अनंतपद्मनाभ मंदिर में मिली 15वीं शताब्दी की दीपक मूर्ति

भारत की सांस्कृतिक विरासत केवल उसकी प्राचीन इमारतों या शिलालेखों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मूर्तिकला, स्थापत्य, धर्म और लोक परंपराओं के अद्वितीय समन्वय में समाहित है। ऐसा ही एक अपूर्व उदाहरण हाल ही में कर्नाटक के उडुपी ज़िले में स्थित अनंतपद्मनाभ मंदिर में सामने आया है। यहां खुदाई के दौरान 15वीं शताब्दी का एक भव्य दीपक (antique lamp) प्राप्त हुआ है, जिसने न केवल क्षेत्रीय कला को प्रकाश में लाया है, बल्कि शैव-वैष्णव परंपराओं के समन्वय, धातु कला और धार्मिक आख्यानों को भी एक नई दृष्टि प्रदान की है।

अनंतपद्मनाभ मंदिर: एक परिचय

स्थान: पेरदुरु, उडुपी ज़िला, कर्नाटक
यह मंदिर दक्षिण भारत की उन विरल धार्मिक स्थलों में से एक है, जहां शैव और वैष्णव परंपराओं का गहरा समन्वय देखा जा सकता है। यह केवल एक उपासना स्थल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संगम भी है, जहाँ आस्था, कला और इतिहास एक-दूसरे को पूरक बनाते हैं।

इस मंदिर की विशेषता इसकी स्थापत्य शैली और भीतर स्थित दुर्लभ कलाकृतियाँ हैं, जिनमें नवीनतम खोज — 15वीं शताब्दी का दीपक — एक अद्वितीय स्थान रखता है।

खोज: एक ऐतिहासिक दीपक

मंदिर परिसर के अंदर प्राकार (परिक्रमा पथ) क्षेत्र में खुदाई के दौरान यह दीपक प्राप्त हुआ, जो कि तांबे और पीतल जैसी मिश्रित धातुओं से निर्मित है। इसके आधार पर शिलालेख मिला है जो इसे वर्ष 1456 ईस्वी में बसवन्नारस बांगा नामक दानकर्ता द्वारा मंदिर को समर्पित किए जाने की पुष्टि करता है। यह दीपक न केवल एक कलात्मक कृति है, बल्कि उसमें समाहित कथाएं और प्रतीक इसे एक जीवंत धार्मिक आख्यान में परिवर्तित कर देते हैं।

दीपक की मूर्तिकला: शैव और वैष्णव विषयों का समन्वय

इस दीपक की सबसे बड़ी विशेषता है — इसका द्विमुखी (dual-faced) स्वरूप, जिसमें शैव और वैष्णव परंपराओं को एक ही कृति में संजोया गया है। यह भारतीय दर्शन की उस समावेशी भावना को दर्शाता है, जिसमें विभिन्न धाराएं टकराती नहीं, बल्कि एक-दूसरे में विलीन होती हैं।

शैव विषय: तांडव की ऊर्जस्विता

दीपक के एक मुख पर भगवान शिव को प्रलय तांडव की मुद्रा में दर्शाया गया है — यह नटराज रूप है जिसमें शिव ब्रह्मांडीय नृत्य करते हुए सृष्टि, संहार और पुनर्निर्माण की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शिव के साथ निम्नलिखित मूर्तियाँ उकेरी गई हैं:

  • पार्वती: सौम्यता और शक्ति का प्रतीक रूप, शिव के साथ सन्निकट।
  • गणपति: बुद्धि और शुभारंभ के देवता, एक हाथ में मोदक।
  • बृंगी: शिव के भक्त, अस्थि मात्र शरीर वाले योगी, जो शिव के तांडव में लीन हैं।
  • खड्ग रावण: अनेक खोपड़ियों और हथियारों से युक्त, देवी मारी पर आरूढ़, यह एक शक्तिशाली राक्षसी प्रतीक है।
  • कुमार (कार्तिकेय): मोर पर सवार, रणधर्म और तेज का प्रतिरूप।

यह दृश्य शक्ति और भावनाओं की पराकाष्ठा है, जो शिव के रौद्र रूप की अभिव्यक्ति करता है।

वैष्णव विषय: शांति और संरक्षण

दीपक के दूसरे मुख पर वैष्णव परंपरा के देवताओं को दर्शाया गया है, जिसमें सभी देवता समभंग मुद्रा में अंकित हैं — यानी सभी देवताओं को समान महत्त्व देते हुए, एक संतुलन का प्रतीक।

प्रमुख देवता:

  • ब्रह्मा: सृष्टिकर्ता, कमल पर स्थित।
  • इन्द्र: स्वर्ग के अधिपति, वज्र और ऐरावत के साथ।
  • अनंतपद्मनाभ: विष्णु का विशेष रूप, जिनके हाथ में चमचा और शंख है। वे यहाँ लोक रक्षक के रूप में दर्शाए गए हैं।
  • अग्नि: अग्निदेव, दो मुखों और सात ज्वालाओं के साथ।
  • वरुण: जल के देवता, नाग और जल पात्र के साथ।

