यह लेख हिंदी नाट्य साहित्य के तीन प्रमुख युगों—भारतेन्दु युग, प्रसादयुग और प्रसादोत्तर युग—का विस्तृत ऐतिहासिक और साहित्यिक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें हिंदी के पहले नाटक ‘नहुष’ (1857, गोपालचंद्र गिरधरदास) से लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, गिरीश कर्नाड जैसे महान नाटककारों के योगदान का क्रमबद्ध विवरण है।
लेख में प्रत्येक युग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, प्रमुख विशेषताएँ, भाषा-शैली, विषय-वस्तु और मंचन तकनीक का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है। भारतेन्दु युग में सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना, प्रसादयुग में काव्यात्मकता और आदर्शवाद, तथा प्रसादोत्तर युग में यथार्थवाद, प्रयोगधर्मिता और आधुनिकता का समन्वय स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। साथ ही, लेख में तीनों युगों के प्रमुख नाटकों और नाटककारों की सूची भी दी गई है, जिससे यह हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और रंगमंच प्रेमियों के लिए एक मूल्यवान संदर्भ सामग्री बन जाता है।
नाटक किसे कहते हैं?
हिंदी साहित्य में नाटक (Drama) एक ऐसी विधा है, जिसमें कथ्य को केवल पढ़कर या सुनकर ही नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष मंचन के माध्यम से देखा और अनुभव किया जाता है। यह साहित्यिक विधाओं में सबसे अधिक जीवंत और प्रभावशाली मानी जाती है, क्योंकि इसमें संवाद, अभिनय, हावभाव, संगीत और दृश्यात्मक प्रस्तुति का संगम होता है। नाटक की परिभाषा देते हुए नाट्यशास्त्र के आचार्य भरतमुनि लिखते हैं—
“नानाभावोपसम्पन्नं नानावस्थान्तरात्मकम्।
लोकवृत्तानुकरं नाट्यमेतन्मया कृतम्।।
अर्थात्, नाटक वह है जिसमें विभिन्न भाव, अनेक अवस्थाएँ और लोकव्यवहार का अनुकरण होता है, जिसे मैंने रचा है।
हिंदी का पहला नाटक
हिंदी का पहला नाटक ‘नहुष’ माना जाता है, जिसका रचनाकाल 1857 ई. है। इसके रचयिता गोपाल चंद्र गिरधरदास हैं। यह नाटक पौराणिक कथा पर आधारित था। इस कृति ने हिंदी नाट्य साहित्य की नींव रखी और आगे आने वाले रचनाकारों के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य किया। नाटक को काव्य का ही एक रूप माना जाता है, परंतु इसकी विशिष्टता यह है कि यह केवल श्रवण के माध्यम से ही नहीं, बल्कि मंचन और दृश्य अनुभव के द्वारा भी दर्शकों के मन में रसानुभूति उत्पन्न करता है। इसमें कथानक, पात्र, संवाद, दृश्यविन्यास, मंच-सज्जा और अभिनय—ये सभी तत्व सम्मिलित होते हैं, जो मिलकर दर्शकों के हृदय पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
हिंदी नाटक का ऐतिहासिक संदर्भ एवं विकास क्रम
हिंदी नाटकों के विकास में कई चरण और युग आए, जिनमें अलग-अलग नाटककारों ने अपनी-अपनी शैली और दृष्टिकोण से इस विधा को समृद्ध किया। हिंदी का पहला नाटक ‘नहुष’ (1857 ई., गोपालचंद्र गिरधरदास) के बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी नाटक को एक सशक्त स्वरूप प्रदान किया।
कालांतर में नाटककारों ने सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक विषयों को मंच पर उतारा, जिससे हिंदी नाट्य साहित्य का विकास तीन प्रमुख युगों से गुज़रा——
- भारतेन्दु युग (1850–1900) – जिसे हिंदी नाटकों का स्वर्णिम प्रारंभिक काल कहा जाता है। इस दौर में देशभक्ति, सामाजिक सुधार और ऐतिहासिक विषयों पर आधारित नाटकों की रचना हुई।
- प्रसादयुग (1900–1937) – काव्यात्मक, छायावादी और ऐतिहासिक नाटक।
- प्रसादोत्तर युग (1937–वर्तमान) – यथार्थवादी, प्रयोगधर्मी और आधुनिक नाटक। इस समय छायावादी, ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक नाटकों के साथ-साथ सामाजिक यथार्थवादी नाटकों का भी विकास हुआ।
नीचे इन तीनों युगों के अंतर्गत प्रमुख नाटककारों (रचनाकारों) एवं उनके नाटकों (रचनाओं) का क्रमवार विवरण दिया गया है, जिससे हिंदी नाट्य साहित्य के विकास की स्पष्ट झलक प्राप्त होती है।
1. भारतेन्दु युग (आधार निर्माण काल)
समयावधि: लगभग 1850 ई. से 1900 ई. तक
