हिंदी नाटक और नाटककार – लेखक और रचनाएँ

यह लेख हिंदी नाट्य साहित्य के तीन प्रमुख युगों—भारतेन्दु युग, प्रसादयुग और प्रसादोत्तर युग—का विस्तृत ऐतिहासिक और साहित्यिक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें हिंदी के पहले नाटक ‘नहुष’ (1857, गोपालचंद्र गिरधरदास) से लेकर भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, गिरीश कर्नाड जैसे महान नाटककारों के योगदान का क्रमबद्ध विवरण है।

लेख में प्रत्येक युग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, प्रमुख विशेषताएँ, भाषा-शैली, विषय-वस्तु और मंचन तकनीक का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है। भारतेन्दु युग में सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना, प्रसादयुग में काव्यात्मकता और आदर्शवाद, तथा प्रसादोत्तर युग में यथार्थवाद, प्रयोगधर्मिता और आधुनिकता का समन्वय स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। साथ ही, लेख में तीनों युगों के प्रमुख नाटकों और नाटककारों की सूची भी दी गई है, जिससे यह हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और रंगमंच प्रेमियों के लिए एक मूल्यवान संदर्भ सामग्री बन जाता है।

Table of Contents

नाटक किसे कहते हैं?

हिंदी साहित्य में नाटक (Drama) एक ऐसी विधा है, जिसमें कथ्य को केवल पढ़कर या सुनकर ही नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष मंचन के माध्यम से देखा और अनुभव किया जाता है। यह साहित्यिक विधाओं में सबसे अधिक जीवंत और प्रभावशाली मानी जाती है, क्योंकि इसमें संवाद, अभिनय, हावभाव, संगीत और दृश्यात्मक प्रस्तुति का संगम होता है। नाटक की परिभाषा देते हुए नाट्यशास्त्र के आचार्य भरतमुनि लिखते हैं—

“नानाभावोपसम्पन्नं नानावस्थान्तरात्मकम्।
लोकवृत्तानुकरं नाट्यमेतन्मया कृतम्।।

अर्थात्, नाटक वह है जिसमें विभिन्न भाव, अनेक अवस्थाएँ और लोकव्यवहार का अनुकरण होता है, जिसे मैंने रचा है।

हिंदी का पहला नाटक

हिंदी का पहला नाटक ‘नहुष’ माना जाता है, जिसका रचनाकाल 1857 ई. है। इसके रचयिता गोपाल चंद्र गिरधरदास हैं। यह नाटक पौराणिक कथा पर आधारित था। इस कृति ने हिंदी नाट्य साहित्य की नींव रखी और आगे आने वाले रचनाकारों के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य किया। नाटक को काव्य का ही एक रूप माना जाता है, परंतु इसकी विशिष्टता यह है कि यह केवल श्रवण के माध्यम से ही नहीं, बल्कि मंचन और दृश्य अनुभव के द्वारा भी दर्शकों के मन में रसानुभूति उत्पन्न करता है। इसमें कथानक, पात्र, संवाद, दृश्यविन्यास, मंच-सज्जा और अभिनय—ये सभी तत्व सम्मिलित होते हैं, जो मिलकर दर्शकों के हृदय पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।

हिंदी नाटक का ऐतिहासिक संदर्भ एवं विकास क्रम

हिंदी नाटकों के विकास में कई चरण और युग आए, जिनमें अलग-अलग नाटककारों ने अपनी-अपनी शैली और दृष्टिकोण से इस विधा को समृद्ध किया। हिंदी का पहला नाटक ‘नहुष’ (1857 ई., गोपालचंद्र गिरधरदास) के बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी नाटक को एक सशक्त स्वरूप प्रदान किया।

कालांतर में नाटककारों ने सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक विषयों को मंच पर उतारा, जिससे हिंदी नाट्य साहित्य का विकास तीन प्रमुख युगों से गुज़रा——

  1. भारतेन्दु युग (1850–1900) – जिसे हिंदी नाटकों का स्वर्णिम प्रारंभिक काल कहा जाता है। इस दौर में देशभक्ति, सामाजिक सुधार और ऐतिहासिक विषयों पर आधारित नाटकों की रचना हुई।
  2. प्रसादयुग (1900–1937) – काव्यात्मक, छायावादी और ऐतिहासिक नाटक।
  3. प्रसादोत्तर युग (1937–वर्तमान) – यथार्थवादी, प्रयोगधर्मी और आधुनिक नाटक। इस समय छायावादी, ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक नाटकों के साथ-साथ सामाजिक यथार्थवादी नाटकों का भी विकास हुआ।

नीचे इन तीनों युगों के अंतर्गत प्रमुख नाटककारों (रचनाकारों) एवं उनके नाटकों (रचनाओं) का क्रमवार विवरण दिया गया है, जिससे हिंदी नाट्य साहित्य के विकास की स्पष्ट झलक प्राप्त होती है।

1. भारतेन्दु युग (आधार निर्माण काल)

समयावधि: लगभग 1850 ई. से 1900 ई. तक
इस युग को हिंदी नाट्य साहित्य का प्रारंभिक और स्वर्णिम आधार काल कहा जाता है। हिंदी का पहला नाटक ‘नहुष’ (1857 ई., गोपालचंद्र गिरधरदास) इसी दौर में लिखा गया। लेकिन हिंदी नाट्य परंपरा को वास्तविक दिशा और गति देने का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को जाता है, जिन्हें आधुनिक हिंदी नाट्य साहित्य का जनक कहा जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम असफल होने के बाद भारतीय समाज में राजनीतिक चेतना और राष्ट्रीय भावना के साथ-साथ सामाजिक सुधार की आवश्यकता महसूस हुई।
  • अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य रंगमंच का प्रभाव हिंदी नाटकों की संरचना और विषयवस्तु में दिखाई देने लगा।
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने नाटकों के माध्यम से देशभक्ति, सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक गौरव को प्रस्तुत किया।

