राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस 2025 | डेटा आधारित भविष्य की ओर एक सशक्त कदम

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस 2025 पर आधारित यह लेख प्रोफेसर पी.सी. महालनोबिस के योगदानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए भारत में आंकड़ों और सांख्यिकी की भूमिका को रेखांकित करता है। लेख में इस दिवस के इतिहास, उद्देश्य, वार्षिक आयोजनों, शासन में सांख्यिकी की भूमिका, शिक्षा व तकनीकी क्षेत्र में प्रभाव और भविष्य की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह लेख डेटा-आधारित नीति निर्माण और युवाओं में सांख्यिकीय सोच के प्रसार की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

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डेटा का युग और सांख्यिकी का महत्व

21वीं सदी को यदि ‘डेटा का युग’ कहा जाए, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक निर्णयों की नींव आंकड़ों पर ही टिकी होती है। आधुनिक शासन प्रणाली, उद्योग, विज्ञान, तकनीक और शोध कार्यों में डेटा और उसके सांख्यिकीय विश्लेषण की भूमिका अनिवार्य हो चुकी है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में नीति-निर्माण और विकास योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सटीक और सम्यक आंकड़ों की आवश्यकता होती है। इसी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करने और जनमानस में सांख्यिकी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर वर्ष 29 जून को राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रोफेसर पी.सी. महालनोबिस: आधुनिक भारतीय सांख्यिकी के जनक

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस का आयोजन भारतीय सांख्यिकी के अग्रदूत प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस की स्मृति में होता है, जिनकी जयंती 29 जून को होती है। वे न केवल एक महान वैज्ञानिक थे, बल्कि एक दूरदर्शी योजनाकार और संस्थापक भी थे। उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) की स्थापना की, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे (NSS) की परिकल्पना की, और भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई।

उनकी सबसे प्रसिद्ध देन है – महालनोबिस दूरी (Mahalanobis Distance) – जो बहुविकल्पीय आंकड़ों के विश्लेषण में प्रयुक्त होने वाली एक महत्वपूर्ण सांख्यिकीय तकनीक है। यह दूरी आज भी वैश्विक स्तर पर डेटा विज्ञान, मशीन लर्निंग, और जनसांख्यिकी जैसे क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और औपचारिक घोषणा

भारत सरकार ने वर्ष 2007 में 29 जून को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य सांख्यिकी और डेटा विश्लेषण के महत्व को व्यापक स्तर पर प्रचारित करना है, जिससे जनता विशेष रूप से युवा वर्ग में डेटा आधारित सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सके।

इस दिवस का आयोजन सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा किया जाता है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, सांख्यिकीविदों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों की भागीदारी होती है।

दिवस मनाने का उद्देश्य

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस केवल एक स्मृति दिवस नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणादायक मंच है, जो निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करता है—

  1. सांख्यिकी की भूमिका को रेखांकित करना – नीति निर्माण, शासन, योजना निर्माण, मूल्यांकन और निगरानी में आंकड़ों की भूमिका को जनता के समक्ष प्रस्तुत करना।
  2. डेटा-आधारित सोच को प्रोत्साहन – स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में युवाओं में विश्लेषणात्मक सोच, तर्कशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
  3. सांख्यिकीय संस्थानों की मान्यता – भारतीय सांख्यिकी संस्थान, NSSO, CSO जैसे संगठनों के योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार करना।
  4. सतत विकास लक्ष्यों में सहयोग – सटीक आंकड़ों के माध्यम से स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में सतत विकास सुनिश्चित करना।

राष्ट्रव्यापी आयोजन और गतिविधियाँ

हर वर्ष 29 जून को देशभर में सेमिनार, कार्यशालाएं, पैनल चर्चा, प्रदर्शनियाँ, प्रतियोगिताएं और सम्मान समारोह आयोजित किए जाते हैं। इन आयोजनों में नीति निर्माता, सांख्यिकीविद, विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, शोधकर्ता, सरकारी अधिकारी और छात्र-छात्राएं भाग लेते हैं।

वार्षिक थीम

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस की हर वर्ष एक विशेष थीम होती है, जो किसी समसामयिक और सामाजिक-आर्थिक मुद्दे से संबंधित होती है, जैसे—

  • सतत विकास लक्ष्य और सांख्यिकी
  • जलवायु परिवर्तन के लिए डेटा विश्लेषण
  • डिजिटल भारत और डेटा पारदर्शिता
  • स्वास्थ्य नीति और जनसांख्यिकी आंकड़े
  • महिला सशक्तिकरण में सांख्यिकी की भूमिका

2025 की थीम क्या होगी, यह MoSPI द्वारा जल्द घोषित की जाएगी, परंतु अनुमान है कि यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा नीति जैसे विषयों पर केंद्रित हो सकती है।

