भारत में राजनीतिक दल: लोकतंत्र की रीढ़

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, राजनीतिक दलों की एक समृद्ध और विविध प्रणाली का घर है। राजनीतिक दल एक संगठन होता है जो विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर समान विचारधारा वाले लोगों का समूह होता है, जो सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से गठित होता है। ये दल लोकतंत्र के आधारभूत स्तंभ हैं और राजनीतिक प्रक्रिया के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आइवर जेनिग्स ने कहा है, “राजनीतिक दल लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी होते हैं।” यह कथन पूरी तरह से सच है, क्योंकि सच्चे लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दलों का होना अत्यावश्यक है। राजनीतिक दलों के बिना लोकतंत्र का संचालन असंभव है। यही कारण है कि लार्ड ब्राईस ने कहा है कि “लोकतांत्रिक शासन का संचालन राजनीतिक दलों के अभाव में संभव नहीं है।”

भारत में राजनीतिक दल लोकतंत्र के प्रमुख आधार हैं। यह न केवल सत्ता प्राप्ति के लिए बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए भी आवश्यक हैं। आधुनिक भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए अपरिहार्य हैं। समय के साथ, भारत में राजनीतिक दलों की प्रणाली और भी जटिल और विविध हो गई है, लेकिन इनका महत्व अब भी उतना ही बना हुआ है जितना पहले था।

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राजनीतिक दलों की उत्पत्ति

आधुनिक रूप में राजनीतिक दलों की शुरुआत ब्रिटेन से हुई। 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन में केवेलियर्स (टोरी दल) और राउंड हेड्स (व्हिग दल) का उदय हुआ, जिसने दलों की आधारशिला रखी। अर्नेस्ट बाकर ने ब्रिटिश प्रणाली को ‘पार्टीयों की जननी’ कहा है। ह्यूवर ने प्रजातंत्र यंत्र के परिचालन के लिए राजनीतिक दलों को तेल के तुल्य माना है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है। हरमन फाइनर ने राजनीतिक दलों को ‘सिंहासन के पीछे की 4 शक्ति’ कहा है, जो लोकतंत्र में शक्ति के संतुलन को बनाए रखते हैं।

राजनीतिक दलों के तत्व

एक राजनीतिक दल के कई महत्वपूर्ण तत्व होते हैं जो इसे प्रभावी बनाते हैं:

  1. संगठन: राजनीतिक दल एक संगठित मानव समुदाय होता है। इसमें अनुशासन और संगठनात्मक ढांचा होता है जो इसे प्रभावी बनाता है।
  2. सिद्धांतों की एकता: राजनीतिक दलों में आर्थिक और राजनीतिक सिद्धांतों की एकता होती है, जो उनके कार्यों और विचारधारा को निर्धारित करती है।
  3. संवैधानिक साधनों में विश्वास: राजनीतिक दल संवैधानिक साधनों के माध्यम से सत्ता प्राप्त करने में विश्वास रखते हैं।
  4. सुनियोजित कार्य प्रणाली: राजनीतिक दल एक सुनियोजित कार्य प्रणाली का पालन करते हैं, जिससे उनके लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।
  5. सत्ता प्राप्ति का लक्ष्य: सत्ता प्राप्ति या शासन पर प्रभुत्व की इच्छा राजनीतिक दलों का प्रमुख लक्ष्य होता है।
  6. राष्ट्रहित या सार्वजनिक हित: राजनीतिक दल अपने कार्यों और नीतियों में राष्ट्रहित या सार्वजनिक हित को सर्वोपरि मानते हैं।

राजनीतिक दलों की उत्पत्ति के आधार

राजनीतिक दलों की उत्पत्ति विभिन्न आधारों पर होती है, जैसे:

  1. मानव स्वभाव: राजनीतिक दलों का निर्माण मानव स्वभाव के कारण होता है, जिसमें व्यक्ति अपने विचारों और सिद्धांतों के आधार पर एकत्र होते हैं।
  2. धर्म आधारित: कुछ दल धर्म के आधार पर गठित होते हैं, जैसे भारत में कई राजनीतिक दल धार्मिक आधार पर सक्रिय हैं।
  3. जाति या सम्प्रदाय आधारित: जाति और सम्प्रदाय भी राजनीतिक दलों के गठन के महत्वपूर्ण आधार होते हैं।
  4. आर्थिक आधार: आर्थिक मुद्दों और विचारधाराओं के आधार पर भी राजनीतिक दलों का गठन होता है।
  5. क्षेत्रीय आधार: कुछ दल क्षेत्रीय आधार पर गठित होते हैं और क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

प्रजातंत्र के प्रकार और राजनीतिक दल

वर्तमान समय में शासन के विविध रूपों में प्रजातन्त्र सर्वाधिक लोकप्रिय शासन प्रणाली है। प्रजातंत्र के दो प्रमुख प्रकार होते हैं: प्रत्यक्ष प्रजातंत्र और अप्रत्यक्ष या प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र।

