भारत का भौतिक विभाजन | Physical divisions of India

भारत का भौतिक विभाजन – भारत में लगभग सभी तरह के भौगोलिक स्थलाकृति देखने को मिलती हैं। इस भौगोलिक स्थलाकृति का कारण भारत का विशाल विस्तार और तटीय स्थिति है। अर्थात भारत में कही पर अत्यंत ऊँचे ऊँचे पर्वत है, तो कही पर अनंत समुद्र एवं उसके तटीय क्षेत्र हैं, कही पर रेगिस्तान है, तो कही पर समतल मैदान, कही पर पठार हैं, तो कहीं पर द्वीप समूह। भारत के इन्ही भौगोलिक रूप के आधार पर भारत का भौतिक विभाजन किया गया है।

इस प्रकार भौगोलिक रूप से भारत को छह (6) इकाईयों में बांटा जाता है। ये छह (6) भाग हैं – उत्तर का पर्वतीय भाग, उत्तरी मैदान, दक्षिणी पठार, तटीय मैदान, भारत के मरुस्थल व द्वीपीय भाग। इन सभी भौगोलिक इकाईयों की निर्माण प्रक्रिया एवं संरचना अलग-अलग प्रकार की है। प्रत्येक भौतिक विभाजन अपनी विशिष्टता और विशेषताओं से जाना जाता है और यही इसे दूसरों से अलग करता है। 

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भारत का भौतिक विभाजन (Physical divisions of India)

भारत विश्व की इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट पर स्थित है। भारतीय उपमहाद्वीप का निर्माण इसी प्लेट की महाद्वीपीय परत से हुआ है। भू-आकृति की दृष्टि से भारत में काफी विविधता देखने को मिलती है। भारत के सम्पूर्ण स्थलीय क्षेत्रफल के लगभग 11 प्रतिशत भाग पर पर्वत, 18 प्रतिशत भाग पर पहाड़ियां, 28 प्रतिशत भाग पर पठार तथा 43 प्रतिशत भाग पर मैदान विस्तृत हैं। इसके अलावा भारत में अनेकों द्वीपों की श्रृंखला भी है तथा अनंत सागर भी हैं। इस प्रकार भौगोलिक रूप से भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) को निम्नलिखित इकाईयों में बांटा जाता है:-

  1. उत्तर की महान पर्वत शृंखला The Great Mountains Wall of North
  2. महान उत्तरी मैदान The Great Northern Plains
  3. तटीय मैदान The Coastal Plain
  4. प्रायद्वीपीय पठार The Great Indian Peninsular Plateau
  5. भारत के महान मरुस्थल  The Great Indian Desert
  6. द्वीप समूह The Island Groups

1. उत्तर की महान पर्वत शृंखला (The Great Mountains of North)

भारत के उत्तर में विश्व की सबसे ऊंची एवं पूरब से पश्चिम की तरफ फैली हुई पर्वतों की एक विशाल श्रृंखला है। यह पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे बड़ी, नवीन, मोड़दार पर्वतमाला है। इनका निर्माण प्रायद्वीपीय पठारी भाग के उत्तर-पूर्वी दबाव के कारण हुआ हैं।

ये पर्वत माला बहुत ऊँची होने के कारण इनपर हमेशा बर्फ (हिम) जमी रहती है। इसी कारण से इनको हिमालय के नाम से जाना जाता है। हिमालय की पर्वत श्रेणियाँ प्रायद्वीपीय पठार की ओर उत्तल एवं तिब्बत की ओर अवतल होती गई हैं। पश्चिमी भाग से पूर्व की ओर जाने पर हिमालय की चौड़ाई घटती जाती है, परन्तु ऊंचाई बढ़ती जाती है। उत्तर के इन महान पर्वतीय क्षेत्रों का वर्गीकरण दो भागों मे किया गया है-

  1. ट्रांस हिमालय पर्वत
  2. हिमालय पर्वत
  3. पूर्वोत्तर की पहाड़ियाँ/ पूर्वांचल श्रेणी

