भारतीय संविधान लोकतंत्र की नींव है, जो संसद और उसके सदस्यों के लिए विभिन्न प्रावधान निर्धारित करता है। इन प्रावधानों का उद्देश्य संसद की सुचारू कार्यप्रणाली सुनिश्चित करना और सांसदों की जिम्मेदारियों को बनाए रखना है। इन्हीं प्रावधानों में से एक है अनुच्छेद 101, जो संसद की सदस्यता से संबंधित है। अनुच्छेद 101(4) विशेष रूप से सांसदों की निरंतर अनुपस्थिति पर केंद्रित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि सांसद अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहें और संसद की कार्यवाही में सक्रिय भाग लें।
हाल ही में, स्वतंत्र सांसद अमृतपाल सिंह द्वारा दायर याचिका ने इस अनुच्छेद को पुनः चर्चा के केंद्र में ला दिया है। खडूर साहिब से सांसद अमृतपाल सिंह को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत हिरासत में रखे जाने के कारण उनकी संसद में उपस्थिति प्रभावित हुई है। इस लेख में हम अनुच्छेद 101(4) के प्रावधानों, उनके महत्व, अमृतपाल सिंह के मामले, और इससे जुड़े व्यापक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अनुच्छेद 101 | संसद की सदस्यता से संबंधित प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 101 संसद की सदस्यता से जुड़े विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करता है। यह अनुच्छेद चार उपखंडों में विभाजित है, जिनका विवरण इस प्रकार है:
अनुच्छेद 101(1) | संसद के दोनों सदनों की सदस्यता पर रोक
- कोई भी व्यक्ति संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – का एक साथ सदस्य नहीं हो सकता।
- यदि कोई व्यक्ति दोनों सदनों के लिए निर्वाचित होता है, तो उसे एक सदन की सदस्यता छोड़नी होगी।
- यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो एक निश्चित अवधि के बाद उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त मानी जाएगी।
अनुच्छेद 101(2) | संसद और राज्य विधानसभा की दोहरी सदस्यता पर रोक
- कोई भी व्यक्ति संसद और किसी राज्य की विधानसभा दोनों का एक साथ सदस्य नहीं हो सकता।
- दोनों सदनों के लिए निर्वाचित होने पर, उसे एक सदस्यता छोड़नी होगी।
- निर्धारित समय सीमा के भीतर सदस्यता नहीं छोड़ने पर संसद की सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
अनुच्छेद 101(3) | सदस्यता समाप्ति के अन्य कारण
सांसद अपनी सदस्यता निम्नलिखित कारणों से खो सकता है:
- (a) यदि वह अनुच्छेद 102(1) या 102(2) में उल्लिखित अयोग्यता के अंतर्गत आता है।
- (b) यदि वह अपने हाथ से लिखित इस्तीफा अध्यक्ष (राज्यसभा) या लोकसभा स्पीकर को सौंपता है।
अनुच्छेद 101(4) | निरंतर अनुपस्थिति के कारण सदस्यता समाप्ति
यह उपखंड मुख्य रूप से सांसदों की संसद में उपस्थिति सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। इसके तहत:
- यदि कोई सांसद लगातार 60 दिनों तक संसद की बैठक में बिना अनुमति अनुपस्थित रहता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो सकती है।
- 60 दिनों की गणना में संसद का अवकाश (recess) शामिल होता है, लेकिन बैठक के स्थगन (adjournment) की अवधि नहीं गिनी जाती।
- यदि सांसद ने अनुपस्थिति के लिए पूर्व अनुमति नहीं ली होती है, तो संसद उसकी सीट रिक्त घोषित कर सकती है।
- यदि सांसद उचित कारण प्रस्तुत करता है, तो सदन उसे छूट (condonation) दे सकता है।
अनुच्छेद 101(4) का उद्देश्य और महत्व
1. सांसदों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना
अनुच्छेद 101(4) का मुख्य उद्देश्य सांसदों को संसद की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करना है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि चुने गए प्रतिनिधि जनता के मुद्दों को सदन में उठाएं और अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करें।
2. संसद की प्रभावशीलता बनाए रखना
यदि सांसद लगातार अनुपस्थित रहते हैं, तो इससे संसद की कार्यवाही प्रभावित होती है। अनुच्छेद 101(4) ऐसे सांसदों पर अंकुश लगाने का एक प्रभावी माध्यम है।
3. संसदीय अनुशासन और उत्तरदायित्व
यह प्रावधान सांसदों में अनुशासन बनाए रखने में मदद करता है। यदि कोई सांसद लंबे समय तक अनुपस्थित रहता है, तो इससे उनकी जिम्मेदारी और जनता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठते हैं।
4. लोकसभा और राज्यसभा दोनों पर लागू
यह अनुच्छेद न केवल लोकसभा बल्कि राज्यसभा पर भी समान रूप से लागू होता है। इससे संसद के दोनों सदनों में सदस्यों की सक्रियता बनी रहती है।
अनुपस्थिति के कारण सदस्यता समाप्ति की प्रक्रिया
