भारत में चुनाव सुधार | प्रमुख सुधार और भविष्य की राह

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां चुनाव प्रक्रिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाए रखने के लिए लगातार सुधार होते रहे हैं। चुनाव आयोग (ECI) के नेतृत्व में भारतीय चुनाव प्रणाली ने समय-समय पर महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे हैं, जिससे चुनाव प्रक्रिया को मजबूत और विश्वसनीय बनाया गया है। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर और समान मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) संख्या के मामलों ने चुनाव सुधार की आवश्यकता को पुनः रेखांकित किया है। इन मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को आमंत्रित कर चुनावी प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और मजबूत बनाने की पहल की है।

Table of Contents

चुनाव प्रणाली के प्रमुख कानूनी प्रावधान

भारतीय चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाए रखने के लिए संविधान और विभिन्न विधिक प्रावधानों के तहत कई अधिकार और व्यवस्थाएं दी गई हैं।

1. अनुच्छेद 324 | भारत निर्वाचन आयोग की शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India – ECI) को देश में चुनावों की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार दिया गया है। इसमें संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के चुनावों के संचालन से संबंधित सभी प्रक्रियाएं शामिल हैं। आयोग को यह शक्ति दी गई है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठा सके।

2. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950

1950 का जनप्रतिनिधित्व अधिनियम चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति और मतदाता सूचियों के रखरखाव से संबंधित है। इस अधिनियम के तहत मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी और मतदाता पंजीकरण अधिकारियों की नियुक्ति होती है। यह अधिनियम निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची तैयार करने, नाम जोड़ने, हटाने और सुधार करने की प्रक्रिया को भी स्पष्ट करता है।

3. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

1951 का जनप्रतिनिधित्व अधिनियम चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को नियंत्रित करता है। इसमें चुनावी अधिसूचना जारी करना, नामांकन दाखिल करना, मतगणना और चुनाव परिणाम घोषित करने की प्रक्रिया शामिल है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए 1960 के मतदाता पंजीकरण नियम लागू किए गए, जो मतदाता सूची में नाम जोड़ने, हटाने या संशोधन करने की प्रक्रियाओं को विनियमित करते हैं।

भारत में चुनाव सुधार | ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और प्रमुख पहलें

भारतीय चुनाव प्रणाली में समय-समय पर कई महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, जिन्होंने लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन सुधारों को दो प्रमुख चरणों में बांटा जा सकता है – 1996 से पहले और 1996 के बाद।

1996 से पहले | चुनाव सुधार की शुरुआत

1. आदर्श आचार संहिता (1969)

चुनाव प्रक्रिया को स्वच्छ और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए 1969 में आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू की गई। इसका उद्देश्य धनबल, जातिवाद, सांप्रदायिकता और भ्रष्ट आचरण पर रोक लगाना था। आचार संहिता चुनाव प्रक्रिया के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है, जिससे चुनावी माहौल निष्पक्ष और शांतिपूर्ण बना रहे।

2. दल-बदल विरोधी कानून (1985)

राजनीतिक अस्थिरता और दल-बदल की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए 52वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 के तहत दसवीं अनुसूची (Anti-Defection Law) को जोड़ा गया। इससे निर्वाचित प्रतिनिधियों के दल-बदल पर रोक लगाई गई और राजनीतिक स्थिरता को मजबूत किया गया।

3. मतदान आयु में संशोधन (1988)

61वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 के तहत मतदान की न्यूनतम आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया। इसका उद्देश्य युवाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देना था, जिससे वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बन सकें।

4. स्थानीय शासन को सशक्त बनाना (1992)

73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत ग्राम पंचायतों और 74वें संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया। इससे स्थानीय स्तर पर प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था लागू हुई और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को मजबूती मिली।

5. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रयोग (1989)

चुनावी प्रक्रिया को तेज़, सुरक्षित और पारदर्शी बनाने के लिए 1989 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रयोग शुरू किया गया। समय के साथ, EVM में मतदाता सत्यापन पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) की सुविधा जोड़ी गई, जिससे मतदाता अपने डाले गए वोट की पुष्टि कर सकते हैं।

6. मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) की शुरुआत (1993)

फर्जी मतदान को रोकने और मतदाता सूची को प्रमाणिक बनाने के लिए 1993 में मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) जारी करने की प्रक्रिया शुरू की गई। इससे मतदाता की पहचान सुनिश्चित करने और फर्जी मतदान की संभावना को कम करने में मदद मिली।