(I). ट्रांस हिमालय पर्वत (Trans Himalaya Mountains)

ट्रांस हिमालय पर्वत को अन्य नामों जैसे- तिब्बती हिमालय, परा हिमालय अथवा टेथिस हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य हिमालय के समानांतर चलने वाली एक विशाल पर्वत श्रृंखला है, जो तिब्बत के एक बड़े हिस्से के साथ-साथ भारत और भूटान के कुछ हिस्सों को कवर करती है। यह हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है। इस पर्वत श्रंखला का विस्तार पश्चिम में पामीर पर्वत से लेकर 1,600 किमी की दूरी तय करते हुए पूर्व में हेंगडुआन पर्वत तक फैला हुआ है।

ट्रांस हिमालय मुख्य रूप से तिब्बत में स्थित हैं, लेकिन इसके कुछ भाग भारत के लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में भी फैले हुए हैं। भारत में ट्रांस हिमालय का विस्तार लगभग 965 Km तक है।

ट्रांस हिमालय अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए भी जाना जाता है। इस क्षेत्र कई प्राचीन मठ है, जैसे – हेमिस मठ और थिकसे मठ, जो बौद्ध अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं। ट्रांस हिमालय पर्वत श्रृंखला कई छोटी उप-श्रेणियों से मिलकर बनी है, और प्रत्येक श्रेणी की अपनी अलग विशेषताएँ हैं।

ट्रांस हिमालय पर्वत की उप-श्रेणियाँ

  1. काराकोरम श्रेणी (Karakoram Range)
  2. लद्दाख श्रेणी (Laddakh Range)
  3. जास्कर श्रेणी (Zaskar Range)

हिमालय के उत्तर-पश्चिम में, सिंधु नदी के पार, काराकोरम पर्वत श्रृंखलाएँ स्थित हैं। काराकोरम पर्वत श्रृंखला भारत, चीन और पाकिस्तान में फैली हुई है। विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी K 2 (Mount Godwin Austen) काराकोरम रेंज में ही स्थित है। K-2 भारत की सबसे ऊँची चोटी भी है, परन्तु यह हिस्सा पाक अधिकृत काश्मीर (POK) में होने के कारण विवादित है। काराकोरम श्रेणी के दक्षिण की ओर बढ़ने पर लद्दाख और जासकर श्रेणी शुरू होती है।

(II). हिमालय पर्वत श्रेणी

हिमालय पर्वत दुनिया की सबसे नवीनतम वलित (मोड़दार) पर्वतों की एक श्रृंखला है। इसका निर्माण आज से लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले टेथिस सागर में भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के खिसकने और उनके बीच टक्कर के फलस्वरूप अवसादी चट्टानों (Sedimentary Rocks) के ऊपर से निर्मित हुआ था। हिमालय पर्वत एक जटिल भूवैज्ञानिक संरचना है। इसमें समानांतर पर्वत श्रृंखला और गहरी घाटियाँ हैं।

हिमालय पर्वत की ऊंचाई बहुत ज्यादा है और वहा पर तापमान बहुत कम रहता है जिसके कारन इसके ऊपर हमेशा बर्फ (हिम) जमी रहती है इसी कारण से इसका नाम हिमालय (बर्फ का घर) पड़ा। यह क्षेत्र कई बड़े ग्लेशियरों और उच्च ऊंचाई वाली झीलों का घर भी है, इनका निर्माण इसी बर्फ के पिघलने के कारण होता है। ये झील आसपास के क्षेत्रों के लिए पानी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

दक्षिण एशिया में स्थित यह हिमालय पर्वत श्रेणी का विस्तार छह देशों – भारत, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, तिब्बती चीन और अफगानिस्तान में फैला हुआ है, जो लगभग 2,400 किमी की दूरी तय करता है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर तक है। इसकी चौड़ाई पश्चिम से पूर्व की तरफ जाने पर घटती जाती है जबकि ऊंचाई बढती जाती है। पश्चिम में हिमालय की चौड़ाई 500 Kmकिमी तक है जबकि यही चौड़ाई पूर्व में घटकर 150 किमी हो जाती है।

