भारत के लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य | Folk dances and Classical dances of India

लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य आम तौर पर एक प्रकार का नृत्य है, जो स्थानीय भाषा में होता है। ये नृत्य मनोरंजक होने के साथ साथ, अतीत या वर्तमान संस्कृति की अभिव्यक्ति को दर्शाते हैं। लोक नृत्य शब्द को 20वीं सदी के मध्य तक स्वीकार किया गया था। फिर इस और नृत्य की अन्य श्रेणियों पर सवाल उठाए गए और उनके भेद बहस का विषय बन गए। शास्त्रीय नृत्य जहाँ शास्त्र-सम्मत एवं शास्त्रानुशासित होता है, वहीं लोक एवं जनजातीय नृत्य विभिन्न राज्यों के स्थानीय एवं जनजातीय समूहों द्वारा संचालित होते हैं और इनका कोई निर्धारित नियम-व्याकरण या अनुशासन नहीं होता है।

Table of Contents

नृत्य किसे कहते है?

अंग-प्रत्यंग एवं मनोभावों के साथ की गई नियंत्रित यति-गति को नृत्य कहा जाता है।

भारत में नृत्य के रूप

  1. शास्त्रीय नृत्य:
    • नाट्य शास्त्र: नाट्य शास्त्र, भारतीय साहित्य और कला के एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें नृत्य के विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया गया है।
    • भारतीय शास्त्रीय नृत्य घराने: कथक, भरतनाट्यम, कुछक, ओड़िसी, और मोहिनीआट्टम जैसे विभिन्न घराने शास्त्रीय नृत्य के उदाहरण हैं।
  2. लोक नृत्य:
    • स्थानीय परंपराएं: लोक नृत्य भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय परंपराओं से निकलते हैं। इनमें भांगड़ा (पंजाब), गरबा (गुजरात), लवणी (महाराष्ट्र), चौ (बिहार), ओंडीया (ओड़िसा), बिहू (असम) आदि शामिल हैं।
    • आदिवासी नृत्य: आदिवासी समुदायों के बीच विभिन्न नृत्य फॉर्म्स हैं, जैसे घुमर (राजस्थान), सिरुली (झारखंड), जहेरा (छत्तीसगढ़) आदि। इनमें स्थानीय जीवन, प्राकृतिक प्रक्रियाएं, और समृद्धि का प्रतीक हो सकते हैं।

भारत में नृत्यों की भूमिका और प्रयोग

  • शास्त्रीय नृत्य: इसमें कविता, गीत, और वाद्य संगीत के साथ मिलकर प्रस्तुत किया जाता है, और इसका प्रमुख उद्देश्य रासिकों को भावनाओं का अनुभव कराना है।
  • लोक नृत्य: ये आमतौर पर सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों, त्योहारों, और समारोहों में प्रदर्शित होते हैं और ग्रामीण समुदायों के लोगों के बीच साझा की जाती हैं।

इन नृत्य रूपों के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक समृद्धि का अभिवादन किया जाता है, और ये नृत्य न केवल रंगमंचों पर बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में एकता, सामाजिक समरसता, और सांस्कृतिक गहराई को भी दर्शाते हैं।

भारत में लोक नृत्य | Folk Dance

लोक नृत्य एक प्रकार का नृत्य है जो उन व्यक्तियों की मदद से विकसित होता है जो अपने स्वयं के जीवन को प्रतिबिंबित करते हैं, अक्सर स्थानीय संगीत के लिए। लोक नृत्य एक प्रकार का समूह नृत्य है, और इन नृत्य प्रदर्शनों का उद्देश्य फसल, विवाह आदि जैसे प्रमुख अवसरों का स्मरण करना है।

इस नृत्य को करने के लिए किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी कलाकार को सिखाए जा रहे चरणों का अनुकरण करना चाहिए। इन नृत्यों को करने का एकमात्र कारण मनोरंजन है।

भारत के लोक नृत्य के नाम और उनके राज्य

भारत के लोक नृत्य के नाम और उनके राज्य निम्नलिखत हैं –

लोक नृत्यराज्य
घूमरराजस्थान
गरबागुजरात
गिद्धापंजाब
भांगड़ापंजाब
यक्षगानकर्नाटक
मयूरभंज छाउउड़ीसा
पुरुलिया छाउपश्चिम बंगाल
तमाशामहाराष्ट्र
लावणीमहाराष्ट्र
कालबेलियाराजस्थान
बिहुअसम
कछी घोड़ीराजस्थान
रौफजम्मू और कश्मीर
राउत नचछत्तीसगढ़
करकट्टमतमिलनाडु
होजागिरीत्रिपुरा
डोल्लू कुनिथाकर्नाटक
भवाईराजस्थान

