जनपद एवं महाजनपद | Janpadas and Mahajanapadas | 600-325 ई. पू.

जनपद एवं महाजनपद की शुरुआत वैदिक सभ्यता के पश्चात छठी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग हो चुकी थी। वैदिक सभ्यता के पश्चात छठी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग लोग छोटे-छोटे समूहों में नदियों के किनारे बसने लगे थे, इन स्थानों को ‘जनपद’ कहा जाता था। ये लोग ‘आर्य’ कहलाते थे। आर्य का शाब्दिक अर्थ ‘श्रेष्ठ’ होता है। आर्य जातियों के परस्पर विलीनीकरण से ही जनपदों का विकास हुआ है। जनपद वैदिक भारत के प्रमुख राज्य थे। 6ठी सदी ईसा पूर्व तक लगभग 22 विभिन्न जनपद थे।

महाजनपद का निर्माण

उत्तर प्रदेश और बिहार के भागों में लोहे के विकास के साथ, जनपद ओर ज़्यादा ताकतवर हो गए और महाजनपद में तब्दील हो गए । बड़े एवं शक्तिशाली जनपदों को ‘महाजनपद’ कहा जाता था। महाजनपदों का विकास छठी शताब्दी ईसा पूर्व से प्रारंभ हुआ था। 600 ईसा पूर्व से 325 ईसा पूर्व के दौरान भारत के उपमहाद्वीपों में इस तरह के 16 महाजनपद थे।  इस समय पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार में लोहे का व्यापक प्रयोग प्रारंभ हो गया था।

इससे उपज में वृद्धि एवं आर्थिक परिवर्तन होने प्रारंभ हो गए। इससे वाणिज्य एवं व्यापार आगे बढ़े। लोहे के हथियारों के उपयोग से क्षत्रिय वर्ग और अधिक शक्तिशाली हो गए। इन सभी परिवर्तनों की वजह से ऋग्वैदिक काल के कबीलाई जनजीवन में परिवर्तन हुए एवं क्षेत्रीय भावना के जाग्रत होने के कारण ‘नगर’ बनाए जाने लगे। महाजनपदों की कुल संख्या 16 थी। इसका उल्लेख हमें बौद्ध ग्रंथ ‘महावस्तु’, ‘अंगुत्तर निकाय’ तथा जैन ग्रंथ ‘भगवती सूत्र’ से प्राप्त होता है।

इस समय महाजनपद मगध, कौशल, वत्स तथा अवंती सबसे अधिक शक्तिशाली महाजनपद थे। ‘अश्मक’ एकमात्र एक ऐसा जनपद था, जो दक्षिण भारत की गोदावरी नदी के तट पर स्थित था। वज्जि तथा मल्ल महाजनपद में गणतंत्रात्मक व्यवस्था थी, जबकि अन्य सभी महाजनपदों में राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी। ‘महापरिनिर्वाणसुत्त’ नामक ग्रंथ से छह महानगरों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। यह महानगर हैं- चंपा, राजगृह, काशी, कौशांबी, श्रावस्ती एवं साकेत।

इस काल के प्रमुख महाजनपद मगध ने अन्य सभी महाजनपदों पर विजय प्राप्त कर मगध साम्राज्य का निर्माण किया था। वैशाली का ‘लिच्छवी गणराज्य’ विश्व का प्रथम गणराज्य माना जाता है। यह वज्जि संघ की राजधानी थी। इस गणतंत्र का गठन 500 ईसा पूर्व में हुआ था। विश्व का सबसे प्राचीन वैभवशाली महानगर ‘पाटलिपुत्र’ (221 ईसा पूर्व) है। विश्व के प्राचीनतम विद्यालयों में से एक प्राचीन भारत का ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ है। इसकी स्थापना गुप्त वंश के शासक ‘कुमारगुप्त प्रथम’ द्वारा की गई थी।

16 महाजनपदों का नाम एवं विवरण

600 ईसा पूर्व से  325 ईसा पूर्व  के दौरान 16 महाजनपद थे जिनका उल्लेख आरंभिक बौद्ध साहित्य के अंगुत्तरा, निकाया, महावस्तु और जैन साहित्य के भगवती सुत्त में किया गया है, इन सोलह महाजनपदो का विवरण इस प्रकार है :-