विशेषताएँ:

  • भाषा: संस्कृतनिष्ठ, ओजपूर्ण और भावप्रधान।
  • विषय: ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं में समकालीन संदेश का समावेश।
  • नाट्यरूप: संवादप्रधान, कथात्मक संरचना।
  • उद्देश्य: जनजागरण, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना का प्रसार।

भारतेन्दु युगीन नाटककार और उनकी रचनाएँ (नाटक)

क्रमनाटककारप्रमुख नाटक
1प्राणचंद चौहानरामायण महानाटक
2महाराज विश्वनाथ सिंहआनंद रघुनंदन
3गोपालचंद्र गिरिधर दासनहुष
4भारतेंदु हरिश्चंद्रअनूदित नाटक – विद्यासुंदर, रत्नावली, पाखण्ड विडंबन, धनंजय विजय, कर्पूर मंजरी, भारत-जननी, मुद्राराक्षस, दुर्लभ बंधु
मौलिक नाटक – वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्यहरिश्चंद्र, श्रीचंद्रावली, विषस्य विषमौषधम, भारत-दुर्दशा, नीलदेवी, अँधेर नगरी, सती प्रताप, प्रेम योगिनी
5शिवनंदन सहायकृष्ण-सुदामा नाटक
6लाला श्रीनिवासदाससंयोगिता स्वयंवर, प्रह्लाद-चरित्र, रणधीर प्रेममोहिनी, तप्त संवरण
7राधाचरण गोस्वामीअमरसिंह राठौर, बूढ़े मुँह मुँहासे (प्रहसन)
8किशोरीलाल गोस्वामीमयंक मंजरी, प्रणयिनी-परिणय
9प्रताप नारायण मिश्रभारत-दुर्दशा, कलिकौतुक रुपक, संगीत शाकुंतल, हठी हम्मीर
10बालकृष्ण भट्टकलिराज की सभा, रेल का विकट खेल, दमयंती स्वयंवर, जैसा काम वैसा परिणाम (प्रहसन), नई रोशनी का विष, वेणुसंहार
11शीतला प्रसाद त्रिपाठीजानकीमंगल
12राधाकृष्ण दासमहाराणा प्रताप, दुःखिनी बाला, पद्यावती, धर्मालाप
13देवकीनंदन त्रिपाठीभारत-हरण
14अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’प्रद्युम्न विजय व्यायोग, रुक्मिणी परिणय

2. प्रसादयुग (छायावादी और काव्यात्मक नाटक)

समयावधि: लगभग 1900 ई. से 1937 ई. तक
भारतेन्दु युग के बाद हिंदी नाटक के विकास में जो दूसरा महत्वपूर्ण चरण आया, उसे प्रसादयुग या प्रसादकालीन नाटक कहा जाता है। इसकी समयावधि लगभग 1900 ई. से 1937 ई. तक मानी जाती है। यह काल हिंदी साहित्य में छायावाद का स्वर्णिम युग था, जिसका प्रभाव नाटक विधा पर भी गहराई से पड़ा। इस युग के नाटकों में ऐतिहासिक, पौराणिक और दार्शनिक विषयों का प्रधानता से प्रयोग हुआ, लेकिन उनमें तत्कालीन सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का भी प्रभाव देखा जा सकता है।

इस युग के सर्वाधिक प्रभावशाली नाटककार जयशंकर प्रसाद थे, जिनके कारण ही इस युग को “प्रसादयुग” कहा जाता है। प्रसाद के नाटकों में काव्यात्मक भाषा, गहन मनोविश्लेषण, ऐतिहासिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय भावना का अद्वितीय समन्वय मिलता है। इनके अतिरिक्त हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उदयशंकर भट्ट, माखनलाल चतुर्वेदी, प्रेमचंद आदि नाटककारों ने भी इस दौर में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • हिंदी साहित्य के छायावादी युग का प्रभाव।
  • ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं में दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण।
  • नाटकों में साहित्यिक गरिमा और काव्यात्मक सौंदर्य।

विशेषताएँ

  • संवादों में उच्चकोटि की काव्यात्मकता।
  • आदर्शवादी पात्र और भावनाओं का उदात्तीकरण।
  • मंचन की अपेक्षा साहित्यिक पठन का महत्व।
  • प्रकृति, सौंदर्य, प्रेम और वीरता का समन्वय।

प्रसादयुगीन नाटककार और उनकी रचनाएँ (नाटक)

