हिंदी के निबंधकार और उनके निबंध : एक संपूर्ण सूची

हिंदी साहित्य के गद्य रूपों में निबंध एक महत्वपूर्ण और सशक्त विधा है, जिसने साहित्य को विचार, ज्ञान और अभिव्यक्ति की नई दिशा दी। निबंध केवल किसी विषय पर विचार प्रस्तुत करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह पाठक को सोचने, समझने और नए दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इसकी खूबी यह है कि इसमें लेखक अपनी अनुभूतियों, विचारों और विश्लेषण को सरल, सुंदर और रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है। हिंदी निबंध का इतिहास समृद्ध है और इसका विकास अनेक साहित्यकारों के योगदान से हुआ है।

यहाँ हम हिंदी के प्रमुख समकालीन निबंधकारों और उनके प्रसिद्ध निबंध-संग्रहों की एक सुव्यवस्थित सूची प्रस्तुत कर रहे हैं, जो विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और साहित्य-प्रेमियों के लिए उपयोगी साबित होगी।

Table of Contents

निबंध शब्द की उत्पत्ति और अर्थ

‘निबंध’ शब्द हिंदी में संस्कृत से लिया गया है। संस्कृत में “निबन्ध” का अर्थ है — “किसी विषय पर लिखित विवरण”।
हालाँकि आधुनिक हिंदी में ‘निबंध’ का प्रयोग अंग्रेजी शब्द ‘Essay’ के समकक्ष किया जाता है। फ्रेंच में इसे ‘Essai’ कहा जाता था, जिसका अर्थ है — प्रयोग करना या कोशिश करना। अंग्रेजी में ‘Essay’ का अर्थ किसी विषय पर लेखक के व्यक्तिगत विचार और अनुभव का लेखन होता है।

हिंदी निबंध का प्रारंभिक इतिहास

हिंदी निबंध का विकास सीधे-सीधे यूरोपीय साहित्य से प्रभावित हुआ। यूरोप में निबंध साहित्य का जनक फ्रांसीसी साहित्यकार मिशेल द मोंतेन (Michel de Montaigne) को माना जाता है, जिन्होंने सोलहवीं शताब्दी में अपने व्यक्तिगत अनुभवों और विचारों को “Essais” नामक संग्रह में प्रस्तुत किया।

हिंदी साहित्य में निबंध का प्रारंभ उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में हुआ। हिंदी के प्रथम निबंध के रूप में “राजा भोज का सपना” (1839 ई.) को माना जाता है, जिसके रचयिता शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’ थे। कुछ विद्वान सदासुखलाल के “सुरासुरनिर्णय” को भी हिंदी का प्रथम निबंध मानते हैं।

भारतेंदु युग में निबंध का विकास

हिंदी निबंध का वास्तविक और तेज विकास भारतेंदु युग (1868–1900) में हुआ। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी निबंध का जनक माना जाता है, हालाँकि कुछ विद्वान डॉ. लक्ष्मीसागर उन्हें नहीं, बल्कि बालकृष्ण भट्ट को यह श्रेय देते हैं।

भारतेंदु युग में निबंध साहित्य के विकास के प्रमुख कारण थे:

  1. पत्र-पत्रिकाओं का उभार – इस दौर में हिंदी में अनेक पत्र-पत्रिकाएँ निकलीं, जैसे “हिंदुस्तानी”, “हरिश्चंद्र मैगज़ीन”, आदि।
  2. राष्ट्रीय चेतना का प्रसार – इस युग में निबंधकारों ने सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विषयों पर लिखकर जनता को जागरूक किया।
  3. गद्य का परिष्कार – निबंधों के माध्यम से हिंदी गद्य अधिक परिष्कृत, प्रवाहपूर्ण और प्रभावी हुआ।

रामविलास शर्मा का मूल्यांकन

प्रसिद्ध साहित्यकार रामविलास शर्मा ने भारतेंदु युगीन निबंधों के बारे में कहा था —

“जितनी सफलता भारतेंदु युग के लेखकों को निबंध-रचना में मिली, उतनी कविता और नाटक में भी नहीं मिली।”

यह कथन निबंध-विधा की उस समय की लोकप्रियता और साहित्यिक महत्व को स्पष्ट करता है।

हिंदी के निबंधकार और उनके निबंध : भारतेंदु युग से समकालीन युग तक

हिंदी निबंध साहित्य का विकास भारतेंदु हरिश्चंद्र के समय से प्रारंभ होकर द्विवेदी युग, छायावाद युग, छायावादोत्तर युग होते हुए समकालीन दौर तक पहुँचा है।
हर युग में निबंधकारों ने अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को शब्दों में ढाला है।
इस सूची में हम भारतेंदु युग के आरंभिक निबंधकारों से लेकर आज के समकालीन रचनाकारों तक के प्रमुख निबंध और निबंध-संग्रह को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे हिंदी साहित्य के इस महत्वपूर्ण विधा का व्यापक स्वरूप सामने आता है।

भारतेंदु युगीन (1868–1900) निबंधकार एवं निबंध

भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी निबंध साहित्य का जनक माना जाता है। इस युग में निबंधों में सामाजिक सुधार, राष्ट्रीय चेतना, शिक्षा और जागरूकता पर विशेष बल दिया गया। भाषा सहज, सरस और जनमानस को जाग्रत करने वाली थी। नीचे भारतेंदु युग और उसके आसपास के प्रमुख निबंधकारों तथा उनके महत्वपूर्ण निबंधों की सूची दी जा रही है —