इस युग को हिंदी नाट्य साहित्य का प्रारंभिक और स्वर्णिम आधार काल कहा जाता है। हिंदी का पहला नाटक ‘नहुष’ (1857 ई., गोपालचंद्र गिरधरदास) इसी दौर में लिखा गया। लेकिन हिंदी नाट्य परंपरा को वास्तविक दिशा और गति देने का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को जाता है, जिन्हें आधुनिक हिंदी नाट्य साहित्य का जनक कहा जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम असफल होने के बाद भारतीय समाज में राजनीतिक चेतना और राष्ट्रीय भावना के साथ-साथ सामाजिक सुधार की आवश्यकता महसूस हुई।
- अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य रंगमंच का प्रभाव हिंदी नाटकों की संरचना और विषयवस्तु में दिखाई देने लगा।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने नाटकों के माध्यम से देशभक्ति, सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक गौरव को प्रस्तुत किया।
विशेषताएँ:
- भाषा: संस्कृतनिष्ठ, ओजपूर्ण और भावप्रधान।
- विषय: ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं में समकालीन संदेश का समावेश।
- नाट्यरूप: संवादप्रधान, कथात्मक संरचना।
- उद्देश्य: जनजागरण, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना का प्रसार।
भारतेन्दु युगीन नाटककार और उनकी रचनाएँ (नाटक)
क्रम | नाटककार | प्रमुख नाटक |
---|---|---|
1 | प्राणचंद चौहान | रामायण महानाटक |
2 | महाराज विश्वनाथ सिंह | आनंद रघुनंदन |
3 | गोपालचंद्र गिरिधर दास | नहुष |
4 | भारतेंदु हरिश्चंद्र | अनूदित नाटक – विद्यासुंदर, रत्नावली, पाखण्ड विडंबन, धनंजय विजय, कर्पूर मंजरी, भारत-जननी, मुद्राराक्षस, दुर्लभ बंधु मौलिक नाटक – वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्यहरिश्चंद्र, श्रीचंद्रावली, विषस्य विषमौषधम, भारत-दुर्दशा, नीलदेवी, अँधेर नगरी, सती प्रताप, प्रेम योगिनी |
5 | शिवनंदन सहाय | कृष्ण-सुदामा नाटक |
6 | लाला श्रीनिवासदास | संयोगिता स्वयंवर, प्रह्लाद-चरित्र, रणधीर प्रेममोहिनी, तप्त संवरण |
7 | राधाचरण गोस्वामी | अमरसिंह राठौर, बूढ़े मुँह मुँहासे (प्रहसन) |
8 | किशोरीलाल गोस्वामी | मयंक मंजरी, प्रणयिनी-परिणय |
9 | प्रताप नारायण मिश्र | भारत-दुर्दशा, कलिकौतुक रुपक, संगीत शाकुंतल, हठी हम्मीर |
10 | बालकृष्ण भट्ट | कलिराज की सभा, रेल का विकट खेल, दमयंती स्वयंवर, जैसा काम वैसा परिणाम (प्रहसन), नई रोशनी का विष, वेणुसंहार |
11 | शीतला प्रसाद त्रिपाठी | जानकीमंगल |
12 | राधाकृष्ण दास | महाराणा प्रताप, दुःखिनी बाला, पद्यावती, धर्मालाप |
13 | देवकीनंदन त्रिपाठी | भारत-हरण |
14 | अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ | प्रद्युम्न विजय व्यायोग, रुक्मिणी परिणय |
2. प्रसादयुग (छायावादी और काव्यात्मक नाटक)
समयावधि: लगभग 1900 ई. से 1937 ई. तक
भारतेन्दु युग के बाद हिंदी नाटक के विकास में जो दूसरा महत्वपूर्ण चरण आया, उसे प्रसादयुग या प्रसादकालीन नाटक कहा जाता है। इसकी समयावधि लगभग 1900 ई. से 1937 ई. तक मानी जाती है। यह काल हिंदी साहित्य में छायावाद का स्वर्णिम युग था, जिसका प्रभाव नाटक विधा पर भी गहराई से पड़ा। इस युग के नाटकों में ऐतिहासिक, पौराणिक और दार्शनिक विषयों का प्रधानता से प्रयोग हुआ, लेकिन उनमें तत्कालीन सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का भी प्रभाव देखा जा सकता है।
इस युग के सर्वाधिक प्रभावशाली नाटककार जयशंकर प्रसाद थे, जिनके कारण ही इस युग को “प्रसादयुग” कहा जाता है। प्रसाद के नाटकों में काव्यात्मक भाषा, गहन मनोविश्लेषण, ऐतिहासिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय भावना का अद्वितीय समन्वय मिलता है। इनके अतिरिक्त हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उदयशंकर भट्ट, माखनलाल चतुर्वेदी, प्रेमचंद आदि नाटककारों ने भी इस दौर में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- हिंदी साहित्य के छायावादी युग का प्रभाव।
- ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं में दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण।
- नाटकों में साहित्यिक गरिमा और काव्यात्मक सौंदर्य।
विशेषताएँ
- संवादों में उच्चकोटि की काव्यात्मकता।
- आदर्शवादी पात्र और भावनाओं का उदात्तीकरण।
- मंचन की अपेक्षा साहित्यिक पठन का महत्व।
- प्रकृति, सौंदर्य, प्रेम और वीरता का समन्वय।
प्रसादयुगीन नाटककार और उनकी रचनाएँ (नाटक)
क्रम | नाटककार | प्रमुख नाटक |
---|---|---|
1 | माखनलाल चतुर्वेदी | कृष्णार्जुन युद्ध |
2 | विशम्भर नाथ ‘कौशिक’ | भीष्म |
3 | मिश्रबंधु | नेत्रोन्मीलन |
