मुग़ल शासनकाल में जितने भी राजा महाराजा हुए उन सबमे अकबर सबसे अलग, सबसे प्रभावशाली एवं शक्तिशाली राजा थे। अकबर एक बहुत ही बहादुर और शांतिप्रिय राजा थे। उसकी सबसे खास बात यह थी कि उसने बचपन से ही राज्य चलाने का काम किया था।
अकबर तीसरे मुगल सम्राट थे, और महज 13 साल की छोटी सी उम्र में ही मुगल राजवंश के सिंहासन पर बैठ गए थे और उन्होंने अपने मुगल सम्राज्य का न सिर्फ काफी विस्तार किया, बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देने के लिए भी कई नीतियां भी बनाईं। इन्होने अपने शासनकाल में शांतिपूर्ण माहौल स्थापित किया एवं कराधान प्रणाली को फिर से संगठित किया। उन्हें अकबर-ए-आज़म शहंशाह अकबर के नाम से भी जाना जाता है।
अकबर को भारत का सबसे महान मुगल सम्राट माना जाता है। इनका पूरा नाम अबी अल-फती जलाल अल-दीन मुहम्मद अकबर है। इनका जन्म 15 अक्टूबर, 1542 ई. को उमरकोट में हुआ था, यह हिस्सा अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में है, और 25 अक्टूबर, 1605 ई. को आगरा, भारत में उनकी मृत्यु हो गई।
जब भी कभी अकबर की कहानियों के बारे में जिक्र होता है, बीरबल का नाम जरूर सामने आता है। और उनकी प्रेम कहानियों की चर्चाओं में जोधाबाई का नाम ज्यादा आता है।
उन्होंने अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप पर मुगल सत्ता का विस्तार किया और उन्होंने 1556 से 1605 ई. तक शासन किया। उन्हें हमेशा लोगों का राजा माना जाता था क्योंकि वे अपने लोगों की बाते सुनते थे।
उनके द्वारा अपने साम्राज्य में एकता बनाए रखने के लिए विभिन्न कार्यक्रम अपनाए गए जिससे उसके क्षेत्र में गैर-मुस्लिम आबादी की वफादारी जीतने में मदद मिली। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके राज्य के केंद्रीय प्रशासन में सुधार और मजबूती बनी रहे।

अकबर खुद अनपढ़ होने के बाद भी शिक्षा को सबसे ज्यादा महत्व देते थे। वे एक बुद्धिमान और ज्ञानी शासक थे, जिन्हें लगभग सभी विषयों में आसाधरण ज्ञान प्राप्त था। इसीलिए उनके शासन काल में कला, साहित्य, शिल्पकला का काफी विकास हुआ था। उन्होंने अपने राज्य में सभी के लिए खासकर महिलाओ के लिए शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया था।
उनके द्वारा किए गए नेक कामों की वजह से उन्हें अकबर महान कहकर भी बुलाया जाता था। वे सभी धर्मों को आदर-सम्मान देने वाले महान योद्धा थे। अकबर ने एक नया संप्रदाय दीन-ए-इलाही की स्थापना की थी, जिसमे अलग-अलग धर्मों के तत्वों का समावेश था।
अकबर का परिचय
पूरा नाम | जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर |
अन्य नाम | अबुल-फ़त जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर, महान अकबर |
जन्म | 15 अक्टूबर सन् 1542 (लगभग) |
जन्म भूमि | अमरकोट, सिन्ध (पाकिस्तान) |
मृत्यु तिथि | 27 अक्टूबर सन् 1605 (उम्र 63 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | फ़तेहपुर सीकरी, आगरा |
पिता/माता | हुमायूँ, मरियम मक़ानी |
पति/पत्नी | मरियम उज़-ज़मानी (हरखाबाई) |
संतान | जहाँगीर के अलावा 5 पुत्र 7 बेटियाँ |
उपाधि | जलाल-उद-दीन |
राज्य सीमा | उत्तर और मध्य भारत |
शासन काल | 27 जनवरी, 1556 – 27 अक्टूबर, 1605 |
शा. अवधि | 49 वर्ष |
राज्याभिषेक | 14 फ़रबरी 1556 कलानपुर के पास गुरदासपुर |
धार्मिक मान्यता | नया मज़हब बनाया दीन-ए-इलाही |
युद्ध | पानीपत, हल्दीघाटी |
सुधार-परिवर्तन | जज़िया हटाया, राजपूतों से विवाह संबंध |
राजधानी | फ़तेहपुर सीकरी आगरा, दिल्ली |
पूर्वाधिकारी | हुमायूँ |
उत्तराधिकारी | जहाँगीर |
राजघराना | मुग़ल |
वंश | तैमूर और चंगेज़ ख़ाँ का वंश |
मक़बरा | सिकन्दरा, आगरा |
संबंधित लेख | मुग़ल काल |
अकबर का जन्म
अकबर का पूरा नाम जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर था। इनका जन्म 15 अक्टूबर 1542 को सिंध (पाकिस्तान) के राजपूत किले, अमरकोट में हुआ था।
