गयासुद्दीन तुगलक | 1320 ई.-1325 ई.)

गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.) 8 सितम्बर, 1320 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। गयासुद्दीन तुगलक का पूर्व नाम ग़ाज़ी मलिक या तुग़लक़ ग़ाज़ी था। इसने कुल 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह खिलजी वंश के अंतिम शासक कुतबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर हुआ करता था। वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ ‘ग़ाज़ी’ (काफ़िरों का वध करने वाला) शब्द जोड़ा था। गयासुद्दीन का पिता करौना तुर्क ग़ुलाम था व मां हिन्दू जाट थी।

गयासुद्दीन तुगलक का संक्षिप्त परिचय

पूर्व नाम ग़ाज़ी मलिक या तुग़लक़ ग़ाज़ी
शासनावधि8 सितम्बर 1321 – फरवरी 1325
राज्याभिषेक8 सितम्बर 1321
पूर्ववर्तीखुसरो खान
उत्तरवर्तीमुहम्मद बिन तुगलक़
निधनफरवरी 1325
कड़ा, मानिकपुर, भारत
समाधिदिल्ली, भारत
घरानातुगलक़ वंश
पिताकरौना तुगलक एक तुर्क गुलाम
गयासुद्दीन तुगलक | 1320 ई.-1325 ई.)

गयासुद्दीन तुगलक का शासन

उसने तुगलक राजवंश की स्थापना की और 1320 से 1325 तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। मंगोलो के विरुद्ध गयासुद्दीन की नीति कठोर थी। उसने मंगोल कैदियों को कठोर रूप से दंडित किया।

उसने अमरोहा की लड़ाई (1305ई) में मंगोलों को पराजित किया। जब गयासुद्दीन् मुल्तान से दिल्ली चला गया, तो सूमरो कबीले के लोगो ने विद्रोह कर दिया और थट्टा पर कब्ज़ा कर लिया। तुगलक ने ताजुद्दीन मलिक को मुल्तान का ख्वाज़ा तथा खातिर को भक्कर का गवर्नर नियुक्त किया। उसने सेहावाँ का कार्यभार मलिक अली शेर के हाथो मे सौप दिया। 1323 में, गयासुद्दीन ने अपने बेटे ज़ौना खान (बाद में मुहम्मद बिन तुगलक) को काकतीय राजधानी वारंगल के अभियान पर भेजा।

वारंगल के घेराबंदी के परिणामस्वरूप वारंगल, और काकतीय वंश का अंत हुआ। 1323 में उसने अपने बेटे मुहम्मद शाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और राज्य के मंत्रियों और रईसों से व्यवस्था के लिए एक लिखित वादा या समझौता किया। उसने तुगलकाबाद किले का निर्माण भी शुरू किया।

गयासुद्दीन तुगलक का विजय अभियान

गयासुद्दीन तुगलक की महत्त्वपूर्ण विजय निम्नलिखित थीं-

  • वारंगल व तेलंगाना की विजय (1326 ई.)
  • तिरहुती विजय, मंगोल विजय (1324 ई.) आदि।

1326 ई. में गयासुद्दीन तुगलक ने अपने पुत्र उलुगख़ाँ (जौना खान) को वारंगल पर आक्रमण करने के लिए भेजा, किन्तु वहाँ के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव को पराजित करने में वह असफल रहा। पुनः चार महीने बाद 1326 ई. में ही द्वितीय अभियान के अन्तर्गत ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने शाहज़ादे ‘जौना ख़ाँ’ अथवा उलूग खान (मुहम्मद बिन तुग़लक़) को दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभुत्व की पुन:स्थापना के लिए भेजा। जौना ख़ाँ ने वारंगल के काकतीय एवं मदुरा के पाण्ड्य राज्यों को विजित कर दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया। इस प्रकार सर्वप्रथम ग़यासुद्दीन के समय में ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया। इन राज्यों में सर्वप्रथम वारंगल था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ पूर्णतः साम्राज्यवादी था। इसने अलाउद्दीन ख़िलजी की दक्षिण नीति त्यागकर दक्षिणी राज्यों को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।

