तमिलनाडु सरकार ने विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून 2025) के अवसर पर एक ऐतिहासिक घोषणा की है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नेतृत्व में राज्य सरकार ने रामनाथपुरम जिले के धनुषकोडी क्षेत्र को ग्रेटर फ्लेमिंगो अभयारण्य घोषित कर दिया है। यह निर्णय न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि दक्षिण भारत में आर्द्रभूमि पारिस्थितिकीय तंत्र और प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि भी है।
धनुषकोडी का यह अभयारण्य अब 524.7 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले अपने अद्भुत जैव विविधता और पारिस्थितिकीय तंत्र के साथ एक संरक्षित क्षेत्र के रूप में स्थापित हो गया है। यह क्षेत्र गल्फ ऑफ मन्नार बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है, जो पहले से ही समुद्री जैव विविधता के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कर चुका है।
धनुषकोडी अभयारण्य की घोषणा | पृष्ठभूमि
इस अभयारण्य की घोषणा 5 जून 2025 को की गई, जबकि इससे जुड़ा सरकारी आदेश (G.O.) 4 जून को ही जारी कर दिया गया था। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस अभयारण्य का उद्घाटन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किया, जिसमें पर्यावरण और वन विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी, मंत्रीगण तथा क्षेत्रीय वन विशेषज्ञ भी उपस्थित थे।
यह निर्णय प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (Convention on the Conservation of Migratory Species – CMS) जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत भारत की प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है। यह कदम राज्य सरकार द्वारा पारिस्थितिकीय स्थिरता, स्थानीय समुदायों की आजीविका और पर्यावरणीय शिक्षा के लिए एक समर्पित दृष्टिकोण को दर्शाता है।
धनुषकोडी अभयारण्य | स्थान और क्षेत्रीय विशेषताएं
धनुषकोडी, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित एक अर्धद्वीपीय क्षेत्र है, जो रामनाथपुरम ज़िले का हिस्सा है। यह स्थान भौगोलिक रूप से एक संवेदनशील तटीय क्षेत्र में स्थित है और अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्त्व के लिए जाना जाता है।
नए अभयारण्य की कुल क्षेत्रफल 524.7 हेक्टेयर है, जिसमें राजस्व भूमि और वन भूमि दोनों शामिल हैं। यह क्षेत्र समुद्र और आर्द्रभूमि का संगम है, जो प्रवासी पक्षियों के लिए एक आदर्श आवास प्रदान करता है।
धनुषकोडी अभयारण्य | पारिस्थितिक तंत्र की विविधता
धनुषकोडी अभयारण्य में उपस्थित पारिस्थितिकीय तंत्र बेहद समृद्ध और विविधतापूर्ण हैं। इनमें शामिल हैं:
- मैन्ग्रोव वन (Mangroves): मुख्यतः Avicennia और Rhizophora प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो समुद्री पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
- रेतीले टीले (Sand dunes): ये तटीय संरचनाएं तटीय कटाव से रक्षा करती हैं।
- कीचड़ भरे तट (Mudflats): पक्षियों के लिए भोजन खोजने का आदर्श स्थल।
- दलदल और आर्द्रभूमि (Marshes): जैव विविधता का केंद्र।
यह मिश्रित पारिस्थितिकी तंत्र इस क्षेत्र को न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है, बल्कि यह जलवायु लचीलापन (climate resilience) को भी बढ़ाता है।
धनुषकोडी अभयारण्य | पक्षी जीवन और जैव विविधता
2023-24 में हुए आर्द्रभूमि पक्षी सर्वेक्षण के अनुसार, धनुषकोडी क्षेत्र में लगभग 10,700 प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति दर्ज की गई। यह संख्या इसे भारत के प्रमुख पक्षी स्थलों में से एक बनाती है। सर्वेक्षण में 128 पक्षी प्रजातियाँ दर्ज की गईं, जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:
- ग्रेटर फ्लेमिंगो (Greater Flamingo)