पश्चिमी हिमालय भारतीय राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर में स्थित है। यह उप-श्रेणी अपनी विशाल चोटियों, उच्च ऊंचाई वाले हिल स्टेशन और हिमाच्छादित झीलों के लिए जानी जाती है। पूर्वी हिमालय भूटान और भारतीय राज्यों अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और पश्चिम बंगाल तक में विस्तारित है। इस उप-श्रेणी में हरे-भरे जंगल, समृद्ध जैव विविधता और विविध सांस्कृतिक विरासत पाई जाती है।

हिमालय में विश्व की सबसे ऊँची चोटियाँ पाई जाती है। इसमें विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8,850 मीटर) भी शामिल है, जो नेपाल और तिब्बत की सीमा पर स्थित है। भारत में हिमालय की सबसे ऊँची चोटी कंचनजंघा (8,586 मीटर) है, जो सिक्किम राज्य में स्थित है। भारत में हिमालय की सबसे पश्चिमी चोटी नंगा पर्वत जम्मू कश्मीर में तथा सबसे पूर्वी चोटी नमचाबरवा अरुणाचल प्रदेश में स्थित है।

प्रकार से भारत में हिमालय पर्वत श्रेणी का विस्तार जम्मू कश्मीर के नंगा पर्वत से लेकर अरुणाचल प्रदेश के नमचाबरवा पर्वत तक है। हिमालय पर्वत श्रृंखला तीन समानांतर श्रेणियों से बना है, जो अपनी ऊंचाई के आधार पर भिन्न-भिन्न हैं, जो दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ती हैं।

हिमालय का विभाजन

हिमालय कई छोटी उप-श्रेणियों से बना है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी विशेषता हैं। हिमालय को पारंपरिक रूप से तीन मुख्य समानांतर श्रेणियों में विभाजित है, जो निम्लिखित हैं:-

  • महान हिमालय/वृहद् हिमालय/ हिमाद्री The Greater Himalaya /Himadri
  • मध्य हिमालय/लघु हिमालय/हिमाचल हिमालय The Middle Himalaya / The Lesser Himalaya /Himanchal Himalaya
  • निचला हिमालय /वाह्य हिमालय/शिवालिक श्रेणी /उप हिमालय The Lower Himalaya / The Outer Himalaya /Shivalik Range

वृहद् हिमालय या हिमाद्री | The Greater Himalaya (Himadri)

हिमालय की सबसे उत्तरी श्रेणी को ‘वृहत हिमालय’ या ‘हिमाद्रि’ के नाम से जाना जाता हैं। यह हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है, इसकी औसत ऊँचाई 6000 मी. है। इसी श्रेणी में भारत की सर्वोच्च चोटी ‘कंचनजंघा’ (सिक्किम) तथा नेपाल में विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी ‘ माउन्ट एवरेस्ट’ (8,850 मी.) स्थित है। ग्रेट हिमालय (वृहद् हिमालय) ज़्यादातर बर्फ से ढँका होता है, हिमालय के ज़्यादातर ग्लेशियर इसी भाग में पाए जाते हैं।

यह हिमालय की सबसे उत्तरी और सबसे ऊँची श्रृंखला है। महान हिमालय पर्वत की इस श्रृंखला को बृहद हिमालय या उच्च हिमालय या आंतरिक हिमालय या हिमाद्री पर्वत श्रेणी आदि नामों से भी जाना जाता है। यह हिमालय की सबसे ऊँची एवं नवीनतम पर्वत शृंखला है तथा इसकी औसत ऊंचाई 6,000 मीटर से अधिक है। इसका विस्तार पश्चिम में नंगा पर्वत (गिलगित, लद्दाख) से लेकर पूर्व में नमचाबरावा पर्वत (अरुणाचल प्रदेश) तक एक दीवार के रूप में फैला हुआ है, जो लगभग 2,400 किमी की दूरी तय करता है। महान हिमालय ट्रांस हिमालय से इंडो-संगपो सिवनी जोन (Suture Zone) द्वारा अलग होता है।

