भारत का संघीय ढांचा अपने भीतर अनेक प्रकार की इकाइयों—राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों—को समाहित करता है। प्रत्येक क्षेत्र का संवैधानिक ढांचा अलग-अलग शक्तियों, अधिकारों और प्रशासनिक तंत्रों से निर्धारित होता है। इसी परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार ने संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 लाने की घोषणा की है, जिसके माध्यम से चंडीगढ़ को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 240 के अंतर्गत लाया जाना प्रस्तावित है। यह संशोधन न केवल चंडीगढ़ की प्रशासनिक पहचान को पुनर्परिभाषित करेगा, बल्कि भारत के संघीय संबंधों, राज्यों के अधिकारों और केंद्रशासित प्रदेशों की श्रेणीकरण व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।
यह लेख अनुच्छेद 240 की मूल अवधारणा, इसकी वर्तमान स्थिति, चंडीगढ़ को इसमें शामिल किए जाने के निहितार्थ, राजनीतिक–संवैधानिक प्रभावों और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तृत प्रकाश डालता है।
चंडीगढ़ का अद्वितीय प्रशासनिक संदर्भ
चंडीगढ़ एक ऐसा केंद्रशासित प्रदेश है जिसे भारत में विशेष महत्व प्राप्त है। यह—
- पंजाब और हरियाणा दोनों की साझा राजधानी है,
- एक योजना-बद्ध आधुनिक शहर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शहरी वास्तुकला का उदाहरण है,
- और केंद्रशासित प्रदेश होने के बावजूद, इसका प्रशासन परंपरागत रूप से पंजाब के राज्यपाल के जरिए संचालित होता आया है।
यह व्यवस्था 1966 में हरियाणा राज्य के गठन के दौरान ऐतिहासिक और राजनीतिक समझौतों के तहत बनी थी, जो आज भी प्रभाव में है। अब सरकार चाहती है कि चंडीगढ़ को उस श्रेणी में शामिल किया जाए जिसमें अन्य विधानसभा-रहित केंद्रशासित प्रदेश आते हैं, और उनका प्रशासन सीधे राष्ट्रपति के विनियमों (Regulations) द्वारा संचालित होता है।
संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 इसी दिशा में सरकार का कदम है।
अनुच्छेद 240: क्या है इसका दायरा और उद्देश्य?
भारत के संविधान का अनुच्छेद 240 उन प्रावधानों से जुड़ा है जिनके माध्यम से राष्ट्रपति को विशेष प्रकार की प्रशासनिक शक्तियाँ दी गई हैं। विशेषकर उन केंद्रशासित प्रदेशों के लिए जिनकी अपनी विधानसभा नहीं है या जो विशेष परिस्थितियों में प्रशासनिक संकट से गुजर रही हों।
अनुच्छेद 240 का मूल उद्देश्य
अनुच्छेद 240 भारत के राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वे—
- शांति (Peace),
- प्रगति (Progress),
- और सुशासन (Good Governance)
के लिए विनियम (Regulations) जारी कर सकें। इन विनियमों का प्रभाव ठीक वैसा ही होता है जैसा किसी राज्य विधानसभा द्वारा पारित किए गए कानूनों का होता है।
वर्तमान में किन केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू है अनुच्छेद 240?
वर्तमान में यह अनुच्छेद निम्नलिखित केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होता है—
- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह
- लक्षद्वीप
- दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव
- पुडुचेरी
- (लेकिन केवल तब जब इसकी विधानसभा भंग या निलंबित हो)
इन सभी UTs में राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए विनियम प्रत्यक्ष रूप से लागू होते हैं।
चंडीगढ़ को इसमें सम्मिलित करने का क्या तात्पर्य है?
अगर चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के अंतर्गत लाया जाता है, तो राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त हो जाएगा कि वे:
- चंडीगढ़ के लिए विशेष कानून बना सकें,
- प्रशासनिक व्यवस्था निर्धारित कर सकें,
- और शासन संबंधी नियमों को सीधे लागू कर सकें।
संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025: क्या प्रस्तावित है?