निबंधकारप्रमुख निबंध/निबंध-संग्रह
शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’राजा भोज का सपना
सदासुखलालसुरासुरनिर्णय
भारतेंदु हरिश्चंद्रसुलोचना, दिल्ली दरबार दर्पण, लीलावती, भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है, बादशाह दर्पण, लेवी प्राण लेवी, स्वर्ग में विचार सभा, अंग्रेज स्त्रोत्र, पाँचवे पैगम्बर, कश्मीर कुसुम, काल चक्र, भ्रूण हत्या, काशी, मणिकर्णिका, तदीय सर्वस्व, संगीत सार, जातीय संगीत
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’विक्रमोर्वशी की मूल कथा, अमंगल के स्थान में मंगल शब्द, मारेसि मोहि कुठाँव, कछुवा धर्म
प्रतापनारायण मिश्रनिबंध-नवनीत, खुशामद, आप, बात, दांत, भौं, धोखा, नारी, वृद्ध, परीक्षा, मनोयोग, समझदार की मौत, प्रताप पीयूष
पद्मसिंह शर्मापद्म पराग, प्रबंध मंजरी में संकलित निबंध
बालकृष्ण भट्टसाहित्य सुमन, साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है, चंद्रोदय, लक्ष्मी, भिक्षावृत्ति, हाकिम और उनकी हिकमत, कृषकों की दुर्दशा, ढोल के भीतर पोल, खल बंदना, ग्राम्य जीवन, आँसू, रुचि, जात-पांत, सीमा रहस्य, आशा, चलन, बाल विवाह, महिला-स्वातंत्र्य, स्त्रियाँ और उनकी शिक्षा, राजा और प्रजा, नये जगह का जूनून, देवताओं से हमारी बातचीत, काल चक्र का चक्कर, शब्द की आकर्षक शक्ति
लाला श्रीनिवासदासभारतखंड की समृद्धि, सदाचरण
बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’नेशनल कांग्रेस की दुर्दशा
राधाचरण गोस्वामीयमपुर की यात्रा
कशीनाथ खत्रीस्वदेश प्रेम, कर्तव्य पालन, विधवा विवाह

द्विवेदी युगीन (1900–1920) निबंधकार एवं निबंध

महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन काल में निबंधों में गंभीरता, तर्कशीलता और नैतिक मूल्यों पर जोर रहा। इस दौर में भाषा परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ और विचारप्रधान रही। देशभक्ति, स्वराज और सामाजिक सुधार के विषय प्रमुख रहे। नीचे द्विवेदी युग और उसके आसपास के प्रमुख निबंधकारों तथा उनके महत्वपूर्ण निबंधों की सूची दी जा रही है —

निबंधकारप्रमुख निबंध / निबंध-संग्रह
महावीर प्रसाद द्विवेदीरसज्ञ रंजन, साहित्य सीकर, कालिदास और उनकी कविता, कौटिल्य कुठार, वनिता विलास, महाकवि माघ का प्रभात वर्णन, बेकन विचार रत्नावली, भाषा और व्याकरण, नाट्यशास्त्र, उपन्यास रहस्य, क्या हिंदी नाम की कोई भाषा नहीं?, म्युनिसिपैलिटी के कारनामे, जनकस्य दण्ड, कवि और कविता, कवि कर्तव्य, लेखांजलि, आत्मनिवेदन, साँची के पुराने स्तूप, अतीत स्मृति, कालिदास की निरंकुशता
अध्यापक पूर्णसिंहमजदूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, अमरीका का मस्त योगी वाल्ट हिटमैन, आचरण की सभ्यता, कन्यादान, पवित्रता, पवित्र प्रेम, नयनों की गंगा, ब्रह्मक्रांति
बाबू श्यामसुंदरदासगद्य कुसुमावली, रूपक रहस्य, समाज और साहित्य, कर्तव्य और सभ्यता, भारतीय साहित्य की विशेषताएं
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’कछुआ धर्म, मारेसि मोहि कुठांव, गोबर गणेश कथा, विक्रमोर्वशी की मूल कथा, अमंगल के स्थान पर मंगल शब्द, काशी, जय यमुना मैया
बालमुकुंद गुप्तशिवशंभू के चिट्ठे, चिट्ठे और खत (ये चिट्ठे 1904-05 में भरतमित्र में प्रकाशित हुए थे)
गोविंद नारायण मिश्रप्राकृत विचार, विभक्ति विचार, कवि और चित्रकार
रामचंद्र शुक्लचिंतामणि (4 भाग), विचार वीथी, रस मीमांसा, कविता क्या है, श्रद्धा भक्ति, लज्जा और ग्लानि, करुणा, उत्साह, काव्य में रहस्यवाद, साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद, ईर्ष्या, लोभ और प्रीति, काव्य में लोकमंगल की साधना अवस्था, घृणा, भारतेंदु हरिश्चन्द्र, तुलसी का भक्तिमार्ग, मानस की धर्मभूमि, काव्य में अभिव्यंजनावाद, रसात्मक बोध के विविध रूप
पद्म सिंह शर्मापद्मपराग, प्रबंध मंजरी
मिश्र बंधुपुष्पांजलि

छायावाद युगीन (1918-1936) निबंधकार एवं निबंध

यद्यपि छायावाद मुख्यतः काव्य के लिए प्रसिद्ध है, फिर भी इस काल में निबंधों में आत्मविश्लेषण, सौंदर्यबोध और रहस्यात्मकता का समावेश हुआ। लेखक ने व्यक्तिगत अनुभूतियों, प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं को निबंध का विषय बनाया। नीचे छायावाद युग और उसके आसपास के प्रमुख निबंधकारों तथा उनके महत्वपूर्ण निबंधों की सूची दी जा रही है —