हिमालय पर्वत के इस श्रेणी की पहचान गहरी घाटियों, खड़ी ढलानों, कठोर जलवायु, ठंडे तापमान और भारी हिमपात से होती है। ग्रेट हिमालय रेंज में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8,850 मीटर) मौजूद है। इसके साथ ही कंचनजंगा (8,586 मीटर), ल्होत्से (8,516 मीटर) और मकालू (8,485 मीटर) जैसे ऊँची पर्वत चोटियाँ मौजूद हैं।

वृहद् हिमालय तीनो भाग में सबसे ऊँचा है। इस भाग पाए जाने वाले कुछ प्रमुख चोटियों के नाम इस प्रकार हैं :-

  • माउंट एवरेस्ट – चाईना-नेपाल सीमा (ऊँचाई 8,850 मी० अथवा 29,035 फीट)
  • कंचनजंघा – सिक्किम (ऊँचाई 8,586 मी० अथवा 28,169 फीट)
  • मकालू – नेपाल (ऊंचाई 8,463 मी० अथवा 27,766 फीट)
  • धौलागिरि I – नेपाल (ऊंचाई 8,167 मी० अथवा 26,795 फीट)
  • मनसालू – नेपाल (ऊंचाई 8,156 मी० अथवा 26,759 फीट)
  • अन्नपूर्णा I – नेपाल (ऊंचाई 8,091 मी० अथवा 26,545फीट)
  • नंदा देवी – उत्तराखंड (ऊँचाई 7,817 मी० अथवा 25,646 फीट)
  • नामचाबरवा – तिब्बत (ऊंचाई 7,782 मी० अथवा 25,539 फीट)
  • कामेत – उत्तराखंड (ऊँचाई 7,755 मी० अथवा 25,446 फीट)
  • त्रिशूल – उत्तराखंड (ऊँचाई 7,120 मी० अथवा 23,359 फीट)

मध्य हिमालय/लघु हिमालय/हिमाचल हिमालय | The Middle or Lesser Himalaya /Himanchal Himalaya

लघु हिमालय को मध्य हिमालय अथवा हिमाचल श्रेणी के रूप में भी जाना जाता है। यह पहाड़ों की एक श्रृंखला है जो उत्तरी भारत में महान हिमालय के समानांतर चलती है। यह महान हिमालय के दक्षिण में और शिवालिक पहाड़ियों के उत्तर में स्थित है। अर्थात लघु हिमालय महान हिमालय और शिवालिक हिमालय श्रेणियों के बीच का भाग है। समुद्र तल से लगभग 3,000 से 4,000 मीटर की औसत ऊंचाई के साथ लघु हिमालय, महान हिमालय की तुलना में ऊंचाई में अपेक्षाकृत कम है। यह सीमा श्रृंखलाओं और घाटियों की एक श्रृंखला से बनी है जो नदियों और नालों द्वारा अलग की जाती हैं।

लघु हिमालय की कुछ उल्लेखनीय चोटियों में पीर-पंजाल रेंज (जम्मू-कश्मीर), धौलाधार रेंज (हिमाचल प्रदेश), मसूरी एवं नाग टिब्बा रेंज (उत्तराखंड), और महाभारत रेंज (नेपाल) शामिल हैं। पीर-पंजाल पर्वत श्रेणी लघु हिमालय की सबसे लम्बी पर्वत श्रेणी है तथा इस पर 2 प्रमुख दर्रे पीर पंजाल तथा बनिहाल दर्रा स्थित हैं।

लघु हिमालय पर कई स्वास्थ्यवर्धक एवं लोकप्रिय हिल स्टेशन और पर्यटन स्थल भी है, जो दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। भारत के अधिकांश पर्यटन स्थल जैसे शिमला, डलहौजी, मसूरी, रानीखेत, नैनीताल, और दार्जलिंग लघु हिमालय के दक्षिणी ढालों पर स्थित हैं। महान हिमालय व लघु हिमालय के मध्य कश्मीर घाटी, लाहौल-स्पीति घाटी, एवं कुल्लू व कांगड़ा घाटियां मिलती हैं। महान हिमालय लघु हिमालय से मेन सेंट्रल थ्रस्ट (Main Central Thrust – MCT) द्वारा अलग होता है।