वह महान मुगल शासक नसिरूद्दीन हुँमायू और हमीदा बानो के पुत्र और मुंगल वंश के संस्थापक मुहम्मद बाबर के पौत्र थे। उन्हे शहंशाह अकबर, अकबर-ऐ-आजम, महाबली शंहशाह, अकबर महान आदि नामों से भी जाना जाता है।
अकबर का प्रारंभिक जीवन
मुग़ल बादशाह हुमायूँ ने अकबर का नाम अपने स्वप्न में सुनाई दिये नाम के आधार पर रखा था। अकबर का पितृपक्ष तैमूर वंश का और मातृपक्ष मंगोल वंश का था। इस प्रकार अकबर के खून में तुर्क और मंगोल दोनो का मिश्रण था।
इनका बचपन उनके चाचा मिर्जा अस्करी के यहाँ अफगानिस्तान में बीता था। बचपन के समय ही उनकी दोस्ती रामसिंह नामक व्यक्ति से हुई थी, जो ताउम्र रही थी। उसने कई प्रकार की शिक्षाएं बचपन में अपने चाचा से सीखी थी।
1551 ई. में अकबर को गजनी का सूबेदार बनाया जाता है, और हिन्दाल की लड़की से उनकी शादी करा दी जाती है। 22 जनवरी 1555 ई. को अकबर ने सिकंदर सूर को सरहिन्द नामक स्थान पर हराया था। अकबर की बहादुरी से प्रभावित होकर हुमायूँ ने अकबर को युवराज घोषित कर दिया और लाहौर का गवर्नर नियुक्त कर दिया।
जलाल उद्दीन अकबर जो साधारणतः अकबर और बाद में अकबर महान के नाम से जाने गये. भारत के तीसरे और मुग़ल काल के पहले सम्राट थे। वे 1556 ई. से अपनी मृत्यु तक मुग़ल साम्राज्य के शासक थे। अकबर मुग़ल शासक हुमायु के बेटे थे, जिन्होंने पहले से ही मुग़ल साम्राज्य का भारत में विस्तार कर रखा था।
1539-40 ई. में चौसा और कन्नौज में शेरशाह सूरी से होने वाले युद्ध में पराजित होने के बाद हुमायूँ सिंध चला गया, और लगभग 15 साल तक निर्वासित जीवन व्यतीत किया। इसी दौरान हुमायु की शादी हमीदा बानू बेगम के साथ हुयी। हमीदा बानू बेगम से 15 अक्टूबर 1542 को सिंध के उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ। यह स्थान वर्तमान में पाकिस्तान में है।
लम्बे समय के बाद,अकबर अपने पुरे परिवार के साथ काबुल स्थापित हुए। यहाँ उनके चाचा कामरान मिर्ज़ा और अस्करी मिर्ज़ा रहते थे। उन्होंने अपना बचपन युद्ध कला सिखने में ही व्यतीत की जिसने उसे एक शक्तिशाली, निडर और बहादुर योद्धा बन गए।
नवम्बर,1551 ई. में अकबर ने काबुल की रुकैया से शादी कर ली। महारानी रुकैया बेगम उनके ही चाचा हिंदल मिर्ज़ा की बेटी थी। जो उनकी पहली और मुख्य पत्नी थी।
हिंदल मिर्ज़ा की मृत्यु के बाद हुमायु ने उनकी जगह ले ली और हुमायु ने दिल्ली को 1555 ई. में पुनर्स्थापित किया और वहा उन्होंने एक विशाल सेना का निर्माण किया। परन्तु इसके कुछ ही महीनो बाद हुमायु की मृत्यु हो गयी।

हुमायु के गुजरने के बाद अकबर ने बैरम खान की संरक्षण में राज्य का शासन चलाया क्यों की उस वक्त अकबर काफी छोटे थे। उन्होंने बैरम खान की सहायता से पूरे भारत में हुकूमत की। एक बहुत सक्षम और बहादुर बादशाह होने के नाते उन्होंने पूरे भारत में और करीब गोदावरी नदी के उत्तरी दिशा तक अपना कब्ज़ा कर लिया था।
मुगलों की ताकतवर फ़ौज, राजनयिक, सांस्कृतिक आर्थिक वर्चस्व के कारण ही अकबर ने पुरे देश में कब्ज़ा कर लिया था। अपने मुग़ल साम्राज्य को एक रूप बनाने और उनके साथ सामंजस्य बनाये रखने के लिए अकबर ने जो भी प्रान्त जीते थे उनके साथ में या तो संधि की या फिर शादी करके उनसे रिश्तेदारी की।
अकबर के राज्य में विभिन्न धर्म और संस्कृति के लोग रहा करते थे और वो अपने प्रान्त में शांति बनाये रखने के लिए कुछ ऐसी योजना अपनाते थे जिसके कारण उसके राज्य के सभी लोग काफी खुश और मिलजुलकर रहते थे।
साथ ही अकबर को साहित्य काफी पसंद था और उसने एक पुस्तकालय की भी स्थापना की थी जिंसमे करीब 24,000 से भी अधिक संस्कृत, उर्दू, पर्शियन, ग्रीक, लैटिन, अरबी और कश्मीरी भाषा की क़िताबे थी और साथ ही साथ वहा पर कई सारे विद्वान्, अनुवादक, कलाकार, सुलेखक, लेखक, जिल्दसाज और वाचक भी थे।
अकबर ने फतेहपुर सिकरी में भी महिलाओ के लिए एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। और हिन्दू, मुस्लिम के लिए भी स्कूल खोले गयें। पूरी दुनिया के सभी कवि, वास्तुकार और शिल्पकार अकबर के दरबार में इकट्टा होते थे और विभिन्न विषयों पर चर्चा हुआ करती थी।
