31 अगस्त से 1 सितम्बर 2025 तक चीन के तिआनजिन शहर में 25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। यह सम्मेलन एशिया और यूरेशिया की राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संरचना को प्रभावित करने वाला प्रमुख बहुपक्षीय मंच है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और सुरक्षा, संपर्क तथा अवसर जैसे तीन स्तंभों पर आधारित भारत की SCO नीति को सामने रखा।
प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन केवल औपचारिक भाषण नहीं था, बल्कि इसमें भारत की सामरिक प्राथमिकताएँ, क्षेत्रीय स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता और वैश्विक शासन सुधार की आवश्यकता स्पष्ट रूप से झलकी।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO): एक परिचय और प्रासंगिकता
शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी। इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।
SCO के वर्तमान सदस्य देश (2025 में):
- चीन
- रूस
- भारत
- पाकिस्तान
- कज़ाख़स्तान
- किर्गिज़स्तान
- ताजिकिस्तान
- उज़्बेकिस्तान
- ईरान (हाल ही में पूर्ण सदस्य बना)
SCO अब दुनिया की सबसे बड़ी क्षेत्रीय संगठनात्मक इकाई है, जो जनसंख्या, भू-भाग और अर्थव्यवस्था—तीनों ही दृष्टियों से अत्यंत प्रभावशाली है।
भारत के लिए SCO महत्वपूर्ण है क्योंकि:
- यह मध्य एशिया के देशों के साथ गहरे रिश्ते बनाने का अवसर देता है।
- क्षेत्रीय आतंकवाद और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक मंच प्रदान करता है।
- ऊर्जा सुरक्षा, संपर्क परियोजनाएँ और सांस्कृतिक सहयोग को प्रोत्साहन देता है।
SCO के प्रमुख तथ्य
बिंदु | विवरण |
---|---|
स्थापना वर्ष | 2001 |
संस्थापक देश | चीन, रूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान |
मुख्यालय | बीजिंग, चीन |
आधिकारिक भाषाएँ | चीनी, रूसी |
वर्तमान सदस्य (2025) | भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, ईरान, कज़ाख़स्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान |
उद्देश्य | क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोध, आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान |
प्रधानमंत्री मोदी का तिआनजिन संबोधन: तीन स्तंभों पर आधारित दृष्टि
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की SCO नीति को तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित बताया:
- सुरक्षा (Security)
- आतंकवाद, आतंकी वित्तपोषण और कट्टरपंथ को सबसे बड़ी चुनौतियों के रूप में रेखांकित किया।
- शून्य सहनशीलता (Zero Tolerance) की नीति दोहराई।
- आतंकवाद पर “दोहरा रवैया” अपनाने वाले देशों की आलोचना की।
- सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों से जवाबदेही तय करने की मांग की।
- पहलगाम आतंकी हमले के बाद SCO देशों द्वारा दिखाई गई एकजुटता के लिए आभार व्यक्त किया।
- संपर्क (Connectivity)
- संपर्क और बुनियादी ढाँचा विकास को विश्वास निर्माण का साधन बताया।
- चाबहार पोर्ट को मध्य एशिया के द्वार के रूप में प्रस्तुत किया।
- अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) को व्यापार एकीकरण का माध्यम बताया।
- डिजिटल और भौतिक संपर्क को साझा विकास का आधार बनाने पर बल दिया।
- अवसर (Opportunities)
- नवाचार, स्टार्टअप्स और प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ावा देने पर बल दिया।
- युवा आदान-प्रदान और शिक्षा सहयोग को प्रोत्साहित करने की अपील की।
- सांस्कृतिक संवाद और सभ्यताओं के बीच आपसी समझ को नई ऊँचाई देने की आवश्यकता जताई।
आतंकवाद पर भारत का सख्त रुख
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का सबसे बड़ा संदेश आतंकवाद के मुद्दे पर सामने आया। भारत ने साफ किया कि:
- आतंकवाद के किसी भी रूप के प्रति सहनशीलता अस्वीकार्य है।
- आतंकवादी फंडिंग नेटवर्क को खत्म करने के लिए साझा कार्ययोजना की आवश्यकता है।
- “दोहरा रवैया” अपनाने वाले देशों की पहचान कर उन्हें जिम्मेदार ठहराना होगा।
यह संदेश अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की ओर इशारा करता था, जिसे लंबे समय से भारत सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा देने का दोषी ठहराता रहा है।
भारत की SCO यात्रा का कालक्रम (2001–2025)
वर्ष | घटना |
---|---|
2001 | SCO की स्थापना (भारत तब तक सदस्य नहीं था) |
2005 | भारत को SCO में पर्यवेक्षक (Observer) का दर्जा मिला |
2015 | उफ़ा शिखर सम्मेलन में भारत की सदस्यता प्रक्रिया प्रारंभ हुई |
2017 | भारत पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ |
2019 | बिश्केक शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने आतंकवाद पर कठोर रुख अपनाया |
2020 | COVID-19 काल में भारत ने वर्चुअल शिखर सम्मेलन में डिजिटल सहयोग पर जोर दिया |
