्षेप: भारत को डर है कि सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों पर ICC हस्तक्षेप कर सकता है।
  3. अपरिभाषित ‘आक्रामकता का अपराध’: यह भारत को असहज करता है, विशेषकर उसकी सामरिक और सीमा-संबंधी चुनौतियों के संदर्भ में।
  4. राजनीतिक पक्षपात का डर: कई देशों को लगता है कि ICC केवल अफ्रीकी और विकासशील देशों को निशाना बनाता है।

हालाँकि, भारत अंतरराष्ट्रीय न्याय के सिद्धांतों का समर्थन करता है और समय-समय पर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर न्याय की वकालत करता रहा है।

आलोचनाएँ और चुनौतियाँ

ICC को अपनी स्थापना के बाद से कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है:

  1. राजनीतिक पक्षपात: ICC पर अफ्रीकी देशों को disproportionately निशाना बनाने का आरोप है। अब तक जिन मामलों में अभियोजन हुआ, उनमें अधिकांश अफ्रीकी देश शामिल रहे हैं।
  2. प्रभावशाली देशों की अनुपस्थिति: अमेरिका, चीन, रूस जैसे देशों का सदस्य न होना इसकी वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
  3. कम सहयोग: कई बार सदस्य देश भी गिरफ्तारी वारंट का पालन नहीं करते (जैसे: सूडान के उमर अल-बशीर का मामला)।
  4. लंबी प्रक्रियाएँ और कम सज़ाएँ: कुछ मामलों में न्याय में अत्यधिक देरी होती है, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठता है।

उपलब्धियाँ

नकारात्मकताओं के बावजूद, ICC की कई उल्लेखनीय उपलब्धियाँ रही हैं:

  • कांगो के थॉमस लुबांगा को बाल सैनिकों की भर्ती के लिए दोषी ठहराया गया।
  • लॉर्ड्स रेजिस्टेंस आर्मी (LRA) के जोसेफ कोनी के खिलाफ वारंट जारी किया गया।
  • सेंटरल अफ्रीकन रिपब्लिक और कोटे डी’वोयर में गंभीर अपराधों की सुनवाई।

भविष्य की दिशा

ICC की प्रासंगिकता वैश्विक राजनीति की जटिलताओं के बीच न्याय के सार्वभौमिक सिद्धांतों को बनाए रखने में निहित है। यदि अधिक से अधिक देश इसकी सदस्यता लेते हैं और इसे न्याय दिलाने का मंच मानते हैं, तो यह वैश्विक शांति और मानवाधिकारों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

निष्कर्ष

यूक्रेन का ICC से जुड़ना एक ऐतिहासिक घटना है, जो न केवल उसकी अंतरराष्ट्रीय न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि ICC के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को भी उजागर करता है। दूसरी ओर, भारत जैसे लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था वाले देश के लिए यह विचारणीय है कि क्या वह अब भी ICC से दूर रहकर वैश्विक न्याय प्रक्रिया से स्वयं को अलग रख सकता है। यद्यपि संप्रभुता और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उचित हैं, लेकिन भविष्य में यदि ICC अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विविध प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है, तो यह भारत सहित सभी देशों के लिए भरोसेमंद मंच बन सकता है।

सुझाव:
ICC की भूमिका को समझना आज के छात्रों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए अत्यंत आवश्यक है, विशेषकर उस संदर्भ में जब दुनिया कई संघर्षों, युद्धों और मानवाधिकार हननों से जूझ रही है। भविष्य की वैश्विक व्यवस्था में ICC जैसे संस्थान ही न्याय, उत्तरदायित्व और मानव गरिमा की रक्षा कर सकते हैं।


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