लघु हिमालय के ढालों पर कोंणधारी वन तथा छोटे-छोटे घास के मैदान (अल्पाइन चारगाह) पाए जाते हैं। जिन्हें कश्मीर घाटी में मर्ग (जैसे गुलमर्ग, सोनमर्ग) तथा उत्तराखंड में इन्हें पयाल / पयार कहते हैं। मध्यवर्ती भागों में इन्हें दून / दुआर कहा जाता है।

लघु हिमालय वनस्पतियों और जीवों की एक समृद्ध विविधता का घर है, जिसमें ओक, रोडोडेंड्रोन और देवदार के घने जंगल शामिल हैं, साथ ही हिम तेंदुए, काले भालू और कस्तूरी मृग जैसे जानवरों की प्रजातियां भी यहाँ पर मिलती है। यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र भी है, जिसमें सीढ़ीदार खेती के माध्यम से खेती की जाती है। जिससे चावल और गेहूं आदि फसलों की खेती की जाती है। तथा सेब आदि फलों के बाग हैं।

निचला हिमालय /वाह्य हिमालय/शिवालिक श्रेणी /उप हिमालय The Lower or Outer Himalaya (Shivalik Range)

शिवालिक श्रेणी को वाह्य हिमालय या निम्न हिमालय या पाद प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय की सबसे दक्षिणी और सबसे नवीनतम रेंज है। यह हिमालय के निचले भाग (दक्षिणी तलहटी) के समानांतर चलती है। यह सिर्फ पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच विलुप्त है। शिवालिक श्रेणी अपेक्षाकृत कम ऊंचाई वाली रेंज है। इसकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 900 से 1,200 मीटर है। इस रेंज का नाम संस्कृत शब्द “शिवालिक” से आया है जिसका अर्थ है “शिव के बाल”।

इस रेंज की घाटियों एवं पहाड़ियों से कई धाराएँ और नदियाँ प्रवाहित होती हैं जो कि इस रेंज की प्रमुख विशेषता है। लघु हिमालय तथा शिवालिक के मध्य अनेकों प्रमुख घाटियाँ मौजूद हैं, जैसे काठमांडू घाटी तथा इस श्रेणी में पाई जाने वाली घाटियों को दून/ द्वार कहते हैं, जैसे देहरादून और हरिद्वार। लघु हिमालय शिवालिक श्रेणी से Main Boundary Fault द्वारा अलग होता है।

शिवालिक के दक्षिण में स्थित तलहटी एक महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र है। इस क्षेत्र को तराई कहा जाता है। तराई दलदली और वनाच्छादित प्रदेश होता है जो खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है ख़ास तौर से अधिक जल चाहने वाली फसलों के लिए जैसे धान, गन्ना इत्यादि। यहाँ चावल, गेहूं और गन्ना जैसी फसलों का उत्पादन करने वाले सीढ़ीदार खेत मिलते हैं। अच्छी खेती की ही वजह से इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत लोग निवास करते है।

यह क्षेत्र उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों सहित वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता और बाघों, तेंदुओं और हाथियों जैसे जानवरों की प्रजातियों का घर भी है।

शिवालिक रेंज भूवैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि इसमें जीवाश्मों और अन्य भूवैज्ञानिक विशेषताओं का खजाना है जो हिमालय क्षेत्र के इतिहास में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। पूरे क्षेत्र में स्थित कई प्राचीन मंदिरों, तीर्थस्थलों और अन्य धार्मिक स्थलों के साथ इस श्रेणी का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। अपने प्राकृतिक और सांस्कृतिक आकर्षणों के अलावा, शिवालिक रेंज चूना पत्थर, जिप्सम और कोयले जैसे खनिजों का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

