भूकंपीय जोखिम सूक्ष्मक्षेत्रीयकरण (SHM) – भारत में भूकंप सुरक्षा की वैज्ञानिक नींव

भारत एक भूकंपीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील देश है। हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत, गुजरात, कच्छ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और गंगा के मैदानी इलाके समय-समय पर विभिन्न तीव्रता के भूकंप झेलते आए हैं। पिछले सौ वर्षों में, भुज (2001), कच्छ (1956), उत्तरकाशी (1991), चमोली (1999), सुमात्रा-अंडमान (2004) और नेपाल-सीमा क्षेत्र (2015) जैसे भूकंपों ने व्यापक जनहानि और संपत्ति का नुकसान किया है।
इन आपदाओं से एक सबक स्पष्ट होता है — भूकंप को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसके प्रभाव को वैज्ञानिक तैयारी से कम किया जा सकता है।
इसी पृष्ठभूमि में भारत सरकार का भूकंपीय जोखिम सूक्ष्मक्षेत्रीयकरण (Seismic Hazard Microzonation – SHM) कार्यक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भूकंपीय जोखिम सूक्ष्मक्षेत्रीयकरण क्या है?

सरल शब्दों में, भूकंपीय सूक्ष्मक्षेत्रीयकरण का अर्थ है किसी बड़े क्षेत्र को उसकी भूगर्भीय, भूकंपीय और भू-तकनीकी विशेषताओं के आधार पर छोटे-छोटे उपक्षेत्रों (micro-zones) में विभाजित करना, ताकि प्रत्येक क्षेत्र का भूकंप जोखिम स्तर सटीक रूप से निर्धारित किया जा सके।
इस प्रक्रिया में विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी आंकड़ों का उपयोग कर यह बताया जाता है कि किसी इलाके में भूकंप आने पर वहाँ कितनी तीव्रता, कंपन और क्षति की संभावना है।

SHM की आवश्यकता क्यों है?

  1. विविध भूगर्भीय संरचना – भारत का भूगोल बहुत विविध है। कहीं कठोर चट्टानी संरचना है, तो कहीं गहरी तलछटी मिट्टी। यह विविधता भूकंप तरंगों के व्यवहार को बदल देती है।
  2. घनी आबादी और शहरीकरण – देश के प्रमुख शहर जैसे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, गुवाहाटी और बेंगलुरु घनी आबादी वाले हैं और भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में स्थित हैं।
  3. पिछले अनुभव – भूकंप के बाद बचाव और पुनर्निर्माण की बजाय अगर पहले से जोखिम का आकलन हो, तो नुकसान कम किया जा सकता है।
  4. निर्माण मानकों में सुधार – भवन निर्माण में वैज्ञानिक डिज़ाइन अपनाने के लिए जोखिम मानचित्र अत्यंत आवश्यक हैं।

SHM के प्रमुख उद्देश्य

  1. भूकंप खतरे का सटीक मूल्यांकन – भूकंप की तीव्रता, भूमि कंपन और संभावित क्षति का वैज्ञानिक विश्लेषण।
  2. आपदा पूर्व योजना – शहरी नियोजन, भवन डिज़ाइन और बुनियादी ढांचे की योजना में भूकंप जोखिम को ध्यान में रखना।
  3. आपदा के बाद पुनर्वास – भूकंप के बाद राहत, पुनर्निर्माण और पुनर्वास कार्य को वैज्ञानिक आधार देना।
  4. GIS आधारित डेटाबेस – भू-सूचना प्रणाली (GIS) पर आधारित विस्तृत और अद्यतन मानचित्र उपलब्ध कराना।
  5. मानक तय करना – भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) को तकनीकी डेटा उपलब्ध कराना ताकि भूकंप रोधी मानदंड तय किए जा सकें।

SHM प्रक्रिया में शामिल चरण

भूकंपीय सूक्ष्मक्षेत्रीयकरण केवल नक्शे बनाने का कार्य नहीं है, बल्कि यह एक बहु-चरणीय, बहु-विषयक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसमें शामिल मुख्य चरण हैं:

1. डेटा संग्रहण

  • भूगर्भीय डेटा – चट्टानों का प्रकार, भूगर्भीय संरचनाएँ, भ्रंश रेखाएँ (Fault lines)।
  • भूकंपीय डेटा – पिछले भूकंपों का रिकॉर्ड, कंपन तीव्रता, समयांतराल।
  • भू-तकनीकी डेटा – मिट्टी का प्रकार, घनत्व, जलस्तर, द्रवण (Liquefaction) की संभावना।

2. मैदान सर्वेक्षण और माप

  • माइक्रोट्रेमर सर्वे (Microtremor survey)
  • बोरहोल ड्रिलिंग
  • भूवैज्ञानिक प्रोफाइल बनाना

