यमुना नदी तंत्र और सहायक नदियाँ | हिमालय से गंगा तक का सफर

यमुना नदी, जिसे भारत की पवित्र नदियों में से एक माना जाता है, गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है। इसका उद्गम स्थल हिमालय के निचले क्षेत्र में बंदरपूंछ शिखरों के पास यमुनोत्री ग्लेशियर से होता है, जो उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। यह ग्लेशियर 6,387 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यमुनोत्री, जो हरिद्वार के उत्तर में है, एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

यमुनोत्री मंदिर का निर्माण महारानी गुलरिया द्वारा 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में करवाया गया था। हालांकि, यह 1923 में नष्ट हो गया था, लेकिन मंदिर की मूर्तियाँ बच गईं और इसे पुनः निर्मित किया गया। 1982 में एक बार फिर यह क्षतिग्रस्त हुआ। यहाँ एक गर्म पानी का कुंड भी है जहाँ श्रद्धालु प्रसाद के रूप में चावल और आलू को कपड़ों की थैली में डालकर गर्म पानी में पका सकते हैं।

यमुनोत्री से नदी लगभग 200 किलोमीटर तक हिमालय की घाटियों से होकर बहती है। इस क्षेत्र में नदी की ढलान बहुत तेज होती है और नदी के आसपास की भूगोलिय स्थिति भी इसके प्रवाह के अनुसार प्रभावित होती है। पहले 170 किलोमीटर की यात्रा में इसे कई सहायक नदियाँ मिलती हैं जिनमें ऋषि गंगा, कूंता, हनुमान गंगा, टोंस और गिरी नदी प्रमुख हैं।

यमुना की सबसे बड़ी सहायक नदी टोंस है, जिसका उद्गम 3,900 मीटर की ऊंचाई पर होता है। टोंस का हर-की-दून क्षेत्र, जो हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में स्थित है, एक अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से भरी घाटी है। यह घाटी बर्फ के मैदानों और बर्फीली चोटियों से घिरी हुई है और यहाँ गोविंद पशु विहार अभयारण्य भी स्थित है।

यमुना नदी का उद्गम स्थल

यमुना नदी का उद्गम स्थल उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में स्थित यमुनोत्री ग्लेशियर है, जो समुद्र तल से लगभग 6,387 मीटर (21,000 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थान पश्चिमी हिमालय की बंदरपूंछ पर्वत श्रृंखला के निकट है और गंगा की सहायक नदियों में से एक के रूप में यमुना का धार्मिक और भौगोलिक महत्व अत्यधिक है।

यमुनोत्री का क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चार धाम यात्रा के चार धामों में से एक है, और यहाँ देवी यमुना का मंदिर स्थित है। माना जाता है कि यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलकर यमुना नदी भारतीय उपमहाद्वीप के कई हिस्सों को सिंचित करती है और इसे जीवनदायिनी नदी माना जाता है।

यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने के बाद, यमुना नदी गढ़वाल की पहाड़ियों से होकर बहती है और धीरे-धीरे मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, और अंत में प्रयागराज में गंगा नदी से मिलकर संगम बनाती है। यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने के बाद यमुना की यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व रखती है, और इसकी यात्रा का प्रारंभ बर्फीले हिमालय से होकर होता है, जो नदी के निर्मल और शीतल जल का स्रोत है।

यमुना का मैदानों में प्रवेश

लगभग 200 किलोमीटर की यात्रा के बाद, यमुना नदी हिमालय की घाटियों से निकलकर शिवालिक पहाड़ियों के माध्यम से भारत के इंडो-गैंगेटिक मैदानों में प्रवेश करती है। इस क्षेत्र में नदी का जल कई अन्य सहायक नदियों से मिलकर और भी विस्तृत हो जाता है। यमुना उत्तराखंड के डाक पत्थर नामक स्थान पर मैदानों में प्रवेश करती है, जहाँ से इसके जल का विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है।

