भारत के समुद्री क्षेत्र (मारिटाइम सेक्टर) ने हाल के वर्षों में तेज़ी से प्रगति की है। इस दौरान न सिर्फ अवसंरचना विस्तार हुआ है, बल्कि दक्षता, क्षमता और रणनीतिक महत्व में भी भारी सुधार हुआ है। भारत का समुद्री क्षेत्र (Indian Maritime Sector) देश की आर्थिक शक्ति, व्यापारिक संपर्क और वैश्विक पहचान का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। प्राचीन काल से ही भारत समुद्री व्यापार और नौवहन के क्षेत्र में अग्रणी रहा है — सिंधु घाटी सभ्यता के लोटल बंदरगाह से लेकर आधुनिक वधावन और विझिंजम जैसे अत्याधुनिक बंदरगाहों तक, भारत की समुद्री यात्रा निरंतर प्रगति की गाथा रही है।
वर्तमान समय में, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था तीव्र गति से बदल रही है, समुद्री क्षेत्र भारत की विकास यात्रा में नई ऊर्जा का संचार कर रहा है। देश के लगभग 95% व्यापारिक वॉल्यूम और 70% मूल्य समुद्री मार्गों के माध्यम से संचालित होते हैं, जिससे यह क्षेत्र न केवल व्यापारिक दृष्टि से बल्कि रणनीतिक, पर्यावरणीय और रोजगार सृजन के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुंबई में आयोजित “इंडिया मॅरिटाइम वीक 2025” के अवसर पर यह स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया कि पिछले एक दशक में भारत ने समुद्री क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हासिल की हैं। बंदरगाहों की क्षमता लगभग दोगुनी हुई है, जहाजों के टर्नअराउंड टाइम में उल्लेखनीय कमी आई है, और देश के आंतरिक जलमार्गों का नेटवर्क तेजी से विस्तृत हुआ है।
भारत अब केवल एक “पारंपरिक व्यापारिक समुद्री राष्ट्र” नहीं रहा, बल्कि “ब्लू इकोनॉमी” और “ग्रीन शिपिंग” जैसी आधुनिक अवधारणाओं को अपनाते हुए वैश्विक समुद्री परिदृश्य में एक सशक्त और सतत (sustainable) शक्ति के रूप में उभर रहा है। सरकार की नीतिगत पहलों जैसे Maritime India Vision 2030, Sagarmala Programme और Indian Ports Bill 2025 ने इस दिशा में ठोस आधार प्रदान किया है।
फिर भी, इस तीव्र प्रगति के बीच कुछ चुनौतियाँ भी हैं — जैसे अवसंरचनात्मक बाधाएँ, गैर-प्रमुख बंदरगाहों की सीमाएँ, पर्यावरणीय चिंताएँ, और समुद्री शिक्षा में सुधार की आवश्यकता। इन सबके बावजूद, भारत का समुद्री क्षेत्र न केवल देश के आर्थिक विकास की रीढ़ बन रहा है, बल्कि यह “विकसित भारत” के सपने को साकार करने की दिशा में एक प्रमुख प्रेरक शक्ति भी बन चुका है।
यह लेख भारत के समुद्री क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, उपलब्धियों, चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है — ताकि यह समझा जा सके कि आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र भारत की वैश्विक भूमिका को किस प्रकार नया आयाम देने जा रहा है।
भूमिका एवं वर्तमान स्थिति
भारत के समुद्री क्षेत्र की भूमिका अनेक दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- लगभग 95 % व्यापार वॉल्यूम और 70 % मूल्य समुद्री मार्गों के द्वारा संचालित होता है।
- देश की तटरेखा लगभग 7,500 कि.मी. लंबी है, जिसमें प्रमुख तथा उप-पोर्ट दोनों सम्मिलित हैं।
- भारत में 12-13 प्रमुख बंदरगाह हैं और 200+ सूचित लघु एवं मध्यवर्ती बंदरगाह मौजूद हैं।
- समुद्री क्षेत्र सिर्फ माल ढुलाई तक सीमित नहीं है — इसमें बंदरगाह, जहाजरानी, जहाज़ निर्माण, आंतरिक जलमार्ग, ब्लू इकॉनमी आदि अनेक उप-घटक सम्मिलित हैं।
- भारत के “ब्लू इकॉनमी” (समुद्री व तटीय संसाधनों के आधार पर आर्थिक गतिविधियाँ) में भी तेजी आ रही है; यह आधुनिक दृष्टिकोण है जिसमें सिर्फ माल-शिपिंग नहीं बल्कि तटीय पर्यटन, मछली पालन, गहरे समुद्र संसाधन आदि शामिल हैं।
