पालि भाषा (प्रथम प्राकृत): उद्भव, विकास, साहित्य और व्याकरणिक परंपरा

भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में पालि भाषा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भाषा न केवल बौद्ध धर्म की मौलिक ध्वनि रही है, बल्कि इसे भारत की प्रथम देश भाषा भी कहा जाता है। पालि भाषा ने बौद्ध साहित्य, विशेषतः त्रिपिटकों के माध्यम से भारत सहित दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों—लंका, बर्मा, तिब्बत और चीन में भी अपनी गूंज पहुंचाई।

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पालि भाषा का इतिहास एवं उद्भव

पालि शब्द का अर्थ होता है—‘पंक्ति’ या ‘बुद्ध वचन’। इसे ‘पा रक्खतीति बुद्धवचनं इति पालि’ के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका आशय है—जो बुद्ध के वचनों की रक्षा करे, वह पालि है। मूलतः पालि शब्द का प्रयोग प्रारंभ में केवल त्रिपिटक ग्रन्थों के लिए होता था, किंतु बाद में यह भाषा के रूप में प्रचलित हो गया।

पालि भाषा का उद्भवकाल लगभग 500 ईसा पूर्व से 1 ईसा तक माना जाता है। यह वही काल है जब गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश दिए और उनके अनुयायियों ने उन उपदेशों को संरक्षित किया। बाद में जब सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपने शासन का मुख्य आधार बनाया, तब पालि भाषा को एक लोकभाषा के रूप में प्रयोग में लाया गया, जिससे साधारण जनमानस भी बौद्ध विचारों से जुड़ सके।

त्रिपिटक साहित्य: पालि भाषा का स्तम्भ

पालि भाषा की पहचान त्रिपिटक साहित्य से जुड़ी हुई है। ‘त्रिपिटक’ का अर्थ है—तीन पिटक या टोकरी, अर्थात तीन भागों में विभाजित ग्रंथ-संग्रह। ये हैं—

1. सुत्त पिटक

सुत्त पिटक बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है, जो साधारण बोलचाल की भाषा में व्यक्त किए गए हैं। यह पिटक पाँच निकायों में विभाजित है:

  • दीर्घ निकाय
  • मज्जिम निकाय
  • संयुक्त निकाय
  • अंगुत्तर निकाय
  • खुद्दक निकाय

खुद्दक निकाय में सम्मिलित प्रमुख 15 ग्रंथ:

  1. खुद्दक पाठ
  2. धम्मपद
  3. उदान
  4. इतिवुत्तक
  5. सुत्तनिपात
  6. विमानवत्थु
  7. पेतवत्थु
  8. थेरगाथा
  9. थेरीगाथा
  10. जातक
  11. निद्देस
  12. पटिसम्भिदामग्ग
  13. अपदान
  14. बुद्धवंस
  15. चरियापिटक

2. विनय पिटक

यह पिटक बौद्ध संघ के संचालन हेतु बनाए गए नियमों एवं विनयों का संकलन है। इसके प्रमुख ग्रंथ हैं:

  • महावग्ग
  • चुल्लवग्ग
  • पाचित्तिय
  • पाराजिक
  • परिवार

3. अभिधम्म पिटक

यह दर्शन और मनोविज्ञान पर आधारित पालि साहित्य का विश्लेषणात्मक भाग है। इसमें चित्त और चैतसिकों का विवेचन है। इसके सात ग्रंथ हैं:

  1. धम्मसंगणी
  2. विभंग
  3. धातुकथा
  4. पुग्गल पञ्चत्ति
  5. कथावत्थु
  6. यमक
  7. पट्टान

पालि साहित्य का वैश्विक प्रसार

पालि भाषा न केवल भारत में बल्कि श्रीलंका, बर्मा, तिब्बत और चीन तक फैली। सम्राट अशोक के पुत्र कुमार महेन्द्र त्रिपिटकों के साथ लंका गए, जहां राजा वट्टगामनी के संरक्षण में त्रिपिटक को लिपिबद्ध किया गया। इस कारण थेरवाद परंपरा के ग्रंथों में पालि भाषा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

अन्य पालि साहित्य

त्रिपिटकों के अतिरिक्त पालि भाषा में अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ भी हैं:

  • मिलिन्दपन्हो
  • दीपवंश
  • महावंश
  • अट्ठकथा साहित्य

बुद्धघोष और अट्ठकथा साहित्य

पालि साहित्य के व्याख्यात्मक पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण नाम आचार्य बुद्धघोष का है, जिन्होंने पांचवीं शताब्दी में ‘विसुद्धिमग्ग’ (विशुद्धि मार्ग) नामक ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ बौद्ध सिद्धांतों का कोश माना जाता है।

पालि भाषा का व्याकरण साहित्य

पालि भाषा के व्याकरण संबंधी प्रमुख तीन ग्रंथ निम्नलिखित हैं:

1. कच्चान व्याकरण

  • इसे ‘कच्चान गन्ध’ या ‘सुसंधिकप्प’ भी कहा जाता है।
  • इसमें 4 कप्प (सन्धिकप्प, नामकप्प, आख्यातकप्प, किब्बिधानकप्प), 23 परिच्छेद और 675 सूत्र हैं।

2. मोग्गलान व्याकरण

  • रचयिता मोग्गलान, श्रीलंका के थूपाराम विहार के संघराज थे।
  • इस व्याकरण में 817 सूत्र हैं। इसकी वृत्ति और पंचिका भी मोग्गलान ने ही लिखी।

3. सद्दनीति व्याकरण

  • रचयिता अग्गवंश, जिन्हें ‘अग्गपण्डित तृतीय’ भी कहा जाता है।
  • इसमें तीन भाग हैं: पदमाला, धातुमाला, सूत्तमाला
  • 27 अध्याय और कुल 1391 सूत्रों में यह व्याकरण निबद्ध है।

पालि शब्द की व्युत्पत्ति

विभिन्न विद्वानों द्वारा पालि शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार दी गई है:

विद्वानव्युत्पत्ति
आचार्य विधुशेखरपन्ति > पत्ति > पट्टि > पल्लि > पालि
मैक्स वालेसरपाटलिपुत्र या पाऽलि
भिक्षु जगदीश कश्यपपरियाय > पलियाय > पालियाय > पालि
भण्डारकर/नागलप्राकृत > पाकट > पाअड > पाउल > पालि
भिक्षु सिद्धार्थपाठ > पाळ > पाळि > पालि
कोसाम्बीपाल् > पालि
उदयनारायण तिवारीपा + णिज् + लि = पालि

पालि भाषा का भौगोलिक क्षेत्र

पालि भाषा के प्रसार क्षेत्र को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ प्रमुख अभिमत नीचे दिए गए हैं:

विद्वानपालि भाषा का क्षेत्र
श्रीलंकाई बौद्ध, चाइल्डर्समगध
वेस्टरगार्ड, स्टेनकोनोउज्जयिनी या विन्ध्य प्रदेश
ग्रियर्सन, राहुलमगध
ओलडेन वर्गकलिंग
रीज डेविड्सकोसल
सुनीतिकुमार चटर्जीमध्यदेश
देवेन्द्रनाथ शर्मामथुरा क्षेत्र
उदयनारायण तिवारीमध्यदेश

सर्वसम्मति से पालि भाषा का क्षेत्र – ‘मध्यदेश’ की बोली माना गया है।

पालि की वर्ण-संरचना एवं ध्वनियाँ

पालि भाषा में वर्णों की संख्या को लेकर दो प्रमुख मत हैं:

  • कच्चायन के अनुसार – 41 ध्वनियाँ (8 स्वर, 33 व्यंजन)
  • मोग्गलान के अनुसार – 43 ध्वनियाँ (10 स्वर, 33 व्यंजन)

स्वरों का वर्गीकरण

  • ह्रस्व स्वर: अ, इ, उ, एँ, ओं
  • दीर्घ स्वर: आ, ई, ऊ, ए, ओ

व्यंजनों का वर्गीकरण

  • क वर्ग – क, ख, ग, घ, ङ
  • च वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ
  • ट वर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण
  • त वर्ग – त, थ, द, ध, न
  • प वर्ग – प, फ, ब, भ, म
  • अन्य – य, र, ल, व, स, ह, ळ, अं

