हिन्दी साहित्य में कहानी विधा का उद्भव 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। यद्यपि कथा कहने की परंपरा भारत में प्राचीनकाल से चली आ रही थी, किन्तु आधुनिक अर्थों में लिखित और संरचित ‘कहानी’ के रूप में हिन्दी साहित्य में इसका प्रारंभिक रूप 1900 ई. में ‘किशोरीलाल गोस्वामी’ द्वारा रचित “इन्दुमती” मानी जाती है। किशोरीलाल गोस्वामी को हिन्दी की पहली कहानी के रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है।
कहानी विधा ने हिन्दी साहित्य में एक नवीनता का संचार किया और शीघ्र ही यह लोकप्रिय साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित हो गई। प्रारंभिक दौर में हिन्दी कहानियों का स्वरूप शिक्षाप्रद और नैतिकतावादी हुआ करता था, परंतु कालांतर में यह यथार्थ, सामाजिक सरोकार, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और प्रयोगवाद की ओर उन्मुख हो गई।
इस आलेख में हम हिन्दी की प्रमुख कहानियों और उनके रचनाकारों का उल्लेख विस्तारपूर्वक करेंगे।
हिन्दी कहानी का प्रारंभिक युग
हिन्दी में गद्य लेखन की परंपरा के तहत प्रारंभ में जिन रचनाकारों ने कहानियाँ लिखीं, उनमें ‘इंशाअल्ला खाँ’ की “रानी केतकी की कहानी”, ‘राजा शिवप्रसाद सितारे-हिंद’ की “राजा भोज का सपना”, ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र’ की “अद्भुत अपूर्व सपना” प्रमुख हैं। हालाँकि इन रचनाओं को आधुनिक कहानी की कसौटी पर पूर्णत: खरा नहीं माना जाता, परन्तु इनका ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है।
‘राजा बाला घोष’ (बंगमहिला) की “दुलाईवाली”, ‘माधवप्रसाद मिश्र’ की “मन की चंचलता”, ‘भगवानदीन’ की “प्लेग की चुडैल”, ‘रामचंद्र शुक्ल’ की “ग्यारह वर्ष का समय” जैसी कहानियाँ हिन्दी कहानी के विकास क्रम में उल्लेखनीय पड़ाव हैं।
किशोरीलाल गोस्वामी की “इंदुमती” और “गुलबहार” को हिन्दी कहानी का औपचारिक प्रारंभ माना जाता है। यह समय हिन्दी गद्य साहित्य में विधागत विविधता की शुरुआत का था।
प्रेमचंद युग और यथार्थवाद का उद्भव
हिन्दी कहानी विधा को समृद्ध करने में ‘मुंशी प्रेमचंद’ का योगदान अविस्मरणीय है। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी को समाज के यथार्थ से जोड़ा और ग्रामीण जीवन, सामाजिक विषमता, श्रमिकों की पीड़ा, स्त्री-विमर्श आदि विषयों को अपनी कहानियों के केंद्र में रखा। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह “सप्त सरोज” और “मान सरोवर” (आठ भागों में) प्रकाशित हुए। प्रेमचंद की “पंच परमेश्वर”, “बूढ़ी काकी”, “ईदगाह”, “शतरंज के खिलाड़ी”, “कफन”, “ठाकुर का कुआँ”, “पूस की रात” जैसी कहानियाँ आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं।
प्रसाद-युगीन कहानी और छायावाद का प्रभाव
