भारत-अफ्रीका साझेदारी: व्यापारिक सहयोग की नई ऊंचाइयाँ

भारत और अफ्रीका के बीच संबंध केवल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत दृष्टि से ही नहीं बल्कि आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हाल के वर्षों में भारत ने अफ्रीका के साथ अपनी साझेदारी को नई गति प्रदान की है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि भारत और अफ्रीका को मिलकर 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। इसके लिए विशेष रूप से कृषि, स्वास्थ्य, ऊर्जा, उद्योग और डिजिटल वित्तीय संरचना जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।

यह लेख भारत-अफ्रीका व्यापारिक साझेदारी, संभावित क्षेत्रों, अफ्रीका की आर्थिक-सामाजिक विशेषताओं और भविष्य की संभावनाओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

भारत–अफ्रीका व्यापारिक संबंधों की वर्तमान स्थिति

भारत और अफ्रीका के बीच व्यापारिक संबंध लंबे समय से हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से दोनों क्षेत्रों के बीच समुद्री व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मानव संसाधन का प्रवाह रहा है। वर्तमान समय में यह संबंध एक नई परिभाषा ले चुका है।

  • संतुलित द्विपक्षीय व्यापार: भारत और अफ्रीका का द्विपक्षीय व्यापार लगभग संतुलित है। भारत के निर्यात USD 42.7 बिलियन और आयात USD 40 बिलियन तक पहुँच चुके हैं। यह संतुलन दोनों पक्षों के लिए लाभकारी है।
  • अफ्रीका के आयात में अवसर: उदाहरणस्वरूप, अफ्रीका हर वर्ष लगभग USD 20 बिलियन मूल्य के वाहन आयात करता है, जबकि भारत मात्र USD 2 बिलियन की आपूर्ति करता है। इससे स्पष्ट है कि भारत ऑटोमोबाइल क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर अफ्रीकी बाजार में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है।
  • पूरकता पर ध्यान: भारत और अफ्रीका के बीच प्रतिस्पर्धा की अपेक्षा पूरकता की अधिक संभावनाएँ हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीका के पास खनिज और ऊर्जा संसाधन हैं, वहीं भारत तकनीक, कृषि और फार्मा क्षेत्र में अग्रणी है।

प्रमुख सहयोग के क्षेत्र

भारत-अफ्रीका साझेदारी के विभिन्न क्षेत्र भविष्य में दोनों पक्षों के लिए नई संभावनाएँ खोल सकते हैं।

1. कृषि और खाद्य सुरक्षा

  • तकनीक-संचालित कृषि: भारत कृषि तकनीक, सिंचाई प्रणालियाँ, फसल विविधीकरण और सहकारी मॉडल में अफ्रीका की मदद कर सकता है।
  • संसाधन विनिमय: अफ्रीका भारत को पेट्रोलियम और खनिज प्रदान कर सकता है, वहीं भारत उर्वरक, बीज, कृषि मशीनरी और खाद्य उत्पाद उपलब्ध करा सकता है।
  • फसल सुरक्षा और मूल्य संवर्धन: संयुक्त रूप से प्रसंस्करण उद्योगों का विकास दोनों पक्षों को लाभ पहुंचा सकता है।

2. उद्योग और निर्माण

  • ऑटोमोबाइल क्षेत्र: अफ्रीकी देशों में पैसेंजर व्हीकल, कमर्शियल व्हीकल, दो और तीन पहिया वाहन तथा किफायती इलेक्ट्रिक मोबिलिटी समाधानों की बड़ी मांग है। भारत इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
  • मूल्य संवर्धन: केवल कच्चा माल निर्यात करने की बजाय अफ्रीका भारत की मदद से विनिर्माण उद्योग स्थापित कर सकता है।

3. स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स

  • किफायती जेनेरिक दवाएं: भारत दुनिया के सबसे बड़े जेनेरिक दवा उत्पादकों में से एक है। यह अफ्रीका की स्वास्थ्य प्रणाली को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध करा सकता है।
  • वैक्सीन और मेडिकल उपकरण: COVID-19 महामारी के दौरान भारत ने अफ्रीका को वैक्सीन और दवाएं उपलब्ध कराकर अपनी विश्वसनीयता सिद्ध की।
  • मेडिकल टूरिज्म: भारत में कम लागत पर उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता अफ्रीकी नागरिकों को आकर्षित कर सकती है।

4. नवीकरणीय ऊर्जा और महत्वपूर्ण खनिज

  • सौर और पवन ऊर्जा: अफ्रीका में नवीकरणीय ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं। भारत की विशेषज्ञता इसमें योगदान कर सकती है।
  • खनिज सहयोग: कोबाल्ट और लिथियम जैसे खनिज भारत के ग्रीन ट्रांज़िशन के लिए महत्वपूर्ण हैं। अफ्रीका इस क्षेत्र में भारत का प्राकृतिक साझेदार हो सकता है।