4 | जयशंकर प्रसाद | करुणालय (गीत नाट्य), विशाख, अजातशत्रु, कामना (नाट्य कृति), जनमेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री |
5 | हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ | स्वर्णविहान, रक्षाबंधन, प्रतिशोध, स्वप्नभंग, आहुति, विषपान, उद्धार, शपथ, विजय स्तंभ, कीर्तिस्तंभ, रक्तदान, संरक्षक, विदा, छाया बंधन, पाताल विजय, शिवसाधना, अमृत पुत्री, संवत प्रवर्तन |
6 | लक्ष्मीनारायण मिश्र | राक्षस का मंदिर, संन्यासी, मुक्ति का रहस्य, राजयोग, आधी रात, सिंदूर की होली, गरुड़ध्वज, वत्सराज, दशाश्वमेघ, वितस्ता की लहरें, चक्रव्यूह, नारद की वीणा, जगद्गुरु, धरती का ह्रदय |
7 | गोविन्दबल्लभ पंत | अंगूर की बेटी, राजमुकुट, सिंदूर की बिंदी, अंतःपुर का छिद्र, यायाति, सुहागबिंदी |
8 | उदयशंकर भट्ट | मुक्तिपथ, क्रांतिकारी, विक्रमादित्य, विश्वामित्र, दाहर अथवा सिंध पतन, शकविजय, सागर विजय, मत्स्यगंधा, नया समाज, पार्वती, विद्रोहिणी अंबा, कमला, अश्वत्थामा, असुर सुंदरी, राधा |
9 | सुदर्शन | दयानंद नाटक, आनरेरी मजिस्ट्रेट, भाग्यचक्र |
10 | सेठ गोविंददास | गरीबी और अमीरी, बड़ा पापी कौन, त्याग और ग्रहण, संतोष कहाँ, सुख किसमें, सेवापथ, स्वतंत्र्य सिद्धांत, प्रकाश, महत्व किसे, हर्ष, कर्ण, विकास, कर्तव्य |
11 | दुर्गा प्रसाद गुप्त | अभिमन्यु वध, विश्वामित्र |
12 | पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ | चार बेचारे, उजबक, महात्मा ईसा, चुंबन, डिक्टेटर, गंगा का बेटा, आवारा |
13 | जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी | तुलसीदास, मधुरमिलन |
14 | चन्द्रगुप्त विद्यालंकार | अशोक, रेवा |
15 | प्रेमचंद | कर्बला, संग्राम, प्रेम की बेदी |
16 | लक्ष्मण सिंह | गुलामी का नशा |
3. प्रसादोत्तर युग (विकास और प्रयोगशीलता का काल)
समयावधि: लगभग 1937 ई. से वर्तमान तक
भारतेन्दु युग और जयशंकर प्रसाद के नाटकों के बाद हिंदी नाटक ने एक नवीन मोड़ लिया। जयशंकर प्रसाद के नाटकों ने छायावादी संवेदनाओं को ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ा, परंतु उनके बाद नाटक मंच और समाज के वास्तविक सरोकारों से और भी निकट हो गए।
प्रसादोत्तर युग की शुरुआत 1937 ई. में जयशंकर प्रसाद के निधन के बाद मानी जाती है। यह काल स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण, स्वतंत्रता प्राप्ति और उसके बाद के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों का साक्षी रहा। इस युग में हिंदी नाटक ने न केवल मंचीय प्रयोगधर्मिता को अपनाया, बल्कि समकालीन समस्याओं, सामाजिक यथार्थ, मनोवैज्ञानिक संघर्ष और राजनीतिक विद्रूपता को भी विषय बनाया। पाश्चात्य रंगकर्मियों के प्रभाव के साथ-साथ भारतीय लोक-नाट्य परंपराओं का पुनर्जीवन भी इस दौर में हुआ।
इस युग में मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, उपेंद्रनाथ ‘अश्क’, लक्ष्मीनारायण लाल, भीष्म साहनी, हबीब तनवीर, विजय तेंदुलकर, गिरीश कर्नाड जैसे नाटककारों ने हिंदी नाट्य साहित्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। इस काल के नाटकों में यथार्थवाद, प्रतीकवाद, अस्तित्ववाद और आधुनिक जीवन की विडंबनाएँ प्रमुख रूप से परिलक्षित होती हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों का दौर।
- 1960 के बाद रंगमंच पर यथार्थवादी और प्रयोगधर्मी नाटकों का आगमन।
- भारतीय रंगमंच पर पाश्चात्य रंगकर्मियों जैसे ब्रेख्त, इब्सन, और स्टैनिस्लावस्की का प्रभाव।
विशेषताएँ:
- भाषा: सरल, बोलचाल की, और संवाद में सहजता।
- विषय: समकालीन सामाजिक समस्याएँ, राजनीतिक विडंबनाएँ, मनोवैज्ञानिक द्वंद्व।
- नाट्यरूप: प्रयोगधर्मी, प्रतीकात्मक, और मंच तकनीक में विविधता।
- उद्देश्य: सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित करना, दर्शकों को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करना।
प्रसादोत्तर युगीन नाटककार और उनकी रचनाएँ (नाटक)
क्रम | नाटककार | प्रमुख नाटक |
---|---|---|
1 | उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ | स्वर्ग की झलक, जय-पराजय, लक्ष्मी का स्वागत, छठा बेटा, कैद, उड़ान, अलग-अलग रास्ते, अंजोदीदी, लौटता हुआ दिन, सूखी डाली, तौलिए, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ, भँवर |