लोक नृत्य की विशेषताएं

  • लोक नृत्य शुद्ध आनंद के लिए किए जाते हैं और उन्हें उच्च स्तर के ज्ञान या तकनीकी की आवश्यकता नहीं होती है।
  • लोक नृत्य असंगठित है और आनंद के लिए किया जाता है। नृत्य में आमतौर पर एक काल्पनिक के बजाय एक पारंपरिक मंजिला रेखा होती है।
  • लोक नृत्य में बहुत सारे हास्य और श्लोक हैं, और मौसम और लोगों के रिश्तों के बारे में कहानियां विशेष रूप से मनोरंजक हो सकती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, कुछ लोक नृत्य लोककथाओं पर आधारित होते हैं और लोगों के रिश्तों और मौसमी परिवर्तनों के बारे में कहानियों का पता लगा सकते हैं।
  • भारत लोक नृत्यों की एक विविध श्रेणी भी प्रदान करता है। कुछ सबसे लोकप्रिय लोक नृत्यों में घूमर, गरबा, बिहू, लावणी, डांडिया, कालबेलिया, रूफ, चारी और भांगड़ा शामिल हैं।

भारत में शास्त्रीय नृत्य | Classical Dance

भारत में शास्त्रीय नृत्य एक परम्परागत और संस्कृतिक नृत्य शैली है जिसमें सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपराएं मिलती हैं। यह नृत्य शैली कई शास्त्रीय नृत्य घरानों और स्थानीय परंपराओं के तहत विकसित हुई है। शास्त्रीय नृत्य समय के साथ विकसित हुआ है और अत्यधिक परिष्कृत और विकसित है। शास्त्रीय नृत्य पद्धति और निष्पादन को सदियों से गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से पारित किया गया है।

भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रमुख शैलियाँ 8 हैं- कत्थक, भरतनाट्यम, कत्थकली, मणिपुरी, ओडिसी, कुचीपुड़ी, सत्रीया एवं मोहिनीअट्टम। शास्त्रीय नृत्यों में तांडव (शिव) और लास्य (पार्वती) दो प्रकार के भाव परिलक्षित होते हैं। इनका विवरण नीचे दिया गया है –

शास्त्रीय नृत्य भाव
भरतनाट्यम (तमिलनाडु)लास्य भाव
कत्थकली (केरल) तांडव भाव
मणिपुरी (मणिपुर)लास्य तांडव
ओडिसी (ओडिशा) लास्य भाव
कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश) लास्य भाव
मोहिनीअट्टम (केरल)लास्य भाव
सत्रीया (असम) लास्य भाव
कत्थक (उत्तर प्रदेश, जयपुर )तांडव लास्य

भरतनाट्यम नृत्य (Bharatanatyam)

  • प्रवृत्ति: भरतनाट्यम, तमिलनाडु राज्य, दक्षिण भारत, का प्रमुख नृत्य है।
  • विशेषताएँ:
    • भरतनाट्यम भारतीय शास्त्रीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है और इसे भारतीय नृत्य शास्त्र के अनुसार विकसित किया गया है।
    • इसमें ताल, राग, भाव, और नृत्य का सुंदर संगम है और इसमें अभ्यंग, मुद्राएँ, और अलंकार भी शामिल हैं।
    • भरतनाट्यम में नृत्य के साथ-साथ गायकी और वाद्ययंत्रों का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
  • रूप:
    • भरतनाट्यम में रूप नृत्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें गतियों और मुद्राओं का समाहार होता है। यह नृत्यांग में एक साँझा किस्सा कहने का स्थान होता है।
  • मुद्राएँ:
    • मुद्राएँ भरतनाट्यम के अभिनय की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें हस्तमुद्राएँ और दृष्टिभंगियाँ शामिल हैं जो अभिनय को सांगीतिक रूप से सहारा देती हैं।
  • आयोजन:
    • भरतनाट्यम के आयोजन में “मार्गम” और “भेदम” शामिल होते हैं, जो किसी कहानी को सुंदर रूप से प्रस्तुत करने में मदद करते हैं।
  • उपयोगिता:
    • भरतनाट्यम का उपयोग धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों, उत्सवों, और अन्य सामाजिक समारोहों में किया जाता है, और यह नृत्यांग भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भरतनाट्यम एक गहरा और सुंदर नृत्य शैली है जो भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसमें राग, ताल, और रास्त्रीय और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता हासिल कर चुकी है।