3. भूकंपीय खतरा मॉडलिंग

  • भूकंप तरंग प्रसार (Seismic wave propagation) का कंप्यूटर मॉडल।
  • विभिन्न तीव्रता पर भूमि की प्रतिक्रिया का आकलन।

4. GIS आधारित मानचित्रण

  • भूकंपीय जोन मानचित्र तैयार करना।
  • जोखिम स्तर के आधार पर क्षेत्रों का वर्गीकरण।

5. डेटा का वितरण और उपयोग

  • NDMA, BIS, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को डेटा उपलब्ध कराना।
  • नगर नियोजन और भवन निर्माण में इसका उपयोग।

जिम्मेदार संस्थाएँ और उनकी भूमिका

1. राष्ट्रीय भूकंपीय विज्ञान केंद्र (NCS)

  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के अंतर्गत कार्य करता है।
  • Seismic Hazard and Risk Assessment (SHRA) यूनिट SHM परियोजनाओं का संचालन करती है।

2. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)

  • NCS द्वारा तैयार डेटा का उपयोग कर नीतियाँ और दिशानिर्देश बनाता है।
  • आपदा प्रबंधन योजनाओं में SHM डेटा का समावेश।

3. भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)

  • भूकंप रोधी भवन निर्माण मानक तैयार करना और उन्हें अद्यतन करना।

SHM से जुड़े तकनीकी पहलू

  1. माइक्रोट्रेमर सर्वे – कम तीव्रता की प्राकृतिक कंपन मापकर भूमि की प्राकृतिक आवृत्ति का पता लगाना।
  2. Shear Wave Velocity (Vs30) – सतह से 30 मीटर गहराई तक की औसत कतरनी तरंग गति मापना, जिससे भूमि की कठोरता पता चलती है।
  3. द्रवण संभावना विश्लेषण – भूकंप के दौरान संतृप्त मिट्टी के द्रव में बदलने की संभावना का आकलन।
  4. Peak Ground Acceleration (PGA) – किसी स्थान पर भूकंप के दौरान भूमि की अधिकतम त्वरण क्षमता।

SHM के लाभ

  • शहरी सुरक्षा में वृद्धि – भवन और बुनियादी ढांचा डिज़ाइन में सुधार।
  • बीमा क्षेत्र में उपयोग – जोखिम आधारित बीमा प्रीमियम तय करने में सहायता।
  • औद्योगिक सुरक्षा – संवेदनशील औद्योगिक इकाइयों के स्थान चयन में मदद।
  • आपदा प्रबंधन क्षमता में सुधार – राहत एवं बचाव कार्य तेज और सटीक।

भारत में SHM परियोजनाओं की प्रगति

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने देश के विभिन्न महानगरों और संवेदनशील क्षेत्रों में SHM कार्य शुरू किया है।
अब तक दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी, बेंगलुरु, चेन्नई, देहरादून, गांधीनगर, पुदुचेरी आदि शहरों के विस्तृत भूकंपीय सूक्ष्मक्षेत्रीयकरण मानचित्र तैयार किए जा चुके हैं।
आने वाले वर्षों में यह पहल देश के सभी भूकंप-प्रवण क्षेत्रों तक विस्तार पाएगी।

चुनौतियाँ

  1. डेटा की कमी – ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में विस्तृत भूगर्भीय एवं भूकंपीय डेटा का अभाव।
  2. तकनीकी संसाधनों की सीमाएँ – उच्चस्तरीय उपकरण और प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता।
  3. मानकों का अनुपालन – कई स्थानों पर निर्माण मानकों की अनदेखी।
  4. जन-जागरूकता – भूकंप रोधी निर्माण की आवश्यकता के प्रति जागरूकता की कमी।

आगे का रास्ता

  • SHM को राष्ट्रीय स्तर पर अनिवार्य नीति के रूप में लागू करना।
  • नगर नियोजन, परिवहन अवसंरचना और औद्योगिक विकास योजनाओं में SHM डेटा का अनिवार्य समावेश।
  • स्कूलों, कॉलेजों और आम जनता में भूकंप सुरक्षा शिक्षा का विस्तार।
  • तकनीकी अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

भूकंपीय जोखिम सूक्ष्मक्षेत्रीयकरण केवल एक वैज्ञानिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी का आधार है। यह पहल न केवल शहरी नियोजन और निर्माण मानकों को बेहतर बनाती है, बल्कि आपदा प्रबंधन को भी अधिक प्रभावी बनाती है।
भारत जैसे भूकंप-प्रवण देश के लिए SHM एक आवश्यक निवेश है, जो आने वाले वर्षों में करोड़ों लोगों के जीवन और अरबों रुपये की संपत्ति को बचा सकता है।


इन्हें भी देखें –

Leave a Comment

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.