1. अनुपस्थिति की गणना
- सांसद की अनुपस्थिति की गणना लगातार 60 कार्यदिवसों के आधार पर होती है।
- अवकाश की अवधि इसमें शामिल होती है, जबकि बैठक के स्थगन को इसमें नहीं गिना जाता।
2. अवकाश प्राप्त करने की प्रक्रिया
- सांसद अधिकतम 59 दिनों के लिए अवकाश ले सकता है।
- अतिरिक्त अवकाश के लिए नया अनुरोध जमा करना होता है।
- यदि अनुरोध अस्वीकृत होता है और सांसद अनुपस्थित रहता है, तो उसकी सीट रिक्त घोषित की जा सकती है।
3. सदस्यता समाप्ति का निर्णय
- सदस्यता समाप्ति का निर्णय संसद में बहुमत से लिया जाता है।
- सांसद को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिया जाता है।
- यदि वैध कारण प्रस्तुत किया जाता है, तो सदन उसे छूट दे सकता है।
अमृतपाल सिंह का मामला | एक विशेष परिप्रेक्ष्य
खडूर साहिब से स्वतंत्र सांसद अमृतपाल सिंह का मामला अनुच्छेद 101(4) के तहत एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है। अप्रैल 2023 से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत डिब्रूगढ़ में हिरासत में होने के कारण उनकी संसद में उपस्थिति बेहद सीमित रही है।
पंजाब के खडूर साहिब से सांसद और कट्टरपंथी सिख उपदेशक अमृतपाल सिंह ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने संसद के चल रहे सत्र में भाग लेने की अनुमति मांगी है। अमृतपाल सिंह राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत अप्रैल 2023 से डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं। उनका दावा है कि हिरासत के कारण वह संसद की कार्यवाही में भाग नहीं ले पा रहे हैं, जिससे उनकी सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। इस याचिका का उद्देश्य 60 दिनों से अधिक अनुपस्थिति के कारण उनकी लोकसभा सीट रिक्त घोषित होने से रोकना है।
मामले की प्रमुख बातें
- जेल से चुनाव जीत:
अप्रैल 2023 से हिरासत में रहते हुए भी अमृतपाल सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाग लिया और खडूर साहिब से जीत हासिल की। - संसद में न्यूनतम उपस्थिति:
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, उनकी अब तक की संसद उपस्थिति केवल 2% रही है, जिसमें उन्होंने जुलाई 2024 में केवल शपथ ग्रहण सत्र में भाग लिया। - लगातार अनुपस्थिति का प्रभाव:
जुलाई 2024 से अब तक लगभग 50 सत्रों में अनुपस्थित रहने के चलते उनकी सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। - इस अनुपस्थिति के चलते उनकी सदस्यता समाप्त होने की आशंका है।
- अपनी सदस्यता बनाए रखने के लिए उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
अमृतपाल सिंह की याचिका के मुख्य बिंदु
- संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन:
अमृतपाल सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि लोकसभा महासचिव द्वारा जारी समन के अनुसार उनकी संसद में उपस्थिति आवश्यक है। उनकी गैरहाजिरी उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि यह उनके संसदीय क्षेत्र को उचित प्रतिनिधित्व से वंचित करता है। - अनुपस्थिति का कारण:
सिंह का कहना है कि वह अपनी इच्छा से अनुपस्थित नहीं हैं, बल्कि हिरासत के कारण उन्हें संसद में भाग लेने से रोका जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक दुर्भावनापूर्ण मंशा है, ताकि उनके निर्वाचन क्षेत्र को आवाज़ से वंचित किया जा सके। - सदस्यता समाप्ति का खतरा:
संविधान के अनुच्छेद 101(4) के तहत यदि कोई सांसद लगातार 60 दिनों तक संसद की बैठकों में बिना अनुमति के अनुपस्थित रहता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो सकती है। अमृतपाल सिंह ने इसी प्रावधान के तहत अपनी सीट बचाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
अमृतपाल सिंह का मामला भारतीय संसदीय इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट अमृतपाल सिंह की याचिका पर क्या फैसला सुनाता है और संसद इस स्थिति को कैसे संभालती है। यह मामला न केवल संवैधानिक व्याख्या के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल भी स्थापित कर सकता है।
संवैधानिक और कानूनी पहलू
अमृतपाल सिंह की याचिका संविधान के अनुच्छेद 101(4) और उनके मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की एक कोशिश है। जहां एक ओर अनुच्छेद 101(4) संसद में निरंतर अनुपस्थिति पर रोक लगाता है, वहीं दूसरी ओर सांसद के निर्वाचन क्षेत्र को उचित प्रतिनिधित्व का अधिकार भी महत्वपूर्ण है। अदालत को यह तय करना है कि क्या जबरन हिरासत को अनुपस्थिति का वैध कारण माना जा सकता है।