गयासुद्दीन तुगलक जब बंगाल में था, तभी सूचना मिली कि, जूना ख़ाँ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) निज़ामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया है और वह उसे राजा होने की भविष्यवाणी कर रहा है। निज़ामुद्दीन औलिया को ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने धमकी दी तो, औलिया ने उत्तर दिया कि, “हुनूज दिल्ली दूर अस्त, अर्थात् दिल्ली अभी बहुत दूर है। हिन्दू जनता के प्रति ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की नीति कठोर थी। गयासुद्दीन तुगलक संगीत का घोर विरोधी था। बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ख़िलजी ने शासन स्थापित करने के लिये जहाँ रक्तपात व अत्याचार की नीति अपनाई, वहीं गयासुद्दीन तुगलक ने चार वर्षों में ही उसे बिना किसी कठोरता के संभव बनाया।

गयासुद्दीन तुगलक द्वारा राजस्व सुधार

अपनी सत्ता स्थापित करने के बाद गयासुद्दीन तुगलक ने अमीरों तथा जनता को प्रोत्साहित किया। शुद्ध रूप से तुर्की मूल का होने के कारण इस कार्य में उसे कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। गयासुद्दीन तुगलक ने कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों के हितों की ओर ध्यान दिया। उसने एक वर्ष में इक्ता के राजस्व में 1/10 से 1/11 भाग से अधिक की वृद्धि नहीं करने का आदेश दिया। उसने सिंचाई के लिए नहरें खुदवायीं तथा बाग़ बनवायें।

गयासुद्दीन की रस्म-ए-मियान की नीति

गयासुद्दीन ने अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती और नरमी का संतुलन बनाया, जिसे रस्म-ए-मियान अर्थात ‘मध्यपंथी नीति कहा गया। गयासुद्दीन ने मध्यवर्ती जमींदारों, विशेष रूप से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए। उसने अमीरों की भी भूमि पुन: लौटा दी। 

गयासुद्दीन तुगलक द्वारा सार्वजनिक सुधार

जनता की सुविधा के लिए अपने शासन काल में गयासुद्दीन तुगलक ने क़िलों, पुलों और नहरों का निर्माण कराया। सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय गयासुद्दीन तुगलक को ही जाता है। ‘बरनी’ ने डाक-व्यवस्था का विस्तृत वर्णन किया है। शारीरिक यातना द्वारा राजकीय ऋण वसूली को उसने प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन हिन्दू जनता के प्रति उसकी कठोर नीति यथावत बनी रही। उसने हिन्दुओं का धन जमा करने की आज्ञा का निषेध किया।

गयासुद्दीन तुगलक द्वारा धार्मिक कार्य

गयासुद्दीन तुगलक एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। इस्लाम धर्म में उसकी गहरी आस्था और उसके सिद्धान्तों का वह सावधानीपूर्वक पालन करता था। उसने मुसलमान जनता पर इस्लाम के नियमों का पालन करने के लिए दबाव डाला। उसने अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णुता की नीति अपनाई थी।

गयासुद्दीन तुगलक द्वारा निर्माण कार्य

गयासुद्दीन तुगलक का किला

स्थापत्य कला के क्षेत्र में गयासुद्दीन तुगलक ने विशेष रूप में रुचि ली। गयासुद्दीन तुगलक ने जनता की सुविधा के लिए अपने शासन काल में क़िलों, पुलों और नहरों का निर्माण कराया। उसने तुग़लक़ाबाद नामक एक दुर्ग की नींव रखी। सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय ग़यासुद्दीन तुग़लक़ को ही जाता है।

गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु

बंगाल और तिरहुत के सफल अभियान के बाद सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक शीघ्रतापूर्वक तुगलकाबाद की ओर आ रहा था, मार्ग में दिल्ली से 6 किलोमीटर दूर अफगानपुर( तुगलकाबाद के पास) में लकड़ी के बने एक भवन में सुल्तान के स्वागत की व्यवस्था की गई। फरवरी-मार्च 1325 ई. में अपने स्वागत समारोह के दौरान हाथियों का प्रदर्शन देखते समय लकड़ी का भवन गिरने से सुल्तान गयासुद्दीन की मृत्यु हो गई।