क्रमनाटककारप्रमुख नाटक
1माखनलाल चतुर्वेदीकृष्णार्जुन युद्ध
2विशम्भर नाथ ‘कौशिक’भीष्म
3मिश्रबंधुनेत्रोन्मीलन
4जयशंकर प्रसादकरुणालय (गीत नाट्य), विशाख, अजातशत्रु, कामना (नाट्य कृति), जनमेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री
5हरिकृष्ण ‘प्रेमी’स्वर्णविहान, रक्षाबंधन, प्रतिशोध, स्वप्नभंग, आहुति, विषपान, उद्धार, शपथ, विजय स्तंभ, कीर्तिस्तंभ, रक्तदान, संरक्षक, विदा, छाया बंधन, पाताल विजय, शिवसाधना, अमृत पुत्री, संवत प्रवर्तन
6लक्ष्मीनारायण मिश्रराक्षस का मंदिर, संन्यासी, मुक्ति का रहस्य, राजयोग, आधी रात, सिंदूर की होली, गरुड़ध्वज, वत्सराज, दशाश्वमेघ, वितस्ता की लहरें, चक्रव्यूह, नारद की वीणा, जगद्गुरु, धरती का ह्रदय
7गोविन्दबल्लभ पंतअंगूर की बेटी, राजमुकुट, सिंदूर की बिंदी, अंतःपुर का छिद्र, यायाति, सुहागबिंदी
8उदयशंकर भट्टमुक्तिपथ, क्रांतिकारी, विक्रमादित्य, विश्वामित्र, दाहर अथवा सिंध पतन, शकविजय, सागर विजय, मत्स्यगंधा, नया समाज, पार्वती, विद्रोहिणी अंबा, कमला, अश्वत्थामा, असुर सुंदरी, राधा
9सुदर्शनदयानंद नाटक, आनरेरी मजिस्ट्रेट, भाग्यचक्र
10सेठ गोविंददासगरीबी और अमीरी, बड़ा पापी कौन, त्याग और ग्रहण, संतोष कहाँ, सुख किसमें, सेवापथ, स्वतंत्र्य सिद्धांत, प्रकाश, महत्व किसे, हर्ष, कर्ण, विकास, कर्तव्य
11दुर्गा प्रसाद गुप्तअभिमन्यु वध, विश्वामित्र
12पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’चार बेचारे, उजबक, महात्मा ईसा, चुंबन, डिक्टेटर, गंगा का बेटा, आवारा
13जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदीतुलसीदास, मधुरमिलन
14चन्द्रगुप्त विद्यालंकारअशोक, रेवा
15प्रेमचंदकर्बला, संग्राम, प्रेम की बेदी
16लक्ष्मण सिंहगुलामी का नशा

3. प्रसादोत्तर युग (विकास और प्रयोगशीलता का काल)

समयावधि: लगभग 1937 ई. से वर्तमान तक
भारतेन्दु युग और जयशंकर प्रसाद के नाटकों के बाद हिंदी नाटक ने एक नवीन मोड़ लिया। जयशंकर प्रसाद के नाटकों ने छायावादी संवेदनाओं को ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ा, परंतु उनके बाद नाटक मंच और समाज के वास्तविक सरोकारों से और भी निकट हो गए।

प्रसादोत्तर युग की शुरुआत 1937 ई. में जयशंकर प्रसाद के निधन के बाद मानी जाती है। यह काल स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण, स्वतंत्रता प्राप्ति और उसके बाद के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों का साक्षी रहा। इस युग में हिंदी नाटक ने न केवल मंचीय प्रयोगधर्मिता को अपनाया, बल्कि समकालीन समस्याओं, सामाजिक यथार्थ, मनोवैज्ञानिक संघर्ष और राजनीतिक विद्रूपता को भी विषय बनाया। पाश्चात्य रंगकर्मियों के प्रभाव के साथ-साथ भारतीय लोक-नाट्य परंपराओं का पुनर्जीवन भी इस दौर में हुआ।

इस युग में मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, उपेंद्रनाथ ‘अश्क’, लक्ष्मीनारायण लाल, भीष्म साहनी, हबीब तनवीर, विजय तेंदुलकर, गिरीश कर्नाड जैसे नाटककारों ने हिंदी नाट्य साहित्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। इस काल के नाटकों में यथार्थवाद, प्रतीकवाद, अस्तित्ववाद और आधुनिक जीवन की विडंबनाएँ प्रमुख रूप से परिलक्षित होती हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरण और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों का दौर।
  • 1960 के बाद रंगमंच पर यथार्थवादी और प्रयोगधर्मी नाटकों का आगमन।
  • भारतीय रंगमंच पर पाश्चात्य रंगकर्मियों जैसे ब्रेख्त, इब्सन, और स्टैनिस्लावस्की का प्रभाव।

विशेषताएँ:

  • भाषा: सरल, बोलचाल की, और संवाद में सहजता।
  • विषय: समकालीन सामाजिक समस्याएँ, राजनीतिक विडंबनाएँ, मनोवैज्ञानिक द्वंद्व।
  • नाट्यरूप: प्रयोगधर्मी, प्रतीकात्मक, और मंच तकनीक में विविधता।
  • उद्देश्य: सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित करना, दर्शकों को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करना।

प्रसादोत्तर युगीन नाटककार और उनकी रचनाएँ (नाटक)

