भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को 18 मई 2025 को उस समय एक झटका लगा जब उसका भरोसेमंद रॉकेट पीएसएलवी-C61 मिशन (PSLV-C61 मिशन) विफल हो गया। यह मिशन भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसका उद्देश्य एक उन्नत पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-09 को सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा (SSPO) में स्थापित करना था। ISRO के रेकॉर्ड में यह एक दुर्लभ असफलता मानी जा रही है क्योंकि PSLV ने अब तक लगभग अचूक विश्वसनीयता का प्रदर्शन किया है। इस लेख में हम PSLV-C61 मिशन की असफलता के तकनीकी कारणों, मिशन की पृष्ठभूमि, EOS-09 उपग्रह के महत्व और ISRO की प्रतिक्रिया का गहन विश्लेषण करेंगे।
ISRO का PSLV-C61 मिशन की पृष्ठभूमि और उद्देश्य
ISRO द्वारा 18 मई 2025 को लॉन्च किया गया PSLV-C61 मिशन अपने साथ EOS-09 नामक एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ले जा रहा था। इस उपग्रह को सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा (Sun Synchronous Polar Orbit – SSPO) में स्थापित करने का लक्ष्य था। इस कक्षा में उपग्रह पृथ्वी के ऊपर से इस प्रकार गुजरता है कि वह हर स्थान को एक ही स्थानीय सौर समय पर देख सकता है, जिससे स्थायी और तुलनात्मक रिमोट सेंसिंग डेटा एकत्र करना संभव होता है।
EOS-09 का उद्देश्य उच्च-रिज़ॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) के माध्यम से हर मौसम में पृथ्वी का अवलोकन करना था। यह उपग्रह कृषि, वानिकी, जल प्रबंधन, मृदा आर्द्रता विश्लेषण और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में उपयोगी डेटा प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया था।
PSLV-C61 मिशन की प्रमुख जानकारी
- लॉन्च तिथि: 18 मई 2025
- लॉन्च समय: प्रातः 5:59 बजे IST
- लॉन्च स्थल: सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा
- रॉकेट कॉन्फ़िगरेशन: PSLV-XL (एक्स्ट्रा लार्ज वर्जन)
- उपग्रह का नाम: EOS-09
- उपग्रह का वजन: 1,696.24 किलोग्राम
- मिशन जीवनकाल: लगभग 5 वर्ष
- रॉकेट की उड़ान संख्या: PSLV की 63वीं उड़ान
- ISRO मिशन संख्या: 101वां मिशन
PSLV-C61 की असफलता: तकनीकी पहलू
PSLV रॉकेट को ISRO के सबसे सफल और भरोसेमंद प्रक्षेपण यानों में से एक माना जाता है। यह चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है, जिसमें पहले और तीसरे चरण ठोस ईंधन पर आधारित होते हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण तरल ईंधन पर। PSLV-C61 मिशन की शुरुआत अच्छी रही और इसके पहले तथा दूसरे चरणों ने अपेक्षित प्रदर्शन किया।
हालांकि, तीसरे चरण में समस्या उत्पन्न हुई। प्रारंभिक जांच से पता चला कि इस चरण की ठोस रॉकेट मोटर के चैम्बर प्रेशर (दबाव) में असामान्य गिरावट दर्ज की गई। इस गिरावट के पीछे मुख्य रूप से फ्लेक्स नोजल की खराबी को कारण माना जा रहा है। फ्लेक्स नोजल वह प्रणाली होती है जो रॉकेट को दिशा नियंत्रण प्रदान करती है। इसके ठीक से काम न करने के कारण रॉकेट की दिशा और वेग में विचलन आया और उपग्रह को सही कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका।
PSLV का रिकॉर्ड: क्यों यह असफलता महत्वपूर्ण है
PSLV को ISRO के इतिहास में “वर्कहॉर्स” कहा जाता है। इसकी शुरुआत 1993 में हुई थी और तब से यह लगभग अचूक विश्वसनीयता का प्रतीक बन गया है। PSLV-C61 से पहले इसकी केवल दो असफलताएं दर्ज हुई थीं:
- PSLV-D1 (1993): पहला डेमो फ्लाइट, जिसमें सैटेलाइट सफलतापूर्वक स्थापित नहीं हो सका।
- PSLV-C39 (2017): हीट शील्ड न खुलने के कारण IRNSS-1H सैटेलाइट विफल रहा।
इस प्रकार PSLV-C61 तीसरी बड़ी असफलता के रूप में दर्ज हुई है, जो कि इसके 30 वर्षों के लंबे सफल इतिहास के अनुपात में एक अपवाद है। हाल ही में दिसंबर 2024 में लॉन्च किए गए SpaDeX मिशन की सफलता के बाद इस मिशन की असफलता ने ISRO को पुनः परीक्षण और समीक्षा के लिए विवश किया है।