(III). पूर्वोत्तर की पहाड़ियाँ/ पूर्वांचल श्रेणी

पूर्वांचल श्रेणी हिमालय का विस्तार है। यह भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। इसमें नागा, पटकाई, बरैल रेंज, मिज़ो और नागा हिल्स जैसी पहाड़ियाँ शामिल हैं। ये पहाड़ियाँ बहुत ऊँची नहीं हैं। इन पहाड़ियों पर भारी वर्षा होती है, जिससे इन पर पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। ये पहाड़ियां घने जंगल से आच्छादित (ढकी) रहती हैं।

2. महान उत्तरी मैदान (The Great Northern Plains)

उत्तर के महान पर्वतीय भाग के दक्षिण में ‘ महान उत्तरी भारतीय मैदान’ पाया जाता है। हिमालय के निर्माण के समय शिवालिक के दक्षिण में एक खाई का निर्माण हो गया था। इस खाई में गंगा और ब्रह्मपुत्र की नदियों द्वारा लाये गए अवसादों के निक्षेपण से भारत के उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ। यह मैदान पश्चिम में सतलज नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक लगभग 2500 किमी. की लंबाई में फैला हुआ है। इसका निर्माण नदियों द्वारा लाये गए जलोढ़ मिट्टी से हुआ है, इसीलिए यह भारत के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र हैं।

इस मैदान की पुरानी जलोढ़ को ‘बांगर’ कहा जाता है, तथा नवीन जलोढ़ को ‘खादर’ कहा जाता है। पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ने पर इस मैदान की चौड़ाई कम होती जाती है। भारत के उत्तरी मैदान को वृहद रूप से निम्नलिखित उप-भागों में बांटा जाता है:-

  • पंजाब का मैदान
  • गंगा का मैदान।
  • ब्रह्मपुत्र का मैदान।

गंगा का मैदान का निर्माण गंगा नदी द्वारा लायी गयी जलोढ़ मिट्टियों से हुआ है। जबकि ब्रह्मपुत्र का मैदान का निर्माण, ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा लाये गए जलोढ़ मिट्टियों से हुआ है। ये दोनों मैदान आपस में एक सकरे भाग द्वारा जुड़े हुए हैं। इनकी मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है।

3. तटीय मैदान (The Coastal Plain)

भारत के समुद्र के किनारे का क्षेत्र तटीय मैदान कहा जाता है। यह दो भागों में विभाजित किया गया है:-

  • पश्चिमी तटीय मैदान।
  • पूर्वी तटीय मैदान।

पश्चिमी तटीय मैदान

पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक व केरल राज्यों के सहारे विस्तृत है। पश्चिमी तटीय मैदान उत्तर में सर्वाधिक चौड़ा है और दक्षिण की ओर जाने पर यह अपेक्षाकृत पतला होता जाता है। महाराष्ट्र के तटीय मैदान को ‘कोंकण तट’ कहा जाता है और केरल के तटीय मैदान को ‘मालाबार तट’ कहा जाता है। पश्चिमी तटीय मैदान में नर्मदा व तापी नदियों के ज्वारनदमुख व केरल की लैगून झीलें पायी जाती हैं।

पूर्वी तटीय मैदान

पूर्वी तटीय मैदान पश्चिमी तट की तुलना में अधिक चौड़ा व समतल है। यह मैदान अनेक बड़ी-बड़ी प्रायद्वीपीय नदियों के डेल्टाओं के द्वारा विच्छेदित हो गया है। उत्तर में यह मैदान गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान से जाकर मिल जाता है। पूर्वी तट के उत्तरी तटीय मैदान को ‘उत्तरी सरकार’ व दक्षिण में तमिलनाडु के सहारे विस्तृत तटीय मैदान को ‘कोरोमंडल तट’ कहा जाता है। कोरोमंडल तट में कृष्णा, कावेरी तथा गोदावरी नदियों के डेल्टा हैं। यह क्षेत्र बहुत ही उपजाऊ है। यह क्षेत्र तीन भागों में बंटा हुआ है-

