मुहावरा और लोकोक्तियाँ 250+

अंग्रेज़ी में मुहावरा को Idiom कहते हैं और लोकोक्ति को Proverb कहा जाता है। मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग करना और उनका ठीक-ठीक अर्थ समझना बड़ा कठिन है, जो कि अभ्यास से ही सीखा जा सकता है।

मुहावरा

मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भाषा की सुंदर रचना हेतु आवश्यक माना जाता है। ये ऐसे शब्द अथवा शब्दों का समूह होते हैं, जिनका शाब्दिक अर्थ तो कुछ और निकलता है, परन्तु लाक्षणिक अर्थ कुछ और निकलता है। अपने साधारण अर्थ को छोड़ कर विशेष अर्थ को व्यक्त करने वाले वाक्यांश को मुहावरा कहते हैं। मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है ,जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘अभ्यास’ । मुहावरा पूर्ण वाक्य नहीं होता है, इसीलिए इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

लोकोक्तियाँ

लोकोक्तियाँ किसी दृष्टान्त, घटना या परिस्थिति पर आधारित कथन होता है। साधारणतया लोक में प्रचलित उक्तियों को लोकोक्ति कहा जाता है। ‘लोकोक्तियों’ को कहावतों, सूक्ति अथवा सुभाषित के नाम से भी जाना जाता है। लोकोक्तियाँ अंतर्कथाओं से भी संबंध रखती हैं। लोकोक्तियाँ स्वतंत्र वाक्य होती हैं, जिनमें एक पूरा भाव छिपा रहता है।

मुहावरे की विशेषताएँ

  • मुहवरा प्रसंग के अनुरूप अर्थ देता है।
  • मुहावरा पूर्ण वाक्य नहीं होता है।
  • मुहावरे का सामान्य अर्थ नहीं, विशिष्ट अर्थ लिया जाता है।
  • मुहावरे का प्रयोग वाक्य के प्रसंग में किया जाता है अलग नहीं।
  • मुहावरा अपना असली रूप कभी नहीं बदलता है । उसे पर्यायवाची शब्दों में अनुदित नहीं किया जा सकता है।
  • मुहावरे का शब्दार्थ ग्रहण नहीं किया जाता है उसका केवल विशेष अर्थ ही ग्रहण किया जाता है।
  • मुहावरे का अर्थ प्रसंग के अनुसार ही निश्चित होता है।
  • मुहावरे हिंदी भाषा की समृद्धि और सभ्यता के विकास के मापक है। इसकी अधिकता या न्यूनता से भाषा को बोलने वालों के श्रम, भाषा निर्माण की शक्ति, अध्धयन, मनन, सबका एक साथ पता चलता है। जो समाज जितना अधिक व्यवहारिक और कर्मठ होगा उसकी भाषा में इनका प्रयोग उतना ही अधिक होगा।
  • देश और समाज की तरह मुहावरे भी बनते बिगड़ते रहते हैं। नये समाज के साथ नए मुहावरे आते हैं।
  • हिंदी भाषा के ज्यादातर मुहावरों का सम्बन्ध हमारे शरीर के अंगों से भी होता है। यह दूसरी भाषा के मुहावरों में भी ऐसा ही होता है।

लोकोक्तियों की विशेषताएँ

  • लोकोक्ति एक पूर्ण वाक्य होती है।
  • इसका प्रयोग कथन की पुष्टि के लिए होता है।
  • यह विशेष संदर्भ में प्रयुक्त होती है और उसका विशेष अर्थ ही लिया जाता है।
  • लोकोक्ति की उत्पत्ति ‘लोक’ में प्रचलित उक्ति या कहावतो में मानी जाती है ।
  • लोकोक्ति वाक्य के रूप में प्रयोग होती है ।
  • समाज का सही मार्गदर्शन दिखाने के लिए।
  • धार्मिक एवं नैतिक उपदेश रूपी प्रवृत्ति।
  • हास्य और मनोरंजन में प्रयोग।
  • सर्वव्यापी एवं सर्वग्राही ( लोकोक्तियों के अर्थ प्रत्येक समाज में एक से रहते हैं।)
  • प्राचीन परंपरा से चलती आ रही है।
  • जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती है।