2 | वृंदावनलाल वर्मा | झाँसी की रानी, राखी की लाज, कश्मीर का कांटा, सगुन, नीलकंठ, देखा-देखी, फूलों की बोली, पूर्व की ओर, बीरबल, केवल, निस्तार, ललित-विक्रम, कनेर, केवट |
3 | रांगेय राघव | स्वर्गभूमि का आदमी |
4 | रामकुमार वर्मा | राजरानी सीता, कौमुदी महोत्सव, पृथ्वी का स्वर्ग |
5 | किशोरी दास वाजपेयी | सुदामा |
6 | भुनेश्वर प्रसाद | ऊसर, तांबे के कीड़ा |
7 | चतुरसेन शास्त्री | मेघनाथ |
8 | सुमित्रानंदन पंत | ज्योत्स्ना, रजत शिखर, शिल्पी सौवर्ण |
9 | मैथलीशरण गुप्त | अनघ, तिलोत्तमा, चंद्रहास |
10 | विष्णु प्रभाकर | युगे युगे क्रांति, टूटते परिवेश, डॉक्टर, समाधि, कुहासा और किरण, डरे हुए लोग, वंदिनी |
11 | जगदीशचंद्र माथुर | कोणार्क, शारदीया, पहला राजा, दशरथनंदन, रघुकुल रीति |
12 | रामनरेश त्रिपाठी | सुभद्रा, जयंत |
13 | धर्मवीर भारती | अंधायुग (गीत नाट्य), नदी प्यासी थी |
14 | ‘अज्ञेय’ | उत्तरप्रियदर्शी |
15 | लक्ष्मीनारायण लाल | अंधा कुआँ, मादा कैक्टस, सूर्यमुखी, मिस्टर अभिमन्यु, करफ्यू, अब्दुल्ला दीवाना, व्यक्तिगत, एक सत्य हरिश्चंद, सुगन पंछी, सबरंग मोहभंग, रातरानी, तीन आँखों वाली मछली, सूखा सरोवर, रक्तकमल, दर्पण, गंगामाटी, राक्षस का मंदिर, दूसरा दरवाजा, यक्ष प्रश्न |
16 | मोहन राकेश | आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे-अधूरे, बारह सौ छब्बीस बाता सात, पूर्वाभ्यास, पैरों तले की जमीन (अधूरा) |
17 | गिरिजा कुमार माथुर | कल्पांतर |
18 | सिद्धनाथ | सृष्टि की साँझ, लौह देवता, संघर्ष, विकलांगों का देश, बादलों का शाप |
19 | दुष्यंत कुमार | एक कण्ठ विषपायी |
20 | नरेश मेहता | सुबह के घंटे, खंडित यात्राएँ |
21 | शिवप्रसाद सिंह | घाटियाँ गूँजती हैं |
22 | ज्ञानदेव अग्निहोत्री | नेफा की एक शाम, शुतुरमुर्ग, वतन की आबरू, चिराग जल उठा, माटी जागीर, अनुष्ठान |
23 | विपिन कुमार अग्रवाल | तीन अपाहिज, खोए हुए आदमी की तलाश, लोटन |
24 | सुरेंद्र वर्मा | द्रौपदी, सेतुबंध, नायक, खलनायक, विदूषक, आठवाँ सर्ग, सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक, छोटे सैयद बड़े सैयद, कैद-ए-हयात, एक दुनी एक, शकुन्तला की अँगूठी, मुगल भारत: नाट्य चतुष्टय, रति का कंगन, नींद क्यों नहीं आती रात भर, अँधेरे से परे |
25 | अमृतराय | चिंदियों की एक झालर, शताब्दी, हमलोग |
26 | लक्ष्मीकांत वर्मा | रोशनी एक नदी है, अपना अपना जूता, ठहरी हुई जिंदगी, सीमांत के बादल, तिन्दुवुलम |
27 | विनोद रस्तोगी | आजादी के बाद, नये हाथ, बर्फ की मीनार, जनतंत्र जिंदाबाद, देश के दुश्मन, फिसलन और पाँव |
28 | गिरीश कर्नाड | तुगलक, नागमंडल, रक्त-कल्याण |
29 | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना | बकरी, अब गरीबी हटाओ, लड़ाई, हवालात, होरी धूम मच्यो री, पीली पत्तियाँ |
30 | मुद्राराक्षस | मरजीवा, तेंदुआ, तिलचट्टा, योर्स फेथफुली, आला अफसर, संतोला |
31 | भीष्म साहनी | कबीर खड़ा बजार में, हानूश, माधवी, मुआवजे, रंग दे बसंती चोला, आलमगीर |
32 | हबीब तनवीर | चरणदास चोर, मिट्टी की गाड़ी, पचरंगी, आग की गेंद, आगरा बाज़ार, बहादुर कलारिन, चांदी की चम्मच, दूध का गिलास, एक औरत हिपेशिया भी थी, गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दामाद, जहरीली हवा, कामदेव का अपना बसंत ऋतू का सपना, कारतूस, परम्परा, शतरंज के मोहरे |
33 | शंकर शेष | घरौंदा, बिना बाती के दीप, एक और द्रोणाचार्य, बंधन अपने-अपने |
34 | रमेश वक्षी | देवयानी का कहना है, तीसरा हाथी, वामाचार, यादों का घर, कसे हुए तार |
35 | गिरिराज किशोर | बादशाह का गुलाम, घोड़ा और घास, काठ का तोप, नरमेध, प्रजा ही रहने दो, जुर्मआयद |
36 | मणि मधुकर | रसगंधर्व, बुलबुल की सराय, दुलारी बाई, एकतारे की आँख, खेला पोलमपुर |
37 | निर्मल वर्मा | तीन एकांत, वीक एण्ड, धूप का एक टुकड़ा, डेढ़ इंच ऊपर |
38 | कृष्ण बलदेव वैद | भूख आग है, हमारी दुनियाँ, सवाल और स्वप्न, अंत का उजाला, कहते हैं जिसको प्यार |
39 | शरद जोशी | एक था गधा, अन्धों की हांथी |
40 | गोविंद चातक | काला मुँह, अपने-अपने खूँटे |
41 | विजय तेंदुलकर | घासीराम कोतवाल, हल्ला बोल, तीन रंग, बेबी, चीफ मिनिस्टर, चौपट राजा तथा अन्य बाल नाटक, गिद्ध, दम्भद्वीप, कच्ची धुप, कन्यादान, मीता की कहानी, भल्या काका, सावधान दुल्हे की तलास है, मोम का घरौदा, चिड़िया का, भीतरी दीवारें, कौओं की पाठशाला, फुटपाथ का सम्राट |
