मस्तिष्क खाने वाला अमीबा: (Naegleria fowleri): केरल में बढ़ता खतरा, लक्षण, बचाव

भारत के केरल राज्य में हाल के दिनों में नाएग्लेरिया फॉवलेरी (Naegleria fowleri) नामक सूक्ष्म जीव के कारण होने वाली मौतों ने स्वास्थ्य तंत्र और आम जनता दोनों को चिंतित कर दिया है। यह जीव सामान्य परिस्थितियों में हानिरहित माना जाता है, किंतु जब दूषित पानी के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करता है, तो यह प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) नामक दुर्लभ लेकिन घातक रोग उत्पन्न करता है। इस रोग की मृत्यु दर विश्व स्तर पर 97% से भी अधिक है।

इस लेख में हम ब्रेन-ईटिंग अमीबा यानी नाएग्लेरिया फॉवलेरी का परिचय, इसकी संरचना, संक्रमण की प्रक्रिया, बीमारी के लक्षण, उपचार की चुनौतियाँ, रोकथाम के उपाय और केरल सहित विश्व स्तर पर इसके फैलाव का गहन अध्ययन करेंगे।

अमीबा क्या है?

अमीबा एक सूक्ष्म एककोशिकीय जीव (unicellular organism) है।

  • इसका आकार निरंतर बदलता रहता है।
  • यह जल, मिट्टी, झील, तालाब और धीमी गति से बहने वाली नदियों में पाया जाता है।
  • अधिकांश अमीबा मानव के लिए हानिरहित होते हैं, किंतु Naegleria fowleri जैसे कुछ अमीबा बेहद खतरनाक हो सकते हैं।

अमीबा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भोजन ग्रहण करने और गति करने के लिए स्यूडोपोडिया (pseudopodia) नामक अस्थायी अंग का उपयोग करता है।

नाएग्लेरिया फॉवलेरी: परिचय

  • नाएग्लेरिया फॉवलेरी एक फ्री-लिविंग माइक्रो अमीबा है, अर्थात इसे जीवित रहने के लिए किसी मेज़बान की आवश्यकता नहीं होती।
  • इसका आकार लगभग 10–25 माइक्रोमीटर होता है, जिसे नंगी आंख से नहीं देखा जा सकता।
  • यह गर्म और रुके हुए मीठे पानी में तेजी से बढ़ता है।
  • समुद्री पानी या अत्यधिक ठंडे वातावरण में यह जीवित नहीं रह सकता।
  • यह मिट्टी में भी पाया जा सकता है।

जीव के पनपने की परिस्थितियाँ

नाएग्लेरिया फॉवलेरी के लिए सबसे अनुकूल परिस्थितियाँ हैं:

  1. पानी का तापमान: 30°C से अधिक
  2. पानी का प्रकार: रुका हुआ मीठा पानी
  3. स्थान: झीलें, तालाब, कुएं, गर्म पानी के झरने, ठीक से क्लोरीन न किए गए स्विमिंग पूल

संक्रमण की प्रक्रिया

संक्रमण केवल तभी होता है जब दूषित पानी नाक के जरिए शरीर में प्रवेश करता है।

  • तैराकी, गोताखोरी, वाटर स्पोर्ट्स या स्नान करते समय यह पानी नाक में चला जाता है।
  • नाक से होते हुए यह सीधे olfactory nerve के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँच जाता है।
  • मस्तिष्क में पहुँचकर यह अमीबा तेजी से बढ़ता है और न्यूरॉन्स को नष्ट करने लगता है।
  • यह एंजाइम और विषैले पदार्थ छोड़ता है, जिससे मस्तिष्क में सूजन (swelling) और रक्तस्राव (bleeding) होता है।

होने वाली बीमारी: प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM)

  • यह रोग केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) को प्रभावित करता है।
  • इसका ऊष्मायन काल (incubation period) 1 से 9 दिनों तक होता है।
  • एक बार लक्षण प्रकट हो जाने के बाद रोग तेजी से प्रगति करता है और अधिकतर मामलों में मृत्यु निश्चित होती है।

लक्षण

संक्रमण के शुरुआती और अंतिम लक्षणों को दो चरणों में बाँटा जा सकता है:

प्रारंभिक लक्षण (1–5 दिन)

  • तेज बुखार
  • उल्टी और मतली
  • भयंकर सिरदर्द
  • गर्दन में अकड़न

उन्नत लक्षण (5–9 दिन)

  • मानसिक भ्रम (confusion)
  • दौरे (seizures)
  • संतुलन खोना
  • बेहोशी
  • अंततः कोमा और मृत्यु

