31 अगस्त 2025 को चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन ने एशिया और विश्व की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत किया। इस सम्मेलन के इतर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक विशेष चर्चा का विषय रही। यह मुलाकात सात वर्षों के अंतराल के बाद हुई और इसने भारत–चीन संबंधों में नए आयाम जोड़ने की उम्मीदें जगाई हैं।
दोनों नेताओं की यह भेंट केवल औपचारिक कूटनीति तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसमें सीमा विवाद, सांस्कृतिक आदान–प्रदान, वैश्विक बहुध्रुवीयता और आर्थिक साझेदारी जैसे गंभीर मुद्दों पर भी ठोस चर्चा हुई।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत–चीन संबंधों की यात्रा
भारत और चीन दो प्राचीन सभ्यताएँ हैं जिनके बीच सहअस्तित्व, सांस्कृतिक आदान–प्रदान और व्यापार का लंबा इतिहास रहा है।
- प्राचीन काल में: रेशम मार्ग के ज़रिए दोनों देशों के बीच व्यापार और बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ।
- स्वतंत्रता के बाद: भारत और चीन ने “हिंदी–चीनी भाई–भाई” के नारे के साथ मित्रता की नई शुरुआत की।
- 1962 का युद्ध: सीमा विवाद ने दोनों देशों के रिश्तों में गहरी खटास पैदा की।
- 1990 के दशक के बाद: धीरे–धीरे आर्थिक सहयोग और व्यापारिक संबंध बढ़ने लगे।
- हाल के वर्षों में: डोकलाम संकट (2017) और गलवान घाटी झड़प (2020) ने रिश्तों को गंभीर संकट में डाल दिया।
साल 2024 में हुई सीमा सुलह ने रिश्तों में आंशिक सुधार की नींव रखी और 2025 में मोदी–शी भेंट ने इसे और मज़बूती देने का संकेत दिया है।
मोदी–शी मुलाकात: प्रमुख निष्कर्ष
तियानजिन में हुई बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक रही।
1. द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की प्रतिबद्धता
- प्रधानमंत्री मोदी ने आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता पर आधारित रिश्तों की आवश्यकता पर बल दिया।
- उन्होंने स्पष्ट किया कि सीमा पर बनी शांति और स्थिरता ही आगे के सहयोग की आधारशिला है।
2. संयोजन और सांस्कृतिक आदान–प्रदान
- भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानों को पुनः शुरू करने की घोषणा हुई।
- कैलाश मानसरोवर यात्रा पाँच वर्षों के अंतराल के बाद कोविड प्रतिबंधों के हटने के बाद फिर से शुरू हुई।
- सांस्कृतिक कार्यक्रमों और शिक्षा–अनुसंधान सहयोग को भी बढ़ाने पर सहमति बनी।
3. अच्छे पड़ोसी और सभ्यताओं का सहयोग
- शी जिनपिंग ने भारत और चीन को “अच्छे पड़ोसी” बनने की आवश्यकता बताई।
- उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से कहा – “हाथी और ड्रैगन को साथ आना चाहिए”, जिससे दोनों प्राचीन सभ्यताओं के सहयोग का संदेश दिया गया।
4. वैश्विक जिम्मेदारियां और बहुध्रुवीय दुनिया
- दोनों नेताओं ने बहुपक्षवाद को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
- यह सहमति बनी कि भारत और चीन का सहयोग एशिया और विश्व की शांति एवं समृद्धि के लिए आवश्यक है।
- अंतरराष्ट्रीय संबंधों में लोकतंत्र और न्यायसंगत व्यापार को बढ़ावा देने पर भी चर्चा हुई।
5. आपसी विकास और गैर–प्रतिस्पर्धा
- मोदी और शी ने साफ किया कि भारत और चीन विकास के साझेदार हैं, न कि प्रतिद्वंद्वी।
- सीमा विवाद को रिश्तों पर हावी नहीं होने देने की बात कही गई।
- दोनों देशों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके संबंध किसी तीसरे देश के दृष्टिकोण से नहीं देखे जाने चाहिए।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO): एक परिचय
स्थापना और विकास
- Shanghai Cooperation Organisation (SCO) की स्थापना वर्ष 2001 में शंघाई में हुई।
- इसकी जड़ें 1996 में बने “शंघाई फाइव” से जुड़ी हैं, जिसमें चीन, रूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान शामिल थे।
- बाद में इसमें भारत और पाकिस्तान (2017) तथा उज़्बेकिस्तान को भी जोड़ा गया।
मुख्यालय
- बीजिंग, चीन।
सदस्यता
- 8 स्थायी सदस्य: चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान।
- अवलोकक सदस्य: अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, मंगोलिया, ईरान (पूर्ण सदस्यता की ओर अग्रसर)।
- संवाद सहयोगी: तुर्की, श्रीलंका, नेपाल, मिस्र, सऊदी अरब, क़तर आदि।
उद्देश्य
- क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना।
- आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ सामूहिक प्रयास।
- आर्थिक कनेक्टिविटी और व्यापारिक सहयोग।
- सांस्कृतिक आदान–प्रदान और लोगों के बीच आपसी संबंध।