लोकोक्ति और मुहावरे में अन्तर

मुहावरा और लोकोक्तियाँ
  • लोकोक्ति पूर्ण होती है जबकि मुहावरा वाक्यांश होता है।
  • लोकोक्ति पूर्ण स्वतंत्र होती है, जबकि मुहावरा पूर्ण स्वतंत्र नहीं होता।
  • लोकोक्ति को अपना भाव प्रकट करने के लिए वाक्यांश की आवश्यकता नहीं, जबकि मुहावरा किसी वाक्य या वाक्यांश के जुड़कर अपना भाव प्रकट करता है।
  • लोकोक्ति में क्रिया कभी प्रारंभ में रहती है, कभी मध्य में आ जाती है और कभी अन्त में जबकि मुहावरे में यह अंत में होती है किंतु सभी मुहावरों में क्रिया आवश्यक नहीं है।

मुहावरे

  • अक्ल का अंधा- मूर्ख व्यक्ति; जिसमें समझ न हो।
  • अक्ल घास चरने जाना- समझ का अभाव होना।
  • अक्ल का दुश्मन- मूर्ख व्यक्ति।
  • अगर-मगर करना- आनाकानी या टालमटोल करना; बहाने बनाना।
  • अपना उल्लू सीधा करना- अपना मतलब निकालना।
  • अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना- अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
  • अपने पैरों पर खड़ा होना- स्वावलंबी होना।
  • आस्तीन का साँप- किसी अपने या निकट व्यक्ति द्वारा धोखा देना, कपटी मित्र।
  • आसमान से बातें करना- बहुत ऊँचा होना या तेज़ गति वाला।
  • आँख का तारा- बहुत प्रिय होना।
  • आँखें चार होना- प्रेम होना, आमना-सामना होना।
  • आँखों में धूल झोंकना- धोखा देना।
  • अंगार उगलना- अत्यंत क्रुद्ध होकर अपशब्द कहना।
  • उन्नीस-बीस का अंतर होना- बहुत कम अंतर होना।
  • अंधे की लाठी- एकमात्र सहारा।
  • उखड़ी-उखड़ी बातें करना- अन्यमनस्क होना या उदासीन बातें करना।
  • उल्टी गंगा बहाना- विपरीत चलना।
  • उड़ती चिड़िया के पर गिनना- रहस्य की बात दूर से जान लेना।
  • इज़्ज़त ख़ाक में मिलना- परिवारिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचना।
  • आँखें खुलना- जागना, वास्तविकता से अवगत होना, भ्रम दूर होना, सचेत होना।
  • ईद का चाँद होना- बहुत दिनों बाद दिखाई पड़ना।
  • ईंट से ईंट बजाना- पूरी तरह से नष्ट करना।
  • ईंट का जबाब पत्थर से देना- ज़बरदस्त बदला लेना; करारा जवाब देना।
  • कान भरना- किसी के ख़िलाफ़ किसी के मन में कोई बात बैठाना।
  • कूच करना- जाना; प्रस्थान करना; चले जाना।
  • ख़ून पसीना एक करना- कड़ी मेहनत करना।
  • घोड़े बेचकर सोना- हर ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाना; बिल्कुल निश्चिंत हो जाना; किसी प्रकार की चिन्ता न करना।
  • घी के दिये जलाना- अत्यधिक प्रसन्न होना; खुशियाँ मनाना; प्रसन्नता ज़ाहिर करना।
  • चार चाँद लगाना- किसी सुन्दर वस्तु को और सुन्दर बनाना; किसी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाना; किसी को ज़्यादा मान-सम्मान देना।
  • चैन की सांस लेना- काम निपटाकर निश्चिन्त होना; कार्य पूर्ण होने पर शान्ति महसूस करना।
  • चोली-दामन का साथ होना- गहरी मित्रता होना; अत्यधिक घनिष्ठता होना; बहुत मधुर सम्बन्ध होना।
  • दुम हिलाना- दीनतापूर्वक प्रसन्नता प्रकट करना।
  • चिकना घड़ा होना- बेशर्म होना; किसी बात का प्रभाव न पड़ना; अपमान होने पर भी अपमानित महसूस न करना; किसी की लिहाज़ न करना।
  • चुल्लू भर पानी में डूबना- लज्जित होना; अपमानित होना।
  • छक्के छुड़ाना- बुरी तरह हराना; अपने से बलवान पर विजय प्राप्त करना।
  • छाती पर मूँग दलना- पास रहकर कष्ट देना।
  • जान में जान आना- मुसीबत से निकलने पर निश्चिंत होना।
  • जले/ घाव पर नमक छिड़कना- दुःखी को और अधिक दुःखी करना; किसी का काम खराब होने पर हंसी उड़ाना।
  • दाँत खट्टे करना- प्रतिद्वंद्विता या लड़ाई में पछाड़ना।
  • नील का टीका लगाना- कलंक लगाना, कलंकित करना।
  • सिर ओखली में देना- व्यर्थ ही जान-बूझकर जोख़िम में पड़ना।
  • टोपी पहनाना- बेवकूफ़ बनाना; झाँसा देना।
  • हवा में गाँठ लगाना- बड़े-बड़े दावे करना; असम्भव कार्य को करने का दम भरना।
  • हाथ-खड़े कर देना- असमर्थता जताना; वक्त पर मदद से इन्कार करना।
  • दाहिना हाथ होना- बहुत बड़ा सहायक होना।
  • हाथ धोना- गँवा देना।
  • हाथ पाँव मारना- प्रयास करना।
  • पानी देना- सींचना, तर्पण करना।
  • पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर- पास में रहकर ख़तरनाक व्यक्ति से दुश्मनी रखना।
  • पासा पलटना- अच्छा से बुरा या बुरा से अच्छा भाग्य होना; भाग्य का अनुकूल से प्रतिकूल या प्रतिकूल से अनुकूल होना।
  • पीठ दिखाना- कायरता दिखाना, भाग जाना, विमुख होना।
  • पैर पसारना- फैलाना, आराम से लेटना।
  • टोपी उछालना- अपमानित करना।
  • ठगा-सा रह जाना- बहुत छोटा महसूस करना, अपमानित महसूस करना।

