भाषा केवल संचार का साधन नहीं है, बल्कि यह मानव-सभ्यता के विकास, प्रवास, संस्कृति और मानसिक संरचना का दर्पण भी है। जिस प्रकार मनुष्य का एक परिवार होता है, उसी प्रकार भाषाओं का भी एक परिवार होता है—जहाँ अनेक भाषाएँ एक ही मूल स्रोत से जन्म लेती हैं और समय के साथ विकसित होकर अलग-अलग रूप धारण कर लेती हैं। ऐसी सभी भाषाएँ, जो किसी एक मूल भाषा से निकली हों, “भाषा परिवार” कहलाती हैं।
दुनिया की हजारों भाषाएँ मूलतः कुछ विशेष भाषा-परिवारों से संबंधित हैं। इन परिवारों की अपनी भाषिक विशेषताएँ, ध्वन्यात्मक और व्याकरणिक संरचनाएँ तथा विकास की अलग-अलग ऐतिहासिक यात्राएँ होती हैं।
भारत जैसे बहुभाषी देश को समझने के लिए भाषा-परिवारों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। भारत न केवल अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह चार प्रमुख भाषा परिवारों का भी गृह-स्थान है—भारोपीय (आर्य), द्रविड़, तिब्बत-बर्मी और आग्नेय। ये चारों परिवार मिलकर भारत के भाषिक स्वरूप का निर्माण करते हैं और यही हमारी भाषाई एकता की रीढ़ है।
आइए, भाषा परिवारों की अवधारणा, उनके प्रकार, विश्व में उनकी उपस्थिति, भारत से उनका संबंध और उनकी प्रमुख भाषाओं का विस्तृत अध्ययन करें।
भाषा परिवार की अवधारणा
भाषा परिवार से तात्पर्य उन भाषाओं के समूह से है, जिनका उद्गम एक ही मूल-भाषा (Proto Language) से हुआ हो।
समय के साथ—
- जनजातियों का स्थानांतरण,
- राजनीतिक-सांस्कृतिक परिवर्तन,
- भौगोलिक दूरियाँ
के कारण एक ही मूल भाषा के स्वरूप में विविध बदलाव आते हैं और धीरे-धीरे नई भाषाएँ जन्म लेती हैं।
इन्हीं सभी भाषाओं को संगठित करके एक भाषा-परिवार का निर्माण होता है।
उदाहरण के लिए—
- संस्कृत, लैटिन और ग्रीक—एक ही मूल भारोपीय प्रोटो भाषा से निकली हैं।
- तमिल, तेलुगु और कन्नड़—द्रविड़ प्रोटो भाषा से।
भाषा परिवार की यह अवधारणा भाषाविज्ञान का एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि इससे मानव सभ्यता के विकास, प्रवास और परस्पर संपर्क का ऐतिहासिक चित्र बनता है।
विश्व के प्रमुख भाषा परिवार
विश्वभर की भाषाओं को लगभग 12 प्रमुख भाषा परिवारों में विभाजित किया गया है:
- भारोपीय (Indo-European)
- द्रविड़ (Dravidian)
- चीनी-तिब्बती/साइनो-तिब्बती (Sino-Tibetan)
- सामी/सैमेटिक (Semitic)
- हमीटिक/तामेटिक (Hamitic)
- आस्ट्रिक/आग्नेय (Austric/Austro-Asiatic)
- यूराल-अल्टाइक (Ural-Altaic)
- बाँटू (Bantu/Niger-Congo)
- अमेरिंडियन (American/Red Indian)
- काकेशस (Caucasian)
- सूडानी (Sudanese)
- बुशमैन (Khoisan)
ये परिवार विश्व की समस्त भाषाओं का विशाल भाषिक मानचित्र प्रस्तुत करते हैं। इनमें से भारोपीय भाषा परिवार विश्व का सबसे बड़ा परिवार है, जबकि द्रविड़ और आग्नेय भारत के लिए विशिष्ट महत्त्व रखते हैं।
भारत के प्रमुख भाषा परिवार
भारत में चार मुख्य भाषा परिवार पाए जाते हैं:
- भारोपीय (आर्य) भाषा परिवार
- द्रविड़ भाषा परिवार
- तिब्बत-बर्मी भाषा परिवार
- आग्नेय (आस्ट्रिक/निषाद) भाषा परिवार
इनके अतिरिक्त अनेक भाषाविद् “आर्य भाषा परिवार” को भारतीय शास्त्रीय परंपरा में एक अलग स्थान देते हैं, इसलिए कई वर्गीकरणों में “भारतीय आर्य भाषा परिवार” को पाँचवें परिवार के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है।
भारत की भाषाई विविधता का यह स्वरूप अनोखा है। इतनी भाषाओं के बावजूद ध्वनि, शब्दावली, व्याकरण और वाक्य-विन्यास में उल्लेखनीय समानताएँ मिलती हैं—जो भारतीय भाषाओं को एक विशिष्ट “भाषिक क्षेत्र” बनाती हैं।