- लेसर फ्लेमिंगो (Lesser Flamingo)
- बगुले (Herons और Egrets)
- सैंडपाइपर (Sandpipers)
इनके अलावा, समुद्री कछुए, प्रवासी मछलियाँ, समुद्री शैवाल और अन्य जैव प्रजातियाँ भी यहाँ की जैव विविधता को समृद्ध बनाते हैं।
सेंट्रल एशियन फ्लाईवे पर स्थित
धनुषकोडी अभयारण्य सेंट्रल एशियन फ्लाईवे (CAF) नामक प्रवासी पक्षियों की अंतरराष्ट्रीय मार्ग पर स्थित है। यह मार्ग यूरोप और एशिया से दक्षिण भारत होते हुए भारत-प्रशांत क्षेत्र की ओर जाता है। इस फ्लाईवे पर पड़ने वाले क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के विश्राम, प्रजनन और भोजन के लिए बेहद जरूरी होते हैं।
धनुषकोडी का यह अभयारण्य इस मार्ग पर पड़ने वाले सबसे महत्वपूर्ण पड़ावों में से एक है और अब संरक्षित दर्जा मिलने के बाद इसकी पारिस्थितिक भूमिका और अधिक प्रभावी हो सकेगी।
धनुषकोडी अभयारण्य का समाज और पर्यावरणीय विकास से जुड़ा महत्व
इस अभयारण्य की स्थापना केवल जैव विविधता संरक्षण तक सीमित नहीं है। यह परियोजना कई सामाजिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों को भी पूरा करती है:
- उत्तरदायी पर्यावरणीय पर्यटन (Responsible Eco-tourism):
संरक्षित क्षेत्र के रूप में यह पर्यटन स्थल पर्यावरण के प्रति संवेदनशील पर्यटन को बढ़ावा देगा। - स्थानीय समुदाय की आजीविका:
स्थानीय मछुआरों और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े समूहों को स्थायी आजीविका के साधन मिल सकेंगे। - शोध और शिक्षा का केंद्र:
जैव विविधता पर शोध करने वाले छात्रों और वैज्ञानिकों के लिए यह एक जीवित प्रयोगशाला होगी। - जलवायु लचीलापन:
तटीय कटाव और समुद्री तूफानों के खिलाफ यह प्राकृतिक रक्षा की भूमिका निभाएगा। - जन-जागरूकता:
स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय जन समुदायों के लिए यह अभयारण्य पर्यावरणीय शिक्षा का केंद्र बन सकता है।
नीतिगत समर्थन और विकास योजनाएँ
तमिलनाडु सरकार ने 2025 के राज्य बजट में ₹50 करोड़ की लागत से मरीन कंजर्वेशन फाउंडेशन की स्थापना की घोषणा की है। यह संस्था समुद्री पारिस्थितिकीय तंत्र की सुरक्षा, संवर्धन और शोध को बढ़ावा देगी। इस फाउंडेशन के अंतर्गत:
- समुद्री जैव विविधता पर शोध को सहयोग मिलेगा।
- पर्यावरणीय डेटा संग्रह और विश्लेषण होगा।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर नीति निर्माण को सहायता मिलेगी।
महत्वपूर्ण उपस्थिति और नेतृत्व
इस परियोजना के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के साथ तमिलनाडु सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री और अधिकारी शामिल हुए:
- थंगम थेनारासु – वित्त और योजना मंत्री
- आर.एस. राजाकन्नप्पन – पशुपालन मंत्री
- टी.एम. अन्बरासन – ग्रामीण उद्योग मंत्री
पर्यावरण और वन विभाग की ओर से:
- सुप्रिया साहू – अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यावरण एवं वन विभाग)
- राकेश कुमार डोगरा – वरिष्ठ वन अधिकारी
- श्रीनिवास रेड्डी – क्षेत्रीय वन संरक्षण अधिकारी
इन सभी ने इस परियोजना की सफलता और प्रभाव के लिए प्रतिबद्धता जताई।
धनुषकोडी को ग्रेटर फ्लेमिंगो अभयारण्य घोषित करना केवल एक प्रतीकात्मक निर्णय नहीं है, बल्कि यह एक ठोस और रणनीतिक पहल है जो प्रकृति संरक्षण, स्थानीय विकास, जलवायु लचीलापन और अंतरराष्ट्रीय समझौतों की प्रतिबद्धता को एक साथ जोड़ती है। इस अभयारण्य की स्थापना से न केवल तमिलनाडु, बल्कि सम्पूर्ण भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण को एक नई दिशा मिलेगी।
प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए यह एक प्रेरणादायक मॉडल बन सकता है। यदि अन्य राज्य भी इसी तरह की पहल करें, तो भारत वैश्विक पर्यावरणीय संरक्षण में एक अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
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