यह विस्तृत लेख हिंदी निबंध के ऐतिहासिक विकास को चार प्रमुख युगों—भारतेंदु युग (1868–1900), द्विवेदी युग (1900–1920), छायावाद युग (1918–1936) और छायावादोत्तर युग (1936–1947)—में विभाजित करके प्रस्तुत करता है। इसमें प्रत्येक युग की पृष्ठभूमि, प्रमुख निबंधकारों, उनकी रचनात्मक विशेषताओं और साहित्यिक योगदान का गहन विश्लेषण किया गया है। लेख में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, बाबू गुलाबराय, महादेवी वर्मा, राहुल सांकृत्यायन, हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. विद्यानिवास मिश्र, हरिशंकर परसाई सहित अनेक महत्वपूर्ण साहित्यकारों का विस्तार से उल्लेख है।
प्रत्येक कालखंड की भाषा-शैली, विषय-वस्तु, साहित्यिक दृष्टिकोण और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव का विवेचन करते हुए यह लेख दर्शाता है कि कैसे हिंदी निबंध ने समय के साथ अपनी अभिव्यक्ति के स्वरूप और उद्देश्य को बदला। इसमें हास्य-व्यंग्य, भावुकता, विचारप्रधानता, यथार्थवाद और ललित निबंध जैसे विविध रूपों के विकास को विस्तार से समझाया गया है। यह लेख हिंदी साहित्य के छात्रों, शोधार्थियों और साहित्य-प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ सामग्री है, जो निबंध विधा के उद्भव से लेकर उसके उत्कर्ष तक की पूरी यात्रा को सजीव और क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है।
हिंदी निबंध का विकास
आधुनिक हिंदी साहित्य की गद्य-विधाओं में निबंध का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। निबंध केवल किसी विषय पर विचार-प्रस्तुति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह लेखक के ज्ञान, अनुभव, संवेदना और दृष्टिकोण का संगठित रूप भी है। हिंदी निबंध का आरंभिक विकास भारतेन्दु युग से माना जाता है। यद्यपि कुछ समीक्षक सदासुख लाल अथवा राजा शिवप्रसाद ‘सितारे हिंद’ को हिंदी का पहला निबंधकार मानते हैं, लेकिन एक सुव्यवस्थित और सुस्पष्ट निबंध-परंपरा का सूत्रपात वास्तव में भारतेन्दु हरिश्चंद्र और उनके समकालीन लेखकों से ही हुआ।
हिंदी निबंध के विकास को यदि कालानुक्रमिक दृष्टि से देखा जाए तो इसे चार प्रमुख युगों में बाँटा जा सकता है—
- भारतेंदु युग (1868–1900)
- द्विवेदी युग (1900–1920)
- छायावाद युग (1918–1936)
- छायावादोत्तर युग (1936–1947)
(क) भारतेंदु युग (1868–1900)
भारतेन्दु युग हिंदी गद्य के नवजागरण का काल है। इसी दौर में गद्य की अनेक विधाओं—पत्र, रिपोर्ट, जीवनी, समीक्षा, यात्रा-वृत्तांत—के साथ-साथ निबंध का भी आरंभ और विकास हुआ।
इस युग के प्रमुख निबंधकारों में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ और श्रीनिवासदास प्रमुख हैं।
1. भारतेन्दु हरिश्चंद्र
भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी गद्य का जनक माना जाता है। उन्होंने समाज, राजनीति, धर्म, इतिहास और साहित्य जैसे विविध विषयों पर निबंध लिखे। उनके निबंधों में जिंदादिली, आत्मीयता और व्यंग्यात्मकता की विशेष छाप है। यात्रा-साहित्य में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
2. बालकृष्ण भट्ट