  1. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र: प्रत्यक्ष प्रजातंत्र वह व्यवस्था है जिसमें जनता स्वयं कानून बनाती है, राजनीति को निर्धारित करती है और सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण रखती है। यह प्राचीन यूनानी शहर-राज्यों में पाया जाता था। आधुनिक समय में, स्विट्ज़रलैंड के कुछ कैंटों में ऐसी प्रत्यक्ष लोकप्रिय सभा होती है, जिसे लैंडस्गेमिएंडे कहा जाता है।
  2. अप्रत्यक्ष या प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र: अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र वह व्यवस्था है जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और ये प्रतिनिधि जनता की ओर से शासन करते हैं। इस प्रक्रिया में राजनीतिक दलों का अस्तित्व अनिवार्य होता है, क्योंकि दल जनता के प्रतिनिधियों का चयन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारत में राजनीतिक दलों का महत्व

भारत में राजनीतिक दलों का महत्व अत्यधिक है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी यह एक सशक्त राजनीतिक दल के रूप में उभरी। 1959 में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार केरल में बनी थी और 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस को केन्द्र से सत्ता से हटा दिया था। इसके बाद, 1980 से 1989 तक कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता में प्रमुख भूमिका निभाई, लेकिन 1989 के बाद बहुदलीय प्रणाली के कारण केंद्र में मिश्रित सरकारें बनने लगीं। 1991 से 1996 तक कांग्रेस केंद्र में प्रमुख राजनीतिक दल बनी रही, लेकिन 1996 के बाद भारत में एकदलीय प्रभुत्व का अंत हो गया।

विचारधारा के आधार पर दलों के प्रकार

भारत में दलों को विचारधारा के आधार पर चार प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. प्रतिक्रियावादी दल: ये दल पुरानी सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं से चिपके रहते हैं और बदलाव का विरोध करते हैं।
  2. रूढ़िवादी दल: ये दल यथास्थिति में विश्वास रखते हैं और बड़े बदलाव का विरोध करते हैं।
  3. उदारवादी दल: ये दल विद्यमान संस्थाओं में सुधार का समर्थन करते हैं और विकास के पक्ष में होते हैं।
  4. सुधारवादी दल: ये दल विद्यमान व्यवस्थाओं को हटाकर नई व्यवस्थाएं स्थापित करने का प्रयास करते हैं। इन्हें वामपंथी दल भी कहा जाता है।

भारत में कांग्रेस को केंद्रीय दल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दक्षिणपंथी दल और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को वामपंथी दल माना जाता है।

दलीय व्यवस्था

राजनीतिक दलों की संख्या और प्रकृति के आधार पर राजनीतिक दल प्रणाली का निर्धारण होता है। विश्व में प्रमुख दलीय प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. एक दलीय प्रणाली: इस प्रणाली में एक ही राजनीतिक दल होता है और विपक्षी दल की व्यवस्था नहीं होती। यह प्रणाली रूस और चीन जैसे देशों में पाई जाती है।
  2. द्विदलीय प्रणाली: इस प्रणाली में दो प्रमुख राजनीतिक दल होते हैं, जैसे अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन तथा ब्रिटेन में लेबर पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी।
  3. बहुदलीय प्रणाली: इस प्रणाली में कई राजनीतिक दल होते हैं, जो एक साझा सरकार बनाते हैं। यह प्रणाली भारत, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, इटली और जर्मनी जैसे देशों में पाई जाती है।
  4. एक दल वर्चस्व प्रणाली: इस प्रणाली में कई दल होते हैं, लेकिन एक दल अन्य दलों से अधिक प्रभावी होता है और वही दल अक्सर सत्ता में आता है। भारत में 1967 तक कांग्रेस इस प्रणाली का उदाहरण रही है।

भारत में दलीय व्यवस्था का विकास

भारत में राजनीतिक दलों का विकास स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जो स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख माध्यम बना। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस एक प्रमुख राजनीतिक दल के रूप में उभरी और लंबे समय तक सत्ता में रही। 1977 में जनता पार्टी ने कांग्रेस को केंद्र से सत्ता से हटाया, लेकिन 1980 में कांग्रेस ने फिर से सत्ता प्राप्त की। 1989 से भारत में बहुदलीय प्रणाली का उदय हुआ और 1996 के बाद भारत में एकदलीय प्रभुत्व का अंत हो गया।

राजनीतिक दलों का पंजीकरण

भारत में राजनीतिक दलों का पंजीकरण निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत राजनीतिक दलों का पंजीकरण होता है। पंजीकृत राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय और राज्य स्तर के दलों के रूप में मान्यता दी जाती है और इन्हें आरक्षित चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाता है।

भारत में राष्ट्रीय राजनीतिक दल

वर्तमान में भारत में छह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं:

  1. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
  2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)
  3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (माकपा)
  4. आम आदमी पार्टी (एएपी)
  5. बहुजन समाज पार्टी (बसपा)
  6. नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी)

भारत में राजनीतिक दलों का महत्व न केवल लोकतंत्र के संचालन के लिए बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी अत्यधिक है। दलों के माध्यम से जनता अपनी आवाज़ उठाती है और शासन प्रक्रिया में भाग लेती है। राजनीतिक दल लोकतंत्र के आवश्यक घटक हैं, जो सत्ता और विपक्ष के बीच संतुलन बनाए रखते हैं। भारत जैसे विशाल और विविध देश में राजनीतिक दलों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, जहां विभिन्न विचारधाराएं और हित समूह एक साथ रहते हैं।