भरतनाट्यम भारत से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से जन्मी इस नृत्य शैली का विकास तमिलनाडु में हुआ।
  • मंदिरों में देवदासियों द्वारा शुरू किये गए इस नृत्य को 20वीं सदी में रुक्मिणी देवी अरुंडेल और ई. कृष्ण अय्यर के प्रयासों से पर्याप्त सम्मान मिला।
  • नंदिकेश्वर द्वारा रचित ‘अभिनय दर्पण’ भरतनाट्यम के तकनीकी अध्ययन हेतु एक प्रमुख स्रोत है।
  • भरतनाट्यम नृत्य के संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक करताल वादक होता है।
  • भरतनाट्यम नृत्य के कविता पाठ करने वाले व्यक्ति को ‘नडन्न्वनार’ कहते हैं।
  • भरतनाट्यम में शारीरिक क्रियाओं को तीन भागों में बाँटा जाता है-समभंग, अभंग और त्रिभंग।
  • इसमें नृत्य क्रम इस प्रकार होता है- आलारिपु (कली का खिलना), जातीस्वरम् (स्वर जुड़ाव), शब्दम् (शब्द और बोल), वर्णम् (शुद्ध नृत्य और अभिनय का जुड़ाव), पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) तथा तिल्लाना (अंतिम अंश विचित्र भंगिमा के साथ)।
  • भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है।
  • इस नृत्य के प्रमुख कलाकारों में पद्म सुब्रह्मण्यम, अलारमेल वल्ली, यामिनी कृष्णमूर्ति, अनिता रत्नम, मृणालिनी साराभाई, मल्लिका साराभाई, मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई, सोनल मानसिंह, वैजयंतीमाला, स्वप्न सुंदरी, रोहिंटन कामा, लीला सैमसन, बाला सरस्वती आदि शामिल हैं।

कथकली / कत्थकली नृत्य (केरल)

  • प्रवृत्ति: केरल राज्य, दक्षिण भारत
  • विशेषताएँ:
    • कथकली एक पूर्ण नृत्य ड्रामा है जो कथाएं, भावनाएँ, और संगीत के साथ एक संगीत नृत्य है।
    • इसमें विभिन्न कथाएं और किस्से, विशेषकर हिन्दू पौराणिक कथाएं, दिखाई जाती हैं।
    • कथकली में नृत्य, संगीत, और अभिनय का संगम होता है जो इसे एक शृंगारी नृत्य रूप में बनाता है।
  • वस्त्र-शैली:
    • कथकली विशेष रूप से अपनी विशेष वस्त्र-शैली के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें विशेष रंग, मास्क, और शृंगारी अंगियाँ शामिल हैं।
  • वाद्य और संगीत:
    • कथकली में अन्य नृत्यांगों की तरह ही संगीत और वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है।
    • इसमें चंदन कुट्टु, मृदंगम, छेन्कलाम, इडंगाम, वाल्ल, इत्यादि जैसे वाद्ययंत्रों का अभ्यास किया जाता है।

कथकली एक विशेषता से भरपूर नृत्य रूप है जो विभिन्न सांस्कृतिक कथाएं और पौराणिक किस्से दर्शाता है और इसे एक अद्वितीय रूप में बनाता है।

कत्थकली (केरल) से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • कत्थकली अभिनय, नृत्य और संगीत तीनों का समन्वय है।
  • यह एक मूकाभिनय है जिसमें हाथ के इशारों और चेहरे की भावनाओं के सहारे अभिनेता अपनी प्रस्तुति देता है।
  • इस नृत्य के विषयों को रामायण, महाभारत और हिन्दू पौराणिक कथाओं से लिया जाता है तथा देवताओं या राक्षसों को दर्शाने के लिये अनेक प्रकार के मुखौटे लगाए जाते हैं।
  • केरल के सभी प्रारंभिक नृत्य और नाटक जैसे- चकइरकोथू, कोडियाट्टम, मुडियाअट्टू, थियाट्टम, थेयाम, सस्त्राकली, कृष्णाअट्टम तथा रामाअट्टम आदि कत्थकली की ही देन हैं।
  • इसे मुख्यत: पुरुष नर्तक ही करते हैं, जैसे – मकुंद राज, कोप्पन नायर, शांता राव, गोपीनाथन कृष्णन, वी.एन. मेनन आदि।