जनपद एवं महाजनपद Janpadas and Mahajanapadas

क्रमांक महाजनपद राजधानीस्थान
1.अंगचंपाबिहार में मुंगेर और भागलपुर के आधुनिक जिलों को सम्मिलित करके बनाया गया था।
2.मगधपहले राजगृह, बाद में पाटलीपुत्रपटना और गया के आधुनिक जिलों और शाहबाद के कुछ हिस्सों को सम्मिलित करके बनाया गया था।
3.मल्लाकुशिनारा  और पावा में राजधानी होनादेवरिया, बस्ती, गोरखपुर, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर के आधुनिक जिलों को सम्मिलित करके बनाया गया था।
4.वज्जिवैशालीबिहार में गंगा नदी के उत्तर में स्थित क्षेत्र था।
5.कोशलश्रावस्तिवर्तमान के फ़रीदाबाद, गोंडा, पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले को सम्मिलित करके बनाया गया था।
6.काशीवाराणसीवाराणसी (आधुनिक बनारस ) के आसपास के क्षेत्रों में  स्थित क्षेत्र था।
7.चेदिशुक्तिमतिवर्तमान के बुंदेलखंड प्रांत को सम्मिलित करके बनाया गया था।
8.कुरुइंद्रप्रस्थहरियाणा और दिल्ली को सम्मिलित करके बनाया गया था।
9.वत्सकौशांभीप्रयागराज और मिर्ज़ापुर को सम्मिलित करके बनाया गया था।
10.पांचालअहिछात्र (उत्तर पांचाल) और कंपिल्या (दक्षिण पांचाल)वर्तमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों से यमुना नदी के पूर्व से कोशल जनपद तक को सम्मिलित करके बनाया गया था।
11.मत्स्यविराटनगरराजस्थान में अलवर, भरतपुर और जयपुर के क्षेत्रों को सम्मिलित करके बनाया गया था।
12.शूरसेनामथुरामथुरा के आसपास के क्षेत्रों को सम्मिलित करके बनाया गया था।
13.अवन्तीउज्जयिनी और महिष्मतीपश्चिमी भारत को सम्मिलित करके बनाया गया था।
14.आष्मकपोटानाभारत के दक्षिणी हिस्से में नर्मदा और गोदावरी  नदियों के बीच स्थित क्षेत्र था।
15.कम्बोजआधुनिक कश्मीर के राजपुरा में राजधानीहिंदकुश (पाकिस्तान का आधुनिक हाज़रा ज़िला ) को सम्मिलित करके बनाया गया था।
16.गांधारतक्षशिलापाकिस्तान के पश्चिमी भाग और पूर्वी अफ़गानिस्तान को सम्मिलित करके बनाया गया था।
अंगुत्तर निकाय’ से प्राप्त 16 महाजनपदों के उल्लेख का विवरण इस प्रकार है –

1. मगध महाजनपद

मगध चार शक्तिशाली महाजनपदों में से एक था। इसकी राजधानी ‘राजगृह’ या ‘गिरीब्रज’ थी। कालांतर में मगध की राजधानी परिवर्तित होकर ‘पाटलिपुत्र’ हो गई। यह उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली महाजनपद था।

2. कोशल महाजनपद

इस महाजनपद की राजधानी ‘श्रावस्ती’ थी। रामायणकालीन कोशल राज्य की राजधानी ‘अयोध्या’ थी। इस महाजनपद का विस्तार उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में सई नदी तक एवं पश्चिम दिशा में पांचाल से लेकर पूर्व दिशा में गंडक नदी तक था।

3. काशी महाजनपद

इस महाजनपद की राजधानी ‘वाराणसी’ थी। ‘सोननंद’ नामक जातक कथा से जानकारी प्राप्त होती है कि मगध, कोशल एवं अंग महाजनपदों के ऊपर काशी का अधिकार था। काशी का सबसे शक्तिशाली राजा ‘ब्रह्मदत्त’ था। इसने कोशल महाजनपद पर विजय प्राप्त की थी।

4. अंग महाजनपद

इस महाजनपद की राजधानी ‘चंपा’ थी। महात्मा बुद्ध के समय में चंपा नगर की गणना भारतवर्ष के छह महानगरों में की जाती थी। ‘महापरिनिर्वाणसुत्त’ नामक ग्रंथ के अनुसार चंपा के अतिरिक्त 5 महानगर राजगृह, साकेत, श्रावस्ती, बनारस तथा कौशांबी थे। प्राचीन समय में चंपा नगरी वाणिज्य – व्यापार एवं वैभव हेतु सुप्रसिद्ध थी।

5. वज्जि महाजनपद

यह महाजनपद 8 राज्यों का संघ था। इसमें वज्जि के अतिरिक्त वैशाली के लिए लिच्छवि, मिथिला के विदेह एवं कुंडग्राम के ज्ञातृक शामिल थे। महात्मा बुद्ध के समय में यह एक शक्तिशाली संघ हुआ करता था।

