IN-SPACe: भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी का नया युग

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम पिछले छह दशकों से विश्व में अपनी अलग पहचान बनाता आया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने न केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों के झंडे गाड़े हैं, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत को एक विश्वसनीय शक्ति भी बनाया है। चंद्रयान, मंगलयान, गगनयान जैसे मिशन इसकी साख के प्रमाण हैं।

परंतु बदलते समय के साथ यह स्पष्ट हो गया कि केवल सरकारी संस्थान के बल पर तेजी से बदलते वैश्विक स्पेस इंडस्ट्री में टिक पाना कठिन है। अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा तेज़ हो चुकी है। अमेरिका की SpaceX, Blue Origin, Rocket Lab जैसी निजी कंपनियों ने अंतरिक्ष अन्वेषण और वाणिज्यिक सेवाओं में क्रांति ला दी है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत ने भी अपने स्पेस सेक्टर में निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए बड़े सुधार किए। इन्हीं सुधारों का परिणाम है IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorization Center) की स्थापना।

IN-SPACe क्या है?

IN-SPACe का पूरा नाम है – Indian National Space Promotion and Authorization Center
यह एक स्वतंत्र (Independent) और स्वायत्त (Autonomous) निकाय है, जिसे भारत सरकार के Department of Space (DoS) के अंतर्गत स्थापित किया गया है।

इसकी स्थापना 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों (Space Sector Reforms) के बाद की गई थी। उद्देश्य स्पष्ट था – भारत में निजी कंपनियों, स्टार्टअप्स और शैक्षणिक संस्थानों को अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना।

IN-SPACe की भूमिका

  1. प्रोत्साहन और अनुमति – निजी कंपनियों और संस्थानों को अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति और सहायता देना।
  2. निगरानी और नियंत्रण – गैर-सरकारी संस्थाओं (NGEs) द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर निगरानी रखना, जैसे:
    • लॉन्च व्हीकल्स (Launch Vehicles) का विकास
    • सैटेलाइट निर्माण
    • स्पेस-आधारित सेवाओं की उपलब्धता
  3. इन्फ्रास्ट्रक्चर का साझा उपयोग – ISRO और Department of Space की सुविधाओं (जैसे लॉन्चिंग साइट्स, ग्राउंड स्टेशन, टेस्टिंग लैब्स) को निजी कंपनियों के साथ साझा करना।
  4. नई सुविधाओं का विकास – निजी और सार्वजनिक सहयोग से नए स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कराना।

Astrophel Aerospace और IN-SPACe का समझौता

हाल ही में पुणे स्थित Astrophel Aerospace नामक स्पेस टेक स्टार्टअप ने IN-SPACe के साथ एक महत्वपूर्ण फ्रेमवर्क समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए।

इस MoU के तहत:

  • कंपनी को ISRO की उन्नत सुविधाओं तक पहुंच मिलेगी।
  • अपने सेमी–क्रायोजेनिक प्रणोदन तंत्र (Semi-Cryogenic Propulsion System) के लिए तकनीकी समीक्षा (Technical Review), सिस्टम-स्तरीय परीक्षण (System Level Testing) और क्वालिफिकेशन सपोर्ट प्राप्त होगा।
  • इसमें टर्बोपंप (Turbopump) और इंजन मॉड्यूल्स (Engine Modules) शामिल हैं, जो रॉकेट इंजनों के सबसे जटिल और महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं।

यह समझौता इस बात का संकेत है कि भारत अब केवल सरकारी संस्थानों तक सीमित न रहकर, निजी स्टार्टअप्स को भी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उन्नत क्षेत्रों में प्रयोग और अनुसंधान की छूट दे रहा है।

भारत में अंतरिक्ष सुधारों की पृष्ठभूमि

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र लंबे समय तक केवल ISRO तक सीमित था। निजी कंपनियों को केवल आपूर्तिकर्ता (Vendor) या सहयोगी (Partner) के रूप में ही भूमिका मिलती थी। लेकिन 2010 के बाद वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार तेजी से बदलने लगा।

  • अमेरिका में SpaceX ने लागत घटाकर सैटेलाइट लॉन्चिंग को सस्ता बनाया।
  • निजी कंपनियाँ अब न केवल सैटेलाइट लॉन्च कर रही हैं, बल्कि स्पेस टूरिज्म, चंद्र मिशन और अंतरिक्ष खनन तक की योजना बना रही हैं।
  • वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (Global Space Economy) 2023 में लगभग $546 बिलियन तक पहुँच गई थी और 2040 तक इसके $1 ट्रिलियन से अधिक होने का अनुमान है।

भारत इस अवसर को भुनाना चाहता है। इसलिए 2020 में Space Sector Reforms की घोषणा की गई, जिसके तीन मुख्य स्तंभ थे:

  1. IN-SPACe की स्थापना – निजी खिलाड़ियों के लिए सिंगल विंडो अनुमति तंत्र।
  2. NewSpace India Limited (NSIL) – वाणिज्यिक गतिविधियों को संभालने वाली सरकारी कंपनी।
  3. ISRO का पुनर्गठन – ताकि वह केवल अनुसंधान, तकनीकी विकास और उच्चस्तरीय मिशनों पर केंद्रित रहे।