यह स्पष्ट है कि समुद्री क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था व वैश्विक व्यापार मार्ग से उत्तरोत्तर जुड़ रहा है।
पिछले एक दशक में हासिल की गई प्रगति
नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में प्रस्तुत किये गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले दस साल में भारत के समुद्री क्षेत्र ने कई महत्वपूर्ण मापदंडों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। आइए प्रमुख बिंदुओं को क्रमबद्ध तरीके से देखें।
- क्षमता वृद्धि
भारत की बंदरगाह क्षमता लगभग 1,400 MMTPA (मिलियन टन प्रति वर्ष) से बढ़कर लगभग 2,762 MMTPA तक पहुंच चुकी है। यह प्रत्यक्ष रूप से संकेत करता है कि हमने अपने बंदरगाहों में विस्तार किया है, नए टर्मिनल जोड़े हैं तथा बड़े जहाज़ों के लिए गहरा ड्राफ्ट (deep-draft) उपलब्ध कराया है। - दक्षता में सुधार
जहाजों का टर्नअराउंड टाइम (जहाज़ बंदरगाह पर आता है, संचालन होता है तथा बाहर जाता है) लगभग 93 घंटे से घटकर लगभग 48 घंटे रह गया। इससे स्पष्ट होता है कि परिचालन (operations) बेहद कुशल हो गई है। - आंतरिक जलमार्गों का विकास
आंतरिक जलमार्गों (इंडियन इंरनल वाटरवे) पर कार्गो परिवहन में लगभग 700 % से अधिक वृद्धि हुई है। संचालित जलमार्गों की संख्या तीन से बढ़कर 32 हो गई है। यह लॉजिस्टिक नेटवर्क को बहुआयामी (multi-modal) बना रहा है, विशेष रूप से नदी-नालों के माध्यम से। - समुद्री कर्मियों की संख्या में वृद्धि
भारत में प्रशिक्षित समुद्री कर्मियों (seafarers) की संख्या लगभग 25 लाख से बढ़कर अब 3 लाख से अधिक हो गई है, जिससे देश वैश्विक स्तर पर शीर्ष तीन प्रशिक्षित नाविकों के प्रदाताओं में शामिल हो गया है। - वित्तीय परिणामों में सुधार
प्रमुख बंदरगाहों का सालाना शुद्ध अधिशेष लगभग ₹1,026 करोड़ से बढ़कर अब लगभग ₹9,352 करोड़ तक पहुँच गया — यानी लगभग 9 गुना वृद्धि। - निवेश एवं विशेष पैकेज
सरकार द्वारा जहाज़ निर्माण (ship-building) को बढ़ावा देने हेतु ₹69,725 करोड़ का विशेष पैकेज घोषित हुआ है। इसके अतिरिक्त, Maritime India Vision 2030 के तहत 150 से अधिक पहलों को निर्धारित किया गया है, जिनमें अनुमानित निवेश ₹3–3.5 लाख करोड़ है।
इन संकेतकों से यह स्पष्ट है कि न सिर्फ मात्र विस्तार हुआ है बल्कि गुणवत्ता तथा दक्षता में भी इजाफा हुआ है।
रणनीतिक पहलें व प्रमुख परियोजनाएँ
समुद्री क्षेत्र के विस्तार एवं विकास के लिए सरकार ने अनेक रणनीतिक कदम उठाये हैं। इनमें से कुछ प्रमुख परियोजनाएँ इस प्रकार हैं:
- विझिंजम पोर्ट : भारत का पहला डिप-वॉटर (deep-water) इंटरनेशनल ट्रांस-शिपमेंट हब बनने की दिशा में विकसित हो रहा यह बंदरगाह देश की समुद्री रणनीति में मील का पत्थर है।
- वधावन पोर्ट (लगभग ₹76,000 करोड़ निवेश) : यह परियोजना दुनिया के चुनिंदा गहरे ड्राफ्ट बंदरगाहों में से एक बनेगी।
- कानून-विषयक सुधार: पिछले सौ साल पुराने औपनिवेशिक नौवहन कानूनों जैसे Indian Ports Act, 1908 को बदलते हुए आधुनिक एवं भविष्य-उन्मुख कानूनों जैसे Indian Ports Bill, 2025 लाया गया है — जिससे व्यापार एवं संचालन को सरल बनाने की दिशा में कदम उठाए गए हैं।
- लॉजिस्टिक एवं कनेक्टिविटी सुधार: बंदरगाहों के बेहतर रेल-रोड कनेक्शन, इंटरमॉडल लिङ्केज तथा आंतरिक जलमार्गों के विकास को प्राथमिकता दी गई है।
