गोदान उपन्यास | भाग 10 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 10

10.हीरा का कहीं पता न चला और दिन गुज़रते जाते थे। होरी से जहाँ तक दौड़धूप हो सकी की; फिर हारकर बैठ रहा। खेती-बारी की भी फ़िक्र करनी थी। अकेला आदमी क्या-क्या करता। और अब अपनी खेती से ज़्यादा फ़िक्र थी पुनिया की खेती की। पुनिया अब अकेली होकर और भी प्रचंड हो गयी थी। … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 9 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 9 – मुंशी प्रेमचंद

9.प्रातःकाल होरी के घर में एक पूरा हंगामा हो गया। होरी धनिया को मार रहा था। धनिया उसे गालियाँ दे रही थी। दोनों लड़कियाँ बाप के पाँवों से लिपटी चिल्ला रही थीं और गोबर माँ को बचा रहा था। बार-बार होरी का हाथ पकड़कर पीछे ढकेल देता; पर ज्योंही धनिया के मुँह से कोई गाली … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 8 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 8 – मुंशी प्रेमचंद

8.जब से होरी के घर में गाय आ गयी है, घर की श्री ही कुछ और हो गयी है। धनिया का घमंड तो उसके सँभाल से बाहर हो-हो जाता है। जब देखो गाय की चर्चा। भूसा छिज गया था। ऊख में थोड़ी-सी चरी बो दी गयी थी। उसी की कुट्टी काटकर जानवरों को खिलाना पड़ता … Read more

कबीर दास जी के दोहे एवं उनका अर्थ | साखी, सबद, रमैनी

कबीर दास जी के दोहे

कबीर दास जी के दोहे अपने अन्दर मानव कल्याणकारी गुणों को समेटे हुए हैं, यही कारण है कि कबीर दास जी के दोहे विश्व प्रसिद्ध तथा अत्यंत लोकप्रिय हैं। कबीर दास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। कबीर दास जी को पढना लिखना नहीं आता था। कबीर दास जी की … Read more

कबीर दास जी | जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ एवं भाषा

कबीर दास

कबीर दास जी भारत के एक महान संत तथा हिंदी साहित्य की मध्यकालीन भक्ति-साहित्य की निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के अत्यंत महत्त्वपूर्ण और विद्रोही संत-कवि के रूप में जाने जाते हैं, जो जीवन पर्यन्त समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। कबीर दास जी हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। … Read more

आख़िरी तोहफ़ा | कहानी – मुंशी प्रेमचंद

आख़िरी तोहफ़ा

1सारे शहर में सिर्फ एक ऐसी दुकान थी, जहाँ विलायती रेशमी साड़ी मिल सकती थीं। और सभी दुकानदारों ने विलायती कपड़े पर कांग्रेस की मुहर लगवायी थी। मगर अमरनाथ की प्रेमिका की फ़रमाइश थी, उसको पूरा करना जरुरी था। वह कई दिन तक शहर की दुकानोंका चक्कर लगाते रहे, दुगुना दाम देने पर तैयार थे, … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 7 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 7 – मुंशी प्रेमचंद

7. यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी; मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता देखने गये और आदि से अन्त तक जमे रहे। उन्हें बड़ा मज़ा आ रहा था। बीच-बीच में तालियाँ बजाते थे … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 6 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 6 – मुंशी प्रेमचंद

6.जेठ की उदास और गर्म सन्ध्या सेमरी की सड़कों और गलियों में पानी के छिड़काव से शीतल और प्रसन्न हो रही थी। मंडप के चारों तरफ़ फूलों और पौधों के गमले सजा दिये गये थे और बिजली के पंखे चल रहे थे। राय साहब अपने कारख़ाने में बिजली बनवा लेते थे। उनके सिपाही पीली वर्दियाँ … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 5 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास भाग 5

5.उधर गोबर खाना खाकर अहिराने में पहुँचा। आज झुनिया से उसकी बहुत-सी बातें हुई थीं। जब वह गाय लेकर चला था, तो झुनिया आधे रास्ते तक उसके साथ आयी थी। गोबर अकेला गाय को कैसे ले जाता। अपरिचित व्यक्ति के साथ जाने में उसे आपत्ति होना स्वाभाविक था। कुछ दूर चलने के बाद झुनिया ने … Read more

गोदान उपन्यास | भाग 4 – मुंशी प्रेमचंद

गोदान उपन्यास | भाग 4 – मुंशी प्रेमचंद

4.होरी को रात भर नींद नहीं आयी। नीम के पेड़-तले अपनी बाँस की खाट पर पड़ा बार-बार तारों की ओर देखता था। गाय के लिए एक नाँद गाड़नी है। बैलों से अलग उसकी नाँद रहे तो अच्छा। अभी तो रात को बाहर ही रहेगी; लेकिन चौमासे में उसके लिए कोई दूसरी जगह ठीक करनी होगी। … Read more

सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.