42 | स्वदेश दीपक | नाटक बाल भगवान, कोर्ट मार्शल, जलता हुआ रथ, सबसे उदास कविता, काल कोठरी |
43 | मार्कण्डेय | पत्थर और परछाइयाँ |
44 | दूधनाथ सिंह | यमगाथा |
45 | काशीनाथ सिंह | शोआस |
46 | हमीदुल्ला | दरिन्दे, उलझी आकृतियाँ, उत्तर उर्वसी, हरवार |
47 | सुशील कुमार सिंह | सिंहासन खाली है, चार यारों का यार, अलख आजादी की, बाल लोक नाटिकाएं, बापू के नाम, बेबी तुम नादान, गुडबाई स्वामी, नागपास |
48 | रमेश उपाध्याय | पेपरवेट |
49 | असगर वजाहत | जिस लाहौर न देख्या ओ जम्याइ नइ, गोडसे@गाँधी.कॉम |
50 | सुदर्शन चोपड़ा | काला पहाड़ |
51 | चन्द्रकांत देवताले | भूखंड तप रहा है, सुकरात का घाव |
52 | राहुल सांकृत्यायन | प्रभा |
53 | विशाल विजय | बार्किंग डॉग एंड पेइंग गेस्ट |
54 | निलय उपाध्याय | पॉपकॅार्न |
55 | मधुधवन | चिंगारियाँ, आज की पुकार, भारत कहाँ जा रहा है |
56 | चन्द्रशेखर कम्बार | महामाई |
57 | रामशंकर निशेश | आदमखोर, कुक्कू डार्लिंग, चील घर, तीन नाटक |
58 | दया प्रकाश सिन्हा | सम्राट अशोक, दुश्मन, मन का भँवर, मेरे भाई मेरे दोस्त, पंचतंत्र, साँझ सवेरा, सादर आपका, अपने अपने दाँव, इतिहास, इतिहास-चक्र, कथा एक कंस की सीढ़ियाँ, ओह अमेरिका! |
59 | सुरेन्द्र दुबे | उठो अहल्या |
60 | अनुपम आनन्द | पक्ष-विपक्ष |
61 | भानु भारती | तमाशा न हुआ |
62 | रवीन्द्र भारती | जनवासा, अगिन तिरिया |
63 | महेंद्र भल्ला | दिमागे हस्ती दिल की बस्ती, है कहाँ? है कहाँ? |
64 | जयंत पवार | अभी रात बाकी है |
65 | शिशिर कुमार दास | बाघ |
66 | जितेन्द्र सहाय | भटकते लोग |
67 | शाहिद अनवर | हमारे समय में |
68 | सुदर्शन मजीठिया | राजा नंगा |
69 | सुरेन्द्र शर्मा | रंगभूमि |
70 | मनोज मित्रा | सैयां बेईमान |
71 | नरेंद्र कोहली | किष्किंधा, अगस्त्य कथा, संघर्ष की ओर |
72 | मीराकांत | कंधे पर बैठा सांप, नेपथ्य राग, अंत हाजिर हो… |
73 | विजेंद्र | क्रौंचवध (काव्य-नाटक) |
74 | राजेश जैन | वायरस |
75 | मृदुला बिहारी | अँधेरे से आगे |
76 | कैलास वाजपेयी | युवा संन्यासी |
77 | ज्ञानदेव अग्निहोत्री | शुतुरमुर्ग |
78 | नंदकिशोर नवल | मैं पढ़ा जा चुका पत्र |
79 | संजय सहाय | जाँच-पड़ताल |
80 | पियूष मिश्रा | खुबसूरत बहू |
81 | सौरभ शुक्ला | बर्फ़ |
82 | प्रभात कुमार उत्प्रेती | जब शहर हमारा सोता है |
83 | हरिकेष सुलभ | दलिया, माटी गाड़ी, धरती आबा, अमली, बटोही |
तुलनात्मक विश्लेषण: भारतेन्दु युग बनाम प्रसादयुगीन बनाम प्रसादोत्तर युग
पहलू | भारतेन्दु युग | प्रसादयुगीन | प्रसादोत्तर युग |
---|---|---|---|
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | 1857 के बाद का राष्ट्रीय पुनर्जागरण काल | प्रथम विश्वयुद्ध, असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, राष्ट्रीय चेतना का उभार | स्वतंत्रता आंदोलन का अंतिम चरण और स्वतंत्रता के बाद का सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन |
समयावधि | 19वीं सदी का उत्तरार्ध से 20वीं सदी का प्रारंभ (लगभग 1868–1900 ई.) | 20वीं सदी के प्रारंभ से 1937 ई. तक | 20वीं सदी का मध्य से 21वीं सदी तक |
विषयवस्तु | देशभक्ति, ऐतिहासिक घटनाएँ, सामाजिक सुधार, धार्मिक कथाएँ | ऐतिहासिक, पौराणिक, राष्ट्रवादी चेतना, रोमांटिकता और आदर्शवाद का मिश्रण | मनोवैज्ञानिक संघर्ष, यथार्थवादी सामाजिक समस्याएँ, राजनीतिक चेतना, प्रयोगधर्मी विषय |
भाषा शैली | संस्कृतनिष्ठ, अलंकृत और ओजपूर्ण | काव्यात्मक, भावप्रवण, संस्कृतनिष्ठ लेकिन अपेक्षाकृत सहज | सरल, बोलचाल की, संवादप्रधान |
प्रस्तुति शैली | पौराणिक/ऐतिहासिक कथा-केंद्रित, अधिक कथात्मक | गीत-नाट्य, भावप्रधान, नाटकीय चरमोत्कर्ष पर बल | नाटकीय टकराव, मंचीय प्रयोग, प्रतीकवाद |
प्रमुख नाटककार | भारतेंदु हरिश्चंद्र, लाला श्रीनिवासदास, प्रताप नारायण मिश्र | जयशंकर प्रसाद, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उदयशंकर भट्ट | मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, गिरीश कर्नाड |
नाटकों की प्रकृति | आदर्शवादी, प्रेरणादायक, राष्ट्रीय चेतना से युक्त | राष्ट्रवादी आदर्श, ऐतिहासिक गौरव, रोमांटिकता और नैतिक आदर्श | यथार्थवादी, समकालीन समस्याओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करने वाले |