पालि भाषा की प्रमुख विशेषताएँ

  1. अनुस्वार (अं) को स्वतंत्र ध्वनि माना गया है – इसे ‘निग्गहीत’ कहते हैं।
  2. स्वराघात
    • टर्नर: संगीतात्मक एवं बलात्मक दोनों स्वीकारते हैं।
    • ग्रियर्सन/भोलानाथ तिवारी: केवल बलात्मक स्वराघात।
    • जूल ब्लाक: किसी भी स्वराघात को अस्वीकार करते हैं।
  3. व्याकरणिक संरचना
    • तीन लिंग – पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग
    • दो वचन – एकवचन, बहुवचन (द्विवचन नहीं)
    • तीन वाच्य – कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य, भाववाच्य
    • छह कारक
    • आठ लकार – चार काल, चार भाव
    • आठ गण
    • हलन्त रहित भाषा

निष्कर्ष

पालि भाषा भारतीय भाषाओं की विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि बौद्ध विचारधारा का संवाहक माध्यम रही है। इसका साहित्य, दर्शन, व्याकरण और ध्वनिशास्त्र एक संपूर्ण भाषिक संस्कृति का निर्माण करता है। आज भी पालि भाषा का अध्ययन बौद्ध अध्ययन, भारतीय भाषाशास्त्र और संस्कृति के शोधार्थियों के लिए अनिवार्य है।


पालि भाषा प्रश्नोत्तरी (Quiz on Pali Language)


भाग – 1 : वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Questions)

  1. ‘पालि’ शब्द का अर्थ क्या है?
    a) कविता
    b) बुद्धवचन
    c) संस्कार
    d) सूत्र
  2. त्रिपिटक की रचना किस भाषा में हुई थी?
    a) संस्कृत
    b) प्राकृत
    c) पालि
    d) अपभ्रंश
  3. त्रिपिटक के कितने भाग होते हैं?
    a) दो
    b) चार
    c) पाँच
    d) तीन
  4. सुत्त पिटक के अंतर्गत कितने निकाय आते हैं?
    a) तीन
    b) चार
    c) पाँच
    d) सात
  5. विनय पिटक में कौन से ग्रंथ नहीं आता है?
    a) महावग्ग
    b) चुल्लवग्ग
    c) कथावत्थु
    d) पाराजिक
  6. अभिधम्म पिटक में कितने ग्रंथ हैं?
    a) पाँच
    b) सात
    c) आठ
    d) नौ
  7. ‘विसुद्धिमग्ग’ ग्रंथ किसने लिखा था?
    a) कुमार महेन्द्र
    b) बौद्धघोष
    c) अग्गवंश
    d) नागसेन
  8. पालि भाषा का प्रमुख व्याकरण ‘कच्चान व्याकरण’ में कितने सूत्र हैं?
    a) 675
    b) 817
    c) 1391
    d) 600
  9. सद्दनीति व्याकरण के रचयिता कौन थे?
    a) बौद्धघोष
    b) मोग्गलान
    c) अग्गवंश
    d) महेन्द्र
  10. पालि भाषा में द्विवचन होता है या नहीं?
    a) होता है
    b) नहीं होता है
    c) केवल संज्ञाओं में होता है
    d) केवल सर्वनामों में होता है

भाग – 2 : लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

  1. ‘त्रिपिटक’ किन-किन ग्रंथों का संग्रह है?
  2. ‘खुद्दक निकाय’ में कितने ग्रंथ हैं? उनमें से पाँच के नाम लिखिए।
  3. कुमार महेन्द्र की पालि भाषा के प्रचार में क्या भूमिका रही?
  4. ‘पालि’ शब्द की व्युत्पत्ति किन-किन विद्वानों ने भिन्न-भिन्न रूपों में की है?
  5. अभिधम्म पिटक की विशेषता क्या है?