मणिपुरी नृत्य

  • प्रवृत्ति: मणिपुरी नृत्य, भारतीय राज्य मणिपुर से उत्पन्न हुआ है।
  • विशेषताएँ:
    • मणिपुरी नृत्य का सीधा संबंध मणिपुर के स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं से है।
    • इसमें भक्ति और प्रेम की भावना, सुंदर नृत्य और गीत का संगम है।
    • इसमें गहरे भावनात्मक अभिव्यक्ति होती है और नृत्य की एक विशेषता है।
  • रूप:
    • मणिपुरी नृत्य में सुंदर रूप और गहरी भावनाएँ होती हैं।
    • इसमें पुरातात्विक और लोककथाओं के आधार पर नृत्य होता है जो विभिन्न सांस्कृतिक कथाएं और इतिहास को दर्शाता है।
  • वस्त्र-शैली:
    • मणिपुरी नृत्य के परिचालन में संस्कृति की रूपरेखा को बनाए रखने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई पैराड्रेस और कॉस्ट्यूम्स शामिल हैं।
  • आयोजन:
    • मणिपुरी नृत्य का महत्वपूर्ण हिस्सा विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों और त्योहारों में भी होता है, जैसे कि रास लीला।
  • वाद्य और संगीत:
    • मणिपुरी नृत्य में संगीत, वाद्ययंत्र, और गायकी का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
    • पुण्य लै, धोलक, कारताल, फुल, वीणा, इत्यादि के वाद्ययंत्रों का इसमें उपयोग होता है।

मणिपुरी नृत्य का विशेष रूप से गहरा और भावनात्मक अंग होता है, जिसमें सांस्कृतिक और धार्मिक कथाएं और भक्ति का अद्वितीय संगम होता है। यह नृत्य भारतीय संस्कृति के अमूल्य धरोहर में से एक है।

ओडिसी नृत्य

  • प्रवृत्ति: ओडिसी नृत्य, भारतीय राज्य ओडिशा का एक प्रमुख शैली है।
  • विशेषताएँ:
    • ओडिसी नृत्य का मौखिक परंपरागत इतिहास है, जिसे उद्धारण और सांगीतिक साहित्य के माध्यम से संदर्भित किया जाता है।
    • इसमें भक्ति, भावनाएँ, और राग-ताल के सहारे विशेषता से दिखती हैं।
  • रूप:
    • ओडिसी नृत्य में गर्भपात, बृज बिहारी, विरह लीला, मोक्षमुद्रा, और अन्य रूपों में नृत्य होता है।
    • यह नृत्य रूपों में कथा, अभिनय, और नृत्य की अद्वितीय तकनीक का संगम प्रदर्शित करता है।
  • आयोजन:
    • ओडिसी नृत्य का महत्वपूर्ण हिस्सा भी ओडिशा के सांस्कृतिक आयोजनों और त्योहारों में होता है।
    • रथ यात्रा, राजरानी मेला, और देवदासी मेला जैसे आयोजनों में ओडिसी नृत्य दर्शकों को मोहक करता है।
  • वस्त्र-शैली:
    • ओडिसी नृत्य में विशेष वस्त्र-शैली और मुद्राएँ होती हैं जो नृत्य को सुंदर और भव्य बनाए रखती हैं।
  • वाद्य और संगीत:
    • ओडिसी नृत्य में संगीत, वाद्ययंत्र, और गायकी का महत्वपूर्ण स्थान है।
    • मृदंग, तबला, सारंगी, वीणा, और घंटा जैसे वाद्ययंत्रों का अभ्यास इस नृत्य शैली को शोभा देता है।

ओडिसी नृत्य भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण नृत्य शैली है जो अपनी सुंदरता, भक्ति, और आलोकपूर्ण अभिनय के लिए प्रसिद्ध है। इसमें गायकी और वाद्ययंत्रों का सहारा होता है, जो इसे आदर्श बनाता है।

कुचीपुड़ी (Kuchipudi) नृत्य

  • प्रवृत्ति: कुचीपुड़ी नृत्य, भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश का एक प्रमुख नृत्य शैली है।
  • विशेषताएँ:
    • कुचीपुड़ी नृत्य का उत्पत्ति कुचेलपुरम, आंध्र प्रदेश के एक गाँव से हुआ है और इसे अपनी गुरु-शिष्य परंपरा के लिए प्रसिद्ध है।
    • इसमें नृत्य, गीत, और अभिनय का संबंध होता है और इसे आंध्र प्रदेश के बहुपरंपरागत शैली की एक प्रकार माना जाता है।
  • रूप:
    • कुचीपुड़ी नृत्य में भरतनाट्यम की तरह ही रूप, भाव, और नृत्य का संबंध है।
    • इसमें अलंकार, तट्टुमि, मिश्राभिनय, और ताळ की अनेक विधाएँ शामिल हैं।
  • आयोजन:
    • कुचीपुड़ी नृत्य का प्रमुख आयोजन “कुचीपुड़ी महोत्सव” है जो इस नृत्य शैली के प्रति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रुचि को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखता है।
  • वस्त्र-शैली:
    • कुचीपुड़ी नृत्य में विशेष रूप से डिज़ाइन की गई वस्त्र-शैली और मुद्राएँ होती हैं जो इसे भव्य बनाए रखती हैं।
  • वाद्य और संगीत:
    • कुचीपुड़ी नृत्य में तबला, मृदंगम, वीणा, वाल्ली, और फ्लूट जैसे वाद्ययंत्रों का बड़ा महत्व है।
    • गायकी भी इस नृत्य शैली को सहारा देती है और नृत्य को गहराई और भावनात्मकता के साथ सहारा देती है।