डाक पत्थर से यह नदी प्रसिद्ध सिख धार्मिक स्थल पौंटा साहिब से होकर बहती है। यहाँ से नदी हरियाणा राज्य में प्रवेश करती है और यमुनानगर जिले के हठनीकुंड या ताजेवाला बैराज तक पहुँचती है। यहाँ से नदी का जल पश्चिमी यमुना नहर और पूर्वी यमुना नहर में सिंचाई के लिए मोड़ दिया जाता है। शुष्क मौसम में, इस बैराज के बाद नदी के कुछ हिस्सों में केवल 160 क्यूसेक का पर्यावरणीय प्रवाह छोड़ा जाता है, जिससे नदी कई जगहों पर सूखी दिखाई देती है।

टोंस नदी और हर-की-दून क्षेत्र

टोंस नदी, यमुना की सबसे बड़ी सहायक नदी है, जो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमाओं से होकर बहती है। इसके ऊपरी क्षेत्रों में हर-की-दून घाटी है जो तीन ओर से हिमालय की चोटियों से घिरी एक विशाल घास से ढकी हुई अल्पाइन भूमि है। यहाँ के हरे-भरे जंगलों में नीली चीड़ और एल्डर जैसे पेड़ पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में गोविंद पशु विहार अभयारण्य स्थित है, जो कई उच्च ऊंचाई वाले पक्षी जैसे हिम तीतर और मोनाल तीतर का घर है। टोंस नदी का प्रवाह बेहद संकरा और पहाड़ी क्षेत्रों से होकर होता है जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ाता है।

दिल्ली में यमुना की स्थिति

यमुना नदी दिल्ली में प्रवेश करने से पहले हरियाणा के पल्ला गाँव के पास अपनी जल धारा को पुनः प्राप्त करती है। दिल्ली में यमुना का प्रवाह वजीराबाद बैराज द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जहाँ से दिल्ली के लिए पीने का पानी लिया जाता है। वजीराबाद बैराज के बाद शुष्क मौसम में कोई जल प्रवाहित नहीं होता और केवल आंशिक रूप से उपचारित घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल ही नदी में बहता है। इस जल का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा सिंचाई विभाग द्वारा पश्चिमी यमुना नहर से नजफगढ़ नाले के माध्यम से लाया जाता है और इसे आगरा नहर में मोड़ दिया जाता है।

इसके 22 किलोमीटर बाद ओखला बैराज स्थित है, जहाँ से यमुना के जल का अधिकांश भाग सिंचाई के लिए आगरा नहर में भेजा जाता है।ओखला बैराज के बाद यमुना में जो भी जल प्रवाहित होता है, वह पूर्वी दिल्ली, नोएडा और साहिबाबाद से निकलने वाले घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल के कारण होता है। यमुना नदी दिल्ली से होकर बहने के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में गंगा और अदृश्य सरस्वती नदी से मिल जाती है। इस प्रकार, यमुना का अधिकांश प्रवाह शुष्क मौसम में जलापूर्ति के लिए अवरुद्ध हो जाता है और इस कारण यह एक सतत प्रवाह वाली नदी नहीं रह जाती

यमुना का प्रवाह क्षेत्र

यमुना नदी का प्रवाह क्षेत्र भौगोलिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह नदी पश्चिमी हिमालय के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है और उत्तर भारत के बड़े हिस्से को सिंचित करते हुए प्रयागराज में गंगा नदी से मिलती है। यमुना का औसत प्रवाह 10 फीट से 35 फीट की गहराई के साथ विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग मापों में होता है, और दिल्ली में इसकी गहराई सबसे अधिक 68 फीट तक पहुँच जाती है।

आधुनिक प्रवाह

वर्तमान में यमुना नदी सहारनपुर जिले के फैजाबाद गाँव के पास मैदान में प्रवेश करती है और उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा की सीमाओं से होते हुए दिल्ली, आगरा और प्रयागराज तक प्रवाहित होती है। इसके प्रमुख सहायक नदियों में मस्कर्रा, कठ, हिण्डन और सबी जैसी नदियाँ शामिल हैं। यह नदियाँ यमुना को पानी प्रदान करती हैं, जिससे इसका आकार बढ़ जाता है।