अकबर के दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सिकरी के दरबार कला, साहित्य और शिक्षा के मुख्य केंद्र बन चुके थे। वक्त के साथ पर्शियन इस्लामिक संस्कृति भारत के संस्कृति के साथ घुल मिल गयी और उसमे एक नयी इंडो पर्शियन संस्कृति ने जन्म लिया, जो मुग़लकाल में बनाये गए पेंटिंग और वास्तुकला को देखने से पता चलता है।
अपने राज्य में धार्मिक एकता बनाये रखने के लिए अकबर ने इस्लाम और हिन्दू धर्मं को मिलाकर एक नया धर्मं ‘दिन ए इलाही’ की स्थापना किया, जिसमे पारसी और ख्रिचन धर्म का भी कुछ हिस्सा शामिल किया गया था।
दिन ए इलाही, बहुत सरल, सहनशील धर्म था और उसमे केवल एक ही भगवान की पूजा की जाती थी, किसी जानवर को मारने पर रोक लगाई गयी थी। इस धर्म में शांति पर ज्यादा महत्व दिया जाता था। इस धर्म में ना कोई रस्म रिवाज, ना कोइ ग्रंथ और ना ही कोई मंदिर या पुजारी था।
अकबर के दरबार में के बहुत सारे लोग भी इस धर्मं का पालन करते थे और वो अकबर को पैगम्बर भी मानते थे। बीरबल भी इस धर्मं का पालन करता था।
भारत के इतिहास में अकबर के शासनकाल को काफी महत्व दिया गया है। अकबर के शासनकाल के दौरान मुग़ल साम्राज्य तीन गुना बढ़ चुका था। उसने बहुत ही प्रभावी सेना का निर्माण किया था और कई सारी राजनयिक और सामाजिक सुधार भी लायी थी।
अकबर को भारत के उदार शासकों में गिना जाता है। संपूर्ण मध्यकालीन इतिहास में वो एक मात्र ऐसे मुस्लीम शासक हुए है जिन्होंने हिन्दू मुस्लीम एकता के महत्त्व को समझकर एक अखण्ड भारत निर्माण करने का प्रयत्न किया।
अकबर की शिक्षा
अकबर आजीवन निरक्षर रहे। एक प्रथा के अनुसार चार वर्ष, चार महीने, चार दिन पर अकबर का अक्षरारम्भ हुआ और मुल्ला असामुद्दीन इब्राहीम को शिक्षक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परन्तु कुछ दिनों बाद जब पाठ सुनने की बारी आई, तो अकबर को कुछ भी याद नहीं था। हुमायूँ ने सोचा, मुल्ला की बेपरवाही से लड़का पढ़ नहीं रहा है। और लोगों ने भी जड़ दिया-“मुल्ला को कबूतरबाज़ी का बहुत शौक़ है। इसलिए उसने शागिर्द को भी कबूतरों के मेले में लगा दिया है”।
इसके बाद मुल्ला बायजीद शिक्षक हुए, लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। दोनों पुराने मुल्लाओं के साथ मौलाना अब्दुल कादिर के नाम को भी शामिल करके चिट्ठी डाली गई। संयोग से मौलाना का नाम निकल आया। कुछ दिनों तक वह भी अकबर को पढ़ाते रहे। परन्तु काबुल में रहते हुए अकबर को कबूतरबाज़ी और कुत्तों के साथ खेलने से फुर्सत नहीं थी। जब अकबर हिन्दुस्तान में आये, तब भी उनकी वहीं बेढंगी रफ्तार रही। फिर मुल्ला पीर मुहम्मद, (बैरम ख़ाँ के वकील) को यह काम सौंपा गया। लेकिन अकबर ने भी तो जैसे कसम ही खा ली थी कि, बाप पढ़े न हम।
अकबर का राज्याभिषेक
1551 ई. में मात्र 9 वर्ष की आयु में पहली बार अकबर को ग़ज़नी की सूबेदारी सौंपी गई। हुमायूँ ने हिन्दुस्तान की पुनर्विजय के समय मुनीम ख़ाँ को अकबर का संरक्षक नियुक्त किया था। सिकन्दर सूर से अकबर द्वारा सरहिन्द को छीन लेने के बाद उसकी बहादुरी से प्रभावित होकर हुमायूँ ने 1555 ई. में उसे अपना ‘युवराज’ घोषित कर दिया। दिल्ली पर अधिकार कर लेने के बाद हुमायूँ ने अकबर को लाहौर का गर्वनर नियुक्त कर दिया, साथ ही अकबर के संरक्षक मुनीम ख़ाँ को अपने दूसरे लड़के मिर्ज़ा हकीम का अंगरक्षक नियुक्त करने के साथ तुर्क सेनापति बैरम ख़ाँ को अकबर का संरक्षक नियुक्त कर दिया।
पर्दा शासन
वर्ष 1560 ई. से 1562 ई. तक के समय में अकबर अपनी धाय माँ महम अनगा, उसके पुत्र आदम खाँ व उसके सम्बन्धियों के साथ रहते थे, जिस कारण अकबर के शासन में उनके सम्बन्धियों का काफी प्रभाव था, इस कारण दो वर्ष के इस समय को पर्दाशासन या पेटीकोट सरकार भी कहा जाता है।
जजिया, सती प्रथा, दास प्रथा का अंत और विधवा विवाह की मान्यता
- अकबर ने अपने शासन काल में सती प्रथा का अंत किया था और विधवा विवाह को मान्यता दी थी। उसने विवाह के लिए उम्र का निर्धारण भी किया था, जिसमें लड़को की उम्र कम से कम 16 वर्ष तथा लड़कियों की उम्र कम से कम 14 वर्ष निर्धारित की गयी थी।