6. चेदि/चेति महाजनपद

इसकी राजधानी ‘सूक्तिमति या सोत्थिवती’ थी। ‘चेतिय’ नामक जातक कथा के अनुसार यहाँ के एक राजा का नाम ‘उपचर’ था। महाभारत काल में यहाँ का प्रसिद्ध शासक ‘शिशुपाल’ था। इसका वध ‘श्री कृष्ण’ द्वारा किया गया था।

7. मल्ल महाजनपद

यह भी एक संघ था। इसकी दो शाखाएँ थी। ये पावा एवं कुशीनारा की शाखाएँ थी। ‘कुस जातक कथा’ के अनुसार यहाँ का राजा ‘ओक्काक’ था।

8. वत्स महाजनपद

वत्स महाजनपद की राजधानी ‘कौशांबी’ थी। बुद्ध के समय में यहाँ पर ‘पौरव वंश’ के शासक शासन करते थे। इनमें से एक था ‘उद्यन’ था। पुराणों से के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उद्यन के पिता ‘परंपत’ ने अंग की राजधानी ‘चंपा’ पर विजय प्राप्त की थी।

9. पांचाल महाजनपद

प्रारंभ में पांचाल के दो भाग थे – उत्तरी पांचाल तथा दक्षिणी पांचाल। उत्तरी पांचाल की राजधानी ‘अहिच्छत्र’ एवं दक्षिणी पांचाल की राजधानी ‘काम्पिल्य’ थी।

10. मत्स्य (मच्छ) महाजनपद

इस महाजनपद की राजधानी ‘विराटनगर’ थी। इसकी स्थापना ‘विराट’ नामक राजा ने की थी। महात्मा बुद्ध के समय में इसका कोई विशेष राजनैतिक महत्व नहीं था।

11. कुरु महाजनपद

कुरु महाजनपद की राजधानी ‘इंद्रप्रस्थ’ थी। महात्मा बुद्ध के समय में यहाँ का राजा ‘कोरव्य’ था।

12. शूरसेन महाजनपद

इस महाजनपद की राजधानी ‘मथुरा’ थी। बुद्ध के समय में यहाँ का राजा ‘अवंतिपुत्र’ था। यह बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक था। प्राचीन समय के यूनानी लेखक ने इस राज्य को ‘शूरसेनोई’ कहा है तथा इसकी राजधानी को ‘मेथोरा’ कहा है।

13. अवंती महाजनपद

यह प्राचीन समय के चार शक्तिशाली महाजनपदों में से एक था। उत्तरी अवंति की राजधानी ‘उज्जयिनी’ एवं दक्षिणी अवंति की राजधानी ‘माहिष्मती’ थी। अवंती में लोहे की खाने थीं एवं लुहारों द्वारा इस्पात के उत्कृष्ट अस्त्र-शस्त्र बनाए जाते थे। राजनीतिक एवं आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से उज्जिनी प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण नगर था। कालांतर में यह राज्य सैनिक दृष्टि से भी अत्यंत सबल हो गया।

14. कंबोज महाजनपद

इस महाजनपद की राजधानी ‘राजपुर’ या ‘हाटक’ थी। यह गांधार महाजनपद का पड़ोसी था। प्राचीन भारत में यह महाजनपद अपने ‘सर्वश्रेष्ठ घोड़ों’ हेतु सुविख्यात था।

15. गांधार महाजनपद 

गांधार की राजधानी ‘तक्षशिला’ थी। यह प्रमुख व्यापारिक नगर था। इस कारण यह प्राचीन भारत का प्रमुख शिक्षा केंद्र भी बन गया।

16. अश्मक महाजनपद

यह दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद था। इस महाजनपद की राजधानी ‘पोतन’ या ‘पोटली’ थी। पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है, कि अश्मक के राजतंत्र की स्थापना ‘इक्ष्वाकु वंश’ के शासकों द्वारा की गई थी।

महाजनपदों का विस्तार

मगध राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा, पश्‍चिम में सोन तथा दक्षिण में जगंलाच्छादित पठारी प्रदेश तक था । पटना और गया ज़िला का क्षेत्र प्राचीनकाल में मगध के नाम से जाना जाता था । मगध प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान, पतन एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केन्द्र बिन्दु रहा है।

जनपद एवं महाजनपद | Janpadas and Mahajanapadas | 600-325 ई. पू.