सहारनपुर से दिल्ली तक यमुना नदी के दोनों किनारों पर हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई छोटे और बड़े नगर स्थित हैं। दिल्ली के पास यमुना पर ओखला बांध बनाया गया है, जिससे नदी की धारा नियंत्रित होती है और सिंचाई के लिए नहरें निकाली जाती हैं। यह नहरें यमुना का जल हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कृषि क्षेत्रों में पहुँचाती हैं।

प्राचीन प्रवाह

पौराणिक काल में यमुना का प्रवाह वर्तमान प्रवाह से अलग था। यमुना का प्राचीन प्रवाह मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन के आसपास रहा है। शत्रुघ्न जी द्वारा मथुरा नगरी की स्थापना के समय यमुना मधुबन के समीप बहती थी। वाल्मीकि रामायण और विष्णु पुराण में भी यमुना के विभिन्न प्रवाहों का उल्लेख मिलता है। कृष्ण काल में यमुना का प्रवाह कटरा केशव देव के निकट से होता था, जहाँ कालांतर में यह अपने वर्तमान स्थान पर आ गई।

यमुना के प्रवाह में ऐतिहासिक परिवर्तन

यमुना के प्रवाह में समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं। सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय विद्वान टेवर्नियर ने कटरा के पास यमुना की धारा होने का अनुमान लगाया था। इसके अलावा, बौद्ध काल और बाद में सोलहवीं शताब्दी तक यमुना की एक शाखा मथुरा के पास प्रवाहित होती रही। वृंदावन के पास भी यमुना का प्रवाह गोवर्धन के नजदीक हुआ करता था, लेकिन वर्तमान में वह स्थान नदी से चार मील दूर हो गया है।

यमुना के प्रवाह में बदलाव के ऐतिहासिक साक्ष्य से पता चलता है कि नदी ने अपने दीर्घकालिक अस्तित्व के दौरान कई स्थानों पर अपना मार्ग बदला है।

यमुना की सहायक नदियाँ

यमुना नदी की कई महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ हैं जो इसके जल को बढ़ाती हैं और इसका प्रभाव गंगा के बेसिन पर पड़ता है। यमुना की कुछ सहायक नदियां हिमालय से निकलती है और कुछ सहायक नदियाँ मैदानी इलाकों से आती हैं। यमुना की हिमालय क्षेत्र की सहायक नदियां ऋषि गंगा, हनुमान गंगा, टोंस, और गिरि आदि है, तथा मैदानी इलाकों की सहायक नदियां हिंडन, चंबल, सिंध, बेतवा, और केन आदि हैं।

यमुना के प्रवाह में टोंस, चंबल, बेतवा, केन, गिरी और हिंडन जैसी नदियाँ प्रमुख योगदान देती हैं। इनमें से टोंस नदी सबसे बड़ी सहायक नदी है, जो हिमालय के बंदरपुंछ ग्लेशियर से निकलती है। यह नदी उत्तराखंड के कालसी के पास यमुना में मिलती है।

चंबल नदी, यमुना की सबसे बड़ी दक्षिणी सहायक नदी है। इसका उद्गम मध्य प्रदेश के महू के पास विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के “जानापाव पर्वत ” से होता है और यह राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमाओं से होकर बहती है। यह नदी दक्षिण की ओर मुड़ कर उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना में शामिल होने के पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच सीमा बनाती है। यमुना की अन्य छोटी सहायक नदियों में गिरि, सिंध, उत्तांगन, सेंगर और रिंद नदियाँ शामिल हैं।

हिंडन और गिरी नदियाँ

हिंडन नदी, यमुना की एक अन्य प्रमुख सहायक नदी है। यह पूरी तरह वर्षा पर निर्भर नदी है और इसका प्रवाह उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों से होकर होता है। गिरी नदी, हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण नदी है और यह यमुना में पौंटा साहिब के पास मिलती है। इसके अलावा, बेतवा और केन नदियाँ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं से होकर बहती हैं और यमुना में मिलती हैं।