मंचन तकनीक | सीमित मंचीय तकनीक, संवाद और कथा पर बल | गीत, संगीत, काव्य और मंचीय दृश्य का संतुलित प्रयोग | आधुनिक रंगमंच तकनीक, प्रतीकात्मक दृश्य, प्रयोगात्मक मंचन |
हिंदी नाटककार और उनके नाटक – तीनों युगों का संपूर्ण सारणीबद्ध विवरण
युग | नाटककार | प्रमुख नाटक |
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भारतेन्दु युग (1868 – 1900) | प्राणचंद चौहान | रामायण महानाटक |
महाराज विश्वनाथ सिंह | आनंद रघुनंदन | |
गोपालचंद्र गिरिधर दास | नहुष | |
भारतेंदु हरिश्चंद्र | विद्यासुंदर, रत्नावली, पाखण्ड विडंबन, धनंजय विजय, कर्पूर मंजरी, भारत-जननी, मुद्राराक्षस, दुर्लभ बंधु (अनूदित); वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्यहरिश्चंद्र, श्रीचंद्रावली, विषस्य विषमौषधम, भारत-दुर्दशा, नीलदेवी, अँधेर नगरी, सती प्रताप, प्रेम योगिनी (मौलिक) | |
शिवनंदन सहाय | कृष्ण-सुदामा नाटक | |
लाला श्रीनिवासदास | संयोगिता स्वयंवर, प्रह्लाद-चरित्र, रणधीर प्रेममोहिनी, तप्त संवरण | |
राधाचरण गोस्वामी | अमरसिंह राठौर, बूढ़े मुँह मुँहासे (प्रहसन) | |
किशोरीलाल गोस्वामी | मयंक मंजरी, प्रणयिनी-परिणय | |
प्रताप नारायण मिश्र | भारत-दुर्दशा, कलिकौतुक रुपक, संगीत शाकुंतल, हठी हम्मीर | |
बालकृष्ण भट्ट | कलिराज की सभा, रेल का विकट खेल, दमयंती स्वयंवर, जैसा काम वैसा परिणाम (प्रहसन), नई रोशनी का विष, वेणुसंहार | |
शीतला प्रसाद त्रिपाठी | जानकीमंगल | |
राधाकृष्ण दास | महाराणा प्रताप, दुःखिनी बाला, पद्यावती, धर्मालाप | |
देवकीनंदन त्रिपाठी | भारत-हरण | |
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ | प्रद्युम्न विजय व्यायोग, रुक्मिणी परिणय | |
प्रसादयुगीन (1900 – 1937) | माखनलाल चतुर्वेदी | कृष्णार्जुन युद्ध |
विशम्भर नाथ ‘कौशिक’ | भीष्म | |
मिश्रबंधु | नेत्रोन्मीलन | |
जयशंकर प्रसाद | करुणालय (गीत नाट्य), विशाख, अजातशत्रु, कामना (नाट्य कृति), जनमेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्य श्री | |
हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ | स्वर्णविहान, रक्षाबंधन, प्रतिशोध, स्वप्नभंग, आहुति, विषपान, उद्धार, शपथ, विजय स्तम्भ, कीर्तिस्तंभ, रक्तदान, संरक्षक, विदा, छाया बंधन, पाताल विजय, शिवसाधना, अमृत पुत्री, संवत प्रवर्तन | |
लक्ष्मीनारायण मिश्र | राक्षस का मंदिर, संन्यासी, मुक्ति का रहस्य, राजयोग, आधी रात, सिंदूर की होली, गरुड़ध्वज, वत्सराज, दशाश्वमेघ, वितस्ता की लहरें, चक्रव्यूह, नारद की वीणा, जगद्गुरु, धरती का ह्रदय | |
गोविन्दबल्लभ पंत | अंगूर की बेटी, राजमुकुट, सिंदूर की बिंदी, अंत:पुर का छिद्र, यायति, सुहागबिंदी | |
उदयशंकर भट्ट | मुक्तिपथ, क्रन्तिकारी, विक्रमादित्य, विश्वामित्र, दाहर अथवा सिंध पतन, शकविजय, सागर विजय, मत्स्यगंधा, नया समाज, पार्वती, विद्रोहिणी अंबा, कमला, अश्वत्थामा, असुर सुंदरी, राधा | |
सुदर्शन | दयानंद नाटक, आनरेरी मजिस्ट्रेट, भाग्यचक्र | |
सेठ गोविंददास | गरीबी और अमीरी, बड़ा पापी कौन, त्याग और ग्रहण, संतोष कहाँ, सुख किसमें, सेवापथ, स्वातन्त्र्य सिद्धान्त, प्रकाश, महत्व किसे, हर्ष, कर्ण, विकास, कर्तव्य | |
दुर्गा प्रसाद गुप्त | अभिमन्यु वध, वोश्वामित्र | |
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ | चार बेचारे, उजबक, महात्मा ईसा, चुंबन, डिक्टेटर, गंगा का बेटा, आवारा | |
जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी | तुलसीदास, मधुरमिलन | |
चन्द्रगुप्त विद्यालंकार | अशोक, रेवा | |
प्रेमचंद | कर्बला, संग्राम, प्रेम की बेदी | |
लक्ष्मण सिंह | गुलामी का नशा | |
प्रसादोत्तर युग (1937 – वर्तमान) | उपेंद्रनाथ ‘अश्क’ | स्वर्ग की झलक, जय-पराजय, लक्ष्मी का स्वागत, छठा बेटा, कैद, उड़ान, अलग-अलग रास्ते, अंजोदीदी, लौटता हुआ दिन, सूखी डाली, तौलिए, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ, भँवर |
वृंदावनलाल वर्मा | झाँसी की रानी, राखी की लाज, कश्मीर का कांटा, सगुन, नीलकंठ, देखा-देखी, फूलों की बोली, पूर्व की ओर, बीरबल, केवल, निस्तार, ललित-विक्रम, कनेर, केवट | |
रांगेय राघव | स्वर्गभूमि का आदमी | |
रामकुमार वर्मा | राजरानी सीता, कौमुदी महोत्सव, पृथ्वी का स्वर्ग | |
किशोरी दास वाजपेयी | सुदामा | |
भुनेश्वर प्रसाद | ऊसर, तांबे के कीड़ा | |
चतुरसेन शास्त्री | मेघनाथ | |
