भारत और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक रिश्ते सदियों पुराने हैं। समुद्र की छोटी-सी दूरी और साझा सभ्यता की जड़ों ने दोनों देशों को हमेशा एक-दूसरे के करीब बनाए रखा है। समय के साथ इन संबंधों को और मजबूत करने के लिए केवल राजनीतिक और आर्थिक पहल ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक कूटनीति (Cultural Diplomacy) का सहारा भी लिया गया है। इसी संदर्भ में श्रीलंका के त्रिंकोमाली स्थित ईस्टर्न यूनिवर्सिटी परिसर में छह दिवसीय भारतीय फ़िल्म महोत्सव की शुरुआत हुई है। यह आयोजन दोनों देशों के बीच आपसी संवाद और समझ को नए आयाम देने का प्रयास है।
महोत्सव का उद्घाटन और उद्देश्य
इस महोत्सव का औपचारिक उद्घाटन श्रीलंका के पूर्वी प्रांत के गवर्नर प्रो. जयन्था लाल रत्नसेकेरा ने किया। समारोह में अनेक सांस्कृतिक प्रतिनिधि, छात्र, फिल्म प्रेमी और स्थानीय समुदाय के लोग शामिल हुए।
स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र (SVCC) के निदेशक प्रो. अंकुरण दत्ता ने अपने संबोधन में भारतीय सिनेमा की 111 वर्षीय यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि आज भारतीय फिल्म उद्योग न केवल दुनिया का सबसे बड़ा बल्कि सबसे प्रभावशाली उद्योग भी है। इसकी वैश्विक अपील, बहुभाषीय रचना और विविध विषयवस्तु इसे सीमाओं से परे जाकर अलग पहचान दिलाती है।
इस महोत्सव का मूल उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को और गहरा बनाना है। आयोजकों का मानना है कि फ़िल्में एक ऐसा माध्यम हैं जो भावनात्मक स्तर पर लोगों को जोड़ती हैं और दिलों के बीच पुल का काम करती हैं।
सिनेमा: सांस्कृतिक पुल के रूप में
सिनेमा केवल कहानियों का प्रस्तुतीकरण नहीं है, बल्कि यह समाज की आत्मा और संस्कृति का आईना भी है। भारत और श्रीलंका दोनों देशों के बीच लंबे समय से धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई समानताएँ रही हैं। यहाँ तक कि तमिल भाषा और साहित्य ने दोनों देशों की कलात्मक परंपराओं को जोड़ने का कार्य किया है।
इस महोत्सव के माध्यम से फ़िल्मों को एक सांस्कृतिक पुल (Cultural Bridge) के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। सिनेमा की दृश्य शक्ति और भावनात्मक अपील लोगों के दिलों तक आसानी से पहुँचती है। यह न केवल मनोरंजन प्रदान करती है बल्कि विभिन्न सामाजिक मुद्दों, परंपराओं और मूल्यों को भी सामने लाती है।
कूटनीति में सिनेमा की भूमिका
कूटनीति परंपरागत रूप से राजनीतिक वार्ताओं, समझौतों और व्यापारिक सहयोग तक सीमित रही है। लेकिन आधुनिक दौर में “सॉफ्ट पावर” का महत्व तेजी से बढ़ा है। सॉफ्ट पावर का तात्पर्य उन सांस्कृतिक, शैक्षणिक और रचनात्मक गतिविधियों से है, जो देशों के बीच आपसी भरोसा और सद्भावना को मजबूत करती हैं।
भारतीय फ़िल्म महोत्सव इसी दृष्टिकोण का एक उदाहरण है। इसके ज़रिए कई महत्वपूर्ण उद्देश्यों को साधा जा रहा है:
- एक-दूसरे की संस्कृति, सामाजिक जीवन और मूल्यों को समझने का अवसर।
- युवाओं के बीच आपसी संवाद और शैक्षणिक सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- कला और परंपराओं के प्रति आपसी सराहना बढ़ाना।
- क्षेत्रीय शांति और सद्भावना को मजबूत करना।
भारतीय फ़िल्मों की विविधता का प्रदर्शन
भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी ताकत उसकी विविधता है। भारत में बनी फ़िल्में केवल एक भाषा या शैली तक सीमित नहीं हैं। हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, मराठी, बंगाली, असमिया और अन्य भाषाओं में बनी फ़िल्में अपनी-अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ वैश्विक मंच पर चमकती हैं।
इस महोत्सव में भारत की अलग-अलग भाषाओं और क्षेत्रों से चयनित छह फ़िल्में दिखाई जा रही हैं। इन फ़िल्मों में सामाजिक मुद्दों पर आधारित कहानियाँ भी हैं, पारिवारिक मनोरंजन भी और ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विषयवस्तु भी।
हर स्क्रीनिंग का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह संवाद और चिंतन को प्रेरित करती है। विशेष रूप से श्रीलंकाई दर्शकों के लिए यह एक अनूठा अनुभव है—क्योंकि वे भारतीय संस्कृति से परिचित तो हैं, लेकिन मुख्यधारा से हटकर गहरी और कम जानी-पहचानी कहानियों को देखने के इच्छुक रहते हैं।