इस युग के सर्वश्रेष्ठ निबंधकार बालकृष्ण भट्ट माने जाते हैं। वे हिंदी प्रदीप पत्रिका के संपादक थे। उनके निबंध भट्ट निबंधमाला, भट्ट निबंधावली और साहित्य सुमन जैसे संग्रहों में संकलित हैं। भट्ट जी ने विचारात्मक और भावात्मक दोनों प्रकार के निबंधों में सफलता प्राप्त की।
3. प्रतापनारायण मिश्र
प्रतापनारायण मिश्र को इस युग का स्वच्छंद और मस्तमौला निबंधकार कहा जाता है। उनके निबंध ब्राह्मण पत्रिका में प्रकाशित होते थे। बाद में इन्हें प्रतापनारायण मिश्र ग्रंथावली में संकलित किया गया। इनके निबंधों में मनोरंजन और व्यंग्य का अद्भुत समावेश है।
भारतेन्दु युगीन निबंधों की विशेषताएँ—
- हास्य और व्यंग्य की प्रचुरता
- देशभक्ति की भावना
- सामाजिक सुधार का संदेश
- सरल, सहज और प्रभावी भाषा
- पाठक को मनोरंजन के साथ-साथ प्रेरणा देने की क्षमता
(ख) द्विवेदी युग (1900–1920)
द्विवेदी युग को हिंदी निबंध के विचार-प्रधान स्वरूप के लिए जाना जाता है। इस काल के प्रवर्तक महावीर प्रसाद द्विवेदी थे, जो सरस्वती पत्रिका के संपादक के रूप में साहित्य के सभी क्षेत्रों में सक्रिय रहे।
1. महावीर प्रसाद द्विवेदी
उन्होंने संस्कृति, साहित्य, समाज, धर्म, शिक्षा, और इतिहास पर गंभीर एवं आलोचनात्मक निबंध लिखे। उनके निबंधों में तथ्यों की प्रचुरता और विचारों की गहराई तो है, किंतु भावनात्मक आत्मीयता और जीवंतता की कमी है, जिसके कारण वे कभी-कभी केवल ‘विचार-संग्रह’ बनकर रह जाते हैं।
2. अन्य प्रमुख निबंधकार
- चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ – सूक्ष्म अवलोकन और तीक्ष्ण हास्य के लिए प्रसिद्ध।
- पद्मसिंह शर्मा – साहित्य और संस्कृति पर आलोचनात्मक लेखन।
- बालमुकुंद गुप्त – राष्ट्रीयता और सामाजिक मुद्दों पर मुखर विचार।
- श्यामसुंदर दास, गोविंद नारायण मिश्र, अध्यापक पूर्णसिंह – जिनके निबंधों ने हिंदी निबंध के विषय-क्षेत्र को व्यापक बनाया।
द्विवेदी युग की विशेषताएँ—
- विचार-प्रधान और आलोचनात्मक निबंधों का वर्चस्व
- राष्ट्रीयता, समाज-सुधार और शिक्षा पर जोर
- भाषा में गंभीरता और शुद्धता
- तथ्यों और तर्कों की प्रधानता
(ग) छायावाद युग (1918–1936)
छायावाद युग को हिंदी साहित्य में भावुकता, रहस्यवाद और प्रकृति-सौंदर्य के लिए जाना जाता है। इस काल में निबंधों में भावात्मकता और सौंदर्यबोध का समावेश हुआ।
1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य शुक्ल इस युग के शीर्षस्थ निबंधकार हैं। उन्होंने मनोवैज्ञानिक, साहित्यिक और आलोचनात्मक निबंध लिखे, जो चिंतामणि (दो भाग) में संकलित हैं।
उनके निबंधों में बुद्धि और भाव का संतुलित संयोजन मिलता है। उत्साह, करुणा, भय जैसे मनोभावात्मक निबंध और कविता क्या है? जैसे साहित्यिक निबंध उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाते हैं।
2. अन्य प्रमुख निबंधकार
- बाबू गुलाबराय – आत्मपरक निबंधों के लिए प्रसिद्ध।
- महादेवी वर्मा – संस्मरणात्मक निबंधों की महारथी।
- राहुल सांकृत्यायन – विषय-विविधता के धनी, जिनके निबंधों में यात्राओं और शोध का गहरा प्रभाव है।
- सियारामशरण गुप्त – वैयक्तिक और मार्मिक निबंधकार।