सुमित्रानंदन पंत | ज्योत्स्ना, रजत शिखर, शिल्पी सौवर्ण | |
मैथलीशरण गुप्त | अनघ, तिलोत्तमा, चंद्रहास | |
विष्णु प्रभाकर | युगे युगे क्रांति, टूटते परिवेश, डॉक्टर, समाधि, कुहासा और किरण, डरे हुए लोग, वंदिनी | |
जगदीशचंद्र माथुर | कोणार्क, शारदीया, पहला राजा, दशरथनंदन, रघुकुल रीति | |
रामनरेश त्रिपाठी | सुभद्रा, जयंत | |
धर्मवीर भारती | अंधायुग (गीत नाट्य), नदी प्यासी थी | |
‘अज्ञेय’ | उत्तरप्रियदर्शी | |
लक्ष्मीनारायण लाल | अंधा कुआँ, मादा कैक्टस, सूर्यमुखी, मिस्टर अभिमन्यु, करफ्यू, अब्दुल्ला दीवाना, व्यक्तिगत, एक सत्य हरिश्चंद, सुगन पंछी, सबरंग मोहभंग, रातरानी, तीन आँखों वाली मछली, सूखा सरोवर, रक्तकमल, दर्पण, गंगामाटी, राक्षस का मंदिर, दूसरा दरवाजा, यक्ष प्रश्न | |
मोहन राकेश | आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे-अधूरे, बारह सौ छब्बीस बाता सात, पूर्वाभ्यास, पैरों तले की जमीन (अधूरा) | |
गिरिजा कुमार माथुर | कल्पांतर | |
सिद्धनाथ | सृष्टि की साँझ, लौह देवता, संघर्ष, विकलांगों का देश, बादलों का शाप | |
दुष्यंत कुमार | एक कण्ठ विषपायी | |
नरेश मेहता | सुबह के घंटे, खंडित यात्राएँ | |
शिवप्रसाद सिंह | घाटियाँ गूँजती हैं | |
ज्ञानदेव अग्निहोत्री | नेफा की एक शाम, शुतुरमुर्ग, वतन की आबरू, चिराग जल उठा, माटी जागीर, अनुष्ठान | |
विपिन कुमार अग्रवाल | तीन अपाहिज, खोए हुए आदमी की तलाश, लोटन | |
सुरेंद्र वर्मा | द्रौपदी, सेतुबंध, नायक, खलनायक, विदूषक, आठवाँ सर्ग, सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक, छोटे सैयद बड़े सैयद, कैद-ए-हयात, एक दुनी एक, शकुन्तला की अँगूठी, मुगल भारत: नाट्य चतुष्टय, रति का कंगन, नींद क्यों नही आती रात भर, अँधेरे से परे | |
अमृतराय | चिंदियों की एक झालर, शताब्दी, हमलोग | |
असगर वजाहत | जिस लाहौर न देख्या ओ जम्याइ नइ, गोडसे@गाँधी.कॉम | |
लक्ष्मीकांत वर्मा | रोशनी एक नदी है, अपना अपना जूता, ठहरी हुई जिंदगी, सीमांत के बादल, तिन्दुवुलम | |
विनोद रस्तोगी | आजादी के बाद, नये हाथ, बर्फ की मीनार, जनतंत्र जिंदाबाद, देश के दुश्मन, फिसलन और पाँव | |
गिरीश कर्नाड | तुगलक, नागमंडल, रक्त-कल्याण | |
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना | बकरी, अब गरीबी हटाओ, लड़ाई, हवालात, होरी धूम मच्यो री, पीली पत्तियाँ | |
मुद्राराक्षस | मरजीवा, तेंदुआ, तिलचट्टा, योर्स फेथफुली, आला अफसर, संतोला | |
भीष्म साहनी | कबीर खड़ा बजार में, हानूश, माधवी, मुआवजे, रंग दे बसंती चोला, आलमगीर, माधवी | |
हबीब तनवीर | चरणदास चोर, मिट्टी की गाड़ी, पचरंगी, आग की गेंद, आगरा बाज़ार, बहादुर कलारिन, चांदी की चम्मच, दूध का गिलास, एक औरत हिपेशिया भी थी, गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दामाद, जहरीली हवा, कामदेव का अपना बसंत ऋतू का सपना, कारतूस, परम्परा, शतरंज के मोहरे | |
शंकर शेष | घरौंदा, बिना बाती के दीप, एक और द्रोणाचार्य, बंधन अपने-अपने | |
रमेश वक्षी | देवयानी का कहना है, तीसरा हाथी, वामाचार, यादों का घर, कसे हुए तार | |
गिरिराज किशोर | बादशाह का गुलाम, घोड़ा और घास, काठ का तोप, नरमेध, प्रजा ही रहने दो, जुर्मआयद | |
मणि मधुकर | रसगंधर्व, बुलबुल की सराय, दुलारी बाई, एकतारे की आँख, खेला पोलमपुर | |
निर्मल वर्मा | तीन एकांत, वीक एण्ड, धूप का एक टुकड़ा, डेढ़ इंच ऊपर | |
कृष्ण बलदेव वैद | भूख आग है, हमारी दुनियाँ, सवाल और स्वप्न, अंत का उजाला, कहते हैं जिसको प्यार | |
शरद जोशी | एक था गधा, अन्धों की हाथी | |
गोविंद चातक | काला मुँह, अपने-अपने खूँटे | |
विजय तेंदुलकर | घासीराम कोतवाल, हल्ला बोल, तीन रंग, बेबी, चीफ मिनिस्टर, चौपट राजा तथा अन्य बाल नाटक, गिद्ध, दम्भद्वीप, कच्ची धुप, कन्यादान, मीता की कहानी, भल्या काका, सावधान दुल्हे की तलास है, मोम का घरौदा, चिड़िया का, भीतरी दीवारें, कौओं की पाठशाला, फुटपाथ का सम्राट | |
स्वदेश दीपक | नाटक बाल भगवान, कोर्ट मार्शल, जलता हुआ रथ, सबसे उदास कविता, काल कोठरी | |
मार्कण्डेय | पत्थर और परछाइयाँ | |
दूधनाथ सिंह | यमगाथा | |
काशीनाथ सिंह | शोआस | |
हमीदुल्ला | दरिन्दे, उलझी आकृतियाँ, उत्तर उर्वसी, हरवार | |
सुशील कुमार सिंह | सिंहासन खाली है, चार यारों का यार, अलख आजादी की, बाल लोक नाटिकाएं, बापू के नाम, बेबी तुम नादान, गुडबाई स्वामी, नागपास | |