मामले की संवेदनशीलता और कानूनी पेचिदगियां
- हिरासत में होने के कारण उनकी अनुपस्थिति अनैच्छिक है।
- सवाल उठता है कि क्या जबरन हिरासत को वैध कारण माना जाएगा।
- संसद को यह तय करना होगा कि क्या ऐसी परिस्थिति में सदस्यता समाप्त की जानी चाहिए।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और प्रावधानों का पालन
दिलचस्प तथ्य यह है कि भारतीय संसदीय इतिहास में अब तक किसी भी सांसद की सदस्यता अनुच्छेद 101(4) के तहत समाप्त नहीं हुई है। अधिकांश मामलों में, सांसद वैध कारण प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं या संसद ने उन्हें छूट प्रदान की है। अमृतपाल सिंह का मामला इस दृष्टि से अनूठा है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत हिरासत में हैं और उनकी अनुपस्थिति अनिवार्य परिस्थितियों के कारण हुई है।
संसद और न्यायपालिका की भूमिका
संसद की भूमिका
- संसद को यह सुनिश्चित करना होता है कि सांसदों की अनुपस्थिति के मामलों में निष्पक्षता बरती जाए।
- यदि अनुपस्थिति अनुच्छेद 101(4) के अंतर्गत आती है, तो बहुमत से सदस्यता समाप्त करने का निर्णय लिया जा सकता है।
- संसद छूट देने का अधिकार रखती है, यदि सांसद पर्याप्त कारण प्रस्तुत करता है।
न्यायपालिका की भूमिका
- हालांकि संसद की कार्यवाही न्यायिक समीक्षा से परे मानी जाती है, फिर भी जब मौलिक अधिकारों या न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है, तो न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है।
- अमृतपाल सिंह की याचिका ऐसे ही हस्तक्षेप का एक उदाहरण है, जिसमें उन्होंने न्याय की गुहार लगाई है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 101(4) सांसदों की सक्रियता बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संसद में जनता के मुद्दे उठाए जाएं और लोकतंत्र सशक्त बना रहे। अमृतपाल सिंह का मामला इस अनुच्छेद के व्यावहारिक पक्ष को उजागर करता है और यह सवाल उठाता है कि जब किसी सांसद की अनुपस्थिति उसकी इच्छा के विरुद्ध होती है, तो ऐसे में संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या कैसे की जाए।
आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट इस मामले में क्या निर्णय लेता है और संसद इस मामले को कैसे संभालती है। यह मामला न केवल संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या में नया आयाम जोड़ सकता है, बल्कि भविष्य के लिए मिसाल भी स्थापित कर सकता है।
सुझाव और सुधार के रास्ते
- संसद को अनुपस्थिति के मामलों में स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने चाहिए।
- जबरन हिरासत जैसे मामलों के लिए विशेष प्रावधानों पर विचार किया जा सकता है।
- सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाने के लिए अतिरिक्त उपाय किए जाने चाहिए।
इस प्रकार, अनुच्छेद 101(4) न केवल सांसदों की जिम्मेदारियों को रेखांकित करता है, बल्कि संसद की गरिमा और लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक आवश्यक उपकरण भी है।
Polity – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें –
- लैंगिक समानता स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा | सामाजिक बदलाव के लिए आवश्यक कदम
- भारत-चीन कूटनीतिक वार्ता और G-20 | वैश्विक सहयोग की नई दिशा
- अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 | Advocates (Amendment) Bill 2025
- क्षुद्रग्रह 2024 YR4 | पृथ्वी के लिए संभावित खतरा या टलता हुआ संकट?
- कोरोनल होल्स | सूर्य के रहस्यमय अंधेरे क्षेत्रों की संरचना व प्रभाव
- भारतीय रेल बजट 2025 | निवेश, विकास और प्रभाव
- सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद (GDKP) | भारत की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की नई दिशा
- भारत का केंद्रीय बजट | एक व्यापक विश्लेषण
- सर्वोच्च न्यायालय | भाग – 5 | भारतीय न्याय व्यवस्था की मुख्य धारा
- भारतीय संविधान में राष्ट्रपति का प्रावधान और उसके कर्त्तव्य
- नीति निर्देशक तत्व और मौलिक कर्तव्य | अनुच्छेद 36 से 51
- भाग – 3 मौलिक अधिकार | अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35
- केन्द्रीय सूचना आयोग: गठन, संरचना, और कार्यप्रणाली
- राज्य विधान मण्डल | भाग VI | अनुच्छेद 152 से 237
- सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम: एक परिचय
- निर्वाचन आयोग | संरचना, कार्य और महत्व
- भारतीय संसद | लोक सभा और राज्य सभा | संरचना और कार्य प्रणाली