भारत में राजनीतिक दलों की मान्यता और उनका महत्व

भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, अपनी राजनीतिक प्रणाली के लिए विभिन्न दलों और समूहों की भागीदारी पर निर्भर है। भारत में दलीय प्रणाली बहुत जटिल और विविधतापूर्ण है, जहां विभिन्न राजनीतिक दल अपनी विचारधाराओं और नीतियों के माध्यम से जनता का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। यह लेख भारत में राजनीतिक दलों की मान्यता, उनकी भूमिका और महत्व के साथ-साथ विभिन्न प्रमुख राजनीतिक दलों और दबाव समूहों पर विस्तार से चर्चा करेगा।

राजनीतिक दलों को मान्यता

भारत में राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसे भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा विनियमित किया जाता है। यह मान्यता विभिन्न स्तरों पर दी जाती है – राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर। इस मान्यता के लिए कुछ विशिष्ट मापदंड निर्धारित किए गए हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि केवल वे दल जो जन समर्थन प्राप्त करते हैं, उन्हें मान्यता मिलती है।

मान्यता प्राप्त दल को चुनाव चिन्ह के साथ-साथ, अन्य विशेष सुविधाएं भी प्राप्त होती हैं, जैसे आकाशवाणी और दूरदर्शन पर निःशुल्क चुनाव प्रचार। यदि कोई दल अपनी मान्यता खो देता है, तो उसे 6 वर्षों तक अपने पुराने चुनाव चिन्ह को रखने की अनुमति होती है।

भारत में राज्यीय दलों की मान्यता के नियम, प्रक्रिया और शर्तें

भारत की राजनीतिक व्यवस्था में, राजनीतिक दलों की मान्यता और उनकी स्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चुनाव आयोग द्वारा राज्यीय दलों को मान्यता देने की प्रक्रिया और इसके परिणामस्वरूप पार्टी को मिलने वाले अधिकार, चुनावी चिन्हों के आवंटन से लेकर चुनावी रणनीतियों तक, राजनीतिक परिदृश्य को आकार देते हैं।

भारत में किसी भी राजनीतिक दल को राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए चुनाव प्रतीक (आरक्षण एवं आवंटन) अधिनियम, 1968 के अनुसार कुछ विशेष शर्तों को पूरा करना होता है। यह अधिनियम राज्यीय दलों की मान्यता के लिए निम्नलिखित शर्तें निर्धारित करता है:

  1. विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन:
    • एक दल को राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, उसे राज्य के पिछले विधानसभा चुनावों में दो शर्तों में से कोई एक पूरी करनी होती है:
      • (i) राज्य में पड़े कुल वैध मतों का कम से कम 6% मत प्राप्त करना और राज्य विधानसभा में कम से कम दो प्रत्याशियों को विधायक बनाना; अथवा
      • (ii) राज्य विधानसभा चुनावों में कुल सीटों की कम से कम 3% सीटें जीतना, या कम से कम तीन सीटें जीतना (जो भी अधिक हो)।
  2. लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन:
    • राज्यीय दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए लोकसभा चुनावों में भी कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं:
      • (i) दल के प्रत्याशियों को राज्य में पड़े कुल वैध मतों का कम से कम 6% मत प्राप्त करना और एक प्रत्याशी को लोकसभा में जीत दिलाना; अथवा
      • (ii) प्रत्येक 25 सीटों पर एक सदस्य को लोकसभा में जीत दिलाना; अथवा
      • (iii) राज्य में पड़े कुल वैध मतों का कम से कम 8% मत प्राप्त करना।

चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त राज्यीय दल

भारत निर्वाचन आयोग की अधिसूचना दिनांक 15 मई 2023 के अनुसार, देश के कुल 26 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल 58 दलों को राज्यीय दल का दर्जा प्राप्त है। इन दलों की मान्यता राज्यों में उनके प्रदर्शन और चुनावी परिणामों के आधार पर दी जाती है। निम्नलिखित विवरण में इन राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में मान्यता प्राप्त दलों की संख्या का विश्लेषण किया गया है:

  1. बिहार, केरल और मेघालय:
    • इन तीन राज्यों में प्रत्येक में 5-5 दलों को राज्यीय दल का दर्जा प्राप्त है। ये राज्यों की राजनीतिक विविधता और चुनावी परिदृश्य को दर्शाते हैं।
  2. असम, महाराष्ट्र, नागालैंड, तमिलनाडु और तेलंगाना:
    • इन राज्यों में 4-4 दलों को राज्यीय दल का दर्जा प्राप्त है। इन राज्यों की राजनीतिक स्थिति और विभिन्न दलों की मौजूदगी इन राज्यों की राजनीतिक रणनीतियों को प्रभावित करती है।
  3. अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, मणिपुर, त्रिपुरा और पुदुचेरी:
    • इन राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 3-3 दलों को राज्यीय दल का दर्जा प्राप्त है। ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश विभिन्न राजनीतिक दलों की उपस्थिति और चुनावी प्रदर्शन को दर्शाते हैं।
  4. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, गोवा, मिज़ोरम और सिक्किम:
    • इन राज्यों में प्रत्येक में 2-2 दलों को राज्यीय दल का दर्जा प्राप्त है। इन राज्यों की राजनीति और चुनावी परिदृश्य इन दलों की उपस्थिति से प्रभावित होते हैं।
  5. कर्नाटक, राजस्थान, उड़ीसा, पंजाब और छत्तीसगढ़:
    • इन राज्यों में प्रत्येक में 1-1 दल को राज्यीय दल का दर्जा प्राप्त है। ये राज्यों में राजनीतिक विविधता और दलों की स्थिति को दर्शाते हैं।
  6. मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली:
    • इन राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेश में कोई भी दल राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में दलों का प्रदर्शन राज्यीय दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए आवश्यक मानक पूरा नहीं करता है।

