भारतीय संविधान सभा और संविधान निर्माण

भारतीय संविधान निर्माण स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों और विभिन्न राजनीतिक प्रक्रियाओं का परिणाम था। यह संविधान भारतीय जनता की इच्छाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है जो आज भी हमारे लोकतंत्र का आधार है। भारतीय संविधान के निर्माण की मांग का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गहराई से जुड़ा हुआ है। इसकी नींव 1895 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा “स्वराज विधेयक” के माध्यम से रखी गई। इसके बाद 1916 में होमरूल लीग आन्दोलन के दौरान अंग्रेजों से घरेलू शासन की मांग की गई।

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भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण प्रक्रिया

संविधान सभा का गठन छह दिसंबर 1946 को हुआ था। इसके तहत संविधान निर्माण की समिति बनी, जिसे ड्राफ्ट कमेटी भी कहा जाता है। उसके जिम्मे संविधान के तब तक तैयार संविधान के प्रारूप पर बहस करके उसे 389 सदस्यीय संविधान सभा में प्रस्तुत करना था, जो उसे अंतिम रूप देगी।

इसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया था और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसको अंगीकृत किये जाने के समय, संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं और इसमें लगभग 145,000 शब्द थे, जिससे यह अब तक का अंगीकृत किया जाने वाला सबसे लंबा राष्ट्रीय संविधान बन गया।

प्रारंभिक मांगें और आंदोलनों की शुरुआत

स्वराज विधेयक (1895): भारतीय संविधान के निर्माण की सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 में “स्वराज विधेयक” के माध्यम से की गई।

होमरूल लीग आन्दोलन (1916): इस दौरान अंग्रेजों से घरेलू शासन की मांग की गई।

महात्मा गांधी की मांग (1922): महात्मा गांधी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की प्रबल मांग की और कहा कि जब भारत को स्वतंत्रता मिलेगी, तो भारतीय संविधान भारतीय जनता की इच्छाओं के अनुरूप बनाया जाएगा।

नेहरू रिपोर्ट और विरोध

नेहरू रिपोर्ट (अगस्त 1928): पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में बम्बई में नेहरू रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें ब्रिटिश भारत का पहला लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया, जिसमें मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यकों के अधिकार, अखिल भारतीय संघ और डोमिनियन स्टेट के प्रावधान शामिल थे। मुस्लिम लीग और रियासतों के राजाओं ने इसका प्रबल विरोध किया।

पूर्ण स्वराज्य की मांग और संविधान सभा का प्रस्ताव

कांग्रेस का लाहौर सम्मेलन (1929): जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर सम्मेलन हुआ जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई।

कांग्रेस का फैसलपुर सम्मेलन (1936): इस सम्मेलन में पहली बार चुनी हुई संविधान सभा द्वारा संविधान निर्माण की मांग की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध और क्रिप्स मिशन

क्रिप्स मिशन (मार्च 1942): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद क्रिप्स मिशन भारत भेजा गया जिसने युद्ध के बाद उत्तरदायी शासन की मांग को मानने का वचन दिया। हालांकि, इसने डोमिनियन स्टेट की अवधारणा को बनाए रखा जिसे कांग्रेस, मुस्लिम लीग और गांधीजी ने नामंजूर कर दिया। गांधीजी ने इसे ‘पोस्ट डेटेड चेक’ की संज्ञा दी।

शिमला सम्मेलन और कैबिनेट मिशन

शिमला सम्मेलन (जून 1945): जून 1945 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवल ने शिमला में सर्वदलीय बैठक बुलाई, जो किसी तार्किक नतीजे पर नहीं पहुंची। इसे ‘शिमला सम्मेलन’ या वेवल योजना के नाम से जाना जाता है।

कैबिनेट मिशन (मार्च 1946): कैबिनेट मिशन की अध्यक्षता सर पैथिक लॉरेन्स ने की। इस मिशन ने संविधान सभा के गठन की सिफारिशें कीं। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे – ब्रिटिश भारत से 292, चीफ कमिश्नरी से 4 और देशी रियासतों से 93 सदस्य चुने गए।

कैबिनेट मिशन और संविधान सभा की रचना

मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया। इसकी अध्यक्षता ‘सर पैथिक लॉरेंस’ ने की तथा दो अन्य सदस्य सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलेक्जेंडर थे। इस आयोग द्वारा तत्कालीन समय में शासन का सही निर्धारण करने का प्रयास किया गया। इसकी सिफारिशों के आधार पर संविधान सभा की रचना की गई –