कुचीपुड़ी नृत्य अपनी अद्वितीय भव्यता और शृंगार रस के लिए प्रसिद्ध है। इसमें नृत्य, संगीत, और अभिनय का एक सुंदर संगम होता है जो इसे भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है।

कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश) से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कुचीपुड़ी नामक गाँव है जहाँ के द्रष्टा तेलुगू वैष्णव कवि सिद्धेन्द्र योगी ने यक्षगान के रूप में कुचीपुड़ी शैली की कल्पना की।
  • भामाकल्पम् और गोलाकल्पम् इससे जुड़ी नृत्य नाटिकाएँ हैं।
  • कुचीपुड़ी में स्त्री-पुरुष दोनों नर्तक भाग लेते हैं और कृष्ण-लीला की प्रस्तुति करते हैं।
  • कुचीपुड़ी में पानी भरे मटके को अपने सिर पर रखकर पीतल की थाली में नृत्य करना बेहद लोकप्रिय है।
  • इस नृत्यशैली के प्रमुख नर्तकों में भावना रेड्डी, यामिनी रेड्डी, कौशल्या रेड्डी, राजा एवं राधा रेड्डी आदि शामिल हैं।

मोहिनीअट्टम नृत्य

  • प्रवृत्ति: मोहिनीअट्टम, भारतीय राज्य केरल का लोक नृत्य है।
  • विशेषताएँ:
    • इसे भगवान विष्णु की एक रूप, मोहिनी के अवतार से प्रेरित किया गया है, जिसे एक सुंदर और ग्रेसफुल नृत्य में व्यक्त किया जाता है।
    • इसमें शृंगार रस का महत्वपूर्ण स्थान है, और यह सुंदर और लब्धप्रीत नृत्य है।
  • रूप:
    • मोहिनीअट्टम में रूप, भावनाएँ, और अद्वितीय नृत्य तकनीकें होती हैं।
    • इसमें चंदनी पूर्णा, पदम, ताट्टु, और टुकड़ी जैसे नृत्य रूप शामिल हैं।
  • आयोजन:
    • मोहिनीअट्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा केरल के स्थानीय सांस्कृतिक आयोजनों और त्योहारों में होता है।
    • ओनम फेस्टिवल के दौरान, मोहिनीअट्टम का प्रदर्शन किया जाता है जिसमें लोग इस नृत्य का आनंद लेते हैं।
  • वस्त्र-शैली:
    • मोहिनीअट्टम में विशेष रूप से डिज़ाइन की गई पूर्णा, वेष, और जड़ित बालों की बुनाई जैसी वस्त्र-शैली शामिल है।
    • नृत्यांगनों की अनेक प्रकार की सुंदर और श्रृंगारी पोशाकें होती हैं।
  • वाद्य और संगीत:
    • मोहिनीअट्टम में संगीत, वाद्ययंत्र, और गायकी का महत्वपूर्ण स्थान है।
    • इसमें वीणा, मृदंगम, ताल, वाल्ली, फ्लूट, और ताली के साथ नृत्य होता है।

मोहिनीअट्टम एक सुंदर और ग्रेसफुल लोक नृत्य है जो भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। इसमें भक्ति और शृंगार रस के साथ सुंदर नृत्य का संबंध होता है जो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

मोहिनीअट्टम (केरल) से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • यह एकल महिला द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला ऐसा नृत्य है, जिसमें भरतनाट्यम तथा कत्थकली दोनों के कुछ तत्त्व शामिल हैं।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने भस्मासुर से शिव की रक्षा हेतु मोहिनी रूप धारण कर यह नृत्य किया था।
  • मोहिनीअट्टम की प्रस्तुति चोलकेतु, वर्णम, पद्म, तिल्लाना, कुमी और स्वर के रूप में होती है।
  • मोहिनीअट्टम नृत्य को पुनर्जीवन प्रदान करने में तीन लोगों की भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाती है- स्वाति थिरूनल, राम वर्मा, वल्लतोल नारायण मेमन (केरल मंडलम संस्था के संस्थापक) और कलामंडलम कल्याणकुट्टी अम्मा (द मदर ऑफ मोहिनीअट्टम)।