  • उत्कल का तटीय मैदान- यह उड़ीसा के तट के किनारे का क्षेत्र है। यहाँ चिलका झील स्थित है तथा महानदी के डेल्टा में ज्वारीय वन फैले हुए हैं। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ होने के कारण चावल और जूट की खेती की जाती है।
  • आंध्र या काकिनारा का तटीय मैदान- इसमें कृष्णा और गोदावरी नदियों के डेल्टा स्थित हैं। इस तट पर विशाखापट्टनम, काकिनारा और मसुलिपट्टनम नामक प्रमुख बंदरगाह है।
  • तमिलनाडु या कोरोमांडल का तटीय भाग- इस भाग को मुख्यतः कावेरी नदी उपजाऊबनाती है। चेन्नई, तूतिकोरिन और नागापट्टनम यहाँ के प्रमुख बंदरगाह हैं। यह मन्नार की खड़ी के लिए भी प्रसिद्ध है।

4. प्रायद्वीपीय पठार (The Great Indian Peninsular Plateau)

उत्तर भारतीय मैदान के दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार स्थित है, यह भारत का सर्वाधिक प्राचीन भाग है। भारत का प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोंडवानालैंड का हिस्सा है, जो गोंडवानालैंड के विभाजन के बाद उत्तर की ओर खिसककर अपने वर्तमान स्वरूप में आ गया है। इन पठारों का निर्माण प्राचीन व कठोर आग्नेय चट्टानों से हुआ है।

प्रायद्वीपीय पठार को वृहद रूप से दो मुख्य भागों में बांटा जाता है:

  • मध्य उच्चभूमि
  • दक्कन का पठार

मध्य उच्चभूमि

विंध्य पर्वतों के उत्तर में स्थित प्रायद्वीप के उत्तरी भाग को ‘मध्य उच्चभूमि’ के नाम से जाना जाता है। यह उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वत, उत्तर में गंगा के मैदान से घिरा हुआ है। मध्य उच्चभूमि को भी पश्चिम से पूर्व विभिन्न पठारों में बांटा गया है:

मध्य उच्चभूमि के पश्चिमी भाग को ‘मालवा पठार के नाम से जाना जाता है तथा पूर्वी भाग को ‘छोटानागपुर के पठार’ के नाम से जाना जाता है और इन दोनों के मध्य में ‘बुंदेलखंड’ व ‘बघेलखंड का पठार’ पाया जाता है।

दक्कन का पठार

दक्कन के पठार का विस्तार उत्तर में विंध्य पर्वत से लेकर प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे तक है। यह पश्चिम में ‘पश्चिमी घाट’ और पूर्व में ‘पूर्वी घाट’ से घिरा हुआ है। पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट अधिक सतत व ऊँचा है। पश्चिमी घाट में सहयाद्रि, नीलगिरी, अन्नामलाई व कार्डमम नामक पहाड़ियाँ हैं। पश्चिमी घाट की ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है। भारतीय प्रायद्वीप की सबसे ऊँची चोटी का नाम ‘अन्नामलाई’ है, जिसकी ऊँचाई 2695 मी. है।

दक्कन के पठार का उत्तर-पश्चिमी भाग लावा प्रवाह से बना हुआ है, इसको ‘दक्कन ट्रेप’ कहा जाता हैं। उत्तर की ओर प्रवाहित होने के दौरान प्रायद्वीपीय पठार पर दरारी ज्वालामुखी की क्रिया हुई और दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ। दक्कन ट्रेप लगभग सम्पूर्ण महाराष्ट्र तथा गुजरात, कर्नाटक व मध्य प्रदेश के कुछ भागों में पाया जाता है।

प्रायद्वीपीय पठार की ज्यादातर नदियां, जैसे-गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि पूर्व की ओर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती हैं, लेकिन नर्मदा व तापी जैसी प्रायद्वीपीय नदियां पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में जाकर गिरती हैं। नर्मदा और तापी जैसी पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों को उलटी दिशा में बहने वाली नदियाँ भी कहते हैं।

5. भारत के महान मरुस्थल  (The Great Indian Desert)