निबंधकारप्रमुख निबंध / निबंध-संग्रह
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शीपंचपात्र, पद्मावन, कुछ और कुछ
बाबू गुलाबरायमेरे निबंध, फिर निराशा क्यों?, ठलुआ क्लब, मन की बातें, मेरी असफलताएँ, कुछ उथले कुछ गहरे, अध्ययन और आस्वाद, जीवनरश्मियाँ
चतुरसेन शास्त्रीअन्तस्तल, तरलाग्नी, मरी खाल की हाय
रायकृष्ण दाससंलाप, पथ की खोज, पागल पथिक
संपूर्णानंदशिक्षा का उद्देश्य, आर्यों का आदि देश, समाजवाद, भारत के देशी राज्य, अधूरी क्रांति
शिवपूजन सहायकुछ
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’बुढ़ापा, गाली
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’प्रबंध प्रतिमा, प्रबंध पदम्, चाबुक
जयशंकर प्रसादकाव्य कला तथा अन्य निबंध, यथार्थवाद और छायावाद, रहस्यवाद, रस, रंगमंच, मौर्यों का राज्य-परिवर्तन
महादेवी वर्मासाहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध, शृंखला की कड़ियाँ, छायावाद, रहस्यवाद, यथार्थ और आदर्श, युद्ध और नारी, स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न, काव्यकला, क्षणदा, संधिनी, चिंतन के क्षण, संभाषण, भारतीय संस्कृति के स्वर, संस्कृति का प्रश्न, समाज और व्यक्ति, जीने की कला, हमारा देश और राष्ट्रभाषा, साहित्य और साहित्यकार, हमारे वैज्ञानिक युग की समस्या
शांतिप्रिय द्विवेदीजीवन यात्रा, कवि और काव्य, साहित्यकी, धरातल, आधान, समवेत, परिक्रमा, साकल्य, वृन्त और विकास, युग और साहित्य

छायावादोत्तर युगीन (1836-1947) निबंधकार एवं निबंध

इस युग में निबंधों का रुख सामाजिक यथार्थ, राजनीतिक परिवर्तनों और द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि की ओर हुआ। व्यंग्य, आलोचना और साहित्यिक विवेचना का भी इस काल में विकास हुआ। भाषा अपेक्षाकृत सरल और जनसुलभ हो गई। नीचे छायावादोत्तर युग और उसके आसपास के प्रमुख निबंधकारों तथा उनके महत्वपूर्ण निबंधों की सूची दी जा रही है —

निबंधकारनिबंध / निबंध-संग्रह
नंददुलारे वाजपेयीआधुनिक साहित्य, नया साहित्य : नये प्रश्न, हिंदी साहित्य : 20वीं शताब्दी, नयी कविता, रस सिद्धान्त, रीति और शैली, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद
सियाराम शरण गुप्तझूठ सच
रामवृक्ष बेनीपुरीगेहूँ और गुलाब, वंदे वाणी विनायकौ, लाल तारा
इलाचंद जोशीसाहित्य सर्जना, विवेचना, विश्लेषण, साहित्य चिंतन, देखा परखा
यशपालचक्कर क्लब, बात-बात में बात, गांधीवाद की शव परीक्षा, न्याय का संघर्ष, देखा सोचा समझा, जग का मुजरा, बीबी जी कहती है मेरा चेहरा रोबीला है
जैनेंद्रपूर्वोदय, मंथन, जड़ की बात, प्रस्तुत प्रश्न, सोच-विचार, गाँधी नीति, भाग्य और पुरुषार्थ, ये और वे, साहित्य का श्रेय और प्रेय, इतस्ततः, समय और हम, परिपेक्ष्य, साहित्य और संस्कृति, मंथन, काम-प्रेम और परिवार, राष्ट्र और राज्य
हजारी प्रसाद द्विवेदीअशोक के फूल, कुटज, कल्पलता, विचार और वितर्क, विचार प्रवाह, आलोक पर्व, साहित्य सहचर, कल्पलता, नाख़ून क्यों बढ़ते हैं, आम फिर बौरा गए, शिरीष के फूल, बसंत आ गया, अवतारवाद, मध्यकालीन धर्म साधना, सहज साधना, हिंदी भक्ति साहित्य, पुनश्च, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद
रामधारी सिंह ‘दिनकर’आधुनिकता बोध, शुद्ध कविता की खोज, संस्कृति के चार अध्याय, मिट्टी की ओर, पंत, उजली आग, प्रसाद, पंत और मैथलीशरण गुप्त, रेती के फूल, अर्द्धनारीश्वर, हमारी सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहित्य, वेणुवन, वट पीपल, धर्म नैतिकता और विज्ञान, साहित्य मुखी
हरिवंश राय ‘बच्चन’नये पुराने झरोखे, टूटी-छुटी कड़ियाँ
देवेंद्र सत्यार्थीधरती गाती हैं, एक युग : एक प्रतीक, रेखाएँ बोल उठी
भदंत आनंद कौसल्यायनजो भूल न सका, रेल का टिकट
भगवतशरण उपाध्यायइतिहास साक्षी है, ठूँठा आम, साहित्य और काल
धीरेन्द्र वर्माविचारधारा
परशुराम चतुर्वेदीमध्यकालीन श्रृंगारिक प्रवृतियाँ, मध्यकालीन प्रेम साधना
वियोगी हरिओं भी तो देखिये
माखनलाल चतुर्वेदीसाहित्य देवता, अमीर देवता, गरीब देवता, अमीर इरादे गरीब इरादे
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’जिंदगी मुस्काई, माटी हो गई सोना, बाजे पायलिया के घुँघुरु, महके आँगन चहके द्वार, नयी पीढ़ी नये विचार, क्षण बोले कण मुस्कराए, अनुशासन की राह में, जिंदगी लहलहाई, जिये तो ऐसे जिये
‘अज्ञेय’त्रिशंकु, आत्मनेपद, अद्यतन, कहाँ है द्वारिका, आलवाल, हिंदी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य, भवन्ति, लिखि कागद कोरे, आत्मपरक, सबरंग और कुछ राग, छाया का जंगल, युग संधियों पर, आलबाल, स्मृति छंदा, अंतरा, धार और किनारे, जोग लिखी, केंद्र और परिधि, आत्मपरक, सर्जना और संदर्भ
रामविलास शर्माप्रगति और परम्परा, परम्परा का मूल्यांकन, संस्कृति और साहित्य, भाषा साहित्य और संस्कृति, प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं, स्वाधीनता और राष्ट्रीय साहित्य, आस्था और सौन्दर्य, भाषा युगबोध और कविता, लोकजीवन और साहित्य, कथा विवेचना और गद्यशिल्प, विराम चिन्ह
भागीरथी मिश्रसाहित्य साधना और समाज, कला साहित्य और समीक्षा, अध्ययन, अध्यन
विजयेंद्र स्नातकचिंतन के क्षण, विचार के क्षण, विमर्श के क्षण
नगेंद्रआस्था के चरण, विचार और अनुभूति, विचार विश्लेषण, विचार और विवेचन, अनुसंधान और आलोचना, चेतना के बिंब, साधारणीकरण, आलोचक की आस्था, पुनर्वाक, यौवन के द्वार पर, राष्ट्रीय संकट और साहित्य, हिंदी उपन्यास, ब्रज भाषा का गद्य, आधुनिक हिंदी काव्य के आलोचक
प्रभाकर माचवेखरगोश के सींग, संतुलन, वेरंग
रघुवंशसाहित्य का नया परिपेक्ष्य, समसामयिकता और आधुनिक हिंदी कविता, आधुनिकता एवं सर्जनशीलता
अमृतरायबतरस, रम्या, बाइस्कोप, विजिट इंडिया, आनंद
केशवचन्द्र वर्माअफलातूनों का शहर, मुर्गाछाप हीरो
बरसाने लाल चतुर्वेदीबुरे फंसे, मिस्टर चोखेलाल, कुल्हर में हुल्लड़, अफवाह, नेताओं की नुमाइश मुसीबत है, नेता और अभिनेता
बनारसी दास चतुर्वेदीहमारे आराध्य, साहित्य और जीवन
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’मंटो : मेरा दुश्मन
गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी, कला का तीसरा क्षण, शमशेर : मेरी दृष्टि में, कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी, सौंदर्य प्रतीति की प्रक्रिया, कलात्मक अनुभव, मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन का एक पहलू, उर्वशी : मनोविज्ञान, उर्वशी : दर्शन और काव्य