युवाओं और शैक्षणिक सहयोग की भूमिका
महोत्सव का आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में किया जाना अपने आप में महत्वपूर्ण है। विश्वविद्यालय और शैक्षणिक संस्थान युवाओं के विचारों और दृष्टिकोण को आकार देते हैं। ऐसे आयोजनों से न केवल युवा पीढ़ी को पड़ोसी देशों की सांस्कृतिक विविधता को समझने का मौका मिलता है, बल्कि वे साझा संवाद में भी भागीदारी करते हैं।
फिल्मों के बाद होने वाले चर्चा सत्र (Discussion Sessions) में छात्र और दर्शक अपने विचार साझा कर रहे हैं। यह प्रक्रिया आपसी समझ को और गहरी बनाती है।
सांस्कृतिक संस्थानों की भूमिका
भारतीय सांस्कृतिक कूटनीति के केंद्र में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र (SVCC) जैसे संस्थान हैं। कोलंबो और जाफना में सक्रिय SVCC वर्षों से साहित्य, नृत्य, संगीत, योग, भाषा शिक्षण और प्रदर्शनियों के माध्यम से भारत-श्रीलंका संबंधों को मजबूत बना रहे हैं।
यह फ़िल्म महोत्सव भी उसी मिशन का हिस्सा है। यह केवल स्क्रीनिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि एक संवाद का माध्यम है—जहाँ कला और संस्कृति की शक्ति से दोनों देशों के बीच मित्रता को नए आयाम दिए जा रहे हैं।
भारत–श्रीलंका सांस्कृतिक संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और श्रीलंका के बीच संबंध केवल आधुनिक राजनीति का परिणाम नहीं हैं। इनकी जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं।
- धार्मिक संबंध: बौद्ध धर्म का प्रसार अशोक काल से ही श्रीलंका तक हुआ। आज भी श्रीलंका में भारत के बौद्ध स्थलों को बड़ी श्रद्धा से देखा जाता है।
- भाषाई और साहित्यिक संबंध: तमिल भाषा और साहित्य दोनों देशों में सांस्कृतिक पुल का कार्य करते रहे हैं।
- कलात्मक आदान-प्रदान: नृत्य, संगीत और लोककला की कई शैलियाँ दोनों देशों में समान रूप से लोकप्रिय हैं।
भारतीय सिनेमा इन संबंधों को आधुनिक रूप देता है और नई पीढ़ियों तक पहुँचाता है।
सॉफ्ट पावर के रूप में भारतीय सिनेमा
विश्व स्तर पर भारतीय सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि एक सॉफ्ट पावर टूल है। हॉलीवुड की तरह ही बॉलीवुड और क्षेत्रीय भारतीय सिनेमा दुनिया के कई देशों में पसंद किया जाता है। अफ्रीका, मध्य एशिया, खाड़ी देशों और दक्षिण एशिया में भारतीय फ़िल्मों की लोकप्रियता अद्भुत है।
श्रीलंका में भारतीय फ़िल्मों का प्रभाव पहले से ही है—विशेषकर तमिल और हिंदी फ़िल्में यहाँ के सिनेमाघरों और टेलीविजन चैनलों पर लंबे समय से लोकप्रिय रही हैं। यह महोत्सव उस प्रभाव को औपचारिक स्वरूप देकर सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती प्रदान करता है।
भविष्य की संभावनाएँ
इस तरह के आयोजनों से भारत और श्रीलंका के बीच केवल सांस्कृतिक ही नहीं, बल्कि पर्यटन, शिक्षा और व्यापार जैसे अन्य क्षेत्रों में भी सहयोग की संभावनाएँ बढ़ती हैं।
- पर्यटन: फ़िल्मों में दिखाई गई भारतीय संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य श्रीलंकाई पर्यटकों को भारत की ओर आकर्षित कर सकता है।
- शिक्षा: फ़िल्म स्टडीज़ और मीडिया शिक्षा में सहयोग की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं।
- सांस्कृतिक उद्योग: दोनों देशों के कलाकार और तकनीशियन एक-दूसरे से सीख सकते हैं और साझा प्रोजेक्ट्स बना सकते हैं।
निष्कर्ष
श्रीलंका में शुरू हुआ छह दिवसीय भारतीय फ़िल्म महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक पहल है। यह उस दृष्टि को दर्शाता है जिसमें कला और संस्कृति को देशों के बीच मित्रता और सद्भावना बढ़ाने के साधन के रूप में देखा जा रहा है।
भारतीय सिनेमा की विविधता, वैश्विक अपील और भावनात्मक शक्ति इसे सीमाओं से परे जाकर लोगों को जोड़ने का अवसर देती है। इस महोत्सव से भारत और श्रीलंका के बीच न केवल सांस्कृतिक समझ बढ़ेगी, बल्कि आने वाले समय में यह संबंध शिक्षा, पर्यटन और कला के अन्य क्षेत्रों तक भी फैलेगा।
इस प्रकार, यह आयोजन वास्तव में सांस्कृतिक संबंधों का उत्सव है, जो दोनों पड़ोसी देशों को और अधिक नज़दीक लाने का माध्यम बनेगा।
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