सरकार द्वारा प्रस्तावित इस संशोधन में कई प्रमुख परिवर्तन शामिल हैं जो चंडीगढ़ के प्रशासनिक ढांचे को बदल देंगे।
चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाना
सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यही है कि अब चंडीगढ़ में—
- प्रशासनिक अधिकार पंजाब के राज्यपाल के माध्यम से नहीं,
- बल्कि सीधे भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी विनियमों के माध्यम से संचालित होंगे।
यह चंडीगढ़ को एक स्वतंत्र प्रशासित UT का रूप प्रदान करेगा।
विधानसभा-रहित UTs की श्रेणी में स्पष्ट स्थान
भारत में कई ऐसे UTs हैं जिनकी अपनी विधानसभाएँ नहीं हैं। जैसे—
- लक्षद्वीप
- अंडमान एवं निकोबार
- दमन–दादरा एवं नगर हवेली
चंडीगढ़ अब इन्हीं की श्रेणी में प्रशासनिक दृष्टि से रखा जाएगा।
स्वतंत्र प्रशासक या उपराज्यपाल की नियुक्ति की संभावना
सरकार अब चंडीगढ़ के लिए—
- एक स्वतंत्र प्रशासक (Administrator)
या - उपराज्यपाल (LG)
नियुक्त कर सकती है। इससे चंडीगढ़ का पंजाब से प्रशासनिक तौर पर जुड़ाव समाप्त हो सकता है।
चंडीगढ़ की वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था: क्यों एक बदलाव आवश्यक माना गया?
चंडीगढ़ की प्रशासनिक संरचना ऐतिहासिक कारणों से अनोखी रही है।
साझा राजधानी मॉडल
1966 में हरियाणा के गठन के बाद यह तय हुआ कि—
- चंडीगढ़ दोनों राज्यों की राजधानी के रूप में काम करेगा,
- और इसका प्रशासन पंजाब के राज्यपाल द्वारा संभाला जाएगा।
यह व्यवस्था एक अस्थायी व्यवस्था मानी गई थी, लेकिन आज यह स्थायित्व ग्रहण कर चुकी है।
समय के साथ उभरती चुनौतियाँ
- चंडीगढ़ की आबादी और आर्थिक गतिविधियाँ निरंतर बढ़ी हैं।
- शहर का प्रशासन बहुस्तरीय और जटिल हो गया है।
- साझा राजधानी होने के कारण राजनीतिक तनाव अक्सर उभरते रहे हैं।
- कई बार नीतिगत निर्णयों में अनावश्यक विलंब होता है।
इसी कारण, केंद्र सरकार लंबे समय से मानती रही है कि चंडीगढ़ के लिए एक स्पष्ट, स्वतंत्र और प्रवाहमान प्रशासनिक ढांचा होना चाहिए।
प्रस्तावित संशोधन के संवैधानिक और राजनीतिक पहलू
संशोधन केवल प्रशासनिक परिवर्तन नहीं है—यह गहरे राजनीतिक और संवैधानिक प्रभाव भी उत्पन्न कर सकता है।
संघीय ढांचे की संवेदनशीलताएँ
चंडीगढ़ पर पंजाब और हरियाणा दोनों लंबे समय से दावा करते रहे हैं।
- पंजाब इसे “अपना शहर” मानता है।
- हरियाणा का भी प्रशासनिक और ऐतिहासिक दावा है।
यदि चंडीगढ़ को पूरी तरह एक स्वतंत्र UT के रूप में परिभाषित किया जाता है, तो राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ स्वाभाविक हैं।
केंद्रीकरण बनाम विकेंद्रीकरण
संविधान का ढांचा राज्यों और केंद्र के संतुलित अधिकारों पर आधारित है। आलोचकों का कहना है कि—
- अनुच्छेद 240 का विस्तार
- केंद्र की शक्तियों को मजबूत करता है,
- जबकि राज्यों का प्रभाव सीमित होता जा सकता है।
इस पहलू पर राष्ट्रीय बहस की संभावना है।
चंडीगढ़ की ‘साझा राजधानी’ की स्थिति का अंत?