1996 के बाद | चुनाव सुधार की नई दिशा

1. सेवा मतदाताओं के लिए प्रॉक्सी वोटिंग (2003)

सशस्त्र बलों और सेना अधिनियम के तहत आने वाले मतदाताओं को 2003 में प्रॉक्सी वोटिंग की सुविधा दी गई। इससे वे दूर रहकर भी अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।

2. टीवी और रेडियो पर प्रचार का समान समय (2003)

सभी राजनीतिक दलों को टीवी और रेडियो पर प्रचार के लिए समान समय आवंटित करने की व्यवस्था लागू की गई, जिससे चुनाव प्रचार में निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।

3. प्रवासी भारतीयों को मतदान अधिकार (2010)

2010 में पहली बार विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों (NRI) को मतदान करने का अधिकार दिया गया। इससे प्रवासी भारतीयों की राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित हुई और वे भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बन सके।

4. “कोई नहीं” (NOTA) का विकल्प (2013)

2013 में “None of the Above” (NOTA) विकल्प पेश किया गया, जिससे मतदाताओं को यह अधिकार मिला कि यदि वे किसी भी उम्मीदवार को योग्य नहीं समझते, तो सभी को अस्वीकार कर सकते हैं। इससे मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया में अधिक स्वतंत्रता मिली।

5. इंटरनेट के माध्यम से मतदाता सूची में नामांकन

मतदाताओं की सुविधा के लिए इंटरनेट के माध्यम से मतदाता सूची में नाम दर्ज करने, नाम हटाने और संशोधन की प्रक्रिया शुरू की गई। इससे पंजीकरण प्रक्रिया अधिक आसान और तेज हो गई।

6. चुनावी बॉन्ड (2017) का प्रावधान

राजनीतिक दलों को चंदा देने की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए 2017 में चुनावी बॉन्ड की शुरुआत की गई, लेकिन 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया।

7. “एक राष्ट्र, एक चुनाव” (One Nation, One Election)

2024 में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा प्रस्तावित की गई। इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों पर खर्च कम हो और प्रशासनिक गतिविधियों में व्यवधान न आए।

8. घर से मतदान (Home Voting) की सुविधा (2024)

जो मतदाता शारीरिक रूप से मतदान केंद्र नहीं जा सकते, उनके लिए घर से मतदान (Home Voting) की सुविधा 2024 में प्रदान की गई। इससे वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगजनों को मतदान प्रक्रिया में अधिक सुविधा मिली।

चुनाव सुधार की आवश्यकता | समसामयिक चुनौतियां

हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर और एक ही मतदाता के लिए अलग-अलग राज्यों में समान मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) संख्या के मामले सामने आए हैं। ये घटनाएं चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती हैं और मतदाता सूची को अधिक सटीक और अद्यतन करने की आवश्यकता पर जोर देती हैं।

1. मतदाता सूची में सुधार

मतदाता सूची को त्रुटि मुक्त और अद्यतन रखना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए डिजिटल तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग किया जा सकता है।

2. ई-वोटिंग की संभावना

प्रवासी भारतीयों और असमर्थ मतदाताओं के लिए ई-वोटिंग की सुविधा प्रदान की जा सकती है, जिससे मतदान प्रक्रिया को और अधिक समावेशी बनाया जा सके।

3. पारदर्शी वित्त पोषण

राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कड़े नियम लागू किए जाने चाहिए। चुनावी बॉन्ड के स्थान पर बेहतर वैकल्पिक प्रणाली विकसित की जा सकती है।

भविष्य की दिशा | चुनाव सुधार की संभावनाएं

भारत की चुनाव प्रणाली को और अधिक मजबूत और निष्पक्ष बनाने के लिए कुछ प्रमुख कदम उठाए जा सकते हैं:

  • डिजिटल मतदाता सूची का सत्यापन: मतदाता सूची को त्रुटि मुक्त रखने के लिए नियमित डिजिटल सत्यापन प्रक्रिया लागू की जानी चाहिए।
  • ऑनलाइन मतदान: प्रवासी भारतीयों और व्यस्त मतदाताओं के लिए सुरक्षित ऑनलाइन मतदान की सुविधा प्रदान की जा सकती है।
  • चुनावी खर्च की सीमा: चुनावी खर्च की अधिकतम सीमा को सख्ती से लागू करने और उसकी निगरानी के लिए सख्त तंत्र विकसित करना चाहिए।

