मन्नार की खाड़ी में प्रवालों का पुनरुद्धार : समुद्री जैव-विविधता का पुनर्जीवन

पृथ्वी के महासागर जीवन और जैव-विविधता की अनुपम धरोहर हैं। इनमें से प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs) विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें अक्सर “समुद्र के वर्षावन” (Rainforests of the Sea) कहा जाता है। इन भित्तियों का निर्माण प्रवाल नामक सूक्ष्म अकशेरुकी जीवों द्वारा किया जाता है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में खाद्य शृंखला, तटीय सुरक्षा और पर्यटन जैसे अनेक स्तरों पर योगदान देते हैं।

भारत में प्रवाल भित्तियों का विस्तार कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपों तक फैला है। इनमें से तमिलनाडु के तट से लगी मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar) अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति और समृद्ध जैव-विविधता के कारण विशेष महत्व रखती है। दो दशकों से अधिक समय तक वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों के प्रयासों ने इस क्षेत्र में प्रवालों के पुनर्जीवन (Coral Restoration) की एक प्रेरणादायी गाथा रची है।

प्रवाल (Corals) का परिचय

प्रवाल क्या हैं?

प्रवाल समुद्र में पाए जाने वाले अकशेरुकी (Invertebrate) जीव हैं, जो Cnidaria संघ से संबंधित होते हैं। ये Polyp नामक छोटे-छोटे कोमल जीवों से बने होते हैं। प्रत्येक पॉलिप अपने चारों ओर कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) का कठोर ढांचा बनाता है। लाखों पॉलिप्स मिलकर विशाल संरचनाएँ तैयार करते हैं, जिन्हें प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs) कहा जाता है।

प्रवाल का स्वरूप

प्रवाल अनेक रंगों में पाए जाते हैं—लाल, बैंगनी, नीले, भूरे और हरे। इनका आकर्षक स्वरूप समुद्री जीवन को न केवल विविधता प्रदान करता है, बल्कि मछलियों और अन्य जीवों के लिए आवास भी उपलब्ध कराता है।

प्रवाल भित्तियों का महत्व

  1. जैव-विविधता का केंद्र – ये समुद्री जीवन की असंख्य प्रजातियों को आश्रय देती हैं।
  2. तटीय सुरक्षा – ये प्राकृतिक दीवार की तरह कार्य कर समुद्री लहरों और सुनामी से तटों की रक्षा करती हैं।
  3. आर्थिक योगदान – मत्स्य उद्योग, मोती उत्पादन और पर्यटन से स्थानीय समुदाय को आय होती है।
  4. वैज्ञानिक महत्व – समुद्री पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन के अध्ययन के लिए ये उत्कृष्ट प्रयोगशाला हैं।

भारत में प्रवाल भित्तियाँ

भारत समुद्र तटों और द्वीपों से समृद्ध देश है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में प्रवाल भित्तियों का विस्तार देखा जा सकता है—

  1. कच्छ की खाड़ी (Gulf of Kutch, गुजरात) – यहाँ प्रवाल शुष्क और गर्म वातावरण में भी पनपते हैं।
  2. मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar, तमिलनाडु) – जैव-विविधता से भरपूर, 117 से अधिक प्रवाल प्रजातियाँ।
  3. अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह – भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे विशाल और विविध प्रवाल भित्तियाँ।
  4. लक्षद्वीप द्वीप समूह – एटोल (Atoll) प्रवाल संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध।
  5. मालवन क्षेत्र (महाराष्ट्र) – तटीय पारिस्थितिकी के संरक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण।

मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar)

भौगोलिक स्थिति

मन्नार की खाड़ी लाक्षद्वीप सागर का उथला बड़ा खाड़ी क्षेत्र है। यह भारत के दक्षिण-पूर्वी तट (तमिलनाडु) और श्रीलंका के पश्चिमी तट के बीच स्थित है।

सीमाएँ

  • उत्तर में – रामेश्वरम द्वीप
  • दक्षिण में – मन्नार द्वीप
  • बीच में – आदम (रामसेतु) ब्रिज, जो छोटे-छोटे टापुओं और रेत की शृंखलाओं से बना है।

आकार व विस्तार

यह खाड़ी लगभग 130–275 किमी चौड़ी और 160 किमी लंबी है। इसमें 21 से अधिक छोटे-छोटे द्वीप और प्रवाल संरचनाएँ पाई जाती हैं।