समकालीन (1948 – वर्तमान) निबंधकार एवं निबंध

स्वतंत्रता के बाद निबंध साहित्य में विविधता आई। व्यंग्य, संस्मरण, आत्मकथात्मक निबंध, आलोचना, और यात्रा-वृत्तांत जैसी उपविधाएँ प्रचलित हुईं। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, निर्मल वर्मा, विद्यानिवास मिश्र जैसे लेखकों ने निबंध को न केवल विचार-विनोद का माध्यम बनाया बल्कि उसे समाज-चिंतन का सशक्त उपकरण भी बनाया। नीचे समकालीन युग और उसके आसपास के प्रमुख निबंधकारों तथा उनके महत्वपूर्ण निबंधों की सूची दी जा रही है —

निबंधकारनिबंध/निबंध-संग्रह
विद्यानिवास मिश्रछितवन की छाँह, तुम चंदन हम पानी, मैंने सिल पहुँचाई, कदम की फूली डाल, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, हल्दी-दूध, कौन तू फुलवा बीनन हारी, कंटीले तारों के आर-पार, परंपरा बंधन नहीं, बसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं, आँगन का पंछी और बंजारा मन, भ्रमरानंद के पत्र, शिरीष की याद आई, तमाल के झरोखे से, गाँव का मन, अस्मिता के लिए, अंगद की नियति, आम्र मंजरी, हिन्दू धर्म और संस्कृति, हिंदी का विभाजन, प्रलय की छाया, कितने मोर्चे
विष्णुप्रभाकरहम जिनके ऋणी हैं
रघुवीर सहायलिखने का कारण, दिल्ली मेरा प्रदेश, ऊबे हुए सुखी, वे और होंगे जो मारे जायेंगे
धर्मवीर भारतीठेले पर हिमालय, पश्यंती, कहनी-अनकहनी, कुछ चेहरे कुछ चिंतन, शब्दिता, रामजी की चींटी : रामजी का शेर
शिवप्रसाद सिंहशिखरों के सेतु, कस्तूरी मृग, मानसी गंगा, किस-किस को नमन करूं, खालिस मौज में, चतुर्दिक
हरिशंकर परसाईपगडंडियों का जमाना, निठल्ले की डायरी, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का तावीज, तब की बात और थी, भूत के पाँव के पीछे, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, जैसे उनके दिन फिरे, सुनो भाई साधो, विकलांग श्रद्धा का दौर, कहत कबीर, अपनी-अपनी बीमारी, वैष्णव की फिसलन, बेईमानी की परत, तुलसीदास चंदन घिसे, हँसते हैं रोते हैं, आवारा भीड़ के खतरे, पाखंड का अध्यात्म, ऐसी भी सोचा जाता है
कुबेरनाथ रायप्रिया नीलकंठी, रस आखेटक, गंधमादन, विषादयोग, महाकवि की तर्जनी, कामधेनु, पर्ण मुकुट, लौह मृदंग, क्षीरसागर, आगम की नाव, निषादबांसुरी
नामवर सिंहइतिहास और आलोचना, बकलम खुद, वाद-विवाद संवाद
निर्मल वर्माशब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढलान से उतरते हुए, दुसरे शब्दों में, आदि अंत और आरंभ
लक्ष्मीकांत वर्मानए प्रतिमान : पुराने निकष
विजयदेव नारायण साहीलघुमानव के बहाने हिंदी कविता पर बहस, शमशेर की काव्यानुभूति की बनावट, साहित्य और राजनीति, साहित्य में गतिरोध, साहित्यकार और उसका परिवेश, साहित्यिक अश्लीलता का प्रश्न, राजनीति में साहित्यकार, भाषा का अवमूल्यन, अपना-अपना ढपली अपना अपना राग, हस्ताक्षर, ठलुआ वुद्विजीवी, हँसना मना है, आखिरी आदालत का फैसला
रामदरश मिश्रकितने बजे हैं, घर परिवेश, बबूल और कैक्टस, छोटे-छोटे सुख
श्रीलाल शुक्लअंगद के पाँव, यहाँ से वहाँ, कुछ जमीन पर कुछ हवा में, आओं बैठलें कुछ देर, अगली शताब्दी का शहर, खबरों की जुगाली
शरद जोशीजीप पर सवार इलियाँ, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, यत्र तत्र सवर्त्र, तिलस्म, किसी बहाने
मनोहर श्याम जोशीनेताजी कहिन
हरिमोहन झाखट्टर काका
विवेकी रायवन तुलसी की गंध, किसानों का देश, गांवों की दुनियाँ, त्रिधारा, फिर बैतलवा डाल पर, जुलूस रुका है, आस्था और चिंतन, आम रास्ता नहीं है, नया गाँव नया नाम, गंवईं गाँव की गंध, जगत तपोवन सो कियो
रमेश कुंतक मेघक्योंकि समय एक शब्द है, अथातो सौन्दर्य जिज्ञासा, साक्षी है सौन्दर्य प्राश्निक
अशोक वाजपेयीपाव भर जीरे में ब्रम्हभोज, फ़िलहाल, कुछ पूर्वग्रह, कविता का गल्प, कविता का जनपद
मलयजसंवाद और एकालाप, हंसते हुए मेरा अकेलापन
कुंवर नारायणआज और आज से पहले
पुरुषोत्तम अग्रवालविचार का अनंत
विश्वनाथ त्रिपाठीदेश के इस दौर में
रमेशचन्द्र शाहभूलने के विरुद्ध

प्रमुख निबंधकार और उनके निबंध

सरदार पूर्ण सिंह

  • जीवनी – निबंधकार एवं कवि पूर्णसिंह (प्रभात शास्त्री)
  • सच्ची वीरता (हिन्दी निबंध)
  • कन्या-दान (हिन्दी निबंध)
  • पवित्रता (हिन्दी निबंध)
  • आचरण की सभ्यता (हिन्दी निबंध)
  • मजदूरी और प्रेम (हिन्दी निबंध)
  • अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट व्हिटमैन (हिन्दी निबंध)

जयशंकर प्रसाद (काव्य और कला तथा अन्य निबंध)

  • प्राक्कथन – नन्ददुलारे वाजपेयी
  • काव्य और कला
  • रहस्यवाद
  • नाटकों में रस का प्रयोग
  • रस
  • नाटकों का आरम्भ
  • रंगमंच
  • आरम्भिक पाठ्य काव्य
  • यथार्थवाद और छायावाद

मुंशी प्रेमचंद

  • साहित्य का उद्देश्य
  • जीवन में साहित्य का स्थान
  • साहित्य का आधार
  • कहानीकला (१)
  • हिंदी उर्दू की एकता
  • जीवन सार
  • मेरी पहली रचना
  • शहीद-ए-आज़म
  • जॉन ऑफ आर्क
  • राष्ट्रवाद

ठाकुर दलीप सिंह

  • रस भरी वाणी गुरु नानक की
  • नानक सायर एव कहित है

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (चिंतामणि एवं अन्य निबंध)

  • चिंतामणि
  • भाव या मनोविकार
  • उत्साह
  • श्रद्धा-भक्ति
  • करुणा
  • लज्जा और ग्लानि
  • लोभ और प्रीति
  • घृणा
  • ईर्ष्या
  • भय
  • क्रोध
  • कविता क्या है ?
  • भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  • तुलसी का भक्ति-मार्ग
  • ‘मानस’ की धर्म-भूमि
  • काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था
  • साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद
  • रसात्मक बोध के विविध रूप

आचार्य चतुरसेन शास्त्री (अन्तस्तल – गद्य काव्य)

  • रूप
  • प्यार
  • लज्जा
  • वियोग
  • अतृप्ति

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (इतिहास एवं आलोचना)

  • भाषा की परिभाषा (प्रथम खण्ड)
  • भाषा की परिभाषा (द्वितीय खण्ड)
  • भाषा की परिभाषा (तृतीय खण्ड)

भारतेंदु हरिश्चंद्र

  • एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न
  • भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है
  • वैष्णवता और भारतवर्ष

डॉ॰ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

  • क्या लिखूँ ?
  • वृद्धावस्था

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (रेती के फूल एवं अन्य निबंध)

