भारत का उत्तर का विशाल मैदान एक अत्यंत उपजाऊ एवं विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र है, जो हिमालय पर्वत श्रेणी और प्रायद्वीपीय भारत के बीच स्थित है। यह मैदान अपनी कृषि उत्पादकता और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस मैदान का निर्माण क्वार्टनरी या नियोजोइक महाकल्प के प्लोस्टीसीन एवं होलोसीन युग में हुआ था। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ, जैसे कि गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि, तथा प्रायद्वीपीय भारत से आने वाली नदियाँ, जैसे कि सोन, चंबल आदि, यहाँ उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का जमाव करती हैं, जिससे यह क्षेत्र कृषि के लिए अत्यधिक अनुकूल हो जाता है। इसे सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहा जाता है।
उत्तर का विशाल मैदान | भौगोलिक विस्तार
उत्तर का विशाल मैदान मुख्यतः हिमालय से बहने वाली नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी से बना है। इसकी ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 150 से 300 मीटर तक होती है। यह मैदान भारत के उत्तरी भाग में पश्चिम से पूर्व की ओर फैला हुआ है। पश्चिम में सिंधु नदी प्रणाली से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली तक इसका विस्तार है। उत्तर में हिमालय पर्वत और दक्षिण में विंध्याचल व सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाएँ इसकी सीमाएँ निर्धारित करती हैं।
यह मैदान धनुषाकार रूप से 3200 किमी. की लंबाई में फैला हुआ है और लगभग 7.5 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र को आच्छादित करता है। इसकी चौड़ाई पश्चिम में 480 किमी. तथा पूर्व में 145 किमी. तक पाई जाती है। इस मैदान में जल विभाजन का कार्य अंबाला के पास की भूमि करती है, क्योंकि यहाँ से पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं जबकि पश्चिम की नदियाँ अरब सागर में प्रवाहित होती हैं।
इस क्षेत्र की जलोढ़ मिट्टी अत्यंत उपजाऊ होती है, जिससे इसे ‘भारत का अनाज का कटोरा’ भी कहा जाता है। यह क्षेत्र धान, गेहूँ, गन्ना, दलहन और तिलहन जैसी प्रमुख फसलों के उत्पादन के लिए आदर्श माना जाता है।
संरचनात्मक विभाजन
उत्तर का विशाल मैदान भारत का सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाला क्षेत्र है। यह मैदान भारत की कृषि, जल संसाधन और ऐतिहासिक विरासत का केंद्र बिंदु है। इसकी समतल भूमि, उपजाऊ मिट्टी और अनेक नदियों की उपस्थिति इसे भारत का अन्न भंडार बनाती है। इस मैदान की संरचना सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बना हुआ है और इसकी भौगोलिक संरचना इसे देश की आर्थिक धुरी बनाती है।
उत्तर के विशाल मैदान को संरचनात्मक विशेषताओं के आधार पर चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है –
- भाबर क्षेत्र
- तराई प्रदेश
- बांगर क्षेत्र
- खादर क्षेत्र
1. भाबर क्षेत्र
भाबर क्षेत्र हिमालय की तलहटी में स्थित है और यह सिन्धु नदी से लेकर तीस्ता नदी के बीच फैला हुआ है। यह एक कंकड़-पत्थर वाला मैदान है, जिसका निर्माण हिमालय से नीचे उतरती हुई नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी एवं कंकड़ों के जमाव से हुआ है। इसे ‘शिवालिक का जलोढ़ पंख’ भी कहा जाता है। इस क्षेत्र की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ नदियाँ भूमिगत हो जाती हैं, क्योंकि यहाँ की जमीन छिद्रदार होती है।
2. तराई प्रदेश