जैव-विविधता

  • लगभग 117 प्रवाल प्रजातियाँ
  • अनेक प्रकार की मछलियाँ, समुद्री कछुए, डुगोंग (समुद्री गाय)
  • समुद्री शैवाल और सीग्रास (Seagrass) की समृद्धता

मन्नार की खाड़ी में प्रवालों की चुनौतियाँ

पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र के प्रवाल कई समस्याओं से प्रभावित हुए—

  1. जलवायु परिवर्तन – समुद्र का तापमान बढ़ने से प्रवालों में Bleaching की समस्या हुई।
  2. प्रदूषण – औद्योगिक कचरा और प्लास्टिक प्रदूषण ने समुद्री पारिस्थितिकी को प्रभावित किया।
  3. मानवीय गतिविधियाँ – अत्यधिक मछली पकड़ना, प्रवालों का अवैध दोहन और तटीय निर्माण।
  4. चक्रवात और प्राकृतिक आपदाएँ – अचानक आने वाली लहरें और तूफ़ान प्रवाल भित्तियों को नष्ट कर देते हैं।

प्रवालों का पुनरुद्धार (Coral Restoration Efforts)

वैज्ञानिकों, संरक्षणवादियों और स्थानीय समुदायों ने मिलकर मन्नार की खाड़ी में प्रवालों के संरक्षण हेतु कई पहलें की हैं—

  1. कृत्रिम प्रवाल बागवानी (Artificial Coral Gardening) – वैज्ञानिक स्वस्थ प्रवाल टुकड़ों को चुनकर कृत्रिम संरचनाओं पर प्रत्यारोपित करते हैं।
  2. Marine Protected Areas (MPAs) – खाड़ी के कई हिस्सों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया।
  3. समुद्री राष्ट्रीय उद्यान (Marine National Park) – 1986 में स्थापित, जो प्रवाल भित्तियों और द्वीपों की रक्षा करता है।
  4. समुदाय-आधारित संरक्षण – स्थानीय मछुआरे और ग्राम पंचायतें प्रवाल संरक्षण अभियानों में शामिल हुईं।
  5. NGOs और अनुसंधान संस्थान – एसएसआई (Society for Social Initiative), सीएमएफआरआई (Central Marine Fisheries Research Institute) आदि ने सक्रिय योगदान दिया।

पुनरुद्धार के परिणाम

दो दशकों की अथक मेहनत का परिणाम अब दिखाई देने लगा है—

  • प्रवालों का क्षेत्रफल बढ़ा – पहले जहाँ कई हिस्से नष्ट हो गए थे, अब उनमें पुनर्जीवन देखा जा रहा है।
  • समुद्री जीवन की वापसी – मछलियों, कछुओं और डुगोंग जैसी प्रजातियाँ फिर से लौट रही हैं।
  • स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ – पर्यटन और मत्स्य पालन से आय में वृद्धि हुई।
  • वैज्ञानिक उपलब्धि – भारत ने प्रवाल पुनरुद्धार की दिशा में एशिया में एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया।

भविष्य की दिशा

मन्नार की खाड़ी का प्रवाल पुनरुद्धार अभी शुरुआती सफलता पर है। इसे स्थायी बनाने के लिए कुछ कदम आवश्यक हैं—

  1. दीर्घकालिक निगरानी (Long-term Monitoring)
  2. स्थानीय समुदाय की और अधिक भागीदारी
  3. पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन का विकास
  4. जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीति
  5. शिक्षा और जागरूकता अभियान

निष्कर्ष

मन्नार की खाड़ी में प्रवालों का पुनरुद्धार केवल एक पारिस्थितिकीय उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह मानव और प्रकृति के सहअस्तित्व की प्रेरक कहानी है। प्रवाल भित्तियों की रक्षा करके हम न केवल समुद्री जीवन को संरक्षित करते हैं, बल्कि तटीय सुरक्षा, खाद्य संसाधन और पर्यटन को भी स्थायी बनाते हैं।

भारत के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है कि उसने अपने वैज्ञानिक प्रयासों और सामुदायिक सहयोग से समुद्री जैव-विविधता को पुनर्जीवित किया। यह प्रयास आने वाली पीढ़ियों को सिखाता है कि यदि हम प्रकृति के साथ संतुलन बनाएँ, तो पर्यावरणीय संकटों का समाधान संभव है।


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