भारतीय दर्शन और उनके प्रवर्तक | Darshan & Pravartak

भारतीय दर्शन और उनके प्रवर्तक मानव जीवन की गहरी आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाते हैं। भारत में दर्शन का अर्थ केवल बौद्धिक चिंतन नहीं, बल्कि तत्व का साक्षात्कार और आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताना है। आस्तिक और नास्तिक दोनों प्रकार की दार्शनिक परंपराएँ यहाँ विकसित हुईं—सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत जैसे वेदसम्मत दर्शन से लेकर बौद्ध, जैन और लोकायत जैसे नास्तिक दर्शन तक। इनके प्रवर्तकों ने अपने-अपने सिद्धांतों के माध्यम से जीवन, आत्मा, ब्रह्म और मोक्ष की व्याख्या की। कपिल, पतंजलि, गौतम, कणाद, जैमिनी, बादरायण, चार्वाक, बुद्ध और महावीर जैसे आचार्यों ने भारतीय चिंतन को नई दिशा दी।

इसी परंपरा से भक्ति आंदोलन के अनेक संप्रदाय जन्मे—शंकराचार्य का अद्वैत, रामानुज का विशिष्टाद्वैत, मध्वाचार्य का द्वैत, निम्बार्क का द्वैताद्वैत, वल्लभाचार्य का पुष्टिमार्ग और चैतन्य का अचिंत्यभेदाभेद, जिन्होंने भक्ति को मोक्ष का सर्वोत्तम मार्ग बताया। कबीर, गुरु नानक, रामानंद, स्वामी हरिदास और अन्य संतों ने भी समाज में समानता, भक्ति और आध्यात्मिक जागृति का संदेश फैलाया।

यह लेख भारतीय दर्शन की विविध धाराओं, उनके प्रवर्तकों और ऐतिहासिक महत्व का विस्तृत परिचय कराता है। UPSC, UGC-NET, दर्शनशास्त्र, साहित्य और सामान्य ज्ञान की तैयारी के लिए यह सामग्री अत्यंत उपयोगी है।

भारतीय दर्शन

भारत ज्ञान और दर्शन की भूमि रही है। यहाँ जीवन के गूढ़ प्रश्नों—जैसे आत्मा क्या है? परमात्मा का स्वरूप क्या है? जीवन का उद्देश्य क्या है? और मोक्ष का मार्ग क्या है?—का उत्तर खोजने के लिए विभिन्न दार्शनिक परंपराएँ विकसित हुईं। “दर्शन” शब्द संस्कृत धातु दृश् से बना है, जिसका अर्थ है देखना या साक्षात्कार करना। दर्शन का अर्थ केवल बौद्धिक चिंतन नहीं है, बल्कि तत्व का प्रत्यक्ष अनुभव या साक्षात्कार करना है।

भारतीय चिंतन परंपरा में दर्शन का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि मानव के दुखों की निवृत्ति और जीवन-मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करना रहा है। यही कारण है कि भारत में अनेक दार्शनिक मत विकसित हुए, जिनमें से प्रत्येक का अपना प्रवर्तक रहा, जिन्होंने अपनी विशिष्ट दार्शनिक दृष्टि से मानव जीवन को दिशा दी।

इस लेख में हम भारतीय दर्शन की मुख्य धाराओं और उनके प्रवर्तकों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

भारतीय दर्शन की विशेषताएँ

भारतीय दर्शन को समझने से पहले इसकी कुछ प्रमुख विशेषताओं को जानना आवश्यक है—

  1. आध्यात्मिक उद्देश्य – भारतीय दर्शन का मूल लक्ष्य मोक्ष (मुक्ति) है। यह केवल सैद्धांतिक ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन में शांति और मुक्ति का मार्ग बताता है।
  2. अनुभव पर बल – दर्शन में केवल शास्त्रीय तर्क ही नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव और साधना का विशेष महत्व है।
  3. नैतिक और व्यावहारिक पक्ष – यहाँ धर्म, कर्म और नैतिकता पर विशेष बल दिया गया है।
  4. विविधता में एकता – भारत में अनेक मत, संप्रदाय और दर्शन विकसित हुए, लेकिन अंततः सबका लक्ष्य सत्य और मोक्ष की प्राप्ति ही रहा।
  5. धार्मिक व दार्शनिक समन्वय – दर्शन केवल अमूर्त चिंतन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भक्ति आंदोलन, सामाजिक सुधार और धार्मिक जागरण से भी जुड़ा रहा।