भारत की चुनावी प्रणाली में प्रमुख चुनौतियाँ

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां चुनावी प्रक्रिया का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक देश की आधारशिला होते हैं, लेकिन भारत की चुनावी प्रणाली कई चुनौतियों का सामना कर रही है।

1. राजनीति का अपराधीकरण

भारत की चुनावी प्रणाली में सबसे बड़ी चुनौती राजनीति का अपराधीकरण है। अनेक निर्वाचित प्रतिनिधियों पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, जिससे राजनीतिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, संसद और विधानसभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जिन पर आपराधिक मामले लंबित हैं। इससे लोकतंत्र की शुचिता प्रभावित होती है और मतदाताओं के समक्ष नैतिक रूप से कमजोर विकल्प प्रस्तुत होते हैं।

2. सीमांकन (Delimitation) की समस्या

जनसंख्या में बदलाव के कारण संसदीय और विधानसभा सीटों के सीमांकन को लेकर विवाद उठते रहे हैं। यह विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि वे जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि अधिक रही है। यदि संसदीय सीटों का पुनः सीमांकन किया जाता है, तो यह राजनीतिक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है।

3. चुनावी प्रचार में अनैतिक आचरण

चुनावी अभियानों के दौरान जातिगत, सांप्रदायिक और विभाजनकारी भाषणों का उपयोग अक्सर किया जाता है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को क्षति पहुंचती है। फर्जी खबरों, मिथ्या दावों और व्यक्तिगत हमलों का बढ़ता प्रचलन चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को प्रभावित करता है। यह न केवल जनता को भटकाने का कार्य करता है, बल्कि मतदाता के निर्णय को भी प्रभावित करता है।

4. डुप्लिकेट EPIC नंबर की समस्या

कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा और पंजाब में मतदाताओं को एक जैसे EPIC (Electoral Photo Identity Card) नंबर मिलने की शिकायतें सामने आई हैं। चुनाव आयोग इस मुद्दे को हल करने के लिए डिजिटल मतदाता सूची प्रबंधन प्रणाली (ERONET) को और अधिक सुदृढ़ करने पर कार्य कर रहा है।

5. चुनावों में धनबल का प्रभाव

भारतीय चुनावों में धनबल का बढ़ता प्रभाव एक गंभीर समस्या बन चुका है। चुनावी अभियानों में बेहिसाब धन का प्रयोग, पारदर्शिता की कमी और राजनीतिक चंदे का स्रोत अज्ञात रहना, लोकतांत्रिक व्यवस्था की निष्पक्षता को बाधित करता है। राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के लिए निर्धारित व्यय सीमा के सख्त क्रियान्वयन, चुनावी बॉन्ड प्रणाली में सुधार और पारदर्शी फंडिंग व्यवस्था की आवश्यकता है।

6. EVM से जुड़ी चिंताएँ

चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और मतदाता सत्यापन पत्रक ऑडिट ट्रेल (VVPAT) का उपयोग मतदान प्रक्रिया को सरल और तेज़ बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन समय-समय पर इनकी सुरक्षा और निष्पक्षता को लेकर संदेह व्यक्त किया जाता रहा है।

7. प्रथम-आगमन-प्रथम-जीत (FPTP) प्रणाली की सीमाएँ

भारत में पहले-पहले आने वाला विजेता (FPTP) प्रणाली लागू है, जहां सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, भले ही उसे कुल मतों का 50% से भी कम समर्थन प्राप्त हो। यह व्यवस्था कई बार असंतुलित प्रतिनिधित्व को जन्म देती है, जहां 30-40% मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार पूरे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।

चुनावी सुधार से जुड़ी महत्वपूर्ण सिफारिशें

1. वोहरा समिति (1993)

इस समिति ने अपराधियों, राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच गठजोड़ की जांच की सिफारिश की थी। साथ ही, इस गठजोड़ को खत्म करने के लिए एक नोडल एजेंसी गठित करने का सुझाव दिया गया था।

2. चुनाव आयोग (ECI) की सिफारिशें

चुनाव आयोग (ECI) ने यह सिफारिश की थी कि जिन मामलों में पाँच साल से अधिक की सजा का प्रावधान है, उनमें आरोप तय होते ही संबंधित व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाए।