  • रेती के फूल
  • हिम्मत और ज़िन्दगी
  • भारत एक है
  • ईर्ष्या, तू न गई मेरे मन से
  • चालीस की उम्र
  • हृदय की राह
  • कर्म और वाणी
  • भगवान बुद्ध
  • भविष्य के लिए लिखने की बात
  • हिन्दी कविता में एकता का प्रवाह
  • कला, धर्म और विज्ञान
  • खड्ग और वीणा
  • नेता नहीं, नागरिक चाहिए
  • राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता
  • संस्कृति है क्या ?
  • विजयी के आँसू

यशपाल जैन

  • आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए ?
  • अपने पर भरोसा
  • चरैवेति-चरैवेति
  • हारिए न हिम्मत
  • काम में प्रसन्नता
  • खरी कमाई
  • खोटा धन, खरा इंसान
  • पारसमणि
  • प्रेम की निर्मल धारा
  • सफलता की कुंजी
  • तल्लीनता

महादेवी वर्मा

  • हमारी श्रृंखला की कड़ियाँ [1-2]
  • युद्ध और नारी
  • नारीत्व का अभिशाप
  • आधुनिक नारी
  • घर और बाहर [1-2-3]
  • हिंदू स्त्री का पत्नीत्व
  • जीवन का व्यवसाय [1-2]
  • स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न [1-2]
  • हमारी समस्याएँ [1-2]
  • समाज और व्यक्ति
  • जीने की कला
  • करुणा का सन्देशवाहक
  • संस्कृति का प्रश्न
  • कसौटी पर
  • स्वर्ग का एक कोना
  • कला और हमारा चित्रमय साहित्य
  • कुछ विचार-1
  • दोष किसका
  • सुई दो रानी
  • अभिनय कला
  • हमारा देश और राष्ट्रभाषा
  • साहित्य और साहित्यकार
  • हमारे वैज्ञानिक युग की समस्या
  • काव्य-कला
  • कुछ विचार-2
  • मानव विकास : परंपरा के संदर्भ में
  • सफल जीवन की कसौटी
  • साहित्यकार की आस्था
  • साहित्यकार : व्यक्तित्व और अभिव्यक्ति
  • शिक्षा का उद्देश्य
  • भारतीय वाङ्मय पर एक दृष्टि

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

  • साहित्य और भाषा
  • सोयी हुई जातियाँ पहले जगेंगी

जैनेंद्र कुमार

  • बाजार का जादू
  • बाजार-दर्शन
  • इतस्तत:
  • उपन्यास में वास्तविकता (आलोचनात्मक निबंध)

राय कृष्णदास

  • कला की भारतीय परिभाषा और उसके संबंध में भारतीय दृष्टिकोण

सुमित्रानंदन पंत

  • कवि के स्वप्नों का महत्त्व
  • ग़ालिब
  • मैं क्यों लिखता हूँ

प्रोफ़ेसर ललिता

  • स्वतंत्रता सेनानी मरुदु सहोदर
  • चाहत थी…
  • महाकवि सुब्रमण्यम भारतीयार के विविध पक्ष (शोध निबंध)

शर्मिला बोहरा जालान

  • प्रबोध कुमार – जो दूसरों की कथा सुनाते रहे
  • मौन की आभा (प्रबोध कुमार श्रीवास्तव)
  • मैं जिन अशोक जी को जानती थी
  • अर्थ प्रेम का
  • महानगर और मॉल

बालकृष्ण भट्ट

  • आत्म गौरव
  • आत्मत्याग
  • आदि मध्य अवसान
  • आय-व्यय
  • आशा
  • आँसू
  • ईमानदारी
  • कर्तव्य परायणता
  • कल्पना शक्ति
  • कष्टात्कष्टतरंक्षुधा
  • कृष्ण की ईश्वरता निदर्शन
  • काम और नाम दोनों साथ-साथ चलते हैं
  • कौतुक
  • कौम (Nation)
  • ग्राम्य-जीवन
  • ग्रामीण भाषा

महावीर प्रसाद द्विवेदी

  • हिंदी भाषा की उत्पत्ति
  • उपन्यास-रहस्य
  • साहित्य की महत्ता
  • कवि कर्तव्य
  • कवि और कविता
  • संपादकों के लिए स्कूल

हजारी प्रसाद द्विवेदी

  • अशोक के फूल
  • अंधकार से जूझना है
  • आपने मेरी रचना पढ़ी ?
  • आम फिर बौरा गए
  • कुटज
  • घर जोड़ने की माया
  • देवदारु
  • नाखून क्यों बढ़ते हैं ?
  • भीष्म को क्षमा नहीं किया गया
  • वर्षा : घनपति से घनश्यामगम तक
  • शिरीष के फूल
  • भाषा साहित्य और देश
  • उपन्यास और कहानी
  • कथा – आख्यायिका और उपन्यास
  • मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है
  • भाषा-योजना की समस्या
  • हिन्दी व्याकरण की समस्या
  • संस्कृत में ‘कारक’ शब्द का प्रयोग
  • स्वराज्य और स्वभाषा
  • पंजाब का भाषा-सर्वेक्षण

केदारनाथ सिंह

  • नीम का पेड़ और वाक्यपदीयम्
  • कब्रिस्तान में पंचायत
  • बसना कुशीनगर में
  • माँ की जगह
  • छोटे शहरों के जीवन की लय
  • मरना एक मामूली आदमी का
  • हल, ट्रैक्टर और पहली बौछार
  • नूर मियाँ की तलाश में
  • मेरा गाँव सुन्दर है, लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं
  • हिन्दी आधुनिकता का अर्थ : विशेषतः कविता के सन्दर्भ में
  • आचार्य शुक्ल की काव्य-दृष्टि और आधुनिक कविता
  • सन् ’60 के बाद की हिन्दी कविता
  • तारसप्तक : ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता

राहुल सांकृत्यायन

  • तुम्हारे समाज की क्षय
  • तुम्हारे धर्म की क्षय
  • तुम्हारे भगवान की क्षय
  • तुम्हारे सदाचार की क्षय
  • तुम्हारी जात-पाँत की क्षय
  • तुम्हारी जोंकों की क्षय
  • अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा
  • जंजाल तोड़ो
  • विद्या और वय
  • स्वावलंबन
  • शिल्प और कला
  • पिछड़ी जातियों में
  • घुमक्कड़ जातियों में
  • स्त्री घुमक्कड़
  • धर्म और घुमक्कड़ी
  • प्रेम
  • देश-ज्ञान
  • मृत्यु-दर्शन
  • लेखनी और तूलिका
  • निरुद्देश्य
  • स्मृतियाँ
  • मेरी जीवन-यात्रा (षष्ठ खंड-अध्याय : 1-2)
  • तिब्बत में प्रवेश (यात्रा वृत्तांत)
  • जर्मनी की सैर (यात्रा वृत्तांत)
  • पेरिस में (यात्रा वृत्तांत)
  • सरस्वती का प्रकाशन
  • ऐतिहासिक उपन्यास (आलोचनात्मक निबंध)

सुरेंद्र मनन

  • दग्शाई : चीड़ों की चीत्कार
  • सेवाग्राम में क्रिस्तान

पूरन मुद्गल

  • हंसराज रहबर : प्रेमचंद का ‘उत्तराधिकारी’
  • उदयभानु हंस : मानव से कहीं देव न बन जाऊँ मैं

जॉर्ज ऑरवेल

  • स्नोबाल की खुराफातें (व्यंग्य)
  • प्रेस की स्वतंत्रता

हरिशंकर परसाई

(व्यंग्य एवं निबंध)

