भाषा किसी भी राष्ट्र की आत्मा होती है। वह केवल संप्रेषण का माध्यम ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक बंधन, राष्ट्रीय चेतना और सामूहिक अस्मिता का सशक्त प्रतीक भी होती है। भारत जैसे बहुभाषी एवं बहुसांस्कृतिक देश में भाषा का प्रश्न सदैव महत्वपूर्ण रहा है। यहाँ सैकड़ों बोलियाँ और अनेकों प्रमुख भाषाएँ बोली जाती हैं, जो देश की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं।
इसी विविधता के बीच एक ऐसी भाषा की आवश्यकता अनुभव की गई, जो देश की बहुसंख्यक जनता द्वारा बोली-समझी जाए, जो राष्ट्रीय एकता की धुरी बने और पूरे देश को जोड़ने वाली कड़ी का कार्य करे। इस संदर्भ में हिन्दी स्वभावतः राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई। यह भाषा न केवल जनसाधारण की भाषा है, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता से गहरे स्तर पर जुड़ी हुई है।
राष्ट्रभाषा की समस्या
भारत जैसे विशाल एवं विविधतापूर्ण देश में राष्ट्रभाषा का निर्धारण सरल कार्य नहीं था। विभिन्न राज्यों में अलग-अलग भाषाएँ प्रमुख रूप से बोली जाती हैं — जैसे बंगाल में बंगला, तमिलनाडु में तमिल, महाराष्ट्र में मराठी, गुजरात में गुजराती, कर्नाटक में कन्नड़ इत्यादि।
इस बहुभाषिक परिदृश्य में प्रश्न उठता है— भारत की राष्ट्रभाषा कौन हो?
कौन-सी भाषा वह स्थान प्राप्त करे जो समस्त देश का प्रतिनिधित्व कर सके?
एक ओर भाषायी भावनाएँ, दूसरी ओर क्षेत्रीय आग्रह, और तीसरी ओर विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व — सब मिलकर राष्ट्रभाषा के प्रश्न को जटिल बना देते हैं। तथापि, भारतीय जनमानस की सहज भाषा होने के कारण हिन्दी इस समस्या का स्वाभाविक समाधान बनकर उभरती है।
राष्ट्रभाषा का अर्थ
राष्ट्रभाषा वह भाषा होती है—
- जिसे राष्ट्र की बहुसंख्यक जनता बोलती-समझती हो।
- जिसके माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर प्रशासन एवं संवाद सरलता से संचालित हो सके।
- जो देश के इतिहास, संस्कृति और सभ्यता से गहराई से जुड़ी हो।
- जिसका शब्द-सामर्थ्य समृद्ध हो और जो अन्य भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने में सक्षम हो।
इन मापदंडों पर देखने से स्पष्ट होता है कि हिन्दी न केवल अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली-समझी जाती है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी समस्त राष्ट्र को जोड़ने का सामर्थ्य रखती है।
भारत की राष्ट्रभाषा — हिन्दी
हिन्दी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह उत्तर भारत के विस्तृत भूभाग में व्यापक रूप से प्रचलित है, जिसमें शामिल हैं—
- हिमाचल प्रदेश
- हरियाणा
- दिल्ली
- उत्तर प्रदेश
- बिहार
- मध्य प्रदेश
- राजस्थान
इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा और उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी बड़ी संख्या में लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। अनुमानतः लगभग 50 करोड़ से अधिक लोग हिन्दीभाषी हैं।
इसी व्यापकता और जन-स्वीकृति को देखते हुए भारतीय संविधान की धारा 343 के अंतर्गत हिन्दी को “राजभाषा” के रूप में मान्यता प्रदान की गई। चूँकि यह बहुसंख्यक जन का व्यवहारिक माध्यम है, अतः इसे राष्ट्र की भाषा कहना भी तर्कसंगत और स्वाभाविक है।
राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी की विशेषताएँ
हिन्दी में वे सभी गुण विद्यमान हैं जो किसी राष्ट्रभाषा के लिए अनिवार्य माने जाते हैं—
(क) सांस्कृतिक जुड़ाव
हिन्दी भारत की प्राचीन भाषाओं—
संस्कृत, प्राकृत, पाली और अपभ्रंश—से विकसित हुई है।
इसका साहित्य विशाल, समृद्ध और उच्च कोटि का है।
(ख) सरलता और सहजता
हिन्दी का व्याकरण सरल है, शब्द-रचना सहज है, तथा इसका उच्चारण अधिकांशतः वैसा ही होता है जैसा लिखा जाता है।
(ग) शब्द-सम्पदा की समृद्धि
हिन्दी में—
- संस्कृत
- फारसी
- अरबी
- उर्दू
- अंग्रेजी
- क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं
—सभी से शब्द लेने-पचाने की अद्भुत क्षमता है।
(घ) सर्वग्राह्यता
हिन्दी किसी एक क्षेत्र की भाषा न रहकर आखिल भारतीय भाषा बन चुकी है।
(ङ) आधुनिकता एवं तकनीकी विकास
तकनीकी, वैज्ञानिक, विधिक और प्रशासनिक शब्दावलियों का निर्माण लगातार हो रहा है। आज हिन्दी में उच्च शिक्षा और अनुसंधान भी सहजता से संभव है।
राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय स्वाभिमान
राष्ट्रभाषा केवल भाषा नहीं, बल्कि राष्ट्र के गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक होती है। जिस प्रकार—
- राष्ट्रीय ध्वज,
- राष्ट्रगान,
- राष्ट्रीय प्रतीक
राष्ट्रभावना को जगाते हैं, उसी प्रकार राष्ट्रभाषा भी नागरिकों में एकता और सम्मान की भावना विकसित करती है।
महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राजगोपालचारी, अबुल कलाम आजाद, गोविंद बल्लभ पंत जैसे नेताओं ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान हिन्दी को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया और इसे राष्ट्रभाषा के योग्य माना।
यदि हम अपनी भाषा से हीनता का अनुभव करेंगे, तो राष्ट्रीय स्वाभिमान कमजोर होगा। राष्ट्रभाषा को अपनाकर ही हम आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक गौरव को सुदृढ़ कर सकते हैं।
राष्ट्रभाषा और राजभाषा का अंतर
राष्ट्रभाषा :
वह भाषा जो देश की बहुसंख्यक जनता की भाषा हो और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में स्वीकृत हो।
राजभाषा :
वह भाषा जिसमें प्रशासन, शासन और सरकारी कामकाज संचालित हो।
भारत में हिन्दी दोनों भूमिकाएँ निभाती है—
यह राष्ट्रभाषा का स्थान भी रखती है और भारतीय संघ की राजभाषा भी है।
संविधान की—
- धारा 343 हिन्दी को राजभाषा घोषित करती है
- धारा 351 हिन्दी के विकास और प्रचार-प्रसार का निर्देश देती है
इसी आधार पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, हिन्दी सलाहकार समितियाँ और अनेक सरकारी उपक्रम कार्य कर रहे हैं।
हिन्दी-विरोध के कारण
हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने के विरुद्ध कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से तमिलनाडु में विरोध हुआ। इसके कारण—
- क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति भावनात्मक लगाव
- यह भ्रम कि हिन्दी थोपे जाने से स्थानीय भाषाओं का विकास रुक जाएगा
- राजनीतिक दलों द्वारा भाषायी मुद्दों का लाभ लेना
विरोधाभास यह है कि जो लोग हिन्दी का विरोध करते हैं, वे अंग्रेजी का समर्थन करते हैं—जो भारत की नहीं, बल्कि विदेशी भाषा है।