चंबल और उसकी सहायक नदियाँ

चंबल नदी की सहायक नदियों में काली सिंध, बनास और पार्वती प्रमुख हैं। काली सिंध नदी का उद्गम विंध्याचल पर्वत श्रृंखला से होता है और यह राजस्थान के कोटा जिले में चंबल में मिलती है। बनास नदी पूरी तरह राजस्थान में बहती है और यह चंबल की प्रमुख सहायक नदी है। यह नदी खमनोर पहाड़ियों से निकलती है और कोटा जिले में चंबल में मिलती है।

यमुना की जलवायु और पारिस्थितिकी

यमुना नदी का जलवायु और पारिस्थितिक तंत्र बेहद विविध है। इसके ऊपरी हिस्सों में ठंडी जलवायु होती है जबकि मैदानों में गर्म और शुष्क जलवायु होती है। यमुना नदी का बेसिन कई राज्यों में फैला हुआ है जिसमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली शामिल हैं। नदी के किनारे स्थित घने जंगल, जिसमें साल, खैर और शीशम के पेड़ प्रमुख हैं, वन्यजीवों के लिए आदर्श स्थान प्रदान करते हैं। यमुना के पश्चिमी किनारों पर भारतीय हाथियों की अंतिम सीमा होती है। यमुना बेसिन का 70.9% क्षेत्र इसकी सहायक नदियों द्वारा जल प्रदान करता है।

यमुना का आध्यात्मिक महत्व

यमुना नदी को हिन्दू धर्म में एक देवी के रूप में पूजा जाता है। इसका पौराणिक संबंध सूर्य देव से है, जिन्हें यमुना के पिता के रूप में स्वीकार किया गया है। यम, मृत्यु के देवता, को यमुना का भाई माना जाता है, जो इसे और भी गहरे अर्थों से जोड़ता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण को यमुना के पति के रूप में माना जाता है, जो ब्रज संस्कृति में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।

यमुना को ब्रजवासियों की माता कहा जाता है, और इसे श्रद्धापूर्वक “यमुना मैया” के नाम से पुकारा जाता है। ब्रह्म पुराण में यमुना के आध्यात्मिक स्वरूप का वर्णन किया गया है, जिसमें इसे सृष्टि का आधार और सच्चिदानंद स्वरूप माना गया है। इस प्रकार यमुना न केवल प्राकृतिक धारा है, बल्कि इसे ब्रह्म रूपी और चिदानंदमयी कहा गया है। यमुना की महिमा का वर्णन गर्ग संहिता में भी मिलता है, जहाँ इसके पाँच प्रमुख नामों का उल्लेख किया गया है – पटल, पद्धति, कवय, स्तोत्र और सहस्त्र।

यमुना नदी से सम्बंधित पौराणिक कथाएँ और धार्मिक प्रसंग

यमुना से जुड़े धार्मिक प्रसंग भी अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक हैं। ब्रज के कण-कण में यमुना की उपस्थिति मानी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने यमुना के तट पर ही अपनी बाल लीलाएँ की थीं। यमुना नदी के किनारे ही उन्होंने कालिया नाग का उद्धार किया, जो इस नदी के जल में वास करता था और विषैली गैस उत्पन्न करता था। यह प्रसंग यमुना नदी की धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ाता है, जिससे इसे शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।

इसके अलावा, यमुना का उल्लेख महाभारत और रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, जहाँ इसका धार्मिक महत्व वर्णित है। रामायण के अरण्यकांड में यमुना का उल्लेख राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास के दौरान होता है, जब वे इस पवित्र नदी को पार करते हैं।

यमुना का भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व

यमुना नदी का स्रोत उत्तराखंड के यमुनोत्री से है, जो हिमालय की तलहटी में स्थित है। यमुनोत्री से निकलकर यह नदी उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से होकर बहती है। इसका कुल मार्ग लगभग 1,376 किलोमीटर लंबा है, और यह कई महत्वपूर्ण स्थानों से होकर गुजरती है, जिनमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, और मध्य प्रदेश शामिल हैं।