भारत के महान मरुस्थल एक विशाल शुष्क क्षेत्र है, जो भारत तथा पाकिस्तान के बीच एक प्राकृतिक सीमा-रेखा का भी निर्माण करता है। इस मरुस्थल का ज्यादातर हिस्सा भारत के राजस्थान राज्य में है, तथा इसके कुछ हिस्से गुजरात के कच्छ के रण, हरियाणा तथा पंजाब में फैले हुए हैं। इनको मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है :-

  • थार मरुस्थल
  • सौराष्ट्र और कच्छ का मरुस्थल

थार मरुस्थल

लगभग 644 किमी. लंबा तथा 360 किमी. चौड़ा  है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आगरा और मथुरा की ओर बढ़ रहा है।

सौराष्ट्र और कच्छ का रण मरुस्थल

यह लगभग 322 किमी. लंबा तथा 161 किमी. चौड़ा है। इसके अंतर्गत आने वाली गिरनार की पहाड़ियों का क्षेत्र ही उपजाऊ है।

6. द्वीप समूह (The Island Groups)

भौगोलिक दृष्टि से भारत के दो महान एवं प्रमुख द्वीप समूह हैं । इनमे से एक बंगाल की खाड़ी में स्थित है, और दूसरा अरब सागर में हैं। बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह का नाम अंडमान और निकोबार द्वीप समूह है। जबकि अरब सागर में स्थित द्वीप समूह का नाम लक्ष्य द्वीप समूह है। इनके अलावा भी भारत के पास अनेको द्वीप समूह है। इन द्वीप समूहों के नाम और उनका विवरण आगे दिया गया है।

  • बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह)
  • अरब सागर के द्वीप समूह (लक्षद्वीप समूह)
  • इन दोनों द्वीप समूहों के अतिरिक्त भी कुछ द्वीप भारत के पास हैं जिन्हें अतिरिक्त द्वीप समूह कहते हैं।

बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह)

बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीपों को सम्मिलित रूप से ‘अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह’ नाम से जाना जाता है। इन द्वीपों का आकार बड़ा होने के साथ-साथ इनकी संख्या भी अधिक हैं। इनमें से कुछ द्वीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रिया से हुई है,जबकि अन्य द्वीपों का निर्माण पर्वतीय चोटियों के सागरीय जल में डूबने से हुआ है। भारत का सबसे दक्षिणी बिंदु, जिसका नाम ‘इन्दिरा प्वाइंट’ है इसी द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप में स्थित है। इंदिरा पॉइंट 2004 में आई सुनामी के कारण डूब गया था।

अरब सागर के द्वीप समूह (लक्षद्वीप समूह)

केरल तट के पश्चिम में अनेकों छोटे-छोटे द्वीप पाये जाते हैं, जिनके नाम लक्‍का दीव, मि‍नीकाय, अमीनदीवी आदि था परन्तु वर्ष 1973 में इन द्वीप समूहों का नाम बदल कर सम्मिलित रूप से ‘लक्षद्वीप’ कर दिया गया। इन द्वीपों की उत्पत्ति स्थानीय आधार पर हुई है और इनमें से अधिकांश प्रवाल द्वीप हैं।

इस द्वीप समूह में, अधिकांश द्वीप घोड़े की नाल के आकार के हैं। यहाँ पर एटोल (मूंगा) पाए जाते हैं। अरब सागर में प्रवाल भित्तियों द्वारा इन द्वीपों का निर्माण हुआ है। लक्षद्वीप पहले 36 प्रमुख द्वीपों का समूह था। परन्तु पराली द्वीप का समुद्र के कटाव के कारण पानी में डूब जाने के कारण वर्तमान में लक्ष्यद्वीप समूह में 35 प्रमुख द्वीप ही है। इनमे से एंड्रोट द्वीप सबसे बड़ा द्वीप है जबकि बिट्रा इस सभी में सबसे छोटा द्वीप है। कुछ स्रोतों के अनुसार मिनिकॉय को सबसे बड़ा द्वीप माना जाता है।


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