ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 | भारत की स्थिति, चुनौतियाँ और भविष्य की राह

21वीं सदी में जब दुनिया तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से तीव्र गति से आगे बढ़ रही है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि प्रगति का यह मार्ग सभी वर्गों और लिंगों के लिए समान रूप से उपलब्ध हो। यद्यपि शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्यस्थल और राजनीति जैसे अनेक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है, लेकिन वास्तविकता यह दर्शाती है कि लिंग समानता की दिशा में अभी भी लंबा सफर तय करना शेष है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 इसी असमानता को मापने का एक वैश्विक प्रयास है, जो हमें बताती है कि हम आज कहां खड़े हैं और भविष्य में क्या कुछ बेहतर किया जा सकता है।

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ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट क्या है?

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट एक वार्षिक रिपोर्ट है जिसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum – WEF) द्वारा प्रकाशित किया जाता है। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर लिंग समानता की स्थिति को आंकना और यह दिखाना होता है कि विभिन्न देशों ने इस दिशा में कितनी प्रगति की है। रिपोर्ट चार प्रमुख क्षेत्रों में लिंग अंतर को मापती है:

  1. आर्थिक भागीदारी और अवसर (Economic Participation and Opportunity)
  2. शैक्षिक उपलब्धि (Educational Attainment)
  3. स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा (Health and Survival)
  4. राजनीतिक सशक्तिकरण (Political Empowerment)

रिपोर्ट का पहला संस्करण वर्ष 2006 में आया था और 2025 का संस्करण इसका 19वां संस्करण है।

भारत की स्थिति 2025 की रिपोर्ट में

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 के अनुसार भारत की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। रिपोर्ट में भारत को 131वां स्थान प्राप्त हुआ है, जो कि पिछले वर्ष (2024) की तुलना में दो स्थान नीचे है। कुल 148 देशों की सूची में भारत की रैंकिंग बताती है कि देश को अभी लिंग समानता की दिशा में काफी सुधार की आवश्यकता है।

प्रमुख आँकड़े:

  • भारत की रैंक (2025): 131
  • भारत की रैंक (2024): 129
  • कुल देशों की संख्या: 148
  • भारत का लिंग समानता स्कोर: 64.4%
  • स्कोर में सुधार: 0.3 प्रतिशत अंकों का सकारात्मक बदलाव

रैंक में गिरावट के बावजूद स्कोर में थोड़ा सुधार देखा गया है, जो यह संकेत देता है कि भारत में कुछ क्षेत्रों में प्रगति हुई है, लेकिन वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप नहीं है।

क्षेत्रीय विश्लेषण: दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट केवल वैश्विक तुलना तक सीमित नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय विश्लेषण भी प्रस्तुत करती है। दक्षिण एशिया के संदर्भ में भारत की स्थिति निम्नानुसार है:

देशरैंक (2025)
बांग्लादेश24
भूटान119
नेपाल125
श्रीलंका130
भारत131
मालदीव138
पाकिस्तान148

इस तालिका से स्पष्ट होता है कि बांग्लादेश ने लिंग समानता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, जबकि भारत नेपाल, श्रीलंका और भूटान से भी पीछे है। केवल मालदीव और पाकिस्तान ही भारत से नीचे हैं।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य: क्षेत्रीय प्रदर्शन

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। इसमें पाया गया है कि:

  • यूरोप: सबसे आगे, लगभग 97% लिंग समानता प्राप्त कर चुका है।
  • उत्तरी अमेरिका: यूरोप के बाद, उच्च स्कोर के साथ।
  • लैटिन अमेरिका और कैरिबियन: मध्यम स्थिति, परंतु स्थिर सुधार।
  • एशिया और प्रशांत क्षेत्र: विविध स्थिति – कुछ देशों में प्रगति, तो कई देशों में ठहराव।
  • दक्षिण एशिया और MENA (मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका): सबसे पीछे – इन क्षेत्रों में केवल 60-66% के आसपास समानता है।

रिपोर्ट में चिन्हित प्रमुख समस्याएं और चुनौतियाँ

1. पूर्ण लैंगिक समानता में लगने वाला समय

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि वर्तमान गति से ही प्रगति होती रही, तो वैश्विक स्तर पर पूर्ण लैंगिक समानता प्राप्त करने में 123 वर्ष लगेंगे। इसका मतलब है कि अगली कुछ पीढ़ियों तक भी हम पूर्ण समानता का अनुभव नहीं कर पाएंगे।