भारत के भाषा परिवारों का विस्तार और विकास
आइए अब भारत के प्रत्येक प्रमुख भाषा परिवार का विस्तृत वर्णन देखें।
(1) भारोपीय भाषा परिवार (Indo-European Family)
विश्व का सबसे बड़ा और प्रभावशाली भाषा परिवार
यह परिवार विश्व की लगभग 45% आबादी द्वारा बोला जाता है।
भारत में लगभग 80% लोग इसी परिवार की भाषाएँ बोलते हैं।
भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषाएँ
इस परिवार में विश्व की अनेक महत्वपूर्ण भाषाएँ आती हैं, जैसे:
- भारतीय शाखा: संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला, उड़िया, असमिया, कश्मीरी, पंजाबी, उर्दू
- पश्चिमी शाखा: अंग्रेजी, जर्मन, फ्रांसीसी, स्पेनी, रूसी, डच
- ईरानी शाखा: फारसी (Persian), अवेस्ता
- अन्य भाषाएँ: ग्रीक, लैटिन, इतालवी, पुर्तगाली आदि
भारोपीय परिवार की भारतीय शाखा को ही “भारतीय आर्य भाषा परिवार” कहा जाता है।
भारोपीय भाषाओं की विशेषताएँ
- ध्वन्यात्मक प्रणाली में स्पष्टता
- लचीली और व्यवस्थित व्याकरणिक संरचना
- विभक्तियों व कालों का व्यापक प्रयोग
- शब्दावली में इंडो-यूरोपीय मूल के शब्दों की भरमार
भारतीय आर्य भाषाओं का विकास
भारतीय आर्य भाषाएँ निम्न क्रम में विकसित हुईं:
- संस्कृत → पाली → प्राकृत → अपभ्रंश → आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ
इस परिवार की भाषाएँ मुख्यतः उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में बोली जाती हैं।
(2) द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Family)
भारत का दूसरा सबसे बड़ा भाषा परिवार
द्रविड़ परिवार दक्षिण भारत में प्रमुखता से पाया जाता है। इसकी लगभग 26 भाषाएँ भारत और श्रीलंका में बोली जाती हैं।
मुख्य द्रविड़ भाषाएँ
- तमिल
- तेलुगु
- कन्नड़
- मलयालम
इनके अतिरिक्त—तुलु, कुइ, कुमा, गोंडी, कोया, ब्रहुई आदि भी इसी परिवार की भाषाएँ हैं।
विशेषताएँ
- अंत-अश्लिष्ट (agglutinative) भाषाएँ
- शब्दों के अंत में प्रत्ययों की भरमार
- व्याकरण में तर्कसंगतता
- ध्वनि प्रणाली में प्राचीनता
- संस्कृत के शब्दों का प्रभाव परन्तु अपनी विशिष्ट पहचान
द्रविड़ भाषाओं की सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपरा अत्यंत समृद्ध है, विशेषकर तमिल—जिसका साहित्य विश्व के सबसे प्राचीन साहित्यिक खजानों में गिना जाता है।
(3) तिब्बत-बर्मी भाषा परिवार (Tibeto-Burman / Sino-Tibetan)
भारत का उत्तर-पूर्वी भाषिक आधार
यह परिवार चीन से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैलता है। भारत में इसे “तिब्बत-चीनी भाषा परिवार” भी कहा जाता है।
इस परिवार की प्रमुख भाषाएँ
- तिब्बती
- बर्मी
- करेन
- काचिन
- ताई/शाई
- मन्दारिन (चीनी)
- भारत की कई पर्वतीय भाषाएँ
भारत में इस परिवार की भाषाएँ
ये भाषाएँ मुख्यतः इन क्षेत्रों में बोली जाती हैं:
- लद्दाख, कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र
- हिमाचल व उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र
- नेपाल, भूटान
- सिक्किम
- अरुणाचल प्रदेश
- असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम
इन भाषाओं में स्वर-आधारित ध्वनि तंत्र (tonal system) पाया जाता है—जो इन्हें भारतीय आर्य व द्रविड़ भाषाओं से अलग बनाता है।
(4) आग्नेय / आस्ट्रिक / निषाद भाषा परिवार (Austric Family)
यह परिवार दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत के आदिम जनजातीय क्षेत्रों में फैला है। भारत में इसे कभी-कभी “निषाद भाषा परिवार” भी कहा जाता है।