क्रमनाटककारप्रमुख नाटक
1उपेंद्रनाथ ‘अश्क’स्वर्ग की झलक, जय-पराजय, लक्ष्मी का स्वागत, छठा बेटा, कैद, उड़ान, अलग-अलग रास्ते, अंजोदीदी, लौटता हुआ दिन, सूखी डाली, तौलिए, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ, भँवर
2वृंदावनलाल वर्माझाँसी की रानी, राखी की लाज, कश्मीर का कांटा, सगुन, नीलकंठ, देखा-देखी, फूलों की बोली, पूर्व की ओर, बीरबल, केवल, निस्तार, ललित-विक्रम, कनेर, केवट
3रांगेय राघवस्वर्गभूमि का आदमी
4रामकुमार वर्माराजरानी सीता, कौमुदी महोत्सव, पृथ्वी का स्वर्ग
5किशोरी दास वाजपेयीसुदामा
6भुनेश्वर प्रसादऊसर, तांबे के कीड़ा
7चतुरसेन शास्त्रीमेघनाथ
8सुमित्रानंदन पंतज्योत्स्ना, रजत शिखर, शिल्पी सौवर्ण
9मैथलीशरण गुप्तअनघ, तिलोत्तमा, चंद्रहास
10विष्णु प्रभाकरयुगे युगे क्रांति, टूटते परिवेश, डॉक्टर, समाधि, कुहासा और किरण, डरे हुए लोग, वंदिनी
11जगदीशचंद्र माथुरकोणार्क, शारदीया, पहला राजा, दशरथनंदन, रघुकुल रीति
12रामनरेश त्रिपाठीसुभद्रा, जयंत
13धर्मवीर भारतीअंधायुग (गीत नाट्य), नदी प्यासी थी
14‘अज्ञेय’उत्तरप्रियदर्शी
15लक्ष्मीनारायण लालअंधा कुआँ, मादा कैक्टस, सूर्यमुखी, मिस्टर अभिमन्यु, करफ्यू, अब्दुल्ला दीवाना, व्यक्तिगत, एक सत्य हरिश्चंद, सुगन पंछी, सबरंग मोहभंग, रातरानी, तीन आँखों वाली मछली, सूखा सरोवर, रक्तकमल, दर्पण, गंगामाटी, राक्षस का मंदिर, दूसरा दरवाजा, यक्ष प्रश्न
16मोहन राकेशआषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे-अधूरे, बारह सौ छब्बीस बाता सात, पूर्वाभ्यास, पैरों तले की जमीन (अधूरा)
17गिरिजा कुमार माथुरकल्पांतर
18सिद्धनाथसृष्टि की साँझ, लौह देवता, संघर्ष, विकलांगों का देश, बादलों का शाप
19दुष्यंत कुमारएक कण्ठ विषपायी
20नरेश मेहतासुबह के घंटे, खंडित यात्राएँ
21शिवप्रसाद सिंहघाटियाँ गूँजती हैं
22ज्ञानदेव अग्निहोत्रीनेफा की एक शाम, शुतुरमुर्ग, वतन की आबरू, चिराग जल उठा, माटी जागीर, अनुष्ठान
23विपिन कुमार अग्रवालतीन अपाहिज, खोए हुए आदमी की तलाश, लोटन
24सुरेंद्र वर्माद्रौपदी, सेतुबंध, नायक, खलनायक, विदूषक, आठवाँ सर्ग, सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक, छोटे सैयद बड़े सैयद, कैद-ए-हयात, एक दुनी एक, शकुन्तला की अँगूठी, मुगल भारत: नाट्य चतुष्टय, रति का कंगन, नींद क्यों नहीं आती रात भर, अँधेरे से परे
25अमृतरायचिंदियों की एक झालर, शताब्दी, हमलोग
26लक्ष्मीकांत वर्मारोशनी एक नदी है, अपना अपना जूता, ठहरी हुई जिंदगी, सीमांत के बादल, तिन्दुवुलम
27विनोद रस्तोगीआजादी के बाद, नये हाथ, बर्फ की मीनार, जनतंत्र जिंदाबाद, देश के दुश्मन, फिसलन और पाँव
28गिरीश कर्नाडतुगलक, नागमंडल, रक्त-कल्याण
29सर्वेश्वरदयाल सक्सेनाबकरी, अब गरीबी हटाओ, लड़ाई, हवालात, होरी धूम मच्यो री, पीली पत्तियाँ
30मुद्राराक्षसमरजीवा, तेंदुआ, तिलचट्टा, योर्स फेथफुली, आला अफसर, संतोला
31भीष्म साहनीकबीर खड़ा बजार में, हानूश, माधवी, मुआवजे, रंग दे बसंती चोला, आलमगीर
32हबीब तनवीरचरणदास चोर, मिट्टी की गाड़ी, पचरंगी, आग की गेंद, आगरा बाज़ार, बहादुर कलारिन, चांदी की चम्मच, दूध का गिलास, एक औरत हिपेशिया भी थी, गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दामाद, जहरीली हवा, कामदेव का अपना बसंत ऋतू का सपना, कारतूस, परम्परा, शतरंज के मोहरे
33शंकर शेषघरौंदा, बिना बाती के दीप, एक और द्रोणाचार्य, बंधन अपने-अपने
34रमेश वक्षीदेवयानी का कहना है, तीसरा हाथी, वामाचार, यादों का घर, कसे हुए तार
35गिरिराज किशोरबादशाह का गुलाम, घोड़ा और घास, काठ का तोप, नरमेध, प्रजा ही रहने दो, जुर्मआयद
36मणि मधुकररसगंधर्व, बुलबुल की सराय, दुलारी बाई, एकतारे की आँख, खेला पोलमपुर
37निर्मल वर्मातीन एकांत, वीक एण्ड, धूप का एक टुकड़ा, डेढ़ इंच ऊपर
38कृष्ण बलदेव वैदभूख आग है, हमारी दुनियाँ, सवाल और स्वप्न, अंत का उजाला, कहते हैं जिसको प्यार
39शरद जोशीएक था गधा, अन्धों की हांथी
40गोविंद चातककाला मुँह, अपने-अपने खूँटे
41विजय तेंदुलकरघासीराम कोतवाल, हल्ला बोल, तीन रंग, बेबी, चीफ मिनिस्टर, चौपट राजा तथा अन्य बाल नाटक, गिद्ध, दम्भद्वीप, कच्ची धुप, कन्यादान, मीता की कहानी, भल्या काका, सावधान दुल्हे की तलास है, मोम का घरौदा, चिड़िया का, भीतरी दीवारें, कौओं की पाठशाला, फुटपाथ का सम्राट
42स्वदेश दीपकनाटक बाल भगवान, कोर्ट मार्शल, जलता हुआ रथ, सबसे उदास कविता, काल कोठरी
43मार्कण्डेयपत्थर और परछाइयाँ
44दूधनाथ सिंहयमगाथा
45काशीनाथ सिंहशोआस
46हमीदुल्लादरिन्दे, उलझी आकृतियाँ, उत्तर उर्वसी, हरवार
47सुशील कुमार सिंहसिंहासन खाली है, चार यारों का यार, अलख आजादी की, बाल लोक नाटिकाएं, बापू के नाम, बेबी तुम नादान, गुडबाई स्वामी, नागपास
48रमेश उपाध्यायपेपरवेट
49असगर वजाहतजिस लाहौर न देख्या ओ जम्याइ नइ, गोडसे@गाँधी.कॉम
50सुदर्शन चोपड़ाकाला पहाड़
51चन्द्रकांत देवतालेभूखंड तप रहा है, सुकरात का घाव
52राहुल सांकृत्यायनप्रभा
53विशाल विजयबार्किंग डॉग एंड पेइंग गेस्ट
54निलय उपाध्यायपॉपकॅार्न
55मधुधवनचिंगारियाँ, आज की पुकार, भारत कहाँ जा रहा है
56चन्द्रशेखर कम्बारमहामाई
57रामशंकर निशेशआदमखोर, कुक्कू डार्लिंग, चील घर, तीन नाटक
58दया प्रकाश सिन्हासम्राट अशोक, दुश्मन, मन का भँवर, मेरे भाई मेरे दोस्त, पंचतंत्र, साँझ सवेरा, सादर आपका, अपने अपने दाँव, इतिहास, इतिहास-चक्र, कथा एक कंस की सीढ़ियाँ, ओह अमेरिका!
59सुरेन्द्र दुबेउठो अहल्या
60अनुपम आनन्दपक्ष-विपक्ष
61भानु भारतीतमाशा न हुआ
62रवीन्द्र भारतीजनवासा, अगिन तिरिया
63महेंद्र भल्लादिमागे हस्ती दिल की बस्ती, है कहाँ? है कहाँ?
64जयंत पवारअभी रात बाकी है
65शिशिर कुमार दासबाघ
66जितेन्द्र सहायभटकते लोग
67शाहिद अनवरहमारे समय में
68सुदर्शन मजीठियाराजा नंगा
69सुरेन्द्र शर्मारंगभूमि
70मनोज मित्रासैयां बेईमान
71नरेंद्र कोहलीकिष्किंधा, अगस्त्य कथा, संघर्ष की ओर
72मीराकांतकंधे पर बैठा सांप, नेपथ्य राग, अंत हाजिर हो…
73विजेंद्रक्रौंचवध (काव्य-नाटक)
74राजेश जैनवायरस
75मृदुला बिहारीअँधेरे से आगे
76कैलास वाजपेयीयुवा संन्यासी
77ज्ञानदेव अग्निहोत्रीशुतुरमुर्ग
78नंदकिशोर नवलमैं पढ़ा जा चुका पत्र
79संजय सहायजाँच-पड़ताल
80पियूष मिश्राखुबसूरत बहू
81सौरभ शुक्लाबर्फ़
82प्रभात कुमार उत्प्रेतीजब शहर हमारा सोता है
83हरिकेष सुलभदलिया, माटी गाड़ी, धरती आबा, अमली, बटोही