सत्रीया नृत्य

  • प्रवृत्ति: सत्रीया नृत्य, असम राज्य का एक प्रमुख लोक नृत्य है। यह नृत्य संगीत, नृत्य, और अभिनय का सुंदर संगम प्रदर्शित करता है।
  • विशेषताएँ:
    • इसका उत्पत्ति महापुरुष शंकरदेव द्वारा किया गया था, जो असम के संत, साहित्यकार, और कलाकार थे।
    • सत्रीया नृत्य को असम की सांस्कृतिक धारा का हिस्सा माना जाता है और इसमें भक्ति और आध्यात्मिक भावनाएँ होती हैं।
  • रूप:
    • सत्रीया नृत्य में रूप, भावनाएँ, और अद्वितीय नृत्य तकनीकें होती हैं।
    • यह नृत्य परम्परागत वस्तुएँ, श्वेत चंदन, अँकिया बान आदि के साथ किया जाता है।
  • आयोजन:
    • सत्रीया नृत्य का महत्वपूर्ण हिस्सा असम के सांस्कृतिक आयोजनों और त्योहारों में होता है।
    • बिहु, रोंगाली बिहु, और मघ बिहु जैसे त्योहारों में सत्रीया नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है।
  • वस्त्र-शैली:
    • सत्रीया नृत्य में विशेष रूप से डिज़ाइन की गई पूर्णा, मुखौटा, और अद्वितीय बने हुए वस्त्रों का उपयोग होता है।
    • नृत्यांगनों के वस्त्र और शृंगारी पैराफर्नेलिया इस नृत्य को बनाए रखते हैं।
  • वाद्य और संगीत:
    • सत्रीया नृत्य में संगीत, वाद्ययंत्र, और गायकी का महत्वपूर्ण स्थान है।
    • दोल, मधुरी, तबला, बानिहाती, और वीणा जैसे वाद्ययंत्रों का बड़ा उपयोग होता है।

सत्रीया नृत्य असम की सांस्कृतिक धारा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें भक्ति, भावनाएँ, और लोकप्रिय शैली के नृत्य तत्व होते हैं। इस नृत्य का प्रदर्शन आसानी से अपनी ग्रेसफुलता और रूचिकरता के लिए प्रसिद्ध है।

कथक नृत्य (उत्तर प्रदेश, जयपुर )

  • प्रवृत्ति: कथक नृत्य, भारतीय शैली का एक प्रमुख शैली है, जिसकी उत्पत्ति उत्तर प्रदेश और राजस्थान क्षेत्र से मानी जाती है। इसे सलीम चिश्ती, शाहजहाँपुर के नवाब, के समय में बढ़ावा गया था।
  • विशेषताएँ:
    • कथक नृत्य भारतीय कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें गति, अंगशुद्धि, और अद्वितीय हस्त-मुद्राएँ शामिल हैं।
    • इसमें मिश्रित ताल और लय के साथ भव्यता और गहनता का मिलन होता है।
  • रूप:
    • कथक नृत्य में गतिभेद, तालमाला, पल्लव, आमाद, सावरी, कावित, और तुकड़ा जैसे रूपों में नृत्य होता है।
    • इसमें अंग शुद्धि, भाव नृत्य, और ताल में नृत्य की अद्वितीयता दिखाई जाती है।
  • आयोजन:
    • कथक नृत्य का प्रदर्शन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, समारोहों, और महोत्सवों में किया जाता है।
    • जयपुर घराना, बनारस घराना, लखनऊ घराना, राजघराना, आदि विभिन्न घरानाओं के अनुयायियों के माध्यम से इस नृत्य का प्रचार-प्रसार होता है।
  • वस्त्र-शैली:
    • कथक नृत्य में कातर, अंगरखा, पैजामा, ओड़नी और घुंघरू जैसे परंपरागत वस्त्र-शैली का उपयोग होता है।
    • वस्त्रों का चयन रंगीन और भव्य होता है, जो नृत्य को और भी आकर्षक बनाता है।
  • वाद्य और संगीत:
    • कथक नृत्य में तबला, सितार, सरोद, वीणा, और वाद्ययंत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है।
    • गायकी और संगीत का सहारा लेकर कथक नृत्य का प्रदर्शन होता है।

कथक नृत्य भारतीय संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान रखता है और इसकी गहनता, सुंदरता, और भव्यता ने इसे दुनिया भर में पहचान दिलाई है।

ये शास्त्रीय नृत्य भारतीय संस्कृति के अमूल्य धरोहर हैं और प्रत्येक नृत्य अपनी अद्भुतता और विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इनमें सांस्कृतिक विविधता, राग-ताल की महारत, और आकर्षण होता है।