स्वतंत्रता के बाद भी अंग्रेजी का वर्चस्व बना रहा क्योंकि उच्च वर्ग और प्रशासनिक तंत्र ने इसे प्रतिष्ठा का प्रतीक माना। यही मानसिक गुलामी हिन्दी के प्रसार में बाधक रही है।
अंग्रेजी बनाम हिन्दी
भारत में वास्तविक संघर्ष किसी भारतीय भाषा और हिन्दी के बीच नहीं, बल्कि अंग्रेजी और हिन्दी के बीच है।
अंग्रेजी के पक्ष में तर्क—
- इसे उच्च वर्ग और पढ़े-लिखे लोग प्रतिष्ठा की भाषा समझते हैं
- अंग्रेजी बोलने वाले को अधिक सम्मान मिलता है
- इसे वैश्विक भाषा समझा जाता है
वास्तविकता—
- विश्व के बड़े देश अपनी-अपनी भाषाओं में शिक्षा और प्रशासन करते हैं (जैसे चीन, रूस, जापान, जर्मनी, फ्रांस)
- अंग्रेजी भारत की केवल एक छोटे प्रतिशत आबादी की भाषा है
- अंग्रेजी न भारत की संस्कृति से जुड़ी है, न जनमानस से
अतः राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक स्वाभिमान के लिए हिन्दी को अपनाना अनिवार्य है।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का प्रसिद्ध कथन आज भी प्रासंगिक है—
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।”
हिन्दी की सामर्थ्य
हिन्दी में राष्ट्रभाषा बनने की संपूर्ण क्षमता है—
- इसकी शब्द-सम्पदा अत्यंत समृद्ध है
- यह वैज्ञानिक, तकनीकी और कानूनी शब्दों को आसानी से आत्मसात कर लेती है
- उच्च शिक्षा के लिए यह उपयुक्त बन चुकी है
- यह भारत के हर क्षेत्र में समझी जाती है
- अनुवाद, संचार, मीडिया, सिनेमा, रेडियो, टेलीविज़न—सबमें हिन्दी प्रमुख है
आज हिन्दी विश्व की बड़ी भाषाओं में गिनी जाती है और वैश्विक मंच पर भी इसकी प्रतिष्ठा बढ़ी है।
हिन्दी के प्रति हमारा कर्तव्य
राष्ट्रभाषा केवल सरकारी घोषणाओं से नहीं बनती; उसे जनता का प्रेम और व्यवहारिक उपयोग ही सशक्त बनाते हैं।
प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है—
- हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग करें
- हिन्दी में हस्ताक्षर करें
- हिन्दी में पत्र-विनिमय करें
- हिन्दी में भाषण, लेखन और संवाद को बढ़ावा दें
- हिन्दी को हीन समझने की भूल न करें
- सरकारी कर्मचारी अधिक से अधिक कार्य हिन्दी में करें
- तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी हिन्दी का उपयोग बढ़ाएँ
जब हिन्दी हमारे मन, व्यवहार और जीवन का हिस्सा बन जाएगी, तभी यह सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा बनेगी।
उपसंहार
हिन्दी भारत की आत्मा है— यह कथन महात्मा गांधी का था। उन्होंने हिन्दी को भारतीय जनमानस की भाषा के रूप में पहचाना और राष्ट्रीय आंदोलन में इसे संपर्क एवं एकता का माध्यम बनाया।
आज आवश्यकता है कि—
- हम हिन्दी को सम्मान दें
- इसके प्रयोग में हिचक महसूस न करें
- इसकी श्रेष्ठता को पहचानें
- इसे आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनाएं
जिस दिन भारतवासी हिन्दी के प्रयोग में हीनता का भाव छोड़ देंगे और इसे गर्व व गौरव का प्रतीक समझेंगे, उसी दिन हिन्दी का वास्तविक स्वर्णयुग आरम्भ होगा। हिन्दी राष्ट्र की भावना को एक सूत्र में बांधने वाली शक्ति है और समय आ गया है कि हम इसे उसकी वास्तविक प्रतिष्ठा दिलाएं।
हिन्दी केवल भाषा नहीं — राष्ट्रीय अस्मिता, सांस्कृतिक वैभव और एकता की जीवनदायिनी धारा है।
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