मानव सभ्यता के इतिहास में युद्ध, संघर्ष और हिंसा हमेशा से मौजूद रहे हैं, लेकिन जब किसी विशेष समूह को पूरी तरह से मिटाने के उद्देश्य से योजनाबद्ध हिंसा होती है, तो उसे “नरसंहार” कहा जाता है। हाल ही में एल्डर्स समूह (The Elders) ने गाज़ा संकट को “तेजी से बढ़ता नरसंहार” करार दिया है। उनका कहना है कि इज़राइल की नीतियों, विशेषकर मानवीय सहायता को रोकने के कारण गाज़ा में अकाल जैसी स्थिति पैदा हो रही है और आम नागरिकों की बड़े पैमाने पर पीड़ा सामने आ रही है। इस संदर्भ में नरसंहार की परिभाषा, उसका अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और गाज़ा की वर्तमान स्थिति को समझना महत्वपूर्ण है।
नरसंहार की परिभाषा
1948 की संयुक्त राष्ट्र नरसंहार संधि (UN Genocide Convention) में नरसंहार को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, नरसंहार वह कृत्य है, जो किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूर्ण या आंशिक रूप से नष्ट करने के इरादे से किया जाए। इसमें निम्नलिखित कार्य सम्मिलित हैं:
- समूह के सदस्यों की हत्या करना।
- गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति पहुँचाना।
- समूह को ऐसी जीवन परिस्थितियों में धकेलना, जिनसे उसका भौतिक विनाश हो।
- समूह में जन्म रोकने के उद्देश्य से उपाय लागू करना।
- समूह के बच्चों को बलपूर्वक किसी अन्य समूह में स्थानांतरित करना।
यह परिभाषा यह दर्शाती है कि नरसंहार केवल प्रत्यक्ष हत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर उस पहलू को शामिल करता है जिससे किसी समूह का अस्तित्व खतरे में पड़े।
नरसंहार का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
नरसंहार कोई नया शब्द नहीं है। मानव इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जिन्हें नरसंहार की श्रेणी में रखा गया:
- आर्मेनियाई नरसंहार (1915–1917): प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उस्मानी साम्राज्य द्वारा लाखों आर्मेनियाई लोगों की हत्या।
- होलोकॉस्ट (1941–1945): नाज़ी जर्मनी द्वारा यहूदियों का बड़े पैमाने पर विनाश।
- रवांडा नरसंहार (1994): हूतू और तुत्सी जनजातियों के बीच संघर्ष में लाखों निर्दोषों की हत्या।
- बोस्निया नरसंहार (1995): स्रेब्रेनिका में सर्बियाई बलों द्वारा हजारों मुस्लिमों का कत्लेआम।
इन घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह सोचने पर मजबूर किया कि नरसंहार को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस कानून और तंत्र होना आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय कानून और नरसंहार
संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में नरसंहार को अपराध घोषित किया और इसके लिए विशेष नरसंहार रोकथाम और दंड संधि (Convention on the Prevention and Punishment of the Crime of Genocide) लागू की। इसके तहत:
- सदस्य राष्ट्रों पर नरसंहार रोकने और दोषियों को दंडित करने की जिम्मेदारी डाली गई।
- अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) को ऐसे मामलों की सुनवाई का अधिकार प्राप्त हुआ।
- किसी भी देश या समूह द्वारा किए गए नरसंहार को “मानवता के विरुद्ध अपराध” माना जाता है।
गाज़ा संकट और नरसंहार के आरोप
गाज़ा क्षेत्र दशकों से संघर्ष का केंद्र रहा है। 2023–2025 के बीच इज़राइल और हमास के बीच जारी युद्ध ने इस संकट को और गहरा कर दिया है। वर्तमान स्थिति को नरसंहार से जोड़कर देखा जा रहा है।
1. मानवीय सहायता में बाधा: इज़राइल ने खाद्य एवं चिकित्सीय सहायता की आपूर्ति पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। मिस्र के रफ़ा बॉर्डर क्रॉसिंग के माध्यम से मानवीय सहायता रोकने से गाज़ा के लाखों लोग भूख और बीमारियों का सामना कर रहे हैं।
2. व्यापक मानवीय संकट: गाज़ा में अकाल जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है। स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं। अस्पतालों में दवाओं और बिजली की भारी कमी है। माताओं और नवजात शिशुओं में गंभीर कुपोषण दर्ज किया जा रहा है।