EOS-09 उपग्रह का महत्व
EOS-09 एक अत्याधुनिक पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट था, जिसे ‘RISAT-1’ तकनीकी प्लेटफॉर्म पर आधारित किया गया था। इसमें लगे सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) के माध्यम से यह उपग्रह बादल, धूल या अंधकार की स्थिति में भी पृथ्वी की सतह का चित्रण करने में सक्षम था।
प्रमुख विशेषताएं:
- SAR क्षमता: हर मौसम में अवलोकन, दिन-रात काम करने की क्षमता
- डेटा उपयोगिता: कृषि उत्पादन की निगरानी, वन संरक्षण, जलवायु परिवर्तन अध्ययन
- आपदा प्रबंधन: बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात जैसी घटनाओं की निगरानी
- रिमोट सेंसिंग: मृदा आर्द्रता, भूमि उपयोग, शहरी विकास आदि के लिए प्रासंगिक डेटा
ISRO की प्रतिक्रिया
ISRO अध्यक्ष वी. नारायणन ने प्रेस वार्ता में इस तकनीकी गड़बड़ी की पुष्टि की और बताया कि एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया गया है। यह समिति चरणबद्ध रूप से मिशन की असफलता के कारणों की विस्तृत जांच करेगी। पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ ने भी ISRO की तकनीकी क्षमता पर विश्वास जताते हुए कहा कि ऐसी असफलताएं संगठन के लिए सीखने का अवसर बनती हैं।
हाल की अन्य चुनौतियां
PSLV-C61 से पहले जनवरी 2025 में लॉन्च किए गए NVS-02 मिशन में भी तकनीकी खराबी देखने को मिली थी, जिसमें वाल्व से जुड़ी समस्या के कारण उपग्रह की कक्षा में हल्का विचलन आया था। इन घटनाओं ने ISRO की प्रक्षेपण प्रणालियों में पुनरीक्षण और परीक्षण प्रोटोकॉल को सख्त करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
बढ़ती तकनीकी जटिलता: एक चुनौती
आज के अंतरिक्ष मिशन अत्यंत जटिल होते जा रहे हैं। जहां पहले रॉकेट का लक्ष्य केवल उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचाना होता था, वहीं अब इनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे उपग्रह को अत्यधिक सटीकता के साथ एक विशेष कक्षा में स्थापित करें। यह सटीकता प्राप्त करने के लिए फ्लेक्स नोजल नियंत्रण, चरण पृथक्करण, थ्रस्ट वेक्टरिंग, और सटीक टाइमिंग जैसी प्रणालियों में बहुत उच्च स्तर की परिशुद्धता की आवश्यकता होती है।
भविष्य की दिशा
ISRO अब इस असफलता से सबक लेकर आगामी मिशनों की योजना बना रहा है। निम्नलिखित कदमों की संभावना जताई जा रही है:
- प्रणोदन प्रणाली की समीक्षा: तीसरे चरण के फ्लेक्स नोजल के डिज़ाइन और निर्माण प्रक्रिया की पुनः जाँच
- मानव-मशीन इंटरफेस सुधार: डेटा लॉगिंग और निगरानी प्रणालियों की संवेदनशीलता बढ़ाना
- अधिक जमीनी परीक्षण: प्रक्षेपण से पहले विस्तृत मॉक रन और सिमुलेशन
विफलता नहीं, एक सीख
PSLV-C61 मिशन की विफलता ISRO के लिए एक अस्थायी झटका अवश्य है, लेकिन यह विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सामान्य है। अंतरिक्ष अभियान अत्यधिक जटिल और चुनौतीपूर्ण होते हैं। NASA, ESA, JAXA और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों को भी समय-समय पर ऐसी असफलताओं का सामना करना पड़ा है।
ISRO ने अपने सीमित संसाधनों में भी जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे प्रेरणादायक हैं। PSLV-C61 की असफलता से न केवल संगठन को सीखने का अवसर मिलेगा, बल्कि यह भविष्य में और अधिक सुदृढ़ तकनीक विकसित करने की प्रेरणा भी देगा।
PSLV-C61 मिशन की विफलता एक चेतावनी है कि अंतरिक्ष विज्ञान में कोई तकनीक अचूक नहीं होती। यह विफलता तकनीकी पुनः मूल्यांकन, डिजाइन पुनरावलोकन और परीक्षण प्रक्रियाओं में कठोरता की आवश्यकता को दर्शाती है। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम निरंतर आगे बढ़ रहा है और ऐसी असफलताएं इस यात्रा का हिस्सा हैं। ISRO की पारदर्शिता और तत्परता यह दर्शाती है कि वह सीखने और सुधार करने में सक्षम और प्रतिबद्ध है।
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