अगर यह संशोधन लागू होता है, तो:
- चंडीगढ़ की ऐतिहासिक ‘साझा राजधानी’ की अवधारणा औपचारिक रूप से समाप्त मानी जा सकती है।
- पंजाब और हरियाणा दोनों को अपनी अलग-अलग राजधानी विकसित करनी पड़ सकती है।
हालाँकि इसका अंतिम निर्णय राजनीतिक सहमति पर निर्भर करेगा।
प्रशासनिक सुधारों के दृष्टिकोण से इसके संभावित लाभ
कई विशेषज्ञ इस संशोधन को आधुनिक प्रशासनिक सुधारों की दिशा में उठाया गया कदम मानते हैं।
नीति-निर्माण में स्पष्टता और गति
- निर्णय लेने में तेजी आएगी,
- नियमों में सुसंगति होगी,
- और प्रशासनिक अस्पष्टता समाप्त होगी।
UTs के लिए समान प्रशासनिक संरचना
भारत के सभी विधानसभा-रहित UTs को एक समान संरचना में संगठित करना—
- शासन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकता है,
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरलीकृत कर सकता है।
आधुनिक शहरी प्रबंधन के लिए उचित ढांचा
चंडीगढ़ एक आधुनिक, विश्व-स्तरीय शहर है—
- स्मार्ट सिटी मॉडल,
- ट्रांसपोर्ट प्लानिंग,
- पर्यावरण संरक्षण,
- और शहरी नियोजन
जैसे मुद्दों के लिए एक केंद्रित, विशेषज्ञ-आधारित शासन प्रणाली आवश्यक है।
क्या चुनौतियाँ भी मौजूद हैं?
जहाँ लाभ हैं, वहीं कुछ महत्वपूर्ण चिंताएँ भी सामने आती हैं।
राज्यों की नाराज़गी
पंजाब, हरियाणा या उनके राजनीतिक दल इसे—
- अपने अधिकार क्षेत्र में कटौती
या - ऐतिहासिक समझौते का उल्लंघन
के रूप में देख सकते हैं।
क्षेत्रीय पहचान से जुड़े प्रश्न
चंडीगढ़ के लोग भी यह सवाल पूछ सकते हैं कि:
- साझा सांस्कृतिक पहचान का क्या होगा?
- प्रशासनिक नियंत्रण के बदलने से स्थानीय हित कैसे प्रभावित होंगे?
संघीय संतुलन की दीर्घकालिक दिशा
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि—
- केंद्र की शक्तियों का विस्तार
- संघीय ढांचे में असंतुलन ला सकता है।
व्यापक परिप्रेक्ष्य: भारत के संघीय सुधारों की दिशा में यह कदम
भारत पिछले कुछ वर्षों से संघीय प्रशासन में सुधार की दिशा में आगे बढ़ रहा है—
- केंद्रशासित प्रदेशों का पुनर्गठन (जैसे जम्मू-कश्मीर, लद्दाख),
- प्रशासनिक ढांचों का सरलीकरण,
- और राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर स्पष्ट सीमांकन।
इस प्रस्ताव को उसी कड़ी का हिस्सा माना जा सकता है।
यह कदम प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाने, नीति-निर्माण को तेज करने और विशेष शहरी क्षेत्रों के लिए बेहतर नियोजन ढांचे विकसित करने पर केंद्रित है।
निष्कर्ष: क्या यह बदलाव चंडीगढ़ के लिए एक नया अध्याय खोल सकता है?
चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के अंतर्गत लाना भारतीय संघीय ढांचे में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक कदम है। इससे—
- चंडीगढ़ की प्रशासनिक अस्पष्टता समाप्त हो सकती है,
- शासन-पद्धति अधिक स्पष्ट और आधुनिक हो सकती है,
- और एक स्वतंत्र प्रशासक या उपराज्यपाल की नियुक्ति से नीति-निर्माण अधिक प्रभावी हो सकता है।
हालाँकि, यह भी सत्य है कि—
- राज्यों की संवेदनशीलताएँ,
- ऐतिहासिक दावेदारी,
- साझा राजधानी का प्रश्न,
- और केंद्र–राज्य शक्ति संतुलन
जैसे मुद्दे सावधानीपूर्वक संभाले जाने आवश्यक हैं।
अगर राजनीतिक सहमति और प्रशासनिक दूरदर्शिता के साथ यह संशोधन लागू होता है, तो यह चंडीगढ़ के लिए एक स्थिर, स्पष्ट और सुव्यवस्थित प्रशासनिक ढांचे का आधार बन सकता है।
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