3. नागरिक हताहत: प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मानवीय सहायता प्राप्त करने की कोशिश कर रहे फ़िलिस्तीनी नागरिकों, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं, पर गोलीबारी की गई और उनकी हत्या की गई।
एल्डर्स समूह की चेतावनी
एल्डर्स समूह, जिसे दुनिया के पूर्व राष्ट्राध्यक्षों और शांति समर्थक नेताओं ने स्थापित किया था, ने कहा है कि गाज़ा में हालात “तेजी से बढ़ते नरसंहार” का रूप ले रहे हैं।
उनके अनुसार:
- यह केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं है, बल्कि आम नागरिकों को योजनाबद्ध ढंग से पीड़ा दी जा रही है।
- मानवीय सहायता में बाधा डालना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
- गाज़ा की वर्तमान स्थिति नरसंहार की परिभाषा के अनुरूप है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
गाज़ा संकट पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया मिश्रित रही है।
- संयुक्त राष्ट्र: कई बार युद्धविराम की अपील की गई, लेकिन सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों के मतभेदों के कारण ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।
- अमेरिका और यूरोप: अमेरिका इज़राइल का समर्थन करता रहा है, जबकि यूरोप में मतभेद हैं—कुछ देश युद्धविराम के पक्ष में हैं, तो कुछ इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं।
- अरब और इस्लामी देश: इन देशों ने गाज़ा में इज़राइली कार्रवाई को नरसंहार बताया और संयुक्त राष्ट्र में आवाज उठाई।
भारत का दृष्टिकोण
भारत ने पारंपरिक रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन किया है, लेकिन साथ ही इज़राइल के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं। गाज़ा संकट पर भारत ने संतुलित रुख अपनाया:
- भारत ने नागरिकों की हत्या पर चिंता जताई और मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति पर जोर दिया।
- आतंकवाद की निंदा करते हुए, उसने हमास की हिंसक गतिविधियों को अस्वीकार्य बताया।
- भारत ने दो-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) का समर्थन किया, जिससे शांति बहाल की जा सके।
नरसंहार रोकने की चुनौतियाँ
हालांकि अंतरराष्ट्रीय कानून मौजूद हैं, लेकिन नरसंहार रोकने में कई चुनौतियाँ हैं:
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: कई बार शक्तिशाली देशों के हित नरसंहार रोकने से टकराते हैं।
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की सीमाएँ: ICC केवल तभी कार्रवाई कर सकता है जब संबंधित देश उसका सदस्य हो या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद उसे अधिकार दे।
- मानवीय सहायता में राजनीति: सहायता को अक्सर रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
समाधान और आगे की राह
गाज़ा संकट और अन्य संभावित नरसंहारों को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:
- मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना।
- सुरक्षा परिषद में मतभेदों को दूर कर एकजुट कार्रवाई करना।
- दोषियों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाना।
- संघर्षरत पक्षों पर युद्धविराम के लिए दबाव डालना।
- दीर्घकालिक शांति समाधान (जैसे दो-राष्ट्र समाधान) की दिशा में ठोस पहल।
निष्कर्ष
नरसंहार केवल एक अपराध नहीं, बल्कि मानवता के विरुद्ध सबसे बड़ा कलंक है। गाज़ा की स्थिति यह दिखाती है कि नरसंहार केवल हथियारों से नहीं, बल्कि भोजन, दवाइयों और मानवीय सहायता रोककर भी किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझना होगा कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो गाज़ा संकट आने वाले वर्षों में इतिहास के सबसे भयावह नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज हो सकता है।
गाज़ा का यह संकट हमें यह याद दिलाता है कि “नरसंहार” शब्द केवल अतीत की घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज की वास्तविकता भी हो सकता है। और जब तक दुनिया एकजुट होकर इसे रोकने के लिए प्रयास नहीं करती, तब तक निर्दोष नागरिक इसकी कीमत चुकाते रहेंगे।
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