भारत का संवैधानिक इतिहास ब्रिटिश शासन के दौरान बने कानूनों और सुधारों से गहराई से जुड़ा हुआ है। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद से, भारत में कई महत्वपूर्ण अधिनियम और सुधार लागू किए गए, जो आगे चलकर भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।
भारत का संवैधानिक इतिहास
भारत का संवैधानिक इतिहास उन कानूनों और नियमों से जुड़ा है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में शासन व्यवस्था संचालित करने के लिए बनाए गए और आगे चलकर भारतीय संविधान निर्माण के काम आए। यह संवैधानिक विकास कहलाता है।
1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट, 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट, और 1858 का अधिनियम जैसे कई कानूनों ने भारत में शासन व्यवस्था की नींव रखी। इन अधिनियमों ने न केवल प्रशासनिक ढांचे को संगठित किया, बल्कि न्यायपालिका और शिक्षा प्रणाली में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाए। 1861 का भारत शासन अधिनियम और 1919 का मोंटेग-चेम्सफोर्ड सुधार कानून जैसे सुधारों ने भारत की विधायी प्रणाली को मजबूत किया और प्रांतीय स्वायत्तता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
1935 का भारत शासन अधिनियम, जो प्रांतीय स्वायत्तता और केंद्र-राज्य संबंधों को परिभाषित करता है, भारतीय संविधान के निर्माण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इन सभी सुधारों और अधिनियमों ने भारत के संवैधानिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे देश को स्वतंत्रता के बाद एक मजबूत और स्थिर संविधान मिला। यह लेख इन प्रमुख अधिनियमों और सुधारों की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, जो भारतीय संविधान के विकास में महत्वपूर्ण रहे हैं।
प्रारंभिक काल
31 दिसम्बर 1600 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के लिए आई। कंपनी धीरे-धीरे यहां के शासक बन बैठे।
1757 के प्लासी के युद्ध के बाद कंपनी को दिवानी और राजस्व अधिकार प्राप्त हो गए। व्यवस्थित शासन की शुरुआत 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट से हुई, जिसमें ब्रिटिश क्राउन का कंपनी पर नियंत्रण लाया गया और केंद्रीय शासन की नींव डाली गई।
प्रमुख अधिनियम और उनके प्रावधान
1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट
- बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स को गवर्नर जनरल बनाया गया।
- मद्रास और बंबई के गवर्नर इसके अधीन रखे गए।
- कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
1784 का पिट्स इंडिया एक्ट
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में से एक सदस्य कम कर दिया गया।
- कंपनी के व्यापारिक और राजनीतिक कार्य अलग-अलग किए गए।
1793 का चार्टर एक्ट
- इसमें शासन ठीक था, इसलिए इसे 20 वर्ष आगे बढ़ा दिया गया।
1813 का चार्टर एक्ट
- ईस्ट इंडिया कंपनी पर शासन का भार अधिक होने के कारण व्यापार का क्षेत्र सभी लोगों के लिए खोल दिया गया।
- भारतीय शिक्षा और साहित्य के पुनरुत्थान हेतु एक लाख रुपये व्यय करने का प्रावधान रखा गया।
1833 का चार्टर अधिनियम
- गवर्नर जनरल को गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया बना दिया गया।
- पहले गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया विलियम बैटिंग बने।
- मैकाले कमीशन की सिफारिशों के आधार पर भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बनाया गया।
1853 का चार्टर अधिनियम
- बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई।
- पी.डब्ल्यू.डी. और सार्वजनिक निर्माण विभाग बनाया गया।
- सिविल सेवकों की खुली भर्ती परीक्षा आयोजित करने का प्रावधान।
1858 का अधिनियम
- 1857 की क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर भारत का शासन सीधे ब्रिटिश ताज के अधीन किया गया।
- गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया को वायसराय की पदवी दी गई।
1861 का भारत शासन अधिनियम
- भारत की राजधानी कलकत्ता में केंद्रीय विधान परिषद बनाई गई।
- बंबई, मद्रास, और कलकत्ता में हाईकोर्ट की स्थापना की गई।
1892 का भारत परिषद अधिनियम
- अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति को प्रारंभ किया गया।
- बजट पर बहस करने का अधिकार दिया गया, लेकिन मत देने का अधिकार नहीं था।
- मुसलमानों को साम्प्रदायिक निर्वाचन क्षेत्र दिए गए।
1919 का भारत शासन अधिनियम
- इसे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार कानून भी कहा गया।
- प्रांतों में द्वैद्य शासन प्रारंभ किया गया।
- भारत में द्विसदनीय विधायिका बनाई गई।
- महिलाओं को सीमित क्षेत्रों में मतदान डालने का अधिकार दिया गया।
1935 का भारत शासन अधिनियम
- इसमें प्रस्तावना का अभाव था।
- प्रांतों में द्वैद्य शासन हटाकर केंद्र में लगाया गया।
- केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया।
- फेडरल सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना का प्रावधान किया गया।
भारत का संवैधानिक विकास विभिन्न अधिनियमों और सुधारों के माध्यम से हुआ, जो ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में लागू किए गए। इन अधिनियमों ने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वर्तमान संविधान में कई प्रावधान इन्हीं अधिनियमों से प्रेरित हैं।
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