प्रमुख आग्नेय भाषाएँ
- संताली
- मुंडारी
- हो
- सवरा / शबर
- खड़िया
- कोरक
- भूमिज
- खासी
- निकोबारी
- मोन-ख्मेर समूह की भाषाएँ
भौगोलिक उपस्थिति
ये भाषाएँ मुख्यतः निम्न क्षेत्रों में पाई जाती हैं:
- राजस्थान
- मध्यप्रदेश
- ओड़िशा
- झारखण्ड
- पश्चिम बंगाल
- असम
- बिहार
- उत्तरप्रदेश के पहाड़ी हिस्से
इन भाषाओं का संपर्क लंबे समय तक हिन्दी, बंगला, उड़िया जैसी भाषाओं से रहा—जिससे परस्पर शब्दों का आदान-प्रदान हुआ।
आर्य भाषा परिवार (Indian Aryan Languages)
कई विद्वान भारतीय आर्य भाषाओं को भारोपीय परिवार की ही शाखा मानते हैं। परंतु भारत के भाषिक विकास और संस्कृति में इनकी विशिष्ट भूमिका के कारण इन्हें अक्सर अलग श्रेणी के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है।
प्रमुख आर्य भाषाएँ
- हिंदी
- उर्दू
- पंजाबी
- गुजराती
- मराठी
- सिंधी
- बंगला
- असमिया
- उड़िया
- कश्मीरी
इन भाषाओं का मूल स्रोत संस्कृत है।
भारतीय भाषाओं की समानताएँ और ‘एक भाषिक क्षेत्र’ का विचार
भारत में इतने बड़े पैमाने पर भाषाई विविधता होने के बावजूद एक विशाल भाषिक एकता भी मौजूद है। यह एकता हजारों वर्षों से साथ-साथ रहने, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और साझा सामाजिक संरचना के कारण विकसित हुई है।
समानताएँ—
- ध्वनियों का मिलना-जुलना
- शब्द-विन्यास की साम्यता
- व्याकरणिक संरचना में समानताएँ
- संस्कृत मूल शब्दों का प्रभाव
- परस्पर शब्द उधार लेना
इसी कारण कई विद्वानों ने भारत को एक “भाषिक क्षेत्र (Linguistic Area)” माना है, जहाँ अलग-अलग भाषाओं के बावजूद एक साझा भाषिक-सांस्कृतिक एकता विद्यमान है।
निष्कर्ष
भारत दुनिया का सबसे भाषावैविध्यपूर्ण देश है—फिर भी भाषा परिवारों का अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि हमारी भाषाओं के पीछे एक गहरी ऐतिहासिक एकता और सांस्कृतिक जुड़ाव है।
- भारोपीय (आर्य) भाषाएँ उत्तर भारत का भाषिक आधार हैं।
- द्रविड़ भाषाएँ दक्षिण भारत की आत्मा हैं।
- तिब्बत-बर्मी भाषाएँ भारत के पर्वतीय और पूर्वोत्तर क्षेत्रों की पहचान हैं।
- आग्नेय भाषाएँ भारत के आदिवासी और प्राचीन समुदायों का स्वरूप लिए हुए हैं।
इन चारों परिवारों का संगम भारत को दुनिया का सबसे समृद्ध, विविधतापूर्ण और एकीकृत भाषिक परिदृश्य प्रदान करता है।
इस प्रकार, भारत में भाषाओं के प्रमुख परिवारों की संख्या चार या पाँच मानी जाती है—वर्गीकरण के अनुसार। परंतु सभी परिवार मिलकर भारत की उस अद्वितीय “अनेकता में एकता” की भावना को अभिव्यक्त करते हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर की सबसे बड़ी विशेषता है।
इन्हें भी देखें –
भारत की भाषाएँ: संवैधानिक मान्यता, आधिकारिक स्वरूप और विश्व परिप्रेक्ष्य में भाषाई विविधता
- असमिया (आसामी), बंगाली, गुजराती, हिंदी,
- कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी,
- नेपाली, उड़िया (ओड़िया), पंजाबी, संस्कृत,
- सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो
- डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संथाली
हिन्दी की उपभाषाएं (हिन्दी की बोलियां):
- पश्चिमी हिन्दी: ब्रजभाषा, बुंदेली, कन्नौजी, हरियाणवी, खड़ी बोली (कौरवी), मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी, मेवाती।
- उत्तरी हिन्दी (पहाड़ी हिन्दी): गढ़वाली, कुमाऊँनी।
- पूर्वी हिन्दी: अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगही, मैथिली।
- दक्षिणी हिन्दी: दक्खिनी।