- समुद्री शिक्षा, प्रशिक्षण एवं कौशल विकास में निवेश: समुद्री कर्मियों की संख्या तथा गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से पहल की गई है।
इन पहलों से यह स्पष्ट हो रहा है कि भारत की समुद्री दृष्टि सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है बल्कि एक व्यापक, समन्वित योजना के तहत आगे बढ़ रही है।
ब्लू इकॉनमी और हरित शिपिंग
समुद्री क्षेत्र सिर्फ माल-शिपिंग या बंदरगाह तक ही सीमित नहीं है। आज यह “ब्लू इकॉनमी” का भी हिस्सा बन गया है — जिसका अर्थ है समुद्री एवं तटीय संसाधनों का सतत उपयोग।
- भारत में ब्लू इकॉनमी का योगदान जीडीपी में करीब 4 % है।
- सरकार ने “ग्रीन शिपिंग” (Green Shipping) को प्राथमिकता दी है — यानी कम कार्बन उत्सर्जन वाले पोत, हरित ऊर्जा-आधारित बंदरगाह, तथा जलमार्गों में स्वच्छ व पर्यावरण-अनुकूल संचालन। उदाहरण के लिए, आंतरिक जलमार्गों तथा तटीय शिपिंग में रिन्यूएबल ऊर्जा की ओर परिवर्तन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- इस क्षेत्र में टिकाऊ मछली पालन, समुद्री पर्यटन, गहरे समुद्र संसाधन का अन्वेषण आदि भी शामिल हैं।
इस तरह, भारत का समुद्री क्षेत्र अब केवल पारंपरिक व्यापार मार्ग नहीं बल्कि एक समृद्ध, पर्यावरण-सक्षम और विविध आर्थिक कार्यक्षेत्र बनता जा रहा है।
प्रमुख उपलब्धियाँ — संक्षिप्त रूप में
- बंदरगाह क्षमता में लगातार वृद्धि।
- जहाज़ों के टर्नअराउंड समय में बड़ी कमी।
- आंतरिक जलमार्गों एवं मल्टीमॉडल नेटवर्क में उल्लेखनीय उछाल।
- प्रशिक्षित समुद्री कर्मियों की संख्या में प्रभावशाली वृद्धि।
- वित्तीय रूप से बंदरगाहों का प्रदर्शन नाभिकीय रूप से बेहतर हुआ।
- निवेश व कार्यान्वयन की रणनीतियों में स्पष्टता और गति आई है।
यह उपलब्धियाँ हमारे सामने यह संकेत करती हैं कि भारत न सिर्फ मौजूदा स्थिति सुधार रहा है बल्कि विदेशों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति हासिल कर रहा है। उदाहरण के लिए, एक लेख के अनुसार भारत अब वैश्विक नाविकों के प्रमुख स्रोतों में से एक बन चुका है।
अब भी मौजूद चुनौतियाँ
हालाँकि प्रगति उत्साहवर्धक है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ आज भी बनी हुई हैं — जिनका समाधान करने के लिए निरंतर प्रयास जारी हैं। प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
- विभक्त शासन और पुराने कानून
- क्षेत्र आज भी बहुत हद तक पुराने कानूनों (जैसे Indian Ports Act, 1908) के अधीन संचालित हो रहा था। नए कानूनों जैसे Indian Ports Bill, 2025 आने की प्रक्रिया में हैं, लेकिन केंद्रीकरण व संघ-राज्य समन्वय की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- प्राधिकरणों के बीच समन्वय तथा नियामकीय सहजता में सुधार की आवश्यकता है।
- गैर-प्रमुख बंदरगाहों का कमजोर प्रदर्शन
- लघु एवं मध्यवर्ती बंदरगाहों में अवसंरचना, प्रशिक्षित जनशक्ति, कनेक्टिविटी आदि की कमी है।
- इनके पास संचालन क्षमता तो है, लेकिन वास्तविक उपयोग और दक्षता में पिछड़ापन है।
- अवसंरचना एवं लॉजिस्टिक्स बाधाएँ
- भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण स्वीकृति, विभागीय समन्वय की कमी से कई परियोजनाएँ समय पर नहीं चल पाईं।
- आंतरिक जलमार्गों (inland waterways) का विकास अपेक्षा के मुताबिक गति नहीं ले पाया है; उनकी दक्षता तथा उपयोगिता अब भी सीमित है।
- पर्यावरण और सततता से जुड़ी चिंताएँ
- ग्रीन टेक्नोलॉजी, कचरा प्रबंधन, उत्सर्जन नियंत्रण आदि को सर्वाधिक बंदरगाहों और शिपिंग कंपनियों द्वारा समान रूप से अपनाया नहीं गया है।
- ग्रीन हाइड्रोजन हब जैसे बड़े प्लेटफार्म अभी भी अपेक्षाकृत आरंभिक चरण में हैं।