IN-SPACe की प्रमुख उपलब्धियाँ

2020 के बाद से IN-SPACe ने कई निजी कंपनियों और स्टार्टअप्स को सहयोग दिया है।

  • Skyroot Aerospace – भारत का पहला निजी रॉकेट विक्रम-S (2022 में लॉन्च)।
  • Pixxel – हाई-रेज़ोल्यूशन सैटेलाइट इमेजिंग में वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त स्टार्टअप।
  • Dhruva Space – सैटेलाइट समाधान और CubeSats पर काम कर रहा है।
  • Astrophel Aerospace – सेमी-क्रायोजेनिक इंजन तकनीक पर काम कर रहा है।

IN-SPACe की भूमिका इन स्टार्टअप्स के लिए Facilitator (सुविधादाता) की है। यह उन्हें न केवल ISRO की सुविधाओं तक पहुंच दिलाता है बल्कि नीति, अनुमोदन और सुरक्षा मानकों के पालन में भी मदद करता है।

निजी क्षेत्र की भूमिका क्यों ज़रूरी है?

  1. लागत और समय की बचत
    • सरकारी संस्थानों की प्रक्रियाएँ अक्सर लंबी और जटिल होती हैं।
    • निजी कंपनियाँ लचीली और तेज़ होती हैं, जिससे लागत और समय दोनों की बचत होती है।
  2. वैश्विक प्रतिस्पर्धा
    • SpaceX जैसी कंपनियों ने बाज़ार पर कब्ज़ा कर लिया है।
    • यदि भारत को अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी है, तो निजी क्षेत्र को आगे आना होगा।
  3. नवाचार और अनुसंधान
    • स्टार्टअप्स नई तकनीक, जैसे Reusable Rockets, Nano-Satellites, Space Data Analytics में तेजी से प्रयोग करते हैं।
    • इससे नवाचार को गति मिलती है।
  4. अंतरिक्ष आधारित सेवाओं की मांग
    • टेलीकॉम, इंटरनेट, मौसम पूर्वानुमान, नेविगेशन, कृषि निगरानी, रक्षा – हर क्षेत्र में सैटेलाइट सेवाओं की मांग बढ़ रही है।
    • अकेला ISRO इस मांग को पूरा नहीं कर सकता।

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति

  • भारत का वर्तमान अंतरिक्ष बाज़ार लगभग $8–9 बिलियन का है।
  • यह वैश्विक हिस्सेदारी का केवल 2–3% है।
  • 2040 तक भारत का लक्ष्य है कि वह $40–50 बिलियन का स्पेस इकोनॉमी हब बने।

इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निजी कंपनियों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। IN-SPACe इसी परिवर्तन का माध्यम है।

चुनौतियाँ

हालांकि अवसर बड़े हैं, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं:

  1. नीतिगत स्पष्टता – अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए स्पष्ट कानूनी ढांचा और Space Law की आवश्यकता है।
  2. सुरक्षा और गोपनीयता – अंतरिक्ष रक्षा और संवेदनशील डाटा के लीक होने का खतरा।
  3. वित्तपोषण – स्टार्टअप्स को बड़े स्तर पर निवेश और पूंजी जुटाने में कठिनाई।
  4. तकनीकी जटिलता – रॉकेट इंजन, सेमी-क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी, री-यूजेबल लॉन्च व्हीकल जैसे क्षेत्रों में भारी R&D लागत।
  5. वैश्विक प्रतिस्पर्धा – SpaceX, China’s CASC, European Space Agency जैसी संस्थाएँ पहले से मजबूत स्थिति में हैं।

भविष्य की दिशा

भारत ने हाल ही में Indian Space Policy 2023 जारी की है। इसके तहत:

  • ISRO उच्चस्तरीय अनुसंधान और Gaganyaan, Chandrayaan, Aditya जैसे मिशनों पर केंद्रित रहेगा।
  • NSIL वाणिज्यिक मिशनों को संभालेगा।
  • IN-SPACe निजी खिलाड़ियों को अनुमति और सहयोग देगा।

Astrophel Aerospace का MoU इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि यह स्टार्टअप सफलतापूर्वक अपने सेमी–क्रायोजेनिक इंजन विकसित कर लेता है, तो भारत की लॉन्चिंग क्षमता और प्रतिस्पर्धात्मकता कई गुना बढ़ जाएगी।

निष्कर्ष

IN-SPACe की स्थापना भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। यह न केवल निजी खिलाड़ियों को अवसर प्रदान कर रहा है, बल्कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा दे रहा है।

पुणे स्थित Astrophel Aerospace और IN-SPACe का समझौता इस परिवर्तन का जीवंत उदाहरण है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अब केवल सरकारी नेतृत्व पर निर्भर नहीं रहेगा, बल्कि स्टार्टअप्स और निजी कंपनियों को भी वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में उतरने का मौका मिलेगा।

यदि नीतिगत स्पष्टता, वित्तीय सहायता और तकनीकी सहयोग समय पर मिलता रहा, तो भारत आने वाले दशक में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का एक बड़ा केंद्र बन सकता है।


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