कहा जाता है कि एक षड्यंत्र के तहत राजकुमार जूना खॉ (मोहम्मद बिन तुगलक ) ने उस भवन का निर्माण कराया था। इस भवन का निर्माणकर्ता अहमद अयाज था, जिसे मुहम्मद बिन तुगलक ने सुल्तान बनने पर अहमद अयाज को ख्वाजा जहां की उपाधि और वजीर का पद दिया। इस घटना के समय शेख रुकनुद्दीन महल में मौजूद था, जिसे उलूग ख़ाँ ने नमाज़ पढ़ने के बहाने उस स्थान से हटा दिया था। गयासुद्दीन तुगलक का मक़बरा तुग़लक़ाबाद में स्थित है।

गयासुद्दीन तुगलक | 1320 ई.-1325 ई.)

गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु को लेकर विभिन्न इतिहासकारों का अलग-अलग मत है –

इब्नबतुता के अनुसार– गयासुद्दीन तुगलक की हत्या का कारण जूना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) का षड्यंत्र था। बदायूनी ने इब्नबतूता के विचारों का समर्थन किया है। जबकि फरिश्ता, इसामी और बरनी ने इसे–एक अप्रत्याधित दुर्घटना माना है, षड़यंत्र नहीं।

बरनी के अनुसार–इस भवन के गिरने का कारण बिजली का गिरना बताते हैं जबकि यहया बिन अहमद सर हिंदी में लिखा है कि – भवन देवीय प्रकोप से गिरा है।

मल्फूजात (सूफी साहित्य) के अनुसार– गयासुद्दीन की मृत्यु का कारण सुल्तान द्वारा शेख निजामुद्दीन औलिया को परेशान करना था।

गयासुद्दीन तुगलक का उत्तराधिकारी

1323 ई. में गयासुद्दीन तुगलक ने अपने बेटे मुहम्मद शाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और राज्य के मंत्रियों और रईसों से व्यवस्था के लिए एक लिखित वादा या समझौता किया। उसने तुगलकाबाद किले का निर्माण भी शुरू किया।

गयासुद्दीन तुगलक से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • गयासुद्दीन तुगलक ने 1320 ई0 में नसिरुद्दीन खुसरव की हत्या करके तुगलक वंश की स्थापना की, यह उस समय लाहौर के निकट दीपालपुर का गवर्नर था।
  • गाजी मलिक का दूसरा नाम गयासुद्दीन तुगलक था गाजी का अर्थ होता है – “काफिरों का संहारक” (जो धर्म नहीं मानते उनकी हत्या करने वाला)।
  • दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला यह तीसरा वंश था।
  • गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के निकट तुगलकाबाद  नामक नगर की स्थापना की।
  • गयासुद्दीन के पुत्र का नाम जौन खाँ (मुहम्म्द बिन तुगलक) था जिसे उलूग खाँ की उपाधि प्रदान की गयी।
  • फरिश्ता के अनुसार, गाजी मलिक के पिता कुतुलुग गाजी थे बाद में कुतुलुग शब्द अपभ्रंश होते-होते तुगलक हो गया और ये अपने नाम के आगे तुगलक लिखने लगे।
  • ग्यासुद्दीन तुगलक दिन में दो बार सुबह-शाम दरबार लगाता था।
  • ग्यासुद्दीन तुगलक पहला ऐसा सुल्तान था जिसने सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण कराया।
  • ग्यासुद्दीन तुगलक ने डाक व्यवस्था को सुदृढ बनाया।
  • ग्यासुद्दीन तुगलक ने असैनिक पदाधिकारियों को जागीर देने की प्रथा पुन: शुरु की।
  • अमीर खुसरो के अनुसार, गयासुद्दीन तुगलक एक विद्वान शासक था।
  • गयासुद्दीन के समय में दिल्ली सल्तनत के आय के स्त्रोत निम्न थे-  
  • जजिया – यह मुसलमानों से लिया जाने वाला वैयक्तिक कर था।
  • जकात – मुसलमानों द्वारा अपने सम्पत्ति का कुछ हिस्सा दान करना जकात कहलाता है।
  • खुम्स – यह गैर मुसलमानों से लिया जाने वाला कर था जो लोग मुसलमान नही थे वह ये कर अदा करते थे।
  • खम्स – लूट में प्राप्त धन खुम्स कहा जाता था।

इन्हें भी देखें –

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