राज्यीय दलों को मिलने वाले अधिकार और लाभ

राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने से एक दल को कई महत्वपूर्ण अधिकार और लाभ मिलते हैं, जो उसकी राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावी बनाने में सहायक होते हैं:

  1. चुनाव चिन्ह का आरक्षण:
    • राज्यीय दल को विशेष चुनाव चिन्ह का आवंटन मिलता है, जो उस राज्य में केवल उस दल द्वारा उपयोग किया जा सकता है। यह चिन्ह पार्टी की पहचान को मजबूत करता है और चुनाव प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  2. चुनावी प्रचार में सहूलियत:
    • राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त दल को चुनाव प्रचार में विभिन्न सुविधाएं मिलती हैं, जैसे कि विशेष समय पर रेडियो और टीवी पर प्रचार, जो उसके चुनावी अभियान को सशक्त बनाता है।
  3. राज्यसभा में प्रतिनिधित्व:
    • राज्यीय दलों को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व मिल सकता है, जिससे वे राज्य की समस्याओं और मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर उठा सकते हैं।
  4. वित्तीय सहायता:
    • राज्यीय दलों को चुनाव आयोग से वित्तीय सहायता मिलती है, जो उनके चुनावी खर्चों को पूरा करने में मदद करती है।

राज्यीय दलों की मान्यता की प्रक्रिया और इसके परिणामस्वरूप मिलने वाले अधिकार भारतीय राजनीति के जटिल परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करने वाले दलों को राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त होती है, जो उनकी राजनीतिक उपस्थिति और प्रभाव को बढ़ाती है। राज्यीय दलों को विशेष चुनाव चिन्ह, प्रचार में सहूलियत, और वित्तीय सहायता जैसे लाभ मिलते हैं, जो उनकी राजनीतिक गतिविधियों को सशक्त बनाते हैं। यह व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र की विविधता और भागीदारी को प्रोत्साहित करती है, जिससे राजनीतिक परिदृश्य में संतुलन बना रहता है।

भारत में राष्ट्रीय दलों की मान्यता के नियम, प्रक्रिया और शर्तें

भारत की राजनीतिक व्यवस्था में राष्ट्रीय दलों की मान्यता की प्रक्रिया और उनकी स्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राष्ट्रीय दलों को चुनाव आयोग द्वारा मान्यता दी जाती है, और यह मान्यता उनके राजनीतिक प्रभाव और देशव्यापी उपस्थिति को दर्शाती है। इस लेख में हम राष्ट्रीय दलों की मान्यता प्राप्त करने के नियम, शर्तें और इसके परिणामस्वरूप मिलने वाले अधिकारों की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

भारत में किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए चुनाव प्रतीक (आरक्षण एवं आवंटन) अधिनियम, 1968 के अनुच्छेद 6B के तहत कुछ विशेष शर्तें पूरी करनी होती हैं। ये शर्तें यह सुनिश्चित करती हैं कि राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त करने वाले दल का देशभर में पर्याप्त प्रभाव और उपस्थिति हो। इसके लिए निम्नलिखित शर्तें निर्धारित की गई हैं –

  1. लोक सभा की सीटें:
    • एक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, उसे तीन विभिन्न राज्यों में लोक सभा की कुल सीटों का कम से कम 2% हासिल करना होगा। इसका तात्पर्य है कि पार्टी को विभिन्न राज्यों में लोक सभा की सीटों पर प्रभावी प्रदर्शन करना होगा, जो उसकी राष्ट्रीय उपस्थिति को दर्शाता है।
  2. मत प्रतिशत और सीटें:
    • कोई भी दल राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए, उसे चार अलग-अलग राज्यों में लोक सभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम 6% मत प्राप्त करने होंगे और लोक सभा में कम से कम 4 सीटें हासिल करनी होंगी। इस शर्त का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दल ने विभिन्न राज्यों में पर्याप्त संख्या में मत प्राप्त किए हैं और संसद में भी एक महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की है।
  3. राज्यीय दलों की मान्यता:
    • एक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, उसे कम से कम चार या उससे अधिक राज्यों में राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त होनी चाहिए। यह शर्त यह सुनिश्चित करती है कि दल ने विभिन्न राज्यों में अपनी स्थिति को स्थापित किया है और उसकी उपस्थिति राज्य स्तर पर भी प्रभावी है।

राष्ट्रीय दलों को मिलने वाले अधिकार और लाभ

राष्ट्रीय दलों को मान्यता प्राप्त करने से उन्हें कई महत्वपूर्ण अधिकार और लाभ प्राप्त होते हैं, जो उनकी राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावी बनाने में सहायक होते हैं:

