अमेरिकी टैरिफ के बीच भारत–रूस साझेदारी: ऊर्जा, व्यापार और रणनीतिक संतुलन

भारत और रूस के बीच संबंध केवल राजनीतिक या सामरिक स्तर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनका विस्तार व्यापार, ऊर्जा, रक्षा और तकनीकी सहयोग जैसे अनेक क्षेत्रों तक होता है। हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री की रूस यात्रा और द्विपक्षीय वार्ताओं के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ या दबाव भारत–रूस संबंधों को कमजोर करने में सफल नहीं होंगे। बल्कि, दोनों देशों ने अपनी साझेदारी को और गहरा करने तथा व्यापार को विविधीकृत करने की ठोस योजना बनाई है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भारत–रूस संबंधों की नींव

भारत और रूस (पूर्व सोवियत संघ) के रिश्ते दशकों पुराने हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही सोवियत संघ भारत का सबसे बड़ा सामरिक सहयोगी रहा। रक्षा क्षेत्र, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष विज्ञान और बुनियादी ढाँचे में रूस का योगदान भारत के लिए ऐतिहासिक रहा है। शीत युद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई, लेकिन सोवियत संघ के साथ उसके संबंध विशेष और विश्वसनीय रहे। यही कारण है कि आज भी रूस भारत के ‘विशेष और प्रिविलेज्ड स्ट्रैटेजिक पार्टनर’ की श्रेणी में आता है।

हालिया घटनाक्रम: विदेश मंत्री की रूस यात्रा

भारतीय विदेश मंत्री की हालिया रूस यात्रा इस बात का संकेत है कि दोनों देश अपने आर्थिक और रणनीतिक रिश्तों को और गहराई तक ले जाना चाहते हैं। इस यात्रा के दौरान कई अहम मुद्दों पर सहमति बनी:

  1. व्यापार साझेदारी को मजबूत करना – रूस से बढ़े हुए तेल आयात के कारण भारत के साथ उसका व्यापार संतुलन बिगड़ा है। भारत इस घाटे को कम करने के लिए निर्यात को बढ़ाना चाहता है।
  2. व्यापार अवरोधों का समाधान – अमेरिकी टैरिफ और अन्य गैर-टैरिफ बाधाओं पर चर्चा हुई।
  3. कनेक्टिविटी बढ़ाना – अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ–साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), नॉर्दर्न सी रूट और चेन्नई–वलादिवोस्तोक कॉरिडोर का विस्तार प्राथमिक एजेंडा रहा।
  4. व्यापार विविधीकरण और भुगतान तंत्र – भारत–यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) एफटीए पर जल्द से जल्द समझौता करने पर बल दिया गया। रुपये–रूबल लेन-देन को भी मजबूत करने की बात हुई।
  5. बिज़नेस एंगेजमेंट – रूस की कंपनियों को ‘मेक इन इंडिया’ पहल में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया गया।

भारत–रूस व्यापार का परिदृश्य

वर्तमान में भारत और रूस के बीच व्यापार का आकार तेजी से बढ़ा है, लेकिन इसमें असंतुलन भी है। 2024–25 में दोनों देशों के बीच व्यापार लगभग $65–70 बिलियन तक पहुँच चुका है। इसमें भारत मुख्यतः रूस से तेल और गैस आयात करता है, जबकि उसके निर्यात सीमित हैं। इसी कारण $58.9 बिलियन का व्यापार घाटा दर्ज किया गया।

भारत इस असंतुलन को कम करने के लिए फार्मास्यूटिकल्स, कृषि उत्पाद, आईटी सेवाएँ, इंजीनियरिंग गुड्स और टेक्सटाइल्स जैसे क्षेत्रों में रूस को निर्यात बढ़ाना चाहता है। साथ ही, रूस भी चाहता है कि उसकी कंपनियाँ भारत के विशाल बाजार और निर्माण आधार का लाभ उठाएँ।

अमेरिका के टैरिफ दबावों के बीच भारत–रूस सहयोग

अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने की कोशिश की है। अमेरिकी टैरिफ और पाबंदियाँ इस रणनीति का हिस्सा हैं। लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों के साथ समझौता नहीं करेगा।