- वर्ष 1562 ई. में अकबर ने दास प्रथा को भी समाप्त किया, इसके अलावा, वर्ष 1563 ई. में, उसने तीर्थयात्रा में लगने वाले कर को भी समाप्त किया था।
- वर्ष 1564 ई. से पहले तक, इस्लाम को ना मानने वाले लोगों को एक कर देना पड़ता था जिसे जजिया कर कहा जाता था। अकबर ने 1564 ई. में इस कर को समाप्त कर दिया था।
हल्दीघाटी का युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य 18 जून, 1576 ई. को हल्दीघाटी के मैदान में हुआ था। अकबर की मुगल सेना की ओर से इस युद्ध का नेतृत्व राजा मान सिंह ने किया था।
मुगलों और राजपूतों के बीच यह युद्ध इतना भीषण और विध्वंसकारी था, कि कुछ इतिहासकार इस युद्ध की तुलना महाभारत से करते हैं। बहुत से लोगों द्वारा ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध में किसी की भी जीत नही हुई थी, पर महाराणा प्रताप के पराक्रम और उनकी मुट्ठी भर राजपूती सेना ने जिस प्रकार से मुगलों के छक्के छुड़ा दिए वह किसी जीत से कम नही था।
दीन-ए-इलाही धर्म
अकबर ने एक नए धर्म, दीन-ए-इलाही की स्थापना 1582 ई. में की थी, इसे तोहिद-ए-इलाही भी कहा जाता है। इसमें सभी धर्मों के अच्छे सिद्धान्तों का समावेश किया गया था।
इस धर्म का मुख्य पुरोहित अबुल फजल को बनाया गया था, जो कि अकबर के नौ रत्नों मे से एक थे , परंतु कई लोगों का ऐसा भी मानना हैं कि अकबर स्वयं ही इस धर्म का पुरोहित था।
दीन-ए-इलाही धर्म को अपनाने वाला प्रथम व अंतिम हिंदू व्यक्ति राजा बीरबल थे। अकबर हिन्दू धर्म से अत्यन्त प्रभावित थे, वह माथे पर टीका लगाता थे और हिन्दू त्यौहारों को भी बहुत धूम धाम से मनाया करते थे। दीन-ए-इलाही धर्म को बनाने का उद्देश्य हिन्दू और मुस्लिम के बीच की दूरियों को कम करना और उनके बीच एकता स्थापित करके उनको साथ ले कर चलने का था।
अकबर द्वारा किये गए निर्माण कार्य
अकबर द्वारा अपने शासन कल के दौरान अनेकों निर्माण कार्य कराये गए। इन निर्माण कार्यों में हिन्दू-मुस्लिम शैलियों का व्यापक मिश्रण दिखता है। इन निर्माण कार्यों का विवरण निचे दिया गया है –
हुमायूँ का मकबरा | Humayun’s Tomb
यह मकबरा भारतीय और फ़ारसी शैलियों के संयोजन का एक आदर्श उदाहरण है। इस मकबरे ने वास्तुकला को एक नई दिशा दी।
इस मकबरे का प्रोजेक्ट ईरान के मुख्य वास्तुकार मिराक मिर्जा गियास ने डिजाइन किया था। 1564 ई. में निर्मित यह मकबरा हिंदू “पंचराट” शैली और ईरानी प्रभावों से प्रेरित है। इसका निर्माण कार्य अकबर की सौतेली माँ हाजी बेगम के मार्गदर्शन में किया गया था। मकबरे का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में है।
इसकी मुख्य विशेषता सफेद संगमरमर का गुंबद है। यह दोहरे उभरे हुए गुंबद वाला भारत का पहला मकबरा है। यह नक्काशीदार लाल पत्थरों से बना है। बगीचों में बनी समाधियों की प्रतीकात्मक व्यवस्था समाधियों में दफ़नाए गए व्यक्तियों के दैवीय रूप का संकेत देती है। इस परंपरा के अनुसार बना यह मकबरा भारत का पहला स्मारक है। यह मकबरा “ताजमहल का पूर्ववर्ती” है और यह परंपरा ताज महल में अपने चरम पर पहुंची।
अकबर ने मेहराब और ट्रस शैली का समान भागों में उपयोग किया। उसने ऐसी इमारतें बनवाईं जो अपनी सादगी के कारण सुन्दर लगती थीं। लाल पत्थर का उपयोग मुख्य रूप से उनके स्वयं के निर्माण कार्य के लिए किया जाता था।
आगरा का किला | Agra Fort
आगरा के किले का निर्माण कार्य 1566 ई. में अकबर के मुख्य वास्तुकार कासिम खान की देखरेख में शुरू हुआ। यमुना नदी के किनारे 1.5 मील की दूरी तय करने में 15 साल लग गए। अकबर ने मेहराबों में कुरान की आयतों के बजाय जानवरों, पक्षियों, फूलों और पत्तियों की छवियां उकेरीं।
“दरवाज़े दिल्ली” जो इस किले के पश्चिम में है, 1566 ई. में बनाया गया था। किले के दूसरे द्वार को “अमर सिंह द्वार” के नाम से जाना जाता है। अकबर ने किले के भीतर गुजराती और बंगाली शैली में लगभग 500 लाल पत्थर की संरचनाएँ बनवाईं।
