पूर्वी हिन्दी : विकास, बोलियाँ, भाषिक विशेषताएँ और साहित्यिक योगदान

भारत की भाषाएँ सदियों से निरन्तर विकसित होती रही हैं। इन्हीं में से एक महत्त्वपूर्ण भाषा-समूह है पूर्वी हिन्दी, जिसे हिन्दी भाषा के पूर्वी शाखा-समूह के अंतर्गत अत्यधिक महत्त्व प्राप्त है। पूर्वी हिन्दी का साहित्यिक, भाषिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक मूल्य इतना समृद्ध है कि उसने हिन्दी की सम्पूर्ण संरचना और साहित्य-परंपरा को गहराई से प्रभावित किया है।

पूर्वी हिन्दी का विकास अर्धमागधी प्राकृत से माना जाता है। अर्धमागधी स्वयं प्राकृतों के उस समूह का भाग थी जिसे बुद्धकालीन जनसमुदाय बोलता था। इसी से आगे चलकर अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी जैसी बोलियाँ निर्मित हुईं। ये बोलियाँ निश्चित भौगोलिक क्षेत्रों में विकसित होकर आज स्वतंत्र पहचान बनाए हुए हैं।

पूर्वी हिन्दी के चारों ओर विभिन्न भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। उत्तर में नेपाली, पश्चिम में कन्नौजी, दक्षिण में बुन्देली, पूर्व में भोजपुरी तथा दक्षिण-पश्चिम में मराठी का प्रभाव देखा जा सकता है। इस भाषिक भूगोल ने पूर्वी हिन्दी को बहुत-सी ध्वन्यात्मक, व्याकरणिक और शब्दकोशीय विशेषताएँ प्रदान की हैं।

यह लेख पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियों—अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी—पर विस्तार से प्रकाश डालता है और इनके इतिहास, भूगोल, साहित्य, ध्वनि-विन्यास, शब्द-विन्यास एवं सामाजिक उपयोगिता पर समग्र चर्चा करता है।

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पूर्वी हिन्दी का ऐतिहासिक विकास

हिन्दी भाषा का इतिहास सामान्यतः चार भागों में विभाजित किया जाता है—

  1. अपभ्रंश
  2. प्रारम्भिक हिन्दी
  3. मध्यकालीन हिन्दी
  4. आधुनिक हिन्दी

पूर्वी हिन्दी का मूल स्रोत अर्धमागधी प्राकृत → मगधी अपभ्रंश माना जाता है। प्राकृतों का यह समूह बिहार, झारखंड तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में प्रचलित था।

समय के साथ–साथ भाषाओं का भूगोल बदला, जनजातियों का प्रवास हुआ और भाषिक मिश्रण विकसित हुआ। इस प्रक्रिया में पूर्वी हिन्दी की बोलियाँ अपने–अपने क्षेत्रों में अलग-अलग विशेषताओं के साथ उभरकर सामने आईं।

पूर्वी हिन्दी का भौगोलिक विस्तार

पूर्वी हिन्दी वह भाषा-क्षेत्र है जो पश्चिमी हिन्दी (कन्नौजी, ब्रज, खड़ी बोली) और भोजपुरी के मध्य स्थित है। इसका विस्तार उत्तर प्रदेश के मध्य से पूर्वी भागों तक तथा मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है।

इस क्षेत्र की भौगोलिक विविधता—गंगा का मैदान, विंध्य पर्वतमाला, बघेलखंड का पठारी क्षेत्र और छत्तीसगढ़ का दण्डकारण्य क्षेत्र—यहाँ की बोलियों को विशिष्ट ध्वनि-रूप और भाषिक चरित्र प्रदान करता है।

पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ

**(1) अवधी

(2) बघेली
(3) छत्तीसगढ़ी**

इन तीनों बोलियों का भाषिक, व्याकरणिक और साहित्यिक अध्ययन हिन्दी के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

अवधी : पूर्वी हिन्दी की सर्वाधिक समृद्ध बोली

अवधी को पूर्वी हिन्दी की सबसे प्रतिष्ठित और साहित्य-सम्पन्न बोली कहा जाता है। इसे कई स्थानों पर कौसली भी कहा गया है क्योंकि यह क्षेत्र भगवान राम की जन्मभूमि ‘कोसल’ से जुड़ा है।

अवधी का भौगोलिक क्षेत्र

अवधी मुख्यतः निम्न क्षेत्रों में बोली जाती है—

  • लखनऊ
  • इलाहाबाद (प्रयागराज)
  • उन्नाव
  • सीतापुर
  • बहराइच
  • फैजाबाद (अयोध्या)
  • फतेहपुर
  • जौनपुर
  • बाराबंकी
  • सुल्तानपुर
  • अम्बेडकरनगर