तराई क्षेत्र भाबर क्षेत्र के ठीक नीचे स्थित होता है। यह उत्तराखंड से असम तक विस्तृत होता है और इसकी मिट्टी बारीक कंकड़, रेत तथा चिकनी मिट्टी से बनी होती है। इस क्षेत्र की चौड़ाई 15 से 30 किमी. तक पाई जाती है। चूंकि यहाँ नदियाँ पुनः सतह पर आ जाती हैं और समतल होने के कारण पानी चारों ओर फैल जाता है, इसलिए यहाँ दलदली भूमि पाई जाती है। यह क्षेत्र अतीत में घने वनों से ढका हुआ था, जिन्हें अब कृषि भूमि में परिवर्तित कर दिया गया है।
3. बांगर क्षेत्र
बांगर क्षेत्र पुराने जलोढ़ मिट्टी से बना हुआ है और यह खादर क्षेत्र की तुलना में अधिक ऊँचा होता है। इस क्षेत्र में बाढ़ का पानी सामान्यतः नहीं पहुँचता। यह क्षेत्र पुराने जलोढ़ से बना होता है और इसकी सतह असमतल होती है। सतलज के मैदान एवं गंगा मैदान में बांगर क्षेत्र अधिक पाया जाता है। यहाँ की भूमि में कंकड़-पत्थरों की अधिकता के कारण इसे ‘भूंड’ कहा जाता है। यह क्षेत्र कृषि के लिए अपेक्षाकृत कम उपयुक्त होता है।
4. खादर क्षेत्र
खादर क्षेत्र नवीन जलोढ़ मिट्टी से बना हुआ है और अपेक्षाकृत नीचा होता है। यह क्षेत्र हर साल बाढ़ के पानी से प्रभावित होता है, जिससे यहाँ हर वर्ष उपजाऊ मिट्टी जमा होती है। इस क्षेत्र को ‘कछारी प्रदेश’ या ‘बाढ़ का मैदान’ भी कहा जाता है। खादर क्षेत्र की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ होती है और यह गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में विस्तृत है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के नदी किनारे के क्षेत्र खादर प्रदेश में आते हैं। पंजाब में इसे ‘बेट’ कहा जाता है।
उत्तर के विशाल मैदान के उप-भाग
उत्तर के विशाल मैदान को ऊँचाई एवं स्थलाकृति के आधार पर विभिन्न उप-भागों में विभाजित किया जाता है। इसके प्रमुख उप-भाग निम्नलिखित हैं:
1. पंजाब-हरियाणा का मैदान
इस मैदान का विस्तार मुख्यतः सतलज, रावी और व्यास नदियों के बीच है। यह पंजाब, हरियाणा और दिल्ली राज्यों में स्थित है। पश्चिम से पूर्व की ओर इसे विभिन्न दोआबों में विभाजित किया गया है:
- सिन्धु-झेलम दोआब: इसे ‘सिन्धु सागर दोआब’ कहा जाता है।
- झेलम-चेनाब दोआब: इसे ‘छाज दोआब’ कहते हैं।
- चेनाब-रावी दोआब: इसे ‘रेचना दोआब’ कहा जाता है।
- रावी-व्यास दोआब: इसे ‘बारी दोआब’ कहा जाता है।
- व्यास-सतलज दोआब: इसे ‘विस्त दोआब’ कहा जाता है।
- सतलज-सरस्वती दोआब: सरस्वती नदी के लुप्त होने के कारण अब यह दोआब अस्तित्व में नहीं है।
2. गंगा का मैदान
यह मैदान गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित है। यह उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से में फैला हुआ है। इसे तीन भागों में बाँटा जाता है:
- ऊपरी गंगा मैदान: यह पश्चिम उत्तर प्रदेश में स्थित है और इसमें जलोढ़ मिट्टी की प्रधानता है।
- मध्य गंगा मैदान: यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में फैला है, जहाँ जलोढ़ मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है।
- निचला गंगा मैदान: यह पश्चिम बंगाल में स्थित है और यहाँ गंगा डेल्टा का निर्माण होता है।
3. ब्रह्मपुत्र का मैदान
यह मैदान असम और उसके आसपास के राज्यों में विस्तृत है। इसे असम घाटी भी कहा जाता है। यह क्षेत्र ब्रह्मपुत्र नदी की जलोढ़ मिट्टी से निर्मित है और यहाँ दलदली भूमि अधिक पाई जाती है।
उत्तर के विशाल मैदान की जलवायु एवं मिट्टी