यह वैष्णव दृश्य उस कथा को मूर्त रूप देता है जिसमें देवता शिव के प्रलय तांडव से भयभीत होकर भगवान अनंतपद्मनाभ से संरक्षण मांगते हैं। विष्णु उन्हें आश्वस्त करते हैं और स्वयं जाकर शिव को शांत करते हैं — यह संहार और संरक्षण के बीच के गहरे संवाद को दर्शाता है।

कथा: देवताओं की पुकार और अनंत का समाधान

इस दीपक में समाहित कथा अत्यंत रोचक और दार्शनिक है। शिव जब प्रलय तांडव करते हैं, तब उनकी ऊर्जा अनियंत्रित हो जाती है। इससे देवता भयभीत होकर अनंतपद्मनाभ (विष्णु) की शरण में जाते हैं। अनंत उन्हें आश्वासन देते हैं और स्वयं शिव के सामने प्रकट होकर उन्हें शांत करते हैं। इस कथा में धर्म का संतुलन, शक्ति का संयम, और सह-अस्तित्व का आदर्श सन्निहित है।

अन्य विशिष्ट मूर्तियाँ और प्रतीक

गुरुड़ा — दीपक का आधार

दीपक के आधार पर गुरुड़ा की मूर्ति स्थित है, जो विष्णु के वाहन हैं। उनकी मुद्रा आकाशगमन में है, जिससे वह “शक्ति” और “आस्था के वाहन” का प्रतीक बनते हैं।

शांत मुद्रा में शिव

दीपक के पीछे एक अन्य मूर्ति में शिव को प्रार्थनारत अवस्था में दर्शाया गया है, जो उनके रौद्र और शांत रूपों के बीच संतुलन को प्रस्तुत करती है।

खड्ग रावण और देवी मारी

खड्ग रावण — जो हथियारों और खोपड़ियों से युक्त है — को देवी मारी पर सवार दर्शाया गया है। देवी मारी आज भी स्थानीय क्षेत्र में एक शक्ति देवी के रूप में पूजित हैं। इससे लोक परंपरा का देवी उपासना पद्धति से गहरा संबंध सामने आता है।

कलात्मक और तकनीकी विशेषताएँ

इस दीपक में उच्च कोटि की धातु निर्माण तकनीक का उपयोग हुआ है। 15वीं शताब्दी की यह मूर्ति उस समय की धातु मिश्रण विधियों (metal alloying techniques), गढ़ाई की निपुणता और लौकिक तथा दैविक भावनाओं की अभिव्यक्ति का अद्भुत उदाहरण है।

  • जटिल शिल्पकला: प्रत्येक देवता की मुद्रा, वस्त्र, आयुध और वाहन अत्यंत सूक्ष्मता से गढ़े गए हैं।
  • दृष्टिकोण का संतुलन: दीपक के दोनों पहलू कला और धर्म के संतुलन का प्रतीक हैं।
  • धातु का संरक्षण: सदियों बाद भी मूर्ति की संरचना और अलंकरण स्पष्ट दिखते हैं, जो निर्माण कौशल की उत्कृष्टता को दर्शाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व

  • यह दीपक केवल एक धार्मिक वस्तु नहीं, बल्कि धार्मिक एकता, समन्वय और सांस्कृतिक संवाद का प्रतीक है।
  • शैव और वैष्णव संप्रदायों को एक ही मूर्तिकला में दर्शाना उस युग की समावेशी धार्मिक दृष्टिकोण की पुष्टि करता है।
  • खड्ग रावण और देवी मारी जैसे लोकदेवताओं की उपस्थिति यह दर्शाती है कि शास्त्रीय धर्म और लोक आस्थाएं एक ही सांस्कृतिक प्रवाह में प्रवाहित थीं।

निष्कर्ष

अनंतपद्मनाभ मंदिर में प्राप्त यह दीपक केवल एक ऐतिहासिक खोज नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक इतिहास का एक जीवंत दस्तावेज है। यह हमें उस कालखंड की धार्मिक सोच, कलात्मक दृष्टिकोण और समाज की संरचना के बारे में गहरी जानकारी देता है। इस दीपक के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि भारत की संस्कृति बहुधार्मिक होते हुए भी किस प्रकार सामंजस्य और संतुलन को प्राथमिकता देती रही है।

यह दीपक संहार और संरक्षण, रौद्र और शांत, शैव और वैष्णव, तथा शास्त्रीय और लोक — सभी तत्वों को समाहित करता है, और इसीलिए यह केवल मंदिर की नहीं, समस्त भारतीय सांस्कृतिक चेतना की भी अनमोल धरोहर है।

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