यह लेख हिंदी साहित्य के आदिकाल (650 ई. – 1350 ई.) की रचनाओं और रचनाकारों का एक सुव्यवस्थित व विश्लेषणात्मक संकलन प्रस्तुत करता है, जिसे विशेष रूप से परीक्षाओं, शोध एवं साहित्यिक अध्ययन के लिए तैयार किया गया है। इसमें आदिकाल को तीन प्रमुख कालखंडों — प्रारंभिक, मध्य और उत्तर आदिकाल — में विभाजित करते हुए उस समय की प्रमुख रचनाओं को कालानुक्रम से दर्शाया गया है। साथ ही, साहित्यिक परंपराओं जैसे वीरगाथा काव्य, नाथपंथी साहित्य, बौद्ध सिद्ध साहित्य, जैन काव्य, लौकिक (प्रेम एवं सामाजिक) साहित्य, और मिश्रित भाषा साहित्य (मैथिली, अवहट्ट, संस्कृत मिश्रित हिंदी) के आधार पर वर्गीकरण कर रचनाकारों व रचनाओं की सूची प्रस्तुत की गई है।
लेख में सरहपा, कण्हपा, गोरखनाथ, चंदबरदाई, शार्ङ्गधर, हेमचंद्र, विद्यापति, और जिनदत्त सूरी जैसे प्रमुख कवियों का विवरण उनकी रचनाओं सहित दिया गया है। वीरगाथा काल के अंतर्गत पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो, संदेश रासक, परमाल रासो जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की चर्चा की गई है, वहीं जैन साहित्य में पउम चरिउ, चन्दनबाला रस, और नेमिनाथ रास जैसी रचनाएँ प्रमुख हैं।
यह विस्तृत मेटा विवरण विद्यार्थियों, शिक्षकों और साहित्य प्रेमियों को आदिकालीन साहित्य को गहराई से समझने और याद रखने में मदद करता है। यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे UGC-NET, UPSC, PCS), हिंदी साहित्य के छात्रों तथा शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी और प्रामाणिक संदर्भ सामग्री के रूप में कार्य करता है।
आदिकाल की संक्षिप्त पृष्ठभूमि और नामकरण संबंधी विचार
हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल को सबसे आरंभिक काल माना गया है, जो लगभग 650 ई. से 1350 ई. तक विस्तृत है। इस काल में हिंदी भाषा अपने प्रारंभिक रूप में विकसित हो रही थी और साहित्यिक रचनाओं का अधिकतर आधार धार्मिक, नैतिक एवं वीर रस प्रधान रहा।
आदिकाल के नामकरण संबंधी विचार विभिन्न विद्वानों द्वारा इस प्रकार दिए गए हैं:
विद्वान का नाम | आदिकाल के लिए प्रयुक्त नाम |
---|---|
जॉर्ज ग्रियर्सन | चारण काल |
मिश्र बंधु | प्रारंभिक काल |
महावीर प्रसाद द्विवेदी | बीज वपन काल |
आचार्य शुक्ल | वीरगाथा काल |
राहुल सांकृत्यायन | सामंत काल |
रामकुमार वर्मा | संधिकाल एवं चारण काल |
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी | आदिकाल |
आदिकाल के कवि और काव्य (रचनाएँ) | सूचीबद्ध तालिका
नीचे दी गई तालिका में आदिकाल के प्रमुख रचनाकारों और उनकी रचनाओं (कवी एवं उनके काव्य) को क्रमबद्ध एवं विधिवत रूप में दर्शाया गया है—
# | कवि / रचनाकार | प्रमुख रचनाएँ (काव्य) |
---|---|---|
1 | स्वयंभू | पउम चरिउ, रिट्ठणेमि चरिउ (अरिष्टनेमि चरित) |
2 | सरहपा | दोहाकोष |
3 | शबरपा | चर्या पद |
4 | कण्हपा | कण्हपाद गीतिका, दोहाकोष |
5 | गोरखनाथ | सबदी, पद, प्राण संकली, सिष्या दासन |
6 | चंदबरदाई | पृथ्वीराज रासो (हिंदी का प्रथम महाकाव्य – शुक्ल के अनुसार) |
7 | शार्ङ्गधर | हम्मीर रासो |
8 | दलपति विजय | खुमाण रासो |
9 | जगनिक | परमाल रासो |
10 | नल्ह सिंह भाट | विजयपाल रासो |
11 | नरपति नाल्ह | बीसल देव रासो |
12 | अब्दुर रहमान | संदेश रासक |
13 | अज्ञात (लेखक) | मुंज रासो |
14 | देवसेन | श्रावकाचार |
15 | जिनदत्त सूरी | उपदेश रसायन रास |
16 | आसगु | चन्दनबाला रस |
17 | जिनधर्म सूरी | स्थूलभद्र रास |
18 | शलिभद्र सूरी | भारतेश्वर बाहुबली रास |
19 | विजय सेन | रेवन्तगिरि रास |
20 | सुमतिगणि | नेमिनाथ रास |
21 | हेमचंद्र | सिद्ध-हेमचंद्र शब्दानुशासन |
22 | विद्यापति | पदावली (मैथिली में), कीर्तिलता, कीर्तिपताका (अवहट्ट में), लिखनावली (संस्कृत में) |
23 | कल्लोल कवि | ढोला मारु रा दूहा |
24 | मधुकर | जयमयंक जस चंद्रिका |
25 | भट्ट केदार | जयचंद प्रकाश |
आदिकाल की रचनाएँ – कालखंडवार और श्रेणीबद्ध सूची
1. कालखंड आधारित वर्गीकरण
आदिकाल को मोटे रूप से तीन कालखंडों में विभाजित किया जा सकता है:
(A) प्रारंभिक आदिकाल (650 – 900 ई.)