5. डिजिटल और वित्तीय प्रणाली

  • UPI का विस्तार: भारत के UPI मॉडल को अपनाने से अफ्रीका की वित्तीय प्रणाली मजबूत होगी और लेनदेन लागत कम होगी।
  • IT और फिनटेक सेवाएँ: भारत के पास सॉफ्टवेयर, टेलीकॉम और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अग्रणी क्षमता है, जिसे अफ्रीका में लागू किया जा सकता है।

6. मानव संसाधन और ज्ञान साझा करना

  • शिक्षा और कौशल विकास: अफ्रीकी युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए भारत छात्रवृत्तियाँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध करा रहा है।
  • स्टार्टअप और R&D: भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का अनुभव अफ्रीका के उद्यमियों को मदद कर सकता है।
  • भविष्य का कार्यबल: दोनों महाद्वीप मिलकर ऐसा कार्यबल तैयार कर सकते हैं जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान दे।

अफ्रीका: भौगोलिक और जनसंख्या संबंधी विशेषताएँ

भारत-अफ्रीका साझेदारी को समझने के लिए अफ्रीका के भौगोलिक और जनसांख्यिकीय पहलुओं को जानना आवश्यक है।

भौगोलिक स्थिति

  • उत्तर में भूमध्य सागर, उत्तर-पूर्व में लाल सागर, पूर्व में हिंद महासागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर स्थित है।
  • भूमध्य रेखा महाद्वीप को लगभग बराबर हिस्सों में बाँटती है।
  • आठ प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र: सहारा, साहेल, इथियोपियाई उच्चभूमि, सवाना, स्वाहिली कोस्ट, वर्षावन, अफ्रीकी ग्रेट लेक्स और दक्षिणी अफ्रीका।

जनसंख्या

  • अफ्रीका एशिया के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप है।
  • 2034 तक कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या 1 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
  • अगले 35 वर्षों में जनसंख्या लगभग दोगुनी होकर 4 बिलियन तक पहुँच सकती है।
  • 18 वर्ष से कम आयु के लोगों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि होगी।

अर्थव्यवस्था

  • कृषि अफ्रीका की 65–70% श्रम शक्ति को रोजगार देती है और GDP में 30–40% योगदान करती है।
  • खनन और पर्यटन भी अफ्रीकी अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।

जलवायु और प्राकृतिक विविधता

  • अफ्रीका दुनिया का सबसे गर्म महाद्वीप है।
  • जलवायु विविध है: सहारा का शुष्क वातावरण और मध्य अफ्रीका के वर्षावन दोनों ही यहाँ पाए जाते हैं।
  • अफ्रीका का सर्वोच्च बिंदु तंज़ानिया का किलीमानजारो पर्वत है।

भारत-अफ्रीका साझेदारी: चुनौतियाँ और अवसर

चुनौतियाँ

  1. अवसंरचना की कमी: अफ्रीका में कई देशों की परिवहन, ऊर्जा और स्वास्थ्य अवसंरचना अभी विकासशील अवस्था में है।
  2. राजनीतिक अस्थिरता: कुछ क्षेत्रों में संघर्ष और शासन संबंधी चुनौतियाँ व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करती हैं।
  3. चीन की उपस्थिति: अफ्रीका में चीन की भारी निवेश उपस्थिति भारत के लिए प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करती है।

अवसर

  1. जनसंख्या लाभांश: अफ्रीका की युवा आबादी भारत के अनुभव से लाभान्वित हो सकती है।
  2. साझा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: उपनिवेशवाद और स्वतंत्रता आंदोलनों की साझा विरासत दोनों को और करीब ला सकती है।
  3. वैश्विक दक्षिण की साझेदारी: भारत और अफ्रीका मिलकर वैश्विक दक्षिण की आवाज को मजबूत कर सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत-अफ्रीका साझेदारी केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवीय, सांस्कृतिक और रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोनों महाद्वीप मिलकर कृषि, ऊर्जा, स्वास्थ्य, डिजिटल सेवाएँ और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग कर वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी बढ़ा सकते हैं।

भविष्य में यह साझेदारी न केवल आर्थिक प्रगति की नींव बनेगी, बल्कि वैश्विक दक्षिण की सामूहिक शक्ति को भी स्थापित करेगी। यदि दोनों पक्ष पूरकता और परस्पर सहयोग की भावना से आगे बढ़ते हैं, तो 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करना पूरी तरह संभव है।


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