  • संविधान सभा में कुल सदस्य संख्या 389 निर्धारित की गई
    • ब्रिटिश भारत से: 292 सदस्य
    • चीफ कमीशनरी से: 4 सदस्य
    • देशी रियासतों से: 93 सदस्य
  • ब्रिटिश भारत और चीफ कमिश्नरी क्षेत्रों से सदस्यों का निर्वाचन किया गया।
  • प्रत्येक 10 लाख की जनसंख्या पर 1 सदस्य को चुना जाएगा।
  • सदस्यों को तीन भागों में बांटा गया:
    • (1) सामान्य
    • (2) मुस्लिम
    • (3) सिख (पंजाब)

चुनाव और अंतरीम सरकार

चुनाव (जुलाई 1946): कांग्रेस ने 208 सीटें और मुस्लिम लीग ने 73 सीटें जीतीं।

अंतरीम सरकार का गठन (2 सितम्बर 1946): अंतरीम सरकार का गठन हुआ जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू उपाध्यक्ष बने।

संविधान सभा का गठन और कार्य प्रारंभ

जुलाई 1946 में चुनाव सम्पन्न कराए गए, जिसमें कांग्रेस ने 208 सीटें, मुस्लिम लीग ने 73 सीटें और अन्य ने 15 सीटें जीतीं। चार चीफ कमिश्नरी क्षेत्रों में दिल्ली, कुर्ग (कर्नाटक), अजमेर-मेरवाड़ा और ब्रिटिश बलूचिस्तान शामिल थे।

इसी आधार पर अंतरीम सरकार का गठन 1946 में किया गया, जिसमें 2 सितम्बर 1946 से कार्य प्रारम्भ किया। इस सरकार का अध्यक्ष तत्कालीन वायसराय लार्ड वेवल था और उपाध्यक्ष पं. जवाहर लाल नेहरू थे। इस सरकार में नेहरू सहित 14 सदस्य रखे गए।

माउण्टबेटन योजना और विभाजन

माउंटबेटन योजना (3 जून 1947): लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन योजना प्रस्तुत की जिसे ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई 1947 को पारित कर दिया। इसके अनुसार भारत और पाकिस्तान दो डोमिनियन स्टेट बनाए गए।

मार्च 1947 में लॉर्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय बने। इन्होंने 3 जून 1947 को एक योजना प्रस्तुत की जिसे विभाजन/माउण्टबेटन/जून योजना के नाम से जाना जाता है। इसे 18 जुलाई 1947 को ब्रिटेन के राजा ने पास कर दिया। इस योजना के निम्न प्रावधान थे:

  • भारत को दो डोमिनियम स्टेटों में बांटा गया:
    • (1) भारत
    • (2) पाकिस्तान
  • पूर्वी बंगाल, पश्चिमी बंगाल, सिंध, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रदेश तथा असम का सिलहट जिला पाकिस्तान को दे दिया गया।
  • भारत का शासन जब तक संविधान का निर्माण पूर्ण न हो, 1935 के भारत शासन अधिनियम से चलाने का निर्णय लिया गया।
  • संविधान सभा को सम्प्रभुता की स्थिति प्राप्त हो गई।
  • विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया।

संविधान सभा की बैठकें और उद्देश्यों का प्रस्ताव

9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई, जिसमें अस्थायी अध्यक्ष सच्चिदानन्द सिन्हा को बनाया गया। दूसरी बैठक 11 दिसम्बर 1946 को हुई, जिसमें स्थायी अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को बनाया गया। इस बैठक में उपाध्यक्ष एच. सी. मुखर्जी थे और संवैधानिक सलाहकार बी. एन. राव थे।

तीसरी बैठक 13 दिसम्बर 1946 को बुलाई गई, जिसमें नेहरू जी द्वारा ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया गया। संविधान सभा ने 22 जनवरी 1947 को इस प्रस्ताव को अपना लिया। इन्हीं उद्देश्य प्रस्तावों के आधार पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना निर्मित की गई।

पहली बैठक (9 दिसम्बर 1946): संविधान सभा की पहली बैठक हुई जिसमें डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष बनाया गया।

दूसरी बैठक (11 दिसम्बर 1946): डॉ. राजेन्द्र प्रसाद स्थायी अध्यक्ष बने।

तीसरी बैठक (13 दिसम्बर 1946): जवाहरलाल नेहरू ने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया जिसे 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा ने स्वीकार किया। इसी प्रस्ताव के आधार पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना निर्मित की गई।

संविधान सभा द्वारा संविधान निर्माण हेतु गठित समितियां

संविधान सभा द्वारा संविधान निर्माण हेतु कुछ समितियों का गठन किया गया जो निम्न प्रकार थी –