जहांगीरी महल
जहांगीरी महल राजा मानसिंग के ग्वालियर महल की नकल है। निर्माण के क्षेत्र में यह अकबर की उत्कृष्ट उपलब्धि है। महल के चारों कोनों पर चार बड़ी छतरियाँ हैं, और महल का प्रवेश द्वार जीवंत है। महल पूरी तरह से हिंदू शैली में बनाया गया था, इस महल में संगमरमर का उपयोग बहुत कम किया गया था।
लिंक और ब्रेक का इस्तेमाल उनकी खासियत है। अकबरी महल जहाँगीरी महल के दाहिनी ओर बनाया गया था। अकवारी महल से जहांगीरी महल की खूबसूरती गायब है।
फ़तेहपुर सीकरी
अकबर ने शेख सलीम चिश्ती की स्मृति में 1571 में फ़तेहपुर सीकरी के निर्माण का आदेश दिया। अकबर ने 1570 ई. में गुजरात पर विजय प्राप्त की और इसका नाम फ़तेहपुर सीकरी या विजय नगरी रखा और 1571 ई. में इसे अपनी राजधानी बनाया।
लगभग 11 मील पहाड़ी इलाके में फैले इस शहर में अजमेर, आगरा, ग्वालियर, दिल्ली और द्रौपुर सहित नौ प्रवेश द्वार हैं। सिसिली के निर्माण का श्रेय वास्तुकला विशेषज्ञ बहाउद्दीन को है।
फर्ग्यूसन के अनुसार, “फतेहपुर सीकरी एक महान व्यक्ति के पत्थर और मस्तिष्क के प्रति प्रेम का परिणाम है।”
जोधा बाई का महल
यह महल सिकली की सबसे बड़ी इमारत है। महल पर गुजराती प्रभाव है और यह दक्षिणी मंदिरों से प्रभावित है। महल के उत्तर में एक ग्रीष्मकालीन निवास और दक्षिण में श्राद हवेली का निर्माण किया गया था।
“मरियम की कुटी” इस महल के पास एक छोटी सी इमारत है। मरियम पैलेस में फ़ारसी रूपांकनों वाले भित्ति चित्र हैं। सुल्तान का महल पंजाब की लकड़ी की वास्तुकला कला से प्रभावित है।
पंचमहल
हवा महल के नाम से भी जाना जाने वाला यह पिरामिड आकार का स्मारक पाँच मंजिलों वाला है। महल के स्तंभों को फूलों और पत्तियों के साथ-साथ खुले मोतियों से खूबसूरती से सजाया गया है। इस महल में हिंदू और बौद्ध विहारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
बीरबल का महल
यह महल मरियम महल की शैली में बनाया गया है। यह महल दो मंजिल का है। महल की बालकनी कंसोल पर बनी है। इस इमारत की एक विशेषता बालकनियों में कॉर्बल्स का उपयोग है।
खास महल
अकबर इस महल को अपने निजी निवास के रूप में उपयोग करता था। महल के चारों कोनों में चार छतरियाँ स्थापित हैं। महल के दक्षिण में चार दरवाजों वाला एक शयनकक्ष था। जलुका दर्शन महल के उत्तर की ओर स्थित था।
तुर्की के सुल्तान की कोठी
यह एक छोटी और आकर्षक एक मंजिल की इमारत है। इमारत के अंदर की दीवारों को पेड़-पौधों, जानवरों और पक्षियों से रंगा गया है। सजावट में लकड़ी का प्रभाव दिखता है। यह इमारत रुकिया बेगम या सलीमा बेगम के लिए बनाई गई थी। पर्सी ब्राउन इसे “कलात्मक गहना” और “वास्तुशिल्प मोती” कहते हैं।
दीवान-ए-आम Divan-i-Aam
यह इमारत एक आयताकार इमारत है जिसमें ऊँचे चबूतरे पर खम्भों पर बने बरामदे हैं। यहां मनसबदारों और उनके सेवकों के लिए मेहराबदार बरामदे बनाए गए थे। बरामदे पर अकबर का लाल पत्थर वाला कार्यालय है। अकबर ने दीवान आम में अपने मंत्रियों से परामर्श किया।
दीवान-ए-खास
47 फुट की यह इमारत हिंदू और बौद्ध कला शैलियों से प्रभावित है। सम्राट अकबर भवन के मध्य में एक ऊंचे मंच पर अपने कर्मचारियों की बहसें सुनते थे। इस इमारत में अकबर का इबादतखाना था, जहाँ वह हर गुरुवार शाम को विभिन्न धर्मों के धार्मिक नेताओं के साथ बातचीत करता था।
दीवान-ए-खास के उत्तर में, “खजाना” एक वर्गाकार छतरी के रूप में ऊंचा था, और पश्चिम में, “ज्योतिषियों की सभा” थी।
अबुल फजल भवन, सराय, हिरन मीनार, शाही अस्तबल आदि। फ़तेहपुर सीकरी की अन्य इमारतें थीं।
जामा मस्जिद
542 फीट लंबी और 438 फीट चौड़ी यह आयताकार मस्जिद मुक्का की प्रसिद्ध मस्जिद से प्रेरित है। इस मस्जिद के केंद्र में शेख सलीम चिश्ती की कब्र, उत्तर में इस्लाम खान की कब्र और दक्षिण में बुलंद दरवाजा की कब्र है। इसी मस्जिद से अकबर ने 1582 ई. में “दीन-ए-इलाही” की घोषणा की थी। फर्ग्यूसन ने इसे “पत्थर में स्थापित एक रोमांटिक किंवदंती” कहा।