- डॉ. रघुवीर सिंह – भावात्मक निबंधों के लिए चर्चित।
छायावाद युग की विशेषताएँ—
- भावुकता और सौंदर्यबोध की प्रधानता
- आत्मपरक और संस्मरणात्मक शैली
- भाषा में कोमलता और भावनात्मक गेयता
- साहित्य और कला के दार्शनिक पहलुओं पर चर्चा
(घ) छायावादोत्तर युग (1936–1947)
इस काल में निबंध लेखन में यथार्थवाद और व्यंग्य की ओर प्रवृत्ति बढ़ी। स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
1. हजारीप्रसाद द्विवेदी
वे अपने ललित निबंधों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके निबंधों में प्राचीन और आधुनिक जीवन का सुंदर सामंजस्य मिलता है। अशोक के फूल, कुटज, कल्पलता, आलोक पर्व उनके निबंध-संग्रह हैं। उनकी भाषा प्रौढ़, प्रभावशाली और शैली में विनोद-व्यंग्य की छटा है।
2. अन्य प्रमुख निबंधकार
- वासुदेवशरण अग्रवाल – सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि के निबंधकार।
- डॉ. नगेन्द्र, भगतशरण उपाध्याय, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी – आलोचनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि वाले निबंधों के रचनाकार।
- जैनेन्द्र, रामविलास शर्मा, प्रभाकर माचवे – विचारप्रधान, वैचारिक और आलोचनात्मक लेखन के लिए प्रसिद्ध।
- हरिशंकर परसाई – हिंदी निबंध में व्यंग्य की परंपरा के सबसे बड़े हस्ताक्षर। उनके निबंधों में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से गहरी सामाजिक और राजनीतिक आलोचना मिलती है।
3. ललित निबंध का उत्कर्ष
इस युग में डॉ. विद्यानिवास मिश्र, धर्मवीर भारती, नामवर सिंह, शिवप्रसाद सिंह, श्रीलाल शुक्ल, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, कुबेरनाथ राय, विवेकी राय जैसे निबंधकारों ने ललित निबंध को नई ऊँचाई दी।
- डॉ. विद्यानिवास मिश्र – छितवन की छाँह, कदम की फूली डाल, तुम चंदन हम पानी जैसे संग्रहों में अनुभूति और चिंतन का सुंदर मेल मिलता है।
- कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ – ग्रामीण जीवन और मानवीय संवेदनाओं के चित्रण में निपुण।
छायावादोत्तर युग की विशेषताएँ—
- यथार्थवाद और सामाजिक व्यंग्य का समावेश
- ललित निबंध का उत्कर्ष
- भाषा में परिपक्वता और सहज प्रवाह
- व्यक्तिगत अनुभूति और सामाजिक दृष्टिकोण का संतुलन
निष्कर्ष
हिंदी निबंध का विकास एक निरंतर यात्रा है, जो भारतेन्दु युग की जिंदादिली और देशभक्ति, द्विवेदी युग की विचारशीलता और तर्क, छायावाद युग की भावुकता और सौंदर्यबोध, तथा छायावादोत्तर युग की यथार्थवाद और व्यंग्यशीलता से होकर गुजरा है। प्रत्येक युग ने हिंदी निबंध को नई दिशा, नई शैली और नए विषय प्रदान किए।
आज हिंदी निबंध एक परिपक्व साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित है, जो न केवल विचार और ज्ञान का संवाहक है, बल्कि समाज के दर्पण के रूप में भी कार्य करता है। इसकी यात्रा आगे भी नए विचारों, विषयों और प्रयोगों के साथ जारी रहेगी।
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- निपात | परिभाषा, प्रकार तथा 50 + उदाहरण
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