सांख्यिकी और शासन: एक गहरा संबंध

नीति निर्माण में भूमिका

सांख्यिकी किसी भी राष्ट्र के नीति निर्माण की नींव होती है। भारत सरकार की कई योजनाएं जैसे—

  • जनधन योजना (बैंकिंग पहुंच के आँकड़े),
  • स्वच्छ भारत मिशन (स्वच्छता मानकों की निगरानी),
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (शिक्षा संबंधी डेटा),
  • प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना (कृषि उत्पादकता के आँकड़े)

— इन्हीं आंकड़ों के आधार पर बनती हैं और उनका मूल्यांकन भी संभव होता है।

प्रमुख आँकड़े और संकेतक

  • GDP (सकल घरेलू उत्पाद)
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)
  • बेरोज़गारी दर
  • जनसंख्या वृद्धि दर
  • स्वास्थ्य सूचकांक (IMR, MMR आदि)

ये सभी आंकड़े शासन और अर्थव्यवस्था को दिशा देते हैं।

प्रमाण आधारित शासन

Evidence-Based Governance का मतलब है – “तथ्य आधारित निर्णय”। जब सरकार योजनाएं बनाती है और उनका निष्पादन करती है, तो उसमें डेटा ट्रैकिंग, सर्वेक्षण, और सांख्यिकीय विश्लेषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सांख्यिकी का व्यापक प्रभाव: शिक्षा से तकनीक तक

शिक्षा और अनुसंधान

स्कूलों और विश्वविद्यालयों में सांख्यिकी एक स्वतंत्र और सम्मानजनक विषय बनकर उभरा है। छात्र इसे गणित, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, जैव विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान के साथ जोड़कर पढ़ते हैं। शोध संस्थानों में सांख्यिकीय मॉडलिंग का उपयोग सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को समझने में होता है।

तकनीकी क्षेत्र में योगदान

आज के तकनीकी युग में डेटा साइंस, मशीन लर्निंग, AI और Big Data Analytics जैसे क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहे हैं। इनमें सांख्यिकी की भूमिका आधारशिला जैसी है।

वाणिज्य और उद्योग में उपयोग

बैंकिंग, बीमा, मार्केटिंग, मेडिकल रिसर्च, फार्मा इंडस्ट्री और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में आंकड़ों के विश्लेषण के बिना कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। सांख्यिकी लागत प्रबंधन, जोखिम मूल्यांकन और उपभोक्ता व्यवहार के विश्लेषण में उपयोगी सिद्ध होती है।

भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएँ

डेटा सुलभता और गुणवत्ता

भारत जैसे देश में आंकड़ों की गुणवत्ता और सुलभता आज भी चुनौती है। कई बार आंकड़ों में अंतरविरोध, पुरातन सर्वे पद्धतियां, और डेटा संग्रह में तकनीकी सीमाएं होती हैं। आने वाले समय में हमें—

  • रीयल-टाइम डेटा कलेक्शन,
  • ऑटोमेटेड डेटा प्रोसेसिंग,
  • खुले और पारदर्शी डेटा प्लेटफ़ॉर्म,
  • डेटा गोपनीयता और नैतिकता

— जैसे क्षेत्रों पर गंभीरता से कार्य करना होगा।

युवाओं में सांख्यिकीय संस्कृति

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस यह संदेश भी देता है कि यदि हमें भविष्य की चुनौतियों से निपटना है, तो युवाओं में विश्लेषणात्मक कौशल, डेटा प्रबंधन, और सांख्यिकीय उपकरणों के व्यावहारिक ज्ञान को सशक्त बनाना होगा।

समापन: आंकड़ों के माध्यम से समृद्ध भारत की ओर

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस केवल एक जयंती नहीं, बल्कि यह देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की एक बुनियादी आवश्यकता को पहचानने और उसे संस्थागत रूप से मज़बूत करने का दिन है। प्रोफेसर पी.सी. महालनोबिस जैसे महान चिंतकों के योगदान की स्मृति में यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम ‘सांख्यिकीय सोच’ को जन-जन तक पहुंचाएं

भारत यदि वैश्विक डेटा अर्थव्यवस्था में नेतृत्व करना चाहता है, तो इसके लिए आवश्यक है—

  • सशक्त सांख्यिकीय संस्थान,
  • डेटा साक्षर नागरिक,
  • तकनीकी-सक्षम संसाधन,
  • और नीति-निर्माण में डेटा-आधारित दृष्टिकोण

इस राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस 2025 पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भारत को एक डेटा-सक्षम, सशक्त और सतत राष्ट्र के रूप में विकसित करने के लिए सांख्यिकी और वैज्ञानिक सोच को अपनाएंगे और आगे बढ़ाएंगे।

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