शेख सलीम चिश्ती की कब्र
1571 ई. में जामा मस्जिद के स्थान पर इस मकबरे का निर्माण कार्य शुरू हुआ। इसमें लाल पत्थर और बलुआ पत्थर शामिल हैं। जहाँगीर ने बाद में लाल बलुआ पत्थर के स्थान पर संगमरमर लगवाया। मकबरे का फर्श रंगीन है।
पर्सी ब्राउन ने इस मकबरे के बारे में कहा: “इसकी शैली इस्लामी शैली की बौद्धिकता और गंभीरता के बजाय मंदिर निर्माता की स्वतंत्र कल्पना को व्यक्त करती है।”
बुलंद दरवाज़ा
गुजरात विजय के उपलक्ष्य में अकबर ने जामा मस्जिद के दक्षिणी द्वार पर बुलंद दरवाजा बनवाने का आदेश दिया। यह ज़मीन से 176 फीट ऊपर है और लाल पत्थर और बलुआ पत्थर से बना है। उनका मेहरावी मार्ग दक्षिणा विजय के अवसर पर बनवाया गया था, जो उनकी विशेषता है। इसके दरवाजे पर एक शिलालेख है जिसके माध्यम से अकबर ने मानव समाज को आस्था, भावना और भक्ति का संदेश दिया।
इस्लाम खान का मकबरा
यह मकबरा शेख सलीम चिश्ती के मकबरे के दक्षिण में बनाया गया है। इस मकबरे में ‘वर्णाकार मेहराब’ का इस्तेमाल हुआ है। यह मकबरा वर्णाकार मेहराब के इस्तेमाल का पहला उदाहरण है।
लाहौर किला
फ़तेहपुर सीकरी 1570 से 1585 तक मुग़ल साम्राज्य की राजधानी थी। इसके बाद अकबर उज़्बेक आक्रमण का मुकाबला करने के लिए लाहौर लौट आया। यहां उन्होंने लाहौर का किला बनवाया। यह किला आगरा के जहांगीरी महल से प्रेरित है।
अंतर केवल इतना है कि महल के कोष्ठकों पर हाथियों और शेरों की नक्काशी की गई है, और बालकनियों पर मोरों की नक्काशी की गई है। इन इमारतों के अलावा, 1581 में ‘अटक का किला’ तथा 1583 में 40 स्तंभों वाला ‘इलाहाबाद का किला’ आदि का निर्माण करवाया।
अकबर की इमारतें मुगल-पूर्व शाही शैली को गुजरात, मारवा और चंद्री की क्षेत्रीय शैलियों के साथ जोड़ती हैं।
नये शहर की स्थापना और इबादत खाना
अकबर ने 1571 ई. में एक नए नगर “फतेहपुर सीकरी” की स्थापना की, इसके बाद अकबर अपनी राजधानी आगरा से फतेहपुर सीकरी स्थानांतरित कर दिया।
अकबर अपनी मृत्यु तक फतेहपुर सीकरी में ही रहे। इस नये नगर में ही 1575 ई. में अकबर ने इबादत खाना अर्थात पूजा ग्रह की स्थापना कराई थी।
इस इबादत खाने में प्रारंभ में इस्लामी विद्वानों को ही आने की इजाजत थी। परन्तु इस्लामी विद्वानों के रवैये से नाराज होकर अकबर ने 1578 ई. से सभी धर्मों के विद्वानों को इबादत खाना में आमंत्रित करना शुरू कर दिया था। इबादत खाना बनाने का उद्देश्य धार्मिक विषयों एवं परंपराओं पर चर्चा करना था।
अकबर के नवरत्न
अकबर पढ़े लिखे नही थे , पर उन्हें कला, साहित्य, संगीत में बेहद दिलचस्पी थी और वह कलाकारों का सम्मान भी करते थे। इसी प्रेम और सम्मान की वजह से उन्होंने अपने दरबार में नौ अति गुणवान दरबारी बनाये थे जिन्हे अकबर के नवरत्न नाम से जाना जाता है। इन नवरत्नों के नाम इस प्रकार है-
- अबुल फजल
- फैजी
- तानसेन
- राजा बीरबल
- राजा टोडरमल
- राजा मान सिंह
- अब्दुल रहीम खाना-ऐ-खाना
- फकीर अजिओं- दिन
- मुल्लाह दो पिअज़ा
अबुल फजल अकबर के दरबार का राजकवि था, जिसने अकबरनामा और आइने अकबरी नामक प्रसिद्ध पुस्तके लिखी हैं, इन पुस्तकों में अकबर की जीवनी विस्तृत रूप से वर्णित है। फैजी, अबुल फजल का बड़ा भाई था। तानसेन दरबार के प्रमुख संगीतज्ञ थे और इन सब में सर्वश्रेष्ठ बीरबल को माना जाता था, उनका वास्तविक नाम महेश दास था।
अकबर का सम्राज्य विस्तार
अकबर बहुत ही महात्वाकांक्षी शासक थे, उनका मानना था कि शासक को हमेशा अपने प्रशासन और साम्राज्य विस्तार करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए, नहीं तो उसके पड़ोसी उसे चैन से बैठने नही देंगे।
अकबर ने राज्याभिषेक के बाद से ही हमेशा साम्राज्य विस्तार का प्रयत्न किया और इसके लिए कई युद्ध लड़े। जिनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं-
- अजमेंर ग्वालियर तथा जौनपुर पर विजयः सिकन्दर सूर को पराजित करने के बाद मेवात और अजमेर कासिम खाँ को जागीर के तौर पर दे दिये गये। जिसके चलते ग्वालियर तथा जौनपुर मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आ गये। सन 1559 ई. में खान जमान जौनपुर पर आक्रमण कर उसे सरलता से जीत लेता है।