भारतीय दर्शन की प्रमुख धाराएँ

भारतीय दर्शन को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है—

  1. आस्तिक दर्शन (Vedic/Orthodox Systems) – वे दर्शन जो वेदों को प्रमाण मानते हैं। जैसे – सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत।
  2. नास्तिक दर्शन (Non-Vedic/Heterodox Systems) – वे दर्शन जो वेदों की प्रमाणिकता को अस्वीकार करते हैं। जैसे – बौद्ध, जैन और लोकायत।

इन्हीं के आधार पर अनेक भक्ति संप्रदाय और विचारधाराएँ भी विकसित हुईं।

प्रमुख दर्शन और उनके प्रवर्तक (विस्तृत परिचय)

1. सांख्य दर्शन – कपिल

सांख्य दर्शन के प्रवर्तक कपिल मुनि माने जाते हैं। इस दर्शन में दो मूल तत्व माने गए हैं – पुरुष (चेतन आत्मा) और प्रकृति (जड़ जगत)। संसार की समस्त सृष्टि इन्हीं दोनों के संयोग से उत्पन्न होती है। यह दर्शन ज्ञान के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति पर बल देता है।

2. योग दर्शन – पतंजलि

योग दर्शन के प्रवर्तक पतंजलि हैं। योग का अर्थ है आत्मा और परमात्मा का मिलन। पतंजलि ने योगसूत्र में अष्टांग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) का वर्णन किया है। आज भी योग भारत की पहचान है।

3. न्याय दर्शन – अक्षपाद गौतम

न्याय दर्शन के प्रवर्तक अक्षपाद गौतम हैं। यह दर्शन तर्कशास्त्र और प्रमाण पर बल देता है। इसमें चार प्रमाण माने गए हैं – प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द। यह दर्शन बौद्धिक विवेक और युक्ति के माध्यम से सत्य की खोज करता है।

4. वैशेषिक दर्शन – कणाद (उलूक)

वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक कणाद (उलूक) हैं। इसमें परमाणु सिद्धांत दिया गया है। संसार की प्रत्येक वस्तु परमाणुओं के संयोग से बनी है। यह दर्शन भौतिक जगत की व्याख्या करता है।

5. मीमांसा/पूर्व-मीमांसा – जैमिनी

जैमिनी इसके प्रवर्तक हैं। इसमें वेदों के कर्मकांड और यज्ञों को विशेष महत्व दिया गया है। यह दर्शन मानता है कि धर्म का पालन और यज्ञादि कर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

6. वेदांत/उत्तर मीमांसा – बादरायण

वेदांत दर्शन के प्रवर्तक बादरायण (व्याख्यानकार) माने जाते हैं। इसमें उपनिषदों पर आधारित ज्ञान की व्याख्या की गई है। वेदांत में ब्रह्म को सत्य और जगत को माया माना गया है।

7. लोकायत/चार्वाक दर्शन – चार्वाक

यह नास्तिक दर्शन है जिसके प्रवर्तक चार्वाक (बृहस्पति का शिष्य) बताए जाते हैं। यह केवल प्रत्यक्ष को मानता है और आत्मा, पुनर्जन्म व मोक्ष जैसी धारणाओं को अस्वीकार करता है।

8. बौद्ध दर्शन – गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध ने दुख, उसके कारण और उसके निवारण पर बल दिया। बौद्ध दर्शन का मुख्य आधार है – चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग। यह क्षणिकवाद और अनात्मवाद की व्याख्या करता है।

9. जैन दर्शन – महावीर

जैन दर्शन के प्रवर्तक महावीर स्वामी माने जाते हैं। इसमें स्यादवाद और अहिंसा का विशेष महत्व है। यह दर्शन जीव और अजीव के भेद को समझाता है और तप-त्याग पर बल देता है।