शास्त्रीय नृत्य की विशेषताएं

  • शब्द “शास्त्रीय नृत्य” नृत्यों के एक समूह को संदर्भित करता है जिसकी जड़ें नाट्य शास्त्र में हैं।
  • नाट्य शास्त्र को रंगमंच और रंगमंच का सबसे पुराना ग्रंथ माना जाता है। शास्त्रीय नृत्य शैलियों को उनकी तकनीक, वाक्य रचना और निष्पादन के कारण अत्यधिक विकसित माना जाता है।
  • इन नृत्य विधाओं को सिखाने के लिए एक लंबे समय से चले आ रहे गुरु-शिष्य संबंध का उपयोग किया जाता है। इस नृत्य शैली को शैलीबद्ध और प्रदर्शन-उन्मुख माना जाता है।
  • शास्त्रीय नृत्य प्रशिक्षण मांग और कठिन है। यह प्रकृति में अधिक औपचारिक है, जिसमें तकनीकी, स्थानिक, लयबद्ध, गीतात्मक, साहित्यिक और भावनात्मक तत्वों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है।
  • पेशेवर या अत्यंत सक्षम नर्तक जिन्होंने लंबे समय तक अपनी शैली का अध्ययन किया है, वे आमतौर पर शास्त्रीय नृत्य करते हैं।
  • शास्त्रीय नृत्यों में लालित्य, सहनशक्ति, अभिनय और संयम पर बल दिया जाता है।
  • वे आम तौर पर एकल प्रदर्शन के लिए होते हैं, हालांकि वे समूहों के लिए भी काफी सरल होते हैं।

भारत के शास्त्रीय नृत्यों और लोक नृत्यों की सूची

भारत के शास्त्रीय नृत्यों और लोक नृत्यों की सूची राज्यों के अनुसार नीचे दी गयी है –

राज्यगाँवी/लोक नृत्यशास्त्रीय नृत्य
हिमाचल प्रदेशकिन्नौरी, थोडा, झोरा, झाली, छाढ़ी, धामन, छपेली, महासू, दांगी, चंबा, थाली, झिंता, डफ, छड़ी नृत्य
उत्तराखंडचैपली, गढ़वाली, कुमायूनी, कजरी, झोरा, रासलीला आदि
पंजाबभांगड़ा, गिद्दा, डफ, धमन, भांड, नक़ल
हरयाणाझूमर, फाग नृत्य, डैफ, धमाल, लूर, गुग्गा, खोर, गागोर
उत्तर प्रदेशनौटंकी, रासलीला, काजरी, झोरा, चैपली, जैताकथक
राजस्थान घूमर, सुइसिनी, कालबेलिया, चक्री, गनागोर, झूलन लीला, झूमा, सुइसिनी, घपाल, पनिहारी, गिनाद आदि।
गुजरातगरबा, डांडिया रास, भवई, तिप्पानी ज्यूरिन, भवई
महाराष्ट्रलावणी, नकटा, कोली, लेज़िम, गाफा, दहिकाला दशावतार या बोहड़ा, तमाशा, मौनी, पोवारा, गौरीचा
मध्य प्रदेशतरतली, मांच, मटकी, आड़ा, खड़ा नाच, फूलपती, ग्रिडा नृत्य, सेलालार्की, सेलभदोनी, जवारा आदि।
छत्तीसगढगौर मारिया, पंथी, राउत नाचा, पंडवानी, वेदमती, कापालिक, चंदैनी, भरथरी चरित, गौड़ी, कर्मा, झूमर, दगला, पाली, तपाली, नवरानी, दिवारी, मुंडारी, झूमर
झारखंडकर्मा मुंडा, कर्मा, अग्नि, झूमर, जननी झूमर, मर्दाना झूमर, पाइका, फगुआ, छनू, सरहुल, जाट-जतिन, कर्मा, डंगा, बिदेसिया, सोहराई, हुंता नृत्य, मुंडारी नृत्य, सरहुल, बाराव, झिटका, डंगा, डोमकच , घोरा नाच
बिहारजटा-जतिन, बखो-बखैन, पंवारिया, समा-चकवा, बिदेसिया, जात्रा
पश्चिम बंगालपुरुलिया छऊ, अलकाप, काठी, गंभीरा, ढाली, जात्रा, बाउल, मरसिया, महल, कीर्तन, संथाली नृत्य, मुंडारी नृत्य, गंभीरा, गजन, चाइबारी नृत्य, चौ
सिक्किमचू फाट, याक चाम सिकमारी, सिंघी चाम या स्नो लायन, याक चाम, डेन्जोंग गनेन्हा, ताशी यांगकू, खुकुरी नाच, चटनी नाच, मारुनी नृत्य
मेघालयलाहो, बाला, का शाद सुक माइन्सीम, नोंगक्रेम
असमबिहू, बिछुआ, नटपूजा, महारास, कलिगोपाल, बगुरुंबा, नागा नृत्य, खेल गोपाल, तबल चोंगली, डोंगी, झुमुरा होबजानई आदि।सत्त्रिया नृत्य
अरुणाचल प्रदेशछम, मुखौटा नृत्य (मुखौटा नृत्य), युद्ध नृत्य, बुइया, चलो, वांचो, पासी कोंगकी, पोंंग, पोपिर, बारदो
नगालैंडचोंग, खैवा, लिम, नूरलीम, बांस नृत्य, टेमंगनेटिन, हेतलेउली। रंगमा, ज़ेलियांग, एनसुइरोलियन्स, गेथिंगलिम
मणिपुरथांग टा, लाई हरोबा, पुंग चोलोम, राखल, नट रैश, महा राश, रौखत, डोल चोलम, खंबा थाइबी, नूपा डांस, रासलीला, खूबक इशी, लू शामणिपुरी नृत्य
मिजोरमचेराव नृत्य, खुल्लम, चैलम, सावलकिन, चावंगलाइजॉन, जंगतलम, पार लाम, सरलामकाई/सोलाकिया, तलंगलम, खानतम, पाखुपिला, चेरोकन
त्रिपुराहोजागिरी
ओडिशाघुमारा, रणप्पा, सावरी, घुमारा, पेंका, मुनारी, छऊ, चड्या दंडनाताओडिसी
आंध्र प्रदेशघंटामर्दला, ओट्टम थेडल, मोहिनीअट्टम, कुम्मी, सिद्धि, माधुरी, छडी। विलासिनी नाट्यम, भामाकल्पम, वीरनाट्यम, डप्पू, तप्पेटा गुल्लू, लम्बाडी, धिमसा, कोलाट्टम, बुट्टा बोम्मालुकुचिपुड़ी नृत्य
कर्नाटकयक्षगण, हुत्तरी, सुग्गी, कुनिथा, करगा, लंबी
गोवाफुगड़ी, ढालो, कुनबी, धनगर, मंडी, झागोर, खोल, डाकनी, तरंगमेल, शिगमो, घोडे, मोदनी, समयी नृत्य, जागर, रणमाले, अमयी नृत्य, तोन्या मेल
तेलंगानापेरिनी शिवतांडवम, कीसाबादी
केरलओट्टम थुलाल, कैकोट्टिकाली, टप्पटिकली, काली ऑट्टमकथकली नृत्य , मोहिनीअट्टम नृत्य
तमिलनाडुकरगाम, कुमी, कोलाट्टम, कवाड़ीभरतनाट्यम नृत्य

लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य में अंतर

लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य में अंतर को निम्नलिखित बिन्दुओं में समझा जा सकता है –

शास्त्रीय नृत्यलोक नृत्य
शास्त्रीय नृत्य को अधिक कठिन माना जाता है, और तकनीकी घटकों का हमेशा कड़ाई से पालन किया जाता है।लोक नृत्य को मुक्तिदायक और मनोरंजक कहा जाता है। यह नृत्य रूप दो-व्यक्ति या दो-मौसम कनेक्शनों से संबंधित विभिन्न स्थानीय कहानियों पर आधारित है।
नाट्य शास्त्र शास्त्रीय नृत्य का स्रोत है। लस्य और तांडव शास्त्रीय नृत्य के दो मूलभूत अंग हैं।लोक नृत्य एक प्रकार का नृत्य है जो तब विकसित होता है जब व्यक्ति स्थानीय संगीत सुनते हुए अपने जीवन पर बार-बार विचार करना शुरू करते हैं।
पारंपरिक नृत्य रूप को प्रकृति में आध्यात्मिक माना जाता है।यह नृत्य प्रकार कृषि फसल उत्सव या सामाजिक समारोहों जैसे शादियों, जन्मदिनों आदि से संबंधित है।
एक शास्त्रीय नृत्य रूप अपनी शालीनता और शिष्टता के लिए जाना जाता है।लोक नृत्य अपने जोश और ताकत के लिए जाना जाता है।
शास्त्रीय नृत्य उन विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है जिनके पास वर्षों का अनुभव है या कई वर्षों से इस नृत्य को करने का निर्देश दिया गया है।लोक नृत्य विशेषज्ञों या पेशेवरों द्वारा नहीं किया जाता है क्योंकि यह ज्यादातर सामान्य लोगों द्वारा किया जाता है।
भारत में कुल आठ शास्त्रीय नृत्य हैं।भारत में, विभिन्न राज्यों में लगभग 30 प्रकार के लोक नृत्य प्रचलित हैं।

इन्हें भी देखें –

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