- मालवा पर विजय (1561 ई.): उस समय मालवा पर शुज्जातखाँ के पुत्र बाजबहादुर का शासन था। अकबर ने उसकी दुर्बलता का फायदा उठाकर सन 1561 ई. में आदम खाँ और पीर मुहम्मद के नेतृत्तव में एक फौज भेजी और बाजबहादुर को हराया।
- मेंर्था पर अधिकार (1562 ई.): मेर्था पर उस समय मालदेव के सेनापति जयमल का शासन था। मुगलो की ओर से शरफुद्दीन ने मेर्था पर आक्रमण करके किले को चारो ओर से घेर लिया। किले के रक्षको ने हथियार डाल दिये, और मुगल सभी को इस शर्त पर छोड़ रहे थे कि वे किले का सारा गोला बारूद मुगलों को दे दे। परंतु देवदास ने इसे राजूपतो पर एक कलंक कहते हुए मना कर दिया और युद्ध लड़ा जिसमें सभी को वीरगति प्राप्त हुई और इस प्रकार मेर्था मुगलों के अधीन हो गया।
- गोंडवाना की विजय (1564 ई.): हाकिम आसिफ खाँ को मुगलों की ओर से गोंडवान आक्रमण के लिए एक विशाल सेना के साथ भेजा गया। गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने अत्यन्त साहस और पराक्रम के साथ मुगलों का सामना किया, परंतु मुगलों की असीम ताकत देखकर रानी के सैनिक मैदान छोड़कर भाग गये। रानी ने अपनी पराजय निकट देखते हुए स्वयं ही अपना अंत कर लिया। रानी का पुत्र वीरनारायण जो उस समय नाबालिग था, वह भी युद्ध में मारा गया, और परिवार की सभी स्त्रियों ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर कर लिया।
जोधा अकबर का इतिहास
भारत के प्रसिद्ध शासकों में मुग़ल सम्राट अकबर अग्रगण्य है, वो ही एकमात्र ऐसे मुग़ल शासक सम्राट थे, जिन्होंने हिंदू बहुसंख्यकों के प्रति कुछ उदारता का परिचय दिया।
अकबर ने हिन्दू राजपूत राजकुमारी जोधा से विवाह भी किया। इतिहास में जोधा-अकबर की प्रेम कहानी बहुत ही प्रसिद्ध प्रेम-कहानी के रूप में मिलती है।

वो ऐसे पहले मुग़ल राजा थे जिन्होंने मुस्लीम धर्म को छोड़कर अन्य धर्म के लोगो को बड़े पदों पर बिठाया था और साथ ही उनपर लगाया गया सांप्रदायिक कर भी समाप्त कर दिया था। अकबर ने जो लोग मुस्लिम नहीं थे उनसे कर वसूल करना भी छोड़ दिया और वे ऐसा करने वाले पहले सम्राट थे, और साथ ही जो मुस्लिम नहीं है उनका भरोसा जितने वाले भी वे पहले सम्राट थे।
विभिन्न धर्मो एवं सम्प्रदायों को एक साथ रखने की शुरुवात अकबर के समय ही हुई थी। अकबर के बाद उनका बेटा सलीम यानि जहागीर राजा बना था।
अकबर की मृत्यु
3 अक्तूबर 1605 ई. को पेचिश के कारण अकबर बीमार हो गये और इस बीमारी से वो कभी अच्छे नहीं हुए। ऐसा माना जाता है की 27 अक्तूबर 1605 ई. को अकबर की मृत्यु हो गयी थी और उन्हें आगरा के सिकंदरा में दफनाया गया था।
मुग़ल काल का स्वर्ण युग
मुग़लकाल का स्वर्णयुग अकबर (1556-1605), जहांगीर (1605-1627), और शाहजहाँ (1628-1658) के शासन काल को कहा जाता है। क्योकि यह समय भारतीय इतिहास में आर्थिक विकास, सांस्कृतिक उत्थान, और सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से महत्वपूर्ण था, और इस कारण से इसे “स्वर्णयुग” के रूप में जाना जाता है।
मुगलकाल को स्वर्णयुग के रूप में माने जाने के पीछे मुख्य वजह निम्न है:-
- आर्थिक समृद्धि: मुग़ल सम्राटों के शासन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने विकास का अद्वितीय दौर देखा। व्यापार, वाणिज्यिक गतिविधियाँ, और औद्योगिकी में वृद्धि देखी गई।
- सांस्कृतिक उत्थान: मुग़ल सम्राटों ने सांस्कृतिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। कला, साहित्य, विज्ञान, और विभिन्न कलाओं में विकास देखा गया।
- धार्मिक सहमति: मुग़ल सम्राटों ने धार्मिक सहमति की बदौलत सामाजिक और धार्मिक उत्थान को स्थापित किया। अकबर ने धर्मिक सहमति की नीति अपनाई, जिससे समाज में सहमति और एकता बढ़ी।
- व्यापार और संवाद: मुग़ल सम्राटों का शासन विभिन्न भागों में व्यापार की बढ़ती मांग को सुनिश्चित करने में मददगार रहा। संवाद, विदेशी व्यापार, और विविधता के कारण समृद्धि देखी गई।