  • अकाल-उत्सव
  • अध्यक्ष महोदय (मिस्टर स्पीकर) (व्यंग्य)
  • अनुशासन (व्यंग्य)
  • अंधविश्वास से वैज्ञानिक दृष्टि (व्यंग्य)
  • अपनी अपनी बीमारी (व्यंग्य)
  • अपील का जादू (व्यंग्य)
  • अफसर कवि (व्यंग्य)
  • अयोध्या में खाता-बही (व्यंग्य)
  • अश्लील (व्यंग्य)
  • असहमत (व्यंग्य)
  • आध्यात्मिक पागलों का मिशन (व्यंग्य)
  • आवारा भीड़ के खतरे (व्यंग्य)
  • आँगन में बैंगन (निबंध)
  • इति श्री रिसर्चाय-सन 1950 ईसवी (व्यंग्य)
  • इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर (व्यंग्य)
  • इस तरह गुजरा जन्मदिन (व्यंग्य)
  • ईश्वर की सरकार (व्यंग्य)
  • उखड़े खंभे (व्यंग्य)
  • उदात्त मन की आखिरी कमजोरी (व्यंग्य)
  • एक अशुद्ध बेवकूफ (व्यंग्य)
  • एक और जन्म-दिन (व्यंग्य)
  • एक गौभक्त से भेंट (व्यंग्य)
  • एक मध्यमवर्गीय कुत्ता (व्यंग्य)
  • एक लड़की, पाँच दीवाने (व्यंग्य)
  • ओ. हेनरी (व्यंग्य)
  • कंधे श्रवणकुमार के (व्यंग्य)
  • कबीर का स्मारक बनेगा (व्यंग्य)
  • क्रांतिकारी की कथा (व्यंग्य)
  • कवि कहानी कब लिखता है? (व्यंग्य पत्र)
  • कहत कबीर (व्यंग्य)
  • कहावतों का चक्कर (व्यंग्य)
  • किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें (व्यंग्य)
  • किस्सा मुहकमा तालीमात (व्यंग्य)
  • कुल्हाड़ी के बेंट (व्यंग्य)
  • कैफियत (भूमिका): सदाचार का तावीज़
  • खेती (व्यंग्य)
  • गप्पियों का देश (व्यंग्य)
  • ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड (व्यंग्य)
  • गॉड विलिंग (व्यंग्य)
  • गांधीजी की शॉल (व्यंग्य)
  • ग़ालिब के परसाई (व्यंग्य)
  • घायल वसंत (व्यंग्य)
  • घुटन के पन्द्रह मिनट (व्यंग्य)
  • चार बेटे (व्यंग्य)
  • चूहा और मैं (व्यंग्य)
  • चेखव की संवेदना (व्यंग्य)
  • जाति (व्यंग्य)
  • जैसे उनके दिन फिरे (व्यंग्य)
  • जिंदगी और मौत का दस्तावेज़ (व्यंग्य)
  • टार्च बेचनेवाले (व्यंग्य)
  • टेलिफोन (व्यंग्य)
  • ठिठुरता हुआ गणतंत्र (व्यंग्य)
  • ढलवाँ साहित्य (व्यंग्य)
  • तीसरे दर्जे के श्रद्धेय (व्यंग्य)
  • दवा (व्यंग्य)
  • दस दिन का अनशन (व्यंग्य)
  • दस फार एंड नो फर्दर (व्यंग्य)
  • दुराग्रह (व्यंग्य)
  • दो नाक वाले लोग (व्यंग्य)
  • धर्म और विज्ञान (निबंध)
  • धर्म और सामाजिक परिवर्तन (निबंध)
  • नया साल (व्यंग्य)
  • नर-नारी पात्र (व्यंग्य)
  • न्याय का दरवाज़ा (व्यंग्य)
  • निंदा रस (व्यंग्य)
  • नूरजहाँ ! यादें ! (लेख)
  • पर्दे के राम और अयोध्या (व्यंग्य)
  • प्रजावादी समाजवादी (व्यंग्य)
  • प्रेम की बिरादरी (व्यंग्य)
  • प्रेमचंद के फटे जूते (व्यंग्य)
  • प्रेम-पत्र और हेडमास्टर (व्यंग्य)
  • प्रेमियों की वापसी (व्यंग्य)
  • पर, राजा भूखा था (व्यंग्य)
  • परिवार (व्यंग्य)
  • पवित्रता का दौरा (व्यंग्य)
  • पहला सफेद बाल (व्यंग्य)
  • पाकिस्तान में इकबाल की फजीहत (व्यंग्य)
  • पिटने-पिटने में फर्क (व्यंग्य)
  • पीढ़ियों का संघर्ष (व्यंग्य)
  • पुराना खिलाड़ी (व्यंग्य)
  • पुलिस मंत्री का पुतला (व्यंग्य)