रमेश उपाध्याय | पेपरवेट | |
सुदर्शन चोपड़ा | काला पहाड़ | |
चन्द्रकांत देवताले | भूखंड तप रहा है, सुकरात का घाव | |
राहुल सांकृत्यायन | प्रभा | |
विशाल विजय | बार्किंग डॉग एंड पेइंग गेस्ट | |
निलय उपाध्याय | पॉपकॅार्न | |
मधुधवन | चिंगारियाँ, आज की पुकार, भारत कहाँ जा रहा है | |
चन्द्रशेखर कम्बार | महामाई | |
रामशंकर निशेश | आदमखोर, कुक्कू डार्लिंग, चील घर, तीन नाटक | |
दया प्रकाश सिन्हा | सम्राट अशोक, दुश्मन, मन का भँवर, मेरे भाई मेरे दोस्त, पंचतंत्र, साँझ सवेरा, सादर आपका, अपने अपने दाँव, इतिहास, इतिहास-चक्र, कथा एक कंस की, सीढियाँ, ओह अमेरिका! | |
सुरेन्द्र दुबे | उठो अहल्या | |
भानु भारती | तमाशा न हुआ | |
रवीन्द्र भारती | जनवासा, अगिन तिरिया | |
महेंद्र भल्ला | दिमागे हस्ती दिल की बस्ती, है कहाँ? है कहाँ? | |
जयंत पवार | अभी रात बाकी है | |
शिशिर कुमार दास | बाघ | |
जितेन्द्र सहाय | भटकते लोग | |
शाहिद अनवर | हमारे समय में | |
सुदर्शन मजीठिया | राजा नंगा | |
सुरेन्द्र शर्मा | रंगभूमि | |
मनोज मित्रा | सैयां बेईमान | |
नरेंद्र कोहली | किष्किंधा, अगस्त्य कथा, संघर्ष की ओर | |
मीराकांत | कंधे पर बैठा सांप, नेपथ्य राग, अंत हाजिर हो… | |
विजेंद्र | क्रौंचवध (काव्य-नाटक) | |
राजेश जैन | वायरस | |
मृदुला बिहारी | अँधेरे से आगे | |
कैलास वाजपेयी | युवा संन्यासी | |
ज्ञानदेव अग्निहोत्री | शुतुरमुर्ग | |
नंदकिशोर नवल | मैं पढ़ा जा चुका पत्र | |
संजय सहाय | जाँच-पड़ताल | |
पियूष मिश्रा | खुबसूरत बहू | |
सौरभ शुक्ला | बर्फ़ | |
प्रभात कुमार उत्प्रेती | जब शहर हमारा सोता है | |
हरिकेष सुलभ | दलिया, माटी गाड़ी, धरती आबा, अमली, बटोही |
महिला नाटककार और उनकी प्रमुख कृतियाँ
भारतीय रंगमंच में महिला नाटककारों का योगदान साहित्यिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। उन्होंने समाज की विविध समस्याओं, स्त्री-जीवन के यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं को अपने नाटकों में गहराई से उकेरा है। नीचे प्रमुख महिला नाटककारों और उनके उल्लेखनीय नाटकों की सूची दी गई है —
नाटककार | प्रमुख नाटक |
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मन्नू भण्डारी | बिना दीवारों के घर, महाभोज, उजली नगरी चतुर राजा |
मृदुला गर्ग | एक अजनवी, ठहरा हुआ पानी, कितनी कदें, जादू का कालीन |
गिरीश रस्तोगी | असुरक्षित, मुझे मत मारो |
मृणाल पाण्डेय | आदमी जो मछुवारा नहीं था, जो रामरचि राखा, चोर निकल के भागा |
ममता कालिया | कितने प्रश्न करूँ |
उषा गांगुली | रुदाली |
वर्षा दास | चहकता चौराहा, प्रेम और पत्थर, खिड़की खोल दो |
निष्कर्ष
हिंदी नाट्य साहित्य का विकास केवल साहित्यिक यात्रा नहीं, बल्कि भारतीय समाज, राजनीति और संस्कृति के बदलते स्वरूप का भी प्रतिबिंब है। भारतेन्दु युग ने नाटक को राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सुधार का प्रभावी माध्यम बनाया, जबकि प्रसादोत्तर युग ने इसे आधुनिक जीवन की जटिलताओं, मनोवैज्ञानिक गहराइयों और मंचीय प्रयोगों से समृद्ध किया। इन दोनों युगों का सम्मिलित योगदान हिंदी नाटक को विविधता, गहराई और जीवंतता प्रदान करता है, जो आज भी भारतीय रंगमंच और साहित्यिक परंपरा को सशक्त बनाता है।
इन्हें भी देखें –
- हिन्दी नाटक: इतिहास, स्वरुप, तत्व, विकास, नाटककार, प्रतिनिधि कृतियाँ और विशेषताएँ
- हिन्दी की प्रमुख कहानियाँ और उनके रचनाकार
- कहानी: परिभाषा, स्वरूप, तत्व, भेद, विकास, महत्व उदाहरण, कहानी-उपन्यास में अंतर
- भारतेंदु युग के कवि और रचनाएँ, रचना एवं उनके रचनाकार
- हिंदी उपन्यास और उपन्यासकार: लेखक और रचनाओं की सूची
- पूर्व मध्यकाल (भक्ति काल 1350 ई. – 1650 ई.) – हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग
- हिन्दी साहित्य – काल विभाजन, वर्गीकरण, नामकरण और इतिहास
- हिंदी साहित्य का आदिकाल (वीरगाथा काल 1000 -1350 ई०) | स्वरूप, प्रवृत्तियाँ और प्रमुख रचनाएँ
- राम भक्ति काव्य धारा: सगुण भक्ति की रामाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली
- कृष्ण भक्ति काव्य धारा: सगुण भक्ति की कृष्णाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली
- संत काव्य धारा: निर्गुण भक्ति की ज्ञानाश्रयी शाखा | कवि, रचनाएँ एवं भाषा शैली