इस मैदान की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी प्रकार की होती है। यहाँ ग्रीष्म ऋतु में तापमान अधिक रहता है और सर्दियों में ठंड होती है। मानसून के समय यहाँ प्रचुर वर्षा होती है, जो कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मैदान की मिट्टी मुख्यतः जलोढ़ प्रकार की होती है, जो बहुत उपजाऊ होती है और इसमें सभी प्रकार की फसलें उगाई जा सकती हैं।
कृषि एवं आर्थिक महत्व
उत्तर का विशाल मैदान कृषि के लिए अत्यंत उपयुक्त क्षेत्र है। यहाँ की जलोढ़ मिट्टी, सिंचाई की उपलब्धता और समतल भूमि कृषि को बढ़ावा देती है। यह क्षेत्र भारत के कुल खाद्यान्न उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। गंगा और उसकी सहायक नदियाँ इस क्षेत्र की कृषि को संजीवनी प्रदान करती हैं।
मुख्य फसलें
- गेहूँ: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से उगाया जाता है।
- चावल: बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में मुख्य खाद्य फसल है।
- गन्ना: उत्तर प्रदेश और बिहार में गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर होती है।
- दलहन एवं तिलहन: ये फसलें मध्य गंगा मैदान और पंजाब क्षेत्र में उगाई जाती हैं।
- आलू: उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
- सरसों: हरियाणा और पंजाब में सरसों की खेती अधिक की जाती है।
इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में डेयरी उद्योग, मत्स्य पालन, और हस्तशिल्प उद्योग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हरियाणा और पंजाब में डेयरी उद्योग बहुत विकसित है, जबकि बिहार और पश्चिम बंगाल में हस्तशिल्प उद्योगों की प्रमुखता है।
सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व
उत्तर का विशाल मैदान भारत की सांस्कृतिक विविधता का केंद्र रहा है। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही सभ्यताओं का पालना रहा है। यहाँ गंगा नदी के तट पर अनेक प्रसिद्ध नगर बसे हुए हैं, जैसे वाराणसी, प्रयागराज और पटना। यह क्षेत्र अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों से भरा हुआ है।
- वाराणसी: हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल।
- प्रयागराज: संगम स्थल और कुंभ मेले के लिए प्रसिद्ध।
- पटना: प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय और पाटलिपुत्र का केंद्र।
- दिल्ली: ऐतिहासिक स्मारकों और मुगलकालीन धरोहरों का गढ़।
निष्कर्ष
उत्तर का विशाल मैदान भारत के आर्थिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसकी उपजाऊ भूमि, समृद्ध कृषि, और विस्तृत नदी प्रणाली इसे भारत का हृदयस्थल बनाती है। यह मैदान भारत की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करता है और यहाँ की नदियाँ, उपजाऊ मिट्टी और मानव बसावट इसे एक अनोखा भौगोलिक परिदृश्य प्रदान करते हैं।
उत्तर का विशाल मैदान केवल एक भौगोलिक संरचना नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति की आत्मा भी है। यहाँ की भूमि ने न केवल कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया, बल्कि कई ऐतिहासिक आंदोलनों और सभ्यताओं को भी जन्म दिया। इस क्षेत्र का संरक्षण और सतत विकास भारत की स्थायी प्रगति के लिए आवश्यक है।
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इन्हें भी देखें –
- भारत का विशाल उत्तरी मैदान | The Great Northern Plains of India
- भारतीय मानसून और उसकी विविधता
- भारत की प्राकृतिक वनस्पति | प्रकार एवं विशेषताएँ
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- पानी का चश्मा | एक प्राकृतिक जल स्रोत
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