  1. ऊर्जा सुरक्षा और लागत लाभ – रूस से रियायती दरों पर कच्चे तेल का आयात भारत को अपने ऊर्जा बास्केट को स्थिर रखने में मदद करता है। इससे महंगाई नियंत्रित रहती है और आयात लागत घटती है।
  2. बाजार विविधीकरण – रूस और यूरेशियाई क्षेत्र भारतीय निर्यातकों को वैकल्पिक बाजार उपलब्ध कराते हैं। इससे अमेरिका पर निर्भरता घटती है।
  3. कनेक्टिविटी लाभ – INSTC और चेन्नई–वलादिवोस्तोक कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट्स निर्यात समय और लागत को कम करते हैं, जिससे अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है।
  4. राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार – रुपये–रूबल लेन-देन से भारत अमेरिकी डॉलर-प्रधान व्यापार प्रतिबंधों से बच सकता है।

रणनीतिक और रक्षा सहयोग

भारत–रूस रिश्तों का सबसे मजबूत स्तंभ रक्षा सहयोग है। रूस भारत को अत्याधुनिक हथियार, परमाणु तकनीक और रक्षा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है। ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट इसका प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावा, रूस भारत की नौसेना और वायुसेना के आधुनिकीकरण में अहम भूमिका निभाता है।

अमेरिका ने कई बार रूस के हथियारों की खरीद पर आपत्ति जताई है और प्रतिबंधों की धमकी दी है। लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी रक्षा जरूरतें किसी बाहरी दबाव से निर्धारित नहीं होंगी। रूस के साथ सहयोग से भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखता है।

औद्योगिक और विनिर्माण अवसर

भारत और रूस मिलकर नए औद्योगिक साझेदारी मॉडल तैयार कर रहे हैं।

  • रूस कच्चे माल, खनिज और ऊर्जा का आपूर्तिकर्ता है।
  • भारत का निर्माण आधार, सस्ता श्रम और तकनीकी क्षमता रूस को निवेश के लिए आकर्षित करती है।
  • मेक इन इंडिया पहल के तहत संयुक्त उद्यम स्थापित किए जा रहे हैं।

इससे दोनों देशों को नई मूल्य श्रृंखलाएँ बनाने और पश्चिमी आपूर्ति नेटवर्क पर निर्भरता घटाने में मदद मिल रही है।

भारत–यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) FTA

भारत और रूस मिलकर एक व्यापक आर्थिक साझेदारी का प्रयास कर रहे हैं। EAEU (जिसमें रूस, बेलारूस, अर्मेनिया, कज़ाख़स्तान और किर्गिज़स्तान शामिल हैं) के साथ FTA से भारत को एक बड़े बाजार तक विशेष पहुंच मिलेगी।

  • भारतीय फार्मा, टेक्सटाइल और कृषि उत्पादों को नए बाजार मिलेंगे।
  • रूस को भारतीय सेवाओं और आईटी सेक्टर का लाभ मिलेगा।
  • ऊर्जा और विनिर्माण क्षेत्र में संयुक्त निवेश के अवसर खुलेंगे।

कनेक्टिविटी कॉरिडोर और लॉजिस्टिक लाभ

भारत और रूस कई बड़े कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं:

  1. INSTC (International North–South Transport Corridor) – भारत से रूस और यूरोप तक सबसे छोटा व्यापार मार्ग।
  2. चेन्नई–वलादिवोस्तोक कॉरिडोर – भारत और रूस के सुदूर पूर्वी हिस्से को जोड़ने वाला समुद्री मार्ग।
  3. नॉर्दर्न सी रूट – आर्कटिक महासागर के रास्ते यूरोप और एशिया को जोड़ने वाला तेज़ व्यापार मार्ग।

इन प्रोजेक्ट्स से निर्यात समय और लागत घटेगी और भारतीय निर्यातकों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिलेगा।

चुनौतियाँ और संभावनाएँ

हालाँकि भारत–रूस रिश्ते मजबूत हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद हैं:

  • अमेरिकी और पश्चिमी दबाव।
  • भुगतान तंत्र की जटिलताएँ।
  • रूस–यूक्रेन युद्ध की अनिश्चितता।
  • भारत–रूस व्यापार संतुलन का बिगड़ना।

लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद संभावनाएँ अधिक हैं:

  • 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य USD 100 बिलियन
  • ऊर्जा और रक्षा सहयोग का और विस्तार।
  • नए निवेश और औद्योगिक साझेदारियाँ।

निष्कर्ष

भारत और रूस के बीच संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। अमेरिका के टैरिफ दबाव और वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद यह साझेदारी और मजबूत होती जा रही है। ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा सहयोग, औद्योगिक साझेदारी और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स इस रिश्ते को और गहराई तक ले जाएँगे।

भारत के लिए रूस केवल एक साझेदार नहीं, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता और आर्थिक विविधीकरण का स्तंभ है। यही कारण है कि आने वाले वर्षों में भारत–रूस साझेदारी एशिया और विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।


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