‘जयशंकर प्रसाद’ ने हिन्दी कहानी में मनोविश्लेषणात्मकता और प्रतीकवाद को प्रमुखता दी। उनके कहानी-संग्रह “ग्राम”, “छाया”, “इंद्रजाल”, “आकाशदीप”, “आँधी” आदि उल्लेखनीय हैं। प्रसाद की कहानियों में जीवन की दार्शनिकता, सौंदर्यबोध और आंतरिक संघर्षों का अद्वितीय चित्रण मिलता है।
‘सुदर्शन’ की “सुदर्शन सुधा”, “तीर्थयात्रा”, “पुष्पलता”, “हार की जीत” आदि कहानियाँ सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों पर आधारित हैं।
‘चतुरसेन शास्त्री’ की “दुखवा मैं कासों कहूँ मोरी सजनी”, “अंबपालिका”, “भिक्षुराज” जैसी कहानियाँ ऐतिहासिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखी गईं।
प्रयोगवाद और मनोवैज्ञानिक कथानक
बीसवीं सदी के मध्य में कहानीकारों ने यथार्थवाद और मनोविश्लेषण की दिशा में प्रयोग किए। ‘जैनेंद्र कुमार’ की “हत्या”, “अपना-अपना भाग्य”, “नीलम देश की राजकन्या” जैसी कहानियाँ गहन मनोविश्लेषण की मिसाल हैं। ‘अज्ञेय’ ने “विपथगा”, “त्रिपथगा”, “शरणार्थी”, “रोज” आदि कहानियों के माध्यम से अस्तित्ववादी दृष्टिकोण को सामने रखा।
‘निराला’ की “लिली”, “सुकुल की बीवी”, ‘पंत’ की “पानवाला”, ‘राहुल सांकृत्यायन’ की “सतमी के बच्चे”, ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ की “बिखरे मोती”, ‘भगवतीचरण वर्मा’ की “इंस्टालमेंट”, ‘अश्क’ की “मुक्त”, ‘भुवनेश्वर’ की “सूर्यपूजा” जैसी कहानियाँ हिन्दी कहानी को नई दिशा प्रदान करती हैं।
प्रगतिवाद और समाजधर्मी कथा साहित्य
‘यशपाल’ ने अपने कथा साहित्य में समाजवादी विचारधारा को प्रमुखता दी। उनकी कहानियाँ “मक्रील”, “कुत्ते की पूँछ”, “फूलों का कुर्ता”, “पिंजरे की उड़ान” जैसी रचनाएँ सामाजिक विद्रूपताओं का पर्दाफाश करती हैं। ‘विष्णु प्रभाकर’ की “धरती अब भी घूम रही है”, ‘रेणु’ की “ठुमरी”, “तीसरी कसम” जैसी रचनाएँ ग्राम्य जीवन की आत्मीयता और संवेदनशीलता को दर्शाती हैं।
‘मोहन राकेश’ की “मलबे का मालिक”, ‘भीष्म साहनी’ की “चीफ की दावत”, ‘हरिशंकर परसाई’ की “भोलाराम का जीव”, ‘शिवप्रसाद सिंह’ की “कर्मनाशा की हार”, ‘निर्मल वर्मा’ की “परिंदे”, ‘कमलेश्वर’ की “राजा निरबंसिया”, ‘राजेंद्र यादव’ की “जहाँ लक्ष्मी कैद है”, ‘शेखर जोशी’ की “कोसी का घटवार”, ‘अमरकांत’ की “जिंदगी और जोंक”, ‘मार्कण्डेय’ की “महुए का पेड़”, ‘धर्मवीर भारती’ की “गुलकी वन्नों”, ‘नरेश मेहता’ की “निशा जी”, ‘सर्वेश्वरदयाल सक्सेना’ की “पागल कुत्तों का मसीहा” आदि रचनाएँ हिन्दी कहानी के प्रगतिवादी और समाजधर्मी स्वरूप को रेखांकित करती हैं।
नारी विमर्श और नई कहानी आंदोलन
