प्राचीन मंगल महासागर के साक्ष्य | झुरोंग रोवर की ऐतिहासिक खोज

मंगल ग्रह पर जल की उपस्थिति और उसके भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने की दिशा में झुरोंग रोवर ने एक महत्वपूर्ण खोज की है। झुरोंग रोवर, जो चीन के तियानवेन-1 मिशन का हिस्सा था, ने 15 मई 2021 को यूटोपिया प्लैनिशिया क्षेत्र में उतरकर ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) की सहायता से सतह के नीचे 80 मीटर गहराई तक स्कैन किया। इसके निष्कर्षों से यह संकेत मिलता है कि 5 से 4 अरब वर्ष पहले मंगल ग्रह पर एक विशाल महासागर था, जो पृथ्वी के समुद्रों के समान था।

इस महासागर की सतह पर समुद्र तट जैसी संरचनाएँ, तरंगों और ज्वार-भाटे के प्रभाव के प्रमाण मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि मंगल का वातावरण उस समय अधिक गर्म और घना था। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह महासागर लाखों वर्षों तक स्थायी रहा होगा, जिससे वहाँ जीवन पनपने की संभावनाएँ भी बनीं। इस खोज ने मंगल के जलवायु परिवर्तन, भूगर्भीय संरचनाओं और अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना को समझने में नया दृष्टिकोण दिया है।

मंगल ग्रह पर जल की उपस्थिति | एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

मंगल ग्रह, जिसे लाल ग्रह के नाम से जाना जाता है, हमेशा से वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्यमयी विषय रहा है। दशकों से, खगोलविद और वैज्ञानिक इस बात की खोज कर रहे हैं कि क्या कभी मंगल पर तरल पानी मौजूद था और यदि हां, तो वह कब और कितने समय तक रहा। हाल ही में, चीन के झुरोंग रोवर ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण खोज की है, जिससे यह संकेत मिलता है कि मंगल पर कभी एक विशाल महासागर था। इस खोज ने मंगल के जलवायु और भूवैज्ञानिक इतिहास को बेहतर समझने के लिए नए द्वार खोल दिए हैं।

झुरोंग रोवर और उसकी ऐतिहासिक खोज

झुरोंग रोवर, चीन के तियानवेन-1 मिशन का हिस्सा, 15 मई 2021 को यूटोपिया प्लैनिशिया के दक्षिणी क्षेत्र में उतरा था। यह रोवर मंगल की सतह और उसकी उपसतही संरचना की जांच करने के लिए भेजा गया था। इसकी नाममात्र जीवन अवधि 90 सोल (93 पृथ्वी दिन) थी, लेकिन इसने अपेक्षा से अधिक 347 सोल (358 दिन) तक कार्य किया। इस दौरान, इसने ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) का उपयोग करते हुए मंगल की सतह के 80 मीटर (260 फीट) नीचे तक की जांच की।

रेडार स्कैनिंग के निष्कर्ष

झुरोंग रोवर द्वारा की गई ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) स्कैनिंग के परिणाम अत्यंत चौंकाने वाले थे। इस स्कैनिंग में निम्नलिखित निष्कर्ष सामने आए:

  1. सतह के नीचे 10-35 मीटर मोटी रेत की परतें पाई गईं, जिनकी संरचना पृथ्वी के समुद्री तटों के समान थी।
  2. इन परतों की ढलान समुद्री तटों की तरह थी, जिससे संकेत मिलता है कि यह क्षेत्र कभी जल से भरा हुआ था।
  3. गहराई में मौजूद रेत की संरचना और जमाव पैटर्न दर्शाते हैं कि यह किसी नदी या हवा द्वारा बनाई गई संरचना नहीं थी, बल्कि समुद्र से संबंधित हो सकती है।

क्या मंगल पर वास्तव में महासागर था?