इस पूरे क्षेत्र की सांस्कृतिक एकता को ‘अवध संस्कृति’ कहा जाता है, जिसमें नवाबी परंपराओं, लोकगीतों, नाट्य कला, भाषा और साहित्य की झलक दिखाई देती है।

अवधी का साहित्य

अवधी हिन्दी की उन बोलियों में से है जिसमें सबसे अधिक और सबसे श्रेष्ठ साहित्य रचा गया है।

प्रमुख कवि एवं ग्रंथ

  1. गोस्वामी तुलसीदास
    • रामचरितमानस
    • कवितावली
    • विनयपत्रिका
      अवधी साहित्य का स्वर्ण युग तुलसीदास से प्रारम्भ होता है। रामचरितमानस में अवधी का माधुर्य, सादगी और छन्दों का चमत्कार अद्वितीय है।
  2. मलिक मोहम्मद जायसी
    • पद्मावत
      जायसी की रचनाओं में प्रेम, अध्यात्म और प्रतीकवाद का अनूठा संगम मिलता है।
  3. मंझन
    • मधुमालती
  4. उसमान
    • चारूचरित

अवधी लोकगीतों, विशेषकर कजरी, होरी, सोहर, आल्हा और बिरहा के माध्यम से भी अत्यधिक लोकप्रिय रही है।

अवधी की भाषिक विशेषताएँ

अवधी की भाषिक प्रणाली में कई विशिष्ट ध्वन्यात्मक एवं व्याकरणिक रूप मिलते हैं—

(1) ऐ और औ का उच्चारण अइ तथा अउ

  • औरत → अउरत
  • पैसा → पइसा
  • औषध → अउषध

(2) ‘ण’ का उच्चारण ‘न’

  • गुण → गुन
  • विष्णु → बिस्नु

(3) श, ष, स तीनों स्थलों पर ‘स’ का प्रयोग

  • विश्वामित्र → बिस्वामित्र

(4) ‘ल’ और ‘ड’ का उच्चारण कई स्थानों पर ‘र’

  • गल → गर
  • फल → फर
  • तोड़ना → तोरना

(5) अवधी में अधिकांश शब्द ‘वा’ कारान्त

  • जगदीश → जगदीसवा
  • घोड़ा → घोड़वा

(6) क्रिया रूपों में परिवर्तन

भूतकाल

  • गया → गवा
  • पाया → पाइस

भविष्यत् काल

  • कहूँगा → कहबूं
  • चलेगा → चलिहै / चलब

(7) कर्ता कारक में ‘ने’ का लोप

  • उसने गाया → उ गाइस

ये विशेषताएँ अवधी को अत्यंत मधुर, सहज और व्याकरणिक रूप से सरल बनाती हैं।

बघेली : अवधी की दक्षिणी शाखा

बघेली को ‘बधेली’ या ‘बघेलखंडी’ भी कहा जाता है। इसका केन्द्र मध्य प्रदेश का रीवा (Rewa) क्षेत्र है। कई विद्वान इसे अवधी की दक्षिणी शाखा मानते हैं, जबकि कुछ इसे स्वतंत्र बोली मानते हैं।

बघेली का भौगोलिक क्षेत्र

बघेली निम्न क्षेत्रों में प्रचलित है—

  • रीवा
  • जबलपुर
  • माण्डला
  • हमीरपुर
  • मिर्जापुर
  • बांदा
  • दमोह
  • सतना
  • पन्ना

भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र ‘विंध्य–पठार’ कहा जाता है जहाँ बघेल राजाओं का शासन रहा।

बघेली की प्रमुख भाषिक विशेषताएँ

(1) अवधी के ‘व’ का ‘ब’ में रूपान्तरण

  • आवा → आबा
  • सवा → सभ

(2) विशेषणों में ‘हा’ प्रत्यय का प्रयोग

  • अधिक → अधिकहा
  • मोटा → मोटहा

यह ‘हा’ प्रत्यय इसे विशिष्ट ग्रामीण ध्वनि प्रदान करता है।

(3) जनजातीय (आदिवासी) शब्दावली का प्रचुर प्रयोग

क्योंकि यह क्षेत्र गोंड और अन्य जनजातियों से प्रभावित है, इसलिए शब्द-संपदा में स्थानीय प्रकृति, वनस्पति, जीव-जंतु और सामाजिक जीवन से जुड़ी शब्दावली शामिल है।

(4) लयात्मकता और लंबी स्वर-ध्वनियाँ

बघेली बोलने में अपेक्षाकृत धीमी, मीठी और लयपूर्ण है।

छत्तीसगढ़ी : महाप्राण ध्वनियों की बोली

पूर्वी हिन्दी की तीसरी प्रमुख बोली है छत्तीसगढ़ी, जो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बड़े हिस्से में बोली जाती है।