इन मुख्य कारणों से, मुग़ल काल के इस शासन काल को स्वर्णयुग के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस अवधि में भारतीय समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण उत्थान देखा गया।
अगर इन तीनो शासकों के काल को अलग अलग विभाजित करे तो निम्नप्रकार से होगा-
- हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग- अकबर का शासन काल
- चित्रकला का स्वर्ण युग- जहाँगीर का शासन काल
- वास्तुकला अथवा स्थापत्य कला का स्वर्ण युग- शाहजहाँ का शासन काल
ये तीनों ही शासन काल मिलकर मुग़ल काल का स्वर्ण काल बनता है, परन्तु कुछ इतिहासकारों ने मुगलकाल का स्वर्णयुग अकबर के शासन काल को तो कुछ इतिहासकारों ने शाहजहाँ के शासन काल को माना है।
मुगल सम्राट अकबर की उपलब्धियां
मुगल वंश के महान सम्राट अकबर ने अपने शासनकाल में मुगल सम्राज्य का काफी विस्तार किया था, उन्होंने अपना सम्राज्य भारत के उपमहाद्धीपों के ज्यादातर हिस्सों में फैला लिया था। सम्राट अकबर का सम्राज्य उत्तर में हिमालय तक, पूर्व में ब्रहमनदी तक, उत्तर-पश्चिम में हिन्दुकश तक एवं दक्षिण में विंध्यां तक फ़ैल चुका था।
फतेहपुरी सीकरी की स्थापना का श्रेय अकबर को ही जाता है। अकबर ने चित्तौड़गढ़ और रणथम्भौर पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए आगरा पश्चिम की नई राजधानी फतेहपुर सीकरी की स्थापना की थी ।
एक मुस्लिम शासक होते हुए भी सम्राट अकबर ने हिन्दुओं के हित के लिए कई काम किए और हिन्दुओं की तीर्थयात्रा के लिए दिए जाने वाले टैक्स को पूरी तरह खत्म किया और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया एवं शांतिपूर्ण माहौल स्थापित किया।
अकबर के महत्वपूर्ण तथ्य
- 15 अक्टूबर 1542 ई. में अमरकोट में जन्में जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर को महज 9 साल की उम्र में ही गजनी का सूबेदार नियुक्त किया गया था।
- वह13 साल की उम्र में मुगल सिंहासन पर बैठ गए थे। 1555 ई. में हुंमायू ने अकबर को अपना युवराज घोषित किया था। 1556 ई. में अकबर के संरक्षक बैरम खां ने उनका राज्याभिषेक करवाया था।
- मुगल सम्राट अकबर ने 1556 ई. में अपनी जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी। उन्होंने यह लड़ाई हेमू के खिलाफ लड़ी थी, और हेमू और सुर सेना का बहादुरी से मुकाबला कर उन्हें परास्त कर दिया था
- अकबर ने फतेहपुर सीकरी के साथ साथ बुलंद दरवाजा का भी निर्माण करवाया था।
- सबसे अलग मुगल सम्राट के रुप में अपनी पहचान विकसित करने वाले अकबर को अकबर महान, मशहाबली शहंशाह, अकबर-ऐ-आजम के नाम से जाना जाता है।
- अकबर ने 1582 ई. में दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की।
- साल 1576 ई. में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी का घमासान युद्ध हुआ, इस युद्द में अकबर ने विजय प्राप्त की।
- अकबर के शासनकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णकाल कहा जाता है।
- अबुल फजल ने अकबरनामा ग्रंथ की रचना की थी।
- अकबर के दरबार में नौ रत्न थे, इन नौ रत्नों में तानसेन, टोडरमल, बीरबल, मुल्ला दो प्याजा, रहीम खानखाना, अ्बुल फजल, हकीम हुकाम, मानसिह शामिल थे।
- अकबर अशिक्षित थे , लेकिन उन्होंने लगभग हर विषय में असाधारण ज्ञान प्राप्त कर रखा था, साथ ही वह अपनी स्मरण शक्ति के लिए जाने जाते थे, वो एक बार जो सुन लेते थे , वह उनके दिमाग में छप जाता था।
- मुस्लिम शासक होते हुए भी मुगल शासक अकबर ने उसने हिन्दुओं के हित में कई काम किए। हिन्दू तीर्थयात्रियों द्वारा दिए जाने वाले जजीया कर और यात्री कर को समाप्त कर दिया।
- 1556 ई. से 1605 ई. तक मुगल सिंहासन पर राज करने वाले अकबर की मृत्यु अतिसार रोग के कारण हो गई थी।
- मुग़ल काल का स्वर्णयुग कुछ इतिहासकरों द्वारा अकबर के शासनकाल को माना है तो कुछ इतिहासकारों ने शाहजहाँ के शासनकाल को माना है।
इन्हें भी देखे –
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