तुलनात्मक विश्लेषण: भारतेन्दु युग बनाम प्रसादयुगीन बनाम प्रसादोत्तर युग

पहलूभारतेन्दु युगप्रसादयुगीनप्रसादोत्तर युग
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि1857 के बाद का राष्ट्रीय पुनर्जागरण कालप्रथम विश्वयुद्ध, असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, राष्ट्रीय चेतना का उभारस्वतंत्रता आंदोलन का अंतिम चरण और स्वतंत्रता के बाद का सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन
समयावधि19वीं सदी का उत्तरार्ध से 20वीं सदी का प्रारंभ (लगभग 1868–1900 ई.)20वीं सदी के प्रारंभ से 1937 ई. तक20वीं सदी का मध्य से 21वीं सदी तक
विषयवस्तुदेशभक्ति, ऐतिहासिक घटनाएँ, सामाजिक सुधार, धार्मिक कथाएँऐतिहासिक, पौराणिक, राष्ट्रवादी चेतना, रोमांटिकता और आदर्शवाद का मिश्रणमनोवैज्ञानिक संघर्ष, यथार्थवादी सामाजिक समस्याएँ, राजनीतिक चेतना, प्रयोगधर्मी विषय
भाषा शैलीसंस्कृतनिष्ठ, अलंकृत और ओजपूर्णकाव्यात्मक, भावप्रवण, संस्कृतनिष्ठ लेकिन अपेक्षाकृत सहजसरल, बोलचाल की, संवादप्रधान
प्रस्तुति शैलीपौराणिक/ऐतिहासिक कथा-केंद्रित, अधिक कथात्मकगीत-नाट्य, भावप्रधान, नाटकीय चरमोत्कर्ष पर बलनाटकीय टकराव, मंचीय प्रयोग, प्रतीकवाद
प्रमुख नाटककारभारतेंदु हरिश्चंद्र, लाला श्रीनिवासदास, प्रताप नारायण मिश्रजयशंकर प्रसाद, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, लक्ष्मीनारायण मिश्र, उदयशंकर भट्टमोहन राकेश, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, गिरीश कर्नाड
नाटकों की प्रकृतिआदर्शवादी, प्रेरणादायक, राष्ट्रीय चेतना से युक्तराष्ट्रवादी आदर्श, ऐतिहासिक गौरव, रोमांटिकता और नैतिक आदर्शयथार्थवादी, समकालीन समस्याओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करने वाले
मंचन तकनीकसीमित मंचीय तकनीक, संवाद और कथा पर बलगीत, संगीत, काव्य और मंचीय दृश्य का संतुलित प्रयोगआधुनिक रंगमंच तकनीक, प्रतीकात्मक दृश्य, प्रयोगात्मक मंचन