  1. विशेष चुनाव चिन्ह:
    • राष्ट्रीय दलों को एक विशेष चुनाव चिन्ह का आवंटन मिलता है, जो देशभर में उस दल द्वारा उपयोग किया जा सकता है। यह चिन्ह पार्टी की पहचान को मजबूत करता है और चुनाव प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  2. चुनावी प्रचार में सहूलियत:
    • राष्ट्रीय दलों को चुनाव प्रचार में विशेष सुविधाएं मिलती हैं, जैसे कि विशेष समय पर रेडियो और टीवी पर प्रचार। यह सुविधा उनके चुनावी अभियान को सशक्त बनाती है और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी उपस्थिति को मजबूत करती है।
  3. राज्यसभा में प्रतिनिधित्व:
    • राष्ट्रीय दलों को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व मिल सकता है, जिससे वे राज्य की समस्याओं और मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर उठा सकते हैं। यह प्रतिनिधित्व उनकी राष्ट्रीय उपस्थिति और प्रभाव को दर्शाता है।
  4. वित्तीय सहायता:
    • राष्ट्रीय दलों को चुनाव आयोग से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है, जो उनके चुनावी खर्चों को पूरा करने में मदद करती है। यह सहायता उन्हें चुनावी प्रक्रिया में सशक्त बनाती है और उनकी राजनीतिक गतिविधियों को समर्थन प्रदान करती है।

भारत के प्रमुख राष्ट्रीय दल

क्र.सं.नामस्थापना तिथि
1.भारतीय जनता पार्टी | बीजेपी6 अप्रैल 1980
2.भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | कांग्रेस28 दिसंबर 1885
3.भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) | माकपा7 नवंबर 1964
4.आम आदमी पार्टी | एएपी26 नवंबर 2012
5.बहुजन समाज पार्टी | बसपा14 अप्रैल 1984
6.नेशनल पीपुल्स पार्टी | एनपीपी6 जनवरी 2013

इससे पहले, भारत में आठ राष्ट्रीय दल थे, लेकिन अब छह हैं।

निर्वाचन आयोग के नियमों में परिवर्तन

दिसंबर 2000 में निर्वाचन आयोग द्वारा मान्यता संबंधी नियमों में किए गए परिवर्तनों से पहले, कोई भी दल जो चार राज्यों में राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्राप्त करता था, उसे राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की जाती थी। इसके अतिरिक्त, ऐसे दल जो राज्य में लोकसभा के असाधारण निर्वाचन में कुल वैध मतों का 4% प्राप्त करते थे, उन्हें भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी जाती थी।

मान्यता की हानि और उसके प्रभाव

यदि कोई राजनीतिक दल अपनी राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय मान्यता खो देता है, तो उसे 6 वर्षों तक अपने पुराने चुनाव चिन्ह को रखने की छूट होती है। हालाँकि, मान्यता प्राप्त दल को प्राप्त होने वाली विशेष सुविधाएँ, जैसे कि आकाशवाणी या दूरदर्शन पर निशुल्क चुनाव प्रचार, समाप्त हो जाती हैं।

भारत के प्रमुख राजनीतिक दल (संक्षिप्त परिचय)

भारत में कई प्रमुख राजनीतिक दल हैं जिन्होंने समय के साथ राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये दल विभिन्न विचारधाराओं और नीतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी)

ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) का गठन 1 जनवरी 1998 को ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुआ था। इस पार्टी को 2016 में राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। तृणमूल कांग्रेस का प्रतीक पुष्प और तृण है, जो इसे विशेष पहचान देता है। यह पार्टी पश्चिम बंगाल में अपनी प्रमुखता बनाए हुए है और राज्य की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभा रही है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा)

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना 1984 में स्वर्गीय कांशीराम के नेतृत्व में हुई थी। इस पार्टी का उद्देश्य बहुजन समाज, जिसमें दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियाँ और धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं, के लिए राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना और उनका प्रतिनिधित्व करना है। बसपा का राजनीतिक विचारधारा डॉ. भीमराव आंबेडकर, महात्मा फुले, और साहू महाराज के विचारों पर आधारित है। इसके प्रारम्भिक अध्यक्ष काशीराम बने। 25 नवंबर 1997 को चुनाव आयोग ने बसपा को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की और पार्टी को ‘हाथी’ चुनाव चिन्ह आवंटित किया।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का इतिहास 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ से जुड़ा हुआ है। 5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन बुलाया, जिसमे एक ऐसे दल की स्थापना करने की जरुरत महसूस हुई जो सरकार में शामिल हो सके। इस प्रकार इस सम्मलेन में एक नये दल की स्थापना करने का निश्चय किया गया। यह नया दल ही भाजपा कहलाया। इस आधार पर 6 अप्रैल, 1980 में भाजपा की स्थापना हुई।

24 अप्रैल, 1980 को भाजपा को चुनाव आयोग द्वारा मान्यता दी गई और भाजपा को कमल का फूल चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया। तब से यह भारतीय राजनीति में एक प्रमुख दल के रूप में उभर कर सामने आई है। भारतीय जनता पार्टी का प्रथम अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी को बनाया गया। 13 अक्टूबर, 1999 को भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शपथ ग्रहण किया। भाजपा का चुनाव चिन्ह ‘कमल का फूल’ है। 16वीं लोकसभा के चुनावों में अप्रैल-मई 2014 को भाजपा नेतृत्व वाले एन.डी.ए. को 336 सीटों पर शानदार सफलता मिली जिसमें भाजपा की 282 सीटें थीं और भाजपा प्रथम गैर कांग्रेसी स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी।