मगध बुद्ध के समकालीन एक शक्‍तिकाली व संगठित राजतन्‍त्र था । गौतम बुद्ध के समय में मगध में बिंबिसार और तत्पश्चात् उसके पुत्र अजातशत्रु का राज था। इस समय मगध की कोसल जनपद से बड़ी अनबन थी यद्यपि कोसल-नरेश प्रसेनजित की कन्या का विवाह बिंबिसार से हुआ था। इस विवाह के फलस्वरूप काशी का जनपद मगधराज को दहेज के रूप में मिला था। यह मगध के उत्कर्ष का समय था और परवर्ती शतियों में इस जनपद की शक्ति बराबर बढ़ती रही।

महाजनपदों का नगरीकरण

छठी सदी ईसा पूर्व का काल आर्थिक प्रगति एवं द्वितीय नगरीकरण का काल कहलाता है। इस काल में कृषि में लोहे का प्रयोग शुरू हुआ ,पक्की ईंटों का प्रयोग अधिक किया जाने लगा और सैन्य हथियारों में भी लोहे के प्रयोग के कारण एक क्रांति आई। साम्राज्य का उदय प्रारंभ हुआ और इस प्रकार नगरों के विकास के कारण रोजगार एवं व्यवसाय के भी नए-नए सृजन हुए । अरण्यकों  में पहली बार “नगर” शब्द का उल्लेख किया गया है। इस काल में कुल 60 नगरों की जानकारी मिलती है। बुद्ध कालीन 6  प्रमुख नगर राजगिरी, चंपा, कौशांबी, साकेत, श्रावस्ती एवं वाराणसी थे।

महाजपदों का जीवन, व्यवसाय व व्यापार

इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की कलाएं प्राचीनकाल से ही है और यही कालांतर में कलाकारों की रोजी-रोटी तथा व्यवसाय का मुख्य साधन बनीं। हालांकि आधुनिक कलाओं, उत्पादों और व्यवसायों से पारंपरिक व्यवसाय प्रभावित जरुर हुआ था , फिर भी इन व्यवसायों एवं पारंपरिक उत्पादों का अपना महत्त्व एवं बाज़ार में पूछ भी था। इसलिए यह कहना कि ” आज के पारंपरिक उद्योगों पर संकट ही संकट है’ पूर्णत: उचित नहीं है ।

मगध जुड़े पारंपरिक व्यवसाय व्यापकता, वायपारिक घाटा लाभ, स्थानीय समस्याएं व उनके समाधान तथा अन्य तकनीकि पक्षों पर भी न डालते चलें । यहाँ के प्रमुख पारंपरिक उद्योगों में वस्र-उद्योग, मिष्टान्न उद्योग बांस से उत्पादित वस्तु उद्योग, पाषाण एवं काष्ठ मूर्ति उद्योग, वाद्य यंत्र उद्योग, ऊन एवं कंबल उद्योग, हस्तकला के अन्य उद्योग, शराब एवं ताड़ी उद्योग मुख्य हैं ।

महाजनपदों में से अधिकांश व्यापारिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण थे क्योंकि वे भरत के मुख्य व्यापारिक मार्गों पर स्थित थे और इनके सहारे बहुमूल्य सामानों का यातायात होता था। महाजनपदों में इस समय तक विभिन्न प्रकार के व्यवसाय भी प्रचलित हो चुके थे, जिनमे व्यापार व कृषि के अतिरिक्त पशुपालक, दर्जी, हजाम, रसोइये, धोबी, रंगरेज इत्यादि का नाम उल्लेखनीय है । 

शासकों के द्वारा विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञों को भी बहाल किया जाता था, जिनमें  पैदल योद्धा, धनुर्धारी ,घुड़सवार, हाथी पर युद्ध करने वाले तथा रथ चलाने वाले  सभी थे। नगरीय व्यवसायों में वैद्य, शल्य चिकित्सक  तथा लेखाकार भी सम्मिलित थे मुद्रा विनिमय-करता  और गणना भी नगरीय व्यवसाय में आता था। नट (कलाकार या रंगकर्मी), नटक (नर्तक), शोकजयिक (जादूगर), नगाड़ा बजाने वाले , भविष्यवक्ता  इत्यादि की भी चर्चा ऐतिहासिक स्रोतों में की गयी है।

जनपद एवं महाजनपद | Janpadas and Mahajanapadas | 600-325 ई. पू.