- घरेलू शिपिंग क्षमता की कमी
- भारत की जहाज़-फ्लीट आकार में छोटी है, जिससे विदेशी जहाज़ों पर हमारा निर्भरता बनी हुई है।
- जहाज़ निर्माण (ship-building) को बढ़ावा तो दिया गया है, लेकिन टेक्नोलॉजी, लागत प्रतिस्पर्धा तथा विश्व-स्तरीय गुणवत्ता में अभी और सुधार की आवश्यकता है।
- कौशल अंतर व समुद्री शिक्षा की कमजोरी
- नौवहन संचालन, मरीन इंजीनियरिंग, पोर्ट लॉजिस्टिक्स में प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी है।
- प्रशिक्षण संस्थानों को आधुनिक उपकरण, पाठ्यक्रम एवं अन्तरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बनाना अभी एक चुनौती है।
- सुरक्षा व रणनीतिक चुनौतियाँ
- तटीय सुरक्षा, समुद्री डकैती, अवैध मछली पकड़ने, क्षेत्रीय तनाव आदि महासागरीय जोखिम बने हैं।
- तटीय राज्यों व केंद्र सरकार एजेंसियों के बीच समन्वय अभी वन-हाथ नहीं हो पाया है।
इन चुनौतियाँ यह संकेत करती हैं कि भले ही हमने गति पकड़ी है, पर समग्र एवं सतत सुधार के लिए अनेक द्वार अभी खुले हैं।
अगले दशक के अवसर व दिशा
समुद्री क्षेत्र की गति को ध्यान में रखते हुए अगला दशक अवसरों से भरा हुआ है — सरकार, निवेशक एवं उद्योग सभी इसे एक सुनहरे अवसर के रूप में देख रहे हैं। कुछ प्रमुख दिशाएँ निम्नलिखित हैं:
- Maritime India Vision 2030 के माध्यम से 150+ पहलों व बड़े निवेश (₹3-3.5 लाख करोड़) की योजना है, जिससे यह क्षेत्र एक स्वरूप ले सकता है।
- गहरे-ड्राफ्ट बंदरगाहों, ट्रांस-शिपमेंट हब, कंटेनर टर्मिनल्स एवं मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स नोड्स में निवेश का बड़ा अवसर है।
- देश में “ग्रीन शिपिंग”, हरित पोर्ट्स और ब्लू इकॉनमी की गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा — ऐसे क्षेत्र जो भविष्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।
- हेलमेट: आंतरिक जलमार्गों का समुचित विकास, कोस्टल शिपिंग को बढ़ावा देना तथा लॉजिस्टिक लागत को कम करना प्रमुख लक्ष्य होंगे।
- जहाज़ निर्माण व मरम्मत (ship-building & ship-repair) में भारत को एक ग्लोबल खिलाड़ी बनने का अवसर है — labour-intensive होने के कारण भारत को लागत व कौशल दोनों में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल सकती है।
- निवेश हेतु विदेशों से और निजी क्षेत्र से भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा — उदाहरण के लिए, बंदरगाह विकास में एफडीआई (100 % तक) की अनुमति दी गई है।
इस तरह, आगे का दशक भारत के लिए न सिर्फ विस्तार का बल्कि रूपांतरण (transformation) का भी अवसर है, जिसमें हम शिपिंग, ब्लू इकॉनमी, ग्रीन तकनोलॉजी एवं वैश्विक कनेक्टिविटी का समन्वित मॉडल विकसित कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत का समुद्री क्षेत्र आज तेजी से बदल रहा है। पिछले एक दशक में बंदरगाह क्षमता, दक्षता, आंतरिक जलमार्ग, निवेश तथा मानव संसाधन सभी में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है — आगे आने वाले समय में चुनौतियों को संबोधित कर, सही रणनीति व निवेश के माध्यम से यह क्षेत्र भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है।
यह सुनिश्चित करना होगा कि इस विकास का लाभ समग्र रूप से हो, अर्थात् न सिर्फ कुछ बड़े बंदरगाहों पर बल्कि देश के तटीय राज्यों, लघु-पोर्ट्स, सुदूर इलाकों में बसे लोगों तथा पर्यावरण-सुधार की दिशा में भी पहुंच हो। तभी यह “ब्लू इकॉनमी” वास्तविक अर्थ में सफल होगी।
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