भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता (FTA): वैश्विक व्यापार में भारत की ऐतिहासिक छलांग

भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement – FTA), जिसे समग्र आर्थिक और व्यापार समझौता (Comprehensive Economic and Trade Agreement – CETA) कहा गया है, को भारत सरकार ने आधिकारिक मंजूरी दे दी है। यह ऐतिहासिक निर्णय 24 जुलाई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंदन यात्रा के दौरान औपचारिक हस्ताक्षर के साथ मूर्त रूप लेगा। यह समझौता केवल एक व्यापारिक करार नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को और अधिक सशक्त बनाना है।

पृष्ठभूमि: वर्षों की मेहनत का प्रतिफल

भारत और यूके के बीच इस समझौते पर वार्ताएं जनवरी 2022 में प्रारंभ हुई थीं। यह वह समय था जब यूके ने ब्रेक्ज़िट के बाद अपनी व्यापारिक रणनीति को नया स्वरूप देना शुरू किया था, और भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करने की पहल की थी। इस बीच दोनों देशों के बीच कई चरणों की विस्तृत और जटिल बातचीत हुई, जिनमें व्यापार, निवेश, सेवाएं, सामाजिक सुरक्षा, डिजिटल सहयोग और नवाचार जैसे विषयों पर मंथन हुआ।

अंततः 6 मई 2025 को यह वार्ताएं सफलतापूर्वक समाप्त हुईं और एक ठोस रूपरेखा सामने आई। इस समझौते को भारत की व्यापक वैश्विक व्यापार रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है, जिसके अंतर्गत भारत पहले ही ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते कर चुका है।

भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की मुख्य विशेषताएं

यह समझौता न केवल व्यापारिक, बल्कि सामाजिक और तकनीकी क्षेत्रों को भी प्रभावित करेगा। इसकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

1. शुल्कों में कटौती और व्यापार सुलभता

  • भारत की चमड़ा, परिधान, जूते और ऑटोमोबाइल जैसी श्रम-प्रधान निर्यात वस्तुओं पर यूके ने आयात शुल्क शून्य या न्यूनतम कर दिया है।
  • इसके बदले में भारत ने व्हिस्की और हाई-एंड यूके कारों पर आयात शुल्क में कटौती की है, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं को विकल्पों की विविधता मिलेगी।

2. सेवाओं और पेशेवरों को सहयोग

  • डबल कॉन्ट्रीब्यूशन कन्वेंशन (Double Contribution Convention) पर हस्ताक्षर कर लिए गए हैं, जिससे यूके में अस्थायी रूप से कार्यरत भारतीय पेशेवरों को दोहरी सामाजिक सुरक्षा अंशदान से छूट मिलेगी।
  • भारतीय आईटी, फार्मा, शिक्षा और कानूनी सेवाओं के लिए यूके के बाजार में प्रवेश और प्रतिस्पर्धा आसान होगी।

3. डिजिटल व्यापार और बौद्धिक संपदा

  • समझौते में नवाचार, डिजिटल ट्रेड, डेटा फ्लो, साइबर सुरक्षा और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित अध्याय शामिल हैं।
  • यह भारत के स्टार्टअप और डिजिटल उद्यमों को वैश्विक स्तर पर अवसर प्रदान करेगा।

4. सरकारी खरीद और निवेश

  • सरकारी खरीद नीतियों में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया गया है, जिससे यूके की कंपनियों को भारत में बोली लगाने के अधिक अवसर मिलेंगे।
  • हालांकि, द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) पर वार्ताएं अभी भी जारी हैं, परंतु निवेश उदारीकरण के लिए आधार तैयार कर लिया गया है।

प्रभाव: भारत को क्या मिलेगा?

1. व्यापार वृद्धि और निर्यात को बल

भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 120 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने की क्षमता रखता है। वर्ष 2024–25 में भारत का यूके को निर्यात 14.5 अरब डॉलर रहा, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 12.6% अधिक है। वहीं, यूके से भारत का आयात 8.6 अरब डॉलर रहा, जो 2.3% की वृद्धि को दर्शाता है।

2. रोज़गार के अवसर

चूंकि चमड़ा, परिधान और जूते जैसे उद्योग श्रम-प्रधान हैं, इसलिए निर्यात में बढ़ोतरी से ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत में रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न होंगे। यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों को भी मज़बूती देगा।

3. राजनीतिक और रणनीतिक बढ़त

यूके, G7 का सदस्य है और वैश्विक आर्थिक मंच पर प्रभावशाली भूमिका निभाता है। इसके साथ भारत का यह समझौता एक राजनीतिक संकेत है कि भारत वैश्विक आर्थिक संरचना में महत्वपूर्ण भागीदार बन रहा है।

4. डिजिटल और नवाचार क्षेत्र में मजबूती

यूके में भारतीय स्टार्टअप्स और तकनीकी कंपनियों को नए साझेदार और निवेशक मिलेंगे। डिजिटल व्यापार के नियमों को लेकर पारस्परिक समझ से नवाचार का वातावरण और अधिक मजबूत होगा।

5. सामाजिक सुरक्षा की चिंता में राहत

डबल सोशल सिक्योरिटी कन्वेंशन से उन हज़ारों भारतीय पेशेवरों को राहत मिलेगी जो कुछ वर्षों के लिए यूके में काम करते हैं और पहले वहां के सामाजिक सुरक्षा तंत्र में योगदान देते थे, जिसका लाभ उन्हें नहीं मिलता था।

समझौते की राजनीतिक प्रक्रिया

हालांकि भारत सरकार ने इस समझौते को मंजूरी दे दी है, किंतु इसे प्रभावी होने के लिए यूके की संसद की स्वीकृति आवश्यक होगी। यूके की राजनीति में इस समझौते को लेकर व्यापक समर्थन की संभावना है, क्योंकि यह ब्रेक्ज़िट के बाद यूके की नई व्यापार नीति के अनुरूप है और भारत जैसे विशाल बाज़ार के साथ साझेदारी को गहरा करता है।

भविष्य की दिशा: वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका

इस समझौते को केवल एक द्विपक्षीय करार के रूप में देखना गलत होगा। यह समझौता उन देशों के लिए मॉडल एफटीए के रूप में कार्य करेगा जो भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के इच्छुक हैं। इसके प्रभाव से भारत-ईयू, भारत-कनाडा, भारत-अफ्रीका जैसे अन्य संभावित व्यापार समझौतों को भी बल मिलेगा।

भारत की व्यापार नीति अब केवल संरक्षणवाद से नहीं, बल्कि रणनीतिक उदारीकरण से निर्देशित हो रही है—जहां वह अपने उद्योगों की रक्षा के साथ वैश्विक व्यापार का हिस्सा भी बनना चाहता है।

निष्कर्ष

भारत और यूके के बीच हुआ यह समग्र आर्थिक और व्यापार समझौता (CETA) न केवल दोनों देशों के बीच व्यापार को नया आयाम देगा, बल्कि भारत के वैश्विक व्यापार दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगा। यह समझौता दर्शाता है कि भारत अब वैश्विक मंच पर एक सक्रिय, आत्मविश्वासी और निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

जैसे-जैसे यह समझौता लागू होगा, इसके दीर्घकालिक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था, रोज़गार, निवेश और नवाचार पर स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे। भारत का यह कदम उसके ‘विश्वगुरु’ बनने के आधुनिक आर्थिक संस्करण की ओर एक ठोस कदम है।


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