महाजनपदों में मेले भी आयोजित होते थे जिन्हें “समाज” कहा जाता था। विभिन्न प्रकार के शिल्पों का भी उल्लेख हमें मिलता है।  इनको बनाने वाले शिल्पकार नगरों में रहते थे। इनमें यानकार, दंतकार (हाथी दांत की वस्तु बनाने वाले), कर्मकार (धातु का काम करने वाले), स्वर्णकार, कोशीयकार (रेशम का काम करने वाले), पालकण्ड (बढ़ई), सूचीकार (सुई बनाने वाले), नलकार और मालाकार तथा कुम्भकार(कुम्हार) प्रमुख हैं।

विभिन्न प्रकार के श्रेणी सन्गठन का होना भी इस काल की एक प्रमुख विशेषता थी। महाजनपदों के समय ही पहली बार मुद्रा का भी प्रोग किया गया । इतिहास में पहली बार मुद्रा का प्रयोग इस काल की एक अन्य अहम विशेषता है । 

इस काल में निर्मित सिक्कों को आहत सिक्का कहा जाता था जो आमतौर पर चांदी के होते थे। इसी समय कार्षापन, पाद, मासिक, काकिर्ण आदि सिक्कों का भी उल्लेख मिलता है। आहत सिक्का जिसे पंचमार्क सिक्का भी कहते हैं, भारत का प्राचीनतम सिक्का है। इसके प्रथम प्रमाण तक्षशिला में मिलते हैं। क्योंकि तक्षशिला गांधार क्षेत्र में आता था इसीलिए कई बार इसे गांधारण सिक्का  भी कहा जाता है | 

महाजनपदों की राजनैतिक व्यवस्था 

महाजनपदों में आमतौर पर राजतन्त्र था जहाँ  राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के भी उल्लेख ऐतिहासिक स्रोतों में मिलते हैं। ऐसे  राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था और  इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।

जैन  महावीर और गौतम  बुद्ध ऐसे ही गणों से संबंधित थे। जैन महावीर वज्जी संघ के ग्यात्रिक  कुल के थे, जबकि बुद्ध का सम्बन्ध शक्य गण से था। बुद्ध के पिता सुद्दोधन कपिलवस्तु के शाक्य गण के राजा थे।

वज्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे। यद्यपि स्रोतों के अभाव में इन राज्यों के इतिहास की पूरी जानकारी नहीं मिलती,  लेकिन ऐसे कई राज्य लगभग एक हज़ार साल तक बने रहे।

प्रत्येक महाजनपद की राजधानी को  प्राय: किले से घेरा जाता था। किलेबंद राजधानियों के रख-रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए  आर्थिक राजस्व स्रोत की भी आवश्यकता होती थी, जिसके लिए शासक व्यापारियों, शिकारियों, चरवाहों, कृषकों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलते थे।

इन राजाओं ने नियमित सेनाएँ रखीं। फसलों पर आमतौर पर उनके मूल्य के 1/6 भाग पर कर लगाया जाता था। इन राज्यों की कुछ विशेषताएं भी थी। इनका प्रमुख एक निर्वाचित राजा होता था जिसके कारण गण में विद्रोह की संभावना कम रहती थी। जनता आमतौर पर अनुशासन प्रिय थी, एवं राज-आज्ञा का पालन करना अपना धर्म समझती थी। बदले में प्रशासन भी उदार हुआ करता था और जनता के हित में होता था। न्याय एवं सुरक्षा पर विशेष बल दिया जाता था। साथ ही आपसी सदभाव भी कायम रखना इन गणों का दायित्व था।

इन सभी महाजनपदों में मगध, वत्स, अवन्ती और कोशल सबसे विशिष्ट थे। इन चारों महाजनपदों में से मगध सबसे शक्तिशाली राज्य की तरह उभरा। मगध की जीत के निम्न कारण थे –

  • मगध महाजनपद के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में अच्छे लोहे की भारी उपलब्धता थी, जिसका इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए किया जाता था।
  • मगध महाजनपद के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र गंगा में मैदान में होने के कारण इन स्थानों का अच्छे और उपजाऊ होना।
  • हाथियों का सैन्य युद्ध में पड़ोसी देशों के खिलाफ इस्तेमाल करना।

मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है । इससे सूचित होता है कि प्राय: उत्तर वैदिक काल तक मगध, आर्य सभ्यता के प्रभाव क्षेत्र के बाहर था। अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है । मगध बुद्धकालीन समय में एक शक्‍तिशाली राजतन्त्रों में एक था ।

यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्‍तिशाली महाजनपद बन गया । यह गौरवमयी इतिहास और राजनीतिक एवं धार्मिकता का विश्‍व केन्द्र बन गया । हालांकि ऋग्वेद में मगध का प्रत्यक्ष उल्लेख तो नहीं मिलता है, किंतु कीकट जाती और उसके राजा परम अंगद की चर्चा जरुर मिलती है जो कि संभवत इसी क्षेत्र से संबंधित है।


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