‘मन्नू भंडारी’ की “यही सच है”, “तीन निगाहों की एक तस्वीर”, ‘उषा प्रियंवदा’ की “वापसी”, ‘कृष्णा सोबती’ की “ऐ लड़की”, ‘गंगाप्रसाद विमल’ की “प्रश्नचिह्न”, ‘ज्ञानरंजन’ की “बहिर्गमन”, ‘महेंद्र भल्ला’ की “एक पति के नोट्स”, ‘काशीनाथ सिंह’ की “हस्तक्षेप”, ‘मंजुल भगत’ की “सफेद कौआ”, ‘गिरिराज किशोर’ की “चिड़ियाघर”, ‘उदय प्रकाश’ की “पीली छतरी वाली लड़की” आदि कहानियाँ नारी चेतना, मानसिक स्वतंत्रता और सामाजिक असमानताओं को उजागर करती हैं।
उदय प्रकाश की कहानियाँ जैसे “वारेन हेस्टिंग्स का सांड़”, “मोहनदास”, “फौलाद का आकाश” समकालीन भारतीय समाज की जटिलताओं और विडंबनाओं का विश्लेषण करती हैं।
हिंदी साहित्य की प्रमुख कहानियाँ और रचनाकार (कहानीकार)
हिन्दी की प्रमुख कहानियाँ और उनके रचनाकारों की सूची नीचे दी गयी है:
क्रम | कहानी(रचना) | कहानीकार (लेखक) |
---|---|---|
1. | रानी केतकी की कहानी | इंशाअल्ला खाँ |
2. | राजा भोज का सपना | राजा शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’ |
3. | अद्भुत अपूर्व सपना | भारतेंदु |
4. | दुलाईवाली | राजा बाला घोष (बंगमहिला) |
5. | इंदुमती, गुलबहार | किशोरीलाल गोस्वामी |
6. | मन की चंचलता | माधवप्रसाद मिश्र |
7. | प्लेग की चुडैल | भगवानदीन |
8. | ग्यारह वर्ष का समय | रामचंद्र शुक्ल |
9. | इ कानों में कंगना | राधिकारमण प्रसाद सिंह |
10. | सुखमय जीवन, बुद्ध का काँटा, उसने कहा था | चंद्रधारी शर्मा गुलेरी |
11. | राखीबंद भाई | वृंदावनलाल वर्मा |
12. | रक्षाबंधन, ताई, चित्रशाला (दो भाग), गल्प मंदिर, मंगली, प्रेम प्रतिमा, कल्लोल, मणिमाला | विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ |
13. | पंचपरमेश्वर, सौत, बेटों वाली विधवा, सज्जनता का दण्ड, ईश्वरीय न्याय, रानी सारंधा, आत्माराम, बूढ़ी काकी, ईदगाह, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, कजाकी, अलग्योझा, तावान, ठाकुर का कुआँ, कफन, सप्त सरोज (कहानी-संग्रह), मान सरोवर-8 भागों में (कहानी-संग्रह) | मुंशी प्रेमचंद |
14. | ग्राम, छाया (कहानी-संग्रह), इंद्रजाल, आकाशदीप, आँधी, सुनहरा साँप, सालवती, मधुवा, गुंडा, पुरस्कार, चूड़ी वाली नीरा, प्रतिध्वनि, देवरथ | जयशंकर प्रसाद |
15. | सुदर्शन सुधा, तीर्थयात्रा, पुष्पलता, गल्पमंजरी, पनघट, हार की जीत, कवि की स्त्री | सुदर्शन |
16. | दुखवा मैं कासों कहूँ मोरी सजनी, अंबपालिका, भिक्षुराज, हल्दीघाटी में, बाणवधू | चतुरसेन शास्त्री |
17. | चिनगारियाँ, शैतान मंडली, इंद्रधनुष, बलात्कार, चाकलेट, दोज़ख की आग, निर्लज्जा, जब सारा आलम सोता है। | पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ |
18. | हत्या, खेल, अपना-अपना भाग्य, जय संधि, बाहुबली, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, दो चिड़ियाँ, ध्रुवयात्रा, पाजेब, एक दिन, राजीव और भाभी | जैनेंद्र |