वर्तमान अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि 5 से 4 अरब वर्ष पहले, मंगल ग्रह पर एक विशाल महासागर मौजूद था, जिसे Deuteronilus महासागर कहा जाता है। इस अवधि के दौरान, मंगल का वातावरण वर्तमान की तुलना में अधिक गर्म और घना था, जिससे पानी तरल अवस्था में मौजूद रह सकता था।

  1. समुद्री तट जैसी संरचनाएँ: वैज्ञानिकों ने मंगल की सतह पर ऐसी संरचनाएँ पाई हैं, जो पृथ्वी के समुद्री तटों से मेल खाती हैं।
  2. तरंगों और ज्वार–भाटे का प्रभाव: इन संरचनाओं का अध्ययन यह संकेत देता है कि मंगल पर तरंगें और ज्वार-भाटे जैसी प्रक्रियाएँ होती थीं, जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से मेल खाती हैं।
  3. संरचनाओं का संरक्षण: समय के साथ, धूल भरी आंधियों, उल्कापिंड प्रभावों और ज्वालामुखीय गतिविधियों के बावजूद ये संरचनाएँ अच्छी तरह से संरक्षित रहीं।

जीवन की संभावना | क्या मंगल कभी रहने योग्य था?

यदि मंगल पर कभी महासागर था, तो यह सवाल उठता है कि क्या वहाँ जीवन पनपने की संभावना थी? वैज्ञानिक मानते हैं कि:

  1. महासागर लाखों वर्षों तक स्थायी रहा होगा, जिससे सूक्ष्मजीवों के विकसित होने की संभावना बनी।
  2. यह महासागर पृथ्वी के प्रारंभिक महासागरों के समान था, जो जीवन के विकास के लिए अनुकूल हो सकता था।
  3. यदि मंगल पर जीवन मौजूद था, तो उसके अवशेष अभी भी वहाँ की चट्टानों या उपसतही परतों में मिल सकते हैं।

मंगल के जलवायु और भूगर्भीय प्रभाव

इस महासागर की उपस्थिति से मंगल की जलवायु और भूगर्भीय संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा होगा। यदि मंगल पर कभी महासागर था, तो इसका मतलब है कि:

  1. मंगल का वायुमंडल पहले घना और गर्म था, जिससे तरल पानी वहाँ लंबे समय तक बना रह सका।
  2. समुद्र की लहरों और ज्वार-भाटे ने मंगल की सतह को प्रभावित किया होगा, जिससे नई भूगर्भीय संरचनाएँ बनीं।
  3. इस महासागर के सूखने के कारण मंगल का वातावरण अत्यधिक ठंडा और शुष्क हो गया, जिससे जीवन पनपने की संभावनाएँ समाप्त हो गईं।

समुद्र की परिकल्पना को मजबूत करने वाले प्रमाण

इस खोज को और अधिक ठोस बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक परिकल्पनाओं की भी जाँच की, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया।

  1. हवा से बनी टीलों की संभावना: यह संरचनाएँ हवा से बनी रेत की टीलों से मेल नहीं खातीं।
  2. नदी से बने जमाव: ये संरचनाएँ नदियों द्वारा बनाए गए जमाव से भी अलग हैं।
  3. संरचनाओं की समरूपता: समुद्री तटों जैसी संरचनाएँ मंगल की सतह पर अलग-अलग स्थानों पर देखी गई हैं, जो महासागर की उपस्थिति को दर्शाती हैं।

झुरोंग रोवर की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ

झुरोंग रोवर ने अपने मिशन के दौरान कई महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ इकट्ठा कीं:

  1. डेटा संग्रह: मई 2021 से मई 2022 तक डेटा एकत्र किया।
  2. यात्रा दूरी: इसने कुल 9 किमी (1.2 मील) की दूरी तय की।
  3. ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार उपयोग: 80 मीटर गहराई तक सतह का अध्ययन किया।
  4. मंगल की जलवायु का अध्ययन: सतह पर रेत और चट्टानों के विश्लेषण से मंगल के जलवायु परिवर्तन की जानकारी मिली।

झुरोंग रोवर की खोज ने मंगल ग्रह पर प्राचीन महासागर की उपस्थिति की परिकल्पना को और अधिक सशक्त किया है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि मंगल का वातावरण कभी जीवन के लिए अनुकूल रहा होगा। इन साक्ष्यों से प्रेरित होकर वैज्ञानिक भविष्य में और भी गहराई से मंगल की सतह और उपसतही परतों का अध्ययन करेंगे। यह खोज न केवल मंगल के अतीत को समझने में मदद करेगी, बल्कि यह भी बताएगी कि क्या अन्य ग्रहों पर जीवन संभव हो सकता है।

इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि मंगल ग्रह का इतिहास अत्यंत रोचक और जटिल रहा है। भविष्य में मंगल अभियानों के माध्यम से और अधिक ठोस प्रमाण मिलने की संभावना है, जो इस रहस्य को पूरी तरह सुलझाने में सहायता करेंगे।

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