3. विधि आयोग (244वीं रिपोर्ट, 2014)

इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि आरोप तय होने पर उम्मीदवार की अयोग्यता होनी चाहिए। इसके अलावा, झूठे हलफनामे पर दो साल की न्यूनतम सजा और अयोग्यता की भी सिफारिश की गई।

4. द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC)

इस आयोग ने अवैध धन पर रोक लगाने के लिए आंशिक राज्य वित्त पोषण का समर्थन किया, ताकि चुनावों में धनबल की भूमिका को कम किया जा सके।

5. दिनेश गोस्वामी समिति (1990)

इस समिति ने चुनावी खर्च को नियंत्रित करने, मतदाता पहचान पत्र की अनिवार्यता लागू करने और राजनीतिक वित्त पोषण को पारदर्शी बनाने के सुझाव दिए।

6. इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998)

इस समिति ने चुनावों के लिए राज्य वित्त पोषण की सिफारिश की थी, ताकि उम्मीदवारों को आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण चुनावी दौड़ से बाहर न होना पड़े।

7. रामनाथ कोविंद पैनल

इस पैनल ने चुनावी सुधारों के लिए 15 संशोधनों की सिफारिश की थी, जिसमें अनुच्छेद 82A और अनुच्छेद 327 में संशोधन शामिल हैं।

8. टी.एस. कृष्णमूर्ति समिति

इस समिति ने चुनावी धन के लिए ‘राष्ट्रीय चुनाव निधि’ (National Election Fund) बनाने का सुझाव दिया, ताकि राजनीतिक दलों को पारदर्शी ढंग से धन प्राप्त हो सके।

आवश्यक चुनावी सुधार और संभावित उपाय

भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर निर्भर करती है। हालांकि, वर्तमान चुनावी प्रणाली कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जिनमें धनबल, बाहुबल, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की भागीदारी, पारदर्शिता की कमी और तकनीकी खामियां शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई सुधारों को अपनाने की आवश्यकता है।

1. ईवीएम और वीवीपैट से जुड़ी पारदर्शिता

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और मतदाता सत्यापन पत्रक ऑडिट ट्रेल (VVPAT) के उपयोग को अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाने के लिए सुधार आवश्यक हैं।

  • प्रत्येक राज्य को बड़े क्षेत्रों में विभाजित करके वैज्ञानिक आधार पर वीवीपैट पर्चियों और ईवीएम गणना के मिलान का नमूना आकार तय किया जाना चाहिए।
  • यदि किसी भी क्षेत्र में एक भी गलती पाई जाती है, तो संपूर्ण क्षेत्र की वीवीपैट पर्चियों की गिनती अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए।
  • ईवीएम को बाहरी नेटवर्क से पूर्णतः अलग रखा जाए और स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञों से नियमित रूप से इसका ऑडिट कराया जाए।
  • मतदाता को उसकी वीवीपैट पर्ची को देखने का पर्याप्त समय दिया जाए ताकि वह अपनी पसंद की पुष्टि कर सके।

2. मतदाता पहचान और फर्जी मतदाताओं की समस्या

मतदाता सूची में अनियमितताओं और फर्जी मतदान को रोकने के लिए मजबूत तंत्र विकसित करने की जरूरत है।

  • मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखने के लिए डुप्लिकेट EPIC (Electoral Photo Identity Card) को हटाने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
  • EPIC को आधार (Aadhaar) से जोड़ने का प्रस्ताव विचाराधीन है, लेकिन इसे लागू करने से पहले गोपनीयता और डेटा सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का समाधान किया जाना चाहिए।
  • चुनाव आयोग को राज्य और केंद्र स्तर पर डिजिटल निगरानी प्रणाली लागू करनी चाहिए, जिससे फर्जी मतदान की घटनाओं को रोका जा सके।

3. चुनावी प्रचार और वित्तीय पारदर्शिता

चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता बनाए रखने और धनबल के दुरुपयोग को रोकने के लिए पारदर्शी वित्तीय प्रणाली आवश्यक है।

  • चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC) के गंभीर उल्लंघन की स्थिति में किसी भी नेता के ‘स्टार प्रचारक’ (Star Campaigner) का दर्जा रद्द कर सके।
  • इससे संबंधित पार्टी को प्रचार व्यय में मिलने वाली छूट समाप्त हो जाएगी, जिससे MCC के पालन को मजबूती मिलेगी।
  • चुनाव आयोग को ‘चुनाव चिह्न आदेश’ (Symbols Order) के पैरा 16A के प्रावधान को सख्ती से लागू करना चाहिए ताकि राजनीतिक दल MCC का सही तरीके से पालन करें।
  • राजनीतिक दलों की फंडिंग को पारदर्शी बनाने के लिए ‘चुनावी बॉन्ड’ (Electoral Bonds) प्रणाली की समीक्षा की जानी चाहिए और राजनीतिक दलों को दान की जाने वाली धनराशि के स्रोत को सार्वजनिक करने की बाध्यता होनी चाहिए।

4. आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की पारदर्शिता

भारतीय राजनीति में अपराधीकरण की समस्या गंभीर है, जिसके समाधान के लिए कड़े चुनावी सुधार आवश्यक हैं।

  • चुनावों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन को हतोत्साहित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए।
  • प्रत्येक उम्मीदवार को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव से कम से कम तीन बार बड़े समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित करनी चाहिए।
  • गंभीर आपराधिक मामलों में आरोप तय होते ही उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए।
  • राजनीतिक दलों के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वे चुनावी टिकट देते समय साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दें।

5. चुनावी खर्च की सीमा और काले धन पर नियंत्रण

चुनावों में बढ़ते खर्च और काले धन के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियमों की आवश्यकता है।

  • प्रत्याशियों द्वारा किए जाने वाले चुनावी खर्च की सीमा की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी का गठन किया जाना चाहिए।
  • राजनीतिक दलों को अपने सभी वित्तीय लेनदेन की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
  • नकद चंदे की सीमा तय की जानी चाहिए और डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • चुनावी बॉन्ड प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए दानकर्ताओं की जानकारी सार्वजनिक करने पर विचार किया जाना चाहिए।

6. निर्वाचन आयोग को अधिक अधिकार देना

भारत के चुनाव आयोग को अधिक अधिकार देकर उसे स्वायत्त और प्रभावी बनाया जाना चाहिए।

  • चुनाव आयोग को यह शक्ति दी जानी चाहिए कि वह चुनावी अपराधों और आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में त्वरित कार्रवाई कर सके।
  • निर्वाचन आयोग को न्यायिक अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि वह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के खिलाफ दायर मामलों का त्वरित निपटारा कर सके।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए आयोग को अपने निर्णय लागू करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

7. डिजिटल और ऑनलाइन मतदान की संभावना

तकनीकी प्रगति के साथ चुनावी प्रक्रिया को डिजिटल रूप में लाने की संभावना पर भी विचार किया जाना चाहिए।

  • प्रवासी नागरिकों और दिव्यांग मतदाताओं के लिए ऑनलाइन मतदान प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।
  • डिजिटल वोटिंग प्रणाली के लिए साइबर सुरक्षा उपायों को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की धांधली को रोका जा सके।
  • विभिन्न राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत ऑनलाइन मतदान प्रणाली का परीक्षण किया जाना चाहिए।

भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को और अधिक मजबूत और पारदर्शी बनाने के लिए चुनावी सुधारों को लागू करना आवश्यक है। चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बहाल करने और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए धनबल, बाहुबल और आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े मुद्दों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही, तकनीकी नवाचारों और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए डिजिटल सुधारों को अपनाना भी महत्वपूर्ण है।

हालाँकि भारत में चुनाव सुधार की प्रक्रिया निरंतर जारी है। चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम और समय-समय पर लागू किए गए विधिक प्रावधान चुनाव प्रक्रिया को अधिक निष्पक्ष, पारदर्शी और समावेशी बनाने में सहायक रहे हैं। परन्तु, वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए और अधिक सुधारों की आवश्यकता है, जिससे मतदाता की भागीदारी को बढ़ावा मिले और लोकतंत्र की जड़ें और गहरी हों। चुनाव सुधारों की इस यात्रा में डिजिटल तकनीक, पारदर्शी वित्त पोषण और ई-वोटिंग जैसे नवाचार भविष्य में भारतीय लोकतंत्र को और अधिक सशक्त बना सकते हैं।

भारत की चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता, निष्पक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए इन सुधारों का कार्यान्वयन अत्यंत आवश्यक है।चुनावी सुधारों की दिशा में प्रभावी कदम उठाकर ही भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है।

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