मध्य-पूर्व के इतिहास में लेबनान संघर्ष एक ऐसा अध्याय है जो न केवल क्षेत्रीय सत्ता संघर्ष को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक कूटनीति, धार्मिक ध्रुवीकरण और सैन्य हस्तक्षेप की जटिलताओं को भी उजागर करता है। इस संघर्ष में तीन प्रमुख शक्तियाँ — इज़राइल, ईरान और हिज़बुल्लाह — शामिल हैं, जिनकी भूमिका समय के साथ गहरी और जटिल होती गई।
यह लेख इस त्रिकोणीय संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, मुख्य घटनाक्रमों, कूटनीतिक परिणामों और वैश्विक प्रभावों का विश्लेषण करता है।
लेबनान: एक संवेदनशील देश की पृष्ठभूमि
लेबनान एक बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक देश है, जहां शिया, सुन्नी, ईसाई और द्रूज़ समुदायों का सहअस्तित्व है। इसकी भौगोलिक स्थिति भी रणनीतिक है — यह इज़राइल, सीरिया और भूमध्य सागर से घिरा हुआ है।
1960 के दशक तक लेबनान को “पेरिस ऑफ द मिडल ईस्ट” कहा जाता था, लेकिन 1975 से लेकर 1990 तक चला गृहयुद्ध इस देश के लिए एक विनाशकारी मोड़ साबित हुआ। इसी काल में हिज़बुल्लाह का उदय हुआ और ईरान-इज़राइल शत्रुता का मंच लेबनान बन गया।
हिज़बुल्लाह का उदय और ईरानी समर्थन
हिज़बुल्लाह (Hezbollah) एक शिया इस्लामिक राजनीतिक और अर्धसैनिक संगठन है जिसकी स्थापना 1982 में हुई। यह संगठन ईरान की इस्लामिक क्रांति से प्रेरित था और इसका मुख्य उद्देश्य इज़राइल के खिलाफ ‘प्रतिरोध’ करना था।
- ईरान ने इस संगठन को आर्थिक, वैचारिक और सैन्य समर्थन दिया।
- सीरिया ने इसे रणनीतिक सहायता दी।
- हिज़बुल्लाह ने लेबनान के दक्षिणी हिस्सों में गहरी जड़ें जमाईं।
1982: इज़राइल का लेबनान पर आक्रमण
इज़राइल ने 1982 में दक्षिणी लेबनान में सैन्य हस्तक्षेप किया ताकि फलस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) को खत्म किया जा सके। लेकिन इस अभियान ने एक नया दुश्मन खड़ा कर दिया — हिज़बुल्लाह।
- इज़राइल ने बेरूत तक सैन्य पहुँच बनाई।
- इस हस्तक्षेप ने स्थानीय आबादी में इज़राइल के प्रति आक्रोश पैदा किया।
- हिज़बुल्लाह ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर इज़राइली सेना को थकाया।
1990–2000: निरंतर टकराव और इज़राइली वापसी
1990 के दशक में हिज़बुल्लाह ने लेबनान के दक्षिण में इज़राइली ठिकानों पर नियमित हमले किए। जवाब में इज़राइल ने हवाई हमले और साजिशन टार्गेटिंग की नीति अपनाई।
- 1996: ऑपरेशन ग्रेप्स ऑफ रॉथ (Operation Grapes of Wrath)।
- संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से संघर्ष विराम हुआ।
- लेकिन हिज़बुल्लाह की ताकत बढ़ती रही।
- 2000 में इज़राइल को दक्षिणी लेबनान से हटना पड़ा।
2006: इज़राइल-हिज़बुल्लाह युद्ध
2006 का इज़राइल-लेबनान युद्ध इज़राइल और हिज़बुल्लाह के बीच सबसे महत्वपूर्ण टकरावों में से एक था।
सैनिक अपहरण
2004 में हुए सैनिकों की अदला-बदली में अपने दो साथियों को न छोड़ें जाने के बाद 2006 में हिजबुल्लाह ने 2 इजराइली सैनिकों को उठा लिया और उसके बदले में अपने 3 साथियों को रिहा करने की मांग की। इज़राइल ने इसे अपनी बेइज्जती माना और इसके जवाब में लेबनान पर व्यापक हवाई हमले किए, जिससे बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए। हिजबुल्लाह ने इज़राइली क्षेत्रों और सैन्य ठिकानों पर सैकड़ों मिसाइलें दागीं। इज़राइली डिफेंस सिस्टम इन मिसाइलों को रोकने में विफल रहा।