2014 से भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आम चुनावों में अभूतपूर्व सफलता किया है और पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई है।

आम आदमी पार्टी (आप)

आम आदमी पार्टी (आप) का गठन 2012 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत आंदोलन के परिणामस्वरूप हुआ था। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘झाड़ू’ है, जो इसे जनता के बीच लोकप्रिय बनाता है। 10 अप्रैल 2023 को निर्वाचन आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्रदान किया।

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई)

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) की स्थापना 1925 में हुई थी। यह पार्टी मार्क्सवाद-लेनिनवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र में आस्था रखती है। सीपीआई का चुनाव चिन्ह ‘हसिया और बाली’ है। 1964 में इस पार्टी में फूट पड़ी, जिसके परिणामस्वरूप कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) [सीपीआई(एम)] का गठन हुआ। सीपीआई(एम) का चुनाव चिन्ह ‘हथौड़ा, हसिया और तारा’ है।

इंडियन नेशनल काँग्रेस (कांग्रेस)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसे अक्सर कांग्रेस के रूप में संदर्भित किया जाता है, भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना 1885 में एक ब्रिटिश अधिकारी सर ए. ओ. हयूम द्वारा की गई थी। भारत में दलीय व्यवस्था की शुरूआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से हुई। कांग्रेस पार्टी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख नेतृत्व करने वाली पार्टी रही है। इसका चुनाव चिन्ह ‘हाथ का पंजा’ है।

स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस ने कई बार केंद्र में सरकार बनाई और भारतीय राजनीति में अपनी प्रमुख भूमिका बनाए रखी। कांग्रेस भारत में ‘एक दलीय प्रणाली’ का संस्थापक दल रहा है। कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमकेश चंद्र बनर्जी थे। यह 1952 से 1967 तक पूर्ण शासक दल रहा है इसके अलावा 1980, 1984, 1991, 2004 व 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस ने सरकार बनाई।

नेशनलिस्ट काँग्रेस पार्टी (एनसीपी)

नेशनलिस्ट काँग्रेस पार्टी का गठन 1999 में काँग्रेस पार्टी में विभाजन के बाद हुआ। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘घड़ी’ है और यह लोकतंत्र, गांधीवादी धर्मनिरपेक्षता, समता, सामाजिक न्याय और संघवाद में आस्था रखती है। एनसीपी महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में महत्वपूर्ण राजनीतिक दल के रूप में स्थापित है।

नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी)

नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन पी. ए. संगमा द्वारा 2013 में किया गया था। यह पार्टी मुख्य रूप से मेघालय राज्य में सक्रिय है। 2019 के चुनावों के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा एनपीपी को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी गई। यह पूवोत्तर क्षेत्र की पहली पार्टी है जिसे राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता मिली है। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘पुस्तक’ है।

भारत में दबाव समूह (Pressure Groups)

भारत में दबाव समूहों का भी राजनीति और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होता है। दबाव समूहों का निर्माण तब होता है जब एक ही प्रकार के हित रखने वाले लोग संगठित होकर अपने हितों के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।

संस्थानात्मक दबाव समूह

संस्थानात्मक दबाव समूह वे होते हैं जो सरकार या राजनीतिक दलों की नीतियों पर प्रभाव डालते हैं। ऐसे दबाव समूह राजनीतिक दलों, विधानमंडलों, सेना, और नौकरशाही में सक्रिय रहते हैं। उदाहरण के लिए, राजनीतिक दलों के आंतरिक संगठन, कर्मचारी संगठन, आदि को संस्थानात्मक दबाव समूहों में शामिल किया जा सकता है।

सामुदायिक दबाव समूह

सामुदायिक दबाव समूह वे संघ होते हैं जो विशिष्ट हितों की पूर्ति के लिए बनाए गए होते हैं। ऐसे समूह सरकार की नीतियों को अपने हितों के संरक्षण के लिए प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, श्रमिक संघ, व्यवसायिक संघ, और कृषक संघ सामुदायिक दबाव समूहों के अंतर्गत आते हैं।

असामुदायिक दबाव समूह

असामुदायिक दबाव समूह अनौपचारिक रूप से अपने हितों की अभिव्यक्ति करते हैं। इनके संगठित संघ नहीं होते हैं और ये परम्परावादी दबाव समूह होते हैं। उदाहरण के लिए, साम्प्रदायिक और धार्मिक समुदाय, जातीय समुदाय, गांधीवादी समुदाय, भाषागत समुदाय, आदि असामुदायिक दबाव समूहों में शामिल होते हैं।

प्रदर्शनकारी दबाव समूह

प्रदर्शनकारी दबाव समूह अपने मांगों और हितों की पूर्ति के लिए प्रदर्शन करते हैं। ये समूह रैलियों, धरनों, भूख हड़तालों, और प्रदर्शनकारियों के माध्यम से अपने मुद्दों को सरकार के सामने उठाते हैं।

धार्मिक दबाव समूह

धार्मिक दबाव समूह धार्मिक संगठनों और संघों के रूप में होते हैं, जो धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं को बनाए रखने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।