लोकोक्तियाँ

  • अधजल गगरी छलकत जाए- थोड़ा होने पर अधिक दिखावा करना।
  • अक्ल बड़ी या भैंस- शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का महत्व अधिक होता है |
  • अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना- सदा मूर्खतापूर्ण बातें या काम करते रहना।
  • अपना हाथ जगन्नाथ- स्वतंत्र व्यक्ति जिसके काम में कोई दखल न दें ।
  • अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना- अपना अहित स्वयं करना।
  • अपनी अपनी डफली,अपना अपना राग- विचारो का बेमेल होना|
  • अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत- समय गुज़रने पर पछतावा करने से कोई लाभ नहीं होता।
  • अशर्फ़ियाँ लुटाकर कोयलों पर मोहर लगाना- मूल्यवान वस्तु भले ही जाए, पर तुच्छ चीज़ों को बचाना।
  • आगे नाथ न पीछे पगहा- कोई भी जिम्मेदारी न होना; पूर्णत: बंधनरहित होना |
  • आसमान से गिरा खजूर में अटका- एक विपत्ति से निकलकर दूसरी में उलझना |
  • आप भला सो जग भला- स्वयं सही हो तो सारा संसार ठीक लगता है |
  • आगे कुआँ पीछे खाई- हर तरफ परेशानी होना; विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना |
  • आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास- इच्छितकार्य न कर पाने पर कोई अन्य कार्य कर लेना|
  • आटे के साथ घुन भी पिसता है- अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड पा जाताहै |
  • अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा- जहाँ मुखिया ही मूर्ख हो, वहाँ अन्याय ही होता है।
  • अंधों में काना राजा- मूर्खों में थोड़ा सा ज्ञानी।
  • अंधी पीसे कुत्ता खाये- परिश्रमी व्यक्ति के असावधानी पर अन्य व्यक्ति का उपभोग करना|
  • आम के आम गुठलियों के दाम- दुहरा लाभ होना |
  • आँख का अँधा, नाम नैनसुख- गुण न होने पर भी गुण का दिखावा करना।
  • ओखली मे सिर दिया तो मूसल से क्या डर- कठिन कार्यो में उलझ कर विपत्तियों से क्या घबराना |
  • एक अनार सौ बीमार- समान कम चाहने वाले बहुत ।
  • एक और एक ग्यारह- एकता मे शक्ति होती है |
  • एक पंथ दो काज- एक प्रयत्न से दोहरा लाभ।
  • एक तो चोरी ऊपर से सीनाज़ोरी- गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना|
  • एक हाथ से ताली नही बजती- झगड़ा एक ओर से नही होता |
  • एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा- अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना |
  • एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती- एक स्थान पर दो विचारधारायें नहीं रह सकतीं हैं|
  • ऊँट के मुँह मे ज़ीरा- बड़ी आवश्यकता के लिये कम देना।
  • कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली- दो असमान व्यक्तियों का मेल न होना |
  • कंगाली में आटा गीला- कमी में और नुकसान होना |
  • कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा- इधर -उधर से उल्टे सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना |
  • कौवा चला हंस की चाल- अयोग्य व्यक्ति का योग्य व्यक्ति जैसा बनने का प्रयत्न |
  • उल्टा चोर कोतवाल को डांटे- अपना अपराध स्वीकार करने की बजाय पूछने वाले को दोष देना।
  • खोदा पहाड़ निकली चुहिया- बहुत प्रयत्न करने पर कम फल प्राप्त होना |
  • खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे- दूसरे के क्रोध को अनुचित स्थान पर निकालना|
  • घर का भेदी लंका ढावे- आपस की फूट विनाश कर देती है।
  • घर की मुर्गी दाल बराबर- घर की वस्तु का महत्व नहीं होता |
  • घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने- झूठी शान दिखाना |
  • चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए- अत्यधिक कंजूस होना‌।
  • चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात- सुख क्षणिक होता है |