हिंदी नाटककार और उनके नाटक – तीनों युगों का संपूर्ण सारणीबद्ध विवरण

युगनाटककारप्रमुख नाटक
भारतेन्दु युग (1868 – 1900)प्राणचंद चौहानरामायण महानाटक
महाराज विश्वनाथ सिंहआनंद रघुनंदन
गोपालचंद्र गिरिधर दासनहुष
भारतेंदु हरिश्चंद्रविद्यासुंदर, रत्नावली, पाखण्ड विडंबन, धनंजय विजय, कर्पूर मंजरी, भारत-जननी, मुद्राराक्षस, दुर्लभ बंधु (अनूदित); वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्यहरिश्चंद्र, श्रीचंद्रावली, विषस्य विषमौषधम, भारत-दुर्दशा, नीलदेवी, अँधेर नगरी, सती प्रताप, प्रेम योगिनी (मौलिक)
शिवनंदन सहायकृष्ण-सुदामा नाटक
लाला श्रीनिवासदाससंयोगिता स्वयंवर, प्रह्लाद-चरित्र, रणधीर प्रेममोहिनी, तप्त संवरण
राधाचरण गोस्वामीअमरसिंह राठौर, बूढ़े मुँह मुँहासे (प्रहसन)
किशोरीलाल गोस्वामीमयंक मंजरी, प्रणयिनी-परिणय
प्रताप नारायण मिश्रभारत-दुर्दशा, कलिकौतुक रुपक, संगीत शाकुंतल, हठी हम्मीर
बालकृष्ण भट्टकलिराज की सभा, रेल का विकट खेल, दमयंती स्वयंवर, जैसा काम वैसा परिणाम (प्रहसन), नई रोशनी का विष, वेणुसंहार
शीतला प्रसाद त्रिपाठीजानकीमंगल
राधाकृष्ण दासमहाराणा प्रताप, दुःखिनी बाला, पद्यावती, धर्मालाप
देवकीनंदन त्रिपाठीभारत-हरण
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’प्रद्युम्न विजय व्यायोग, रुक्मिणी परिणय
प्रसादयुगीन (1900 – 1937)माखनलाल चतुर्वेदीकृष्णार्जुन युद्ध
विशम्भर नाथ ‘कौशिक’भीष्म
मिश्रबंधुनेत्रोन्मीलन
जयशंकर प्रसादकरुणालय (गीत नाट्य), विशाख, अजातशत्रु, कामना (नाट्य कृति), जनमेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्य श्री
हरिकृष्ण ‘प्रेमी’स्वर्णविहान, रक्षाबंधन, प्रतिशोध, स्वप्नभंग, आहुति, विषपान, उद्धार, शपथ, विजय स्तम्भ, कीर्तिस्तंभ, रक्तदान, संरक्षक, विदा, छाया बंधन, पाताल विजय, शिवसाधना, अमृत पुत्री, संवत प्रवर्तन
लक्ष्मीनारायण मिश्रराक्षस का मंदिर, संन्यासी, मुक्ति का रहस्य, राजयोग, आधी रात, सिंदूर की होली, गरुड़ध्वज, वत्सराज, दशाश्वमेघ, वितस्ता की लहरें, चक्रव्यूह, नारद की वीणा, जगद्गुरु, धरती का ह्रदय
गोविन्दबल्लभ पंतअंगूर की बेटी, राजमुकुट, सिंदूर की बिंदी, अंत:पुर का छिद्र, यायति, सुहागबिंदी
उदयशंकर भट्टमुक्तिपथ, क्रन्तिकारी, विक्रमादित्य, विश्वामित्र, दाहर अथवा सिंध पतन, शकविजय, सागर विजय, मत्स्यगंधा, नया समाज, पार्वती, विद्रोहिणी अंबा, कमला, अश्वत्थामा, असुर सुंदरी, राधा
सुदर्शनदयानंद नाटक, आनरेरी मजिस्ट्रेट, भाग्यचक्र
सेठ गोविंददासगरीबी और अमीरी, बड़ा पापी कौन, त्याग और ग्रहण, संतोष कहाँ, सुख किसमें, सेवापथ, स्वातन्त्र्य सिद्धान्त, प्रकाश, महत्व किसे, हर्ष, कर्ण, विकास, कर्तव्य
दुर्गा प्रसाद गुप्तअभिमन्यु वध, वोश्वामित्र
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’चार बेचारे, उजबक, महात्मा ईसा, चुंबन, डिक्टेटर, गंगा का बेटा, आवारा
जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदीतुलसीदास, मधुरमिलन
चन्द्रगुप्त विद्यालंकारअशोक, रेवा
प्रेमचंदकर्बला, संग्राम, प्रेम की बेदी
लक्ष्मण सिंहगुलामी का नशा
प्रसादोत्तर युग (1937 – वर्तमान)उपेंद्रनाथ ‘अश्क’स्वर्ग की झलक, जय-पराजय, लक्ष्मी का स्वागत, छठा बेटा, कैद, उड़ान, अलग-अलग रास्ते, अंजोदीदी, लौटता हुआ दिन, सूखी डाली, तौलिए, पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ, भँवर
वृंदावनलाल वर्माझाँसी की रानी, राखी की लाज, कश्मीर का कांटा, सगुन, नीलकंठ, देखा-देखी, फूलों की बोली, पूर्व की ओर, बीरबल, केवल, निस्तार, ललित-विक्रम, कनेर, केवट
रांगेय राघवस्वर्गभूमि का आदमी
रामकुमार वर्माराजरानी सीता, कौमुदी महोत्सव, पृथ्वी का स्वर्ग
किशोरी दास वाजपेयीसुदामा
भुनेश्वर प्रसादऊसर, तांबे के कीड़ा
चतुरसेन शास्त्रीमेघनाथ
सुमित्रानंदन पंतज्योत्स्ना, रजत शिखर, शिल्पी सौवर्ण
मैथलीशरण गुप्तअनघ, तिलोत्तमा, चंद्रहास
विष्णु प्रभाकरयुगे युगे क्रांति, टूटते परिवेश, डॉक्टर, समाधि, कुहासा और किरण, डरे हुए लोग, वंदिनी
जगदीशचंद्र माथुरकोणार्क, शारदीया, पहला राजा, दशरथनंदन, रघुकुल रीति
रामनरेश त्रिपाठीसुभद्रा, जयंत
धर्मवीर भारतीअंधायुग (गीत नाट्य), नदी प्यासी थी
‘अज्ञेय’उत्तरप्रियदर्शी
लक्ष्मीनारायण लालअंधा कुआँ, मादा कैक्टस, सूर्यमुखी, मिस्टर अभिमन्यु, करफ्यू, अब्दुल्ला दीवाना, व्यक्तिगत, एक सत्य हरिश्चंद, सुगन पंछी, सबरंग मोहभंग, रातरानी, तीन आँखों वाली मछली, सूखा सरोवर, रक्तकमल, दर्पण, गंगामाटी, राक्षस का मंदिर, दूसरा दरवाजा, यक्ष प्रश्न
मोहन राकेशआषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे-अधूरे, बारह सौ छब्बीस बाता सात, पूर्वाभ्यास, पैरों तले की जमीन (अधूरा)