  • बकरी पौधा चर गई (व्यंग्य)
  • बदचलन (व्यंग्य)
  • बस की यात्रा (व्यंग्य)
  • बाएं क्यों चलें?
  • बारात की वापसी (व्यंग्य)
  • बुखार आ गया (व्यंग्य)
  • बुद्धिवादी (व्यंग्य)
  • बैरंग शुभकामना और जनतंत्र (व्यंग्य)
  • ब्राह्मण से शूद्र तक (व्यंग्य)
  • भगत की गत (व्यंग्य)
  • भारत को चाहिए जादूगर और साधु (व्यंग्य)
  • भारतीय राजनीति का बुलडोजर (व्यंग्य)
  • भोलाराम का जीव (व्यंग्य)
  • मसीहा और विपरीत भक्त (व्यंग्य)
  • महात्मा गांधी को चिट्ठी पहुंचे (व्यंग्य)
  • मुक्तिबोध : एक संस्मरण
  • मुंडन (व्यंग्य)
  • मैं नर्क से बोल रहा हूं ! (व्यंग्य)
  • यस सर (व्यंग्य)
  • रामकथा-क्षेपक (व्यंग्य)
  • लघुशंका गृह और क्रांति (व्यंग्य)
  • लंका-विजय के बाद (व्यंग्य)
  • लोकतंत्र की नौटंकी (व्यंग्य)
  • व्यवस्था के चूहे से अन्न की मौत (व्यंग्य)
  • वह जो आदमी है न (व्यंग्य)
  • वात्सल्य
  • वैष्णव की फिसलन (व्यंग्य)
  • शर्म की बात पर ताली पीटना (व्यंग्य)
  • शॉक (व्यंग्य)
  • शिकायत मुझे भी है (व्यंग्य)
  • सदाचार का तावीज़ (व्यंग्य)
  • संस्कृति (व्यंग्य)
  • समस्याएँ और जादू-टोना (व्यंग्य)
  • साहित्यकार का साहस (व्यंग्य)
  • साहित्य के अमृत-घट में राजनीति का घासलेट ! (व्यंग्य)
  • सिद्धांतों की व्यर्थता (व्यंग्य)
  • सुदामा के चावल (व्यंग्य)
  • स्नान (व्यंग्य)
  • स्वागत की विडंबना (व्यंग्य)
  • हम इक उम्र से वाकिफ़ हैं (व्यंग्य)
  • हम तो परभाकर हैं जी
  • हम बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं (व्यंग्य)
  • हमारे समाज में वर-विक्रय (व्यंग्य)
  • व्यंग्य क्यों? कैसे? किस लिए? (भूमिका — तिरछी रेखाएँ)
  • गर्दिश के दिन (आत्मकथ्य)
  • गर्दिश फिर गर्दिश ! (आत्मकथ्य)
  • हिंदी कवि सम्मेलन (व्यंग्य)
  • हिन्दी और हिन्दिंगलिश (व्यंग्य)
  • सदन के कूप में (व्यंग्य)

    आधुनिक युग में निबंध का स्वरूप

    समय के साथ हिंदी निबंध का स्वरूप और दायरा बढ़ा है। आधुनिक निबंध में साहित्यिक निबंध, आलोचनात्मक निबंध, व्यक्तिगत निबंध, यात्रा-वृत्तांत, वैज्ञानिक निबंध आदि शामिल हो गए हैं। विषय अब केवल सामाजिक सुधार तक सीमित नहीं, बल्कि तकनीकी प्रगति, पर्यावरण, वैश्वीकरण, महिला सशक्तिकरण, और सांस्कृतिक विविधता तक विस्तृत हो गए हैं।

    निष्कर्ष

    हिंदी निबंध का इतिहास लगभग दो शताब्दियों का है, जिसमें प्रारंभिक प्रयासों से लेकर परिपक्व साहित्यिक उपलब्धियों तक की यात्रा शामिल है। शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’ से लेकर प्रतापनारायण मिश्र और बालकृष्ण भट्ट तक, भारतेंदु युगीन निबंधकारों ने हिंदी साहित्य में निबंध को स्थापित करने में अमूल्य योगदान दिया। आज निबंध केवल साहित्यिक विधा नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श का सशक्त माध्यम बन चुका है।


    इन्हें भी देखें –

    Leave a Comment

    Table of Contents

    Contents
    सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.