2. आर्थिक असमानता

महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और वेतनमान अब भी पुरुषों की तुलना में काफी पीछे है। महिलाएं औसतन पुरुषों की तुलना में 20-30% कम वेतन प्राप्त करती हैं। इस असमानता को दूर करने के लिए वेतन पारदर्शिता, मातृत्व अवकाश नीति, कार्यस्थल पर सुरक्षा और लचीलापन जैसे उपायों की जरूरत है।

3. राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी

राजनीतिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में भारत की स्थिति विशेष रूप से कमजोर है। संसद और विधायिकाओं में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत सीमित है। रिपोर्ट दर्शाती है कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों और राजनीतिक प्रशिक्षण की जरूरत है।

4. शिक्षा और स्वास्थ्य में क्षेत्रीय विषमता

हालांकि शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन यह पूरे भारत में समान रूप से नहीं फैला है। ग्रामीण क्षेत्रों, आदिवासी समुदायों और अल्पसंख्यक वर्गों में अभी भी लड़कियों की स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF): एक परिचय

स्थापना और इतिहास

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की स्थापना 1971 में यूरोपीय प्रबंधन मंच (European Management Forum) के रूप में हुई थी। इसका उद्देश्य था यूरोपीय कंपनियों को अमेरिकी प्रतिस्पर्धियों की तरह आधुनिक प्रबंधन रणनीतियों से परिचित कराना।

नाम परिवर्तन और विस्तार

1987 में इस संस्था का नाम बदलकर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) रख दिया गया, और इसके कार्यक्षेत्र को वैश्विक आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी और पर्यावरणीय मुद्दों की ओर विस्तारित किया गया।

मुख्यालय और संस्थापक

  • मुख्यालय: कोलॉनी, स्विट्ज़रलैंड
  • संस्थापक: क्लॉस श्वाब, एक जर्मन अर्थशास्त्री जिन्होंने “स्टेकहोल्डर पूंजीवाद” की अवधारणा को बढ़ावा दिया।

WEF का उद्देश्य और कार्य

WEF का मूल उद्देश्य है:

“दुनिया की स्थिति को बेहतर बनाना”

इसके लिए यह संस्था सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है ताकि वैश्विक समस्याओं का स्थायी समाधान खोजा जा सके।

प्रमुख गतिविधियाँ:

  1. दावोस बैठक: प्रत्येक वर्ष जनवरी में दावोस (स्विट्ज़रलैंड) में विश्व नेता, नीति निर्माता, उद्योगपति, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार इकट्ठा होते हैं ताकि वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श हो सके।
  2. प्रकाशन:
    • ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट
    • ग्लोबल प्रतिस्पर्धात्मकता रिपोर्ट
    • फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट
    • एनर्जी ट्रांजिशन इंडेक्स

भारत के लिए सुझाव और भविष्य की राह

1. नीति-निर्माण में लिंग दृष्टिकोण को शामिल करना

सरकारी और गैर-सरकारी योजनाओं में लिंग आधारित दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बजट निर्माण, शहरी योजनाओं, डिजिटल साक्षरता, और स्टार्टअप नीति जैसी योजनाओं में महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाना चाहिए।

2. शिक्षा और कौशल विकास पर जोर

लड़कियों की शिक्षा में निवेश, STEM (विज्ञान, तकनीकी, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्रों में उनकी भागीदारी को बढ़ाना, और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना आवश्यक है।

3. कार्यस्थल में सुधार

महिलाओं के लिए सुरक्षित, लचीला और प्रगतिशील कार्य वातावरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ सख्त कानून और मातृत्व लाभ जैसे अधिकारों की कड़ाई से पालना होनी चाहिए।

4. ग्रामीण और सामाजिक रूप से वंचित महिलाओं के लिए विशेष पहल

SC/ST, आदिवासी, अल्पसंख्यक और ग्रामीण महिलाओं के लिए विशिष्ट योजनाएं और संसाधन आवश्यक हैं, ताकि वे भी मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकें।

5. पुरुषों की भागीदारी

लैंगिक समानता केवल महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं है। इसके लिए पुरुषों को भी संवेदनशील बनाना, घर के कामों में भागीदारी, और समाज में समता का समर्थन करना जरूरी है।

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 ने भारत के सामने एक आईना रखा है, जो दर्शाता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं और कहाँ ठहर गए हैं। स्कोर में हल्की प्रगति आशा की किरण जरूर है, लेकिन रैंकिंग में गिरावट यह बताती है कि वैश्विक मंच पर हमें अधिक तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है। यदि भारत को सचमुच विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर होना है, तो यह जरूरी है कि लिंग समानता को केवल एक ‘महिला मुद्दा’ न समझा जाए, बल्कि यह एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बने।

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