भक्ति आंदोलन और दार्शनिक मत

भारतीय दर्शन ने भक्ति आंदोलन को भी जन्म दिया। वेदांत की विभिन्न शाखाओं और आचार्यों ने अलग-अलग संप्रदायों की स्थापना की।

  • अद्वैत वेदांत – शंकराचार्य
    शंकराचार्य ने “ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या” का सिद्धांत दिया और अद्वैतवाद का प्रतिपादन किया।
  • विशिष्टाद्वैत – रामानुजाचार्य
    रामानुज ने ईश्वर और जीव को अभिन्न मानते हुए भक्ति को मुक्ति का साधन बताया।
  • द्वैतवाद – मध्वाचार्य
    मध्वाचार्य ने जीव और ब्रह्म को भिन्न माना और भक्ति को सर्वोपरि बताया।
  • निम्बार्काचार्य – द्वैताद्वैत मत
    निम्बार्क ने जीव और ईश्वर को न तो पूर्णतः भिन्न और न ही पूर्णतः अभिन्न माना।
  • वल्लभाचार्य – पुष्टिमार्ग
    वल्लभाचार्य ने शुद्धाद्वैत और भगवान श्रीकृष्ण की साक्षात भक्ति पर बल दिया।
  • चैतन्य महाप्रभु – अचिंत्यभेदाभेद
    चैतन्य ने भक्ति को सबसे श्रेष्ठ साधन बताया।
  • हित हरिवंश – राधा वल्लभ संप्रदाय
    इस संप्रदाय ने राधा को परमेश्वरी माना।
  • रामानंद – रामानंदी संप्रदाय
    रामानंद ने रामभक्ति का प्रचार किया।
  • कबीर – कबीरपंथ
    कबीर ने निर्गुण ईश्वर की भक्ति और सामाजिक सुधार पर बल दिया।
  • गुरु नानक – सिख संप्रदाय
    गुरु नानक ने एकेश्वरवाद और मानव एकता का संदेश दिया।
  • श्रीचंद – उदासी संप्रदाय
    गुरु नानक के पुत्र श्रीचंद ने इसे स्थापित किया।
  • जंभनाथ – बिश्नुई संप्रदाय
    पर्यावरण और जीव रक्षा को प्रधानता दी।
  • स्वामी हरिदास – हरिदासी संप्रदाय
    स्वामी हरिदास ने कृष्ण भक्ति की धारा को प्रबल किया।

दर्शन और प्रवर्तकों की सारणी

क्रमदर्शन/संप्रदायप्रवर्तक
1सांख्यकपिल
2योगपतंजलि
3न्यायअक्षपाद गौतम
4वैशेषिककणाद
5मीमांसाजैमिनी
6वेदांतबादरायण
7लोकायतचार्वाक
8बौद्धगौतम बुद्ध
9जैनमहावीर
10अद्वैतशंकराचार्य
11विशिष्टाद्वैतरामानुजाचार्य
12द्वैताद्वैतनिम्बार्काचार्य
13द्वैतमध्वाचार्य
14शुद्धाद्वैतविष्णुस्वामी
15पुष्टिमार्गवल्लभाचार्य
16अचिंत्यभेदाभेदचैतन्य
17राधा वल्लभहित हरिवंश
18रामानंदी संप्रदायरामानंद
19कबीरपंथकबीर
20सिख मतगुरु नानक
21उदासी संप्रदायश्रीचंद
22बिश्नुई संप्रदायजंभनाथ
23हरिदासी संप्रदायस्वामी हरिदास

निष्कर्ष

भारतीय दर्शन की विविध धाराएँ हमें यह सिखाती हैं कि सत्य तक पहुँचने के अनेक मार्ग हो सकते हैं। कोई मार्ग तर्क और अनुभव पर आधारित है, तो कोई मार्ग भक्ति और आस्था पर। कोई आत्मा और परमात्मा की एकता पर बल देता है, तो कोई उनके भेद पर। कोई जीवन को क्षणिक मानता है, तो कोई इसे शाश्वत बताता है।

परंतु इन सभी का अंतिम लक्ष्य है – मानव के दुखों का निवारण और जीवन में शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति। यही कारण है कि भारतीय दर्शन आज भी प्रासंगिक है और विश्वभर में लोगों को प्रेरित करता है।


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