यमुना नदी का सबसे प्रमुख संगम प्रयागराज (इलाहाबाद) में होता है, जहाँ यह गंगा और सरस्वती नदी के साथ मिलती है। इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है और यह हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह स्थान कुंभ मेले के आयोजन का केंद्र भी है, जहाँ लाखों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।

इतिहास के पन्नों में यमुना का उल्लेख विभिन्न समयों पर मिलता है। मुगल सम्राटों ने भी यमुना के किनारे अपने प्रमुख नगर बसाए थे। प्रसिद्ध मुगल बादशाह अकबर ने अपने शासनकाल में यमुना के किनारे आगरा और दिल्ली को महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित किया। ताजमहल, जो विश्व धरोहर स्थल है, यमुना के किनारे स्थित है, जिससे यह नदी मुगल वास्तुकला और संस्कृति से भी जुड़ गई है।

यमुना का पर्यावरणीय महत्व

यमुना नदी उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में कृषि और पीने के पानी का प्रमुख स्रोत है। इसका जल कई नहरों के माध्यम से उत्तर भारत के बड़े हिस्से में पहुँचाया जाता है, जो सिंचाई के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस नदी से पीने का पानी प्राप्त करते हैं।

हालांकि, हाल के वर्षों में यमुना नदी प्रदूषण के गंभीर संकट से गुजर रही है। दिल्ली और अन्य बड़े शहरों से निकलने वाले घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट का यमुना में बहाव एक बड़ी समस्या बन गया है। इससे नदी के पानी की गुणवत्ता अत्यधिक प्रभावित हुई है, और यह नदी अपने विभिन्न खंडों में एक समय शुद्ध जल का स्रोत होने के बावजूद अब विषाक्त होती जा रही है।

यमुना नदी का वर्तमान परिदृश्य

वर्तमान में यमुना नदी भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। इसके पानी की गुणवत्ता में गिरावट आई है, खासकर दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में, जहाँ घरेलू और औद्योगिक कचरे का नदी में बड़े पैमाने पर निर्वहन किया जाता है। सरकार और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों ने यमुना की सफाई और पुनर्जीवित करने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिनमें यमुना एक्शन प्लान प्रमुख है। इसके अंतर्गत नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए विभिन्न परियोजनाएँ और योजनाएँ बनाई गई हैं।

हालांकि, यमुना की सफाई और इसके पुनर्वास की प्रक्रिया अत्यंत चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण ने इस पवित्र नदी को प्रदूषण की कगार पर ला खड़ा किया है। इसके जल को शुद्ध करने और इसे फिर से जीवनदायिनी स्रोत बनाने के लिए दीर्घकालिक और समर्पित प्रयासों की आवश्यकता है।

यमुना नदी भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास का एक अभिन्न अंग है। इसका आध्यात्मिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय महत्व असीम है। यह नदी न केवल एक पवित्र धारा है, बल्कि लाखों लोगों के जीवन का आधार भी है। इसका प्रवाह हिमालय के ऊपरी हिस्सों से शुरू होकर उत्तर भारत के मैदानी इलाकों से गुजरता है और अंततः गंगा नदी में मिल जाता है। हालांकि, औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट के कारण इसका प्रदूषण स्तर बहुत बढ़ गया है।

यमुना की सफाई और पुनरुद्धार के लिए विभिन्न योजनाएँ बनाई जा रही हैं, लेकिन इसे पूरी तरह सफल बनाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। यमुना के जल को संरक्षित करना और इसे प्रदूषण मुक्त बनाना न केवल पर्यावरण की दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए भी अनिवार्य है।

यमुना मैया की महिमा और इसका धार्मिक महत्व भारतीय जनमानस में सदैव रहेगा, और इस पवित्र नदी के संरक्षण के प्रयासों को और अधिक सशक्त करना समय की आवश्यकता है।


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