युद्ध के दौरान प्रमुख घटनाएँ:
- हिजबुल्लाह ने इज़राइल की दुनिया की सबसे मजबूत मानी जाने वाली टैंकों को भी नष्ट कर दिया।
- 3 हेलिकॉप्टर, 20 टैंक और 1 युद्धपोत को भी नुकसान पहुँचाया।
- इज़राइल को अरबों डॉलर का सैन्य और आर्थिक नुकसान हुआ।
- हिजबुल्लाह को भारी समर्थन मिला और इसके नेता हसन नसरूल्लाह को नायक के रूप में देखा जाने लगा।
हानि:
- लगभग 200–250 इज़राइली सैनिक, 50 नागरिक मारे गए।
- हिजबुल्लाह के 150–200 लड़ाके और 800–900 लेबनानी नागरिक हताहत हुए।
- हिजबुल्लाह के पास विमान जैसी सुविधाएं न होने के कारण उनका सैन्य नुकसान अपेक्षाकृत कम रहा।
इस युद्ध के बाद यह सिद्ध हो गया कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं बल्कि रणनीति और सैन्य कौशल से जीता जाता है। हिजबुल्लाह ने इस युद्ध में लगभग 3000 मिसाइलें दागीं।
युद्ध के परिणाम:
- लेबनान की बुनियादी ढांचे को गंभीर क्षति पहुँची।
- हिज़बुल्लाह ने ‘जीत का दावा’ किया।
- इज़राइल को भी रणनीतिक नुकसान हुआ।
- संयुक्त राष्ट्र की उपस्थिति (UNIFIL) दक्षिणी लेबनान में बढ़ाई गई।
योद्धा:
इज़राइली योद्धा:
- इहुद ओल्मर्ट (प्रधानमंत्री)
- आमर पेरेंट्स
- डेन होलुटज
- मोशे कपलनसकाई
- उदी एडम
- इलीजर शकेडि
- अमेरिका व युरोपीय देश
लेबनानी योद्धा:
- हसन नसरूल्लाह (हिजबुल्लाह प्रमुख)
- ईमाद मुघनिया
- नबी बहरि
- खालिद हदादी
- अहमद जिबरिल
- ईरान
देशों का समर्थन:
- अमेरिका और अधिकांश यूरोपीय देश इज़राइल के समर्थन में थे।
- ईरान अपने सहयोगी हिजबुल्लाह के समर्थन में था।
2010 के बाद की स्थिति
- हिज़बुल्लाह अब लेबनानी राजनीति का अहम हिस्सा बन गया है।
- ईरान का समर्थन लगातार जारी है।
- इज़राइल नियमित रूप से सीरिया और लेबनान में हिज़बुल्लाह के ठिकानों पर हवाई हमले करता है।
वैश्विक प्रभाव और कूटनीतिक जटिलताएं
- अमेरिका और इज़राइल हिज़बुल्लाह को आतंकवादी संगठन मानते हैं।
- रूस और कुछ यूरोपीय देश इसे राजनीतिक इकाई मानते हैं।
- ईरान इसे ‘मुक्ति संग्राम का प्रतीक’ मानता है।
विश्लेषण
लेबनान संघर्ष सिर्फ एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का प्रतीक है:
- यह अमेरिका-ईरान टकराव की छाया है।
- यह सुन्नी बनाम शिया टकराव का क्षेत्रीय रूप है।
- यह इज़राइल के लिए उत्तरी सीमा पर स्थायी खतरे का कारक है।
लेबनान संघर्ष में इज़राइल, ईरान और हिज़बुल्लाह की भूमिकाएँ एक ऐसी त्रिकोणीय लड़ाई को दर्शाती हैं जिसमें न कोई स्थायी विजेता है, न ही स्पष्ट समाधान। यह संघर्ष मध्य-पूर्व की जटिल राजनीति का केंद्र बन चुका है। जब तक ईरान हिज़बुल्लाह को समर्थन देता रहेगा और इज़राइल इसे खतरे के रूप में देखता रहेगा, तब तक लेबनान शांति की बजाय युद्धभूमि बना रहेगा।
2006 का युद्ध इस बात का प्रतीक है कि सैन्य ताकत से अधिक मायने रणनीति, युद्धकौशल और स्थानीय समर्थन का होता है। यह युद्ध न केवल हिजबुल्लाह की ताकत का प्रदर्शन था, बल्कि ईरान के अप्रत्यक्ष सैन्य कौशल और प्रभाव की भी अभिव्यक्ति था।
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