भाग – 3 : दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

  1. त्रिपिटक साहित्य का विस्तारपूर्वक परिचय दीजिए।
  2. पालि भाषा के व्याकरण ग्रंथों पर प्रकाश डालिए।
  3. पालि भाषा का इतिहास और भौगोलिक प्रसार विस्तार से लिखिए।
  4. ‘पालि’ की वर्ण-संरचना और ध्वनि-तत्त्वों का विश्लेषण कीजिए।
  5. पालि भाषा की प्रमुख विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।

भाग – 4 : मिलान करें (Match the Columns)

स्तम्भ Aस्तम्भ B
कच्चान व्याकरण675 सूत्र
मोग्गलान व्याकरण817 सूत्र
सद्दनीतिअग्गवंश द्वारा रचित
विसुद्धिमग्गबौद्धघोष की रचना
खुद्दक निकाय15 ग्रंथों का संग्रह
कुमार महेन्द्रलंका में त्रिपिटक प्रचारक
मिलिन्दपन्होप्रश्नोत्तर शैली ग्रंथ
दीपवंशपालि ऐतिहासिक ग्रंथ

उत्तर कुंजी (Answer Key)

भाग – 1:

  1. b
  2. c
  3. d
  4. c
  5. c
  6. b
  7. b
  8. a
  9. c
  10. b

भाग 2: लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर

  1. ‘त्रिपिटक’ किन-किन ग्रंथों का संग्रह है?
    त्रिपिटक तीन ग्रंथों का संग्रह है:
    (1) सुत्त पिटक – बुद्ध के उपदेशों का संग्रह।
    (2) विनय पिटक – संघ संचालन के नियमों का संग्रह।
    (3) अभिधम्म पिटक – धर्म, चित्त और चैतसिक तत्वों का विश्लेषण।
  2. ‘खुद्दक निकाय’ में कितने ग्रंथ हैं? उनमें से पाँच के नाम लिखिए।
    खुद्दक निकाय में 15 ग्रंथ हैं। उनमें से पाँच हैं:
    • धम्मपद
    • उदान
    • थेरगाथा
    • जातक
    • सुत्तनिपात
  3. कुमार महेन्द्र की पालि भाषा के प्रचार में क्या भूमिका रही?
    सम्राट अशोक के पुत्र कुमार महेन्द्र त्रिपिटकों को लेकर लंका गए और वहाँ बौद्ध धर्म के थेरवाद संप्रदाय के प्रचार हेतु पालि भाषा में त्रिपिटक को लिपिबद्ध किया। इससे पालि भाषा का प्रचार लंका में हुआ और यह एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध धार्मिक भाषा बनी।
  4. ‘पालि’ शब्द की व्युत्पत्ति किन-किन विद्वानों ने भिन्न-भिन्न रूपों में की है?
    पालि शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार की है:
    • आचार्य विधुशेखर: पन्ति > पत्ति > पट्टि > पल्लि > पालि
    • मैक्स वालेसर: पाटलिपुत्र से
    • भिक्षु जगदीश कश्यप: परियाय > पलियाय > पालियाय > पालि
    • भण्डारकर और वाकर नागल: प्राकृत > पाकट > पाअड > पाउल > पालि
    • भिक्षु सिद्धार्थ: पाठ > पाळ > पाळि > पालि
    • कोसाम्बी: पाल् > पालि
    • उदयनारायण तिवारी: पा + णिज् + लि = पालि
  5. अभिधम्म पिटक की विशेषता क्या है?
    अभिधम्म पिटक में चित्त, चैतसिक और अन्य मानसिक व नैतिक तत्त्वों का विश्लेषण मिलता है। इसमें बौद्ध दर्शन का गहन तात्त्विक विवेचन है। यह ग्रंथ बौद्ध मनोविज्ञान और तर्कशास्त्र का आधार माना जाता है।