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

  • नाएग्लेरिया फॉवलेरी का पहला मामला 1965 में ऑस्ट्रेलिया में दर्ज किया गया था।
  • अमेरिका, पाकिस्तान, थाईलैंड और भारत सहित कई देशों में समय-समय पर मामले सामने आते रहे हैं।
  • अमेरिका में 1962 से अब तक 160 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें केवल 4 लोग ही जीवित बच पाए।
  • भारत में खासकर केरल और दक्षिणी राज्यों में इसके मामले अधिक पाए जाते हैं।

केरल की स्थिति

  • हाल ही में केरल में नाएग्लेरिया फॉवलेरी के संक्रमण के चलते मात्र एक महीने के भीतर पाँच लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • दर्जनों लोग अस्पतालों में भर्ती हैं।
  • स्वास्थ्य विभाग ने चेतावनी जारी की है कि गर्म और रुके हुए पानी से बचें।
  • स्थानीय प्रशासन द्वारा स्विमिंग पूल और जल स्रोतों की नियमित क्लोरीनेशन की प्रक्रिया तेज की जा रही है।

निदान (Diagnosis)

नाएग्लेरिया फॉवलेरी के संक्रमण का निदान करना बेहद कठिन है, क्योंकि इसके लक्षण बैक्टीरियल या वायरल मेनिनजाइटिस से मिलते-जुलते हैं।

  • सीएसएफ (Cerebrospinal Fluid) की जाँच
  • मॉलिक्यूलर परीक्षण (PCR test)
  • मस्तिष्क की MRI और CT स्कैन
    इनसे पहचान की जाती है।

उपचार (Treatment)

  • अब तक कोई 100% प्रभावी इलाज उपलब्ध नहीं है।
  • कुछ एंटी-अमीबिक दवाइयाँ जैसे Amphotericin B, Miltefosine, Azithromycin, Rifampin, Fluconazole आदि का उपयोग किया जाता है।
  • लेकिन अधिकांश मामलों में इलाज देर से शुरू होता है, जिससे मृत्यु दर बहुत अधिक रहती है।

रोकथाम के उपाय

  1. पानी का उपयोग सावधानी से करें
    • नल के पानी को सीधे नाक में न डालें।
    • नाक धोने के लिए उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी ही प्रयोग करें।
  2. स्विमिंग और जलक्रीड़ा
    • गर्म और रुके हुए मीठे पानी में तैराकी न करें।
    • स्विमिंग पूल की क्लोरीनेशन और सफाई नियमित हो।
  3. नेति पॉट और नाक की सफाई
    • केवल जीवाणुरहित (sterile) पानी का प्रयोग करें।
    • पानी को कम से कम 3 मिनट तक उबालकर ठंडा करने के बाद ही प्रयोग करें।
  4. जल स्रोत की देखरेख
    • तालाब, कुएं और नदियों का पानी पीने या नाक धोने के लिए उपयोग न करें।
    • पानी को शुद्ध करने के लिए क्लोरीन ब्लीच या आधुनिक फिल्ट्रेशन तकनीक का प्रयोग करें।

सामाजिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ

  • ग्रामीण और दूरदराज़ इलाकों में अब भी लोग नालों, तालाबों और कुओं का पानी प्रयोग करते हैं।
  • जल आपूर्ति में स्वच्छता और नियमित परीक्षण की कमी है।
  • जनजागरूकता का स्तर बहुत कम है।
  • स्वास्थ्य केंद्रों में त्वरित निदान और उपचार की सुविधा सीमित है।

वैज्ञानिक शोध और भविष्य की दिशा

  • विश्वभर के वैज्ञानिक नई दवाओं और वैक्सीन पर शोध कर रहे हैं।
  • हाल के वर्षों में मिल्टेफोसिन (Miltefosine) ने कुछ मरीजों की जान बचाई है, लेकिन यह भी पूरी तरह प्रभावी नहीं है।
  • भविष्य में जेनेटिक रिसर्च और मॉलिक्यूलर मेडिसिन से अधिक प्रभावी इलाज मिलने की संभावना है।

निष्कर्ष

नाएग्लेरिया फॉवलेरी या ब्रेन-ईटिंग अमीबा एक ऐसा सूक्ष्म जीव है, जो सामान्य परिस्थितियों में हानिरहित होते हुए भी कभी-कभी मानव जीवन के लिए घातक बन जाता है।
केरल में हालिया मौतें इस बात का संकेत हैं कि हमें जलजनित बीमारियों और उनके कारणों के प्रति अत्यधिक सतर्क रहना होगा।

सबसे महत्वपूर्ण उपाय रोकथाम है – स्वच्छ और सुरक्षित पानी का प्रयोग, तैराकी में सावधानी, तथा जलस्रोतों का नियमित शुद्धिकरण।
यदि समाज, सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञ मिलकर व्यापक जनजागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करेंगे, तभी इस घातक रोग से लोगों की जान बचाई जा सकेगी।


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