इस काल में अधिकांश रचनाएँ अपभ्रंश, अवहट्ट, और संस्कृत मिश्रित हिंदी में हैं। बौद्ध, जैन, नाथपंथी कवियों की प्रमुख उपस्थिति रही।
रचनाकार (कवि) | रचना (काव्य) | परंपरा |
---|---|---|
सरहपा | दोहाकोष | बौद्ध सिद्ध परंपरा |
शबरपा | चर्यापद | बौद्ध सिद्ध परंपरा |
कण्हपा | कण्हपाद गीतिका, दोहाकोष | बौद्ध सिद्ध |
स्वयंभू | पउम चरिउ, अरिष्टनेमि चरिउ | जैन |
गोरखनाथ | सबदी, पद, प्राण संकली | नाथपंथ |
(B) मध्य आदिकाल (900 – 1200 ई.)
जैन, नाथ, और शैव परंपरा में रचनात्मक उत्कर्ष। लोक एवं धार्मिक साहित्य का संतुलन।
रचनाकार (कवि) | रचना (काव्य) | परंपरा |
---|---|---|
हेमचंद्र | सिद्ध-हेमचंद्र शब्दानुशासन | जैन |
जिनदत्त सूरी | उपदेश रसायन रास | जैन |
शलिभद्र सूरी | भारतेश्वर बाहुबली रास | जैन |
जिनधर्म सूरी | स्थूलभद्र रास | जैन |
देवसेन | श्रावकाचार | जैन |
विद्यापति | कीर्तिलता, कीर्तिपताका | अवहट्ट / मैथिली |
(C) उत्तर आदिकाल (1200 – 1350 ई.)
इस काल में वीरगाथा काव्य का विकास हुआ, जो राजाओं की वीरता और युद्धगाथा पर आधारित था। यही “वीरगाथा काल” कहलाता है।
रचनाकार (कवि) | रचना (काव्य) | परंपरा |
---|---|---|
चंदबरदाई | पृथ्वीराज रासो | वीरगाथा |
शार्ङ्गधर | हम्मीर रासो | वीरगाथा |
दलपति विजय | खुमाण रासो | वीरगाथा |
जगनिक | परमाल रासो | वीरगाथा |
नरपति नाल्ह | बीसलदेव रासो | वीरगाथा |
नल्ह सिंह भाट | विजयपाल रासो | वीरगाथा |
अब्दुर रहमान | संदेश रासक | वीरगाथा / संदेश काव्य |
अज्ञात | मुंज रासो | वीरगाथा |
कल्लोल कवि | ढोला मारू रा दूहा | लौकिक / प्रेम काव्य |
2. परंपरा आधारित श्रेणियाँ
नीचे आदिकालीन साहित्य को उनकी साहित्यिक परंपरा के आधार पर वर्गीकृत किया गया है:
(A) वीरगाथा काव्य (चारण परंपरा)
वीर रसप्रधान काव्य जो राजाओं और वीरों की गाथा गाते हैं। ये काव्य राजाश्रय प्राप्त कवियों द्वारा रचे गए।
कवि/रचनाकार | रचना (काव्य) |
---|---|
चंदबरदाई | पृथ्वीराज रासो |
शार्ङ्गधर | हम्मीर रासो |
दलपति विजय | खुमाण रासो |
जगनिक | परमाल रासो |
नरपति नाल्ह | बीसलदेव रासो |
नल्ह सिंह भाट | विजयपाल रासो |
अब्दुर रहमान | संदेश रासक |
अज्ञात | मुंज रासो |
🕉️ (B) नाथपंथी / योगी साहित्य
नाथ योगियों द्वारा रचित साहित्य जो योग, अध्यात्म और साधना के स्वरूप को दर्शाता है। भाषा सधुक्कड़ी/देशज मिश्रित रही।
कवि/रचनाकार | रचना (काव्य) |
---|---|
गोरखनाथ | सबदी, पद, प्राण संकली, सिष्या दासन |
🧘 (C) सिद्ध साहित्य (बौद्ध)
बौद्ध सिद्धाचार्यों द्वारा रचित “चर्यापद” जैसी रचनाएँ। भाषा अपभ्रंश व अवहट्ट।
कवि/रचनाकार | रचना (काव्य) |
---|---|
सरहपा | दोहाकोष |
शबरपा | चर्यापद |
कण्हपा | कण्हपाद गीतिका, दोहाकोष |
🪔 (D) जैन साहित्य
जैन धर्म पर आधारित नैतिक, धार्मिक, लौकिक विषयों पर आधारित ग्रंथ।