गिरिजा कुमार माथुरकल्पांतर
सिद्धनाथसृष्टि की साँझ, लौह देवता, संघर्ष, विकलांगों का देश, बादलों का शाप
दुष्यंत कुमारएक कण्ठ विषपायी
नरेश मेहतासुबह के घंटे, खंडित यात्राएँ
शिवप्रसाद सिंहघाटियाँ गूँजती हैं
ज्ञानदेव अग्निहोत्रीनेफा की एक शाम, शुतुरमुर्ग, वतन की आबरू, चिराग जल उठा, माटी जागीर, अनुष्ठान
विपिन कुमार अग्रवालतीन अपाहिज, खोए हुए आदमी की तलाश, लोटन
सुरेंद्र वर्माद्रौपदी, सेतुबंध, नायक, खलनायक, विदूषक, आठवाँ सर्ग, सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक, छोटे सैयद बड़े सैयद, कैद-ए-हयात, एक दुनी एक, शकुन्तला की अँगूठी, मुगल भारत: नाट्य चतुष्टय, रति का कंगन, नींद क्यों नही आती रात भर, अँधेरे से परे
अमृतरायचिंदियों की एक झालर, शताब्दी, हमलोग
असगर वजाहतजिस लाहौर न देख्या ओ जम्याइ नइ, गोडसे@गाँधी.कॉम
लक्ष्मीकांत वर्मारोशनी एक नदी है, अपना अपना जूता, ठहरी हुई जिंदगी, सीमांत के बादल, तिन्दुवुलम
विनोद रस्तोगीआजादी के बाद, नये हाथ, बर्फ की मीनार, जनतंत्र जिंदाबाद, देश के दुश्मन, फिसलन और पाँव
गिरीश कर्नाडतुगलक, नागमंडल, रक्त-कल्याण
सर्वेश्वरदयाल सक्सेनाबकरी, अब गरीबी हटाओ, लड़ाई, हवालात, होरी धूम मच्यो री, पीली पत्तियाँ
मुद्राराक्षसमरजीवा, तेंदुआ, तिलचट्टा, योर्स फेथफुली, आला अफसर, संतोला
भीष्म साहनीकबीर खड़ा बजार में, हानूश, माधवी, मुआवजे, रंग दे बसंती चोला, आलमगीर, माधवी
हबीब तनवीरचरणदास चोर, मिट्टी की गाड़ी, पचरंगी, आग की गेंद, आगरा बाज़ार, बहादुर कलारिन, चांदी की चम्मच, दूध का गिलास, एक औरत हिपेशिया भी थी, गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दामाद, जहरीली हवा, कामदेव का अपना बसंत ऋतू का सपना, कारतूस, परम्परा, शतरंज के मोहरे
शंकर शेषघरौंदा, बिना बाती के दीप, एक और द्रोणाचार्य, बंधन अपने-अपने
रमेश वक्षीदेवयानी का कहना है, तीसरा हाथी, वामाचार, यादों का घर, कसे हुए तार
गिरिराज किशोरबादशाह का गुलाम, घोड़ा और घास, काठ का तोप, नरमेध, प्रजा ही रहने दो, जुर्मआयद
मणि मधुकररसगंधर्व, बुलबुल की सराय, दुलारी बाई, एकतारे की आँख, खेला पोलमपुर
निर्मल वर्मातीन एकांत, वीक एण्ड, धूप का एक टुकड़ा, डेढ़ इंच ऊपर
कृष्ण बलदेव वैदभूख आग है, हमारी दुनियाँ, सवाल और स्वप्न, अंत का उजाला, कहते हैं जिसको प्यार
शरद जोशीएक था गधा, अन्धों की हाथी
गोविंद चातककाला मुँह, अपने-अपने खूँटे
विजय तेंदुलकरघासीराम कोतवाल, हल्ला बोल, तीन रंग, बेबी, चीफ मिनिस्टर, चौपट राजा तथा अन्य बाल नाटक, गिद्ध, दम्भद्वीप, कच्ची धुप, कन्यादान, मीता की कहानी, भल्या काका, सावधान दुल्हे की तलास है, मोम का घरौदा, चिड़िया का, भीतरी दीवारें, कौओं की पाठशाला, फुटपाथ का सम्राट
स्वदेश दीपकनाटक बाल भगवान, कोर्ट मार्शल, जलता हुआ रथ, सबसे उदास कविता, काल कोठरी
मार्कण्डेयपत्थर और परछाइयाँ
दूधनाथ सिंहयमगाथा
काशीनाथ सिंहशोआस
हमीदुल्लादरिन्दे, उलझी आकृतियाँ, उत्तर उर्वसी, हरवार
सुशील कुमार सिंहसिंहासन खाली है, चार यारों का यार, अलख आजादी की, बाल लोक नाटिकाएं, बापू के नाम, बेबी तुम नादान, गुडबाई स्वामी, नागपास
रमेश उपाध्यायपेपरवेट
सुदर्शन चोपड़ाकाला पहाड़
चन्द्रकांत देवतालेभूखंड तप रहा है, सुकरात का घाव
राहुल सांकृत्यायनप्रभा
विशाल विजयबार्किंग डॉग एंड पेइंग गेस्ट
निलय उपाध्यायपॉपकॅार्न
मधुधवनचिंगारियाँ, आज की पुकार, भारत कहाँ जा रहा है
चन्द्रशेखर कम्बारमहामाई
रामशंकर निशेशआदमखोर, कुक्कू डार्लिंग, चील घर, तीन नाटक
दया प्रकाश सिन्हासम्राट अशोक, दुश्मन, मन का भँवर, मेरे भाई मेरे दोस्त, पंचतंत्र, साँझ सवेरा, सादर आपका, अपने अपने दाँव, इतिहास, इतिहास-चक्र, कथा एक कंस की, सीढियाँ, ओह अमेरिका!
सुरेन्द्र दुबेउठो अहल्या
भानु भारतीतमाशा न हुआ
रवीन्द्र भारतीजनवासा, अगिन तिरिया
महेंद्र भल्लादिमागे हस्ती दिल की बस्ती, है कहाँ? है कहाँ?
जयंत पवारअभी रात बाकी है
शिशिर कुमार दासबाघ
जितेन्द्र सहायभटकते लोग
शाहिद अनवरहमारे समय में
सुदर्शन मजीठियाराजा नंगा
सुरेन्द्र शर्मारंगभूमि
मनोज मित्रासैयां बेईमान
नरेंद्र कोहलीकिष्किंधा, अगस्त्य कथा, संघर्ष की ओर
मीराकांतकंधे पर बैठा सांप, नेपथ्य राग, अंत हाजिर हो…
विजेंद्रक्रौंचवध (काव्य-नाटक)
राजेश जैनवायरस
मृदुला बिहारीअँधेरे से आगे
कैलास वाजपेयीयुवा संन्यासी
ज्ञानदेव अग्निहोत्रीशुतुरमुर्ग
नंदकिशोर नवलमैं पढ़ा जा चुका पत्र
संजय सहायजाँच-पड़ताल
पियूष मिश्राखुबसूरत बहू
सौरभ शुक्लाबर्फ़
प्रभात कुमार उत्प्रेतीजब शहर हमारा सोता है
हरिकेष सुलभदलिया, माटी गाड़ी, धरती आबा, अमली, बटोही