  • चोर की दाढ़ी में तिनका- अपराध बोध से व्यक्ति सहमा-सहमा रहता है; दोषी व्यक्ति का व्यवहार उसकी असलियत उजागर कर देता है।
  • चिराग़ तले अन्धेरा होना- देने वाले का स्वयं वंचित रहना; सबका काम कराने वाले का स्वयं का काम लटका रहना; सुविधा प्रदान करने वाले को स्वयं सुविधा न मिलना।
  • छ्छूंदर के सिर पर चमेली का तेल- अयोग्य व्यक्ति को अच्छी चीज़ देना।
  • छाती पर सांप लोटना- ईर्ष्या होना ।
  • छक्के छूटना- बुद्धि चकरा जाना।
  • छोटा मुँह बड़ी बात- अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना।
  • जाके पाँव व फटी बिबाई, सो क्या जाने पीर पराई- जिसने कभी दु:ख न देखा हो वह दूसरेरे के दु:ख को नहीं समझ सकता |
  • जिसकी लाठी उस की भैंस- शक्तिशाली विजयी होता है |
  • जिसकी उतर गई लोई उसका क्या करेगा कोई- निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती|
  • ढाक के वही तीन पात- परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं.
  • झूठ के पांव नहीं होते- झूठ ज़्यादा दिन तक नहीं ठहरता है।
  • डूबते हुए को तिनके का सहारा- घोर संकट मे जरा सी सहायता ही काफी होती है |
  • थोथा चना बाजे घना- ओछा आदमी ज्यादा डींग हाँकता है |
  • दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम- दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नही होता ।
  • दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते- मुफ्त की वस्तु का अच्छा बुरा नहीं देखा जाता |
  • दूध का दूध ,पानी का पानी- उचित न्याय ,विवेकपूर्ण न्याय ।
  • धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का- अस्थिर व्यक्ति प्रभावहीन होता है |
  • नहले पर दहला- एक से बढ़कर एक।
  • न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी- झगड़े को समूल नष्ट करना |
  • नाच न जाने आँगन टेढ़ा- खुद न जानने पर बहाने बनाना |
  • न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी- कार्य न करने हेतु असम्भव शर्ते रखना |
  • नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली ढोंगी व्यक्ति- जीवन भर पाप करने के बाद बुढ़ापे मे धर्मात्मा होने का ढोंग करना |
  • पगड़ी उछालना- अपमानित करना|
  • बिन माँगे मोती मिले,माँगे मिले न भीख- माँगने पर कुछ नहीं मिलता है |
  • पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखे कुदरत का खेल- भाग्यवश योग्य व्यक्ति द्वारा तुच्छ कार्य करने के लिये विवश होना |
  • बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा- वाँछित वस्तु की प्राप्ति के लिये अपने आस -पास नजर न डालना|
  • बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभानअल्लाह- छोटे का बड़े से भी अधिक चालाक होना|
  • बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद- किसी के गुणों को न जान कर उसके महत्व को न समझ सकना |
  • भागते चोर/भूत के लँगोटी ही सही- कुछ न मिलने पर जो भी मिला वही अच्छा |
  • ये मुंह और मसूर की दाल- अपनी औक़ात से बाहर की बात होना|
  • भैंस के आगे बीन बजाना- मूर्ख के सामने ज्ञान की बातें करना व्यर्थ है|
  • मान न मान मैं तेरा मेहमान- व्यर्थ मे गले पड़ना |
  • मुख मे राम बगल में छुरी- ऊपर से भला बनकर धोखा देना |
  • सौ सुनार की एक लुहार की- सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा बुद्धिमान व्यक्तिकम प्रयत्न मे लाभ पा लेता है ।
  • हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या- प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती|
  • हाथ –पाँव फूल जाना- डर से घबराना।
  • होनहार बिरवान के होत चीकने पात- प्रतिभा बचपन से दिखाई देती है|
  • हाथ पसारना/फैलाना- किसी से विवशतापूर्ण माँगना।

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