19. | विपथगा, त्रिपथगा, परंपरा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, अमर वल्लरी, ये तेरे प्रतिरूप, रोज, पठार का धीरज, सिगनेलर, रेल की सीटी, कविप्रिया, मैना, हरसिंगार | ‘अज्ञेय’ |
20. | लिली, सुकुल की बीवी, श्रीमती गजानंद देवी, चतुरी चमार, पद्मा | ‘निराला’ |
21. | पानवाला | पंत |
22. | सतमी के बच्चे | राहुल सांकृत्यायन |
23. | बिखरे मोती, उन्मादिनी, पापी पेट | सुभद्रा कुमारी चौहान |
24. | इंस्टालमेंट, दो बाँके, उत्तमी की माँ, प्रायश्चित, मुगलों ने सल्तनत बख्श दी, वो दुनिया | भगवती चरण वर्मा |
25. | मुक्त, देशभक्त, डाची, कांगड़ा का तेली, आकाशचारी, टेबुल लैंड | ‘अश्क’ |
26. | सूर्यपूजा, भेड़िए | भुवनेश्वर |
27. | काठ का सपना | ‘मुक्तिबोध’ |
28. | आहुति, धन का अभिशाप, एकांकी चोर, कापालिक, प्रथम कहानी, दिवाली, चरणों की दासी मैं, खंडहर की आत्माएँ, डायरी के नीरस पृष्ठ, आहुति और दिवाली | इलाचंद्र जोशी |
29. | मक्रील, कुत्ते की पूँछ, फूलो का कुर्ता, पराया सुख, भस्मावृत चिनगारी, पाप का कीचड़, ज्ञानदान, तुमने क्यों कहा कि मैं सुंदर हूँ, पिंजरे की उड़ान | यशपाल |
30. | धरती अब भी घूम रही है, संघर्ष के बाद | विष्णु प्रभाकर |
31. | ठुमरी, आदिम रात्रि की महक, तीसरी कसम, विघटन के क्षण, तीन बिंदिया | ‘रेणु’ |
32. | मलबे का मालिक, एक और जिंदगी, जानवर और जानवर, परमात्मा का कुत्ता, खोया हुआ शहर, आर्द्रा, वासना की छाया में, फौलाद का आकाश, रोये रेशे | मोहन राकेश |
33. | चीफ की दावत, मौकापरस्त, खून का रिश्ता, वाँग चू, पटरियाँ, भटकती राख | भीष्म साहनी |
34. | भोलाराम का जीव, निठल्ले की डायरी, एक फरिश्ते की कथा | हरिशंकर परसाई |
35. | आरपार की माला, मुर्दा सराय, इन्हें भी इंतजार है, कर्मनाशा की हार | शिवप्रसाद सिंह |
36. | परिंदे, लवर्स, लंदन की एक रात, डेढ़ इंच ऊपर, कुत्ते की मौत, अँधेरे में, जलती झाड़ी, माया-दर्पण, धूप का एक टुकड़ा, पोस्टकार्ड, बीच बहस में | निर्मल वर्मा |
37. | राजा निरबंसिया, युद्ध, एक अश्लील कहानी, नीली झील, जार्ज पंचम की नाक, देवा की माँ, मांस का दरिया, बयान जो लिखा नहीं जाता, एक रुकी हुई जिंदगी | कमलेश्वर |
38. | शीराजी, पत्थर की आँखें | कमल जोशी |
39. | जहाँ लक्ष्मी कैद है, प्रतीक्षा, छोटे-छोटे ताजमहल, एक दुनिया समानांतर, लहरें और परछाइयाँ, टूटना तथा अन्य कहानियाँ, एक कमजोर लड़की की कहानी, अभिमन्यु की आत्मकथा | राजेंद्र यादव |
40. | कोसी का घटवार, बदबू, दाज्यू | शेखर जोशी |
41. | जिंदगी और जोंक, डिप्टी कलेक्टरी | अमरकांत |
42. | गुलरा के बाबा, हंसा जाई अकेला, महुए का पेड़, सेमल का फूल, साबुन | मार्कण्डेय |
43. | गुलकी वन्नों, सावित्री नं० 2, बंद गली का आखिरी मकान, चाँद और टूटे हुए लोग, मुर्दो का गाँव | धर्मवीर भारती |
44. | निशा जी, तथापि, एक समर्पित महिला | नरेश मेहता |