महिला नाटककार और उनकी प्रमुख कृतियाँ

भारतीय रंगमंच में महिला नाटककारों का योगदान साहित्यिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। उन्होंने समाज की विविध समस्याओं, स्त्री-जीवन के यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं को अपने नाटकों में गहराई से उकेरा है। नीचे प्रमुख महिला नाटककारों और उनके उल्लेखनीय नाटकों की सूची दी गई है —

नाटककारप्रमुख नाटक
मन्नू भण्डारीबिना दीवारों के घर, महाभोज, उजली नगरी चतुर राजा
मृदुला गर्गएक अजनवी, ठहरा हुआ पानी, कितनी कदें, जादू का कालीन
गिरीश रस्तोगीअसुरक्षित, मुझे मत मारो
मृणाल पाण्डेयआदमी जो मछुवारा नहीं था, जो रामरचि राखा, चोर निकल के भागा
ममता कालियाकितने प्रश्न करूँ
उषा गांगुलीरुदाली
वर्षा दासचहकता चौराहा, प्रेम और पत्थर, खिड़की खोल दो

निष्कर्ष

हिंदी नाट्य साहित्य का विकास केवल साहित्यिक यात्रा नहीं, बल्कि भारतीय समाज, राजनीति और संस्कृति के बदलते स्वरूप का भी प्रतिबिंब है। भारतेन्दु युग ने नाटक को राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सुधार का प्रभावी माध्यम बनाया, जबकि प्रसादोत्तर युग ने इसे आधुनिक जीवन की जटिलताओं, मनोवैज्ञानिक गहराइयों और मंचीय प्रयोगों से समृद्ध किया। इन दोनों युगों का सम्मिलित योगदान हिंदी नाटक को विविधता, गहराई और जीवंतता प्रदान करता है, जो आज भी भारतीय रंगमंच और साहित्यिक परंपरा को सशक्त बनाता है।


इन्हें भी देखें –

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सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.