कवि/रचनाकार | रचना (काव्य) |
---|---|
स्वयंभू | पउम चरिउ, अरिष्टनेमि चरिउ |
देवसेन | श्रावकाचार |
जिनदत्त सूरी | उपदेश रसायन रास |
आसगु | चन्दनबाला रस |
जिनधर्म सूरी | स्थूलभद्र रास |
शलिभद्र सूरी | भारतेश्वर बाहुबली रास |
विजय सेन | रेवन्तगिरि रास |
सुमतिगणि | नेमिनाथ रास |
हेमचंद्र | सिद्ध-हेमचंद्र शब्दानुशासन |
🎼 (E) लौकिक/प्रेमकाव्य/जनप्रिय साहित्य
जो राजाश्रय से नहीं, लोकमानस में रचे-बसे भावों से प्रेरित था — जैसे प्रेम, सौंदर्य, नारी चित्रण आदि।
कवि/रचनाकार | रचना (काव्य) |
---|---|
कल्लोल कवि | ढोला मारू रा दूहा |
मधुकर | जयमयंक जस चंद्रिका |
भट्ट केदार | जयचंद प्रकाश |
🪔 (F) मिश्रित भाषा रचनाएँ (मैथिली, अवहट्ट, संस्कृत)
कवि/रचनाकार | रचना (काव्य) | भाषा/वर्ग |
---|---|---|
विद्यापति | पदावली (मैथिली), कीर्तिलता, कीर्तिपताका (अवहट्ट), लिखनावली (संस्कृत) | मिश्रित भाषाएँ |
विशेष उल्लेखनीय तथ्य:
- पृथ्वीराज रासो को हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।
- इस काल में वीरगाथा काव्य, जैन काव्य, नाथपंथी साहित्य, और चार्यापद जैसे विविध साहित्यिक रूप मिलते हैं।
- कई रचनाएं अवहट्ट, अपभ्रंश, मैथिली और संस्कृत मिश्रित हिंदी में रची गईं।
- जैन कवियों का विशेष योगदान रहा, जिनकी रचनाएं धार्मिक, नैतिक एवं लौकिक विषयों को समेटे हुए हैं।
आदिकाल का साहित्य धार्मिक, वीरता, नीति, योग एवं प्रेम विषयों का संतुलित मिश्रण है। इससे स्पष्ट होता है कि आदिकाल में न केवल वीरगाथाएँ, बल्कि धर्म, साधना, भाषा विकास और जनमानस के भावनात्मक पक्ष भी अभिव्यक्त हुए।
निष्कर्ष
आदिकालीन साहित्य हिंदी साहित्य की नींव है, जिसमें भाषा और भाव की मौलिकता, धार्मिकता और वीरता का अद्भुत संगम मिलता है। यह साहित्य सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों, धार्मिक परंपराओं और ऐतिहासिक घटनाओं का दर्पण भी है। विभिन्न प्रकार की रचनाएं जैसे रासो काव्य, चर्यापद, जैन ग्रंथ, नाथपंथी साहित्य आदि इस काल को विशिष्ट बनाते हैं।
उपयोगिता:
यह सूची निम्नलिखित के लिए अत्यंत उपयोगी है:
- यूपीएससी, एनटीए नेट, बीए/एमए हिंदी साहित्य, राज्य स्तरीय लोक सेवा आयोग परीक्षाओं के लिए।
- साहित्यिक शोध कार्यों के लिए मूल संदर्भ के रूप में।
- आदिकाल के कवियों और उनकी रचनाओं के त्वरित पुनरावलोकन हेतु।
इन्हें भी देखें –
- चारणी साहित्य (रासो साहित्य): वीरगाथात्मक परंपरा का अद्भुत विरासत
- प्रकीर्णक (लौकिक) साहित्य: श्रृंगारिकता और लोकसंवेदना का आदिकालीन स्वरूप
- जैन साहित्य: स्वरूप, विकास, प्रमुख कवि, कृतियाँ और साहित्यिक विशेषताएँ
- सिद्ध साहित्य: हिन्दी साहित्य का आदिरूप और सामाजिक चेतना का संवाहक
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