45. | पागल कुत्तों का मसीहा, अँधेरे पर अँधेरा | सर्वेश्वर |
46. | मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, एक प्लेट पुलाव, रानी माँ का चबूतरा, गीत का चुंबन | मन्नू भंडारी |
47. | जिंदगी और गुलाब के फूल, चाँदनी में बर्फ पर, मछलियाँ, कितना बड़ा झूठ, एक कोई दूसरा, वापसी | उषा प्रियंवदा |
48. | यारों के यार, बादलों के घेरे, तिन पहाड़, ऐ लड़की | कृष्णा सोबती |
49. | बहिर्गमन, घंटा, पिता, फेस के इधर और उधर | ज्ञानरंजन |
50. | एक और विदाई, प्रश्नचिह्न | गंगाप्रसाद ‘विमल’ |
51. | अँधेरे के सिलसिले | ज्ञानप्रकाश |
52. | एक पति के नोट्स, तीन-चार दिन | महेंद्र भल्ला |
53. | चायघर में मृत्यु, चोट, हस्तक्षेप | काशीनाथ सिंह |
54. | सफेद कौआ | मंजुल भगत |
55. | गाउन, पेपरवेट, चिड़ियाघर, अलग-अलग कद के दो आदमी, फ्राक वाला घोड़ा | गिरिराज किशोर |
56. | दरियाई घोड़ा, तिरीछ, और अंत में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, दत्तात्रेय का दुःख, अरेबा-परेबा, मैंगोसिल; मोहनदास; पीली छतरी वाली लड़की, वारेन हेस्टिग्स का सांड़ | उदय प्रकाश |
निष्कर्ष
हिन्दी कहानी साहित्य ने पिछले सदी में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। ‘किशोरीलाल गोस्वामी’ की ‘इन्दुमती’ से लेकर ‘उदय प्रकाश’ की ‘पीली छतरी वाली लड़की’ तक हिन्दी कहानी ने अनेक रचनाकारों के माध्यम से समाज, संस्कृति, राजनीति और मनुष्य की गहराइयों को उजागर किया है।
प्रेमचंद, प्रसाद, अज्ञेय, यशपाल, परसाई, रेणु, भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती आदि रचनाकारों ने हिन्दी कहानी को विविध विमर्शों और शैलियों से समृद्ध किया। हिन्दी कहानी का यह विकास क्रम साहित्य में उसके स्थायी महत्व और प्रभाव को स्थापित करता है।
आज भी हिन्दी कहानीकार अपने रचना-संसार में नए प्रयोग कर रहे हैं, जिससे यह विधा नित नई ऊँचाइयों को स्पर्श कर रही है।
इन्हें भी देखें –
- कहानी: परिभाषा, स्वरूप, तत्व, भेद, विकास, महत्व उदाहरण, कहानी-उपन्यास में अंतर
- भारतेंदु युग के कवि और रचनाएँ, रचना एवं उनके रचनाकार
- हिंदी उपन्यास और उपन्यासकार: लेखक और रचनाओं की सूची
- हिंदी उपन्यास: विकास, स्वरूप और साहित्यिक महत्त्व
- रेलवे और राष्ट्रीय महिला आयोग का मानव तस्करी विरोधी गठबंधन
- काकतीय वंश 1000-1232
- चौहान वंश (7वीं शताब्दी-12वीं शताब्दी)
- परमार वंश (800-1327 ई.)
- बहमनी वंश 1347-1538
- विजयनगर साम्राज्य (1336 – 1485)
- चोल साम्राज्य (300 ई.पू.-1279ई.)
- भारत एवं विश्व में सबसे बड़ा, छोटा, लंबा एव ऊँचा
- भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति | Bharat Ratna Award
- भारत की जनजातियाँ | Tribes of India
- पुस्तकें और उनके लेखक