जातीय दबाव समूह

जातीय दबाव समूह जातीय समुदायों के संगठन होते हैं, जो अपनी जातीय पहचान और हितों की रक्षा के लिए कार्य करते हैं।

भारत के राजनीतिक दलों की सूची

भारत के राजनीतिक दलों की सूची निम्नलिखित है-

राष्ट्रीय दल (राष्ट्रीय पार्टियाँ) की सूची

राष्ट्रीय दलस्थापना वर्षसंस्थापकराष्ट्रीय अध्यक्षपार्टी मुख्यालय
आम आदमी पार्टी2012अरविंद केजरीवालअरविंद केजरीवाल206, राउज एवेन्यू, डी.डी.यू. मार्ग, नई दिल्ली- 110002
भारतीय जनता पार्टी1980अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणीजगत प्रकाश नड्डा6-अ, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली- 110002
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस1885ए. ओ. ह्यूम, दादा भाई नौरोजी, दिनशा वाचामल्लिकार्जुन खड़गे24, अकबर रोड, नई दिल्ली- 110011
बहुजन समाज पार्टी1984कांशीराममायावती4, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड, नई दिल्ली- 110001
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)1964ई.एम.एस. नम्बूदरीपाद, ज्योति बसु, हरकिशन सिंह सुरजीतसीताराम येचुरी27-29, ए.के.गोपालन भवन, भाई वीर सिंह मार्ग, नई दिल्ली- 110001
नेशनल पीपल्स पार्टी2013पी.ए. संगमाकॉनराड संगमाप्लॉट नं. 90-ए, लाचाउमिरी जिला, पूर्वी खासी हिल्स, शिलांग- 793001

भूतपूर्व राष्ट्रीय पार्टियां

पार्टी का नामराष्ट्रीय मान्यता प्राप्तिराष्ट्रीय मान्यता समाप्ति
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी19502023
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी20042023
सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस20162023
राष्ट्रीय जनता दल20082010