समितिअध्यक्ष
1 संघ शक्त् समितिजवाहर लाल नेहरू
2 संविधान समितिजवाहर लाल नेहरू
3 राज्यों के लिए समितिजवाहर लाल नेहरू
4 राज्यों तथा रियासतों से परामर्श समितिसरदार पटेल
5 मौलिक अधिकार एवं अल्पसंख्यक समितिसरदार पटेल
6 प्रान्तीय संविधान समितिसरदार पटेल
7 मौलिक अधिकारों पर उपसमितीजे. बी. कृपलानी
8 झण्डा समिति अध्यक्षजे. बी. कृपलानी
9 प्रक्रिया नियम समिति(संचालन)राजेद्र प्रसाद
10 सर्वोच्च न्यायलय से संबधित समितिएस. एच. वर्धाचारियर
11 प्रारूप संविधान का परीक्षण करने वाली समितिअल्लादी कृष्णा स्वामी अरयर
12 प्रारूप समिति/ड्राफटिंग/मसौदा समितिडा. भीमराव अम्बेडकर
13 संविधान समीक्षा आयोगएम एन बैक्टाचेलेया

भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रिया

भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रिया एक ऐतिहासिक और जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए और कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों की भागीदारी रही।

प्रारूप समिति और उसके सदस्य

भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 29 अगस्त 1947 को प्रारूप समिति का गठन किया गया। इस समिति के सदस्य थे –

  1. डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
  2. अल्लादी कृष्णा स्वामी अयंगर
  3. एन. गोपाल स्वामी अयंगर
  4. कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुशी
  5. एन. माधवराज (बी. एल. मित्तल के स्थान पर)
  6. टी. टी. कृष्णामाचारी (डी. पी. खेतान के स्थान पर)
  7. मोहम्मद सादुल्ला

संविधान सभा की प्रारंभिक बैठकें

संविधान सभा की पहली बैठक में 207 सदस्यों ने भाग लिया। 15 अगस्त 1947 को भारत विभाजन के बाद संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 324 रह गई। अक्टूबर 1947 में यह संख्या और घटकर 299 रह गई।

महिलाओं की भागीदारी

संविधान सभा में कुल 15 महिलाओं ने भाग लिया और इनमें से 8 महिलाओं ने संविधान पर हस्ताक्षर किए।

संविधान निर्माण की प्रक्रिया

संविधान सभा द्वारा संविधान के कुल तीन वाचन सम्पन्न किए गए। अंतिम वाचन 17 नवम्बर 1949 से 26 नवम्बर 1949 तक हुआ। संविधान सभा की कुल 105 बैठकें और 12 अधिवेशन हुए, जिनमें से 4 अधिवेशन भारत विभाजन से पूर्व सम्पन्न हुए। 7वें अधिवेशन में महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

महत्वपूर्ण निर्णय और कार्यवाही

मई 1949 में भारत ने राष्ट्रमंडल की सदस्यता ग्रहण करना सुनिश्चित किया। भारतीय संविधान सहमति और समायोजन के आधार पर बनाया गया। संविधान सभा ने दो प्रकार से कार्य किया:

  1. जब संविधान निर्माण का कार्य किया जाता तो इसकी अध्यक्षता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद करते।
  2. जब संविधान सभा विधायिका के रूप में कार्य करती तो अध्यक्षता गणेश वासुदेव मावलंकर द्वारा की जाती।

अंतिम बैठक और हस्ताक्षर

संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 नवम्बर 1949 को आयोजित की गई। इस दिन 284 लोगों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू थे। राजस्थान से हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति बलवंत सिंह मेहता थे। राजस्थान से 12 सदस्य भेजे गए थे, जिनमें 11 सदस्य देशी रियासतों से और 1 सदस्य चीफ कमीश्नरी अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र से थे।

संविधान का लागू होना

26 नवम्बर 1949 को संविधान के 15 अनुच्छेद लागू किए गए, जिसमें नागरिकता, अन्तरिम संसद और संक्रमणकालीन उपबंध शामिल थे। संपूर्ण संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। लेकिन लागू करने से पूर्व 24 जनवरी 1950 को अंतिम बैठक बुलाई गई, जिसमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का राष्ट्रपति चुना गया और राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रगान को अपनाया गया।

राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत

राष्ट्रगान: रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित “जन गण मन” पहली बार 1911 के कोलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। इसकी अवधि लगभग 52 सैकण्ड है और यह मूल बांग्ला भाषा में रचित है।

राष्ट्रीय गीत: बंकिम चन्द चटर्जी द्वारा रचित “वन्दे मातरम्” मूलतः संस्कृत भाषा में है और इसे आनन्द मठ से लिया गया है।

इस प्रकार, भारतीय संविधान का निर्माण स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों और विभिन्न राजनीतिक प्रक्रियाओं का परिणाम था। यह संविधान भारतीय जनता की इच्छाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है, जो आज भी हमारे लोकतंत्र का आधार है।

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