छत्तीसगढ़ी का क्षेत्र

  • रायपुर
  • बिलासपुर
  • सारंगढ़
  • खैरागढ़
  • बालाघाट
  • नंदगाँव
  • दुर्ग
  • राजनांदगाँव

प्राचीन काल में यह क्षेत्र ‘दक्षिण कौशल’ के रूप में जाना जाता था।

छत्तीसगढ़ी की भाषिक विशेषताएँ

(1) महाप्राण ध्वनियों का व्यापक प्रयोग

  • जन → झन
  • दौड़ → धौड़

(2) शब्दों का सरलीकरण

  • तुम्हारा → तोर
  • हमारा → हमर
  • कहाँ → कइँहा

(3) स्वरों का लम्बा उच्चारण और नासिक्यता

ध्वनियों में नासिक ध्वनि तथा लम्बे स्वरों का प्रयोग अधिक होता है।

(4) आदिवासी और द्रविड़ीय प्रभाव

यहाँ गोंडी, हल्बी, कुड़ुख आदि जनजातीय भाषाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखता है।

(5) साहित्य अपेक्षाकृत कम

हालाँकि आधुनिक समय में छत्तीसगढ़ी में नाटक, गीत, फिल्में और कविता का विकास तेजी से हो रहा है।

पूर्वी हिन्दी की समग्र भाषिक विशेषताएँ

पूर्वी हिन्दी को एक समूह के रूप में देखें तो उसमें निम्न विशेषताएँ मिलती हैं—

(1) बोलचाल की सहजता

भाषिक संरचना सरल और सीधी है।

(2) ध्वनियों का प्राकृतिक प्रयोग

कठोर ध्वनियाँ कम, मुलायम ध्वनियाँ अधिक।

(3) क्षेत्रीय शब्दावली की समृद्धि

कृषि, लोक संस्कृति, अध्यात्म, प्रकृति और ग्राम्य जीवन से जुड़े हजारों शब्द।

(4) लोकगीतों और कथाओं की परंपरा

अवधी-बघेली-छत्तीसगढ़ी में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा है—

  • कजरी
  • फगुआ
  • सोहर
  • बांसुरी गीत
  • चरवाहा गीत

(5) व्याकरण की सरलता

कर्ता कारक में ‘ने’ का लोप, ध्वनियों का परिवर्तन और क्रिया-पद्धति में सरलता इसे जनभाषा बनाती है।

भारतीय साहित्य और संस्कृति में पूर्वी हिन्दी का योगदान

पूर्वी हिन्दी की बोलियों ने भारतीय संस्कृति को अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है—

(1) भक्ति आंदोलन

रामकाव्य, विशेषकर रामचरितमानस, ने पूरे उत्तर भारत को एक भावधारा में बाँधा।

(2) लोकसाहित्य

बिरहा, सोहर, फगुआ, कजरी आदि ने ग्रामीण समाज को भाषा के माध्यम से जोड़ा।

(3) आंचलिक साहित्य

रीवा, छत्तीसगढ़ और अवध की सांस्कृतिक पहचान इन बोलियों के बिना संभव नहीं।

(4) नाट्य और प्रदर्शन कला

नाचा, स्वांग, रामलीला, छत्तीसगढ़ी नाचा—इनमें इन बोलियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

आधुनिक समय में पूर्वी हिन्दी की स्थिति

आज के समय में पूर्वी हिन्दी—

  • डिजिटल मीडिया
  • लोकगीत
  • फिल्मों
  • यूट्यूब
  • आंचलिक साहित्य

में लोकप्रियता प्राप्त कर रही है।

अवधी और छत्तीसगढ़ी में फ़िल्में व धारावाहिक बनाए जा रहे हैं। बघेली में भी कविता और सोशल मीडिया सामग्री तेजी से बढ़ रही है।

निष्कर्ष

पूर्वी हिन्दी भारतीय भाषाओं की उस शाखा का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें ग्रामीण जीवन की सरलता, भारतीय संस्कृति की मधुरता और लोक-साहित्य की गहन परंपरा समाहित है। अवधी का साहित्यिक वैभव, बघेली की प्राकृतिक सरलता और छत्तीसगढ़ी की महाप्राण ध्वनियाँ—ये सभी मिलकर पूर्वी हिन्दी को अद्वितीय बनाते हैं।

पूर्वी हिन्दी न केवल भाषिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक रूप से भी हिन्दी विश्व में अपना विशिष्ट स्थान बनाए हुए है। इसकी बोली-वैविध्य और साहित्य-संपदा आने वाली पीढ़ियों के लिए अध्ययन और प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।


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