2022 | समरकंद शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने “मानव-केंद्रित वैश्वीकरण” की बात रखी |
2023 | भारत ने पहली बार SCO की अध्यक्षता की और नई दिल्ली शिखर सम्मेलन आयोजित किया |
2025 | तिआनजिन (चीन) में 25वें SCO शिखर सम्मेलन में मोदी ने सुरक्षा, संपर्क और अवसर पर आधारित दृष्टि प्रस्तुत की |
क्षेत्रीय संपर्क और भारत की रणनीतिक परियोजनाएँ
भारत ने SCO मंच का उपयोग करते हुए अपनी कनेक्टिविटी परियोजनाओं को रेखांकित किया।
- चाबहार पोर्ट: ईरान स्थित यह बंदरगाह भारत और मध्य एशिया को जोड़ने वाला रणनीतिक द्वार है।
- INSTC (International North-South Transport Corridor): यह परियोजना भारत, ईरान, रूस और मध्य एशिया को जोड़ते हुए यूरोप तक व्यापार मार्ग उपलब्ध कराती है।
- डिजिटल संपर्क: भारत ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) मॉडल साझा करने का प्रस्ताव दिया, जिसे अब कई देश अपनाने लगे हैं।
इन पहलों का उद्देश्य केवल व्यापार नहीं है, बल्कि विश्वास निर्माण और क्षेत्रीय शांति की दिशा में योगदान देना भी है।
सभ्यतागत संवाद मंच का प्रस्ताव
प्रधानमंत्री मोदी ने SCO के तहत एक नया प्रस्ताव रखा – सभ्यतागत संवाद मंच।
- यह मंच साझा इतिहास, धरोहर और परंपराओं पर केंद्रित होगा।
- युवाओं, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में मौजूदा प्रयासों को मजबूत करेगा।
- यह भारत की “सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी” का हिस्सा है, जो संवाद और सांस्कृतिक सद्भावना को बढ़ावा देती है।
SCO सुधार और वैश्विक शासन
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि SCO को समयानुकूल सुधार करने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया:
- संगठित अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के लिए नए केंद्रों की स्थापना।
- साइबर सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए संयुक्त पहल।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) सुधार का समर्थन, ताकि 21वीं सदी की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित किया जा सके।
- नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यवस्था का समर्थन, जिसमें ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं को जगह मिले।
राजनयिक परिणाम और तिआनजिन घोषणा
सम्मेलन का समापन तिआनजिन घोषणा के अनुमोदन के साथ हुआ।
- इसमें शांति और सुरक्षा के प्रति साझा प्रतिबद्धता को दोहराया गया।
- ऊर्जा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सतत विकास में साझेदारी को गहराने का संकल्प लिया गया।
- “मानवता के साझा भविष्य” (Shared Future of Humanity) की दिशा में सामूहिक जिम्मेदारी पर जोर दिया गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर:
- सम्मेलन की मेज़बानी के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का धन्यवाद किया।
- SCO की अगली अध्यक्षता सँभालने पर किर्गिज़स्तान को बधाई दी।
भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि और SCO की भूमिका
इस सम्मेलन की एक और खासियत यह रही कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत हुई। दोनों देशों के बीच सीमाई तनाव, व्यापार असंतुलन और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद SCO मंच ने एक संवाद का अवसर उपलब्ध कराया।
भारत के लिए SCO न केवल चीन और रूस के साथ बहुपक्षीय संवाद का मंच है, बल्कि यह मध्य एशिया और यूरेशिया तक पहुँचने का रणनीतिक माध्यम भी है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: भारत का उदय और SCO
भारत ने तिआनजिन सम्मेलन में जिस तरह अपनी प्राथमिकताएँ रखीं, वह उसके वैश्विक कद को भी दर्शाता है।
- भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक शासन सुधार की मांग करने वाला अग्रणी देश है।
- SCO के भीतर भारत की भूमिका “सेतु” की तरह है, जो ग्लोबल साउथ की आवाज़ को बड़े मंच तक पहुँचाता है।
निष्कर्ष
25वाँ शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन भारत के लिए एक अवसर था, जहाँ उसने अपनी तीन-स्तंभ आधारित दृष्टि को स्पष्ट किया: सुरक्षा, संपर्क और अवसर। प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन आतंकवाद विरोधी रुख, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, सांस्कृतिक संवाद और वैश्विक शासन सुधार जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहा।
भारत ने यह दिखाया कि उसकी विदेश नीति केवल सुरक्षा और रणनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि वह मानवता के साझा भविष्य, सतत विकास और सांस्कृतिक सद्भावना पर भी समान रूप से ध्यान देती है।
यह सम्मेलन भारत के लिए अपने पड़ोसी देशों और यूरेशिया के साथ संबंध गहराने का अवसर भी रहा, साथ ही वैश्विक मंच पर अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को पुनः स्थापित करने का माध्यम भी।
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