राज्यीय दल (राज्यीय पार्टियाँ) की सूची

दल नामस्थापना वर्षसंस्थापकदल प्रमुखराज्य/के.शा.प्र.पार्टी मुख्यालय
सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस1998ममता बनर्जीममता बनर्जीपश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय30-बी, हरीश चटर्जी स्ट्रीट, कोलकाता- 700026 (प.बं.)
जनता दल (यूनाइटेड)2003शरद यादव, नीतीश कुमारराजीव रंजन सिंहबिहार, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर7- जंतर मंतर रोड, नई दिल्ली- 110001
जनता दल (सेक्युलर)1999एच.डी. देवेगौड़ाएच.डी. देवेगौड़ाकर्नाटक, केरल, अरुणाचल प्रदेश5- सफदरजंग लेन, नई दिल्ली- 110003
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी1925मानवेन्द्र नाथ रायडी. राजाकेरल, तमिलनाडु, मणिपुरअजय भवन, कोटला मार्ग, नई दिल्ली- 110002
समाजवादी पार्टी1993मुलायम सिंह यादवअखिलेश यादवउत्तर प्रदेश18- कॉपरनिकस लेन, नई दिल्ली- 110001
राष्ट्रीय जनता दल1997लालू प्रसाद यादवलालू प्रसाद यादवबिहार, झारखण्ड13, वी.पी. हाउस, रफी मार्ग, नई दिल्ली- 110001
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी1999शरद पवार, पी॰ ए॰ संगमा, तारिक अनवरशरद पवारमहाराष्ट्र, नागालैण्डबंगला नं.1, रविशंकर शुक्ल लेन, फ़िरोजशाह रोड, नई दिल्ली- 110001
द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम1949सी॰एन॰ अन्नादुरैएम॰ के॰ स्टालिनतमिलनाडु, पुदुचेरी‘अन्ना अरिवालयम’ 268-269, अन्ना सलाई, तेनामपेट, चेन्नई- 600018
अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम1972मारुदुर गोपालन रामचन्द्रनई.के. पलानीस्वामी, ओ पनीरसेल्वमतमिलनाडु, पुदुचेरी275, अव्वाई षणमुगम सलाई, रोयापेट्टा, चेन्नई- 600014
युवजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी2011वाई एस जगनमोहन रेड्डीवाई एस जगनमोहन रेड्डीआंध्र प्रदेश, तेलंगानामकान नं. 8-2-269/एस/98, सागर सोसायटी, बंजारा हिल्स, हैदराबाद- 500034 (तेलंगाना)
तेलुगु देशम पार्टी1982नन्दमूरि तारक रामारावनारा चंद्रबाबू नायडूआंध्र प्रदेश, तेलंगानाएन.टी.आर. भवन, बंजारा हिल्स, हैदराबाद- 500033 (तेलंगाना)
भारत राष्ट्र समिति2001के. चंद्रशेखर रावके. चंद्रशेखर रावतेलंगानारोड नं.14, बंजारा हिल्स, हैदराबाद- 500034 (तेलंगाना)
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन1957अब्दुल वहाद ओवैसीअसदुद्दीन ओवैसीतेलंगानादारुस्सलाम बोर्ड, हैदराबाद- 500001 (तेलंगाना)
अपना दल (सोनेलाल)2016जवाहर लाल पटेलअनुप्रिया पटेलउत्तर प्रदेशग्राम- अतरामपुर नवाबगंज, प्रयागराज- 229412 (उ.प्र.)
ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक1939सुभाष चंद्र बोसदेवव्रत विश्वासपश्चिम बंगालनेताजी भवन, T-2235/2, अशोक नगर, फ़ैज रोड, करोलबाग, नई दिल्ली- 110005
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी2018हनुमान बेनीवालहनुमान बेनीवालराजस्थान26-27, तेजा कालोनी, मानसर, जिला- नागौर- 341001 (राजस्थान)
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट2005बदरुद्दीन अजमलबदरुद्दीन अजमलअसम3, फ्रेन्ड्स पथ, हातिगांव, गुवाहाटी- 781038 (असम)
असम गण परिषद्असमगोपीनाथ बोरदोलोई रोड, गुवाहाटी- 781001 (असम)
बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट2005असम
यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरलअसम
ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियनझारखंडहरमु, रांची- 834002 (झारखण्ड)
देसिया मुरपोक्कु द्रविड़़ कड़गम2005विजयकांततमिलनाडु125/7, जवाहरलाल नेहरु सलाई, कोयमबेडु, चेन्नई- 600107 (तमिलनाडु)
इंडियन नेशनल लोकदल1996चौधरी देवीलालओमप्रकाश चौटालाहरियाणानं.80, सेक्टर-9, चंडीगढ़- 160009
इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग1948मुहम्मद इस्माइलके.एम. कादर मोहिदीनकेरलकायदे मिल्लत मंजिल, मारियाकयार लेब्बाई स्ट्रीट, चेन्नई- 600001 (तमिलनाडु)
जनता काँग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी)2018अजीत जोगीअमित जोगीछत्तीसगढ़श्री बालाजी कॉम्प्लेक्स, खमतराई, रायपुर- 492001 (छत्तीसगढ़)
जननायक जनता पार्टी2018दुष्यंत चौटालादुष्यंत चौटालाहरियाणाजिला व्यापार केन्द्र, सेक्टर- 56, गुरुग्राम- 122001 (हरियाणा)
जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंसशेख़ अब्दुल्लाफ़ारुख़ अब्दुल्लाजम्मू व कश्मीरशेरे कश्मीर भवन, जम्मू- 180001
जम्मू व कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टीभीम सिंहजम्मू व कश्मीर17, वी.पी. हाउस, रफी मार्ग, नई दिल्ली- 110001
जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टीमुफ्ती मोहम्मद सईदमहबूबा मुफ़्तीजम्मू व कश्मीर2, इम्पोरियन लेन, रेसीडेंसी रोड, श्रीनगर- 190001
झारखंड मुक्ति मोर्चा1972शिबू सोरेनशिबू सोरेनझारखंडबैरियातू रोड, रांची- 834008 (झारखण्ड)
केरल कांग्रेस (एम)केरलस्टेट कमिटी ऑफिस, कोट्टायम- 686001 (केरल)
नागा पीपुल्स फ्रंटनेफियू रियोशुरोज़िली लिज़ेत्सुनागालैण्ड, मणिपुरपोस्ट बॉक्स नं.565, कोहिमा- 797001 (नागालैण्ड)
नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी2017नेफियू रियोनेफियू रियोनागालैण्डसिग्नेचर बिल्डिंग, चैती री- रोड, कोहिमा- 797001 (नागालैण्ड)
पिपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंसनागालैण्ड
मिजो नेशनल फ्रंटमिज़ोरम
मणिपुर पीपुल्स पार्टीमणिपुर
सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट1993पवन चामलिंगसिक्किमसचिवालय, गंगटोक- 737101 (सिक्किम)
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा2013प्रेम सिंह तमांगसिक्किमएस.डी.एफ. भवन, ख्रीस्तीनी स्कूल रोड, गंगटोक- 737101 (सिक्किम)
तमिल मनीला कांग्रेस1996गोपालस्वामी वेंकटरामनतमिलनाडु29, हनुमंथन स्ट्रीट, टी.नगर, चेन्नई- 600017 (तमिलनाडु)
द्रविड़ मुनेत्र कझगम1949पेरियार ई.वी. रामासामीएम.के. स्टालिनतमिलनाडुअन्ना अरिवालयम, 268-269, अन्ना सलाई, तेनामपेट, चेन्नई- 600018
झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक)2006बाबूलाल मरांडीझारखंड
बिहार पीपुल्स पार्टी1993बिहार
उत्तराखण्ड क्रांति दलउत्तराखंड

भारत में राजनीतिक दलों और दबाव समूहों का महत्व बहुत बड़ा है। राजनीतिक दल जनप्रतिनिधित्व का माध्यम होते हैं, जबकि दबाव समूह नीति निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय लोकतंत्र में इन दोनों की भूमिका को समझना आवश्यक है, क्योंकि यह देश की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को आकार देने में सहायक होते हैं। भारत के विभिन्न राजनीतिक दल और दबाव समूह समाज की विभिन्न आवश्यकताओं और विचारधाराओं को व्यक्त करते हैं, और उनके माध्यम से देश के विकास और प्रगति को बढ़ावा मिलता है।

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सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.