- बहुध्रुवीयता और आंतरिक मामलों में गैरहस्तक्षेप।
प्रमुख पहलें
- Regional Anti-Terrorist Structure (RATS) – मुख्यालय ताशकंद।
- SCO डेवलपमेंट बैंक – वित्तीय सहयोग हेतु प्रस्तावित।
- ऊर्जा, परिवहन, कृषि, डिजिटल अर्थव्यवस्था और संस्कृति में सहयोग।
- वार्षिक संयुक्त सैन्य अभ्यास – Peace Mission श्रृंखला।
भारत–चीन संबंधों पर SCO शिखर सम्मेलन का प्रभाव
सीमा विवाद पर संतुलित दृष्टिकोण
Shanghai Cooperation Organisation (SCO) के मंच ने भारत और चीन को एक साझा मंच दिया जहाँ वे सीमा विवाद को द्विपक्षीय संवाद के माध्यम से हल करने की ओर अग्रसर दिखे।
आर्थिक सहयोग की संभावनाएँ
- दोनों देशों की कुल जनसंख्या 2.8 अरब से अधिक है।
- व्यापार, निवेश, डिजिटल तकनीक, ऊर्जा सुरक्षा और परिवहन नेटवर्क में अपार संभावनाएँ हैं।
सांस्कृतिक और धार्मिक कनेक्टिविटी
- कैलाश मानसरोवर यात्रा का पुनः आरंभ धार्मिक और सांस्कृतिक कूटनीति का मजबूत संकेत है।
- शिक्षा और शोध में संयुक्त पहलें एशियाई ज्ञान–परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती हैं।
क्षेत्रीय और वैश्विक संतुलन
- SCO मंच पर भारत और चीन का सहयोग बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूती देगा।
- यह अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव का संतुलन बनाने में सहायक हो सकता है।
चुनौतियाँ
हालाँकि उम्मीदें बढ़ी हैं, लेकिन कई चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं:
- सीमा विवाद – गलवान और अरुणाचल प्रदेश जैसे मुद्दे अब भी अधूरे हैं।
- रणनीतिक प्रतिस्पर्धा – हिंद–प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका और चीन की महत्वाकांक्षाएँ टकरा सकती हैं।
- तीसरे देशों का प्रभाव – अमेरिका, रूस और अन्य देशों की नीतियाँ भारत–चीन संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।
- आर्थिक असंतुलन – चीन के साथ व्यापार घाटा भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
भविष्य की संभावनाएँ
- सीमा पर स्थायी शांति समझौता – आने वाले वर्षों में विश्वास निर्माण के नए प्रयास हो सकते हैं।
- ऊर्जा और व्यापारिक गलियारे – SCO ढाँचे के तहत भारत और चीन नई परियोजनाओं में सहयोग कर सकते हैं।
- शैक्षिक और तकनीकी साझेदारी – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अंतरिक्ष अनुसंधान और डिजिटल अर्थव्यवस्था में सहयोग।
- वैश्विक नेतृत्व में भूमिका – भारत और चीन मिलकर बहुध्रुवीय विश्व में एक मजबूत एशियाई धुरी बन सकते हैं।
भारत–चीन संबंधों के उतार–चढ़ाव का कालक्रम
वर्ष/घटना | विवरण | प्रभाव |
---|---|---|
1950 | भारत ने चीन को आधिकारिक रूप से मान्यता दी | कूटनीतिक संबंधों की शुरुआत |
1954 | पंचशील समझौता (शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धांत) | मित्रता की नींव |
1962 | भारत–चीन युद्ध | रिश्तों में गंभीर अविश्वास और तनाव |
1988 | राजीव गांधी की चीन यात्रा | संबंधों में आंशिक सुधार |
1993–1996 | सीमा शांति समझौते | सीमा पर तनाव कम करने का प्रयास |
2003 | अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा | आर्थिक सहयोग और व्यापार पर बल |
2017 | डोकलाम विवाद | दोनों सेनाओं के बीच टकराव, रिश्तों में खटास |
2020 | गलवान घाटी झड़प | गंभीर सैन्य तनाव और रिश्तों में गिरावट |
2024 | सीमा सुलह वार्ता | रिश्तों में आंशिक सुधार |
2025 | मोदी–शी मुलाकात, SCO शिखर सम्मेलन (तियानजिन) | सहयोग और साझेदारी की नई उम्मीदें |
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की सदस्यता
श्रेणी | देश |
---|---|
स्थायी सदस्य (8) | भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान |
अवलोकक सदस्य | अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, मंगोलिया, ईरान (पूर्ण सदस्यता की ओर अग्रसर) |
संवाद सहयोगी | तुर्की, श्रीलंका, नेपाल, मिस्र, सऊदी अरब, क़तर आदि |
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी का सात साल बाद चीन दौरा और तियानजिन में हुआ SCO शिखर सम्मेलन केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि भारत–चीन संबंधों के लिए नए अध्याय की शुरुआत है।
यह मुलाकात इस संदेश को देती है कि एशिया की दो बड़ी शक्तियाँ प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग का मार्ग चुनकर न केवल अपने नागरिकों बल्कि पूरे विश्व की शांति और समृद्धि में योगदान दे सकती हैं।
“हाथी और ड्रैगन” का साथ आना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था को नया स्वरूप देने वाला कदम भी हो सकता है।