भाग 3: दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर

  1. त्रिपिटक साहित्य का विस्तारपूर्वक परिचय दीजिए।
    त्रिपिटक बौद्ध धर्म का मूल ग्रंथ है, जिसे पालि भाषा में रचित माना जाता है। इसके तीन भाग हैं:
    • सुत्त पिटक: बुद्ध के उपदेशों का संग्रह। इसमें पाँच निकाय – दीर्घ निकाय, मज्झिम निकाय, संयुक्त निकाय, अंगुत्तर निकाय, खुद्दक निकाय आते हैं।
    • विनय पिटक: बौद्ध संघ के संचालन हेतु विनियमों का संकलन। इसके ग्रंथ हैं – महावग्ग, चुल्लवग्ग, पाचित्तिय, पाराजिक, परिवार।
    • अभिधम्म पिटक: बौद्ध तत्त्वज्ञान का दार्शनिक विश्लेषण। इसके सात ग्रंथ – धम्मसंगणी, विभंग, धातुकथा, पुग्गलपञ्चत्ति, कथावत्थु, यमक, पट्ठान हैं।
  2. पालि भाषा के व्याकरण ग्रंथों पर प्रकाश डालिए।
    पालि भाषा के तीन प्रमुख व्याकरण ग्रंथ हैं:
    • कच्चान व्याकरण: इसे सुसंधिकप्प भी कहते हैं, जिसमें 4 कप्प, 23 परिच्छेद, और 675 सूत्र हैं।
    • मोग्गलान व्याकरण: मोग्गलान द्वारा रचित इस ग्रंथ में 817 सूत्र हैं। यह पालि व्याकरण में गम्भीरता व पूर्णता के लिए प्रसिद्ध है।
    • सद्दनीति: बर्मी भिक्षु अग्गवंश द्वारा रचित इस ग्रंथ में 1391 सूत्र हैं, और यह तीन भागों (पदमाला, धातुमाला, सूत्तमाला) में विभाजित है।
  3. पालि भाषा का इतिहास और भौगोलिक प्रसार विस्तार से लिखिए।
    पालि भाषा बुद्ध के उपदेशों की भाषा मानी जाती है। त्रिपिटक इसी भाषा में रचे गए। सम्राट अशोक के पुत्र कुमार महेन्द्र पालि त्रिपिटकों को लेकर लंका गए जहाँ उसका लिपिबद्ध रूप वट्टगामनी के संरक्षण में तैयार हुआ। बाद में पालि भाषा का प्रसार बर्मा, चीन, तिब्बत, थाईलैंड आदि देशों में हुआ।
    विद्वानों में पालि की उत्पत्ति को लेकर मतभेद है – कुछ इसे मगध, कुछ कोसल, और कुछ मध्यदेश की बोली मानते हैं। सर्वसम्मति से यह मध्यदेश (म.प्र.) की बोली मानी जाती है।
  4. ‘पालि’ की वर्ण-संरचना और ध्वनि-तत्त्वों का विश्लेषण कीजिए।
    पालि में 41 से 43 ध्वनियाँ होती हैं।
    • कच्चायन के अनुसार: 8 स्वर, 33 व्यंजन
    • मोग्गलान के अनुसार: 10 स्वर, 33 व्यंजन
      वर्णों का वर्गीकरण:
    • स्वर: ह्रस्व – अ, इ, उ, एँ, ओं; दीर्घ – आ, ई, ऊ, ए, ओ
    • व्यंजन:
      • क वर्ग – क, ख, ग, घ, ङ
      • च वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ
      • ट वर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण
      • त वर्ग – त, थ, द, ध, न
      • प वर्ग – प, फ, ब, भ, म
      • अन्य – य, र, ल, व, स, ह, ळ, अं
  5. पालि भाषा की प्रमुख विशेषताएं स्पष्ट कीजिए।
    • ‘अं’ अनुस्वार को स्वतंत्र ध्वनि (निग्गहीत) माना जाता है।
    • संगीतात्मक और बलात्मक स्वराघात (टर्नर), कुछ विद्वान केवल बलात्मक मानते हैं।
    • द्विवचन का अभाव है – केवल एकवचन और बहुवचन मिलता है।
    • पालि में छह कारक, आठ लकार (चार काल और चार भाव), तीन लिंग, तीन वाच्य, आठ गण होते हैं।
    • यह हलन्त रहित भाषा है।
    • त्रिपिटकों के अलावा मिलिन्दपन्हो, अट्ठकथा, दीपवंश, महावंश जैसे ग्रंथ पालि में उपलब्ध हैं।

भाग 4: मिलान करें – उत्तर तालिका

स्तम्भ Aस्तम्भ B
कच्चान व्याकरण675 सूत्र
मोग्गलान व्याकरण817 सूत्र
सद्दनीतिअग्गवंश द्वारा रचित
विसुद्धिमग्गबौद्धघोष की रचना
खुद्दक निकाय15 ग्रंथों का संग्रह
कुमार महेन्द्रलंका में त्रिपिटक प्रचारक
मिलिन्दपन्होप्रश्नोत्तर शैली ग्रंथ
दीपवंशपालि ऐतिहासिक ग्रंथ

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